सामग्री की तालिका
7 संबंधों: ताल, धातु, भारतीय संगीत, मानव स्वर, संस्कृत भाषा, संगीत, स्वर वर्ण।
- भारतीय शास्त्रीय संगीत
- हिन्दुस्तानी संगीत शब्दावली
ताल
तबले में ताल का प्रयोग्। संगीत में समय पर आधारित एक निश्चित ढांचे को ताल कहा जाता है। शास्त्रीय संगीत में ताल का बड़ी अहम भूमिका होती है। संगीत में ताल देने के लिये तबले, मृदंग, ढोल और मँजीरे आदि का व्यवहार किया जाता है। प्राचीन भारतीय संगीत में मृदंग, घटम् इत्यादि का प्रयोग होता है। आधुनिक हिन्दुस्तानी संगीत में तबला सर्वाधिक लोकप्रिय है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में प्रयुक्त कुछ तालें इस प्रकार हैं: दादरा, झपताल, त्रिताल, एकताल। तंत्री वाद्यों की एक शैली ताल के विशेष चलन पर आधारित है। मिश्रबानी में डेढ़ और ढ़ाई अंतराल पर लिए गए मिज़राब के बोल झप-ताल, आड़ा चार ताल और झूमरा का प्रयोग करते हैं। संगीत के संस्कृत ग्रंथों में ताल दो प्रकार के माने गए हैं—मार्ग और देशी। भरत मुनि के मत से मार्ग ६० हैं— चंचत्पुट, चाचपुट, षट्पितापुत्रक, उदघट्टक, संनिपात, कंकण, कोकिलारव, राजकोलाहल, रंगविद्याधर, शचीप्रिय, पार्वतीलोचन, राजचूड़ामणि, जयश्री, वादकाकुल, कदर्प, नलकूबर, दर्पण, रतिलीन, मोक्षपति, श्रीरंग, सिंहविक्रम, दीपक, मल्लिकामोद, गजलील, चर्चरी, कुहक्क, विजयानंद, वीरविक्रम, टैंगिक, रंगाभरण, श्रीकीर्ति, वनमाली, चतुर्मुख, सिंहनंदन, नंदीश, चंद्रबिंब, द्वितीयक, जयमंगल, गंधर्व, मकरंद, त्रिभंगी, रतिताल, बसंत, जगझंप, गारुड़ि, कविशेखर, घोष, हरवल्लभ, भैरव, गतप्रत्यागत, मल्लताली, भैरव- मस्तक, सरस्वतीकंठाभरण, क्रीड़ा, निःसारु, मुक्तावली, रंग- राज, भरतानंद, आदितालक, संपर्केष्टक। इसी प्रकार १२० देशी ताल गिनाए गए हैं। इन तालों के नामों में भिन्न भिन्न ग्रंथों में विभिन्नता देखी जाती हैं। ताल में परिवर्तन / ताल माला: - ताल में परिवर्तन / ताल माला एक राग में हर पंक्ति में ताल परिवर्तन / वृद्धि करते हुये राग को गाया जाता है विषम से है तो विषम से तथा सम से है तो सम से। जैसे 10 मात्रा से राग के विभिन्न भाषा अर्थात शुरू, अगली पंक्ति 12 मात्रा, अन्य पंक्तियां भी बढ़ते क्रम से गायी जाती है। ताल माला आरोही आदेश में बढ़ती हैं। दोहरीकरण / ताल माला में राग का तीन गुना आरोही आदेश में वृद्धि की जाती है। जब एक गायक ताल माला में गायी जाने वाली राग की दोगुन करता है तो आरोही आदेशों (उदाहरणार्थ 18,20,22,24....) बढ़ते क्रम से ताल माला को गाया जाता है, ताल का बदलाव और अजीब के लिए इसी तरह की संख्या में वृद्धि की जाती है। इसका उल्लेख गुरमत ज्ञान समूह, राग रतन, ताल अंक, संगीत शास्त्र में भी दर्शाया गया है। .
देखें स्वर और ताल
धातु
'धातु' के अन्य अर्थों के लिए देखें - धातु (बहुविकल्पी) ---- '''धातुएँ''' - मानव सभ्यता के पूरे इतिहास में सर्वाधिक प्रयुक्त पदार्थों में धातुएँ भी हैं लुहार द्वारा धातु को गर्म करने पर रसायनशास्त्र के अनुसार धातु (metals) वे तत्व हैं जो सरलता से इलेक्ट्रान त्याग कर धनायन बनाते हैं और धातुओं के परमाणुओं के साथ धात्विक बंध बनाते हैं। इलेक्ट्रानिक मॉडल के आधार पर, धातु इलेक्ट्रानों द्वारा आच्छादित धनायनों का एक लैटिस हैं। धातुओं की पारम्परिक परिभाषा उनके बाह्य गुणों के आधार पर दी जाती है। सामान्यतः धातु चमकीले, प्रत्यास्थ, आघातवर्धनीय और सुगढ होते हैं। धातु उष्मा और विद्युत के अच्छे चालक होते हैं जबकि अधातु सामान्यतः भंगुर, चमकहीन और विद्युत तथा ऊष्मा के कुचालक होते हैं। .
