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ख़याल

सूची ख़याल

ख्याल या ख़याल भारतीय संगीत का एक रूप है। वस्तुत: यह ध्रुपद का ही एक भेद है। अंतर केवल इतना ही है कि ध्रुपद विशुद्ध भारतीय है। ख्याल में भारतीय और फारसी संगीत का मिश्रण है। .

3 संबंधों: ध्रुपद, भारतीय संगीत, ख्याल (मालवी गीत)

ध्रुपद

नाट्यशास्र के अनुसार वर्ण, अलंकार, गान- क्रिया, यति, वाणी, लय आदि जहाँ ध्रुव रूप में परस्पर संबद्ध रहें, उन गीतों को ध्रुवा कहा गया है। जिन पदों में उक्त नियम का निर्वाह हो रहा हो, उन्हें ध्रुवपद अथवा ध्रुपद कहा जाता है। शास्रीय संगीत के पद, ख़याल, ध्रुपद आदि का जन्म ब्रजभूमि में होने के कारण इन सबकी भाषा ब्रज है और ध्रुपद का विषय समग्र रूप ब्रज का रास ही है। कालांतर में मुग़लकाल में ख्याल उर्दू की शब्दावली का प्रभाव भी ध्रुपद रचनाओँ पर पड़ा। वृंदावन के निधिवन निकुंज निवासी स्वामी श्री हरिदास ने इनके वर्गीकरण और शास्त्रीयकरण का सबसे पहले प्रयास किया। स्वामी हरिदास की रचनाओं में गायन, वादन और नृत्य संबंधी अनेक पारिभाषिक शब्द, वाद्ययंत्रों के बोल एवं नाम तथा नृत्य की तालों व मुद्राओं के स्पष्ट संकेत प्राप्त होते हैं। सूरदास द्वारा रचित ध्रुवपद अपूर्व नाद- सौंदर्य, गमक एवं विलक्षण शब्द- योजना से ओतप्रोत दिखाई देते हैं। .

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भारतीय संगीत

हिन्दुस्तानी संगीत सभा का दुर्लभ चित्र संगीत का रसास्वादन करती हुए एक स्त्री (पंजाब १७५०) भारतीय संगीत प्राचीन काल से भारत मे सुना और विकसित होता संगीत है। इस संगीत का प्रारंभ वैदिक काल से भी पूर्व का है। इस संगीत का मूल स्रोत वेदों को माना जाता है। हिंदु परंपरा मे ऐसा मानना है कि ब्रह्मा ने नारद मुनि को संगीत वरदान में दिया था। पंडित शारंगदेव कृत "संगीत रत्नाकर" ग्रंथ मे भारतीय संगीत की परिभाषा "गीतम, वादयम् तथा नृत्यं त्रयम संगीतमुच्यते" कहा गया है। गायन, वाद्य वादन एवम् नृत्य; तीनों कलाओं का समावेश संगीत शब्द में माना गया है। तीनो स्वतंत्र कला होते हुए भी एक दूसरे की पूरक है। भारतीय संगीत की दो प्रकार प्रचलित है; प्रथम कर्नाटक संगीत, जो दक्षिण भारतीय राज्यों में प्रचलित है और हिन्दुस्तानी संगीत शेष भारत में लोकप्रिय है। भारतवर्ष की सारी सभ्यताओं में संगीत का बड़ा महत्व रहा है। धार्मिक एवं सामाजिक परंपराओं में संगीत का प्रचलन प्राचीन काल से रहा है। इस रूप में, संगीत भारतीय संस्कृति की आत्मा मानी जाती है। वैदिक काल में अध्यात्मिक संगीत को मार्गी तथा लोक संगीत को 'देशी' कहा जाता था। कालांतर में यही शास्त्रीय और लोक संगीत के रूप में दिखता है। वैदिक काल में सामवेद के मंत्रों का उच्चारण उस समय के वैदिक सप्तक या सामगान के अनुसार सातों स्वरों के प्रयोग के साथ किया जाता था। गुरू-शिष्य परंपरा के अनुसार, शिष्य को गुरू से वेदों का ज्ञान मौखिक ही प्राप्त होता था व उन में किसी प्रकार के परिवर्तन की संभावना से मनाही थी। इस तरह प्राचीन समय में वेदों व संगीत का कोई लिखित रूप न होने के कारण उनका मूल स्वरूप लुप्त होता गया। .

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ख्याल (मालवी गीत)

हास्य प्रधान मालवी गीत और चित्र को ख्याल कहते हैं। किंतु इसका अभिप्राय राजस्थान में एक प्रकार के लोकनाट्य से समझा जाता है जो उत्तर प्रदेश की नौटंकी तथा मालवा के माच से मिलता जुलता है। यह खुले प्रांगण में खेला जाता है। चारों ओर दर्शक बैठते हैं, बीच में रंगमंच के लिए स्थान खाली रहता है। वहाँ ख्याल प्रदर्शित करने वाली मंडली बैठती है; नगाड़ा, ढोल, सारंगी और हारमोनियम का बाजे के रूप में प्रयोग किया जाता है। ख्याल की कथा की अभिव्यक्ति लावनी, दूहा, दोहा, चौबोला, चौपाई, छंद, शेर, कवित्त, छप्पय आदि छंदो तथा पांड, सोरठ, कालंगड़ा, आसावरी अदि किसी राग रागनी में गाकर की जाती है। अभिनेता ऊँचे स्वर से गाता हुआ भूमिका के अनुरूप अभिनय करता है। ख्याल के अभिनेता मंच से बाहर रहकर गणपति और सरस्वती पूजन करते हैं। तदनंतर मंच पर एक एक कर भंगी, भिश्ती आदि आकर मंच की सफाई, झाड़पोेंछ का अभिनय करते हैं। तदनंतर आख्यान का मुख्य नायक उपस्थित होकर आत्मपरिचय देता है और ख्याल आरंभ होता हैं। ख्याल का विषय पौराणिक, ऐतिहासिक अथवा प्रेम कथा होते है। इस नाटक का आरंभ मूलत: वीरपूजा की भावना से हुआ था। अनेक कवियों ने राजस्थानी भाषा में ख्यालों की रचना की है। .

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खयाल, ख्याल

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