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भौतिकी की शब्दावली

सूची भौतिकी की शब्दावली

* ढाँचा (Framework).

193 संबंधों: ऊँचाई, चर, ऊष्मा, ऊष्मा चालकता, ऊष्मा धारिता, ऊष्मा विकिरण, ऊष्माशोषी, ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम, ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया, चिरसम्मत भौतिकी, चुम्बकीय क्षेत्र, तनाव, तनाव पुष्टि, तरल, तरल यांत्रिकी, तरल गतिकी, तरंगदैर्घ्य, तापमान, तापमापी, तापयुग्म, तारामंडल, ताल, त्रिकोणमिति, त्वरण, दिशा, दिक्-काल, दक्षता, दक्षिणावर्त, दृग्विषय, दोलन, दीर्घवृत्त, नाभि, नाभिकीय संलयन, निकाय, परम शून्य, परमाणु नाभिक, परावर्तन, परिमाप, परिकल्पना, परवलय, प्रचक्रण, प्रति-कण, प्रतिध्वनि, प्रतिरूपण, प्रदर्शक, प्रभावक्षेत्र, प्रमेय, प्रशीतक, प्रावस्था संक्रमण, प्रवणता, ..., प्रकाशिकी, प्रक्षेप, प्रक्षेप्य, प्रकीर्णन, प्रौद्योगिकी, प्रेक्षण, प्लूटो, पृष्ठ तनाव, पूर्वानुमान, फलन, फलन का कोणांक, बलयुग्म, बहुभुज, बुध (बहुविकल्पी), ब्रह्माण्ड, ब्राउनी गति, बृहस्पति, बीजगणित, भार, भौतिक राशि, महासागरीय गर्त, माध्य, माध्यम (सम्पादित्र), मापन, मंगल, मूलकण, यांत्रिक ऊर्जा, यांत्रिकी, यंग मापांक, रसभरी, राष्ट्रीय योग्यता परीक्षा, शुक्र, श्यानता, शृंखला अभिक्रिया, शैल, सदिश राशि, सदिश गुणनफल, सन्निकटन, सम और विषम अंक, समतल (ज्यामिति), समता का अधिकार, समताप रेखा, सममिति, सरल आवर्त गति, सार्थक अंक, सांख्यिकीय यांत्रिकी, संचार, संतुलन, संरचना, संवहन, संवेग, संवेग संरक्षण, स्थाई अवस्था, स्थिति सदिश, स्थितिज ऊर्जा, स्नेहक, स्पर्शरेखा, स्पंद, सौर ऊर्जा, सूक्ष्मदर्शी, सेंसर, सेकेंड, जड़त्व, जड़त्वाघूर्ण, जड़त्वीय फ्रेम, ज्वार-भाटा, ज्वालामुखी, घर्षण, घातांक, घूर्णन, वामावर्त, वायुगतिकी, वास्तविकता, विचित्रता, विद्युत प्रतिरोध, विधा, विनिमय, विभेदन, विलोपन सिद्धान्त, विषय, विसरण, विस्थापन (सदिश), विखण्डन, विकिरण, व्यतिकरण (तरंगों का), वृहदणु, खगोल शास्त्र, गतिपालक चक्र, गतिज ऊर्जा, गलनांक, गुरुत्व विभव, गुरुत्वाकर्षण, गुरुत्वजनित त्वरण, ग्रहण, आदर्श गैस, आयनमंडल, आघात, आघूर्ण, आवृत्ति, आवेग, आकाशगंगा, इन्द्रधनुष, कमानी, कम्पन, कर्षण (इंजीनियरी), कार्तीय निर्देशांक पद्धति, कार्नो चक्र, काल, कक्षा (भौतिकी), कक्षीय अवधि, क्षणिक, क्वथनांक, क्वांटम, कृष्ण विवर, कृष्णिका, केशिका, कॉरिऑलिस प्रभाव, कोणीय त्वरण, कोणीय संवेग, कोणीय व्यास, कोणीय आवृत्ति, कोशिका केन्द्रक, अटकलबाजी, अणु, अणुगति सिद्धांत, अदिश राशि, अदिश गुणनफल, अनंत, अनुदैर्घ्य तरंग, अनुनाद, अनुप्रयुक्त भौतिकी, अनुप्रस्थ तरंग, अरस्तु, अवशोषण, अवकल गणित, अक्षांश रेखाएँ, उत्तापमापी, उत्पाद, उत्प्लावन बल, उत्सर्जन, उपग्रह, उष्मागतिकी, छद्म बल सूचकांक विस्तार (143 अधिक) »

ऊँचाई

ऊँचाई (अंग्रेज़ी: Elavation) वह माप है जो किसी धरातलीय बिंदु की (स्थान की) किसी सन्दर्भ तल से ऊर्ध्वाधर दूरी या ऊँचाई बताती है; जिसमें सन्दर्भ तल बहुधा समुद्र तल अथवा ज्योइड (Geoid) होता है। ज्योइड एक तरह की काल्पनिक आकृति है जो समुद्री जल की औसत सतह से निर्मित मानी जाती है और साथ ही महाद्वीपीय भागों में भी इस सतह के विस्तार को प्रकल्पित कर लिया जाता है। चूँकि अलग-अलग जगहों पर गुरुत्वाकर्षण बल में भूपर्पटी की चट्टानों की सघनता में भिन्नता के कारण कुछ-न-कुछ अंतर पाया जाता है, प्रत्येक जगह पर इस ज्योइडल सतह या समुद्र तल की पृथ्वी के केन्द्र से दूरी एक सामान नहीं होती। इसी लिये प्रत्येक देश अपने सर्वेक्षणों के लिये किसी एक निश्चित जगह के समुद्र तट पर स्थित बिंदु के समुद्र तल को सन्दर्भ तल मान कर ऊंचाईयों की गणना करता है। भारत में ऊँचाइयाँ मद्रास (अब चेन्नई) के समुद्र तट से मापी जातीं रही हैं और यहीं से ग्रेट आर्क सर्वे आरम्भ हुआ था। अब भारत की ऊँचाइयाँ एवरेस्ट-1930 सन्दर्भ तल से मापी जाती हैं जिसका आधार बिंदु मध्य प्रदेश में कल्याणपुर के पास है। .

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चर

बीजगणित की विशेषता के अनुसार बीजगणित में राशियों की जगह चिह्नों अथवा अक्षरों का प्रयोग किया जाता है जिन का मूल्य पृथक स्थानों पर पृथक होता है, उन्हें 'चर' कहते हैं। उदाहरण: जैसे: * श्रेणी:बीजगणित श्रेणी:कलन श्रेणी:प्राथमिक गणित श्रेणी:वाक्यविन्यास (तर्क).

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ऊष्मा

इस उपशाखा में ऊष्मा ताप और उनके प्रभाव का वर्णन किया जाता है। प्राय: सभी द्रव्यों का आयतन तापवृद्धि से बढ़ जाता है। इसी गुण का उपयोग करते हुए तापमापी बनाए जाते हैं। ऊष्मा या ऊष्मीय ऊर्जा ऊर्जा का एक रूप है जो ताप के कारण होता है। ऊर्जा के अन्य रूपों की तरह ऊष्मा का भी प्रवाह होता है। किसी पदार्थ के गर्म या ठंढे होने के कारण उसमें जो ऊर्जा होती है उसे उसकी ऊष्मीय ऊर्जा कहते हैं। अन्य ऊर्जा की तरह इसका मात्रक भी जूल (Joule) होता है पर इसे कैलोरी (Calorie) में भी व्यक्त करते हैं। .

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ऊष्मा चालकता

भौतिकी में, ऊष्मा चालकता (थर्मल कण्डक्टिविटी) पदार्थों का वह गुण है जो दिखाती है कि पदार्थ से होकर ऊष्मा आसानी से प्रवाहित हो सकती है या नहीं। ऊष्मा चालकता को k, λ, या κ से निरूपित करते हैं। जिन पदार्थों की ऊष्मा चालकता अधिक होती है उनसे होकर समान समय में अधिक ऊष्मा प्रवाहित होती है (यदि अन्य परिस्थितियाँ, जैसे ताप का अन्तर, पदार्थ की लम्बाई और क्षेत्रफल आदि समान हों)। जिन पदार्थों की ऊष्मा चालकता बहुत कम होती हैं उन्हें ऊष्मा का कुचालक (थर्मल इन्सुलेटर) कहा जाता है। ऊष्मा चालकता के व्युत्क्रम (रेसिप्रोकल) को उष्मा प्रतिरोधकता (thermal resistivity) कहते हैं। .

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ऊष्मा धारिता

किसी पदार्थ के द्रव्यमान का ताप एक डिग्री सेल्सियस बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को उस पदार्थ की ऊष्मा धारिता (Heat capacity) कहते हैं। इस भौतिक राशि का एस आई मात्रक जूल प्रति केल्विन (J/K) है। ऊष्मा धारिता की विमा है। सूत्र के रूप में, जहाँ, C पदार्थ की ऊष्मा-धारिता है। .

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ऊष्मा विकिरण

किसी पदार्थ के अन्दर स्थित आवेशित कणों के ऊष्मीय गरि के परिणामस्वरूप जो विद्युतचुम्बकीय तरंगें उत्पन्न होतीं हैं उन्हें ऊष्मीय विकिरण (Thermal radiation) कहते हैं। प्रत्येक पदार्थ जो परम शून्य से अधिक ताप पर है, वह ऊष्मा का विकिरण करता है। .

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ऊष्माशोषी

ऊष्मागतिकी में ऊष्माशोषी (Endothermic) का अर्थ ऐसे प्रक्रम या रासायनिक अभिक्रिया से है जो उष्मीय उर्जा का शोषण करती है। इस प्रक्रिया की बिलोम प्रक्रिया का नाम 'ऊष्माक्षेपी' (exothermic) है। इस शब्द का उपयोग रासायनिक अभिक्रियाओं के सन्दर्भ में बहुत होता है। ऊष्माशोषी रासायनिक क्रियाओं में ऊष्मीय उर्जा, बन्ध उर्जा में परिवर्तित हो जाती है। .

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ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम

उष्मागतिकी के शून्यवें सिद्धांत में ताप की भावना का समावेश होता है। यांत्रिकी में, विद्युत् या चुंबक विज्ञान में अथवा पारमाण्वीय विज्ञान में, ताप की भावना की कोई आवश्यकता नहीं प्रतीत होती। उष्मागतिकी के प्रथम सिद्धांत द्वारा ऊष्मा की भावना का समावेश होता है। जूल के प्रयोग द्वारा यह सिद्ध होता है कि किसी भी पिंड को (चाहे वह ठोस हो या द्रव या गैस) यदि स्थिरोष्म दीवारों से घेरकर रखें तो उस पिंड को एक निश्चित प्रारंभिक अवस्था से एक निश्चित अंतिम अवस्था तक पहुँचाने के लिए हमें सर्वदा एक निश्चित मात्रा में कार्य करना पड़ता है। कार्य की मात्रा पिंड की प्रारंभिक तथा अंतिम अवस्थाओं पर ही निर्भर रहती है, इस बात पर नहीं कि यह कार्य कैसे किया जाता है। यदि प्रारंभिक अवस्था में दाब तथा आयतन के मान p0 तथा V0 हैं तो कार्य की मात्रा अंतिम अवस्था की दाब तथा आयतन पर निर्भर रहती है, अर्थात् कार्य की मात्रा p तथा V का एक फलन है। यदि कार्य की मात्रा का W हैं तो हम लिख सकते हैं कि W .

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ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया

किसी ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया का ऊर्जा-प्रोफाइल वह रासायनिक अभिक्रिया उष्माक्षेपी (exothermic reaction) कहलाती है जिसमें उष्मा के रूप में उर्जा प्राप्त होती है। इसके विपरीत रासायनिक अभिक्रिया उष्माशोषी कहलाती है। रासायनिक अभिक्रिया के रूप में व्यक्त करने पर - उदाहरण के लिए, हाइड्रोजन का जलना एक ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया है। .

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चिरसम्मत भौतिकी

आधुनिक भौतिकी के चार प्रमुख क्षेत्र चिरसम्मत भौतिकी (क्लासिकल फिजिक्स) भौतिक विज्ञान की वह शाखा है जिसमें द्रव्य और ऊर्जा दो अलग अवधारणाएं हैं। प्रारम्भिक रूप से यह न्यूटन के गति के नियम व मैक्सवेल के विद्युतचुम्बकीय विकिरण सिद्धान्त पर आधारित है। चिरसम्मत भौतिकी को सामान्यतः विभिन्न क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है। इनमें यांत्रिकी (इसमें पदार्थ की गति तथा उस पर आरोपित बलों का अध्ययन किया जाता है।), गतिकी, स्थैतिकी, प्रकाशिकी, उष्मागतिकी (ऊर्जा और उष्मा का अध्ययन) और ध्वनिकी शामिल हैं तथा इसी प्रकार विद्युत व चुम्बकत्व के परिसर में दृष्टिगोचर अध्ययन। द्रव्यमान संरक्षण का नियम, ऊर्जा संरक्षण का नियम और संवेग संरक्षण का नियम भी चिरसम्मत भौतिकी में महत्वपूर्ण हैं। इसके अनुसार द्रव्यमान और ऊर्जा को ना ही तो बनाया जा सकता है और ना ही नष्ट किया जा सकता और केवल बाह्य असन्तुलित बल आरोपित करके ही संवेग को परिवर्तित किया जा सकता है। .

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चुम्बकीय क्षेत्र

किसी चालक में प्रवाहित विद्युत धारा '''I''', उस चालक के चारों ओर एक चुम्बकीय क्षेत्र '''B''' उत्पन्न करती है। चुंबकीय क्षेत्र विद्युत धाराओं और चुंबकीय सामग्री का चुंबकीय प्रभाव है। किसी भी बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र दोनों, दिशा और परिमाण (या शक्ति) द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है; इसलिये यह एक सदिश क्षेत्र है। चुंबकीय क्षेत्र घूमते विद्युत आवेश और मूलकण के आंतरिक चुंबकीय क्षणों द्वारा उत्पादित होता हैं जो एक प्रमात्रा गुण के साथ जुड़ा होता है। 'चुम्बकीय क्षेत्र' शब्द का प्रयोग दो क्षेत्रों के लिये किया जाता है जिनका आपस में निकट सम्बन्ध है, किन्तु दोनों अलग-अलग हैं। इन दो क्षेत्रों को तथा, द्वारा निरूपित किया जाता है। की ईकाई अम्पीयर प्रति मीटर (संकेत: A·m−1 or A/m) है और की ईकाई टेस्ला (प्रतीक: T) है। चुम्बकीय क्षेत्र दो प्रकार से उत्पन्न (स्थापित) किया जा सकता है- (१) गतिमान आवेशों के द्वारा (अर्थात, विद्युत धारा के द्वारा) तथा (२) मूलभूत कणों में निहित चुम्बकीय आघूर्ण के द्वारा विशिष्ट आपेक्षिकता में, विद्युत क्षेत्र और चुम्बकीय क्षेत्र, एक ही वस्तु के दो पक्ष हैं जो परस्पर सम्बन्धित होते हैं। चुम्बकीय क्षेत्र दो रूपों में देखने को मिलता है, (१) स्थायी चुम्बकों द्वारा लोहा, कोबाल्ट आदि से निर्मित वस्तुओं पर लगने वाला बल, तथा (२) मोटर आदि में उत्पन्न बलाघूर्ण जिससे मोटर घूमती है। आधुनिक प्रौद्योगिकी में चुम्बकीय क्षेत्रों का बहुतायत में उपयोग होता है (विशेषतः वैद्युत इंजीनियरी तथा विद्युतचुम्बकत्व में)। धरती का चुम्बकीय क्षेत्र, चुम्बकीय सुई के माध्यम से दिशा ज्ञान कराने में उपयोगी है। विद्युत मोटर और विद्युत जनित्र में चुम्बकीय क्षेत्र का उपयोग होता है। .

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तनाव

;आयुर्विज्ञान.

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तनाव पुष्टि

निर्माण में प्रयुक्त इस्पात का प्रतिबल-विकृति ग्राफ 1. अधिकतम् सामर्थ्य (Ultimate Strength) 2. पराभव सामर्थ्य (Yield strength) 3. विभंजन (Rupture) 4. विकृति कठोरता क्षेत्र (Strain hardening region) 5. ग्रीवण क्षेत्र (Necking region) A: आभासी (इंजीनियरी) सामर्थ्य (Apparent (engineering) stress) (F/A0) B: वास्तविक (सत्य) प्रतिबल (F/A) किसी पदार्थ की तनन सामर्थ्य या तनाव पुष्टि (Tensile strength) (σUTS या SU) उस पदार्थ के प्रतिबल-विकृति वक्र (stress-strain curve) के महत्तम बिन्दु होता है तथा यह संकेत देता है कि किस प्रतिबल के बाद गर्दन बनना (necking) आरम्भ होगा। इसका मान परीक्षण के लिये ली गयी पदार्थ के नमूने के आकार (साइज) पर निर्भर नहीं करता। संरचनाओं (structures) तथा यांत्रिक युक्तियों में प्रयुक्त इंजीनियरी पदार्थों के लिये प्रत्यास्थता गुणांक तथा क्षरण प्रतिरोध (corrosion resistance) के साथ-साथ तनाव-पुष्टि अत्यन्त महत्व की राशि है। मिश्रधातुओं, कम्पोजिट पदार्थों, सिरैमिक्स, प्लास्टिकों, काष्ठ, कांक्रीट आदि के लिये इसके मान दिये जाते हैं। .

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तरल

थ़र्मोमीटर में इस्तेमाल होने वाला पारा एक तरल धातु है जो पानी की तरह बहती है और जिसे उडेला जा सकता है (ध्यान रहे के पारा और उस से उठती हुई भाप अत्यंत विषैली होती है) तरल का अर्थ होता है बहने वाला। भौतिकी (फिज़िक्स) में तरल की श्रेणी में द्रव (लिक्विड) और गैस दोनों आते हैं, क्योंकि दोनों ही बहते हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से प्लाज़्मा भी तरल पदार्थों की श्रेणी में शामिल है। भौतिकी की वह शाखा जिसमें तरल का अध्ययन होता है तरल यांत्रिकी कहलाती है। .

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तरल यांत्रिकी

तरल यांत्रिकी (अंग्रेज़ी:Fluid Mechanics) तरल पदार्थो के स्वभाव एवं गति के सिद्धान्तों को समझाने वाली यांत्रिकी की एक शाखा है। तरल, द्रव या गैस हो सकते हैं और उनमें सीमित मात्रा में ठोस के मिले या घुले रहने पर भी इन सिद्धांतों का प्रयोग किया जा सकता है। तरल पदार्थ भी न्यूटन के गति नियमों का अनुसरण करते हैं, पर आकार आसानी से बदल जाने के स्वभाव के कारण इनके गति नियमों को विशेष रूप दिया जाता है। नेवियर-स्टोक्स समीकरण तरल यांत्रिकी के समीकरणों का सबसे विस्तृत रूप है। तरल यांत्रिकी वायव्य, यांत्रिकी, सिविल तथा रासायनिक यंताओं द्वारा मुख्य रूप से प्रयुक्त होता है। जटिल तरल गतिक प्रश्नों के हल के लिए संगणित तरल यांत्रिकी का प्रयोग किया जाता है। तरलयांत्रिकी गणित की वह शाखा है, जिसमें (स्थिर अथवा प्रवहयुक्त) तरलों के व्यवहार का अध्ययन होता है। यदि तरल गतिहीन है तो इस अध्ययन को द्रवस्थिति विज्ञान (Hydrostatics) कहते हैं और यदि तरल गतियुक्त है तो उसे तरल यांत्रिकी के विविध उपयोग .

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तरल गतिकी

तरल गतिकी तरल यांत्रिकी की एक शाखा है। इसका प्रयोग गतिशील तरलों (द्रव तथा गैस) की प्रकृति तथा उस पर लगने वाले बलों के आकलन के लिए किया जाता है। जटिल तरल गतिकी के सवालों के हल के लिए गणकीय तरलगतिकी का प्रयोग होता है जिसमें संगणकों के सहारे तरल समीकरणों का संख्यात्मक हल किया जाता है। तरलगतिकी का मूल समीकरण सातत्य समीकरण (equation of continuity) कहलाता है जो निम्न प्रकार से लिखा जाता है- तरल गतिकी में प्रयुक्त गणितीय समीकरणों में नेवियर स्टोक्स समीकरण सबसे सामान्य (generalised) रूप है। इसके सरलीकृत रूपों को कई नामों से जाना जाता है। तरलों का बलों के प्रति आचरण उनके घनत्व, श्यानता तथा अन्य गुणों पर निर्भर करता है। यदि द्रव की श्यानता बहुत कम हो तो घर्षण बलों को नगण्य मानते हुए छोड़ा जा सकता है। इस प्रकार प्राप्त समीकरण यूलर का समीकरण कहलाता है जो इस प्रकार है- .

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तरंगदैर्घ्य

साइन-आकारीय अनुप्रस्थ तरंग का तरंगदैर्घ्य, '''λ''' भौतिकी में, कोई साइन-आकार की तरंग, जितनी दूरी के बाद अपने आप को पुनरावृत (repeat) करती है, उस दूरी को उस तरंग का तरंगदैर्घ्य (wavelength) कहते हैं। 'दीर्घ' (.

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तापमान

आदर्श गैस के तापमान का सैद्धान्तिक आधार अणुगति सिद्धान्त से मिलता है। तापमान किसी वस्तु की उष्णता की माप है। अर्थात्, तापमान से यह पता चलता है कि कोई वस्तु ठंढी है या गर्म। उदाहरणार्थ, यदि किसी एक वस्तु का तापमान 20 डिग्री है और एक दूसरी वस्तु का 40 डिग्री, तो यह कहा जा सकता है कि दूसरी वस्तु प्रथम वस्तु की अपेक्षा गर्म है। एक अन्य उदाहरण - यदि बंगलौर में, 4 अगस्त 2006 का औसत तापमान 29 डिग्री था और 5 अगस्त का तापमान 32 डिग्री; तो बंगलौर, 5 अगस्त 2006 को, 4 अगस्त 2006 की अपेक्षा अधिक गर्म था। गैसों के अणुगति सिद्धान्त के विकास के आधार पर यह माना जाता है कि किसी वस्तु का ताप उसके सूक्ष्म कणों (इलेक्ट्रॉन, परमाणु तथा अणु) के यादृच्छ गति (रैण्डम मोशन) में निहित औसत गतिज ऊर्जा के समानुपाती होता है। तापमान अत्यन्त महत्वपूर्ण भौतिक राशि है। प्राकृतिक विज्ञान के सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों (भौतिकी, रसायन, चिकित्सा, जीवविज्ञान, भूविज्ञान आदि) में इसका महत्व दृष्टिगोचर होता है। इसके अलावा दैनिक जीवन के सभी पहलुओं पर तापमान का महत्व है। .

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तापमापी

|एक चिकित्सकीय तापमापी '''तापमापी''' तापमापी या थर्मामीटर वह युक्ति है जो ताप या 'ताप की प्रवणता' को मापने के काम आती है। 'तापमिति' (Thermometry) भौतिकी की उस शाखा का नाम है, जिसमें तापमापन की विधियों पर विचार किया जाता है। तापमापी अनेक सिद्धान्तों के आधार पर निर्मित किये जा सकते हैं। द्रवों का आयतन ताप ग्रहण कर बढ़ जाता है तथा आयतन में होने वाली यह वृद्धि तापक्रम के समानुपाती होता है। साधारण थर्मामीटर इसी सिद्धान्त पर काम करते हैं। .

