सामग्री की तालिका
9 संबंधों: पंचसिद्धांतिका, भारत, समयमापन, सापेक्षवाद, संयुक्त राज्य, सूर्यसिद्धान्त, हिन्दू काल गणना, घड़ी, आपेक्षिकता सिद्धांत।
- ज्ञानमीमांसा की अवधारणाएँ
- तत्वमीमांसा की अवधारणाएँ
- बोध
- भौतिक परिघटनाएँ
- यथार्थता
- सत्तामीमांसा
- सौन्दर्यशास्त्र की अवधारणाएँ
पंचसिद्धांतिका
पंचसिद्धांतिका भारत के प्राचीन खगोलशास्त्री, ज्योतिषाचार्य वराह मिहिर का एक ग्रंथ है। महाराजा विक्रमादित्य के काल में इस ग्रंथ की रचना हुई थी। वाराहमिहिर ने तीन महत्वपूर्ण ग्रन्थ वृहज्जातक, वृहत्संहिता और पंचसिद्धांतिका की रचना की। पंचसिद्धान्तिका में खगोल शास्त्र का वर्णन किया गया है। इसमें वाराहमिहिर के समय प्रचलित पाँच खगोलीय सिद्धांतों का वर्णन है। इस ग्रन्थ में ग्रह और नक्षत्रों का गहन अध्ययन किया गया है। इन सिद्धांतों द्वारा ग्रहों और नक्षत्रों के समय और स्थिति की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इन पुस्तकों में त्रिकोणमिति के महत्वपूर्ण सूत्र दिए हुए हैं, जो वाराहमिहिर के त्रिकोणमिति ज्ञान के परिचायक हैं। पंचसिद्धांतिका में वराहमिहिर से पूर्व प्रचलित पाँच सिद्धांतों का वर्णन है जो सिद्धांत पोलिशसिद्धांत, रोमकसिद्धांत, वसिष्ठसिद्धांत, सूर्यसिद्धांत तथा पितामहसिद्धांत हैं। वराहमिहिर ने इन पूर्वप्रचलित सिद्धांतों की महत्वपूर्ण बातें लिखकर अपनी ओर से 'बीज' नामक संस्कार का भी निर्देश किया है, जिससे इन सिद्धांतों द्वारा परिगणित ग्रह दृश्य हो सकें। इस ग्रंथ की रचना का काल ई°५२० माना जाता है। .
देखें समय और पंचसिद्धांतिका
भारत
भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .
देखें समय और भारत
समयमापन
जब समय बीतता है, तब घटनाएँ घटित होती हैं तथा चलबिंदु स्थानांतरित होते हैं। इसलिए दो लगातार घटनाओं के होने अथवा किसी गतिशील बिंदु के एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक जाने के अंतराल (प्रतीक्षानुभूति) को समय कहते हैं। समय नापने के यंत्र को घड़ी अथवा घटीयंत्र कहते हैं। इस प्रकार हम यह भी कह सकते हैं कि समय वह भौतिक तत्व है जिसे घटीयंत्र से नापा जाता है। सापेक्षवाद के अनुसार समय दिग्देश के सापेक्ष है। अत: इस लेख में समयमापन पृथ्वी की सूर्य के सापेक्ष गति से उत्पन्न दिग्देश के सापेक्ष समय से लिया जाएगा। समय को नापने के लिए सुलभ घटीयंत्र पृथ्वी ही है, जो अपने अक्ष तथा कक्ष में घूमकर हमें समय का बोध कराती है; किंतु पृथ्वी की गति हमें दृश्य नहीं है। पृथ्वी की गति के सापेक्ष हमें सूर्य की दो प्रकार की गतियाँ दृश्य होती हैं, एक तो पूर्व से पश्चिम की तरफ पृथ्वी की परिक्रमा तथा दूसरी पूर्व बिंदु से उत्तर की ओर और उत्तर से दक्षिण की ओर जाकर, कक्षा का भ्रमण। अतएव व्यावहारिक दृष्टि से हम सूर्य से ही काल का ज्ञान प्राप्त करते हैं। .
