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बृहस्पति (ग्रह)

सूची बृहस्पति (ग्रह)

बृहस्पति सूर्य से पांचवाँ और हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। यह एक गैस दानव है जिसका द्रव्यमान सूर्य के हजारवें भाग के बराबर तथा सौरमंडल में मौजूद अन्य सात ग्रहों के कुल द्रव्यमान का ढाई गुना है। बृहस्पति को शनि, अरुण और वरुण के साथ एक गैसीय ग्रह के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इन चारों ग्रहों को बाहरी ग्रहों के रूप में जाना जाता है। यह ग्रह प्राचीन काल से ही खगोलविदों द्वारा जाना जाता रहा है तथा यह अनेकों संस्कृतियों की पौराणिक कथाओं और धार्मिक विश्वासों के साथ जुड़ा हुआ था। रोमन सभ्यता ने अपने देवता जुपिटर के नाम पर इसका नाम रखा था। इसे जब पृथ्वी से देखा गया, बृहस्पति -2.94 के सापेक्ष कांतिमान तक पहुंच सकता है, छाया डालने लायक पर्याप्त उज्जवल, जो इसे चन्द्रमा और शुक्र के बाद आसमान की औसत तृतीय सर्वाधिक चमकीली वस्तु बनाता है। (मंगल ग्रह अपनी कक्षा के कुछ बिंदुओं पर बृहस्पति की चमक से मेल खाता है)। बृहस्पति एक चौथाई हीलियम द्रव्यमान के साथ मुख्य रूप से हाइड्रोजन से बना हुआ है और इसका भारी तत्वों से युक्त एक चट्टानी कोर हो सकता है।अपने तेज घूर्णन के कारण बृहस्पति का आकार एक चपटा उपगोल (भूमध्य रेखा के पास चारों ओर एक मामूली लेकिन ध्यान देने योग्य उभार लिए हुए) है। इसके बाहरी वातावरण में विभिन्न अक्षांशों पर कई पृथक दृश्य पट्टियां नजर आती है जो अपनी सीमाओं के साथ भिन्न भिन्न वातावरण के परिणामस्वरूप बनती है। बृहस्पति के विश्मयकारी 'महान लाल धब्बा' (Great Red Spot), जो कि एक विशाल तूफ़ान है, के अस्तित्व को १७ वीं सदी के बाद तब से ही जान लिया गया था जब इसे पहली बार दूरबीन से देखा गया था। यह ग्रह एक शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र और एक धुंधले ग्रहीय वलय प्रणाली से घिरा हुआ है। बृहस्पति के कम से कम ६४ चन्द्रमा है। इनमें वो चार सबसे बड़े चन्द्रमा भी शामिल है जिसे गेलीलियन चन्द्रमा कहा जाता है जिसे सन् १६१० में पहली बार गैलीलियो गैलिली द्वारा खोजा गया था। गैनिमीड सबसे बड़ा चन्द्रमा है जिसका व्यास बुध ग्रह से भी ज्यादा है। यहाँ चन्द्रमा का तात्पर्य उपग्रह से है। बृहस्पति का अनेक अवसरों पर रोबोटिक अंतरिक्ष यान द्वारा, विशेष रूप से पहले पायोनियर और वॉयजर मिशन के दौरान और बाद में गैलिलियो यान के द्वारा, अन्वेषण किया जाता रहा है। फरवरी २००७ में न्यू होराएज़न्ज़ प्लूटो सहित बृहस्पति की यात्रा करने वाला अंतिम अंतरिक्ष यान था। इस यान की गति बृहस्पति के गुरुत्वाकर्षण का इस्तेमाल कर बढाई गई थी। इस बाहरी ग्रहीय प्रणाली के भविष्य के अन्वेषण के लिए संभवतः अगला लक्ष्य यूरोपा चंद्रमा पर बर्फ से ढके हुए तरल सागर शामिल हैं। .

153 संबंधों: चन्द्रमा, ऊर्जा, चालक (भौतिकी), चुम्बकीय गोला, चुम्बकीय क्षेत्र, टॉरस, ऐड्रास्टीया (उपग्रह), ऐमलथीया (उपग्रह), डेल्टा-v, त्रिज्या, थेमीस्टो (उपग्रह), थीबी (उपग्रह), दिन, दक्षिणी गोलार्ध, द्रव्यमान, दूरदर्शी, धातु हाइड्रोजन, ध्रुवीय कक्षा, धूमकेतु शूमेकर-लेवी ९, नाभिकीय संलयन, नासा, नियोन, निहारिका, निकोलस कोपरनिकस, नक्षत्र, न्यायाधिकरण (इनक्विज़िशन), न्यू होराइज़न्स, न्यूटन का सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त, परमाणु, पराबैंगनी, पायोनियर कार्यक्रम, पायोनियर १०, पायोनियर ११, पवन, प्रतिशत, प्रतिगामी चाल, प्राकृतिक उपग्रह, प्रकाश का वेग, प्लूटो, पृथ्वी, पृथ्वी द्रव्यमान, पृथ्वी का वायुमण्डल, फ़िलीपीन्स, बहिर्ग्रह, बुध (बहुविकल्पी), बृहस्पति के प्राकृतिक उपग्रह, बेंजीन, भारतीय खगोलिकी, भारतीय गणित, भूमध्य रेखा, ..., भूरा बौना, भूकेन्द्रीय मॉडल, मिथेन, मंगल, मीटस (उपग्रह), युलीसेस, युग (खगोलशास्त्र), यूरोपा (उपग्रह), यूरोपीय अंतरिक्ष अभिकरण, राशिचक्र, रेडियो खगोलशास्त्र, रॉबर्ट हुक, रोमन साम्राज्य, लातिन भाषा, लाल बौना, लग्रांज बिन्दु, शनि, शनि के छल्ले, शुक्र, सल्फर डाइऑक्साइड, सापेक्ष कांतिमान, सिलिकॉन, संयोजन (खगोलशास्त्र), संहति-केन्द्र, स्पेक्ट्रोस्कोपी, सौर द्रव्यमान, सौर मण्डल, सौर अर्धव्यास, सूर्य, सूर्य केंद्रीय सिद्धांत, सूर्यपथ, हाइड्रोजन, हाइड्रोजन सल्फाइड, हाइड्रोकार्बन, हिलियम, होहमान्न स्थानांतरण कक्षा, जल, जुपिटर, ज्योतिष, ज्वारभाटा बल, ज्वालामुखी, जूनो (अंतरिक्ष यान), घनत्व, घूर्णन, घूर्णन अक्ष, वरुण (ग्रह), वर्ष, विकिरण, व्यास, वॉयेजर, वॉयेजर द्वितीय, वॉयेजर प्रथम, खगोल शास्त्र, खगोल विज्ञानी, खगोलशास्त्र से सम्बन्धित शब्दावली, खगोलीय यांत्रिकी, खगोलीय इकाई, गणितज्ञ, गियोवन्नी डोमेनिको कैसिनी, गंधक, गुरुत्वाकर्षण, गुरुवार, ग्रह, गैनिमीड (उपग्रह), गैलिलेयो (अंतरिक्ष यान), गैलीलियन चंद्रमा, गैलीलियो गैलिली, गैस, गैस दानव, ऑक्सीजन, और्ट बादल, आदि भीषण बमबारी, आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा, आयतन, आयन, आयो (उपग्रह), आर्यभट, इथेन, कलिस्टो (उपग्रह), कार्बन, काइपर घेरा, कक्षा (भौतिकी), कक्षीय विकेन्द्रता, कक्षीय अनुनाद, कक्षीय अवधि, क्लाडियस टॉलमी, क्षुद्रग्रह घेरा, कैलिफ़ोर्निया, कैसिनी-होयगेन्स, केल्विन, केल्विन-हेल्महोल्ट्ज़ तंत्र, कोणीय व्यास, अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला, अमोनिया, अमीनो अम्ल, अरुण (ग्रह), अर्ध दीर्घ अक्ष, अवरक्त, अंतरिक्ष यान, अक्षीय झुकाव, उपग्रह, उपग्रही छल्ला, ऋतु सूचकांक विस्तार (103 अधिक) »

चन्द्रमा

कोई विवरण नहीं।

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ऊर्जा

दीप्तिमान (प्रकाश) ऊर्जा छोड़ता हैं। भौतिकी में, ऊर्जा वस्तुओं का एक गुण है, जो अन्य वस्तुओं को स्थानांतरित किया जा सकता है या विभिन्न रूपों में रूपांतरित किया जा सकता हैं। किसी भी कार्यकर्ता के कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा (Energy) कहते हैं। ऊँचाई से गिरते हुए जल में ऊर्जा है क्योंकि उससे एक पहिये को घुमाया जा सकता है जिससे बिजली पैदा की जा सकती है। ऊर्जा की सरल परिभाषा देना कठिन है। ऊर्जा वस्तु नहीं है। इसको हम देख नहीं सकते, यह कोई जगह नहीं घेरती, न इसकी कोई छाया ही पड़ती है। संक्षेप में, अन्य वस्तुओं की भाँति यह द्रव्य नहीं है, यद्यापि बहुधा द्रव्य से इसका घनिष्ठ संबंध रहता है। फिर भी इसका अस्तित्व उतना ही वास्तविक है जितना किसी अन्य वस्तु का और इस कारण कि किसी पिंड समुदाय में, जिसके ऊपर किसी बाहरी बल का प्रभाव नहीं रहता, इसकी मात्रा में कमी बेशी नहीं होती। .

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चालक (भौतिकी)

*(1) विद्युत चालक.

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चुम्बकीय गोला

चुम्बकीय गोले का कलात्मक प्रतिपादन। चुम्बकीय गोला तब बनता है, जब आवेशित कणों का प्रवाह (जैसे की सौर वायु) किसी ग्रह या उसी तरह के किसी पिंड की आतंरिक चुम्बकीय क्षेत्र से टकराता है। श्रेणी:अवकाश क्रियाएँ.

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चुम्बकीय क्षेत्र

किसी चालक में प्रवाहित विद्युत धारा '''I''', उस चालक के चारों ओर एक चुम्बकीय क्षेत्र '''B''' उत्पन्न करती है। चुंबकीय क्षेत्र विद्युत धाराओं और चुंबकीय सामग्री का चुंबकीय प्रभाव है। किसी भी बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र दोनों, दिशा और परिमाण (या शक्ति) द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है; इसलिये यह एक सदिश क्षेत्र है। चुंबकीय क्षेत्र घूमते विद्युत आवेश और मूलकण के आंतरिक चुंबकीय क्षणों द्वारा उत्पादित होता हैं जो एक प्रमात्रा गुण के साथ जुड़ा होता है। 'चुम्बकीय क्षेत्र' शब्द का प्रयोग दो क्षेत्रों के लिये किया जाता है जिनका आपस में निकट सम्बन्ध है, किन्तु दोनों अलग-अलग हैं। इन दो क्षेत्रों को तथा, द्वारा निरूपित किया जाता है। की ईकाई अम्पीयर प्रति मीटर (संकेत: A·m−1 or A/m) है और की ईकाई टेस्ला (प्रतीक: T) है। चुम्बकीय क्षेत्र दो प्रकार से उत्पन्न (स्थापित) किया जा सकता है- (१) गतिमान आवेशों के द्वारा (अर्थात, विद्युत धारा के द्वारा) तथा (२) मूलभूत कणों में निहित चुम्बकीय आघूर्ण के द्वारा विशिष्ट आपेक्षिकता में, विद्युत क्षेत्र और चुम्बकीय क्षेत्र, एक ही वस्तु के दो पक्ष हैं जो परस्पर सम्बन्धित होते हैं। चुम्बकीय क्षेत्र दो रूपों में देखने को मिलता है, (१) स्थायी चुम्बकों द्वारा लोहा, कोबाल्ट आदि से निर्मित वस्तुओं पर लगने वाला बल, तथा (२) मोटर आदि में उत्पन्न बलाघूर्ण जिससे मोटर घूमती है। आधुनिक प्रौद्योगिकी में चुम्बकीय क्षेत्रों का बहुतायत में उपयोग होता है (विशेषतः वैद्युत इंजीनियरी तथा विद्युतचुम्बकत्व में)। धरती का चुम्बकीय क्षेत्र, चुम्बकीय सुई के माध्यम से दिशा ज्ञान कराने में उपयोगी है। विद्युत मोटर और विद्युत जनित्र में चुम्बकीय क्षेत्र का उपयोग होता है। .