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तापयुग्म

डिजिटल मल्टीमीटर से जुड़ा एक तापयुगम: कमरे का ताप सीधे डिग्री सेल्सियस में प्रदर्शित कर रहा है। दो भिन्न धातुओं के जोड़ (junction) को तापयुग्म (thermocouple) कहते हैं। यह जंक्शन जितना ही अधिक ताप पर होता है उन दो धातुओं के खुले सिरों के बीच उतना ही अधिक विभवान्तर प्राप्त होता है। यही इसके कार्य करने का आधारभूत सिद्धान्त है। तापमापन एवं ताप नियंत्रण के लिये इसका खूब प्रयोग किया जाता है। इसका उपयोग उष्मा को विद्युत उर्जा में बदलने के लिये भी किया जा सकता है। तापयुग्म बहुत सस्ते होते है। ये विस्तृत परास (रेंज) के ताप मापने के लिये उपयुक्त हैं। इनके द्वारा लगभग १ डिग्री सेल्सियस तक परिशुद्धता से ताप मापा जा सकता है। .

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तारामंडल

मृगशीर्ष या ओरायन (शिकारी तारामंडल) एक जाना-माना तारामंडल है - पीली धारी के अन्दर के क्षेत्र को ओरायन क्षेत्र बोलते हैं और उसके अंदर वाली हरी आकृति ओरायन की आकृति है खगोलशास्त्र में तारामंडल आकाश में दिखने वाले तारों के किसी समूह को कहते हैं। इतिहास में विभिन्न सभ्यताओं नें आकाश में तारों के बीच में कल्पित रेखाएँ खींचकर कुछ आकृतियाँ प्रतीत की हैं जिन्हें उन्होंने नाम दे दिए। मसलन प्राचीन भारत में एक मृगशीर्ष नाम का तारामंडल बताया गया है, जिसे यूनानी सभ्यता में ओरायन कहते हैं, जिसका अर्थ "शिकारी" है। प्राचीन भारत में तारामंडलों को नक्षत्र कहा जाता था। आधुनिक काल के खगोलशास्त्र में तारामंडल उन्ही तारों के समूहों को कहा जाता है जिन समूहों पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ में सहमति हो। आधुनिक युग में किसी तारों के तारामंडल के इर्द-गिर्द के क्षेत्र को भी उसी तारामंडल का नाम दे दिया जाता है। इस प्रकार पूरे खगोलीय गोले को अलग-अलग तारामंडलों में विभाजित कर दिया गया है। अगर यह बताना हो कि कोई खगोलीय वस्तु रात्री में आकाश में कहाँ मिलेगी तो यह बताया जाता है कि वह किस तारामंडल में स्थित है।, Neil F. Comins, pp.

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ताल

तबले में ताल का प्रयोग्। संगीत में समय पर आधारित एक निश्चित ढांचे को ताल कहा जाता है। शास्त्रीय संगीत में ताल का बड़ी अहम भूमिका होती है। संगीत में ताल देने के लिये तबले, मृदंग, ढोल और मँजीरे आदि का व्यवहार किया जाता है। प्राचीन भारतीय संगीत में मृदंग, घटम् इत्यादि का प्रयोग होता है। आधुनिक हिन्दुस्तानी संगीत में तबला सर्वाधिक लोकप्रिय है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में प्रयुक्त कुछ तालें इस प्रकार हैं: दादरा, झपताल, त्रिताल, एकताल। तंत्री वाद्यों की एक शैली ताल के विशेष चलन पर आधारित है। मिश्रबानी में डेढ़ और ढ़ाई अंतराल पर लिए गए मिज़राब के बोल झप-ताल, आड़ा चार ताल और झूमरा का प्रयोग करते हैं। संगीत के संस्कृत ग्रंथों में ताल दो प्रकार के माने गए हैं—मार्ग और देशी। भरत मुनि के मत से मार्ग ६० हैं— चंचत्पुट, चाचपुट, षट्पितापुत्रक, उदघट्टक, संनिपात, कंकण, कोकिलारव, राजकोलाहल, रंगविद्याधर, शचीप्रिय, पार्वतीलोचन, राजचूड़ामणि, जयश्री, वादकाकुल, कदर्प, नलकूबर, दर्पण, रतिलीन, मोक्षपति, श्रीरंग, सिंहविक्रम, दीपक, मल्लिकामोद, गजलील, चर्चरी, कुहक्क, विजयानंद, वीरविक्रम, टैंगिक, रंगाभरण, श्रीकीर्ति, वनमाली, चतुर्मुख, सिंहनंदन, नंदीश, चंद्रबिंब, द्वितीयक, जयमंगल, गंधर्व, मकरंद, त्रिभंगी, रतिताल, बसंत, जगझंप, गारुड़ि, कविशेखर, घोष, हरवल्लभ, भैरव, गतप्रत्यागत, मल्लताली, भैरव- मस्तक, सरस्वतीकंठाभरण, क्रीड़ा, निःसारु, मुक्तावली, रंग- राज, भरतानंद, आदितालक, संपर्केष्टक। इसी प्रकार १२० देशी ताल गिनाए गए हैं। इन तालों के नामों में भिन्न भिन्न ग्रंथों में विभिन्नता देखी जाती हैं। ताल में परिवर्तन / ताल माला: - ताल में परिवर्तन / ताल माला एक राग में हर पंक्ति में ताल परिवर्तन / वृद्धि करते हुये राग को गाया जाता है विषम से है तो विषम से तथा सम से है तो सम से। जैसे 10 मात्रा से राग के विभिन्न भाषा अर्थात शुरू, अगली पंक्ति 12 मात्रा, अन्य पंक्तियां भी बढ़ते क्रम से गायी जाती है। ताल माला आरोही आदेश में बढ़ती हैं। दोहरीकरण / ताल माला में राग का तीन गुना आरोही आदेश में वृद्धि की जाती है। जब एक गायक ताल माला में गायी जाने वाली राग की दोगुन करता है तो आरोही आदेशों (उदाहरणार्थ 18,20,22,24....) बढ़ते क्रम से ताल माला को गाया जाता है, ताल का बदलाव और अजीब के लिए इसी तरह की संख्या में वृद्धि की जाती है। इसका उल्लेख गुरमत ज्ञान समूह, राग रतन, ताल अंक, संगीत शास्त्र में भी दर्शाया गया है। .

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त्रिकोणमिति

किसी दूरस्थ और सीधे मापन में कठिनाई वाले सर्वेक्षण के लिए समरूप त्रिभुज के उपयोग का उदाहरण (1667) त्रिकोणमिति गणित की वह शाखा है जिसमें त्रिभुज और त्रिभुजों से बनने वाले बहुभुजों का अध्ययन होता है। त्रिकोणमिति का शब्दिक अर्थ है 'त्रिभुज का मापन'। त्रिकोणमिति में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है समकोण त्रिभुज का अध्ययन। त्रिभुजों और बहुभुजों की भुजाओं की लम्बाई और दो भुजाओं के बीच के कोणों का अध्ययन करने का मुख्य आधार यह है कि समकोण त्रिभुज की किन्ही दो भुजाओं (आधार, लम्ब व कर्ण) का अनुपात उस त्रिभुज के कोणों के मान पर निर्भर करता है। त्रिकोणमिति का ज्यामिति की प्रसिद्ध बौधायन प्रमेय (पाइथागोरस प्रमेय) से गहरा सम्बन्ध है। .

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त्वरण

विभिन्न प्रकार के त्वरण के अन्तर्गत गति में वस्तु की समान समयान्तराल बाद स्थितियाँ दोलन करता हुआ लोलक: इसका वेग एवं त्वरण तीर द्वारा दर्शाया गया है। वेग एवं त्वरण दोनों का परिमाण एवं दिशा हर क्षण बदल रही है। किसी वस्तु के वेग परिवर्तन की दर को त्वरण (Acceleration) कहते हैं। इसका मात्रक मीटर प्रति सेकेण्ड2 होता है तथा यह एक सदिश राशि हैं। या, उदाहरण: माना समय t.

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दिशा

हिन्दू धर्म के अनुसार मुख्य दिशायें चार हैं - पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण.

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दिक्-काल

दिक्-काल या स्पेस-टाइम (spacetime) की संकल्पना, अल्बर्ट आइंस्टीन द्वारा उनके सापेक्षता के सिद्धांत में दी गई थी| उनके अनुसार तीन दिशाओं की तरह, समय भी एक आयाम है और भौतिकी में इन्हें एक साथ चार आयामों के रूप में देखना चाहिए। उन्होंने कहा कि वास्तव में ब्रह्माण्ड की सभी चीज़ें इस चार-आयामी दिक्-काल में रहती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि कभी-कभी ऐसी परिस्थितियाँ बन जाती हैं जब भिन्न वस्तुओं को इन सभी-आयामों का अनुभव अलग-अलग प्रतीत हो। दिक् (space) और काल (time) का संबध हमारे नित्य व्यवहार में इतना अधिक आता है कि इनके विषय में कुछ अधूरी सी किंतु दृढ़ धारणाएँ हमारे मन में बचपन से ही होना स्वाभाविक है। कवियों ने दिक्‌ और काल की गंभीर, विशाल तथा सुंदर कल्पनाओं का वर्णन किया है। दर्शन में और पाश्चात्य मनोविज्ञान में भी इनके विषय में पुरातन काल से सोच विचार होता आ रहा है। कणाद (३०० ई. पू.) के वैशेषिक दर्शन में आकाश, दिक्‌ और काल की धारणाएँ सुस्पष्ट दी गई हैं और इनके गुणों का भी वर्णन किया गया है। इंद्रियजन्य अनुभवों से जो ज्ञान मिलता है उसमें दिक्‌ और काल का संबंध अवश्य ही होता है। इस ज्ञान की यदि वास्तविकता समझा जाए तो दिक्‌ और काल वस्तविकता से अलग नहीं हो सकते। प्रत्येक दार्शनिक संप्रदाय ने वस्तविकता, दिक्‌ और काल, इनके परस्पर संबंधों की अपनी अपनी धारणाएँ दी हैं, जिनमें ऐकमत्य नहीं है। गणित में भी दिक्‌ और काल का अप्रत्यक्ष रीति से संबंध आता है। अत: प्रतिष्ठित भौतिकी (क्लासिकल फिजिक्स) का विकास इन्हीं धारणाओं पर निर्भर रहा। भौतिकी के कुछ प्रायोगिक फल जब इन धारणाओं से विसंगत दिखाई देने लगे, तब ये धारणाएँ विचलित होने लगीं एवं आपेक्षितावाद ने दिक्‌ और काल का नया स्वरूप स्थापित किया, जो अनेक प्रयोगों द्वारा प्रमाणित और फलत: अब सर्वसम्मत हो चुका है। दिक्‌ तथा काल का यह नया स्वरूप केवल भिन्न ही नहीं वरन्‌ (हमारी इनके विषय की व्यावहारिक कल्पनाओं के कारण) समझने में भी अत्यंत कठिन है, क्योंकि इसके प्रतिपादन में विशिष्ट गणित का उपयोग आवश्यक होता है। अत: जहाँ-जहाँ दिक्‌ तथा काल संबंध आता है उसका स्पष्टीकरण पहले स्थूल दृष्टि से, तत्पश्चात्‌ सूक्ष्म दृष्टि से और अंत में भौतिकी की दृष्टि से करना अधिक सरल होगा। इंद्रियजन्य अनुभवों से जो दिक्‌ के गुणों का प्रत्यय आता है, उससे दिक्‌ के विभिन्न प्रकार माने जा सकते हैं। अनुभवों के बुद्धि पर जो परिणाम होते हैं उनका पृथक्करण करके धारणाएँ बनती हैं। इस प्रकार स्वानुभव से दिक्‌ की जो धारणा बनती है उसे "स्व-दिक्‌' अथवा "व्यक्तिगत दिक्‌' कहा जाता है। इंद्रियजन्य अनुभवों में अनेक अनुभव समस्त व्यक्तियों के लिए समान होते हैं और ऐसे अनुभव जिस घटना से मिलते हैं, उसे "वास्तव' कहा जाता है। वास्तव घटनाओं के समुदायों से "वास्तविकता' की धारणा बनती है। इंद्रियों से दृष्टि, स्पर्श, ध्वनि, रस और गंध के अनुभव मिलते हैं, किंतु ये अनुभव सर्वदा विश्वास के योग्य होते हैं, ऐसा नहीं है। प्रकाशकीय संभ्रम तो सुप्रसिद्ध हैं ही। स्पर्श के भी संभ्रम व्यवहार में नित्य प्रतीत होते हैं, जैसे दो दाँतों के बीच की खोह जीभ को जितनी लगती है उससे कम छोटी उँगली को लगती है। प्राय: ऐसा ही प्रकार सब तरह के इंद्रियजन्य अनुभवों का होता है। अत: इन अपूर्ण अनुभवों से व्यक्तिगत दिक्‌ की जो धारणा बनती है वह भ्रममूलक ही होती है। मापनदंड तथा अन्य उचित यंत्रों की सहायता से इंद्रियों की मर्यादित ग्राहकता बढ़ाई जा सकती है और इस प्रकार अनेक घटनाओं का भ्रमनिरसन हो सकता है। प्रयोगों में मापन करके दिक्‌ की जो धारणा होती है उसे "भौतिक दिक्‌ कहा जाता है। मापन के लिए मापनदंड का उपयोग किया जाता है। अनुभवों में दिक्‌ का संबंध चार प्रकार से आता है और इन चारों प्रकारों पर विचार करके दिक्‌ के गुणों की व्यावहारिक कल्पनाएँ बनती हैं। किसी वस्तु के स्थल का निर्देश जब वहाँ कहकर किया जाता है, तब दिक्‌ के एक स्वरूप की कल्पना आती है और इसका अर्थ यह भी माना जाता है कि दिक्‌ का अस्तित्व (अनुभवों से) स्वतंत्र है। किसी वस्तु के स्थल का निर्देश अन्य वस्तु के "सापेक्ष' करने पर दिक्‌ की "सापेक्ष स्थिति' में दूसरा स्वरूप दिखई देता है। दिक्‌ का तीसरा स्वरूप वस्तुओं के "आकार' से मिलता है, जिससे दिक्‌ की विभाज्यता की भी कल्पना की जा सकती है। आकाश की ओर देखने से दिक्‌ की "विशालता' (अथवा अनंतता) का चौथा स्वरूप दिखाई देता है। इन चार प्रकार के स्वरूपों से ही प्राय: दिक्‌ के संबध में व्यावहारिक धारणाएँ बनती हैं और दिक्‌ के गुण भी सूचित होते हैं। घटनाओं से प्राप्त इंद्रियजन्य अनुभवों का विचर किया जाए तो उनके दो प्रकार होते हैं। घटनाओं के स्थानभेद से दिक्‌ की कल्पना होती है और उनके क्रम-भेद से काल की कल्पना होती है। इस प्रकार दिक्‌ और काल हमारी विचारधारा में संदिग्ध रूप से प्रवेश करते हैं। दिक्‌ जैसा ही काल भी व्यक्तिगत (अथवा स्व-काल) होता है और प्रत्येक व्यक्ति की कालगणना स्वतंत्र तथा स्वेच्छ होती है। इतना ही नहीं, इस स्व-काल की गणना में भी परिवर्तन होता है और वह व्यक्ति के स्वास्थ्य, अवस्था इत्यादि स्थितियों पर निर्भर करता है, जैसे, किसी कार्य में मनुष्य मग्न हो तो काल तेजी से कटता है। अत: व्यक्तिगत अथवा स्व-काल विश्वास योग्य नहीं रहता। किसी प्राकृतिक घटना से - दिन और रात से - जो काल का मापन होगा वह व्यक्तिगत नहीं रहेगा और सब लोगों के लिए समान होगा। अत: ऐसे काल को सार्वजनिक काल कहा जाता है। दिन और रात काल के स्थूल विभाग हैं। इनके छोटे विभाग किए जाएँ तो व्यवहार में कालमापन के लिए वे अधिक उपयुक्त होते हैं। इसलिए प्रहर, घटिका, पल विपल अथवा घंटा, मिनट, सेकंड इत्यादि विभाग किए गए। सामान्यत: काल का मापन घड़ी से होता है। दिक्‌ की भाँति काल के भी चार स्वरूप व्यवहार में दिखाई देते हैं। किसी घटना अथवा अनुभव से "कब?' प्रश्न उपस्थित होता है और इसका दिक्‌ विषयक "कहाँ' से साम्य है। इस कल्पना से काल का अस्तित्व (अनुभवों से) स्वतंत्र समझा जाता है। किसी घटना के काल के सापेक्ष दूसरी घटना का वर्णन करते समय काल का सापेक्ष स्वरूप दिखाई देता है। दो घटनाओं के बीच के काल से काल का जो स्वरूप दिखाई देता है वह दिक्‌ के आकार से समान है। वैसे ही काल के अनादि, अनंत इत्यादि विशेषणों से काल की विशालता दिखाई दती है। दिक्‌ तथा काल के चारों स्वरूपों को, या गुणों को कहिए, मिलाकर विचार करने पर इनके विषय में हमारी जो धारणाएँ बनती हैं उनको "स्व' या "व्यक्तिगत' अथवा "मनोवैज्ञानिक' दिक्‌ और काल कहा जाता है। दिक्‌ तथा काल की धारणाओं को निश्चित रूप देने के लिए उनका मापन करने के साधन आवश्यक होते हैं। दिक्‌ के मापन के लिए दृढ़ पदार्थों के दंड, औजार तथा यंत्र उपयोग में लाए जाते हैं। इन उपकरणों से लंबाई, कोण, क्षेत्रफल, आयतन इत्यादि वस्तुओं के गुणों के मापन होते है। इन मापनों के समय बिंदु, रेखा, समतल इत्यादि की धारणाएँ बनती जाती हैं। जब अनेक पुनरावृत्तियों से ये धारणाएँ दृढ़ हो जाती हैं, तब बिंदु, रेखा, समतल इत्यादि का स्थान मौलिक होता है और भौतिक वस्तुएँ इन धारणाओं से दूर हो जाती हैं। अब इन धारणाओं की और यूक्लिडीय ज्यामिति की मौलिक धारणाओं की समानता स्पष्ट होगी। दृढ़ वस्तुओं को समाविष्ट करके दिक्‌ के, अथवा वस्तुओं के, मापन से दिक्‌ की जो धारणा होती है उसे ज्यामितीय अथवा यूक्लिडीय दिक्‌ कहा जाता है। यह स्पष्ट है कि दिक्‌ की इस धारणा से उसके जो गुण समझे जाते हैं वे केवल यूक्लिडीय ज्यामिति की परिभाषाओं, स्वयंसिद्ध और कल्पनाओं के ऊपर ही निर्भर होते हैं। दिक्‌ की हमारी व्यावहारिक धारणा और मापन से निश्चित की हुई यह ज्यामितीय धारणा, क्रमश: हमारी स्थूल दृष्टि और सूक्ष्म दृष्टि के स्वरूप हैं। यूक्लिडीय ज्यामिति पर निर्धारित दिक्‌ की यह धारणा यद्यपि स्वाभाविक दिखाई देती होगी, तथापि इसका विश्लेषण करने की आवश्यता है। यूक्लिडीय ज्यामिति में कुछ परिभाषाएँ (जैसे बिंदु, रेखा, तल इत्यादि) तथा कुछ स्वयंसिद्ध तथ्य दिए हुए हैं और इनका तार्किक दृष्टि से विकास किया गया है। ये धारणाएँ केवल काल्पनिक और स्वतंत्र हैं। थोड़ा ही विचार करने पर यह स्पष्ट होगा कि यूक्लिडीय ज्यामिति का व्यवहार की वस्तुओं से कोई भी वास्तविक संबंध नहीं है। अपनी मूल कल्पनाओं को विकसित करते समय उनका परस्पर तर्कसंगत संबंध रखना और एक "काल्पनिक' गणित शास्त्र का निर्मांण करना, इतना ही इस ज्यामिति का मूल उद्देश्य था। इस उद्देश्य में यह ज्यामिति अत्यंत ही सफल रही। इस ज्यामिति का और भी विस्तार करके उसे "व्यावहारिक' बनाने के लिए "आदर्श दृढ़ वस्तु' की परिभाषा यह है कि इसके दो बिंदुओं का अंतर किसी भी परिस्थिति में उतना ही रहता है। मापन दंड अथवा अन्य औजारों का उपयोग इसी विशेषता पर निर्भर करता है। वस्तुत: इस प्रकार "आदर्श दृढ़ वस्तु' को समाविष्ट करने पर यूक्लिडीय ज्यामिति का स्वरूप बदल जाता है और उसको अब हम भौतिकी का एक विभाग समझ सकते हैं। किंतु व्यवहार में यूक्लिडीय ज्यामिति का यह परिवर्तन इस दृष्टि से नहीं देखा जाता। मापन करने पर व्यावहारिक वस्तुओं के मापन के लिए यूक्लिडीय ज्यामिति के सिद्धांत यथार्थ दिखाई देते हैं। इसलिए यूक्लिडीय ज्यामिति को "वास्तविक' समझा जाने लगा। व्यावहारिक अनुभव और यूक्लिडीय ज्यामिति का दृष्टि से न्यूटन ने अपनी दिक्‌ और काल की धारणाएँ निश्चित रूप से प्रस्तुत की और प्रतिष्ठित भौतिकी का विकास प्राय: वर्तमान शताब्दी के प्रारंभ तक इन्हीं धारणाओं पर निर्भर रहा। न्यूटन ने दिक्‌ को स्वतंत्र सत्ता समझकर उसके गुण भी दिए। न्यूटन के अनुसार दिक्‌ के गुण सर्व दिशाओं में तथा सर्व बिंदुओं पर समान ही होते हैं, अर्थात्‌ दिक्‌ समदिक्‌, समांग तथा एक समान है। अत: पदार्थों के गुण दिक्‌ में सभी स्थानों पर समान ही होते हैं। दिक्‌ अनंत है और न्यूटन के दिक्‌ में लंबाई, काल तथा गति से अबाधित रहती है। काल के विषय में भी न्यूटन ने अपनी धारणा दी है और यह धारणा भी उस समय के भौतिकी के विकास के अनुसार ही थी। न्यूटन के अनुसार काल भी एक स्वतंत्र सत्ता है। काल का विशेष गुण यह है कि वह समान गति से सतत और सर्वत्र "बहता' है और किसी भी परिस्थिति का उसके ऊपर कोई भी परिणाम नहीं होता। काल भी अनंत है। सारांश में, न्यूटन के अनुसार दिक्‌ तथा काल दोनों ही स्वतंत्र और निरपेक्ष सत्ताएँ होती हैं। न्यूटन आदि की यांत्रिकी इन्हीं धारणाओं पर निर्भर थी। यांत्रिकी में गति और त्वरण, इन दोनों के लिए दिक्‌ और काल को निश्चित रूप देना आवश्यक था और उस समय तो इन धारणाओं में कोई भी त्रुटि दिखाई नहीं देती थी। वैसे ही भौतिकी में न्यूटन का इतना प्रभाव था कि इन धारणाओं पर शंका प्रदर्शित करना संभव नहीं था। बोल्याई, लोबातचेवस्की, रीमान इत्यादि गणितज्ञों ने यह सिद्ध किया कि यूक्लिडीय ज्यामिति के कुछ स्वयंतथ्यों में उचित परिवर्तन करने पर अयूक्लिडीय ज्यामितियों का निर्माण हो सकता है। यद्यपि अयूक्लिडीय ज्यामितियों के अनेक सिद्धांत यूक्लिडीय ज्यामिति के सिद्धांतों से भिन्न होते हैं, तथापि वे अयोग्य नहीं होते हैं। विशेषत: रीमान के अयूक्लिडीय ज्यामिति से यह स्पष्ट हुआ कि यूक्लिडीय ज्यामिति ही केवल मौलिक नहीं है। यद्यपि अयूक्लिडीय ज्यामितियाँ कल्पना करने में कठिन होती हैं, तथापि तर्कसम्मत होने से उनके फल अत्यंत रोचक तथा उपयुक्त होते हैं। इनमें तीन से अधिक विमितियों के दिक्‌ की (जिसे हम "अति दिक्‌' कह सकते हैं) जो कल्पना होती है, उस दिक्‌ की वक्रता की कल्पना विशेष रूप से उपयुक्त हुई। .