देखें समय और समयमापन
सापेक्षवाद
सापेक्षवाद सिद्धान्त का आधार यह है कि भौतिकी के नियम अविकारी वेग से प्रभावित नहीं होते। यह सिद्धान्त आन्री पांकरे (Henri Poincare) और आइन्सटाइन के नाम से जुडा हुआ है। इसमें एक रोचक परोक्षक यमल परोक्षक है।.
देखें समय और सापेक्षवाद
संयुक्त राज्य
संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America) (यू एस ए), जिसे सामान्यतः संयुक्त राज्य (United States) (यू एस) या अमेरिका कहा जाता हैं, एक देश हैं, जिसमें राज्य, एक फ़ेडरल डिस्ट्रिक्ट, पाँच प्रमुख स्व-शासनीय क्षेत्र, और विभिन्न अधिनस्थ क्षेत्र सम्मिलित हैं। 48 संस्पर्शी राज्य और फ़ेडरल डिस्ट्रिक्ट, कनाडा और मेक्सिको के मध्य, केन्द्रीय उत्तर अमेरिका में हैं। अलास्का राज्य, उत्तर अमेरिका के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित है, जिसके पूर्व में कनाडा की सीमा एवं पश्चिम मे बेरिंग जलसन्धि रूस से घिरा हुआ है। वहीं हवाई राज्य, मध्य-प्रशान्त में स्थित हैं। अमेरिकी स्व-शासित क्षेत्र प्रशान्त महासागर और कॅरीबीयन सागर में बिखरें हुएँ हैं। 38 लाख वर्ग मील (98 लाख किमी2)"", U.S.
देखें समय और संयुक्त राज्य
सूर्यसिद्धान्त
सूर्यसिद्धान्त भारतीय खगोलशास्त्र का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। कई सिद्धान्त-ग्रन्थों के समूह का नाम है। वर्तमान समय में उपलब्ध ग्रन्थ मध्ययुग में रचित ग्रन्थ लगता है किन्तु अवश्य ही यह ग्रन्थ पुराने संस्क्रणों पर आधारित है जो ६ठी शताब्दी के आरम्भिक चरण में रचित हुए माने जाते हैं। भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्रियों ने इसका सन्दर्भ भी लिया है, जैसे आर्यभट्ट और वाराहमिहिर, आदि.
देखें समय और सूर्यसिद्धान्त
हिन्दू काल गणना
हिन्दू समय मापन, लघुगणकीय पैमाने पर प्राचीन हिन्दू खगोलीय और पौराणिक पाठ्यों में वर्णित समय चक्र आश्चर्यजनक रूप से एक समान हैं। प्राचीन भारतीय भार और मापन पद्धतियां, अभी भी प्रयोग में हैं (मुख्यतः हिन्दू और जैन धर्म के धार्मिक उद्देश्यों में)। यह सभी सुरत शब्द योग में भी पढ़ाई जातीं हैं। इसके साथ साथ ही हिन्दू ग्रन्थों मॆं लम्बाई, भार, क्षेत्रफ़ल मापन की भी इकाइयाँ परिमाण सहित उल्लेखित हैं। हिन्दू ब्रह्माण्डीय समय चक्र सूर्य सिद्धांत के पहले अध्याय के श्लोक 11–23 में आते हैं.