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टॉरस

एक टॉरस टॉरस (torus) एक प्रकार की ज्यामितीय आकृति है। श्रेणी:ज्यामिति.

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ऐड्रास्टीया (उपग्रह)

सन् १९९६-९७ में गैलिलेओ यान द्वारा ली गयी ऐड्रास्टीया की झलकी ऐड्रास्टीया (यूनानी: Αδράστεια, अंग्रेज़ी: Adrastea) बृहस्पति ग्रह का दूसरा सब से अंदरूनी उपग्रह है। इस उपग्रह की खोज १९७९ में वॉयेजर द्वितीय द्वारा ली गयी तस्वीरों का अध्ययन कर के की गई थी। यह उपग्रह बृहस्पति के मुख्य छल्ले के किनारे पर स्थित है और मन जाता है कि इसी उपग्रह से उभरी हुई धुल उस छल्ले को बनाने में एक मुख्य भूमिका अदा करती है। यह बृहस्पति की परिक्रमा उस ग्रह से १,२९,००० किमी की दूरी पर करता है। ऐड्रास्टीया बृहस्पति के इतना पास होने से और उस ग्रह की तुलना में बहुत छोटा होने से बृहस्पति की स्थिरमुखी परिक्रमा करता है, यानि परिक्रमा करते हुए ऐड्रास्टीया का एक ही रुख़ हमेशा बृहस्पति की ओर होता है।, David M. Harland, Springer, 2000, ISBN 978-1-85233-301-0 .

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ऐमलथीया (उपग्रह)

सन् १९९६-९७ में गैलिलेओ यान द्वारा ली गयी ऐमलथीया की झलकी सन् १९७९ में वॉयजर प्रथम द्वारा ली गयी ऐमलथीया की झलकी ऐमलथीया (यूनानी: Αμάλθεια, अंग्रेज़ी: Amalthea) बृहस्पति ग्रह का तीसरा सब से अंदरूनी उपग्रह है। इस उपग्रह की खोज ९ सितम्बर १८९२ में ऍडवर्ड ऍमरसन बर्नार्ड नामक अमेरिकी खगोलशास्त्री ने की थी और यूनानी मिथ्य-कथाओं की एक पारी के नाम पर इसका नाम रखा गया। यह उपग्रह बृहस्पति के छल्लों में स्थित है और ऐमलथीया गोसेमर छल्ले के बाहरी किनारे पर स्थित है। यह छल्ला इसी उपग्रह से उभरी हुई धुल का बना है। यह बृहस्पति की परिक्रमा उस ग्रह से १,८१,००० किमी की दूरी पर करता है। ऐमलथीया के बृहस्पति के इतना पास होने से और उस ग्रह की तुलना में बहुत छोटा होने से बृहस्पति की स्थिरमुखी परिक्रमा करता है, यानि परिक्रमा करते हुए ऐमलथीया का एक ही रुख़ हमेशा बृहस्पति की ओर होता है।, David M. Harland, Springer, 2000, ISBN 978-1-85233-301-0,...

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डेल्टा-v

कक्षीय तंत्र या एस्ट्रोडायनामिक्स में, Δv या डेल्टा-v (शाब्दिक: "वेग में परिवर्तन") एक अदिश है, जो गति की इकाइयां रखता है | इसकी गणना, एक प्रक्षेपवक्र से दूसरे में जाने के लिए आवश्यक ' ' प्रयास ' ' की मात्रा से की जाती है | सीधे शब्दों में डेल्टा-v, अंतरिक्ष यान द्वारा कक्षा बदलने के लिए, एक कक्षा से दूसरी कक्षा में छलांग लगाने के लिए आवश्यक प्रयास या अतिरिक्त धक्का या ऊर्जा की मात्रा है |.

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त्रिज्या

किसी वृत्त के केंद्र से परिधि तक की दूरी को 'त्रिज्या' या 'अर्धव्यास' कहते हैं त्रिज्या या अर्धव्यास किसी वृत्त के केन्द्र से उसकी परिधि तक की दूरी को कहते हैं। .

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थेमीस्टो (उपग्रह)

थेमीस्टो (Themisto), (ग्रीक से: Θεμιστώ), बृहस्पति का एक छोटा अनियमित उपग्रह है। 1975 में खोज हुई, खो गया, उसके बाद 2000 में फिर से खोजा गया। यह ज्यूपिटर XVIII के रूप में भी जाना जाता है। .

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थीबी (उपग्रह)

सन् १९९६-९७ में गैलिलेओ यान द्वारा ली गयी थीबी की झलकी थीबी (यूनानी: Θήβη, अंग्रेज़ी: Thebe) बृहस्पति ग्रह का चौथा सब से अंदरूनी उपग्रह है। इस उपग्रह की खोज ५ मार्च १९७९ को स्टीफ़न सायनोट (Stephen Synnott) नामक अमेरिकी खगोलशास्त्री ने वॉयजर प्रथम द्वारा ली गयी तस्वीरों का अध्ययन कर के की थी। यह उपग्रह बृहस्पति के छल्लों में स्थित है और थीबी गोसेमर छल्ले के बाहरी किनारे पर स्थित है। यह छल्ला इसी उपग्रह से उभरी हुई धुल का बना है। यह बृहस्पति की परिक्रमा उस ग्रह से २,१८,००० किमी की दूरी पर करता है। थीबी बृहस्पति के इतना पास होने से और उस ग्रह की तुलना में बहुत छोटा होने से बृहस्पति की स्थिरमुखी परिक्रमा करता है, यानि परिक्रमा करते हुए थीबी का एक ही रुख़ हमेशा बृहस्पति की ओर होता है।, David M. Harland, Springer, 2000, ISBN 978-1-85233-301-0 .

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दिन

दिन (Day), समय की एक इकाई है। आम प्रयोग में यह 24 घंटे के बराबर का अंतराल है। यह एक उजियारे दिवस और एक अंधेरी रात का योग है। .

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दक्षिणी गोलार्ध

अपोलो १७ से पृथ्वी के एक प्रसिद्ध तस्वीर में मूल रूप से शीर्ष पर दक्षिण ध्रुव था, हालांकि, यह परंपरागत दृष्टिकोण फिट करने के लिए ऊपर से नीचे कर दिया गया था दक्षिणी गोलार्ध पीले में दर्शित दक्षिणी गोलार्ध दक्षिणी ध्रुव के ऊपर से दक्षिणी गोलार्ध किसी ग्रह का वह आधा भाग होता है, जो उसकी विषुवत रेखा के नीचे (दक्षिणी ओर) होता है। गोलार्ध का शाब्दिक अर्थ है आधा गोला। हमारा ग्रह अक्षवत् दो भागों में बंटा है, जिन्हे उत्तरी गोलार्ध व दक्षिणी गोलार्ध कहते हैं। उत्तरी गोलार्ध का उत्तरी ‌छोर तथा दक्षिणी गोलार्ध का दक्षिणी ‌छोर बहुत ठंडे स्थान होने के कारण वहाँ बर्फ का साम्राज्य रहता है। दक्षिणी गोलार्ध के दक्षिणी ध्रुव पर तो बर्फ से बना विशाल महाद्वीप ही मौजूद है। दक्षिणी गोलार्ध में पांच महाद्वीप-आस्ट्रेलिया,नौ-दसवा दक्षिण अमेरिका,एक तिहाई अफ्रीका तथा एशिया के कुछ दक्षिणी द्वीपों मौजूद है। दक्षिण गोलार्द्ध चार महासागरों- हिन्द महासागर, अन्ध महासागर, दक्षिणध्रुवीय महासागर और प्रशान्त महासागर मौजूद है। पृथ्वी के अक्षीय झुकाव की वजह से उत्तरी गोलार्ध में ग्रीष्म ऋतु, दक्षिणायन (२२ दिसंबर के आसपास) से वसंत विषुव (लगभग २१ मार्च) तक चलता है और शीत ऋतु, उत्तरायण (२१ जून) से शरद विषुव (लगभग २३ सितंबर) तक चलता है। .

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द्रव्यमान

द्रव्यमान किसी पदार्थ का वह मूल गुण है, जो उस पदार्थ के त्वरण का विरोध करता है। सरल भाषा में द्रव्यमान से हमें किसी वस्तु का वज़न और गुरुत्वाकर्षण के प्रति उसके आकर्षण या शक्ति का पता चलता है। श्रेणी:भौतिकी श्रेणी:भौतिक शब्दावली *.

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दूरदर्शी

न्यूटनीय दूरदर्शी का आरेख दूरदर्शी वह प्रकाशीय उपकरण है जिसका प्रयोग दूर स्थित वस्तुओं को देख्नने के लिये किया जाता है। दूरदर्शी से सामान्यत: लोग प्रकाशीय दूरदर्शी का अर्थ ग्रहण करते हैं, परन्तु दूरदर्शी विद्युतचुंबकीय वर्णक्रम के अन्य भागों मै भी काम करता है जैसे X-रे दूरदर्शी जो कि X-रे के प्रति संवेदनशील होता है, रेडियो दूरदर्शी जो कि अधिक तरंगदैर्घ्य की विद्युत चुंबकीय तरंगे ग्रहण करता है। दूरदर्शी साधारणतया उस प्रकाशीय तंत्र (optical system) को कहते हैं जिससे देखने पर दूर की वस्तुएँ बड़े आकार की और स्पष्ट दिखाई देती हैं, अथवा जिसकी सहायता से दूरवर्ती वस्तुओं के साधारण और वर्णक्रमचित्र (spectrograms) प्राप्त किए जाते हैं। दूरवर्ती वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त करने के लिए आजकल रेडियो तरंगों का भी उपयोग किया जाने लगा है। इस प्रकार का यंत्र रेडियो दूरदर्शी (radio telescope) कहलाता है। बोलचाल की भाषा में दूरदर्शी को दूरबीन भी कहते हैं। दूरबीन के आविष्कार ने मनुष्य की सीमित दृष्टि को अत्यधिक विस्तृत बना दिया है। ज्योतिर्विद के लिए दूरदर्शी की उपलब्धि अंधे व्यक्ति को मिली आँखों के सदृश वरदान सिद्ध हुई है। इसकी सहायता से उसने विश्व के उन रहस्यमय ज्योतिष्पिंडों तक का साक्षात्कार किया है जिन्हें हम सर्पिल नीहारिकाएँ (spiral nebulae) कहते हैं। ये नीहारिकाएँ हमसे करोड़ों प्रकाशवर्ष की दूरी पर हैं। आधुनिक ज्योतिर्विज्ञान (astronomy) और ताराभौतिकी (astrophysics) के विकास में दूरदर्शी का महत्वपूर्ण योग है। दूरदर्शी ने एक ओर जहाँ मनुष्य की दृष्टि को विस्तृत बनाया है, वहाँ दूसरी ओर उसने मानव को उन भौतिक तथ्यों और नियमों को समझने में सहायता भी दी है जो भौतिक विश्व के गत्यात्मक संतुलन (dynamic equilibirium) के आधार हैं। .