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दक्षता

दक्षता (Efficiency) का सामान्य अर्थ यह है कि किसी कार्य या उद्देश्य को पूरा करने में लगाया गया समय या श्रम या ऊर्जा कितनी अच्छी तरह काम में आती है। 'दक्षता' का विभिन्न क्षेत्रों एवं विषयों में उपयोग किया जाता है और विभिन्न सन्दर्भों में इसके अर्थ में भी काफी भिन्नता पायी जाती है। दक्षता एक मापने योग्य राशि है। ऊर्जा के रूपान्तरण की स्थिति में आउटपुट ऊर्जा और इनपुट उर्जा के अनुपात को दक्षता कहते हैं।;उदाहरण कोई ट्रांसफॉर्मर १००० किलोवाट विद्युत ऊर्जा लेकर अपने आउटपुट में जुड़े लोड को ९८० किलोवाट विद्युत ऊर्जा देता है, तो इसकी दक्षता श्रेणी:ऊर्जा श्रेणी:अर्थशास्त्र श्रेणी:ऊष्मा अंतरण श्रेणी:विचार की गुणवत्ताएँ.

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दक्षिणावर्त

दक्षिणावर्त (कलॉकवाइज़) का अर्थ इस प्रकार घूमना है कि घूमने की दिशा दाहिने हाथ (दक्षिण हस्त) की तरफ हो, अर्थात घड़ी की सुइयों के घूमने की दिशा। date.

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दृग्विषय

दियासलाई की तिल्ली का जलना एक ऐसी घटना है जिसे देखा जा सकता है; अत: यह एक परिघटना है। observed as appearing differently. दृग्विषय या परिघटना (phenomenon, बहुवचन phenomena, phainomenon, phainein क्रिया से) कोई वह चीज़ हैं जो स्वयं प्रकट होती हैं। भले सदैव नहीं, पर आम तौर पर दृग्विषयों को "चीजें जो दृष्टिगोचर होती हैं" या संवेदन-समर्थ जीवों के "अनुभव" समझे जाते हैं, या वे जो सैद्धान्तिक रूप से हो सकते हैं। यह शब्द इमानुएल काण्ट के द्वारा आधुनिक दार्शनिक प्रयोग में आया, जिन्होंने इसे मनस्विषय के विपरीत बताया। दृग्विषय के विपरीत, मनस्विषय अन्वेषण के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से अभिगम्य नहीं हैं। काण्ट Gottfried Wilhelm Leibniz के दर्शन के इस भाग से बेहद प्रभावित थे, जिसमें, दृग्विषय और मनस्विषय पारस्पारिक तकनीकी शब्द थे। श्रेणी:तत्वमीमांसा की अवधारणाएँ.

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दोलन

इस कमानी व भार के भौतिक तंत्र में दोलन देखा जा सकता है दोलन (oscillation) एक लगातार दोहराता हुआ बदलाव होता है, जो किसी केन्द्रीय मानक स्थिति से बदलकर किसी दिशा में जाता है लेकिन सदैव लौटकर केन्द्रीय स्थिति में आता रहता है। अक्सर केन्द्रीय स्थिति से हटकर दो या दो से अधिक ध्रुवीय स्थितियाँ होती हैं और दोलती हुई वस्तु या माप इन ध्रुवों के बीच घूमता रहता है लेकिन किन्ही दो ध्रुवों के बीच की दूरी तय करते हुए केन्द्रीय स्थिति से अवश्य गुज़रता है। किसी भौतिक तंत्र में हो रहे दोलन को अक्सर कम्पन (vibration) कहा जाता है। .

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दीर्घवृत्त

कार्तीय निर्देशांक पद्धति में '''दीर्घवृत्त''' गणित में दीर्घवृत्त एक ऐसा शांकव होता है जिसकी उत्केन्द्रता इकाई से कम होती है। एक अन्य परिभाषा के अनुसार, दीर्घवृत्त ऐसे बिन्दुओं का बिन्दुपथ है जिनकी दो निश्चित बिन्दुओं से दूरी का योग सदैव अचर रहता है। इन निश्चित बिन्दुओं को दीर्घवृत्त की नाभियाँ (Focus) कहते हैं। माना जाता है कि पृथ्वी सहित कई ग्रह सूर्य के चारों ओर एक दीर्घवृत्तीय कक्षा में घूमते हैं और इस दीर्घवृत्त की एक नाभि पर सूर्य अवस्थित होता है। दीर्घवृत्त इस प्रकार, यह एक वृत्त का सामान्यीकृत रूप होता है। वृत्त एक विशेष प्रकार का दीर्घवृत्त होता है जिसमें दोनों नाभियाँ एक ही स्थान पर होती हैं। एक दीर्घवृत्त का आकार इसकी उत्केन्द्रता से दर्शाया जाता है, जिसका मान दीर्घवृत्त के लिए 0 से लेकर 1 के मध्य होता है। यदि किसी दीर्घवृत्त की उत्केन्द्रता 0 हो तो वह दीर्घवृत्त, एक वृत्त होता है। .

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नाभि

नाभि (चिकित्सकीय भाषा में अम्बिलीकस के रूप में ज्ञात और बेली बटन के नाम से भी जानी जाती है) पेट पर एक गहरा निशान होती है, जो नवजात शिशु से गर्भनाल को अलग करने के कारण बनती है। सभी अपरा संबंधी स्तनपाइयों में नाभि होती है। यह मानव में काफी स्पष्ट होती है। मनुष्यों में यह निशान एक गड्ढे के समान दिख सकता है (अंग्रेज़ी में आम बोलचाल की भाषा में इसे अक्सर इन्नी कह कर संदर्भित किया जाता है) या एक उभार के रूप में दिख सकता है (आउटी).

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नाभिकीय संलयन

publisher.

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निकाय

निकाय का निम्नलिखित अर्थों में प्रयोग होता है-.

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परम शून्य

परम ताप न्यूनतम सम्भव ताप हैं तथा इससे कम कोई ताप संभव नही हैं। इस ताप पर गैसों के अणुओं की गति शून्य हो जाती हैं। इसका मान -२७३ डिग्री सेन्टीग्रेड होता हैं। इसे केल्विन में दर्शाते हैं। श्रेणी:तापमान श्रेणी:भौतिकी श्रेणी:भौतिक शब्दावली.

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परमाणु नाभिक

नाभिक, परमाणु के मध्य स्थित धनात्मक वैद्युत आवेश युक्त अत्यन्त ठोस क्षेत्र होता है। नाभिक, नाभिकीय कणों प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन से बने होते है। इस कण को नूक्लियान्स कहते है। प्रोटॉन व न्यूट्रॉन दोनो का द्रव्यमान लगभग बराबर होता है और दोनों का आंतरिक कोणीय संवेग (स्पिन) १/२ होता है। प्रोटॉन इकाई विद्युत आवेशयुक्त होता है जबकि न्यूट्रॉन अनावेशित होता है। प्रोटॉन और न्यूट्रॉन दोनो न्यूक्लिऑन कहलाते है। नाभिक का व्यास (10−15 मीटर)(हाइड्रोजन-नाभिक) से (10−14 मीटर)(युरेनियम) के दायरे में होता है। परमाणु का लगभग सारा द्रव्यमान नाभिक के कारण ही होता है, इलेक्ट्रान का योगदान लगभग नगण्य होता है। सामान्यतः नाभिक की पहचान परमाणु संख्या Z (प्रोटॉन की संख्या), न्यूट्रॉन संख्या N और द्रव्यमान संख्या A(प्रोटॉन की संख्या + न्यूट्रॉन संख्या) से होती है जहाँ A .

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परावर्तन

परावर्तन निम्न में से किसी एक के लिए प्रयुक्त शब्द है: .

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परिमाप

द्विबीमीय आकृतियाँ जिन रेखाखण्डों से घिरी होती हैं (अर्थात मिलकर बनी होती हैं) उन सभी के लम्बाइयों का योग परिमाप या परिमिति कहलाता है। परिमाप शब्द दो शब्दो से मिलकर बना है - परि और माप। 'परि' का अर्थ होता है "चारों ओर" और माप का अर्थ होता है "मापना"। अर्थात किसी आकृति के सभी भुजाओं के माप को परिमाप (Perimeter) कहते हैं। जैसे- आयत का परिमाप उसकी चारों भुजाओं के योग के बराबर होता है; वर्ग का परिमाप उसकी भुजा का चार गुना होता है; आदि। हम किसी भी आकृति का परिमाप उसके सभी भुजाओं की लम्बाई को जोड़कर ज्ञात कर सकते है। .

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परिकल्पना

किसी घटना की व्याख्या करने वाला कोई सुझाव या अलग-अलग प्रतीत होने वाली बहुत सी घटनाओं के आपसी सम्बन्ध की व्याख्या करने वाला कोई तर्कपूर्ण सुझाव परिकल्पना (hypothesis) कहलाता है। वैज्ञानिक विधि के नियमानुसार आवश्यक है कि कोई भी परिकल्पना परीक्षणीय होनी चाहिये। सामान्य व्यवहार में, परिकल्पना का मतलब किसी अस्थायी विचार (provisional idea) से होता है जिसके गुणागुण (merit) अभी सुनिश्चित नहीं हो पाये हों। आमतौर पर वैज्ञानिक परिकल्पनायें गणितीय माडल के रूप में प्रस्तुत की जाती हैं। जो परिकल्पनायें अच्छी तरह परखने के बाद सुस्थापित (well established) हो जातीं हैं, उनको सिद्धान्त कहा जाता है। श्रेणी:विज्ञान *.

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परवलय

परवलय और उससे संबंधित पारिभाषिक शब्द गणित में, परवलय एक द्विविमीय समतलीय वक्र है जो दर्पण-सममित होता है और यह अंग्रेज़ी अक्षर U के आकार का होता है। परवलय (पैराबोला) एक द्विमीय वक्र है जिसे कई तरह से परिभाषित किया जाता है। एक परिभाषा परवलय को शांकव के एक विशेष रूप में परिभाषित करती है। इसके अनुसार, परवलय वह शांकव है जिनकी उत्केन्द्रता १ के बराबर होती है। परवलय को बिन्दुपथ के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। परवलय ऐसे बिन्दुओं का बिन्दुपथ है जिसकी किसी निश्चित रेखा से दूरी, किसी निश्चित बिन्दु से दूरी के बराबर होती है। यहाँ उस रेखा को नियता (डायरेक्ट्रिक्स) एवं उस बिन्दु को नाभि (फोकस) कहते हैं। उदाहरण के लिए, समीकरण x2 .

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प्रचक्रण

प्रचक्रण अथवा स्पिन अथवा स्पिनिंग निम्न में से कोई एक हो सकता है: .

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प्रति-कण

कण (बायें) और प्रति-कण (दायें) के आकार और विद्युत आवेश का चित्रण। ऊपर से नीचे इलेक्ट्रॉन/पोजीट्रॉन,प्रोटॉन/प्रतिप्रोटोन, न्यूट्रॉन/प्रतिन्यूट्रॉन. किसी भी कण से संबद्ध प्रतिकण भी होता है जिसका द्रव्यमान अभिन्न होता है लेकिन विद्युत आवेश विपरीत होता है। उदाहरण के लिये इलेक्ट्रॉन का प्रति-कण प्रति-इलेक्ट्रॉन एक धनावेशित कण जिसे पोजीट्रॉन कहते हैं, सामान्यतः इसे रेडियोधर्मी पदार्थों के क्षय से बनाया जाता है। प्रकृति के नियम कणों और प्रतिकणो के लिये लगभग सममितीय होते हैं। उदाहरण के लिये एक प्रतिप्रोटोन और पोजीट्रॉन से प्रति-हाइड्रोजन परमाणु का निर्माण होता है, जिसके गुणधर्म भी हाइड्रोजन परमाणु के समान ही हैं। .

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प्रतिध्वनि

जब किसी स्रोत से उत्पन्न ध्वनि आगे जाकर किसी वस्तु (जैसे दीवार, पहाड़) से टकराकर पुन: स्रोत के पास वापस लौटती है तो इसे प्रतिध्वनि (echo) कहते हैं। वस्तुत: यह ध्वनि के परावर्तन का परिणाम है जो कुछ देर बात स्रोत के पास वापस पहुंच जाती है। उदाहरण के लिये कुंएँ में आवाज लगाने पर अपनी ही आवाज थोड़ी देर बाद सुनाई पड़ती है। .

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प्रतिरूपण

समुद्र एनेमोन, प्रतिरूपण की प्रक्रिया में अन्थोप्लयूरा एलेगंटिस्सिमा जीव-विज्ञान में प्रतिरूपण, आनुवांशिक रूप से समान प्राणियों की जनसंख्या उत्पन्न करने की प्रक्रिया है, जो प्रकृति में विभिन्न जीवों, जैसे बैक्टीरिया, कीट या पौधों द्वारा अलैंगिक रूप से प्रजनन करने पर घटित होती है। जैव-प्रौद्योगिकी में, प्रतिरूपण डीएनए खण्डों (आण्विक प्रतिरूपण), कोशिकाओं (सेल क्लोनिंग) या जीवों की प्रतिरूप निर्मित करने की प्रक्रिया को कहा जाता है। यह शब्द किसी उत्पाद, जैसे डिजिटल माध्यम या सॉफ्टवेयर की अनेक प्रतियां निर्मित करने की प्रक्रिया को भी सूचित करता है। क्लोन शब्द κλών से लिया गया है, "तना, शाखा" के लिये एक ग्रीक शब्द, जो उस प्रक्रिया को सूचित करता है, जिसके द्वारा एक टहनी से कोई नया पौधा निर्मित किया जा सकता है। उद्यानिकी में बीसवीं सदी तक clon वर्तनी का प्रयोग किया जाता था; अंतिम e का प्रयोग यह बताने के लिये शुरू हुआ कि यह स्वर एक "संक्षिप्त o" नहीं, वल्कि एक "दीर्घ o" है। चूंकि इस शब्द ने लोकप्रिय शब्दकोश में एक अधिक सामान्य संदर्भ के साथ प्रवेश किया, अतः वर्तनी clone का प्रयोग विशिष्ट रूप से किया जाता है। .

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प्रदर्शक

प्रदर्शक (मॉनिटर) एक ऐसा यन्त्र है जिस पर संगणक का हर कार्य दिखाई देता है। .

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प्रभावक्षेत्र

यह कार्टून 'मोनोरो डॉक्ट्रिन' के बाद लैटिन अमेरिका पर यूएएस के प्रभाव को रेखांकित कर रहा है। अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्ध की दृष्टि से १९८० में प्रभाव क्षेत्र; '''लाल'''- सोवियत संघ; '''नीला'''- अमेरिका अंतर्देशीय व्यवहारनुकूल कुछ समय पूर्व प्रभावक्षेत्र (Sphere of Influence) प्रथा मान्य थी। औपनिवेशिक शक्तियाँ पारस्परिक सुविधा के हेतु, कुछ प्रदेशों को एक देशविशेष के उपनिवेशन के लिये भविष्य में सुरक्षित मान लेतीं अर्थात् ऐसे प्रदेशों में उस देश के अतिरिक्त किसी अन्य राज्यशक्ति को औपनिवेशिक शोषण या सत्ताप्रसार का अधिकार नहीं रहता। फलत: संबंधित पक्ष कालांतर में अंतर्देशीय कलह किए बिना अपनी राज्यसत्ता विस्तृत प्रदेशों में स्थापित करते। इस प्रकार का अधिकार प्रयोग 19वीं शताब्दी के अंतिम चरण में विशेषतया हुआ, जबकि दुर्बल एवं पिछड़े हुए देशों का शोषण इतिहास में सबसे प्रचंड और खुले हुए देशों का शोषण इतिहास में सबसे प्रचंड और खुले रूप से हो रहा था। "प्रभावक्षेत्र" प्रथा का आधुनिक अंतरराष्ट्रीय विधि में कोई स्थान या मान्यता नहीं है। संयुक्त राष्ट्रसंघ के अधिकारपत्र द्वारा संघ के सब सदस्यों को यह आदेश है कि वे अपने अंतर्देशीय व्यवहार में इस बात की अपेक्षा करें कि किसी देश की राजनीतिक स्वतंत्रता तथा प्रादेशिक सर्वसत्ता का हनन बलप्रयोग से या अन्य किसी प्रकार से न हो। संयुक्त राष्ट्रसंघ की न्यासत्व परिषद एक और उपाय है, जिसके अनुसार संसार के दुर्बल और पिछड़े हुए देशों की सुरक्षा और पर्यवेक्षण होता है किंतु यह उन्हीं देशों पर लागू है जिनको औपनिवेशिक स्वामियों ने स्वेच्छा से इस परिषद् के अधिकारक्षेत्र में रखा है। विश्व के जो अन्य देश स्वशासित नहीं हैं, उनकी सुरक्षा के लिये संघ के अधिकारपत्र का आदेश है कि इन प्रदेशों के औपनिवेशिक शासक वहाँ के निवासियों के हितार्थ अधिक से अधिक प्रयत्नशील और सक्रिय होने के लिये बाध्य हैं। यह सुरक्षा प्रणाली कहाँ तक सफल हुई है, यह कहना कठिन है। यदि प्रभावक्षेत्र प्रथा के अनुसार प्रमुख शक्तियाँ 19वीं शताब्दी में अपनी राज्य शक्ति का विस्तार करती थीं, तो आज इस प्रथा के न होते हुए भी शक्तिसंपन्न राज्य किसी न किसी प्रकार दुर्बल देशों पर अपना स्वामित्व स्थापित करते रहते हैं। अंतराष्ट्रीय संघ के सुरक्षा नियमों और बंधनों द्वारा बाध्य राज्य शक्तियाँ भी सत्ता विस्तार में सतत प्रयत्नशील एवं तत्पर रहती रही हैं और हैं। सत्ताविस्तार का रूप अवश्य बदल गया है। जिस प्रकार प्रभावक्षेत्र प्रथा के अनुसार ब्रिटेन ने इटली, जर्मनी तथा फ्रांस के क्रमश: 1890, 1891, 1886, 1890 तथा 1890 तथा 1896 ई. में संधि स्थापित कर भविष्य में अपने लिये प्रदेश सुरक्षित किए, वैसे शोषण संबंधी स्पष्ट समझौते आज असंभव हैं, किंतु अनेक चतुर राजनीतिक योजनाएँ हैं जिनके द्वारा अधिकारविस्तार होता है। कुछ संधियाँ नियोजित होती हैं, जिनसे आर्थिक और सैन्य संबंधी परिहार प्राप्त किए जाते हैं। उदाहरणार्थ, संयुक्त राज्य अमरीका ने 19वीं तथा इस शताब्दी के आरंभ में लैटिन अमरीकी देशों से संधियाँ कीं, जिनसे उनके प्राकृतिक संसाधनों का शोषण संभव हुआ। इनके साक्षी रूप हैं दक्षिणी पूर्वी एशियाई संधि संघ तथा वारसा की संधि। 1957 में इंग्लैंड तथा फ्रांस ने मिस्र के ऊपर अभ्याक्रमण किया तथा मिस्र एवं इजराइल के मध्य शांति और सुरक्षा स्थापित करना, इस आक्रमण का उद्देश्य बताया। किंतु इसके भीतर इंग्लैंड और फ्रांस का गूढ़ स्वार्थ निहित था, इस प्रकार वे दोनों स्वेज नहर के समीपवर्ती प्रदेश पर अपना अधिकार स्थापित करना चाहते थे। कभी कभी कोई देश एक पार्श्विक घोषणा करके भी प्रभुत्व अधिकार स्थापित करते है, भविष्य में किसी यूरोपीय शक्ति द्वारा उपनिवेश के विषय नहीं विचार किए जाएँगे।" इन बहु उपायों द्वारा परोक्ष और अपरोक्ष रूप से शक्तिशाली देश दुर्बल देशों का जो शोषण करते हैं उसमें एक प्रकार से "प्रभावक्षेत्र" प्रथा की अनुकूलता कही जा सकती है। वैसे यह सिद्धांत अक्षरश: जिस रूप में पहले प्रचलित और मान्य था वह मिट चुका है। आज कोई प्रदेश किसी देशविशेष की प्रभुता और शोषण के लिये सुरक्षित नहीं माना जाता। .

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प्रमेय

पाइथागोरस का प्रमेय; इसे प्राचीन भारतीय गणितज्ञ बौधायन ने सबसे पहले प्रस्तुत किया था। प्रमेय (Theorem) का शाब्दिक अर्थ है - ऐसा कथन जिसे प्रमाण द्वारा सिद्ध किया जा सके। इसे साध्य भी कहते हैं। गणित में (और विशेषकर रेखागणित में) बहुत से प्रमेय हैं। प्रमेयों की विशेषता है कि उन्हें स्वयंसिद्धों (axioms) एवं सामान्य तर्क (deductive logic) से सिद्ध किया जा सकता है। .

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प्रशीतक

उस पदार्थ को प्रशीतक (refrigerant) कहते हैं जो ऊष्मा पम्प तथा प्रशीतन चक्र में प्रयुक्त होता है। प्रशीतक प्रायः तरल (द्रव या गैस) होता है। अधिकांश ऊष्मा चक्रों में प्रशीतक की भौतिक अवस्था बदली जाती है (द्रव से गैस तथा पुनः गैस से द्रव)। इस कार्य के लिये बहुत से पदार्थ उपयोग में लाये जाते रहे हैंम। २०वीं शताब्दी में फ्लोरोकार्बन (मुख्यतः क्लोरोफ्लोरोकार्बन) इस काम के लिये बहुत उपयोग में लाये गये। किन्तु अब इनका उपयोग क्रमशः कम किया जा रहा है क्योंकि इनके कारण ओजोन परत को नुकसान पहुँचता है। आम उपयोग के अन्य प्रशीतक ये हैं- अमोनिया, सल्फर डाई आक्साइड, तथा प्रोपेन आदि अहैलोजनीकृत हाइड्रोकार्बन। .

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प्रावस्था संक्रमण

भिन्न प्रकार के फेज़ परिवर्तन प्रावस्था संक्रमण या फेज़ ट्रांजिसन (phase transition) किसी उष्मागतिकी मंडल में उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें कोई पदार्थ अपनी प्रकृति बदल लेता है। उदाहरण के लिए बर्फ़ एक ठोस चीज़ होती है लेकिन गरम करने पर अवस्था परिवर्तन करके पानी नामक द्रव बन जाती है। अगर और गरम किया जाए तो यह फिर से परिवर्तित होकर भाप नामक गैस बन जाती है। कई गैसों को और भी उत्तेजित करने से वह प्लाज़्मा का रूप धारण कर लेती हैं।, Michael Plischke, Birger Bergersen, World Scientific, 2006, ISBN 978-981-256-048-3, Pierre Papon, Jacques Leblond, Paul Herman Ernst Meijer, Springer, 2006, ISBN 978-3-540-33389-0 .

