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भारतीय शास्त्रीय संगीत के रागों की सूची

सूची भारतीय शास्त्रीय संगीत के रागों की सूची

श्रेणी:भारतीय संगीत.

12 संबंधों: मल्हार राग, राग टोड़ी, राग देश, राग पूरिया धानश्री, राग बहार, राग भैरवी, राग भूपाली, राग मालकौश, राग ललित, राग हंसध्वनि, राग अंजनी टोड़ी, रागदरबारी

मल्हार राग

मल्हार राग/ मेघ मल्हार, हिंदुस्तानी व कर्नाटिक संगीत में पाया जाता है। मल्हार का मतलब बारिश या वर्षा है और माना जाता है कि मल्हार राग के गानों को गाने से वर्षा होता है। मल्हार राग को कर्नाटिक शैली में मधायामावती बुलाया जाता है। तानसेन और मीरा मल्हार राग में गाने गाने के लिए मशहूर थे। माना जाता है के तानसेन के 'मियाँ के मल्हार' गाने से सुखा ग्रस्त प्रदेश में भी बारिश होती थि। मल्हार राग के प्रसिद्द रचनाये: करे करे बदरा घटा घाना घोर घोर मियाँ की मल्हार श्रेणी:राग.

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राग टोड़ी

राग तोड़ी जिसे मियां कि तोड़ी के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि राग तोड़ी अथवा मियाँ कि तोड़ी मियाँ तानसेन के द्वारा रचित है ॥ उत्तर भारतीय संगीत में पं० भातखण्डेजी ने इसे थाट स्वरूप के आधार पर अपने थाट का आश्रय २ाग माना है। इसकी प्रकृती गंभीर है इस राग का भाव विनती या पुकार प्रतीत होती है। इसका गायन समय दिन का दूसरा प्रहर है। इस २ाग मे२ २े ग ध् कोमल एवं निशुद्ध मध्यम तिव्र प्रयोग किया जाता है। जाति सम पूर्ण है ॥.

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राग देश

राग देश बॉलीवुड की 2017 में प्रदर्शित हिन्दी फ़िल्म है जिसका निर्देशन तिग्मांशु धूलिया ने किया है तथा निर्माता गुरदीप सिंह सप्पल और राज्यसभा टीवी हैं। फिल्म की कहानी आज़ाद हिंद फौज के अफसरों कर्नल प्रेम कुमार सहगल, लेफ्टिनेंट कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लों तथा मेजर जनरल शाह नवाज खान पर लाल किले में चले मुकदमे पर आधारित है। इन अधिकारियों पर चले कोर्ट मार्शल को लाल किला ट्रायल भी कहा जाता है। कुणाल कपूर, मोहित मारवाह और अमित साध ने इस फिल्म में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं। .

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राग पूरिया धानश्री

Puriyadansire.

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राग बहार

राग बहार काफ़ी थाट से उत्पन्न षाड़व षाड़व जाति का राग है। अर्थात इसके आरोह तथा अवरोह से छे छे स्वरों का प्रयोग होता है। इसके गाने का समय रात्रि का दूसरा प्रहर है। गांधार और निषाद दोनो स्वर कोमल है लेकिन गायक अक्सर दोनों निषाद लेते हैं, शुद्ध निषाद का प्रयोग मध्य सप्तक में होता है और वह भी आरोह में। अन्य स्वर शुद्ध लगते हैं। कुछ गायक मध्यम के साथ विवादी के रूप में शुद्ध गंधार का भी थोड़ा सा प्रयोग करते हैं। लेकिन यह नियम नहीं, इसके अवरोह में कभी कभी ऋषभ और धैवत दोनो वर्जित करते हुए निधनिप ऐसा प्रयोग होता है पर यह आवश्यक नहीं। आरोह में गमपगमधनिसां इस प्रकार पंचम का वक्र प्रयोग भी होता है जिससे रागरंजकता बढ़ती है। इस राग का वादी स्वर षडज तथा संवादी स्वर मध्यम हैं। राग विस्तार मध्य व तार सप्तक में होने के कारण यह चंचल प्रकृति का राग माना जाता है। मपगम धनिसां इसकी मुख्य पकड़ है। यह राग बाकी अनेक रागों के साथ मिलाकर भी गाया जाता हैं। जिस राग के साथ उसे मिश्रित किया जाता है उसे उस राग के साथ संयुक्त नाम से जाना जाता है। उदाहरण के लिए बागेश्री राग में इसे मिश्र करने से बागेश्री-बहार, वसंत-बहार, भैरव-बहार इत्यादि। परंतु मिश्रण का एक नियम हे कि जिसमें बहार मिश्र किया जाय वह राग शुद्ध मध्यम या पंचम में होना चाहिए क्योंकि बहार का मिश्रण शुद्ध मध्यम से ही शुरू होता है। .

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राग भैरवी

राग भैरवी के बारे में- रे ग ध नि कोमल राखत, मानत मध्यम वादी। प्रात: समय जाति संपूर्ण, सोहत सा संवादी॥ इस राग की उत्पत्ति ठाठ भैरवी से मानी गई है। इसमें रे, ग, ध और नि, कोमल लगते हैं और म को वादी तथा सा को संवादी स्वर माना गया है। गायन समय प्रात:काल है। मतभेद- इस राग में कुछ संगीतज्ञ प सा किंतु अधिकांश म-सा वादी संवादी मानते हैं। विशेषता- १.ये एक अत्यंत मधुर राग है और इस कारण इसे सिर्फ़ प्रात: समय ही नहीं बल्कि हर समय गाते बजाते हैं। सभी समारोहों का समापन इसी राग से करने की प्रथा सी बन गयी है। २.आजकल इस राग में बारहों स्वर प्रयोग किये जाने लगे हैं, भले ही इसके मूल रूप में शुद्ध रे, ग, ध, नि लगाना निषेध माना गया है। ३.इससे मिलता जुलता राग है- बिलासखानी तोड़ी। आरोह- सा रे॒ ग॒ म प ध॒ नि॒ सां। अवरोह- सां नि॒ ध॒ प म ग॒ रे॒ सा। पकड़- म, ग॒ रे॒ ग॒, सा रे॒ सा, ध़॒ नि़॒ सा। (़ .