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धातु हाइड्रोजन

बृहस्पति जैसे कुछ गैस दानव ग्रहों के केन्द्रों में धातु हाइड्रोजन है धातु हाइड्रोजन (metallic hydrogen) हाइड्रोजन की ऐसी अवस्था को कहते हैं जब वह भयंकर दबाव में कुचली जाकर अवस्था परिवर्तन (phase transition) करके विकृत हो जाए।, Gabor Kalman, J. Martin Rommel, Krastan Blagoev, Kastan Blagoev, Springer, 1998, ISBN 978-0-306-46031-9,...

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ध्रुवीय कक्षा

ध्रुवीय कक्षा एक ध्रुवीय कक्षा (polar orbit), वह कक्षा है जिसमें एक कृत्रिम उपग्रह किसी पिंड की प्रत्येक परिक्रमा पर एक पूरे चक्कर में उसके दोनों ध्रुवों के ऊपर या लगभग ऊपर से गुजरता है | इस कारण भूमध्यरेखा से इसका झुकाव ९० डिग्री (या इससे बहुत करीब) होता है | सामान्यतः यह पिंड पृथ्वी जैसा या संभवतः सूर्य के जैसा होता है | ध्रुवीय भू-समकालिक कक्षा (geosynchronous orbit) के विशेष मामले को छोड़कर, ध्रुवीय कक्षा में उपग्रह अपने प्रत्येक चक्कर में भूमध्यरेखा के ऊपर एक भिन्न देशांतर पर से गुजरता है | ध्रुवीय कक्षाओं का उपयोग अक्सर पृथ्वी के मानचित्रण, पृथ्वी प्रेक्षण और टोही उपग्रहों के साथ ही साथ कुछ मौसम उपग्रहों के लिए भी लिए किया जाता है | इरिडियम उपग्रह समूह भी दूरसंचार सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए एक ध्रुवीय कक्षा का उपयोग करता है | इस कक्षा के लिए नुकसान यह है कि पृथ्वी की सतह पर कोई एक स्थान ऐसा नहीं है जहां से इस ध्रुवीय कक्षा के उपग्रह से लगातार संपर्क किया जा सकता हो | निकट-ध्रुवीय कक्षा उपग्रहों के लिए एक सूर्य-समकालिक कक्षा का चयन करना महज सामान्य बात है: जिसका अर्थ है कि एक के बाद एक कक्षीय गुजारें के दिन पर एक ही स्थानीय समय होता है | वायुमंडलीय तापमान के सुदूर संवेदन जैसे अनुप्रयोगों के लिए यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो सकता है | परिक्रमा करते हुए उपग्रह द्वारा स्थानीय समय के साथ सामंजस्य आवश्यक है जिसमें समय के साथ परिवर्तन हो सकता है | किसी दिए गए गुजारें पर एक ही स्थानीय समय रखने के लिए, कक्षा के लिए यह वांछनीय है कि वह जितनी संभव हो छोटी से छोटी हो, कहने का तात्पर्य है जितनी संभव हो सके निम्न हो | हालांकि, कुछ सौ किलोमीटर की बहुत निम्न कक्षाओं में तेजी से वायुमंडल से अवरोध के कारण क्षय होगा | प्रयोग में लाइ जाने वाली सामान्य उंचाई लगभग १००० कि॰मी॰ है, यह लगभग १०० मिनटों की एक कक्षीय अवधि निर्मित करती है |सूर्य के तरफ की आधी कक्षा में तो केवल 50 मिनट लगते हैं, इस दौरान दिन के स्थानीय समय में बहुत भिन्नता नहीं होती है | जैसे जैसे पृथ्वी वर्ष के दौरान सूर्य के चारों ओर घूमती जाती है वैसे वैसे सूर्य-समकालिक कक्षा बनाए रखने के लिए, उपग्रह की कक्षा को ठीक उसी समान दर पर अयन करना चाहिए | सीधे ध्रुवों के ऊपर से गुजरने वाले उपग्रहों के लिए, यह नहीं होगा | लेकिन पृथ्वी के भूमध्यरेखीय उभार के कारण, एक मामूली कोण पर झुकी कक्षा बलाघूर्ण के अधीन अयनांश का कारण बनती है, यह पता चला है कि ध्रुव से लगभग ८ डिग्री का एक कोण एक १०० मिनट की कक्षा में वांछित अयनांश निर्मित करता है | .

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धूमकेतु शूमेकर-लेवी ९

हबल अंतरिक्ष दूरबीन से १७ मई १९९४ को शूमेकर-लेवी ९ के २१ टुकड़ों की तस्वीर बृहस्पति ग्रह के दक्षिणी गोलार्ध पर कुछ टकराव स्थलों पर धब्बे धूमकेतु शूमेकर-लेवी ९ (Comet Shoemaker–Levy 9), जिसका औपचारिक नाम डी/१९९३ ऍफ़२ (D/1993 F2) था, एक धूमकेतु (कोमॅट) था जो जुलाई १९९४ में बृहस्पति ग्रह से टकराकर ध्वस्त हो गया। हमारे सौर मंडल में यह पृथ्वी से असंबंधित खगोलीय वस्तुओं की सबसे पहली देखी गई टक्कर थी, जिस वजह से इसपर समाचारों में भारी चर्चा हुई। दुनिया-भर के खगोलशास्त्रियों ने टकराव से पहले इस धूमकेतु पर नज़रें गाढ़ लीं। टकराव से बृहस्पति के बारे में और उसके अंदरूनी सौर मंडल से मलबा हटाने की प्रक्रियाओं पर और जानकारी मिली। शूमेकर-लेवी ९ की खोज तीन अमेरिकी खगोलशास्त्रियों ने की थी - कैरोलाइन और यूजीन शूमेकर (Caroline और Eugene Shoemaker) तथा डेविड लेवी (David Levy)। उन्होने २४ मार्च १९९३ को इसकी बृहस्पति की परिक्रमा करते हुए तस्वीर उतारी। यह किसी ग्रह की परिक्रमा करते हुआ पहला ज्ञात धूमकेतु था और समझा जाता है कि बृहस्पति ने इसे अपने गुरुत्वाकर्षण से २०-३० साल पहले पकड़ लिया था। हिसाब लगाने पर पता चला कि इसका टूटा-सा स्वरूप इसके जुलाई १९९२ में बृहस्पति के अधिक पास आने से हुए था। उस समय शूमेकर-लेवी ९ की कक्षा (ऑर्बिट) बृहस्पति की रोश सीमा के भीतर आ जाने से बृहस्पति के ज्वारभाटा बल ने उसे तोड़ दिया था। बाद में इसे २ किमी तक के व्यास (डायामीटर) वाले टुकड़ों में देखा गया। यह टुकड़े १९९४ में १६ जुलाई से २२ जुलाई तक बृहस्पति के दक्षिणी गोलार्ध (हेमिसफ़्येर​) से ६० किमी प्रति सैकिंड (यानि २,१६,००० किमी प्रति घंटे) की गति से टकराकर ध्वस्त हो गए। इनसे बृहस्पति के वायुमंडल में गहरी ख़रोंचे बन गई जो महीनो तक दिखाई देती रहीं। पृथ्वी से यह बृहस्पति के महान लाल धब्बे (Great Red Spot) से भी स्पष्ट दिखाई देती थी।, Kenneth R. Lang, Cambridge University Press, 2003, ISBN 978-0-521-81306-8,...

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नाभिकीय संलयन

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नासा

नैशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (हिन्दी अनुवाद:राष्ट्रीय वैमानिकी और अन्तरिक्ष प्रबंधन; National Aeronautics and Space Administration) या जिसे संक्षेप में नासा (NASA) कहते हैं, संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार की शाखा है जो देश के सार्वजनिक अंतरिक्ष कार्यक्रमों व एरोनॉटिक्स व एरोस्पेस संशोधन के लिए जिम्मेदार है। फ़रवरी 2006 से नासा का लक्ष्य वाक्य "भविष्य में अंतरिक्ष अन्वेषण, वैज्ञानिक खोज और एरोनॉटिक्स संशोधन को बढ़ाना" है। 14 सितंबर 2011 में नासा ने घोषणा की कि उन्होंने एक नए स्पेस लॉन्च सिस्टम के डिज़ाइन का चुनाव किया है जिसके चलते संस्था के अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में और दूर तक सफर करने में सक्षम होंगे और अमेरिका द्वारा मानव अंतरिक्ष अन्वेषण में एक नया कदम साबित होंगे। नासा का गठन नैशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस अधिनियम के अंतर्गत 19 जुलाई 1948 में इसके पूर्वाधिकारी संस्था नैशनल एडवाइज़री कमिटी फॉर एरोनॉटिक्स (एनसीए) के स्थान पर किया गया था। इस संस्था ने 1 अक्टूबर 1948 से कार्य करना शुरू किया। तब से आज तक अमेरिकी अंतरिक्ष अन्वेषण के सारे कार्यक्रम नासा द्वारा संचालित किए गए हैं जिनमे अपोलो चन्द्रमा अभियान, स्कायलैब अंतरिक्ष स्टेशन और बाद में अंतरिक्ष शटल शामिल है। वर्तमान में नासा अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन को समर्थन दे रही है और ओरायन बहु-उपयोगी कर्मीदल वाहन व व्यापारिक कर्मीदल वाहन के निर्माण व विकास पर ध्यान केंद्रित कर रही है। संस्था लॉन्च सेवा कार्यक्रम (एलएसपी) के लिए भी जिम्मेदार है जो लॉन्च कार्यों व नासा के मानवरहित लॉन्चों कि उलटी गिनती पर ध्यान रखता है। .

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नियोन

शुद्ध नियान से भरी विसर्जन नली (डिस्चार्ज ट्यूब) निऑन (Neon) (संकेत: Ne) एक रासायनिक तत्व है। इसका परमाणु क्रमांक १० है। यह आवर्त सारणी के १८वें समूह (अक्रिय गैसें) में रखा गया है। रैमज़े और टैवर्स ने १८९८ ई. में इस गैस की खोज की थी और वायु से इसे प्राप्त किया था। .