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प्रवणता

प्रवणता की गणना गणित में किसी सरल रेखा की प्रवणता (Gradient) या 'ढलान' (स्लोप) उसके झुकाव की तीव्रता को सूचित करता है। क्षैतिज रेखा प्रवणता शून्य और उर्ध्वाधर रेखा की प्रवणता 'अनन्त' मानी जाती है। किसी रेखा की प्रवणता का आंकिक मान उसके किसी दो बिन्दुओं के बीच की ऊंचाई (उर्ध्वाधर दूरी) तथा क्षैतिज दूरी के अनुपात के बराबर होती है। जहाँ m रेखा की प्रवणता को सूचित कर रहा है। त्रिकोणमिति की भाषा में किसी रेखा की प्रवणता उसके द्वारा क्षैतिज के साथ बनाये गये कोण के स्पर्शज्या (tan) के बराबर होती है। .

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प्रकाशिकी

दर्पणो से प्रकाश के परिवर्तन प्रकाशिकी का विषय है। प्रकाश का अध्ययन भी दो खंडों में किया जाता है। पहला खंड, ज्यामितीय प्रकाशिकी, प्रकाश किरण की संकल्पना पर आधृत है। दर्पणों से प्रकाश का परार्वतन और लेंसों तथा प्रिज्मों से प्रकाश का अपवर्तन, ज्यामितीय प्रकाशिकी के विषय है। सूक्ष्मदर्शी, दूरदर्शी, फोटोग्राफी कैमरा तथा अन्य उपयोगी प्रकाशिकी यंत्रों की क्रियाविधि ज्यामितीय प्रकाशिकी के नियमों पर ही आधृत है। प्रकाशिकी का दूसरा खंड भौतिक प्रकाशिकी है। इसमें प्रकाश की मूल प्रकृति तथा प्रकाश और द्रव्य की पारस्परिक क्रिया का अध्ययन किया जाता है। प्रकाश सूक्ष्म कणों का संचार है, ऐसा मानकर न्यूटन ने ज्यामितीय प्रकाशिकी के मुख्य परिणामों की व्याख्या की। पर 19वीं शताब्दी में प्रकाश के व्यतिकरण की घटनाओं का आविष्कार हुआ। इन क्रियाओं की व्याख्या कणिका सिद्धांत से संभव नहीं है, अत: बाध्य होकर यह मानना पड़ा कि प्रकाश तरंगसंचार ही है। ऊपर वर्णित मैक्सवेल के विद्युतचुंबकीय सिद्धांत ने प्रकाश के तरंग सिद्धांत को ठोस आधार दिया। भौतिक प्रकाशिकी का एक महत्वपूर्ण भाग * श्रेणी:प्राकृतिक दर्शन श्रेणी:विद्युतचुंबकीय विकिरण.

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प्रक्षेप

प्रक्षेपण (projection) के भिन्न-भिन्न सन्दर्भों में भिन्न अर्थ हैं-.

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प्रक्षेप्य

एक प्रक्षेप्य वह वस्तु कहलाती है जिसे दिक् (खाली अथवा नहीं) में किसी बल के अधीन प्रक्षेपित किया जाता है। यद्यपि समष्टि (दिक्) में किसी भी वस्तु की गति (उदाहरण के लिए क्रिकेट के खेल में क्षेत्ररक्षक द्वारा गेंद को फैंकना) को प्रक्षेप्य कहा जा सकता है, यह शब्द सामान्यतः कम मारक क्षमता वाली वस्तुओं के लिए काम में ली जाती है। प्रक्षेप्य वक्र के विश्लेषण के लिए गणितीय गति के समीकरणों का उपयोग किया जाता है। .

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प्रकीर्णन

प्रकीर्णन (Scattering) एक सामान्य भौतिक प्रक्रिया है जिसमें कोई विकिरण (जैसे प्रकाश, एक्स-किरण आदि) माध्यम के किसी स्थानीय अनियमितता के कारण अपने सरलरेखीय मार्ग से विचलित किया जाता है। कणों का भी प्रकीर्णन होता है। .

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प्रौद्योगिकी

२०वीं सदी के मध्य तक मनुष्य ने तकनीक के प्रयोग से पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर निकलना सीख लिया था। एकीकृत परिपथ (IC) के आविष्कार ने कम्प्यूटर क्रान्ति को जन्म दिया । प्रौद्योगिकी, व्यावहारिक और औद्योगिक कलाओं और प्रयुक्त विज्ञानों से संबंधित अध्ययन या विज्ञान का समूह है। कई लोग तकनीकी और अभियान्त्रिकी शब्द एक दूसरे के लिये प्रयुक्त करते हैं। जो लोग प्रौद्योगिकी को व्यवसाय रूप में अपनाते है उन्हे अभियन्ता कहा जाता है। आदिकाल से मानव तकनीक का प्रयोग करता आ रहा है। आधुनिक सभ्यता के विकास में तकनीकी का बहुत बड़ा योगदान है। जो समाज या राष्ट्र तकनीकी रूप से सक्षम हैं वे सामरिक रूप से भी सबल होते हैं और देर-सबेर आर्थिक रूप से भी सबल बन जाते हैं। ऐसे में कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिये कि अभियांत्रिकी का आरम्भ सैनिक अभियांत्रिकी से ही हुआ। इसके बाद सडकें, घर, दुर्ग, पुल आदि के निर्माण सम्बन्धी आवश्यकताओं और समस्याओं को हल करने के लिये सिविल अभियांत्रिकी का प्रादुर्भाव हुआ। औद्योगिक क्रान्ति के साथ-साथ यांत्रिक तकनीकी आयी। इसके बाद वैद्युत अभियांत्रिकी, रासायनिक प्रौद्योगिकी तथा अन्य प्रौद्योगिकियाँ आयीं। वर्तमान समय कम्प्यूटर प्रौद्योगिकी और सूचना प्रौद्योगिकी का है। .

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प्रेक्षण

'''प्रेक्षक''' उस व्यक्ति को कहते हैं जो किसी प्रेक्षण की गयी परिघटना से सम्बन्धित जानकारी एकत्र करता है किन्तु उस परिघटना में हस्तक्षेप नहीं करता।हवाई आवागमन का प्रेक्षण करते हुए एक प्रेक्षक किसी सजीव प्राणी (जैसे मानव) द्वारा अपने ज्ञानेन्द्रियों (senses) के द्वारा अथवा किसी अन्य कृत्रिम उपकरण (जैसे बहुमापी) द्वारा बाह्य जगत का ज्ञान प्राप्त करना प्रेक्षण (Observation) कहलाता है। प्रेक्षण की क्रिया में संकलित आंकड़ों को भी 'प्रेक्षण' कहते हैं। प्रेक्षण वैज्ञानिक विधि का प्रमुख अंग है। .

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प्लूटो

प्लूटो के अनेक अर्थ हो सकते हैं| कृपया अपना वांछित अर्थ निम्नलिखित में से चुनें| प्लूटो (अंग्रेज़ी::en:Pluto (mythology), लातिनी: Pluto प्लूतो) प्राचीन रोमन धर्म के देवता| प्लूटो ग्रह सौर मण्डल का सबसे बाहरी ग्रह है। प्लूटो ज्योतिष में | प्लूटो वाल्ट डिज़्नी का एक कार्टून पात्र है | श्रेणी:रोम के देवी-देवता श्रेणी:रोमन धर्म.

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पृष्ठ तनाव

कुछ कीट जल की सतह पर 'चल' पाते हैं। इसका कारण पृष्ठ-तनाव ही है। पृष्ठ तनाव (Surface tension) किसी द्रव के सतह या पृष्ट का एक विशिष्ट गुण है। दूसरे शब्दों मे, पृष्ठ-तनाव के कारण ही द्रवों का पृष्ट एक प्रकार की प्रत्यास्थता (एलास्टिक) का गुण प्रदर्शित करता है। पृष्ट तनाव के कारण ही पारे की बूँद, गोल आकार धारण कर लेती है न कि अन्य कोई रूप (जैसे घनाकार)। पृष्ठ तनाव के कारण द्रव अपने पृष्ठ (सतह) का क्षेत्रफल न्यूनतम करने की कोशिश करते हैं। गणितीय रूप में, पृष्ठ के इकाई लम्बाई पर लगने वाले बल को द्रव का पृष्ठ तनाव कहते हैं। दूसरे शब्दों में, द्रव के पृष्ठ के इकाई क्षेत्रफल की वृद्धि के लिये आवश्यक ऊर्जा को उस द्रव का पृष्ठ तनाव कहते हैं। इसका मात्रक बल प्रति इकाई लंबाई (जैसे न्यूटन/मीटर), या ऊर्जा प्रति इकाई क्षेत्र (जैसे जूल/वर्ग मीटर) है। .

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पूर्वानुमान

अज्ञात स्थितियों में तर्कपूर्ण आकलन (estimation) करने को पूर्वानुमान करना (Forecasting) कहते हैं। जैसे दो दिन बाद किसी स्थान के मौसम के बारे में अनुमान लगाना, एक वर्ष बाद किसी देश की आर्थिक स्थिति के बारे में कहना आदि पूर्वानुमान हैं। पूर्वानुमान के साथ अनिश्चितता और खतरा (Risk) का घनिष्ट सम्बन्ध है। आधुनिक युग में पूर्वानुमान के अनेकानेक उपयोग हैं; जैसे - ग्राहक की मांग की योजना बनाना। .

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फलन

''X'' के किसी सदस्य का ''Y'' के केवल एक सदस्य से सम्बन्ध हो तो वह फलन है अन्यथा नहीं। ''Y''' के कुछ सदस्यों का '''X''' के किसी भी सदस्य से सम्बन्ध '''न''' होने पर भी फलन परिभाषित है। गणित में जब कोई राशि का मान किसी एक या एकाधिक राशियों के मान पर निर्भर करता है तो इस संकल्पना को व्यक्त करने के लिये फलन (function) शब्द का प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिये किसी ऋण पर चक्रवृद्धि ब्याज की राशि मूलधन, समय एवं ब्याज की दर पर निर्भर करती है; इसलिये गणित की भाषा में कह सकते हैं कि चक्रवृद्धि ब्याज, मूलधन, ब्याज की दर तथा समय का फलन है। स्पष्ट है कि किसी फलन के साथ दो प्रकार की राशियां सम्बन्धित होती हैं -.

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फलन का कोणांक

गणित में फलन का कोणांक (argument of a function) किसी फलन (फ़न्क्शन) में निवेश (input) होने वाले स्वतंत्र चर को कहते हैं। उदाहरण के लिए, f(x,y) .

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बलयुग्म

बलयुग्म ऐसे बलों के समूह को बलयुग्म (Couple) कहते हैं जिनका परिणामी बल शून्य हो किन्तु उनका बलाघूर्ण अशून्य हो। इसके प्रभाव में केवल घूर्णी गति ही सम्भव है और स्थान-परिवर्तन (ट्रांस्लेशन) नहीं होता। अर्थात किसी पिण्ड पर बलयुग्म लगा हो तो द्रव्यमान केन्द्र का त्वरण नहीं होता। बलयुग्म के परिणामी आघूर्ण को बलाघूर्ण (टॉर्क) कहते हैं। यह टॉर्क किसी भी संदर्भ बिन्दु के सापेक्ष नियत होता है। इस दृष्टि से यह 'टॉर्क' साधारण 'आघूर्ण' (मोमेन्ट) से भिन्न है। श्रेणी:भौतिक राशियाँ श्रेणी:यान्त्रिकी श्रेणी:आरम्भिक भौतिकी.

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बहुभुज

त्रिभुज, चतुर्भुज, अष्टभुज आदि सभी 'बहुभुज' कहलाते हैं। बहुभुज (Polygon) एक समतल सतह पर बनी ज्यामितीय आकृतियों का सामान्य नाम है। बहुभुज कई सरल रेखाओं से बंद होता है। इन सरल रेखाओं को बहुभुज की 'भुजा' कहते हैं। जहां दो भुजाएँ मिलती हैं वह कोण कहलाता है। बहुभुज अंग्रेजी शब्द 'पोलीगोन' का हिंदी रूपांतरण है। अंग्रेजी में पोलीगोन शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों को मिलने से बना है। इसमें पहला शब्द पोली यानी बहुत और गोनिया यानी कोण.

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बुध (बहुविकल्पी)

कोई विवरण नहीं।

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ब्रह्माण्ड

ब्रह्माण्ड सम्पूर्ण समय और अंतरिक्ष और उसकी अंतर्वस्तु को कहते हैं। ब्रह्माण्ड में सभी ग्रह, तारे, गैलेक्सिया, गैलेक्सियों के बीच के अंतरिक्ष की अंतर्वस्तु, अपरमाणविक कण, और सारा पदार्थ और सारी ऊर्जा शामिल है। अवलोकन योग्य ब्रह्माण्ड का व्यास वर्तमान में लगभग 28 अरब पारसैक (91 अरब प्रकाश-वर्ष) है। पूरे ब्रह्माण्ड का व्यास अज्ञात है, और ये अनंत हो सकता है। .

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ब्राउनी गति

छोटे आकार के कणों वाले किसी गैस के अन्दर ब्राउनी गति करते हुए एक बड़े कण (धूल कण) के गति का सिमुलेशन ब्राउनी गति करते हुए एक कण ने यह रास्ता तय किया है। किसी तरल के अन्दर तैरते हुए कणों की टेड़ी-मेढ़ी गति को ही ब्राउनी गति (Brownian motion या pedesis) कहते हैं। ये कण तरल के तीव्रगामी कणों से टकरा-टकरा कर टेढ़ी-मेढ़ी गति करते हैं। श्रेणी:सांख्यिकीय यांत्रिकी.

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बृहस्पति

कोई विवरण नहीं।

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बीजगणित

बीजगणित (संस्कृत ग्रन्थ) भी देखें। ---- आर्यभट बीजगणित (algebra) गणित की वह शाखा जिसमें संख्याओं के स्थान पर चिन्हों का प्रयोग किया जाता है। बीजगणित चर तथा अचर राशियों के समीकरण को हल करने तथा चर राशियों के मान निकालने पर आधारित है। बीजगणित के विकास के फलस्वरूप निर्देशांक ज्यामिति व कैलकुलस का विकास हुआ जिससे गणित की उपयोगिता बहुत बढ़ गयी। इससे विज्ञान और तकनीकी के विकास को गति मिली। महान गणितज्ञ भास्कराचार्य द्वितीय ने कहा है - अर्थात् मंदबुद्धि के लोग व्यक्ति गणित (अंकगणित) की सहायता से जो प्रश्न हल नहीं कर पाते हैं, वे प्रश्न अव्यक्त गणित (बीजगणित) की सहायता से हल कर सकते हैं। दूसरे शब्दों में, बीजगणित से अंकगणित की कठिन समस्याओं का हल सरल हो जाता है। बीजगणित से साधारणतः तात्पर्य उस विज्ञान से होता है, जिसमें संख्याओं को अक्षरों द्वारा निरूपित किया जाता है। परंतु संक्रिया चिह्न वही रहते हैं, जिनका प्रयोग अंकगणित में होता है। मान लें कि हमें लिखना है कि किसी आयत का क्षेत्रफल उसकी लंबाई तथा चौड़ाई के गुणनफल के समान होता है तो हम इस तथ्य को निमन प्रकार निरूपित करेंगे— बीजगणिति के आधुनिक संकेतवाद का विकास कुछ शताब्दी पूर्व ही प्रारंभ हुआ है; परंतु समीकरणों के साधन की समस्या बहुत पुरानी है। ईसा से 2000 वर्ष पूर्व लोग अटकल लगाकर समीकरणों को हल करते थे। ईसा से 300 वर्ष पूर्व तक हमारे पूर्वज समीकरणों को शब्दों में लिखने लगे थे और ज्यामिति विधि द्वारा उनके हल ज्ञात कर लेते थे। .

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भार

भौतिकी में किसी वस्तु पर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के माप को भार या वज़न कहते हैं। पृथ्वी की सतह पर गुरुत्वाकर्षण के कारण त्वरण लगभग समान होता है, इसलिए किसी वस्तु का भार उसके द्रव्यमान के अनुपाती होता है। श्रेणी:मापन vi:Tương tác hấp dẫn#Trọng lực.

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भौतिक राशि

भौतिक राशि वस्तुतः कोई भौतिक गुण है जिसे मापा जा सकता है अर्थात कोई आंकिक मान दिया जा सकता है। अन्तरराष्ट्रीय मापन शब्दावली की परिभाषा के अनुसार- अतः किसी भौतिक राशि Q को एक संख्यात्मक मान तथा एक इकाई (या मात्रक) के गुणनफल के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है।; Q .

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महासागरीय गर्त

ये महासागरीय बेसिन के सबसे नीचे भाग हैं और इनकी तली औसत महासागरीय नितल के काफी नीचे मिलती हैं। इनकी स्थिति सर्वत्र न मिलकर यत्र-तत्र बिखरे हुए रूप में मिलती हैं। वास्तव में ये महासागरीय नितल पर स्थित तीव्र ढाल वाले लम्बे, पतले तथा गहरे अवनमन के क्षेत्र हैं। इनकी उतपत्ति महासागरीय तली में प्रथ्वी के क्रस्ट के वलन एवं भ्रंशन के परिणामस्वरूप मानी जाती हैं। अर्थात इनकी उतपत्ति विवर्तनिक क्रियाओं से हुई हैं। .

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माध्य

गणित में माध्य (mean) के अनेक परिभाषायें है, जो सन्दर्भ पर निर्भर करतीं हैं। .

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माध्यम (सम्पादित्र)

माध्यम कृतिदेव फॉण्ट में हिन्दी लिखने के लिये एक पाठ सम्पादित्र है। कृतिदेव फॉण्ट रेमिंगटन लेआउट पर आधारित है जिस कारण इन्स्क्रिप्ट के प्रयोक्ताओं को इसमें टाइप करने में ससस्या आती है। माध्यम इन्स्क्रिप्ट लेआउट द्वारा कृतिदेव में टाइप करने की सुविधा प्रदान करता है। माध्यम में टैक्स्ट टाइप कर लेने के उपरान्त आप उसे किसी भी ऍप्लीकेशन में कॉपी कर सकते हैं। माध्यम द्वारा विकसित किया गया है। फोटोशॉप तथा पेजमेकर जैसे सॉफ्टवेयर इण्डिक यूनिकोड का समर्थन नहीं करते, अत: उनमें मजबूरन नॉन-यूनिकोड हिन्दी में कार्य करना पड़ता है जिस कारण इन्स्क्रिप्ट एवं फोनेटिक के अभ्यस्तों को दिक्कत होती है। माध्यम इन प्रोग्रामों में हिन्दी टाइप करने हेतु काम आता है। माध्यम में टैक्स्ट टाइप कर लेने के उपरान्त आप उसे इन ऍप्लिकेशन में कॉपी कर सकते हैं। माध्यम खुद में तो कोई विशेष सम्पादित्र नहीं है पर अयूनिकोडित प्रोग्रामों में हिन्दी टाइप करने हेतु उपयोगी औजार है। यह एक निःशुल्क देवनागरी वर्ड प्रोसैसर (शब्द संसाधक) है। इसके माध्यम से आप हिन्दी, संस्कृत, मराठी, कोंकणी, मैथिली, भोजपुरी तथा नेपाली आदि में आसानी से काम कर सकते हैं। RTF फॉर्मेटिंग के अलावा इसमें एक सामान्य टैक्स्ट ऍडीटर की सभी सुविधायें मौजूद हैं। इसके माध्यम से हिन्दी में ईमेल भी भेजी जा सकती है। फिलहाल माध्यम में यूनिकोड समर्थन नहीं है तथा इसका इण्टरफ़ेस अंग्रेज़ी में ही है। इसे सॉफ्टपीडिया ने '100 प्रतिशत स्वच्छ साफ्टवेयर पुरस्कार' भी प्रदान किया है। .

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मापन

मापन के चार उपकरण किसी भौतिक राशि का परिमाण संख्याओं में व्यक्त करने को मापन कहा जाता है। मापन मूलतः तुलना करने की एक प्रक्रिया है। इसमें किसी भौतिक राशि की मात्रा की तुलना एक पूर्वनिर्धारित मात्रा से की जाती है। इस पूर्वनिर्धारित मात्रा को उस राशि-विशेष के लिये मात्रक कहा जाता है। उदाहरण के लिये जब हम कहते हैं कि किसी पेड़ की उँचाई १० मीटर है तो हम उस पेड़ की उचाई की तुलना एक मीटर से कर रहे होते हैं। यहाँ मीटर एक मानक मात्रक है जो भौतिक राशि लम्बाई या दूरी के लिये प्रयुक्त होता है। इसी प्रकार समय का मात्रक सेकण्ड, द्रव्यमान का मात्रक किलोग्राम आदि हैं। .

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मंगल

यदि आपका मतलब कुछ और था तो यहां जाएं -मंगल (बहुविकल्पी) मंगल का अर्थ होता है शुभ, पावन, कुशल इत्यादि। .

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मूलकण

मूलभूत कणों का मानक मॉडल भौतिकी में मूलकण (elementary particle) वे कण हैं, जिनकी कोई उपसंरचना ज्ञात नहीं है। यह किन कणों से मिलकर बना है, अज्ञात है। मूलकण ब्रह्माण्ड की आधारभूत संरचना है, समस्त ब्रह्माण्ड इन्ही मूलभूत कणों से मिलकर बना है। कण भौतिकी के मानक मॉडल (standard model) के अनुसार क्वार्क, लेप्टॉन और गेज बोसॉन मूलकण है। .

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यांत्रिक ऊर्जा

भौतिकी में किसी यांत्रिक प्रणाली के किसी अवयव में निहित स्थितिज ऊर्जा तथा गतिज ऊर्जा के योग को यांत्रिक ऊर्जा (mechanical energy) कहते हैं। अर्थात यांत्रिक उर्जा किसी वस्तु की गति या उसकी स्थिति से सम्बन्धित है। श्रेणी:ऊर्जा श्रेणी:यान्त्रिकी.

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यांत्रिकी

यांत्रिकी (Mechanics) भौतिकी की वह शाखा है जिसमें पिण्डों पर बल लगाने या विस्थापित करने पर उनके व्यवहार का अध्ययन करती है। यांत्रिकी की जड़ें कई प्राचीन सभ्यताओं से निकली हैं। .

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यंग मापांक

यांत्रिकी के सन्दर्भ में यंग गुणांक या यंग मापांक (Young's modulus), किसी समांग प्रत्यास्थ पदार्थ की प्रत्यास्थता का मापक है। यह एकअक्षीय प्रतिबल एवं विकृति के अनुपात के रूप में परिभाषित है। कभी-कभी गलती से इसे प्रत्यास्थता मापांक (modulus of elasticity) भी कह दिया जाता है क्योंकि सभी प्रत्यास्थता गुणांकों में यंग गुणांक ही सबसे प्रचलितेवं सबसे अधिक प्रयुक्त मापांक है। इसके अतिरिक्त दो और 'प्रत्यास्थता मापांक' हैं - आयतन प्रत्यास्थता मापांक एवं अपरूपण गुणांक। .

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रसभरी

रसभरी रसभरी (वानस्पतिक नाम: Physalis peruviana; physalis .

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राष्ट्रीय योग्यता परीक्षा

राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा या 'यूजीसी नेट' भारत में एक राष्ट्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा है। ये स्नातकोत्तर प्रतियोगियों के लिये विश्वविद्यालयों में शिक्षण प्रवेश हेतु अर्हक परीक्षा होती हैं। इसका आयोजन अर्ध-वार्षिक रूप से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा किया जाता है। ज्ञातव्य है कि वर्ष 2009 के दिशानिर्देश के तहत विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने कालेजों में प्रोफेसर बनने के लिए इस परीक्षा की पात्रता को अनिवार्य बना दिया था। .