देखें समय और हिन्दू काल गणना
घड़ी
एक घड़ी घड़ी वह यंत्र है जो संपूर्ण स्वयंचालित प्रणाली द्वारा किसी न किसी रूप में वर्तमान समय को प्रदर्शित करती है। घड़ियाँ कई सिद्धान्तों से बनायी जाती हैं। जैसे धूप घड़ी, यांत्रिक घड़ी, एलेक्ट्रॉनिक घड़ी आदि अधिकतर घड़ियों में नियमित रूप से आवर्तक (recurring) क्रियाएँ उत्पन्न करने की स्वयंचालित व्यवस्था होती है, जैसे लोलक का दोलन, सर्पिल कमानियों (spiral springs) तथा संतुलन चक्रों (balancewheels) को दोलन, दाबविद्युत् मणिभों (piezo-electric crystals) का दोलन, अथवा उच्च आवृत्तिवाले संकेतों की परमाणुओं की मूलअवस्था की अतिसूक्ष्म संरचना (hyperfine structure) से तुलना इत्यादि। प्राचीन काल में धूप के कारण पड़नेवाली किसी वृक्ष अथवा अन्य स्थिर वस्तु की छाया के द्वारा समय के अनुमान किया जाता था। ऐसी धूपधड़ियों का प्रचलन अत्यंत प्राचीन काल से होता आ रहा है जिनमें आकाश में सूर्य के भ्रमण के करण किसी पत्थर या लोहे के स्थिर टुकड़े की परछाई की गति में होनेवाले परिवर्तन के द्वारा "घड़ी" या "प्रहर" का अनुमान किया जाता था। बदली के दिनों में, अथवा रात में, समय जानने के लिय जल घड़ी का आविष्कार चीन देशवासियों ने लगभग तीन हजार वर्ष पहले किया था। कालांतर में यह विधि मिस्रियों, यूनानियों एवं रोमनों को भी ज्ञात हुई। जलघड़ी में दो पात्रों का प्रयोग होता था। एक पात्र में पानी भर दिया जाता या और उसकी तली में छेद कर दिया जाता था। उसमें से थोड़ा थोड़ा जल नियंत्रित बूँदों के रूप में नीचे रखे हुए दूसरे पात्र में गिरता था। इस पात्र में एकत्र जल की मात्रा नाप कर समय अनुमान किया जाता था। बाद में पानी के स्थान पर बालू का प्रयोग होने लगा। इंग्लैंड के ऐल्फ्रेड महान ने मोमबत्ती द्वारा समय का ज्ञान करने की विधि आविष्कृत की। उसने एक मोमबत्ती पर, लंबाई की ओर समान दूरियों पर चिह्र अंकित कर दिए थे। प्रत्येक चिह्र तक मोमबत्ती के जलने पर निश्चित समय व्यतीत होने का ज्ञान होता था। यांत्रिक घड़ियों में अनेक पहिए होते हैं, जो किसी कमानी, लटकते हुए भार अथवा अन्य उपायों द्वारा चलाए जाते हैं। इन्हें किसी दोलनशील व्यवस्था द्वारा इस प्रकार निंयत्रित किया जाता है कि इनकी गति समांग (uniform) होती है। इनके साथ ही इसमें घंटी या घंटा (gong) भी होता है, जो निश्चित अवधियों पर स्वयं ही बज उठता है और समय की सूचना देता है। .
देखें समय और घड़ी
आपेक्षिकता सिद्धांत
सामान्य आपेक्षिकता में वर्णित त्रिविमीय स्पेस-समय कर्वेचर की एनालॉजी के का द्विविमीयप्रक्षेपण। आपेक्षिकता सिद्धांत अथवा सापेक्षिकता का सिद्धांत (अंग्रेज़ी: थ़िओरी ऑफ़ रॅलेटिविटि), या केवल आपेक्षिकता, आधुनिक भौतिकी का एक बुनियादी सिद्धांत है जिसे अल्बर्ट आइंस्टीन ने विकसित किया और जिसके दो बड़े अंग हैं - विशिष्ट आपेक्षिकता (स्पॅशल रॅलॅटिविटि) और सामान्य आपेक्षिकता (जॅनॅरल रॅलॅटिविटि)। फिर भी कई बार आपेक्षिकता या रिलेटिविटी शब्द को गैलीलियन इन्वैरियन्स के संदर्भ में भी प्रयोग किया जाता है। थ्योरी ऑफ् रिलेटिविटी नामक इस शब्द का प्रयोग सबसे पहले सन १९०६ में मैक्स प्लैंक ने किया था। यह अंग्रेज़ी शब्द समूह "रिलेटिव थ्योरी" (Relativtheorie) से लिया गया था जिसमें यह बताया गया है कि कैसे यह सिद्धांत प्रिंसिपल ऑफ रिलेटिविटी का प्रयोग करता है। इसी पेपर के चर्चा संभाग में अल्फ्रेड बुकरर ने प्रथम बार "थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी" (Relativitätstheorie) का प्रयोग किया था। .