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निहारिका

चील नॅब्युला का वह भाग जिसे "सृजन के स्तम्भ" कहा जाता है क्योंकि यहाँ बहुत से तारे जन्म ले रहे हैं। त्रिकोणीय उत्सर्जन गैरेन नीहारिका (द ट्रेंगुलम एमीशन गैरन नॅब्युला) ''NGC 604'' नासा द्वारा जारी क्रैब नॅब्युला (कर्कट नीहारिका) वीडियो निहारिका या नॅब्युला अंतरतारकीय माध्यम (इन्टरस्टॅलर स्पेस) में स्थित ऐसे अंतरतारकीय बादल को कहते हैं जिसमें धूल, हाइड्रोजन गैस, हीलियम गैस और अन्य आयनीकृत (आयोनाइज़्ड) प्लाज़्मा गैसे उपस्थित हों। पुराने जमाने में "निहारिका" खगोल में दिखने वाली किसी भी विस्तृत वस्तु को कहते थे। आकाशगंगा (हमारी गैलेक्सी) से परे कि किसी भी गैलेक्सी को नीहारिका ही कहा जाता था। बाद में जब एडविन हबल के अनुसन्धान से यह ज्ञात हुआ कि यह गैलेक्सियाँ हैं, तो नाम बदल दिए गए। उदाहरण के लिए एंड्रोमेडा गैलेक्सी (देवयानी मन्दाकिनी) को पहले एण्ड्रोमेडा नॅब्युला के नाम से जाना जाता था। नीहारिकाओं में अक्सर तारे और ग्रहीय मण्डल जन्म लेते हैं, जैसे कि चील नीहारिका में देखा गया है। यह नीहारिका नासा द्वारा खींचे गए "पिलर्स ऑफ़ क्रियेशन" अर्थात् "सृष्टि के स्तम्भ" नामक अति-प्रसिद्ध चित्र में दर्शाई गई है। इन क्षेत्रों में गैस, धूल और अन्य सामग्री की संरचनाएं परस्पर "एक साथ जुड़कर" बड़े ढेरों की रचना करती हैं, जो अन्य पदार्थों को आकर्षित करता है एवं क्रमशः सितारों का गठन करने योग्य पर्याप्त बड़ा आकार ले लेता हैं। माना जाता है कि शेष सामग्री ग्रहों एवं ग्रह प्रणाली की अन्य वस्तुओं का गठन करती है। .

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निकोलस कोपरनिकस

निकोलस कोपरनिकस पोलैंड में जन्में निकोलस कोपरनिकस (19 फ़रवरी 1473 – 24 मई 1543) युरोपिय खगोलशास्त्री व गणितज्ञ थे। उन्होंने यह क्रांतिकारी सूत्र दिया था कि पृथ्वी अंतरिक्ष के केन्द्र में नहीं है। निकोलस पहले युरोपिय खगोलशास्त्री थे जिन्होंने पृथ्वी को ब्रह्माण्ड के केन्द्र से बाहर माना, यानी हीलियोसेंट्रिज्म मॉडल को लागू किया। इसके पहले पूरा युरोप अरस्तू की अवधारणा पर विश्वास करता था, जिसमें पृथ्वी ब्रह्माण्ड का केन्द्र थी और सूर्ये, तारे तथा दूसरे पिंड उसके गिर्द चक्कर लगाते थे। 1530 में कोपरनिकस की किताब डी रिवोलूशन्स (De Revolutionibus) प्रकाशित हुई जिसमें उसने बताया कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती हुई एक दिन में चक्कर पूरा करती है और एक साल में सूर्य का चक्कर पूरा करती है। कोपरनिकस ने तारों की स्थिति ज्ञात करने के लिए प्रूटेनिक टेबिल्स की रचना की जो अन्य खगोलविदों के बीच काफी लोकप्रिय हुई। खगोलशास्त्री होने के साथ साथ कोपरनिकस गणितज्ञ, चिकित्सक, अनुवादक, कलाकार, न्यायाधीश, गवर्नर, सैन्य नेता और अर्थशास्त्री भी थै। उन्होंने मुद्रा पर शोध कर ग्रेशम के प्रसिद्ध नियम को स्थापित किया, जिसके अनुसार खराब मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है। उन्होंने मुद्रा के संख्यात्मक सिद्धांत का फार्मूला दिया। कोपरनिकस के सुझावों ने पोलैंड की सरकार को मुद्रा के स्थायित्व में सहायता प्रदान की। .

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नक्षत्र

आकाश में तारा-समूह को नक्षत्र कहते हैं। साधारणतः यह चन्द्रमा के पथ से जुड़े हैं, पर वास्तव में किसी भी तारा-समूह को नक्षत्र कहना उचित है। ऋग्वेद में एक स्थान पर सूर्य को भी नक्षत्र कहा गया है। अन्य नक्षत्रों में सप्तर्षि और अगस्त्य हैं। नक्षत्र सूची अथर्ववेद, तैत्तिरीय संहिता, शतपथ ब्राह्मण और लगध के वेदांग ज्योतिष में मिलती है। भागवत पुराण के अनुसार ये नक्षत्रों की अधिष्ठात्री देवियाँ प्रचेतापुत्र दक्ष की पुत्रियाँ तथा चन्द्रमा की पत्नियाँ हैं। .

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न्यायाधिकरण (इनक्विज़िशन)

सन् १४९५ के आसपास हुए एक आटो-डा-फे (auto-da-fé) का आधुनिक चित्रण काथलिक गिरजे (Catholic church) के इतिहास में इनक्विज़िशन (Inquisition) का पर्याप्त महत्वपूर्ण स्थान है। 'एनक्विज़िशन' का अर्थ है जाँच पड़ताल। इस न्यायाधिकरण (ट्राइब्यूनल) की स्थापना इस उद्देश्य से हुई थी कि काथलिक धर्म के सिद्धान्तों से भटकनेवालों का पता लग जाए और उनको दंड दिलाने के लिए सरकार के सुपुर्द किया जाए। इस संस्था के तीन रूप हैं: .

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न्यू होराइज़न्स

न्यू होराइज़न्स (अंग्रेज़ी: New Horizons, हिंदी अर्थ: "नए क्षितिज") अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसन्धान संस्था नासा का एक अंतरिक्ष शोध यान है जो हमारे सौर मंडल के बाहरी बौने ग्रह यम (प्लूटो) के अध्ययन के लिये छोड़ा गया था। इस यान का प्रक्षेपण 19 जनवरी 2006 किया गया था जो नौ वर्षों के बाद 14 जुलाई 2015 को प्लूटो के सबसे नजदीक से होकर गुजरा। यह प्लूटो और उसके पांचों ज्ञात उपग्रहों - शैरन, निक्स, हाएड्रा, स्टायक्स और ऍस/२०११ पी १ (S/2011 P 1) के आँकड़े भेजेगा। इसके बाद अगर कोई अन्य काइपर घेरे की वस्तु देखने योग्य मिलती है तो संभव है की इस यान के द्वारा उसके पास से भी निकलकर जानकारी और तस्वीरें हासिल की जा सकें। न्यू होराइजन्स यान को रॉकेट के ऊपर लगाकर १९ जनवरी २००६ को छोड़ा गया था। ७ अप्रैल २००६ को इसने मंगल ग्रह की कक्षा (ऑरबिट) पार की, २८ फ़रवरी २००७ को बृहस्पति ग्रह की, ८ जून २००८ को शनि ग्रह की और १८ मार्च २०११ को अरुण ग्रह (यूरेनस) की। इसे छोड़ने की गति किसी भी मानव कृत वस्तु से अधिक रही थी - अपने आखरी रॉकेट के बंद होने तक इसकी रफ़्तार १६.२६ किलोमीटर प्रति सैकिंड पहुँच चुकी थी। .

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न्यूटन का सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त

कोई भी वस्तु ऊपर से गिरने पर सीधी पृथ्वी की ओर आती है। ऐसा प्रतीत होता है, मानो कोई अलक्ष्य और अज्ञात शक्ति उसे पृथ्वी की ओर खींच रही है। इटली के वैज्ञानिक, गैलिलीयो गैलिलीआई ने सर्वप्रथम इस तथ्य पर प्रकाश डाला था कि कोई भी पिंड जब ऊपर से गिरता है तब वह एक नियत त्वरण से पृथ्वी की ओर आता है। त्वरण का यह मान सभी वस्तुओं के लिए एक सा रहता है। अपने इस निष्कर्ष की पुष्टि उसने प्रयोगों और गणितीय विवेचनों द्वारा की है। न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण का नियम इसके बाद सर आइज़क न्यूटन ने अपनी मौलिक खोजों के आधार पर बताया कि केवल पृथ्वी ही नहीं, अपितु विश्व का प्रत्येक कण प्रत्येक दूसरे कण को अपनी ओर आकर्षित करता रहता है। दो कणों के बीच कार्य करनेवाला आकर्षण बल उन कणों की संहतियों के गुणनफल का (प्रत्यक्ष) समानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग का व्युत्क्रमानुपाती होता है। कणों के बीच कार्य करनेवाले पारस्परिक आकर्षण को गुरुत्वाकर्षण (Gravitation) तथा उससे उत्पन्न बल को गुरुत्वाकर्षण बल (Force of Gravitation) कहा जाता है। न्यूटन द्वारा प्रतिपादित उपर्युक्त नियम को न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण नियम (Law of Gravitation) कहते हैं। कभी-कभी इस नियम को "गुरुत्वाकर्षण का प्रतिलोम वर्ग नियम" (Inverse Square Law) भी कहा जाता है। उपर्युक्त नियम को सूत्र रूप में इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है: मान लिया m1 और संहति वाले m2 दो पिंड परस्पर d दूरी पर स्थित हैं। उनके बीच कार्य करनेवाले बल F का मान होगा:; F .

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परमाणु

एक परमाणु किसी भी साधारण से पदार्थ की सबसे छोटी घटक इकाई है जिसमे एक रासायनिक तत्व के गुण होते हैं। हर ठोस, तरल, गैस, और प्लाज्मा तटस्थ या आयनन परमाणुओं से बना है। परमाणुओं बहुत छोटे हैं; विशिष्ट आकार लगभग 100 pm (एक मीटर का एक दस अरबवें) हैं। हालांकि, परमाणुओं में अच्छी तरह परिभाषित सीमा नहीं होते है, और उनके आकार को परिभाषित करने के लिए अलग अलग तरीके होते हैं जोकि अलग लेकिन काफी करीब मूल्य देते हैं। परमाणुओं इतने छोटे है कि शास्त्रीय भौतिकी इसका काफ़ी गलत परिणाम देते हैं। हर परमाणु नाभिक से बना है और नाभिक एक या एक से अधिक इलेक्ट्रॉन्स से सीमित है। नाभिक आम तौर पर एक या एक से अधिक न्यूट्रॉन और प्रोटॉन की एक समान संख्या से बना है। प्रोटान और न्यूट्रान न्यूक्लिऑन कहलाता है। परमाणु के द्रव्यमान का 99.94% से अधिक भाग नाभिक में होता है। प्रोटॉन पर सकारात्मक विद्युत आवेश होता है, इलेक्ट्रॉन्स पर नकारात्मक विद्युत आवेश होता है और न्यूट्रान पर कोई भी विद्युत आवेश नहीं होता है। एक परमाणु के इलेक्ट्रॉन्स इस विद्युत चुम्बकीय बल द्वारा एक परमाणु के नाभिक में प्रोटॉन की ओर आकर्षित होता है। नाभिक में प्रोटॉन और न्यूट्रॉन एक अलग बल, यानि परमाणु बल के द्वारा एक दूसरे को आकर्षित करते है, जोकि विद्युत चुम्बकीय बल जिसमे सकारात्मक आवेशित प्रोटॉन एक दूसरे से पीछे हट रहे हैं, की तुलना में आम तौर पर शक्तिशाली है। परमाणु के केन्द्र में नाभिक (न्यूक्लिअस) होता है जिसका घनत्व बहुत अधिक होता है। नाभिक के चारो ओर ऋणात्मक आवेश वाले एलेक्ट्रान चक्कर लगाते रहते हैं जिसको एलेक्ट्रान घन (एलेक्ट्रान क्लाउड) कहते हैं। नाभिक, धनात्मक आवेश वाले प्रोटानों एवं अनावेशित (न्यूट्रल) न्यूट्रानों से बना होता है। जब किसी परमाणु में एलेक्ट्रानों की संख्या उसके नाभिक में स्थित प्रोटानों की संख्या के समान होती है तब परमाणु वैद्युकीय दृष्टि से अनावेशित होता है; अन्यथा परमाणु धनावेशित या ऋणावेशित ऑयन के रूप में होता है। आधुनिक रसायनशास्त्र में शताधिक मूल भूत माने गए हैं, जिनमें से कुछ तो धातुएँ हैं जैसे ताँबा, सोना, लोहा, सीसा, चाँदी, राँगा, जस्ता; कुछ और खनिज हैं, जैसे, गंधक, फासफरस, पोटासियम, अंजन, पारा, हड़ताल, तथा कुछ गैस हैं, जैसे, आक्सीजन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन आदि। इन्हीं मूल भूतों के अनुसार परमाणु आधुनिक रसायन में माने जाते हैं। पहले समझा जाता था कि ये अविभाज्य हैं। अब इनके भी टुकड़े कर दिए गए हैं। नाभिक में प्रोटॉन की संख्या किसी रासायनिक तत्व को परिभाषित करता है: जैसे सभी तांबा के परमाणु में 29 प्रोटॉन होते हैं। न्यूट्रॉन की संख्या तत्व के समस्थानिक को परिभाषित करता है। इलेक्ट्रॉनों की संख्या एक परमाणु के चुंबकीय गुण को प्रभावित करता है। परमाणु अणु के रूप में रासायनिक यौगिक बनाने के लिए रासायनिक आबंध द्वारा एक या अधिक अन्य परमाणुओं को संलग्न कर सकते हैं। परमाणु की संघटित और असंघटित करने की क्षमता प्रकृति में हुए बहुत से भौतिक परिवर्तन के लिए जिम्मेदार है, और रसायन शास्त्र के अनुशासन का विषय है। .