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शुक्र

शुक्र (Venus), सूर्य से दूसरा ग्रह है और प्रत्येक 224.7 पृथ्वी दिनों मे सूर्य परिक्रमा करता है। ग्रह का नामकरण प्रेम और सौंदर्य की रोमन देवी पर हुआ है। चंद्रमा के बाद यह रात्रि आकाश में सबसे चमकीली प्राकृतिक वस्तु है। इसका आभासी परिमाण -4.6 के स्तर तक पहुँच जाता है और यह छाया डालने के लिए पर्याप्त उज्जवलता है। चूँकि शुक्र एक अवर ग्रह है इसलिए पृथ्वी से देखने पर यह कभी सूर्य से दूर नज़र नहीं आता है: इसका प्रसरकोण 47.8 डिग्री के अधिकतम तक पहुँचता है। शुक्र सूर्योदय से पहले या सूर्यास्त के बाद केवल थोड़ी देर के लए ही अपनी अधिकतम चमक पर पहुँचता है। यहीं कारण है जिसके लिए यह प्राचीन संस्कृतियों के द्वारा सुबह का तारा या शाम का तारा के रूप में संदर्भित किया गया है। शुक्र एक स्थलीय ग्रह के रूप में वर्गीकृत है और समान आकार, गुरुत्वाकर्षण और संरचना के कारण कभी कभी उसे पृथ्वी का "बहन ग्रह" कहा गया है। शुक्र आकार और दूरी दोनों मे पृथ्वी के निकटतम है। हालांकि अन्य मामलों में यह पृथ्वी से एकदम अलग नज़र आता है। शुक्र सल्फ्यूरिक एसिड युक्त अत्यधिक परावर्तक बादलों की एक अपारदर्शी परत से ढँका हुआ है। जिसने इसकी सतह को दृश्य प्रकाश में अंतरिक्ष से निहारने से बचा रखा है। इसका वायुमंडल चार स्थलीय ग्रहों मे सघनतम है और अधिकाँशतः कार्बन डाईऑक्साइड से बना है। ग्रह की सतह पर वायुमंडलीय दबाव पृथ्वी की तुलना मे 92 गुना है। 735° K (462°C,863°F) के औसत सतही तापमान के साथ शुक्र सौर मंडल मे अब तक का सबसे तप्त ग्रह है। कार्बन को चट्टानों और सतही भूआकृतियों में वापस जकड़ने के लिए यहाँ कोई कार्बन चक्र मौजूद नही है और ना ही ज़ीवद्रव्य को इसमे अवशोषित करने के लिए कोई कार्बनिक जीवन यहाँ नज़र आता है। शुक्र पर अतीत में महासागर हो सकते हैलेकिन अनवरत ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण बढ़ते तापमान के साथ वह वाष्पीकृत होते गये होंगे |B.M. Jakosky, "Atmospheres of the Terrestrial Planets", in Beatty, Petersen and Chaikin (eds), The New Solar System, 4th edition 1999, Sky Publishing Company (Boston) and Cambridge University Press (Cambridge), pp.

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श्यानता

उपर के द्रव की श्यानता नीचे के द्रव की श्यानता से बहुत कम है। श्यानता (Viscosity) किसी तरल का वह गुण है जिसके कारण वह किसी बाहरी प्रतिबल (स्ट्रेस) या अपरूपक प्रतिबल (शीयर स्ट्रेस) के कारण अपने को विकृत (deform) करने का विरोध करता है। सामान्य शब्दों में, यह उस तरल के गाढे़पन या उसके बहने का प्रतिरोध करने की क्षमता का परिचायक है। उदाहरण के लिये, पानी पतला होता है एवं उसकी श्यानता वनस्पति तेल की अपेक्षा कम होती है जो कि गाढा़ होता है। .

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शृंखला अभिक्रिया

किसी अभिक्रिया का बार-बार इस प्रकार होना कि अभिक्रियाशील उत्पाद या उप-उत्पाद के द्वारा फिर वही अभिक्रिया होने लगे तो ऐसी अभिक्रिया को शृंखला अभिक्रिया या चेन रिएक्सन कहते हैं। शृंखला अभिक्रिया में धनात्मक फीडबैक की स्थिति रहती है और इससे अभिक्रिया स्वतःप्रवर्धित होती जाती है। शृंखला अभिक्रिया कई प्रकार के निकायों में देखने को मिलती है, जैसे रासायनिक शृंखला अभिक्रिया, नाभिकीय शृंखला अभिक्रिया, गैसों में इलेक्ट्रॉन अवलांच, अर्धचालकों में अवलांच ब्रेकडाउन, अर्थतंत्र में शृंखला अभिक्रिया आदि। नाभिकीय विखण्डन की शृंखला अभिक्रिया; इसकी गति क्रमशः बढ़ती जाती है। .

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शैल

कलराडो स्प्रिंग्स कंपनी का गार्डेन ऑफ् गॉड्स में स्थित ''संतुलित शैल'' कोस्टा रिका के ओरोसी के निकट की चट्टानें पृथ्वी की ऊपरी परत या भू-पटल (क्रस्ट) में मिलने वाले पदार्थ चाहे वे ग्रेनाइट तथा बालुका पत्थर की भांति कठोर प्रकृति के हो या चाक या रेत की भांति कोमल; चाक एवं लाइमस्टोन की भांति प्रवेश्य हों या स्लेट की भांति अप्रवेश्य हों, चट्टान अथवा शैल (रॉक) कहे जाते हैं। इनकी रचना विभिन्न प्रकार के खनिजों का सम्मिश्रण हैं। चट्टान कई बार केवल एक ही खनिज द्वारा निर्मित होती है, किन्तु सामान्यतः यह दो या अधिक खनिजों का योग होती हैं। पृथ्वी की पपड़ी या भू-पृष्ठ का निर्माण लगभग २,००० खनिजों से हुआ है, परन्तु मुख्य रूप से केवल २० खनिज ही भू-पटल निर्माण की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। भू-पटल की संरचना में ऑक्सीजन ४६.६%, सिलिकन २७.७%, एल्यूमिनियम ८.१ %, लोहा ५%, कैल्सियम ३.६%, सोडियम २.८%, पौटैशियम २.६% तथा मैग्नेशियम २.१% भाग का निर्माण करते हैं। .

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सदिश राशि

जिस भौतिक राशि में मात्रा (परिमाण) तथा दिशा दोनो निहित होते हैं उन्हें सदिश राशि कहते है। सदिश राशियों के उदाहरण हैं - वेग, बल, संवेग इत्यादि। जिन राशियों में सिर्फ परिमाण होता है उन्हें अदिश राशि कहते हैं, जैसे - चाल, दूरी, द्रव्यमान, आयतन इत्यादि। सदिश राशियों को अदिश से अलग समझने का कारण यह है कि हम कभी-कभी किसी राशि की दिशा का ज्ञान करना आवश्यक होता है। जैसे कि जमीन पर रखे बक्से पर बल किस दिशा में लग रहा है - कितना लग रहा है यह स्पष्टतटा नहीं बताता कि बक्सा खिसकेगा या नहीं। अगर हम बल उपर से नीचे की ओर लगाएं तो बक्सा कितना भी बल लगाने से नहीं खिसकेगा। पर यदि हम इसको क्षैतिज रूप से लगाएं तो एक नियत मात्रा के बल के बाद यह खिसकने लगेगा। गणित तथा भौतिक विज्ञान में सदिशों के बहुत उपयोग हैं। .

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सदिश गुणनफल

दो सदिशों का सदिश गुणनफल (या, क्रॉस गुणनफल) गणित तथा सदिश बीजगणित में, दो सदिशों a और b का सदिश गुणनफल (vector product) या क्रॉस गुणनफल (cross product), वह सदिश है जिसकी दिशा a और b दोनों के लम्बवत होती है तथा परिमाण |\vec|\, |\vec|\, \sin\theta के बराबर होता है। गणित, भौतिकी, इंजीनियरी तथा कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के क्षेत्र में सदिश गुणनफल के अनेक उपयोग हैं। यह सदिशों के डॉट गुणनफल से अलग है। श्रेणी:सदिश बीजगणित.

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सन्निकटन

किसी भी चीज के परिमाण को ठीक-ठीक (exact) मान के निकट के किसी मान के रूप में अभिव्यक्त करने को सन्निकटन (approximation) कहते हैं। इसे प्राय: ≈ चिंह द्वारा निरूपित किया जाता है। सन्निकटन उतना ही करना चाहिये कि सन्निकटन के बावजूद राशि का परिमाण उपयोगी बना रहे। .

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सम और विषम अंक

विश्व के कुछ शहरों में घरों को संख्यांक देने की यह परंपरा है कि सड़क की एक तरफ सम अंक होते हैं और सड़क की दूसरी तरफ विषम अंक। यदि किसी घर-ढूंढते हुए वाहनचालक को घर-संख्या मालूम हो तो उसे सड़क के केवल एक ही ओर देखने की आवश्यकता होती है गणित में सम (even) ऐसी संख्याओं को कहा जाता है जो २ द्वारा पूर्णतः विभाज्य (डिविज़िबल​) हों, जैसे कि ०, २, ४, ६, ८, इत्यादि। यही कहने का एक और तरीका है कि सभी सम अंक २ के गुणज (मल्टिपल) होते हैं। इस से विपरीत विषम (odd) अंक ऐसे अंकों को कहा जाता है, जो २ द्वारा विभाज्य नहीं होते, जैसे १, ३, ५, ७, ९, ११, आदि। यद्यपि मूल रूप से सम-विषम की अवधारणा अंको पर लगाई जाती थी, आधुनिक गणित में इसे अन्य चीज़ों पर भी लागू किया जाता है। किसी चीज़ की गणितीय समता (parity) उसका वह लक्षण होती है जो यह बतलाए कि वह सम है या विषम। .

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समतल (ज्यामिति)

तीन आयामों (डायमेंशनों) वाले दिक् (स्पेस) में एक-दूसरे को काटते दो समस्तर समतल, समधरातल, समस्तर या हमवार (अंग्रेजी: plane, प्लेन) ज्यामिति में किसी दो आयामों (डायमेंशनों) वाली ऐसी चपटी सतह को कहते हैं जिसकी मोटाई शून्य हो। किसी भी तीन या उस से अधिक आयामों वाले दिक् (स्पेस) में एक समतल में काटकर एक समस्तर बनाया जा सकता है।, Denise Szecsei, pp.

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समता का अधिकार

समता का अधिकार वैश्विक मानवाधिकार के लक्ष्यों के प्राप्ति की दिशा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र के अनुसार विश्व के सभी लोग विधि के समक्ष समान हैं अतः वे बिना किसी भेदभाव के विधि के समक्ष न्यायिक सुरक्षा पाने के हक़दार हैं। .

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समताप रेखा

भूमण्डल पर ताप के क्षेतिज वितरण को प्रदर्शित करने के लिए समताप रेखाओं का प्रयोग किया जाता हैं। समताप रेखाएं वे कल्पित रेखाएं हैं जो समान ताप वाले स्थानों को मिलाते हुए खींची जाती हैं। इन्हे खींचने के लिए विभिन्न स्थानो का तापमान ज्ञात किया जाता है, फिर उन स्थानो के तापमानो को सागर तल पर समायोजित किया जाता हैं, अर्थात सभी स्थानों को सागर तल पर मान कर (उंचाई के अन्तर को घटाकर) संशोधित तापमान प्राप्त किए जाते हैं, तत्पश्चार समताप रेखाएं खीची जाती हैं। श्रेणी:भौगोलिक रेखाएं.

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सममिति

250px Sphere symmetrical group o. लिओनार्दो दा विंची का 'आभासी मानव'(1487 ई) को प्राय: मानव शरीर में सममिति के प्रदर्शन के लिये प्रयोग किया जाता है। सममिति (Symmetry) का अर्थ है कि किसी पैटर्न का किसी बिन्दु या रेखा या तल के सापेक्ष हूबहू पुनरावृत्ति। .

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सरल आवर्त गति

घर्षणरहित फर्श पर स्प्रिंग से जुड़े द्रव्यमान की गति 'सरल आवर्त गति' है। भौतिकी में सरल आवर्त गति (simple harmonic motion / SHM) उस गति को कहते हैं जिसमें वस्तु जिस बल के अन्तर्गत गति करती है उसकी दिशा सदा विस्थापन के विपरीत एवं परिमाण विस्थापन के समानुपाती होता है। उदाहरण - किसी स्प्रिंग से लटके द्रव्यमान की गति, किसी सरल लोलक की गति, किसी घर्षणरहित क्षैतिज तल पर किसी स्प्रिंग से बंधे द्रव्यमान की गति आदि। .

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सार्थक अंक

किसी रासी के मापन में प्रयुक्त वे अंक जो मापक यंत्र की याथार्थ के अंतर्गत उस रासी के मान को व्यक्त करते है सार्थक अंक कहलाते है निम्नलिखित अंकों को छोड़कर सभी अंक सार्थक माने जाते हैं-.

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सांख्यिकीय यांत्रिकी

सांख्यिकीय यांत्रिकी (Statistical mechanics) गणितीय भौतिकी की वह शाखा है जिसमें प्रायिकता सिद्धान्त का उपयोग करते हुए यांत्रिक निकाय के माध्य-व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। श्रेणी:भौतिकी *.

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संचार

संचार प्रेषक का प्राप्तकर्ता को सूचना भेजने की प्रक्रिया है जिसमे जानकारी पहुंचाने के लिए ऐसे माध्यम (medium) का प्रयोग किया जाता है जिससे संप्रेषित सूचना प्रेषक और प्राप्तकर्ता दोनों समझ सकें यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिस के द्वारा प्राणी विभिन्न माध्यमों के द्वारा सूचना का आदान प्रदान कर सकते हैं संचार की मांग है कि सभी पक्ष एक समान भाषा का बोध कर सकें जिस का आदान प्रदान हुआ हो, श्रावानिक (auditory) माध्यम हैं (जैसे की) बोली, गान और कभी कभी आवाज़ का स्वर एवं गैर मौखिक (nonverbal), शारीरिक माध्यम जैसे की शारीरिक हाव भाव (body language), संकेत बोली (sign language), सम भाषा (paralanguage), स्पर्श (touch), नेत्र संपर्क (eye contact) अथवा लेखन (writing) का प्रयोग संचार की परिभाषा है - एक ऐसी क्रिया जिस के द्वारा अर्थ का निरूपण एवं संप्रेषण (convey) सांझी समझ पैदा करने का प्रयास में किया जा सके इस क्रिया में अंख्या कुशलताओं के रंगपटल की आवश्यकता है अन्तः व्यक्तिगत (intrapersonal) और अन्तर व्यक्तिगत (interpersonal) प्रक्रमण, सुन अवलोकन, बोल, पूछताछ, विश्लेषण और मूल्यांकनइन प्रक्रियाओं का उपयोग विकासात्मक है और जीवन के सभी क्षेत्रों के लिए स्थानांतरित है: घर, स्कूल, सामुदायिक, काम और परे.संचार के द्बारा ही सहयोग और पुष्टिकरण होते हैं संचारण विभिन्न माध्यमों द्बारा संदेश भेजने की अभिव्यक्ति है चाहे वह मौखिक अथवा अमौखिक हो, जब तक कोई विचारोद्दीपक विचार संचारित (transmit) हो भाव (gesture) क्रिया इत्यादि संचार कई स्तरों पर (एक एकल कार्रवाई के लिए भी), कई अलग अलग तरीकों से होता है और अधिकतम प्राणियों के लिए, साथ ही कुछ मशीनों के लिए भी.यदि समस्त नहीं तो अधिकतम अध्ययन के क्षेत्र संचार करने के लिए ध्यान के एक हिस्से को समर्पित करते हैं, इसलिए जब संचार के बारे में बात की जाए तो यह जानना आवश्यक है कि संचार के किस पहलू के बारे में बात हो रही है। संचार की परिभाषाएँ श्रेणी व्यापक हैं, कुछ पहचानती हैं कि पशु आपस में और मनुष्यों से संवाद कर सकते हैं और कुछ सीमित हैं एवं केवल मानवों को ही मानव प्रतीकात्मक बातचीत के मापदंडों के भीतर शामिल करते हैं बहरहाल, संचार आमतौर पर कुछ प्रमुख आयाम साथ में वर्णित है: विषय वस्तु (किस प्रकार की वस्तुएं संचारित हो रहीं हैं), स्रोत, स्कंदन करने वाला, प्रेषक या कूट लेखक (encoder) (किस के द्वारा), रूप (किस रूप में), चैनल (किस माध्यम से), गंतव्य, रिसीवर, लक्ष्य या कूटवाचक (decoder) (किस को) एवं उद्देश्य या व्यावहारिक पहलू.पार्टियों के बीच, संचार में शामिल है वेह कर्म जो ज्ञान और अनुभव प्रदान करें, सलाह और आदेश दें और सवाल पूछें यह कर्म अनेक रूप ले सकते है, संचार के विभिन्न शिष्टाचार के कई रूपों में से उस का रूप समूह संप्रेषण की क्षमता पर निर्भर करता हैसंचार, तत्त्व और रूप साथ में संदेश (message) बनाते हैं जो गंतव्य (destination) की ओर भेजा जाता हैलक्ष्य ख़ुद, दूसरा व्यक्ति (person) या हस्ती, दूसरा अस्तित्व (जैसे एक निगम या हस्ती के समूह) हो सकते हैं संचार प्रक्रियासूचना प्रसारण (information transmission) के तीन स्तरों द्वारा नियंत्रित शब्दार्थ वैज्ञानिक (semiotic) नियमों के रूप में देखा जा सकता है.

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संतुलन

संतुलन या साम्य या साम्यावस्था (इक्विलिब्रिअम) से तात्पर्य किसी निकाय की उस अवस्था से है जब दो या अधिक परस्पर विरोधी वस्तुओं या बलों के होने पर भी 'स्थिरता' (अगति) का दर्शन हो। बहुत से निकायों में साम्यावस्था देखने को मिलती है। शाब्दिक अर्थ की दृष्टि से संतुलन का अर्थ निम्नलिखित है- .

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संरचना

संरचना किसी स्थूल अथवा सूक्ष्म तत्व या वस्तु की रचना में परिलक्षित होने वाले प्रतिरूप को कहते हैं। श्रेणी:संरचना.

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संवहन

वायु की धारा का संवहन लाल रंग के क्षेत्र गरम हैं और नीला रंग के ठन्डे हैं - देखा जा सकता है के संवहन में कैसे गरम क्षेत्रों से अणुओं की गरम फुहारें उठकर ठन्डे क्षेत्रों में जा रहीं हैं संवहन (अंग्रेज़ी:Convection) ऊष्मा के स्थानान्तरण या संचरण की एक विधि है किसी तरल पदार्थ (गैस, द्रव या प्लाज्मा) में अणुओं के समग्र स्थानान्तरण द्वारा ऊष्मा का लेन-देन होता है। ठोसों में संवहन सम्भव नही है किन्तु तरल पदार्थों में संवहन ऊष्मा के अन्तरण की एक मुख्य विधि है। संवहन द्वारा द्रव्यमान का भी स्थानान्तरण होता है। संवहन द्वारा द्रव्यमान के इस स्थानान्तरण के कारण ऊष्मा का स्थानान्तरण (ट्रांस्फर) होता है। अणुओं की इस प्रकार की गति को संवहन धारा कहते हैं। .

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संवेग

कोई विवरण नहीं।

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संवेग संरक्षण

यदि किसी निकाय पर कोई बाह्य बल कार्य न कर रहा हो तो, निकाय का कुल संवेग नियत रहता हैं। श्रेणी:भौतिकी श्रेणी:भौतिक शब्दावली.

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स्थाई अवस्था

जब किसी भौतिक निकाय (physical system) की विशिष्टताएँ, समय के साथ बदल न रहीं हों तो कहा जाता है कि वह निकाय स्थायी अवस्था (steady state) में है। उदाहरण के लिये लोहे की एक प्लेट को किसी भट्टी में गरम करने के बाद पानी के एक बड़े टब में डाल दिया जाय तो थोडी देर बाद इस प्लेट का तापमान पानी के तापमान पर आकर स्थिर हो जाता है। इस अवस्था को 'स्थिर अवस्था' या 'स्थिर दशा' कहेंगे। गणितीय रूप में इसे यों कह सकते हैं- जहाँ p उस तंत्र का प्रमुख चर है। उदाहरन के लिये, रासायनिक इंजीनियरी में यह चर ताप, दाब, अभिकारकों की सान्द्रता आदि हो सकता है। .

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स्थिति सदिश

'''P''' तथा '''Q''' दो बिन्दु हैं जिनके स्थिति सदिश चित्र में दिखाये गये हैं। स्थिति सदिश (Position vector) किसी बिन्दु की स्थिति को प्रदर्शित करने वाली सदिश राशि है। ज्यामिति में इसे केवल स्थिति अथवा त्रिज्य सदिश कहा जाता है। इसे सामान्यतः r अथवा s से पर्दर्शित किया जाता है जो मूल बिन्दु O से अध्ययन बिन्दु P तक के विस्थापन के तुल्य है: सामान्यतः यह द्विविमीय अथवा त्रिविमीय समष्टि में उपयोग होता है लेकिन आसानी से इसे बहु-विमा में व्यापकीकृत किया जा सकता है।Keller, F. J, Gettys, W. E. et al.

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स्थितिज ऊर्जा

रोलर कोस्टर में जब गाड़ी सबसे ऊँचाई पर रहती है तो उसकी स्थितिज ऊर्जा भी सर्वाधिक होती है तथा जब वो सबसे नीचे आती है तो उसमें गतिज ऊर्जा सर्वाधिक होती है। अर्थात स्थितिज ऊर्जा .

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स्नेहक

लूब्रिकेंट (जिसे कभी-कभी "लूब" के रूप में संदर्भित किया जाता है) एक ऐसा पदार्थ है (अक्सर तरल) जो दो गतिशील सतहों के बीच लगाया जाता है ताकि उनके बीच घर्षण कम हो, कार्यकुशलता में सुधार हो और जल्दी घिस ना जाए.

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स्पर्शरेखा

रेखा '''s''' बिन्दु '''P''' पर वक्र की स्पर्शरेखा है। S1, S2, S3, S4 आदि अन्य रेखाएँ स्पर्शी नहीं हैं क्योंकि वे दो बिन्दुओं पर वक्र को काटती हैं। रेखा '''n''' बिन्दु '''P''' पर स्पर्शी के लम्बवत है और बिन्दु '''P''' पर वक्र की अभिलम्ब (नॉर्मल) कहलाती है। ज्यामिति में किसी समतल में स्थित किसी वक्र की किसी बिन्दु पर स्पर्शरेखा या स्पर्शी (tangent line या केवल tangent) उस सरल रेखा को कहते हैं जो उस वक्र को उस बिन्दु पर 'बस स्पर्श करती' है, अर्थात् उस वक्र को केवल उसी बिन्दु पर छूती है और अन्य किसी बिन्दु पर नहीं। वक्र y .

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स्पंद

यह शब्द हिंदी में काफी प्रयुक्त होता है,जिसका अर्थ है आवृति, यदि आप इसका और सटीक अर्थ जानते है तो पृष्ठ को संपादित करने में संकोच ना करें (याद रखें - पृष्ठ को संपादित करने के लिये रजिस्टर करना आवश्यक नहीं है)। दिया गया प्रारूप सिर्फ दिशा निर्देशन के लिये है, आप इसमें अपने अनुसार फेर-बदल कर सकते हैं। .

