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प्रमेय

सूची प्रमेय

पाइथागोरस का प्रमेय; इसे प्राचीन भारतीय गणितज्ञ बौधायन ने सबसे पहले प्रस्तुत किया था। प्रमेय (Theorem) का शाब्दिक अर्थ है - ऐसा कथन जिसे प्रमाण द्वारा सिद्ध किया जा सके। इसे साध्य भी कहते हैं। गणित में (और विशेषकर रेखागणित में) बहुत से प्रमेय हैं। प्रमेयों की विशेषता है कि उन्हें स्वयंसिद्धों (axioms) एवं सामान्य तर्क (deductive logic) से सिद्ध किया जा सकता है। .

सामग्री की तालिका

  1. 4 संबंधों: निर्मेय, बौधायन, ज्यामिति के प्रमुख प्रमेय, गणित

  2. कथन
  3. गणितीय शब्दावली
  4. तर्कशास्त्रीय अवधारणाएँ
  5. तार्किक निष्कर्ष
  6. तार्किक व्यंजक

निर्मेय

परकार और पटरी किसी रेखा-खण्ड का लम्ब-समद्विभाजक खींचना पटरी एवं परकार द्वारा समषटभुज का निर्माण किसी वृत्त के समान क्षेत्रफल वाले वर्ग का निर्माण ज्यामिति में किसी ज्यामितीय निर्माण (construction) से सम्बन्धित समस्या को निर्मेय कहते हैं। निर्मेय का अर्थ है - 'जिसका निर्माण करना है, वह'। ये निर्माण केवल पटरी और परकार (ruler-and-compass) की सहायता से बनाने होते हैं, चाँदा इत्यादि के प्रयोग से नहीं। .

देखें प्रमेय और निर्मेय

बौधायन

बौधायन भारत के प्राचीन गणितज्ञ और शुल्ब सूत्र तथा श्रौतसूत्र के रचयिता थे। ज्यामिति के विषय में प्रमाणिक मानते हुए सारे विश्व में यूक्लिड की ही ज्यामिति पढ़ाई जाती है। मगर यह स्मरण रखना चाहिए कि महान यूनानी ज्यामितिशास्त्री यूक्लिड से पूर्व ही भारत में कई रेखागणितज्ञ ज्यामिति के महत्वपूर्ण नियमों की खोज कर चुके थे, उन रेखागणितज्ञों में बौधायन का नाम सर्वोपरि है। उस समय भारत में रेखागणित या ज्यामिति को शुल्व शास्त्र कहा जाता था। .

देखें प्रमेय और बौधायन

ज्यामिति के प्रमुख प्रमेय

* जब दो सरल रेखायें एक दूसरे को काटतीं हैं तो इस प्रकार बने शीर्षाभिमुख कोण (opposite angles) बराबर होते हैं।.

देखें प्रमेय और ज्यामिति के प्रमुख प्रमेय

गणित

पुणे में आर्यभट की मूर्ति ४७६-५५० गणित ऐसी विद्याओं का समूह है जो संख्याओं, मात्राओं, परिमाणों, रूपों और उनके आपसी रिश्तों, गुण, स्वभाव इत्यादि का अध्ययन करती हैं। गणित एक अमूर्त या निराकार (abstract) और निगमनात्मक प्रणाली है। गणित की कई शाखाएँ हैं: अंकगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति, सांख्यिकी, बीजगणित, कलन, इत्यादि। गणित में अभ्यस्त व्यक्ति या खोज करने वाले वैज्ञानिक को गणितज्ञ कहते हैं। बीसवीं शताब्दी के प्रख्यात ब्रिटिश गणितज्ञ और दार्शनिक बर्टेंड रसेल के अनुसार ‘‘गणित को एक ऐसे विषय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें हम जानते ही नहीं कि हम क्या कह रहे हैं, न ही हमें यह पता होता है कि जो हम कह रहे हैं वह सत्य भी है या नहीं।’’ गणित कुछ अमूर्त धारणाओं एवं नियमों का संकलन मात्र ही नहीं है, बल्कि दैनंदिन जीवन का मूलाधार है। .

देखें प्रमेय और गणित

यह भी देखें

कथन

गणितीय शब्दावली

तर्कशास्त्रीय अवधारणाएँ

तार्किक निष्कर्ष

तार्किक व्यंजक