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पराबैंगनी

सौर्य एवं हैलियोस्फेरिक वेधशाला (SOHO) अंतरिक्ष वाहन से लिया गया था। पृथ्वी की पराबैंगनी छायांकन, जो कि चंद्रमा से अपोलो 16 अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा लिया गया था पराबैंगनी किरण (पराबैंगनी लिखीं जाती हैं) एक प्रकार का विद्युत चुम्बकीय विकिरण हैं, जिनकी तरंग दैर्घ्य प्रत्यक्ष प्रकाश से छोटी हो एवं कोमल एक्स किरण से अधिक हो। इनकी ऐसा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि, इनका वर्णक्रम लिए होता है विद्युत चुम्बकीय तरंग जिनकी आवृत्ति मानव द्वारा दर्शन योग्य बैंगनी वर्ण से ऊपर होती हैं।परा का मतलब होता है कि इस से अधिक अर्थात बैगनी से अधिक आवृत्ति की तरंग। .

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पायोनियर कार्यक्रम

१९७१ में निर्मित होता हुआ पायोनियर १० यान पायोनियर कार्यक्रम संयुक्त राज्य अमेरिका के अंतरिक्ष शोध यानों की शृंखला थी जिसने हमारे सौर मंडल के कुछ ग्रहों पर अनुसन्धान किया। वैसे तो इस कार्यक्रम में बहुत से यान और रॉकेट शामिल थे लेकिन इनमें से पायोनियर १० और पायोनियर ११ यान सबसे प्रसिद्ध हैं जिन्होंने मानव इतिहास में सबसे पहले बृहस्पति ग्रह और शनि ग्रह के पास से गुज़रकर उन ग्रहों की तस्वीरें वापस पृथ्वी भेजीं।, Joseph A. Angelo, Infobase Publishing, 2007, ISBN 978-0-8160-5773-3 .

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पायोनियर १०

१९७३ में बृहस्पति ग्रह के पास से गुज़रते हुए पायोनियर १० का काल्पनिक चित्रण पायोनियर १० एक २५८ किलोग्राम का अमेरिकी अंतरिक्ष यान है। इसे २ मार्च १९७२ को अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसन्धान संस्था नासा ने एक ऐटलस-सेंटौर रॉकेट के ज़रिये अंतरिक्ष में छोड़ा। १५ जुलाई १९७२ से १५ फ़रवरी १९७३ के काल में यह हमारे सौर मंडल के क्षुद्रग्रह घेरे (ऐस्टरौएड बॅल्ट) को पार करने वाला पहला मानव-कृत यान बना। ६ नवम्बर १९७३ को इसने बृहस्पति ग्रह की तस्वीरें लेना शुर किया और ४ दिसम्बर १९७३ को बृहस्पति से केवल १,३२,२५२ किमी की दूरी पर पहुँचकर फिर उस से आगे निकल गया। चलते-चलते यह हमारे सौर मंडल के बाहरी क्षेत्रों में जा पहुँचा है। कम ऊर्जा के कारण २३ जनवरी २००३ के बाद इस यान का पृथ्वी से संपर्क टूट गया। उस समय यह पृथ्वी से १२ अरब किमी (८० खगोलीय ईकाईयों) की दूरी पर था।, Joseph A. Angelo, Infobase Publishing, 2007, ISBN 978-0-8160-5773-3,...

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पायोनियर ११

शनि ग्रह के पास से गुज़रते हुए पायोनियर ११ का काल्पनिक चित्रण पायोनियर ११ एक २५९ किलोग्राम का अमेरिकी अंतरिक्ष यान है। इसे ६ अप्रैल १९७३ को अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसन्धान संस्था नासा ने एक रॉकेट के ज़रिये अंतरिक्ष में छोड़ा। हमारे सौर मंडल के क्षुद्रग्रह घेरे (ऐस्टरौएड बॅल्ट) और बृहस्पति ग्रह से गुजरने वाला यह दूसरा मानव-कृत यान था। २ दिसम्बर १९७४ में यह बृहस्पति से केवल ४३,००० किमी की दूरी से निकला। १९७९ में यह पहला यान बना जिसने शनि ग्रह के समीप जाकर उसपर अनुसन्धान किया और उसकी तस्वीरें वापस पृथ्वी भेजीं। चलते-चलते यह हमारे सौर मंडल के बाहरी क्षेत्रों में जा पहुँचा है। कम ऊर्जा के कारण ३० नवम्बर १९९५ के बाद इस यान का पृथ्वी से संपर्क टूट गया।, Joseph A. Angelo, Infobase Publishing, 2007, ISBN 978-0-8160-5773-3,...

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पवन

पवन की दिशा बताने वाला यन्त्र पवनवेगदर्शी गतिशील वायु को पवन (Wind) कहते हैं। यह गति पृथ्वी की सतह के लगभग समांतर रहती है। पृथ्वी से कुछ मीटर ऊपर तक के पवन को सतही पवन और २०० मीटर या अधिक ऊँचाई के पवन को उपरितन पवन कहते हैं। जब किसी स्थान और ऊँचाई के पवन का निर्देश करना हो तब वहाँ के पवन की चाल और उसकी दिशा दोनों का उल्लेख होना चाहिए। पवन की दिशा का उल्लेख करने में जिस दिशा से पवन बह रहा है उसका उल्लेख दिक्सूचक के निम्नलिखित १६ संकेतों से करते हैं: अधिक यथार्थता (precision) से पवन की दिशा बताने के लिए यह दिशा अंशों में व्यक्त की जाती है। जब पवन दक्षिणावर्त (clockwise) दिशा में परिवर्तित होता है (जैसे उ से उ पू और पू), तब ऐसे परिवर्तन को पवन का दक्षिणावर्तन और वामावर्त दिश में परिवर्तन (जैसे उ से उप और प) का विपरीत पवन कहते हैं। वेधशाला में पवनदिक्सूचक नामक उपकरण हवा की दिशा बताता है। इसका नुकीला सिरा हमेशा उधर रहता है जिधर से हवा आ रही होती है। पवन का वेग मील प्रति घंटे, या मीटर प्रति सेकंड, में व्यक्त किया जाता है। सतह के पवन को मापने के लिए प्राय: प्याले के आकार का पवनमापी काम में आता है। पवनवेग का लगातार अभिलेख करने के लिए अनेक उपकरण काम में आते हैं, जिनमें दाबनली एवं पवनलेखक (Anemograph) महत्वपूर्ण एवं प्रचलित है। भिन्न भिन्न ऊँचाई के उपरितन पवन का निर्धारण करने के लिए हाइड्रोजन से भरा गुब्बारा उड़ाया जाता है और ऊपर उठते हुए तथा पवनहित बैलून की ऊँचाई और दिगंश (azimuth) ज्ञात करने के लिए इसका निरीक्षण सामान्य थियोडोलाइट (theodolite) या रेडियो थियोडोलाइट से करते हैं। तब बैलून की उड़ान का प्रक्षेपपथ (trajectory) तैयार किया जाता है और प्राय: बैलून के ऊपर उठने के वेग की दर की कल्पना करके, प्रक्षेपपथ के विभिन्न बिंदुओं से बैलून की संगत ऊँचाई की गणना की जाती है। प्रक्षेपपथ से, इच्छित ऊँचाई पर, पवन की चाल और दिशा ज्ञात की जाती है। .

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प्रतिशत

प्रतिशत का गणितीय प्रतीक प्रतिशत (Percent) गणित में किसी अनुपात को व्यक्त करने का एक तरीका है। प्रतिशत का अर्थ है प्रति सौ या प्रति सैकड़ा(%.

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प्रतिगामी चाल

कक्षा में परिक्रमा कर रहा है प्रतिगामी चाल किसी वस्तु की ऐसी चाल को बोलते हैं जो किसी और वस्तु की चाल के विपरीत हो। इसका प्रयोग भौतिकी (फ़िज़िक्स) और खगोलशास्त्र में अक्सर तब किया जाता है जब किसी घुमते हुए ग्रह के इर्द-गिर्द कोई उपग्रह परिक्रमा कर रहा हो लेकिन उस उपग्रह की परिक्रमा की दिशा ग्रह के घूमने की दिशा से उल्टी हो। .

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प्राकृतिक उपग्रह

टाइटन) इतना बड़ा है के उसका अपना वायु मण्डल है - आकारों की तुलना के लिए पृथ्वी भी दिखाई गई है प्राकृतिक उपग्रह या चन्द्रमा ऐसी खगोलीय वस्तु को कहा जाता है जो किसी ग्रह, क्षुद्रग्रह या अन्य वस्तु के इर्द-गिर्द परिक्रमा करता हो। जुलाई २००९ तक हमारे सौर मण्डल में ३३६ वस्तुओं को इस श्रेणी में पाया गया था, जिसमें से १६८ ग्रहों की, ६ बौने ग्रहों की, १०४ क्षुद्रग्रहों की और ५८ वरुण (नॅप्ट्यून) से आगे पाई जाने वाली बड़ी वस्तुओं की परिक्रमा कर रहे थे। क़रीब १५० अतिरिक्त वस्तुएँ शनि के उपग्रही छल्लों में भी देखी गई हैं लेकिन यह ठीक से अंदाज़ा नहीं लग पाया है के वे शनि की उपग्रहों की तरह परिक्रमा कर रही हैं या नहीं। हमारे सौर मण्डल से बाहर मिले ग्रहों के इर्द-गिर्द अभी कोई उपग्रह नहीं मिला है लेकिन वैज्ञानिकों का विशवास है के ऐसे उपग्रह भी बड़ी संख्या में ज़रूर मौजूद होंगे। जो उपग्रह बड़े होते हैं वे अपने अधिक गुरुत्वाकर्षण की वजह से अन्दर खिचकर गोल अकार के हो जाते हैं, जबकि छोटे चन्द्रमा टेढ़े-मेढ़े भी होते हैं (जैसे मंगल के उपग्रह - फ़ोबस और डाइमस)। .