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सौर ऊर्जा

विश्व के विभिन्न भागों का औसत सौर विकिरण (आतपन, सूर्यातप)। इस चित्र में जो छोटे-छोटे काले बिन्दु दिखाये गये हैं, यदि उनके ऊपर गिरने वाले सम्पूर्ण सौर विकिरण का उपयोग कर लिया जाय तो विश्व में उपयोग की जा रही सम्पूर्ण ऊर्जा (लगभग 18 टेरावाट) की आपूर्ति इससे ही हो जायेगी। यूएसए के कैलिफोर्निया के सान बर्नार्डिनो में 354 MW वाला SEGS सौर कम्प्लेक्स सौर ऊर्जा वह उर्जा है जो सीधे सूर्य से प्राप्त की जाती है। सौर ऊर्जा ही मौसम एवं जलवायु का परिवर्तन करती है। यहीं धरती पर सभी प्रकार के जीवन (पेड़-पौधे और जीव-जन्तु) का सहारा है। वैसे तो सौर उर्जा के विविध प्रकार से प्रयोग किया जाता है, किन्तु सूर्य की उर्जा को विद्युत उर्जा में बदलने को ही मुख्य रूप से सौर उर्जा के रूप में जाना जाता है। सूर्य की उर्जा को दो प्रकार से विदुत उर्जा में बदला जा सकता है। पहला प्रकाश-विद्युत सेल की सहायता से और दूसरा किसी तरल पदार्थ को सूर्य की उष्मा से गर्म करने के बाद इससे विद्युत जनित्र चलाकर। .

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सूक्ष्मदर्शी

सूक्ष्मदर्शी या सूक्ष्मबीन (माइक्रोस्कोप) वह यंत्र है जिसकी सहायता से आँख से न दिखने योग्य सूक्ष्म वस्तुओं को भी देखा जा सकता है। सूक्ष्मदर्शी की सहायता से चीजों का अवलोकन व जांच किया जाता है वह सूक्ष्मदर्शन कहलाता है। सूक्ष्मदर्शी का इतिहास लगभग ४०० वर्ष पुराना है। सबसे पहले नीदरलैण्ड में सन १६०० के आस-पास किसी काम के योग्य सूक्ष्मदर्शी का विकास हुआ। .

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सेंसर

हाल प्रभाव पर आधारित सेंसर सेंसर (संवेदक) एक ऐसा उपकरण है जो किसी भौतिक राशि को मापने का कार्य करता है तथा इसे एक ऐसे संकेत में परिवर्तित कर देता है जिसे किसी पर्यवेक्षक या यंत्र द्वारा पढ़ा जा सकता है। उदाहरणस्वरूप, एक पारे से भरा कांच का थर्मामीटर मापित तापमान को एक तरल पदार्थ के विस्तार तथा संकुचन में परिवर्तित कर देता है जिसे एक अंशांकित कांच की नली पर पढ़ा जा सकता है। एक थर्मोकपल तापमान को एक आउटपुट वोल्टेज में परिवर्तित कर देता है जिसे एक वोल्टमीटर द्वारा पढ़ा जा सकता है। सटीकता की दृष्टि से, सभी सेंसरों को ज्ञात मानकों के अनुरूप अंशांकित करने की आवश्यकता है। .

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सेकेंड

सेकेंड (अन्तर्राष्ट्रीय इकाई प्रणाली चिन्ह: s), संकेताक्षर में sec., समय की अंतर्राष्ट्रीय मानक इकाई है। अंतर्राष्ट्रीय मानक में समय की अन्य इकाइयाँ सेकेंड की ही व्युत्पन्न हैं। ये इकाइयाँ दस के गुणकों में होती हैं। एक मिलिसेकेंड सेकेंड का एक हज़ारवाँ भाग होता है और 'एक नैनोसेकेंड' सेकेंड का एक अरबवाँ भाग होता है। समय की अधिक प्रयुक्त गैर अंतर्राष्ट्रीय मानक इकाइयाँ जैसे घंटा और मिनट भी सेकेंड पर ही आधारित हैं। मिनट, सेकण्ड.

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जड़त्व

किसी वस्तु का वह गुण जो उसकी गति की अवस्था में किसी भी प्रकार के परिवर्तन का विरोध करता है, जड़त्व (Inertia / इनर्शिया) कहलाता है। 'गति की अवस्था में परिवर्तन' का मतलब है - उसकी चाल में परिवर्तन, उसकी गति की दिशा में परिवर्तन, या चाल और दिशा दोनों में परिवर्तन। दूसरे शब्दों में, जड़त्व ही वह गुण है जिसके कारण वस्तु बिना दिशा बदले, एक सरल रेखा में, समान वेग से चलती रहती है। श्रेणी:गतिविज्ञान.

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जड़त्वाघूर्ण

रस्सी पर करतब दिखाने वाला नट रस्सी पर संतुलन बनाये रखने के लिए एक लम्बी लाठी (रॉड) का प्रयोग करता है। इसके कारण लाठी सहित उसका जडत्वाघूर्ण बहुत अधिक हो जाता है और चलते समय उत्पन्न थोड़े-थोड़े असंतुलित बलों को आसानी से संतुलित कर लेता है। किसी पिण्ड की घूर्णन की दर के परिवर्तन के प्रति प्रतिरोध की माप उस पिण्ड का जड़त्वाघूर्ण (Moment of inertia) कहलाता है। किसी पिण्ड का जड़त्वाघूर्ण उसके आकार-प्रकार एवं उसके अन्दर द्रव्यमान के वितरण की प्रकृति पर निर्भर करता है। स्थानान्तरण गति में जो कार्य द्रव्यमान का है वही कार्य घूर्णन गति में जड़त्वाघूर्ण का होता है। जड़त्वाघूर्ण के प्रतीक के लिये I या कभी-कभी J का प्रयोग किया जाता है। जड़त्वाघूर्ण की अवधारणा का उल्लेख सबसे पहले यूलर (Euler) ने सन् १७३० में अपनी पुस्तक ' Theoria motus corporum solidorum seu rigidorum ' में किया था। .

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जड़त्वीय फ्रेम

जड़त्वीय फेम तथा घूर्णी फ्रेम (दाहिने) भौतिकी में जड़त्वीय फ्रेम (inertial frame या inertial frame of reference) वह संदर्भ विन्यास (फ्रेम ऑफ रिफरेन्स) है जो समय तथा स्पेस को समांग, समदैशिक और समय-निरपेक्ष (time-independent) मानता है। इसको 'गैलीली फ्रेम' भी कहते हैं। जड़त्वीय फ्रेम में जड़त्व का नियम (न्यूटन की गति का प्रथम नियम) वैध है। (जबकि अजड़त्वीय फ्रेम में यह वैध नहीं है।) सारे जड़त्वीय निर्देश तंत्र एक दूसरे से परस्पर सरल रेखीय और एकसामान दर की गति में होते हैं; वह त्वरित नहीं होते हैं। दूसरे शब्दों में, किसी जड़त्वीय फ्रेम के सापेक्ष सरल रेखीय और एकसामान गति करने वाला फ्रेम भी जड़त्वीय होगा। इसका अर्थ यह है कि त्वरणमापी यन्त्र अगर इनमें स्थिर रखा जाये तो वह शून्य त्वरण मापेगा। पूर्णतः जड़त्वीय फ्रेम प्राप्त करना एक कठिन काम है। सभी जड़त्वीय फ्रेम 'लगभग' जड़त्वीय होते हैं। धरती भी पूर्णतः जडत्वीय फ्रेम नहीं है, बल्कि 'लगभग जड़त्वीय फ्रेम' है। .

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ज्वार-भाटा

धरती पर स्थित सागरों के जल-स्तर का सामान्य-स्तर से ऊपर उठना ज्वार तथा नीचे गिरना भाटा कहलाता है। ज्वार-भाटा की घटना केवल सागर पर ही लागू नहीं होती बल्कि उन सभी चीजों पर लागू होतीं हैं जिन पर समय एवं स्थान के साथ परिवर्तनशील गुरुत्व बल लगता है। (जैसे ठोस जमीन पर भी) पृथ्वी, चन्द्रमा और सूर्य की पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण शक्ति की क्रियाशीलता ही ज्वार-भाटा की उत्पत्ति का प्रमुख कारण हैं। .

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ज्वालामुखी

तवुर्वुर का एक सक्रिय ज्वालामुखी फटते हुए, राबाउल, पापुआ न्यू गिनिया ज्वालामुखी पृथ्वी की सतह पर उपस्थित ऐसी दरार या मुख होता है जिससे पृथ्वी के भीतर का गर्म लावा, गैस, राख आदि बाहर आते हैं। वस्तुतः यह पृथ्वी की ऊपरी परत में एक विभंग (rupture) होता है जिसके द्वारा अन्दर के पदार्थ बाहर निकलते हैं। ज्वालामुखी द्वारा निःसृत इन पदार्थों के जमा हो जाने से निर्मित शंक्वाकार स्थलरूप को ज्वालामुखी पर्वत कहा जाता है। ज्वालामुखी का सम्बंध प्लेट विवर्तनिकी से है क्योंकि यह पाया गया है कि बहुधा ये प्लेटों की सीमाओं के सहारे पाए जाते हैं क्योंकि प्लेट सीमाएँ पृथ्वी की ऊपरी परत में विभंग उत्पन्न होने हेतु कमजोर स्थल उपलब्ध करा देती हैं। इसके अलावा कुछ अन्य स्थलों पर भी ज्वालामुखी पाए जाते हैं जिनकी उत्पत्ति मैंटल प्लूम से मानी जाती है और ऐसे स्थलों को हॉटस्पॉट की संज्ञा दी जाती है। भू-आकृति विज्ञान में ज्वालामुखी को आकस्मिक घटना के रूप में देखा जाता है और पृथ्वी की सतह पर परिवर्तन लाने वाले बलों में इसे रचनात्मक बल के रूप में वर्गीकृत किया जाता है क्योंकि इनसे कई स्थलरूपों का निर्माण होता है। वहीं, दूसरी ओर पर्यावरण भूगोल इनका अध्ययन एक प्राकृतिक आपदा के रूप में करता है क्योंकि इससे पारितंत्र और जान-माल का नुकसान होता है। .

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घर्षण

धरती पर रखे एक ब्लाक के लिये फ्री-बॉडी आरेख घर्षण (Friction) एक बल है जो दो तलों के बीच सापेक्षिक स्पर्शी गति का विरोध करता है। घर्षण बल का मान दोनों तलों के बीच अभिलंब बल पर निर्भर करता है। घर्षण के दो प्रकार हैं: स्थैतिक और गतिज। स्थैतिक घर्षण दो पिण्डों के संपर्क-पृष्ठ की समान्तर दिशा में लगता है, लेकिन गतिज घर्षण गति की दिशा पर निर्भर नही करता। .

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घातांक

किसी संख्या पर घात लगाना या घातांकन (Exponentiation या Involution, इनवॉल्यूशन) एक गणितीय संक्रिया है जिसमें किसी संख्या को लगातार अपने से दो या अधिक बार गुणा किया जाता है। जितने बार गुणा किया जाता है, वह उस संख्या का 'घात' कहलाता है। घात को संख्या के ऊपर दाहिनी ओर थोड़ा हटाकर लिखा जाता है; इस प्रकर ३४ .

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घूर्णन

अक्ष पर घूर्णन करती हुई पृथ्वी घूर्णन करते हुए तीन छल्ले भौतिकी में किसी त्रिआयामी वस्तु के एक स्थान में रहते हुए (लट्टू की तरह) घूमने को घूर्णन (rotation) कहते हैं। यदि एक काल्पनिक रेखा उस वस्तु के बीच में खींची जाए जिसके इर्द-गिर्द वस्तु चक्कर खा रही है तो उस रेखा को घूर्णन अक्ष कहा जाता है। पृथ्वी अपने अक्ष पर घूर्णन करती है। .

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वामावर्त

date.

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वायुगतिकी

वायुगतिकी (Aerodynamics) गतिविज्ञान की वह शाखा है जिसमें वायु तथा अन्य गैसीय तरलों (gaseous fluids) की गति का और इन तरलों के सापेक्ष गतिवान ठोसों पर लगे बलों का विवेचन होता है। इस विज्ञान के सार्वाधिक महत्वपूर्ण अनुप्रयोगों में से एक अनुप्रयोग वायुयान की अभिकल्पना है। .

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वास्तविकता

वास्तविकता 'जो है' उसका दूसरा नाम है। इसे यथार्थता भी कहते हैं। .

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विचित्रता

कण भौतिकी में विचित्रता S कण का गुणधर्म है जिसे क्वान्टम संख्या के रूप उल्लिखित किया जाता है, जो प्रबल और वुद्युत चुम्बकीय अभिक्रियाओं, जो अतिअल्प कालावधि में घटित हो जाती हैं, में कणों के क्षय का वर्णन करने लिए काम में लिया जाता है। एक कण की विचित्रता निम्न प्रकार परिभाषित की जाती है: जहाँ n विचित्र क्वार्कों की संख्या को तथा n विचित्र प्रतिक्वार्कों की संख्या को निरूपित करता हि। पद विचित्र और विचित्रता क्वार्क के आविष्कार से पहले प्रेक्षित की गयी। .

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विद्युत प्रतिरोध

आदर्श प्रतिरोधक का V-I वैशिष्ट्य। जिन प्रतिरोधकों का V-I वैशिष्ट्य रैखिक नहीं होता, उन्हें अनओमिक प्रतिरोधक (नॉन-ओमिक रेजिस्टर) कहते हैं। किसी प्रतिरोधक के सिरों के बीच विभवान्तर तथा उससे प्रवाहित विद्युत धारा के अनुपात को उसका विद्युत प्रतिरोध (electrical resistannce) कहते हैं।इसे ओह्म में मापा जाता है। इसकी प्रतिलोमीय मात्रा है विद्युत चालकता, जिसकी इकाई है साइमन्स। जहां बहुत सारी वस्तुओं में, प्रतिरोध विद्युत धारा या विभवांतर पर निर्भर नहीं होता, यानी उनका प्रतिरोध स्थिर रहता है। right समान धारा घनत्व मानते हुए, किसी वस्तु का विद्युत प्रतिरोध, उसकी भौतिक ज्यामिति (लम्बाई, क्षेत्रफल आदि) और वस्तु जिस पदार्थ से बना है उसकी प्रतिरोधकता का फलन है। जहाँ इसकी खोज जार्ज ओह्म ने सन 1820 ई. में की।, विद्युत प्रतिरोध यांत्रिक घर्षण के कुछ कुछ समतुल्य है। इसकी SI इकाई है ओह्म (चिन्ह Ω).

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विधा

विधा (फ्रेंच: जीनर / genre) का साधारण अर्थ प्रकार, किस्म, वर्ग या श्रेणी है। यह शब्द विविध प्रकार की रचनाओं को वर्ग या श्रेणी में बांटने से उस विधा के गुणधर्मो को समझने में सुविधा होती है। यह वैसे ही है जैसे जीवविज्ञान में जीवों का वर्गीकरण किया जाता है। साहित्य एवं भाषण में विधा शब्द का प्रयोग एक वर्गकारक (CATEGORIZER) के रूप में किया जाता है। किन्तु सामान्य रूप से यह किसी भी कला के लिये प्रयुक्त किया जा सकता है। विधाओं की उपविधाएँ भी होती हैं। उदाहरण के लिये हम कहते हैं कि निबन्ध, गद्य की एक विधा है।. विधाएँ अस्पष्ट (vague) श्रेणीयाँ हैं और इनकी कोई निश्चित सीमा-रेखा नहीं होती। ये समय के साथ कुछ मान्यताओं के आधार पर इनकिइ पहचान निर्मित हो जाती है। .

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विनिमय

विनिमय का अर्थ है किसी वस्तु के बदले किसी दूसरी वस्तु का आदान-प्रदान करना। जब हम किसी वस्तु के बदले दूसरी वास्तु देते या प्राप्त करते हैं तो वह विनिमय कार्य कहलाता हैं। विनिमय को दो वर्गों में विभाजित किया गया हैं। विनिमय अर्थशास्त्र विषय की विषय सामग्री है। .

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विभेदन

विभेदन (Resolution) शब्द का उपयोग कई क्षेत्रों में और कुछ अलग-अलग अर्थों में भी होता है। नीचे कुछ सम्बन्धित क्षेत्र/शब्द दिये गये हैं- .

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विलोपन सिद्धान्त

बीजगणित तथा बीजीय ज्यामिति में उन कलनविधियों को विलोपन सिद्धान्त (elimination theory) या केवल 'विलोपन' कहते हैं जो अनेकों चरों से युक्त समीकरणों में से एक या अधिक चरों को हटाने (विलुप्त करने) के लिए प्रयुक्त होती हैं। आजकल रैखिक युगपत समीकरणों से चरों के विलोपन के लिए प्रायः गाउस का विलोपन प्रयुक्त होता है। इसी के उपयोग से इन समीकरणों का हल निकाला जाता है न कि क्रैमर के नियम द्वारा। .

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विषय

विषय एक हिन्दी शब्द है। .

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विसरण

तीन अलग-अलग समयों पर किसी गैस का विसरण: (१) विसरण के ठीक पहले (२) विसरण के थोडी देर बाद (३) विसरण आरम्भ होने के बहुत देर बाद विसरण के पहले और बाद में दो या दो से अधिक पादार्थों का स्वतः एक दूसरे से मिलकर समांग मिश्रण बनाने की क्रिया को विसरण (डिफ्यूजन) कहते हैं। सजीव कोशिकाओं में अमीनो अम्ल के संवहन में विसरण की मुख्य भूमिका है। .

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विस्थापन (सदिश)

एक कण द्वारा तय दूरी व विस्थापन का सापेक्ष अध्ययन विस्थापन (Displacement) एक सदिश राशि है। जब कोई वस्तु एक बिन्दु P से दूसरे बिन्दु Q तक किसी भी पथ से होते हुए गति करती है तो इस विस्थापन का परिमाण उन दो बिन्दुओं के मध्य की निम्नतम दूरी होगी तथा विस्थापन की दिशा, रेखा PQ की दिशा में (P से Q की तरफ) होगी। विस्थापन को s से दर्शाते हैं। विस्थापन का परिमाण काल्पनिक सीधे पथ की लम्बाई है, अतः यह कण द्वारा तय की गई कुल दूरी से अलग हो सकता है। जब कोई वस्तु p बिन्दु से q बिन्दु तक जाती है और वापस पुनः p बिन्दु आ जाती हैं, तब विस्थापन शून्य होगा, जबकि चली गयी दूरी शून्य नहीं होगी। .

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विखण्डन

नाभिकीय विखंडन का चलित चित्रण (एनिमेशन) वह प्रक्रिया जिसमे एक भारी नाभिक दो लगभग बराबर नाभिकों में टूट जाता हैं विखण्डन (fission) कहलाती हैं। इसी अभिक्रिया के आधार पर बहुत से परमाणु रिएक्टर या परमाणु भट्ठियाँ बनायी गयीं हैं जो विद्युत उर्जा का उत्पादन करतीं हैं। यूरेनियम-२३५ नाभिक का न्यूट्रॉन द्वारा विखण्डन .

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विकिरण

भौतिकी में प्रयुक्त विकिरण ऊर्जा का एक रूप है जो तरंगों या किसी परमाणु या अन्य निकाय द्वारा उत्सर्जित गतिशील उपपरमाणुविक कणों के रूप में उच्च से निम्न ऊर्जा अवस्था की ओर चलती है। विकिरण को परमाणु पदार्थ पर उसके प्रभाव के आधार पर या विआयनीकारक के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। विकिरण जो अणु या परमाणु का आयनीकरण करने मे सक्षम होता है उसमे उर्जा का स्तर विआयनीकारक विकिरण से अधिक होता है। रेडियोधर्मी पदार्थ वो भौतिक पदार्थ है जो कि आयनीकारक विकिरण उत्सर्जित करती है। तीन भिन्न प्रकार के विकिरण और उनका भेदन .

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व्यतिकरण (तरंगों का)

दो वृत्तीय तरंगों का व्यतिकरण व्यतिकरण (Interference) से किसी भी प्रकार की तरंगों की एक दूसरे पर पारस्परिक प्रक्रिया की अभिव्यक्ति होती है, जिसके परिणामस्वरूप कुछ विशेष स्थितियों में कंपनों और उनके प्रभावों में वृद्धि, कमी या उदासीनता आ जाती है। व्यतिकरण का विस्तृत अध्ययन विशाल विभेदन शक्ति वाले सभी यंत्रों के मूल में काम करता है। भौतिक प्रकाशिकी में इस धारण का समावेश टॉमस यंग (Thomas Young) ने किया। उनके बाद व्यतिकरण का व्यवहार किसी भी तरह की तरंगों या कंपनों के समवेत या तज्जन्य प्रभावों को व्यक्त करने के लिए किया जाता रहा है। संक्षेप में किसी भी तरह की (जल, प्रकाश, ध्वनि, ताप या विद्युत् से उद्भूत) तरंगगति के कारण लहरों के टकराव से उत्पन्न स्थिति को व्यतिकरण की संज्ञा दी जाती है। जब कभी जल या अन्य किसी द्रव की सतह पर दो भिन्न तरंगसमूह एक साथ मिलें तो व्यतिकरण की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। जहाँ एक तरंगसमूह से संबंद्ध लहरों के तरंगश्रृंगों का दूसरी शृंखला से संबद्धलहरों के तंरगश्रृंगों से सम्मिलिन होता है, वहाँ द्रव की सतह का उन्नयन उस स्थान पर लहरों के स्वतंत्र और एकांत अस्तित्व के संभव उन्नयनों के योग के बराबर होता है। जब तरंगों में से एक के तरंगश्रृंग का दूसरे के तरंगगर्त पर समापातन होता है, तब द्रव की सतह पर तरंगों का उद्वेलन कम हो जाता है और प्रतिफलित उन्नयन (या अवनयन) एक तरंग अवयव (component) के उन्नयन और दूसरे के अवनयन के अंतर के बराबर होता है। ध्वनि में उत्पन्न विस्पंद (beats) इसी व्यतिकरण का एक साधारण रूप है, जहाँ दो या दो से अधिक तरंगसमूह, जिनके तरंगदैर्ध्य में मामूली सा अंतर होता है, करीब एक ही दिशा में अग्रसर होते हुए मिलते हैं। .

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वृहदणु

रसायन शास्त्र में वृहदणु (Macromolecule, मैक्रोमोलिक्यूल) बहुत बड़े अणु को कहा जाता है और यह अक्सर बहुत सारे छोटे अणुओं को पॉलीमर बनाकर जोड़ने से निर्मित होते हैं। जहाँ जल, कार्बन डाईऑक्साइड और अन्य ऐसे कई अणुओं में दस से कम परमाणु होते हैं, वहाँ वृहदणुओं में हज़ारों परमाणु जुड़े हुए होते हैं। जीव-रसायनिकी में प्रोटीन, डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल और ऐसे कई अन्य वृहदणु मिलते हैं। .