देखें समय और आपेक्षिकता सिद्धांत
यह भी देखें
ज्ञानमीमांसा की अवधारणाएँ
- अनभिज्ञता
- अनुभव
- अन्तःप्रज्ञा
- अन्तर्दर्शन
- अमूर्तन
- आगमनात्मक तर्क
- आत्मप्रवंचना
- उपमान
- कलावाद
- क्रांतिकारी बदलाव
- चेतना
- जड़सूत्र
- ज्ञान
- ज्ञान (भारतीय)
- परोक्षक
- प्रक्रियात्मक ज्ञान
- प्रज्ञा
- प्रमाण (भारतीय दर्शन)
- प्रमाणभार
- मीम
- वर्णात्मक ज्ञान
- वास्तविकता
- विचार
- विश्वास
- संदेह
- समय
- साक्ष्य
- सामाजिक प्रगति
तत्वमीमांसा की अवधारणाएँ
- अन्तर्दर्शन
- अभिभाव अमूर्तन
- अमूर्तन
- अर्नास्तत्व
- अवधारणा
- आगमनात्मक तर्क
- आत्मा
- आशय
- उदगमन
- गुफ़ा की कथा
- चिंतन
- जड़सूत्र
- तंत्र (सिस्टम)
- तदनुभूति
- दिक्
- दृग्विषय
- परमनिरपेक्ष
- परोक्षक
- प्रकार-टोकन अंतर
- प्रतीत्यसमुत्पाद
- भौतिक निकाय
- मन
- मुक्त कर्म
- मूल्यमीमांसा
- वास्तविकता
- विचार
- संतात्यक (माप)
- संयोग
- समय
- सामाजिक प्रगति
- सूचना
बोध
- अनुभव
- अर्नास्तत्व
- अवगम
- गेस्टाल्ट मनोविज्ञान
- तारत्व
- दर्पण परीक्षण
- दृश्य बोध
- प्रेक्षण
- विभ्रम
- समय
- सर्वस्व
भौतिक परिघटनाएँ
- अति तरलता
- अतिचालकता
- अनुचुम्बकत्व
- अपवर्तन
- उद्दीप्त उत्सर्जन
- कणाभ
- कॉरिऑलिस प्रभाव
- क्वांटीकरण (भौतिकी)
- गति (भौतिकी)
- गुप्त ऊष्मा
- घटना क्षितिज
- तापविद्युत प्रभाव
- तापोपचार
- नाभिकीय अभिक्रिया
- नाभिकीय संलयन
- निर्वात
- परावर्तन (भौतिकी)
- पूर्ण आन्तरिक परावर्तन
- प्रकीर्णन
- प्रावस्था संक्रमण
- भौतिक गुण
- भौतिक परिवर्तन
- मैगनस प्रभाव
- लॉरेंज बल
- लौहचुम्बकत्व
- विकिरण
- विद्युत्-चुम्बकीय प्रेरण
- विवर्तन
- संवहन
- समय
- सेरेन्कोव विकिरण
- स्पन्द
यथार्थता
सत्तामीमांसा
- अन्तर्दर्शन
- अर्नास्तत्व
- अवधारणा
- उदगमन
- कार्दाशेव मापनी
- चिंतन
- चेतना
- जग
- जड़सूत्र
- नेति नेति
- परमनिरपेक्ष
- प्रतिज्ञप्ति
- भौतिक निकाय
- भौतिकवाद
- मात्रा
- वर्गिकी
- वास्तविकता
- विश्लेषण
- सत्तामीमांसा
- समय
- सर्वस्व
- सामाजिक प्रगति
- सिद्धांत (थिअरी)
सौन्दर्यशास्त्र की अवधारणाएँ
- उदात्त
- कला
- कलाकृति
- कलावाद
- कामोद्दीपक
- पाश्चात्य काव्यशास्त्र
- फैशन
- मनोरंजन
- मूल्यमीमांसा
- रस (काव्य शास्त्र)
- ललित कला
- समय
- सामाजिक प्रगति
- सुन्दरता
- सृजन
- स्वर-संगति
वक्त के रूप में भी जाना जाता है।