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प्रकाश का वेग

प्रकाश की चाल (speed of light) (जिसे प्राय: c से निरूपित किया जाता है) एक भौतिक नियतांक है। निर्वात में इसका सटीक मान 299,792,458 मीटर प्रति सेकेण्ड है जिसे प्राय: 3 लाख किमी/से.

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प्लूटो

प्लूटो के अनेक अर्थ हो सकते हैं| कृपया अपना वांछित अर्थ निम्नलिखित में से चुनें| प्लूटो (अंग्रेज़ी::en:Pluto (mythology), लातिनी: Pluto प्लूतो) प्राचीन रोमन धर्म के देवता| प्लूटो ग्रह सौर मण्डल का सबसे बाहरी ग्रह है। प्लूटो ज्योतिष में | प्लूटो वाल्ट डिज़्नी का एक कार्टून पात्र है | श्रेणी:रोम के देवी-देवता श्रेणी:रोमन धर्म.

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पृथ्वी

पृथ्वी, (अंग्रेज़ी: "अर्थ"(Earth), लातिन:"टेरा"(Terra)) जिसे विश्व (The World) भी कहा जाता है, सूर्य से तीसरा ग्रह और ज्ञात ब्रह्माण्ड में एकमात्र ग्रह है जहाँ जीवन उपस्थित है। यह सौर मंडल में सबसे घना और चार स्थलीय ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह है। रेडियोधर्मी डेटिंग और साक्ष्य के अन्य स्रोतों के अनुसार, पृथ्वी की आयु लगभग 4.54 बिलियन साल हैं। पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण, अंतरिक्ष में अन्य पिण्ड के साथ परस्पर प्रभावित रहती है, विशेष रूप से सूर्य और चंद्रमा से, जोकि पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह हैं। सूर्य के चारों ओर परिक्रमण के दौरान, पृथ्वी अपनी कक्षा में 365 बार घूमती है; इस प्रकार, पृथ्वी का एक वर्ष लगभग 365.26 दिन लंबा होता है। पृथ्वी के परिक्रमण के दौरान इसके धुरी में झुकाव होता है, जिसके कारण ही ग्रह की सतह पर मौसमी विविधताये (ऋतुएँ) पाई जाती हैं। पृथ्वी और चंद्रमा के बीच गुरुत्वाकर्षण के कारण समुद्र में ज्वार-भाटे आते है, यह पृथ्वी को इसकी अपनी अक्ष पर स्थिर करता है, तथा इसकी परिक्रमण को धीमा कर देता है। पृथ्वी न केवल मानव (human) का अपितु अन्य लाखों प्रजातियों (species) का भी घर है और साथ ही ब्रह्मांड में एकमात्र वह स्थान है जहाँ जीवन (life) का अस्तित्व पाया जाता है। इसकी सतह पर जीवन का प्रस्फुटन लगभग एक अरब वर्ष पहले प्रकट हुआ। पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के लिये आदर्श दशाएँ (जैसे सूर्य से सटीक दूरी इत्यादि) न केवल पहले से उपलब्ध थी बल्कि जीवन की उत्पत्ति के बाद से विकास क्रम में जीवधारियों ने इस ग्रह के वायुमंडल (the atmosphere) और अन्य अजैवकीय (abiotic) परिस्थितियों को भी बदला है और इसके पर्यावरण को वर्तमान रूप दिया है। पृथ्वी के वायुमंडल में आक्सीजन की वर्तमान प्रचुरता वस्तुतः जीवन की उत्पत्ति का कारण नहीं बल्कि परिणाम भी है। जीवधारी और वायुमंडल दोनों अन्योन्याश्रय के संबंध द्वारा विकसित हुए हैं। पृथ्वी पर श्वशनजीवी जीवों (aerobic organisms) के प्रसारण के साथ ओजोन परत (ozone layer) का निर्माण हुआ जो पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र (Earth's magnetic field) के साथ हानिकारक विकिरण को रोकने वाली दूसरी परत बनती है और इस प्रकार पृथ्वी पर जीवन की अनुमति देता है। पृथ्वी का भूपटल (outer surface) कई कठोर खंडों या विवर्तनिक प्लेटों में विभाजित है जो भूगर्भिक इतिहास (geological history) के दौरान एक स्थान से दूसरे स्थान को विस्थापित हुए हैं। क्षेत्रफल की दृष्टि से धरातल का करीब ७१% नमकीन जल (salt-water) के सागर से आच्छादित है, शेष में महाद्वीप और द्वीप; तथा मीठे पानी की झीलें इत्यादि अवस्थित हैं। पानी सभी ज्ञात जीवन के लिए आवश्यक है जिसका अन्य किसी ब्रह्मांडीय पिण्ड के सतह पर अस्तित्व ज्ञात नही है। पृथ्वी की आतंरिक रचना तीन प्रमुख परतों में हुई है भूपटल, भूप्रावार और क्रोड। इसमें से बाह्य क्रोड तरल अवस्था में है और एक ठोस लोहे और निकल के आतंरिक कोर (inner core) के साथ क्रिया करके पृथ्वी मे चुंबकत्व या चुंबकीय क्षेत्र को पैदा करता है। पृथ्वी बाह्य अंतरिक्ष (outer space), में सूर्य और चंद्रमा समेत अन्य वस्तुओं के साथ क्रिया करता है वर्तमान में, पृथ्वी मोटे तौर पर अपनी धुरी का करीब ३६६.२६ बार चक्कर काटती है यह समय की लंबाई एक नाक्षत्र वर्ष (sidereal year) है जो ३६५.२६ सौर दिवस (solar day) के बराबर है पृथ्वी की घूर्णन की धुरी इसके कक्षीय समतल (orbital plane) से लम्बवत (perpendicular) २३.४ की दूरी पर झुका (tilted) है जो एक उष्णकटिबंधीय वर्ष (tropical year) (३६५.२४ सौर दिनों में) की अवधी में ग्रह की सतह पर मौसमी विविधता पैदा करता है। पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा (natural satellite) है, जिसने इसकी परिक्रमा ४.५३ बिलियन साल पहले शुरू की। यह अपनी आकर्षण शक्ति द्वारा समुद्री ज्वार पैदा करता है, धुरिय झुकाव को स्थिर रखता है और धीरे-धीरे पृथ्वी के घूर्णन को धीमा करता है। ग्रह के प्रारंभिक इतिहास के दौरान एक धूमकेतु की बमबारी ने महासागरों के गठन में भूमिका निभाया। बाद में छुद्रग्रह (asteroid) के प्रभाव ने सतह के पर्यावरण पर महत्वपूर्ण बदलाव किया। .

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पृथ्वी द्रव्यमान

पृथ्वी के द्रव्यमान की नेप्चून के द्रव्यमान से तुलना. पृथ्वी द्रव्यमान (M⊕), द्रव्यमान की वह इकाई है जिसका मान पृथ्वी के द्रव्यमान के बराबर है | १ M⊕ .

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पृथ्वी का वायुमण्डल

अंतरिक्ष से पृथ्वी का दृश्य: वायुमंडल नीला दिख रहा है। पृथ्वी को घेरती हुई जितने स्थान में वायु रहती है उसे वायुमंडल कहते हैं। वायुमंडल के अतिरिक्त पृथ्वी का स्थलमंडल ठोस पदार्थों से बना और जलमंडल जल से बने हैं। वायुमंडल कितनी दूर तक फैला हुआ है, इसका ठीक ठीक पता हमें नहीं है, पर यह निश्चित है कि पृथ्वी के चतुर्दिक् कई सौ मीलों तक यह फैला हुआ है। वायुमंडल के निचले भाग को (जो प्राय: चार से आठ मील तक फैला हुआ है) क्षोभमंडल, उसके ऊपर के भाग को समतापमंडल और उसके और ऊपर के भाग को मध्य मण्डलऔर उसके ऊपर के भाग को आयनमंडल कहते हैं। क्षोभमंडल और समतापमंडल के बीच के बीच के भाग को "शांतमंडल" और समतापमंडल और आयनमंडल के बीच को स्ट्रैटोपॉज़ कहते हैं। साधारणतया ऊपर के तल बिलकुल शांत रहते हैं। प्राणियों और पादपों के जीवनपोषण के लिए वायु अत्यावश्यक है। पृथ्वीतल के अपक्षय पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। नाना प्रकार की भौतिक और रासायनिक क्रियाएँ वायुमंडल की वायु के कारण ही संपन्न होती हैं। वायुमंडल के अनेक दृश्य, जैसे इंद्रधनुष, बिजली का चमकना और कड़कना, उत्तर ध्रुवीय ज्योति, दक्षिण ध्रुवीय ज्योति, प्रभामंडल, किरीट, मरीचिका इत्यादि प्रकाश या विद्युत के कारण उत्पन्न होते हैं। वायुमंडल का घनत्व एक सा नहीं रहता। समुद्रतल पर वायु का दबाव 760 मिलीमीटर पारे के स्तंभ के दाब के बराबर होता है। ऊपर उठने से दबाव में कमी होती जाती है। ताप या स्थान के परिवर्तन से भी दबाव में अंतर आ जाता है। सूर्य की लघुतरंग विकिरण ऊर्जा से पृथ्वी गरम होती है। पृथ्वी से दीर्घतरंग भौमिक ऊर्जा का विकिरण वायुमंडल में अवशोषित होता है। इससे वायुमंडल का ताप - 68 डिग्री सेल्सियस से 55 डिग्री सेल्सियस के बीच ही रहता है। 100 किमी के ऊपर पराबैंगनी प्रकाश से आक्सीजन अणु आयनों में परिणत हो जाते हैं और परमाणु इलेक्ट्रॉनों में। इसी से इस मंडल को आयनमंडल कहते हैं। रात्रि में ये आयन या इलेक्ट्रॉन फिर परस्पर मिलकर अणु या परमाणु में परिणत हो जाते हैं जिससे रात्रि के प्रकाश के वर्णपट में हरी और लाल रेखाएँ दिखाई पड़ती हैं। .