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खगोल शास्त्र

चन्द्र संबंधी खगोल शास्त्र: यह बडा क्रेटर है डेडलस। १९६९ में चन्द्रमा की प्रदक्षिणा करते समय अपोलो ११ के चालक-दल (क्रू) ने यह चित्र लिया था। यह क्रेटर पृथ्वी के चन्द्रमा के मध्य के नज़दीक है और इसका व्यास (diameter) लगभग ९३ किलोमीटर या ५८ मील है। खगोल शास्त्र, एक ऐसा शास्त्र है जिसके अंतर्गत पृथ्वी और उसके वायुमण्डल के बाहर होने वाली घटनाओं का अवलोकन, विश्लेषण तथा उसकी व्याख्या (explanation) की जाती है। यह वह अनुशासन है जो आकाश में अवलोकित की जा सकने वाली तथा उनका समावेश करने वाली क्रियाओं के आरंभ, बदलाव और भौतिक तथा रासायनिक गुणों का अध्ययन करता है। बीसवीं शताब्दी के दौरान, व्यावसायिक खगोल शास्त्र को अवलोकिक खगोल शास्त्र तथा काल्पनिक खगोल तथा भौतिक शास्त्र में बाँटने की कोशिश की गई है। बहुत कम ऐसे खगोल शास्त्री है जो दोनो करते है क्योंकि दोनो क्षेत्रों में अलग अलग प्रवीणताओं की आवश्यकता होती है, पर ज़्यादातर व्यावसायिक खगोलशास्त्री अपने आप को दोनो में से एक पक्ष में पाते है। खगोल शास्त्र ज्योतिष शास्त्र से अलग है। ज्योतिष शास्त्र एक छद्म-विज्ञान (Pseudoscience) है जो किसी का भविष्य ग्रहों के चाल से जोड़कर बताने कि कोशिश करता है। हालाँकि दोनों शास्त्रों का आरंभ बिंदु एक है फिर भी वे काफ़ी अलग है। खगोल शास्त्री जहाँ वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग करते हैं जबकि ज्योतिषी केवल अनुमान आधारित गणनाओं का सहारा लेते हैं। .

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गतिपालक चक्र

गतिपालक चक्र यद्यपि इंजनों के शाफ्ट (लाल रंग) को पिस्टनों से मिलने वाली ऊर्जा लगातार नहीं आती बल्कि रूक-रूक कर आती है फिर भी क्रैंक शाफ्ट पर लगे गतिपालक चक्र के कारण शाफ्ट की गति को लगभग एकसमान बनी रहती है। गतिपालक चक्र या फ्लाईह्वील (flywheel) एक घूर्णन करने वाला वाला चक्र (पहिया) है जिसका उपयोग अनेक यन्त्रों में किया जाता है। घूमते हुए इस चक्र में घूर्णन की गतिज ऊर्जा संग्रहित होती है जिसके कारण यन्त्र पर लगने वाले लोड के अचानक परिवर्तन से भी इसकी गति पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ता। डिजाइन के समय गतिपालक चक्र का जड़त्वाघूर्ण भी अधिक रखा जाता है ताकि उसके घूर्णन की गतिज ऊर्जा एवं कोणीय संवेग अधिक रहें क्योंकि इनके अधिक रहने से यह चक्र अपने कोणीय वेग में परिवर्तन का विरोध आसानी से कर पाता है। गतिपालक चक्र में संग्रहित गतिज ऊर्जा उसके जड़त्वाघूर्ण एवं कोणीय वेग के वर्ग के गुणनफल के समानुपाती होती है। गतिपालक चक्र में ऊर्जा संग्रहित करने के लिये इस पर किसी बाहरी स्रोत के द्वारा बलाघूर्ण लगाकर इसका कोणीय वेग बढ़ाकर किया जाता है। इसके विपरीत यदि घूमते हुए किसी चक्र पर इसकी गति के विपरीत दिशा में बलाघूर्ण लगाया जाय तो यह अपनी ऊर्जा उस यान्त्रिक लोड को दे देता है जो इस पर उल्टी दिशा में बलाघूर्ण लगा रहा हो। श्रेणी:यन्त्र.

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गतिज ऊर्जा

गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy) किसी पिण्ड की वह अतिरिक्त ऊर्जा है जो उसके रेखीय वेग अथवा कोणीय वेग अथवा दोनो के कारण होती है। इसका मान उस पिण्ड को विरामावस्था से उस वेग तक त्वरित करने में किये गये कार्य के बराबर होती है। यदि किसी पिण्ड की गतिज ऊर्जा E हो तो उसे विरामावस्था में लाने के लिये E के बराबर ऋणात्मक कार्य करना पड़ेगा। गतिज ऊर्जा (रेखीय गति) .

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गलनांक

किसी ठोस पदार्थ का गलनांक (या द्रवणांक (melting point) वह तापमान होता है जिस पर वह अपनी ठोस अवस्था से पिघलकर द्रव अवस्था में पहुँच जाता है। गलनांक पर ठोस और द्रव प्रावस्था साम्यावथा में होती हैं। जब किसी पदार्थ की अवस्था द्रव से ठोस अवस्था में परिवर्तित होती है तो जिस तापमान पर यह होता है उस तापमान को हिमांक (freezing point) कहा जाता है। कई पदार्थों में परमशीतल होने की क्षमता होती है, इसलिए हिमांक को किसी पदार्थ की एक विशेष गुण नहीं माना जाता है। इसके विपरीत जब कोई ठोस एक निश्चित तापमान पर ठोस से द्रव अवस्था ग्रहण करता है वह तापमान उस ठोस का गलनांक कहलाता है। .

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गुरुत्व विभव

गुरुत्व विभव या गुरुत्वीय विभव (Gravitational potential) चिरसम्मत यांत्रिकी में उस कार्य को कहा जाता है जो किसी इकाई द्रव्यमान वाली वस्तु को प्रेक्षण बिन्दु तक लाने गुरुत्वीय बल के विरूध करना पडता है। यह विद्युत विभव के समान ही है, केवल आवेश के स्थान पर यहाँ द्रव्यमान का उपयोग होता है। इसकी विमा विद्युत विभव के समान नहीं होती। .

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गुरुत्वाकर्षण

गुरुत्वाकर्षण के कारण ही ग्रह, सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा पाते हैं और यही उन्हें रोके रखती है। गुरुत्वाकर्षण (ग्रैविटेशन) एक पदार्थ द्वारा एक दूसरे की ओर आकृष्ट होने की प्रवृति है। गुरुत्वाकर्षण के बारे में पहली बार कोई गणितीय सूत्र देने की कोशिश आइजक न्यूटन द्वारा की गयी जो आश्चर्यजनक रूप से सही था। उन्होंने गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का प्रतिपादन किया। न्यूटन के सिद्धान्त को बाद में अलबर्ट आइंस्टाइन द्वारा सापेक्षता सिद्धांत से बदला गया। इससे पूर्व वराह मिहिर ने कहा था कि किसी प्रकार की शक्ति ही वस्तुओं को पृथिवी पर चिपकाए रखती है। .

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गुरुत्वजनित त्वरण

गुरुत्वजनित त्वरण या गुरुत्वीय त्वरण (acceleration due to gravity) निम्नलिखित तीन अर्थों में प्रयुक्त होता है-.

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ग्रहण

सूर्यग्रहण का एक दृष्य ग्रहण एक खगोलीय अवस्था है जिसमें कोई खगोलिय पिंड जैसे ग्रह या उपग्रह किसी प्रकाश के स्रोत जैसे सूर्य और दूसरे खगोलिय पिंड जैसे पृथ्वी के बीच आ जाता है जिससे प्रकाश का कुछ समय के लिये अवरोध हो जाता है। इनमें मुख्य रूप से पृथ्वी के साथ होने वाले ग्रहणों में निम्नलिखित उल्लेखनीय हैं.

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आदर्श गैस

आदर्श गैस के नियत ताप पर pV आरेख आदर्श गैस एक काल्पनिक सैद्धान्तिक गैस है जिसके कण यादृच्छ गति करने वाले, परस्पर अन्योन्यक्रिया न करने वाले और 'बिन्दुवत' हैं। आदर्श गैस की संकल्पना उपयोगी है क्योंकि आदर्श गैस आदर्श गैस नियम का पालन करती है जो एक सरलीकृत एवं सुविधाजनक समीकरण है। सामान्य परिस्थितियों में (जैसे मानक ताप व दाब पर) अधिकांश वास्तविक गैसें गुणात्मक रूप से आदर्श गैस की भांति ही व्यवहार करतीं हैं। नाइट्रोजन, आक्सीजन, हाइड्रोजन, अक्रिय गैसें और कुछ भारी गैसें जैसे कार्बन डाई आक्साइड आदि को कुछ त्रुटि के साथ आदर्श गैस जैसा माना जा सकता है। प्रायः जितना ही अधिक ताप तथा जितना कम दाब हो, किसी गैस का व्यवहार 'आदर्श गैस' के उतना ही समीप होता हैं। .

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आयनमंडल

पृथ्वी से लगभग 80 किलोमीटर के बाद का संपूर्ण वायुमंडल आयानमंडल कहलाता है। आयतन में आयनमंडल अपनी निचली हवा से कई गुना अधिक है लेकिन इस विशाल क्षेत्र की हवा की कुल मात्रा वायुमंडल की हवा की मात्रा के 200वें भाग से भी कम है। आयनमंडल की हवा आयनित होती है और उसमें आयनीकरण के साथ-साथ आयनीकरण की विपरीत क्रिया भी निरंतर होती रहती हैं। प्रथ्वी से प्रषित रेडियों तरंगे इसी मंडल से परावर्तित होकर पुनः प्रथ्वी पर वापस लौट आती हें। आयनमंडल में आयनीकरण की मात्रा, परतों की ऊँचाई तथा मोटाई, उनमें अवस्थित आयतों तथा स्वतंत्र इलेक्ट्रानों की संख्या, ये सब घटते बढ़ते हैं। वायुमण्डल और आयनमंडल का पारस्परिक सम्बन्ध .

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आघात

आघात अर्थ होता है मार। .

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आघूर्ण

किसी बल '''F''' की किसी बिन्दु '''O''' के सापेक्ष आघूर्ण का चित्रण भौतिकी में आघूर्ण (moment) का बहुत से स्थानों पर प्रयोग होता है। भौतिकी में इसकी संकल्पना गणित से आई है। किसी बिन्दु P के सापेक्ष किसी सदिश \vec A के आघूर्ण की सामान्य परिभाषा यह है- जहाँ \vec r बिन्दु P से सदिश \vec A की क्रियारेखा को मिलाने वाला कोई सदिश है। भौतिकी में सदिश \vec A के स्थान पर बल, संवेग आदि होते हैं। इस प्रकार बलाघूर्ण, संवेग का आघूर्ण, चुम्बकीय आघूर्ण आदि पारिभाषित किए गए हैं। कभी-कभी बल के आघूर्ण को केवल आघूर्ण भी कह देते हैं।.

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आवृत्ति

विभिन्न आवृतियों की तरंगें कोई आवृत घटना (बार-बार दोहराई जाने वाली घटना), इकाई समय में जितनी बार घटित होती है उसे उस घटना की आवृत्ति (frequency) कहते हैं। आवृति को किसी साइनाकार (sinusoidal) तरंग के कला (phase) परिवर्तन की दर के रूप में भी समझ सकते हैं। आवृति की इकाई हर्त्ज (साकल्स प्रति सेकण्ड) होती है। एक कम्पन पूरा करने में जितना समय लगता है उसे आवर्त काल (Time Period) कहते हैं। आवर्त काल .

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आवेग

कोई विवरण नहीं।

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आकाशगंगा

स्पिट्ज़र अंतरिक्ष दूरबीन से ली गयी आकाशगंगा के केन्द्रीय भाग की इन्फ़्रारेड प्रकाश की तस्वीर। अलग रंगों में आकाशगंगा की विभिन्न भुजाएँ। आकाशगंगा के केंद्र की तस्वीर। ऍन॰जी॰सी॰ १३६५ (एक सर्पिल गैलेक्सी) - अगर आकाशगंगा की दो मुख्य भुजाएँ हैं जो उसका आकार इस जैसा होगा। आकाशगंगा, मिल्की वे, क्षीरमार्ग या मन्दाकिनी हमारी गैलेक्सी को कहते हैं, जिसमें पृथ्वी और हमारा सौर मण्डल स्थित है। आकाशगंगा आकृति में एक सर्पिल (स्पाइरल) गैलेक्सी है, जिसका एक बड़ा केंद्र है और उस से निकलती हुई कई वक्र भुजाएँ। हमारा सौर मण्डल इसकी शिकारी-हन्स भुजा (ओरायन-सिग्नस भुजा) पर स्थित है। आकाशगंगा में १०० अरब से ४०० अरब के बीच तारे हैं और अनुमान लगाया जाता है कि लगभग ५० अरब ग्रह होंगे, जिनमें से ५० करोड़ अपने तारों से जीवन-योग्य तापमान रखने की दूरी पर हैं। सन् २०११ में होने वाले एक सर्वेक्षण में यह संभावना पायी गई कि इस अनुमान से अधिक ग्रह हों - इस अध्ययन के अनुसार आकाशगंगा में तारों की संख्या से दुगने ग्रह हो सकते हैं। हमारा सौर मण्डल आकाशगंगा के बाहरी इलाक़े में स्थित है और आकाशगंगा के केंद्र की परिक्रमा कर रहा है। इसे एक पूरी परिक्रमा करने में लगभग २२.५ से २५ करोड़ वर्ष लग जाते हैं। .

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इन्द्रधनुष

अर्धवृत्ताकार दोहरा-इन्द्रधनुष आकाश में संध्या समय पूर्व दिशा में तथा प्रात:काल पश्चिम दिशा में, वर्षा के पश्चात् लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला, तथा बैंगनी वर्णो का एक विशालकाय वृत्ताकार वक्र कभी-कभी दिखाई देता है। यह इंद्रधनुष कहलाता है। वर्षा अथवा बादल में पानी की सूक्ष्म बूँदों अथवा कणों पर पड़नेवाली सूर्य किरणों का विक्षेपण (डिस्पर्शन) ही इंद्रधनुष के सुंदर रंगों का कारण है। सूर्य की किरणें वर्षा की बूँदों से अपवर्तित तथा परावर्तित होने के कारण इन्द्रधनुष बनाती हैं। इंद्रधनुष सदा दर्शक की पीठ के पीछे सूर्य होने पर ही दिखाई पड़ता है। पानी के फुहारे पर दर्शक के पीछे से सूर्य किरणों के पड़ने पर भी इंद्रधनुष देखा जा सकता है। .

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कमानी

कुण्डलीनुमा स्प्रिंग - ये तनाव के लिये डिजाइन किये जाते हैं। कमानी या स्प्रिंग (spring) एक यांत्रिक युक्ति है जो प्रत्यास्थ उर्जा के भण्डारण के काम आती है। .

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कम्पन

ढोल के परदे का कम्पन स्पंदन संस्कृत का एक शब्द है हिन्दी में इसके शाब्दिक अर्थ हैं:-.

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कर्षण (इंजीनियरी)

रोल करके चलती हुई वस्तु पर लगने वाले बल किसी वस्तु को किसी समतल पर चलाने के लिए लगाया गया बल कर्षण (Traction या tractive force) कहलाता है। यह बल मुख्यतः शुष्क घर्षण को जीतने के लिए लगाना पड़ता है। .

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कार्तीय निर्देशांक पद्धति

Fig. 1 - कार्तीय निर्देशांक पद्धति. चार बिन्दु प्रकट हैं: (2,3) हरे मै, (-3,1) लाल मै, (-1.5,-2.5) नीले मै और (0,0), मूल बिन्दु, पीले में. गणित में कार्तीय निर्देशांक पद्धति (cartesian coordinate system), समतल मे किसी बिन्दु की स्थिति को दो अंको के द्वारा अद्वितीय रूप से दर्शाने के लिए प्रयुक्त होती है। इन दो अंको को उस बिन्दु के क्रमशः X-निर्देशांक व Y-निर्देशांक कहा जाता है। इसके लिये दो लंबवत रेखाएं निर्धारित की जाती हैं जिन्हे X-अक्ष और Y-अक्ष कहते हैं। इनके कटान बिन्दु को मूल बिन्दु (origin) कहते हैं। जिस बिन्दु की स्थिति दर्शानी होती है, उस बिन्दु से इन अक्षों पर लम्ब डाले जाते हैं। इस बिन्दु से Y-अक्ष की दूरी को उस बिन्दु का X-निर्देशांक या भुज कहते हैं। इसी प्रकार इस बिन्दु की X-अक्ष से दूरी को उस बिन्दु का Y-निर्देशांक या कोटि कहते है। उदाहरण के लिये यदि किसी बिन्दु की Y-अक्ष से (लम्बवत) दूरी a तथा X-अक्ष से दूरी b हो तो क्रमित-युग्म (a,b) को उस बिन्दु का कार्तीय निर्देशांक कहते हैं। .

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कार्नो चक्र

p-V आरेक्ख के रूप में कार्नो चक्र कार्नो चक्र (Carnot cycle) सादी कार्नो द्वारा १८२४ में प्रस्तुत किया गया एक सैद्धान्तिक ऊष्मागतिक चक्र है। यह प्रदर्शित किया जा सकता है कि किसी दी हुई ऊष्मीय ऊर्जा को कार्य में बदलने के लिये या कार्य को तापान्तर में बदलने के लिये यही ऊष्मा-चक्र सबसे अधिक दक्ष है। श्रेणी:ऊष्मा चक्र.

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काल

काल .

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कक्षा (भौतिकी)

दिक् में एक बिंदु के इर्द-गिर्द अपनी अलग-अलग कक्षाओं में परिक्रमा करती दो अलग आकारों की वस्तुएँ भौतिकी में कक्षा या ऑर्बिट दिक् (स्पेस) में स्थित एक बिंदु के इर्द-गिर्द एक मार्ग को कहते हैं जिसपर चलकर कोई वस्तु उस बिंदु की परिक्रमा करती है। खगोलशास्त्र में अक्सर उस बिंदु पर कोई बड़ा तारा या ग्रह स्थित होता है जिसके इर्द-गिर्द कोई छोटा ग्रह या उपग्रह अपनी कक्षा में उसकी परिक्रमा करता है। यदि खगोलीय वस्तुओं की कक्षाओं को देखा जाए तो कई भिन्न तरह की कक्षाएँ देखी जाती हैं - कुछ गोलाकार हैं, कुछ अण्डाकार हैं और कुछ इन से अधिक पेचीदा हैं। श्रेणी:भौतिकी श्रेणी:खगोलशास्त्र श्रेणी:हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना * श्रेणी:ज्योतिष पक्ष.

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कक्षीय अवधि

किसी पिण्ड की कक्षीय अवधि अथवा परिक्रमण काल या संयुति काल उसके द्वारा किसी दूसरे निकाय का एक पूरा चक्कर लगाने में लिया गया समय है। .

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क्षणिक

क्षणिक एक हिन्दी शब्द है। .

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क्वथनांक

किसी द्रव का क्वथनांक वह ताप है जिसपर द्रव के भीतर वाष्प दाब, द्रव की सतह पर आरोपित वायुमंडलीय दाब के बराबर होता है। यह वायुदाब के साथ परिवर्तित होता है और वायुदाब के बढ़ने पर द्रव के क्वथन हेतु अधिक उच्च ताप की आवश्यकता होती है। .

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क्वांटम

भौतिक विज्ञान, में क्वांटम (quantum) (बहुवचन: क्वांटा; quanta) अन्योन्य क्रिया में शामिल किसी भौतिक राशी का निम्नतम मान है। इसकी उत्पति भौतिक गुणधर्म "क्वांटीकरण" है जिसे "क्वांटीकरण परिक्लपना" के नाम से जाना जाता है। इसका अर्थ यह है कि परिमाण केवल विविक्त रूप में ही हो सकता है, सतत नहीं। .

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कृष्ण विवर

किसी कृष्ण विवर का सिमुलेट किया हुआ चित्र। इस विवर का द्रव्यमान 10 सूर्य के बराबर है, तथा 600 कि॰मी॰ की दरी से लिया गया चित्र प्रदर्शित है। इस दूरी पर स्gfgfhgथापित रहने के लिये कम से कम 600 मिलीयन g का त्वरण आवश्यक है।http://www.spacetimetravel.org/expeditionsl/expeditionsl.html "Step by Step into a Black Hole" कृष्ण विवर, श्याम विवर, कृष्ण गर्त या ब्लैक होल अन्तरिक्ष का वह हिस्सा होता है जहाँ गुरुत्वीय क्षेत्र इतना प्रबल होता है कि इसमे से कुछ भी बाहर नहीं आ सकता; यहाँ तक कि विद्युतचुम्बकीय तरंगे (जैसे, प्रकाश) भी नही। इनकी उपस्थिति का ज्ञान इनका अन्य पदार्थों के साथ परस्पर क्रिया (इन्टरैक्शन) द्वारा किया जा सकता है हालांकि इतने शक्तिशाली गुरुत्वीय क्षेत्र का विचार १८ वी सदी का है परन्तु वर्त्तमान में काल-कोठरी अलबर्ट आइंस्टाइन के सापेक्षता के सिद्धांत पर ही समझाए जाते हैं। .

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कृष्णिका

जैसे-जैसे तापमान कम होता है, कृष्णिका का विकिरण कर्व कम तीव्रता और लंबे तरंगदैर्घ्य की ओर बढ़ता है। कृष्णिका का विकिरण ग्राफ भी रेले और जीन्स के शास्त्रीय मॉडल के साथ तुलनीय होता है। कृष्णिका का रंग (वार्णिकता) कृष्णिका के तापमान पर निर्भर करता है, जैसे ऐसे रंग का ठिकाने की CIE 1931 एक्स, वाई अंतरिक्ष में यहां दिखाया गया है, जिसे प्लैंकियान लोकस के रूप में जाना जाता है। भौतिक विज्ञान में कृष्णिका पदार्थ की एक आदर्शीकृत अवस्था है, जो अपने ऊपर पड़ने वाले सभी विद्युत चुम्बकीय विकिरण अवशोषित कर लेता है। कृष्णिका एक विशेष और सतत वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) में विकिरण को अवशोषित और गर्म होने पर फिर से उत्सर्जित ‍करते हैं। क्योंकि कोई भी प्रकाश (दृश्य विद्युत चुम्बकीय विकिरण) परिलक्षित या संचरित नहीं होता है और वस्तु जब ठंडी होती है, तो काली दिखाई देती है। हालांकि एक कृष्णिका तापमान पर निर्भर प्रकाश वर्णक्रम का उत्सर्जन करता है। कृष्णिका से निकले इस सौर विकिरण को कृष्णिका विकिरण कहा जाता है। कृष्णिका के वर्णक्रम में तरंग की लंबाई (तरंगदैर्घ्य) जितनी छोटी होती है, आवृत्ति उतनी ही ज्यादा होती है और उच्च आवृत्ति उच्च तापमान से संबंधित होती है। इस प्रकार, एक गर्म वस्तु का रंग वर्णक्रम के नीले अंत के करीब होता है और एक ठंडी वस्तु का रंग लाल के करीब होता है। कमरे के तापमान पर, कृष्णिका ज्यादातर अवरक्त (इंफ्रारेड) तरंगदैर्घ्य फेंकते हैं, लेकिन तापमान के कुछ सौ डिग्री सेल्सियस बढ़ जाने पर कृष्णिका दृश्य तरंगदैर्घ्य उत्सर्जित करते हैं, जो तापमान बढ़ने के साथ ही लाल, नारंगी, पीले, उजले, नीले दिखते हैं। वस्तु के सफेद होने तक वह पर्याप्त मात्रा में पराबैंगनी विकिरण उत्सर्जित करती है। "कृष्णिका" शब्द 1860 मेंगुस्ताव किर्चाफ के द्वारा शुरू किया गया। जब इसका यौगिक विशेषण के रूप में प्रयोग किया जाता है, तो यह शब्द आम तौर पर "कृष्णिका विकिरण" या " ब्लैकबॉडी रेडियेशन" के रूप में एक शब्द में संयुक्त हो जाता है। कृष्णिका उत्सर्जन एक निरंतर जारी रहने वाले क्षेत्र के सौर संतुलनस्थिति की अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। शास्त्रीय भौतिकी में सौर संतुलन में प्रत्येक अलग-अलग फूरियर मोड में समान ऊर्जा होनी चाहिए। इस दृष्टिकोण से एक विरोधाभास पैदा हुआ, जिसे पराबैंगनी आपदा के रूप में जाना जाता है और जिसमें सतत जारी रहने वाले क्षेत्र में ऊर्जा की एक अपार मात्रा होती है। कृष्णिका सौर संतुलन के गुणों का परीक्षण कर सकते हैं, क्योंकि वे जो सूर्य की किरणों द्वारा वितरित किये जाने वाले विकिरण उत्सर्जित करते हैं। ऐतिहासिक रूप से कृष्णिका के नियमों का अध्ययन करने से ही क्वांटम यांत्रिकी की अवधारणा आई। .