देखें स्वर और धातु
भारतीय संगीत
हिन्दुस्तानी संगीत सभा का दुर्लभ चित्र संगीत का रसास्वादन करती हुए एक स्त्री (पंजाब १७५०) भारतीय संगीत प्राचीन काल से भारत मे सुना और विकसित होता संगीत है। इस संगीत का प्रारंभ वैदिक काल से भी पूर्व का है। इस संगीत का मूल स्रोत वेदों को माना जाता है। हिंदु परंपरा मे ऐसा मानना है कि ब्रह्मा ने नारद मुनि को संगीत वरदान में दिया था। पंडित शारंगदेव कृत "संगीत रत्नाकर" ग्रंथ मे भारतीय संगीत की परिभाषा "गीतम, वादयम् तथा नृत्यं त्रयम संगीतमुच्यते" कहा गया है। गायन, वाद्य वादन एवम् नृत्य; तीनों कलाओं का समावेश संगीत शब्द में माना गया है। तीनो स्वतंत्र कला होते हुए भी एक दूसरे की पूरक है। भारतीय संगीत की दो प्रकार प्रचलित है; प्रथम कर्नाटक संगीत, जो दक्षिण भारतीय राज्यों में प्रचलित है और हिन्दुस्तानी संगीत शेष भारत में लोकप्रिय है। भारतवर्ष की सारी सभ्यताओं में संगीत का बड़ा महत्व रहा है। धार्मिक एवं सामाजिक परंपराओं में संगीत का प्रचलन प्राचीन काल से रहा है। इस रूप में, संगीत भारतीय संस्कृति की आत्मा मानी जाती है। वैदिक काल में अध्यात्मिक संगीत को मार्गी तथा लोक संगीत को 'देशी' कहा जाता था। कालांतर में यही शास्त्रीय और लोक संगीत के रूप में दिखता है। वैदिक काल में सामवेद के मंत्रों का उच्चारण उस समय के वैदिक सप्तक या सामगान के अनुसार सातों स्वरों के प्रयोग के साथ किया जाता था। गुरू-शिष्य परंपरा के अनुसार, शिष्य को गुरू से वेदों का ज्ञान मौखिक ही प्राप्त होता था व उन में किसी प्रकार के परिवर्तन की संभावना से मनाही थी। इस तरह प्राचीन समय में वेदों व संगीत का कोई लिखित रूप न होने के कारण उनका मूल स्वरूप लुप्त होता गया। .
देखें स्वर और भारतीय संगीत
मानव स्वर
संगीत से सम्बन्धित 'स्वर' के लिए देखें - स्वर ---- स्वर (Voice) या कंठध्वनि की उत्पत्ति उसी प्रकार के कंपनों से होती है जिस प्रकार वाद्ययंत्र से ध्वनि की उत्पत्ति होती है। अत: स्वरयंत्र और वाद्ययंत्र की रचना में भी कुछ समानता है। वायु के वेग से बजनेवाले वाद्ययंत्र के समकक्ष मनुष्य तथा अन्य स्तनधारी प्राणियों में निम्नलिखित अंग होते हैं: 1.
देखें स्वर और मानव स्वर
संस्कृत भाषा
संस्कृत (संस्कृतम्) भारतीय उपमहाद्वीप की एक शास्त्रीय भाषा है। इसे देववाणी अथवा सुरभारती भी कहा जाता है। यह विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। संस्कृत एक हिंद-आर्य भाषा हैं जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार का एक शाखा हैं। आधुनिक भारतीय भाषाएँ जैसे, हिंदी, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, आदि इसी से उत्पन्न हुई हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है। संस्कृत में वैदिक धर्म से संबंधित लगभग सभी धर्मग्रंथ लिखे गये हैं। बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान) तथा जैन मत के भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गये हैं। आज भी हिंदू धर्म के अधिकतर यज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होती हैं। .
देखें स्वर और संस्कृत भाषा
संगीत
नेपाल की नुक्कड़ संगीत-मण्डली द्वारा पारम्परिक संगीत सुव्यवस्थित ध्वनि, जो रस की सृष्टि करे, संगीत कहलाती है। गायन, वादन व नृत्य ये तीनों ही संगीत हैं। संगीत नाम इन तीनों के एक साथ व्यवहार से पड़ा है। गाना, बजाना और नाचना प्रायः इतने पुराने है जितना पुराना आदमी है। बजाने और बाजे की कला आदमी ने कुछ बाद में खोजी-सीखी हो, पर गाने और नाचने का आरंभ तो न केवल हज़ारों बल्कि लाखों वर्ष पहले उसने कर लिया होगा, इसमें संदेह नहीं। गान मानव के लिए प्राय: उतना ही स्वाभाविक है जितना भाषण। कब से मनुष्य ने गाना प्रारंभ किया, यह बतलाना उतना ही कठिन है जितना कि कब से उसने बोलना प्रारंभ किया। परंतु बहुत काल बीत जाने के बाद उसके गान ने व्यवस्थित रूप धारण किया। जब स्वर और लय व्यवस्थित रूप धारण करते हैं तब एक कला का प्रादुर्भाव होता है और इस कला को संगीत, म्यूजिक या मौसीकी कहते हैं। .
देखें स्वर और संगीत
स्वर वर्ण
स्वर (vowel) उन ध्वनियों को कहते हैं जो बिना किसी अन्य वर्णों की सहायता के उच्चारित किये जाते हैं। .
देखें स्वर और स्वर वर्ण
यह भी देखें
भारतीय शास्त्रीय संगीत
- अकेले हम अकेले तुम
- अलंकार (संगीत)
- ऋषभ
- ख़याल
- गमक
- गांधार स्वर
- ग्वालियर घराना
- ठाट
- ठुमरी
- ताल
- नन्दिकेश्वर
- भारतीय शास्त्रीय संगीत के रागों की सूची
- महफ़िल
- शास्त्रीय संगीत
- श्रुति (संगीत)
- संगीतरत्नाकर
- स्वर
- स्वरलिपि
- हास्य