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फ़िलीपीन्स

फिलीपींस के प्रमुख नगर फ़िलीपीन्स दक्षिण-पूर्व एशिया में स्थित एक देश है। इसका आधिकारिक नाम 'फिलीपीन्स गणतंत्र' है और राजधानी मनीला है। पश्चिमी प्रशांत महासागर में स्थित ७१०७ द्वीपों से मिलकर यह देश बना है। फिलीपीन द्वीप-समूह पूर्व में फिलीपीन्स महासागर से, पश्चिम में दक्षिण चीन सागर से और दक्षिण में सेलेबस सागर से घिरा हुआ है। इस द्वीप-समूह से दक्षिण पश्चिम में देश बोर्नियो द्वीप के करीबन सौ किलोमीटर की दूरी पर बोर्नियो द्वीप और सीधे उत्तर की ओर ताइवान है। फिलीपींस महासागर के पूर्वी हिस्से पर पलाऊ है। पूर्वी एशिया में दक्षिण कोरिया और पूर्वी तिमोर के बाद फिलीपीन्स ही ऐसा देश है, जहां ज्यादातर लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं। ९ करोड़ से अधिक की आबादी वाला यह विश्व की 12 वीं सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। यह देश स्पेन (१५२१ - १८९८) और संयुक्त राज्य अमरीका (१८९८ - १९४६) का उपनिवेश रहा और फिलीपीन्स एशिया में दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। .

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बहिर्ग्रह

धूल के बादल में फ़ुमलहौत बी ग्रह परिक्रमा करता हुआ पाया गया (हबल अंतरिक्ष दूरबीन द्वारा ली गई तस्वीर) बहिर्ग्रह (exoplanet) या ग़ैर-सौरीय ग्रह (extrasolar planet, ऍक्स्ट्रासोलर प्लैनॅट) ऐसे ग्रह को कहा जाता है जो हमारे सौर मण्डल से बाहर स्थित हो। सन् १९९२ तक खगोलशास्त्रियों को एक भी ग़ैर-सौरीय ग्रह के अस्तित्व का ज्ञान नहीं था, लेकिन उसके बाद बहुत से ऐसे ग्रह मिल चुके हैं। २४ मई २०११ तक ५५२ ग़ैर-सौरीय ग्रह ज्ञात हो चुके थे। क्योंकि इनमें से अधिकतर को सीधा देखने के लिए तकनीकें अभी विकसित नहीं हुई हैं, इसलिए सौ प्रतिशत भरोसे से नहीं कहा जा सकता के वास्तव में यह सारे ग्रह मौजूद हैं, लेकिन इनके तारों पर पड़ रहे गुरुत्वाकर्षक प्रभाव और अन्य लक्षणों से वैज्ञानिक इनके अस्तित्व के बारे में विश्वस्त हैं। अनुमान लगाया जाता है के सूरज की श्रेणी के लगभग १०% तारों के इर्द-गिर्द ग्रह परिक्रमा कर रहे हैं, हालांकि यह संख्या उस से भी अधिक हो सकती है। कॅप्लर अंतरिक्ष क्षोध यान द्वारा एकत्रित जानकारी के बूते पर कुछ वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है के आकाशगंगा (हमारी गैलेक्सी) में कम-से-कम ५० अरब ग्रहों के होने की सम्भावना है। कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने जनवरी २०१३ में अनुमान लगाया कि आकाशगंगा में इस अनुमान से भी दुगने, यानि १०० अरब, ग्रह हो सकते हैं। .

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बुध (बहुविकल्पी)

कोई विवरण नहीं।

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बृहस्पति के प्राकृतिक उपग्रह

कलिस्टो हमारे सौर मण्डल के पाँचवे ग्रह बृहस्पति के 67 ज्ञात उपग्रह हैं जिनकी परिक्रमा की कक्षाएँ परखी जा चुकी हैं और स्थाई पायी गयी हैं। यह संख्या सौर मण्डल के किसी भी अन्य ग्रह से अधिक है। इन उपग्रहों में से चार चन्द्रमा काफी बड़े आकार के हैं - गैनिमीड, कलिस्टो, आयो और यूरोपा। इनकी खोज गैलीलियो गैलिली ने सन् 1610 में की थी इसलिए इन चारों को बृहस्पति के गैलिलीयाई चन्द्रमा भी कहा जाता है। यह चार पहले उपग्रह थे जो पृथ्वी से अन्य किसी ग्रह की परिक्रमा करते पाए गए थे। इन चारों का व्यास (डायामीटर) ३,१०० कि॰मी॰ से अधिक है। बृहस्पति के बाक़ी किसी भी उपग्रह का व्यास २५० कि॰मी॰ से अधिक नहीं और अधिकतर तो ५ कि॰मी॰ से भी कम का व्यास रखते हैं। .

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बेंजीन

बेंजीन के विभिन्न प्रकार के निरूपण बेंज़ीन या धूपेन्य एक हाइड्रोकार्बन है जिसका अणुसूत्र C6H6 है। बेंजीन का अणु ६ कार्बन परमाणुओं से बना होता है जो एक छल्ले की तरह जुड़े होते हैं तथा प्रत्येक कार्बन परमाणु से एक हाइड्रोजन परमाणु जुड़ा होता है। बेंजीन, पेट्रोलियम (क्रूड ऑयल) में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। कोयले के शुष्क आसवन से अलकतरा तथा अलकतरे के प्रभाजी आसवन (fractional distillation) से बेंजीन बड़ी मात्रा में तैयार होता है। प्रदीपन गैस से प्राप्त तेल से फैराडे ने 1825 ई. में सर्वप्रथम इसे प्राप्त किया था। मिटशरले ने 1834 ई. में बेंज़ोइक अम्ल से इसे प्राप्त किया और इसका नाम बेंजीन रखा। अलकतरे में इसकी उपस्थिति का पता पहले पहल 1845 ई. में हॉफमैन (Hoffmann) ने लगाया था। जर्मनी में बेंजीन को 'बेंज़ोल' कहते हैं। बेंजीन रंगहीन, मीठी गन्थ वाला, अत्यन्त ज्वलनशील द्रव है। इसका उपयोग एथिलबेंजीन्न और क्यूमीन (cumene) आदि भारी मात्रा में उत्पादित रसायनों के निर्माण में होता है। चूँकि बेंजीन का ऑक्टेन संख्या अधिक होती है, इसलिये पेट्रोल में कुछ प्रतिशत तक यह मिलाया गया होता है। यह कैंसरजन है जिसके कारण इसका गैर-औद्योगिक उपयोग कम ही होता है। .

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भारतीय खगोलिकी

भारत में खगोलिकी की अति प्राचीन एवं उज्ज्वल परम्परा रही है। वास्तव में भारत में खगोलीय अध्ययन वेद के अंग (वेदांग) के रूप में १५०० ईसापूर्व या उससे भी पहले शुरू हुआ। वेदांग ज्योतिष इसका सबसे पुराना ग्रन्थ है। .

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भारतीय गणित

गणितीय गवेषणा का महत्वपूर्ण भाग भारतीय उपमहाद्वीप में उत्पन्न हुआ है। संख्या, शून्य, स्थानीय मान, अंकगणित, ज्यामिति, बीजगणित, कैलकुलस आदि का प्रारम्भिक कार्य भारत में सम्पन्न हुआ। गणित-विज्ञान न केवल औद्योगिक क्रांति का बल्कि परवर्ती काल में हुई वैज्ञानिक उन्नति का भी केंद्र बिन्दु रहा है। बिना गणित के विज्ञान की कोई भी शाखा पूर्ण नहीं हो सकती। भारत ने औद्योगिक क्रांति के लिए न केवल आर्थिक पूँजी प्रदान की वरन् विज्ञान की नींव के जीवंत तत्व भी प्रदान किये जिसके बिना मानवता विज्ञान और उच्च तकनीकी के इस आधुनिक दौर में प्रवेश नहीं कर पाती। विदेशी विद्वानों ने भी गणित के क्षेत्र में भारत के योगदान की मुक्तकंठ से सराहना की है। .

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भूमध्य रेखा

विश्व के मानचित्र पर भूमध्य रेखा लाल रंग में गोलक का महानतम चक्र (घेरा) उसे ऊपरी और निचले गोलार्धों में बांटाता है। भूमध्य रेखा पृथ्वी की सतह पर उत्तरी ध्रुव एवं दक्षिणी ध्रुव से सामान दूरी पर स्थित एक काल्पनिक रेखा है। यह पृथ्वी को उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध में विभाजित करती है। दूसरे शब्दों में पृथ्वी के केंद्र से सर्वाधिक दूरस्थ भूमध्यरेखीय उभार पर स्थित बिन्दुओं को मिलाते हुए ग्लोब पर पश्चिम से पूर्व की ओर खींची गई कल्पनिक रेखा को भूमध्य या विषुवत रेखा कहते हैं। इस पर वर्ष भर दिन-रात बराबर होतें हैं, इसलिए इसे विषुवत रेखा भी कहते हैं। अन्य ग्रहों की विषुवत रेखा को भी सामान रूप से परिभाषित किया गया है। इस रेखा के उत्तरी ओर २३½° में कर्क रेखा है व दक्षिणी ओर २३½° में मकर रेखा है। .

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भूरा बौना

हमारे सूर्य, बृहस्पति ग्रह और हमारे सौर मण्डल से बाहर मिलने वाले भूरे बौने ग्लीज़ २२९बी और टेइडे १ के आकारों की तुलना भूरा बौना या ब्राउन ड्वार्फ़ ब्रह्माण्ड में ऐसी वस्तु को कहा जाता है जो आकार में गैस दानव ग्रहों और तारों के दरम्यान का स्थान रखती हैं। भूरे बौने गैस के बने होते हैं, जिसमें हाइड्रोजन और हिलियम प्रधान होती हैं। भूरे बौनों का आकार तारों से छोटा होता है और उनमें इतना गुरुत्वाकर्षण नहीं होता के उनमें हाइड्रोजन गैस के परमाणुओं के कुचले जाने से नाभिकीय संलयन (न्यूक्लियर फ्यूज़न) की प्रक्रिया शुरू हो, लेकिन कुछ अन्य भारी तत्वों का संयलन आरम्भ अवश्य हो जाता है - जैसे की ड्यूटेरियम और लिथियम का। गैस दानव ग्रहों में बिलकुल किसी प्रकार का संयलन नहीं होता। वैज्ञानिकों में कुछ विवाद है के किस आकार पर वास्तु गैस दानव नहीं रहती और भूरा बौना बन जाती है और किस आकार पर तारा बन जाती है। अनुमान है के बृहस्पति से १३ गुना ज़्यादा द्रव्यमान (मास) होने पर भूरा बौना और ७५ गुना ज़्यादा द्रव्यमान होने पर तारा बन जाता है। .

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भूकेन्द्रीय मॉडल

खगोल विज्ञान में, भूकेन्द्रीय मॉडल (Geocentric model) (भूकेंद्रक या टोलेमिक प्रणाली के रूप भी में जाना जाता है) ब्रह्मांड का वर्णन है जहां पृथ्वी सभी खगोलीय पिंडों के कक्षीय केंद्र पर है। यह मॉडल अनेक प्राचीन सभ्यताओं, जैसे कि प्राचीन ग्रीस, में प्रमुख ब्रह्माण्ड संबंधी प्रणाली के रूप में पेश हुआ। जैसे, अरस्तू और टॉलेमी की उल्लेखनीय प्रणालियों सहित, उन्होने मान लिया था कि सूर्य, चंद्रमा, तारें और नग्न चक्षु ग्रह पृथ्वी की परिक्रमा करते है। (देखें अरस्तू की भौतिकी) .

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मिथेन

मिथेन अल्केन श्रेणी का प्रथम सदस्य है। यह सबसे साधारण हाइड्रोकार्बन है। .

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मंगल

यदि आपका मतलब कुछ और था तो यहां जाएं -मंगल (बहुविकल्पी) मंगल का अर्थ होता है शुभ, पावन, कुशल इत्यादि। .