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राग भूपाली

राग परिचय-- थाट- कल्याण वर्जित स्वर- म, नि जाति- औडव-औडव वादी- ग संवादी-ध गायन समय- रात्रि का प्रथम प्रहर इस राग का चलन मुख्यत: मन्द्र और मध्य सप्तक के प्रतह्म हिस्से में होती है (पूर्वांग प्रधान राग)। इस राग में ठुमरी नहीं गायी जाती मगर, बड़ा खयाल, छोटा खयाल, तराना आदि गाया जाता है। कर्नाटक संगीत में इसे मोहन राग कहते हैं। आरोह- सा, रे, ग, प, ध, सा। अवरोह- सां, ध, प, ग, रे, सा। पकड़- पडडग ध प ग, ग रे सा ध़, सा रे ग, प ग, ध प, ग रे सा Filmi songs on This Raga; Sehra; Pankh Hoti To Udd Aati Re, Love In Tokyo; Sayonara,Sayonara, Chori Chori; Rasik Blma, Ahh; Yeh Sham Ki Tanhaiyan, श्रेणी:राग.

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राग मालकौश

राग मालकौंस,मालकंस,मालकोस नाम से भी जाना जाता है ग ध नी कोमल स्वर तथा अन्य स्वर शुद्ध है रे प वर्जित स्वर है जाति औडव-औडव है तथा रात के तीसरे प्रहर को गाया जाता है यह गंभीर प्रकृति का राग है तथा यह एक पुरूष राग है.

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राग ललित

राग बसंत या राग वसंत शास्त्रीय संगीत की हिंदुस्तानी पद्धति का राग है। राग ललित सन्धिप्रकाश रागो के अन्तर्गत आता है। यह एक गम्भी्र प्रकृति का उत्तरांग प्रधान राग है। इसे गाते व बजाते समय इसका विस्तार मन्द्र व मध्य सप्तकों में अधिक होता है। राग ललित दो मतों से गाया जाता है शुद्ध धैवत व कोमल धैवत परन्तु शु्द्ध धैवत से यह राग अधिक प्रचार में है। .

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राग हंसध्वनि

राग हंसध्वनि कनार्टक पद्धति का राग है परन्तु आजकल इसका उत्तर भारत मे भी काफी प्रचार है। इसके थाट के विषय में दो मत हैं कुछ विद्वान इसे बिलावल थाट तो कुछ कल्याण थाट जन्य भी मानते हैं। इस राग में मध्यम तथा धैवत स्वर वर्जित हैं अत: इसकी जाति औडव-औडव मानी जाती है। सभी शुद्ध स्वरों के प्रयोग के साथ ही पंचम रिषभ,रिषभ निषाद एवम षडज पंचम की स्वर संगतियाँ बार बार प्रयुक्त होती हैं। इसके निकट के रागो में राग शंकरा का नाम लिया जाता है। गायन समय रात्रि का द्वितीय प्रहर है। .

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राग अंजनी टोड़ी

राग अंजनी तोड़ी हिंदुस्तानी संगीत में एक राग है, जो किसी गीत के बीच में पंचम और मध्यम को जोड़ता है। श्रेणी:राग.

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रागदरबारी

रागदरबारी विख्यात हिन्दी साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल की प्रसिद्ध व्यंग्य रचना है जिसके लिये उन्हें सन् 1970 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह ऐसा उपन्यास है जो गाँव की कथा के माध्यम से आधुनिक भारतीय जीवन की मूल्यहीनता को सहजता और निर्ममता से अनावृत करता है। शुरू से अन्त तक इतने निस्संग और सोद्देश्य व्यंग्य के साथ लिखा गया हिंदी का शायद यह पहला वृहत् उपन्यास है। ‘राग दरबारी’ का लेखन 1964 के अन्त में शुरू हुआ और अपने अन्तिम रूप में 1967 में समाप्त हुआ। 1968 में इसका प्रकाशन हुआ और 1969 में इस पर श्रीलाल शुक्ल को साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिला। 1986 में एक दूरदर्शन-धारावाहिक के रूप में इसे लाखों दर्शकों की सराहना प्राप्त हुई। राग दरबारी व्यंग्य-कथा नहीं है। इसमें श्रीलाल शुक्ल जी ने स्वतंत्रता के बाद के भारत के ग्रामीण जीवन की मूल्यहीनता को परत-दर-परत उघाड़ कर रख दिया है। राग दरबारी की कथा भूमि एक बड़े नगर से कुछ दूर बसे गाँव शिवपालगंज की है जहाँ की जिन्दगी प्रगति और विकास के समस्त नारों के बावजूद, निहित स्वार्थों और अनेक अवांछनीय तत्वों के आघातों के सामने घिसट रही है। शिवपालगंज की पंचायत, कॉलेज की प्रबन्ध समिति और कोआपरेटिव सोसाइटी के सूत्रधार वैद्यजी साक्षात वह राजनीतिक संस्कृति हैं जो प्रजातन्त्र और लोकहित के नाम पर हमारे चारों ओर फल फूल रही हैं। .

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