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केशिका

शरीर की सबसे पतली रक्त-वाहिनियाँ केशिका (Capillaries) कहलातीं हैं। ये सूक्ष्मपरिसंचरण (microcirculation) का भाग हैं। वे केवल एक कोशिका के बराबर मोटी होती हैं। .

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कॉरिऑलिस प्रभाव

कोरिआलिस बल और उसका प्रभाव भौतिक विज्ञान में, कॉरिऑलिस प्रभाव किसी घूर्णी निर्देश तंत्र में किसी गतिशील वस्तु में प्रेक्षित विक्षेपन होता है। फेरेल का नियम: इस नियम के अनुसार, “धरातल पर मुख्य रूप से चलने वाली सभी हवाएं पृथ्वी की गति के कारण उत्तरी गोलार्द्ध में दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर मुड़ जाती हैं।” यह नियम बड़े क्षेत्रों पर चलने वाली स्थायी पवनों, छोटे चक्रवातों और प्रतिचक्रवातों पर लागू होता है। इस नियम का प्रभाव महासागरीय धाराओं, ज्वारीय गतियों, राकेटों, आदि पर भी देखा जाता है। श्रेणी:भौतिकी श्रेणी:घूर्णन.

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कोणीय त्वरण

कोणीय वेग में परिवर्तन की दर को कोणीय त्वरण (Angular acceleration) कहते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय इकाई प्रणाली में इसका मात्रक रेडियन प्रति वर्ग सैकण्ड (rad/s2) है और सामान्यतः इसे एल्फा (&alpha) से प्रदर्शित किया जाता है। .

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कोणीय संवेग

भौतिक विज्ञान में कोणीय संवेग (Angular momentum), संवेग आघूर्ण (moment of momentum) या घूर्णी संवेग (rotational momentum) किसी वस्तु के द्रव्यमान, आकृति और वेग को ध्यान में रखते हुए इसके घूर्णन का मान का मापन है। यह एक सदिश राशि है जो किसी विशेष अक्ष के सापेक्ष जड़त्वाघूर्ण व कोणीय वेग के गुणा के बराबर होता है। किसी कणों के निकाय (उदाहरणार्थ: दृढ़ पिण्ड) का कोणीय संवेग उस निकाय में उपस्थित सभी कणों के कोणीय संवेग के योग के तुल्य होता है। .

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कोणीय व्यास

कोणीय व्यास (Angular diameter) या स्पष्ट आकार, किसी दी गई स्थिति से, जैसा कि उसे देखा गया, किसी वस्तु का कोण के रूप में मापा गया "दृश्य व्यास" है। दृष्टि विज्ञान में इसे दृश्य कोण कहा जाता है। श्रेणी:ज्यामिति श्रेणी:कोणधारी श्रेणी:खगोलमिति.

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कोणीय आवृत्ति

अंगूठाकार ''ω'' (रेडियन प्रति सेकेन्ड), आवृत्ति ''ν'' के 2''π'' गुना होती है। इस चित्र में आवृत्ति को ''f'' के बजाय ''ν'' से दर्शाया गया है। भौतिकी में, घूमती हुई कोई वस्तु, इकाई समय में जितना कोण (रेडियन में) घूम जाती है उसे कोणीय आवृत्ति या कोणीय चाल (ω) कहते हैं। कोणीय चाल, वास्तव में कोणीय वेग नामक सदिश राशि के परिमाण (magnitude) को कहते हैं।(UP1) कोई वस्तु एक चक्कर (Turn) घूमने में 2π रेडियन कोण घूमती है, अतः जहाँ: .

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कोशिका केन्द्रक

केन्द्रक का चित्र कोशिका विज्ञान में केन्द्रक (लातीनी व अंग्रेज़ी: nucleus, न्यूक्लियस) वनस्पतियों, प्राणियों और सुकेन्द्रिक जीवों की अधिकांश कोशिकाओं में एक झिल्ली द्वारा बंद एक भाग (या कोशिकांग) होता है। सुकेन्द्रिक जीवों की हर कोशिका में अधिकतर एक केन्द्रक होता है, लेकिन स्तनधारियों की लाल रक्त कोशिकाओं में कोई केन्द्रक नहीं होता और ओस्टियोक्लास्ट कोशिकाओं में कई केन्द्रक होते हैं। प्राणियों के केन्द्रकों का व्यास लगभग ६ माइक्रोमीटर होता है और यह उनकी कोशिकाओं का सबसे बड़ा कोशिकांग होता है। कोशिका केन्द्रकों में कोशिकाओं की अधिकांश आनुवंशिक सामग्री होती है, जो कई लम्बे डी॰ ऍन॰ ए॰ अणुओं में सम्मिलित होती है, जिनके रेशों कई प्रोटीनों के प्रयोग से गुण सूत्रों (क्रोमोज़ोमों) में संगठित होते हैं। इन गुण सूत्रों में उपस्थित जीन कोशिका का जीनोम होते हैं और कोशिका की प्रक्रियाओं को संचालित करते हैं। केन्द्रक इन जीनों को सुरक्षित रखता है और जीन व्यवहार संचालित करता है, यानि केन्द्रक कोशिका का नियंत्रणकक्ष होता है। पूरा केन्द्रक एक लिपिड द्विपरत की बनी झिल्ली द्वारा घिरा होता है जो केन्द्रक झिल्ली (nuclear membrane) कहलाती है और जो केन्द्रक के अन्दर की सामग्री को कोशिकाद्रव्य से पृथक रखता है। केन्द्रक के भीतर केन्द्रक आव्यूह (nuclear matrix) कहलाने वाला रेशों का ढांचा होता है जो केन्द्रक को आकार बनाए रखने के लिए यांत्रिक सहारा देता है, ठीक उसी तरह जैसे कोशिका कंकाल पूरी कोशिका को यांत्रिक सहारा देता है। .

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अटकलबाजी

वित्त के सन्दर्भ में अटकलबाजी (speculation) का अर्थ उस वित्तीय कार्वाही (शेयर/कमोडिटी/सम्पत्ति खरीदना/बेचना आदि) से है जो बिना पर्याप्त विश्लेषण के की जाती है। इस क्रिया में बहुत जोखिम होता है और पूंजी डूबने का संकट आ सकता है। 'अटकलबाजी' और निवेश (इंवेस्टमेंट) में बहुत अन्तर है क्योंकि निवेश भलीभांति विश्लेषण करने के बाद लिये गये क्रय-विक्रय को कहते हैं। .

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अणु

साधारण चीनी का अणु - इसमें १२ कार्बन (काला रंग), २२ हाइड्रोजन (सफ़ेद रंग) और ११ आक्सीजन (लाल रंग) के परमाणु एक दुसरे से जुड़े हुए होते हैं अणु पदार्थ का वह छोटा कण है जो प्रकृति के स्वतंत्र अवस्था में पाया जाता है लेकिन रासायनिक प्रतिक्रिया में भाग नहीं ले सकता है। रसायन विज्ञान में अणु दो या दो से अधिक, एक ही प्रकार या अलग अलग प्रकार के परमाणुओं से मिलकर बना होता है। परमाणु मजबूत रसायनिक बंधन के कारण आपस में जुड़े रहते हैं और अणु का निर्माण करते हैं। अणु की संकल्पना ठोस, द्रव और गैस के लिये अलग अलग हो सकती है। अणु पदार्थ के सबसे छोटे भाग को कहते हैं। यह कथन गैसो के लिये ज्यादा उपयुक्त है। उदाहरण के लिये, ओक्सीजन गैस उसके स्वतन्त्र अणुओ का एक समूह है। द्रव और ठोस में अणु एक दूसरे से किसी ना किसी बन्धन में रह्ते है, इनका स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं होता है। कई अणु एक दूसरे से जुडे होते है और एक अणु को अलग नहीं किया जा सकता है। अणु में कोई विद्युत आवेश नहीं होता है। अणु एक ही तत्व के परमाणु से मिलकर बने हो सकते हैं या अलग अलग तत्वों के परमाणु से मिलकर। .

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अणुगति सिद्धांत

अणुगति प्रत्येक पदार्थ तीन अवस्थायों में पाया जाता है: (i) ठोस (ii) द्रव (iii) गैस | पदार्थ की विभिन्न अवस्थायों में अणुओं की गति भिन्न भिन्न प्रकार की होती है, अंतरा-अणुक दूरी भिन्न-भिन्न होती है तथा अंतरा-अणुक बल भी भिन्न-भिन्न होता है | इसीलिए पदार्थ की विभिन्न अवस्थायों में भौतिक गुण भी भिन्न-भिन्न होते हैं | उदाहरण के लिए, पदार्थ की ठोस अवस्था में उसका एक निश्चित आयतन व निश्चित आकृति होती है, द्रव अवस्था में उसका आयतन को निश्चित होता है लेकिन आकृति कोई निश्चित नहीं होती है तथा गैस अवस्था में न तो आयतन निश्चित होता है न ही आकृति | इन गुणों की व्याख्या अणुगति सिद्धांत द्वारा की जाती है | .

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अदिश राशि

जिन राशियों में सिर्फ परिमाण होता है उन्हें अदिश राशि कहते हैं, जैसे - चाल, दूरी, द्रव्यमान, आयतन, समय, ताप, कार्य,बिधुत धारा, दाब, ऊर्जा इत्यादि। जिस भौतिक राशि में मात्रा (परिमाण) तथा दिशा दोनो निहित होते हैं उन्हें सदिश राशि कहते है। सदिश राशियों के उदाहरण हैं - वेग, बल, संवेग, त्वरण, विस्थापन,रेखीय संवेग, कोणीय वेग, कोणीय संवेग, चुम्बकीय आघूर्ण,चाल प्रवणता, ताप प्रवणता,विधुत द्विध्रुव आघुर्ण,विधुत धारा घनत्व इत्यादि। राशि, अदिश श्रेणी: चित्र जोड़ें.

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अदिश गुणनफल

दो सदिशों का '''डॉट गुणनफल''' या '''अदिश गुणनफल''' दो सदिशों A और B का डॉट गुणनफल या अदिश गुणनफल एक अदिश राशि होती है, जिसका मान निम्नलिखित समीकरण से दिया जाता है- जहाँ θ वह कोण है जो सदिश ||A|| और सदिश ||B|| के बीच में बनता है। .

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अनंत

अनंत (Infinity) का अर्थ होता है जिसका कोई अंत न हो। इसको ∞ से निरूपित करते हैं। यह गणित और दर्शन में एक कांसेप्ट है जो ऐसी राशि को कहते हैं जिसकी कोई सीमा न हो या अन्त न हो। भूतकाल में लोगों ने अनन्त के बारे में तरह-तरह के विचार व्यक्त किये हैं। अनंत शब्द का अंग्रेजी पर्याय "इनफिनिटी" लैटिन भाषा के 'इन्' (अन्) और 'फिनिस' (अंत) की संधि है। यह शब्द उन राशियों के लिए प्रयुक्त किया जाता है जिनकी भाप अथवा गणना उनके परिमित न रहने के कारण असंभव है। अपरिमित सरल रेखा की लंबाई सीमाविहीन और इसलिए अनंत होती है। .

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अनुदैर्घ्य तरंग

अनुदैर्घ्य तरंगे (Longitudinal waves) वे तरंगें हैं जिनमें माध्यम के कणों का विस्थापन तरंग की गति की दिशा या उसके विपरीत दिशा में ही होता है। इन्हें "l तरंगें" भी कहते हैं। यांत्रिक अनुदैर्घ्य तरंगों को संपीडन तरंगें (compressional waves) भी कहते हैं क्योंकि इन तरंगों के संचरण के कारण माध्यम के अन्दर संपीडन (compression) और विरलन (rarefaction) का निर्माण होता है। अनुप्रस्थ तरंगें (transverse wave) इससे अलग प्रकार की तरंगें हैं जिनमें कणों के कम्पन की गति, तरंग के संचरण की गति के लम्बवत होती है। श्रेणी:तरंग श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अनुनाद

जैसे-जैसे आवृत्ति, अनुनाद आवृत्ति के पास पहुँचती है, आयाम बढता जाता है भौतिकी में बहुत से तंत्रों (सिस्टम्स्) की ऐसी प्रवृत्ति होती है कि वे कुछ आवृत्तियों पर बहुत अधिक आयाम के साथ दोलन करते हैं। इस स्थिति को अनुनाद (रिजोनेन्स) कहते हैं। जिस आवृत्ति पर सबसे अधिक आयाम वाले दोलन की प्रवृत्ति पायी जाती है, उस आवृत्ति को अनुनाद आवृत्ति (रेसोनेन्स फ्रिक्वेन्सी) कहते हैं। सभी प्रकार के कम्पनों या तरंगों के साथ अनुनाद की घटना जुड़ी हुई है। अर्थात यांत्रिक, ध्वनि, विद्युतचुम्बकीय अथवा क्वांटम तरंग फलनों के साथ अनुनाद हो सकती है। कोई छोटे आयाम का भी आवर्ती बल, जो अनुनाद आवृत्ति वाला या उसके लगभग बराबर आवृत्ति वाला हो, उस तंत्र में बहुत अधिक आयाम के दोलन पैदा कर सकता है। अनुनादी तंत्रों के बहुत से उपयोग हैं। इनका उपयोग किसी वांछित आवृत्ति पर कम्पन (दोलन) पैदा करने के लिया किया जा सकता है; अथवा किसी जटिल कम्पन (जिसमें बहुत सी आवृत्तियों का मिश्रण हो; जैसे रेडियो या टीवी सिगनल) में से किसी चुनी हुई आवृत्ति को छाटने (फिल्टर करने) के लिये किया जा सकता है।; अनुनाद होने के लिये तीन चींजें जरूरी हैं- १) एक वस्तु या तन्त्र - जिसकी कोई प्राकृतिक आवृत्ति हो; २) वाहक या कारक बल (ड्राइविंग फोर्स) - जिसकी आवृत्ति, तन्त्र की प्राकृतिक आवृत्ति के समान हो; ३) इस तंत्र में उर्जा नष्ट करने वाला अवयव कम से कम हो (कम डैम्पिंग हो)। (घर्षण, प्रतिरोध (रेजिस्टैन्स), श्यानता (विस्कासिटी) आदि किसी तन्त्र में उर्जा ह्रास के लिये जिम्मेदार होते हैं।) .

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अनुप्रयुक्त भौतिकी

भौतिकी के तकनीकी और व्यावहारिक अनुप्रयोगों से सम्बंधित विषयों के विज्ञान को अनुप्रयुक्त भौतिकी (अप्लायड फिजिक्स) कहते हैं। सैद्धांतिक भौतिकी और अनुप्रयुक्त भौतिकी के बीच की सीमाओं को किसी वैज्ञानिक की अभिप्रेरणा और अभिप्राय जैसे तत्त्वों से लेकर किसी अनुसन्धान के प्रोधयोगिकी और विज्ञान पर अंततः पड़ने वाले असर तक जा सकता है। अभियाँत्रिकी से इसमें अन्तर केवल इतना है कि, जहाँ अभियाँत्रिकी में विद्यमान तकनीकों पर आधारित ठोस अंत परिणाम की अपेक्षा की जाती है, व्यावहारिक भौतिकी मे नये तकनीकों पर, या विद्यमान तकनीकों पर, अनुसंधान होता है। काफी हद तक यह अनुप्रयुक्त गणित के समान है। भौतिक विज्ञानी भौतिकी के सिद्धांतों का प्रयोग सैद्धांतिक भौतिकी के विकास हेतु यंत्रों को बनाने के लिये भी करते हैं। इसका उदाहरण है त्वरक भौतिकी। .

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अनुप्रस्थ तरंग

अनुप्रस्थ तरंग उस तरंग को कहते हैं जिसके दोलन तरंग संचरण की दिशा के लम्बवत होते हैं। उदाहरण के लिये, विद्युतचुम्बकीय तरंगें अनुप्रस्थ तरंगे होतीं हैं। .

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अरस्तु

अरस्तु अरस्तु (384 ईपू – 322 ईपू) यूनानी दार्शनिक थे। वे प्लेटो के शिष्य व सिकंदर के गुरु थे। उनका जन्म स्टेगेरिया नामक नगर में हुआ था ।  अरस्तु ने भौतिकी, आध्यात्म, कविता, नाटक, संगीत, तर्कशास्त्र, राजनीति शास्त्र, नीतिशास्त्र, जीव विज्ञान सहित कई विषयों पर रचना की। अरस्तु ने अपने गुरु प्लेटो के कार्य को आगे बढ़ाया। प्लेटो, सुकरात और अरस्तु पश्चिमी दर्शनशास्त्र के सबसे महान दार्शनिकों में एक थे।  उन्होंने पश्चिमी दर्शनशास्त्र पर पहली व्यापक रचना की, जिसमें नीति, तर्क, विज्ञान, राजनीति और आध्यात्म का मेलजोल था।  भौतिक विज्ञान पर अरस्तु के विचार ने मध्ययुगीन शिक्षा पर व्यापक प्रभाव डाला और इसका प्रभाव पुनर्जागरण पर भी पड़ा।  अंतिम रूप से न्यूटन के भौतिकवाद ने इसकी जगह ले लिया। जीव विज्ञान उनके कुछ संकल्पनाओं की पुष्टि उन्नीसवीं सदी में हुई।  उनके तर्कशास्त्र आज भी प्रासांगिक हैं।  उनकी आध्यात्मिक रचनाओं ने मध्ययुग में इस्लामिक और यहूदी विचारधारा को प्रभावित किया और वे आज भी क्रिश्चियन, खासकर रोमन कैथोलिक चर्च को प्रभावित कर रही हैं।  उनके दर्शन आज भी उच्च कक्षाओं में पढ़ाये जाते हैं।  अरस्तु ने अनेक रचनाएं की थी, जिसमें कई नष्ट हो गई। अरस्तु का राजनीति पर प्रसिद्ध ग्रंथ पोलिटिक्स है। .

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अवशोषण

अवशोषण (Absorption) किसी चीज़ को सोख लेने की प्रक्रिया को कहते हैं। अलग विषयों में इसके अलग-अलग अर्थ निकलते हैं: .

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अवकल गणित

गणित में अवकल गणित (differential calculus) कैलकुलस का उपभाग है जिसमें परिवर्तन की दर का अध्ययन किया जाता है। कैलकुलस का दूसरा उपभाग समाकलन गणित (इटीग्रल कैलकुलस) है।; अवकलज की परिभाषा f'(x).

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अक्षांश रेखाएँ

ग्लोब पर भूमध्य रेखा के समान्तर खींची गई कल्पनिक रेखा। अक्षांश रेखाओं की कुल संख्या१८०+१ (भूमध्य रेखा सहित) है। प्रति १ डिग्री की अक्षांशीय दूरी लगभग १११ कि.

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उत्तापमापी

वायुप्रवाह प्रणाली का ताप प्रेक्षण करता हुआ नाविक (सेलर) उत्तापमापी (पायरोमीटर), ऊँचे ताप की माप करनेवाला यंत्र है। ये कई प्रकार के होते हैं- प्रकाशिक उत्तापमापी, विकिरण उत्तापमापी, प्रतिरोध उत्तापमापी, ताप-विद्युत्‌-उत्तापमापी और अवरक्त उत्तापमापी। .

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उत्पाद

विपणन के सन्दर्भ में, कोई भी वस्तु जो किसी बाजार में बेची जा सके और जो लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति करे, उसे उत्पाद (product) कहते हैं। श्रेणी:वाणिज्यिक शब्दावली श्रेणी:परियोजना प्रबन्धन en:Product (business).

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उत्प्लावन बल

किसी द्रव में रखी वस्तु पर लगने वाले बल किसी तरल (द्रव या गैस) में आंशिक या पूर्ण रूप से डूबी किसी वस्तु पर उपर की ओर लगने वाला बल उत्प्लावन बल कहलाता है। उत्प्लावन बल नावों, जलयानों, गुब्बारों आदि के कार्य के लिये जिम्मेदार है। .

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उत्सर्जन

उपापचयी (मेटाबोलिक) क्रियायों के फलस्वरूप बने उत्सर्जी पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने की क्रिया को उत्सर्जन कहते हैं। सजीव कोशिकाओं के अन्दर विभिन्न प्रकार की जैव-रासायनिक क्रियाएँ होती रहती हैं। इन क्रियायों के समय कुछ बेकार एवं विषैले पदर्थ उत्पन्न होते हैं जो कोशिकाओं अथवा शरीर के लिए उपयोगी नहीं होते हैं। यदि उन्हें शरीर में इकट्ठा होने दिया जाय तो वे प्राणघातक भी हो सकते हैं। इन्हीं पदार्थों को उत्सर्जन की क्रिया में शरीर बाहर निकाल देता है। कुछ हानिकारक एवं उत्सर्जी पदार्थ कार्बन डाईऑक्साइड, अमोनिया, यूरिया, यूरिक अम्ल तथा कुछ अन्य नाइट्रोजन के यौगिक हैं। ये पदार्थ जिन विशेष अंगों द्वारा शरीर से बाहर निकाले जाते हैं उन्हें उत्सर्जन अंग कहते हैं। पौधों एवं प्राणियों दोनों में उत्सर्जन की क्रिया होती है परन्तु पौधों में कोई विशेष उत्सर्जन-अंग या तंत्र नहीं होता है अतः पौधे अपने उत्सर्जी पदार्थ पत्तियों, छालों, फलों, बीजों के माध्यम से शरीर से निष्कासित कर देते हैं। प्राणियों में सभी उत्सर्जी पदार्थों के शरीर से बाहर निकालने की लिए उत्सर्जी अंग पाए जाते हैं। मेरूदण्डी प्राणियों में मुख्य उत्सर्जी अंग वृक्क (चित्रित) है जो गहरे लाल रंग का सेम की बीज की आकृति का होता है। वृक्क अपने लाखों वृक्क नलिकाओं के माध्यम से रक्त को छानकर शुद्ध करता है एवं छने हुए वर्ज्य पदार्थों को मूत्र के माध्यम से निष्कासित कर देता है। .

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उपग्रह

ERS 2) अन्तरिक्ष उड़ान (spaceflight) के संदर्भ में, उपग्रह एक वस्तु है जिसे मानव (USA 193) .

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उष्मागतिकी

भौतिकी में उष्मागतिकी (उष्मा+गतिकी .

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छद्म बल

छद्म बल (fictitious force या pseudo force या d'Alembert force एक आभासी बल है जो उन सभी द्रव्यमानों पर लगता है जिनकी गति को किसी अजड़त्वीय सन्दर्भ फ्रेम का उपयोग करके वर्णित किया गया हो। उदाहरण के लिये, घूर्णी फ्रेम (rotating reference frame) में यदि किसी पिण्ड की गति का वर्णन करना हो तो उस पर लगने वाले वास्तविक बलों के अलावा आभासी बल या बलों को भी उस पिण्ड पर लगाना पड़ेगा। .

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निवर्तमानआने वाली
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