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मीटस (उपग्रह)

सन् १९९६-९७ में गैलिलेओ यान द्वारा ली गयी मीटस की झलकी मीटस (यूनानी: Μήτις, अंग्रेज़ी: Metis) बृहस्पति ग्रह का सब से अंदरूनी उपग्रह है। इस ग्रह के अस्तित्व के बारे में सब से पहले १९७९ में पता चला जब अंतरिक्ष यान वॉयेजर प्रथम बृहस्पति के पास से गुज़रा और मीटस को उसके द्वारा खींची गयी तस्वीरों में देखा गया। उसके बाद १९९६ से लेकर सितम्बर २००३ तक गैलिलेओ यान (जिसे बृहस्पति मण्डल का अध्ययन करने भेजा गया था) ने भी इसके कई चित्र उतारे। मीटस के बृहस्पति के इतना पास होने से और बृहस्पति से इतना छोटा होने से यह उपग्रह बृहस्पति की स्थिरमुखी परिक्रमा करता है, यानि परिक्रमा करते हुए मीटस का एक ही रुख़ हमेशा बृहस्पति की ओर होता है। बृहस्पति के तगड़े गुरूत्वाकर्षक खिचाव से इस उपग्रह की गोलाई भी बेढंगी हो गयी है - इसकी लम्बाई इसकी चौड़ाई से दो गुना अधिक है। यह उपग्रह बृहस्पति की रोश सीमा के अन्दर आता है और यदि मीटस में अंदरूनी चिपकाव कम होता तो बृहस्पति का भयंकर गुरुत्वाकर्षण इसे तोड़ चुका होता। वैज्ञानिकों का मानना है के इस उपग्रह के कुछ अंशों का चूरा बनकर बृहस्पति की मुख्य उपग्रही छल्ले के बनने में प्रयोग हुआ है। .

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युलीसेस

यूलिसिस (Ulysses) एक रोबोटिक अंतरिक्ष यान है जिसे नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (इसा) के एक संयुक्त उद्यम के रूप में सूर्य का अध्ययन करने के लिए डिजाइन किया गया था। अंतरिक्ष यान को नजदीकी सौर दूरी के लिए अपनी लंबी और अप्रत्यक्ष प्रक्षेपवक्र की वजह से मूलतः ओडीसियस (Odysseus) नामित किया गया था। यह यूलिसिस नाम, जो ओडीसियस का लेटिन अनुवाद है, इसा के अनुरोध पर दिया गया था। मूल रूप से इसे अंतरिक्ष शटल चैलेंजर पर सवार होकर मई १९८६ में प्रक्षेपण के लिए निर्धारित किया गया था। चैलेंजर को खोने के कारण, डिस्कवरी (मिशन STS-41) पर सवारी हेतू, यूलिसिस का प्रक्षेपण ६ अक्टूबर १९९० तक विलंबित हो गया | इस अंतरिक्ष यान का मिशन सभी अक्षांशों पर सूर्य का अध्ययन करने के लिए था। इसके लिए एक बड़े कक्षीय तल स्थानांतरण की आवश्यकता होती है | शटल की वेग परिवर्तन सीमाओं के कारण, तल स्थानांतरण के लिए वेग परिवर्तन की आवश्यकता को इंजिन जलाने के बजाय, बृहस्पति के साथ एक मुठभेड़ का उपयोग करके पूरा किया गया | एक बृहस्पति मुठभेड़ की जरूरत का अर्थ है, यूलिसिस सौर बैटरियों द्वारा संचालित नहीं हो सकता था, बजाय इसे एक रेडियो आइसोटोप थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटर (RTG) द्वारा संचालित किया गया था। श्रेणी:अंतरिक्ष यान.

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युग (खगोलशास्त्र)

यह बाहरी सौर मंडल की वस्तुओं की स्थिति का चित्रण है (हरी बिन्दुएँ काइपर घेरे की वस्तुएँ हैं)। यह J2000.0 खगोलीय युग पर आधारित है - यानि १ जनवरी २००० को यह वस्तुएँ इन स्थानों पर थीं लेकिन तब से ज़रा-बहुत हिल चुकी होंगी खगोलशास्त्र में युग (epoch) समय के किसी एक आम सहमती से चुने हुए क्षण को बोलते हैं जिसपर आधारित किसी खगोलीय वस्तु या प्रक्रिया की स्थिति के बारे में जानकारी दी जाए। ब्रह्माण्ड में लगभग सभी वस्तुओं में लगातार परिवर्तन आते रहते हैं - तारों की हमसे दूसरी बदलती है, तारों की रौशनी उतरती-चढ़ती है, ग्रहों का अक्षीय झुकाव बदलता है, इत्यादि - इसलिए यह आवश्यक है कि जब भी किसी वास्तु का कोई माप दिया जाए तो यह स्पष्ट कर दिया जाए कि वह माप किस समय के लिए सत्य था। इसलिए जब पंचांग बनाए जाते हैं जो खगोलीय वस्तुओं की भिन्न समयों पर दशा बताते हैं तो उन्हें किसी खगोलीय युग पर आधारित करना ज़रूरी होता है। खगोलशास्त्रियों के समुदाय समय-समय पर एक दिनांक को नया खगोलीय युग घोषित कर देते हैं और फिर उसका प्रयोग करते हैं। समय गुज़रने के साथ ब्रह्माण्ड बदलता है और एक समय आता है जब उस खगोलीय युग पर जो वस्तुओं की स्थिति थी वह वर्तमान स्थिति से बहुत अलग हो जाती है। ऐसा होने पर आपसी सहमती बनाकर फिर एक नया खगोलीय युग घोषित किया जाता है और सभी वस्तुओं की स्थिति का उस नए युग के लिए अद्यतन किया जाता है। .

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यूरोपा (उपग्रह)

यूरोपा (Europa), हमारे सौर मण्डल के पाँचवे ग्रह बृहस्पति का चौथा सब से बड़ा उपग्रह है। इसका व्यास (डायामीटर) लगभग 3,138 किमी है जो हमारे चन्द्रमा से चंद किलोमीटर ही छोटा है। .

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यूरोपीय अंतरिक्ष अभिकरण

यूरोपीय अंतरिक्ष अभिकरण या यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ईसा) १८ सदस्य देशों का एक मिला जुला समूह है, जो कि अंतरिक्ष से जुड़ी गतिविधियाँ संचालित करता है। इसकी स्थापना सन १९७५ में हुई थी। ईसा का मुख्यालय पेरिस में स्थित है। गुयाना अंतरिक्ष केंद्र मुख्य प्रक्षेपण स्थल है एवं एरियन-५ प्रमुख प्रक्षेपण यान है। एरियन-5 श्रेणी:विश्व के प्रमुख अंतरिक्ष संगठन श्रेणी:यूरोप श्रेणी:यूरोप में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी.

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राशिचक्र

इज़राइल के बेत ऐल्फ़ा क़स्बे से मिला एक ६वी सदी की यूनानी लहजे में बनी सड़क की एक टाइल जिसपर राशिचक्र बना हुआ है - हर राशि का एक ख़ाना है राशिचक्र वह तारामंडलों का चक्र है जो क्रांतिवृत्त (ऍक्लिप्टिक) में आते है, यानि उस मार्ग पर आते हैं जो सूरज एक साल में खगोलीय गोले में लेता है। ज्योतिषी में इस मार्ग को बाराह बराबर के हिस्सों में बाँट दिया जाता है जिन्हें राशियाँ कहा जाता है। हर राशि का नाम उस तारामंडल पर डाला जाता है जिसमें सूरज उस माह में (रोज़ दोपहर के बारह बजे) मौजूद होता है। हर वर्ष में सूरज इन बाराहों राशियों का दौरा पूरा करके फिर शुरू से आरम्भ करता है। .

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रेडियो खगोलशास्त्र

अमेरिका के न्यू मेक्सिको राज्य के रेगिस्तान में लगी रेडियो दूरबीनों की एक शृंखला रेडियो खगोलशास्त्र (Radio astronomy) खगोलशास्त्र की वह शाखा है जिसमें खगोलीय वस्तुओं का अध्ययन रेडियो आवृत्ति (फ़्रीक्वॅन्सी) पर आ रही रेडियो तरंगों के ज़रिये किया जाता है। इसका सबसे पहला प्रयोग १९३० के दशक में कार्ल जैन्सकी (Karl Jansky) नामक अमेरिकी खगोलशास्त्री ने किया था जब उन्होंने आकाशगंगा (हमारी गैलेक्सी) से विकिरण (रेडियेशन) आते हुए देखा। उसके बाद तारों, गैलेक्सियों, पल्सरों, क्वेज़ारों और अन्य खगोलीय वस्तुओं का रेडियो खगोलशास्त्र में अध्ययन किया जा चुका है। बिग बैंग सिद्धांत की पुष्ठी भी खगोलीय पार्श्व सूक्ष्मतरंगी विकिरण (कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड रेडियेशन) का अध्ययन करने से की गई है।, Hephaestus Books, Hephaestus Books, 2011, ISBN 978-1-244-89478-5, Sir Francis Graham-Smith, CUP Archive, 1952 रेडियो खगोलशास्त्र में भीमकाय रेडियो एन्टेना के ज़रिये रेडियो तरंगों को पकड़ा जाता है और फिर उनपर अनुसन्धान किया जाता है। इन रेडियो एन्टेनाओं को रेडियो दूरबीन (रेडियो टेलिस्कोप) कहा जाता है। कभी-कभी रेडियो खगोलशास्त्र किसी अकेले एन्टेना से किया जाता है और कभी एक पूरे रेडियो दूरबीनों के गुट का प्रयोग किया जाता है जिसमें इन सबसे मिले रेडियो संकेतों को मिलकर एक ज़्यादा विस्तृत तस्वीर मिल सकती है। क्योंकि रेडियो दूरबीनों का आकार बड़ा होता है इसलिए अक्सर ऐसी दूरबीनों की शृंखलाएँ शहर से दूर रेगिस्तानों और पहाड़ों जैसे बीहड़ इलाकों में मिलती हैं।, Jeff Lashley, Springer, 2010, ISBN 978-1-4419-0882-7 .

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रॉबर्ट हुक

रॉबर्ट हूक, एफ.आर.एस.

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रोमन साम्राज्य

अपने महत्तम विस्तार पर 117 इस्वी में '''रोमन साम्राज्य''' रोमन साम्राज्य का उत्थान एवं पतन रोमन साम्राज्य (27 ई.पू. –- 476 (पश्चिम); 1453 (पूर्व)) यूरोप के रोम नगर में केन्द्रित एक साम्राज्य था। इस साम्राज्य का विस्तार पूरे दक्षिणी यूरोप के अलावे उत्तरी अफ्रीका और अनातोलिया के क्षेत्र थे। फारसी साम्राज्य इसका प्रतिद्वंदी था जो फ़ुरात नदी के पूर्व में स्थित था। रोमन साम्राज्य में अलग-अलग स्थानों पर लातिनी और यूनानी भाषाएँ बोली जाती थी और सन् १३० में इसने ईसाई धर्म को राजधर्म घोषित कर दिया था। यह विश्व के सबसे विशाल साम्राज्यों में से एक था। यूँ तो पाँचवी सदी के अन्त तक इस साम्राज्य का पतन हो गया था और इस्तांबुल (कॉन्स्टेन्टिनोपल) इसके पूर्वी शाखा की राजधानी बन गई थी पर सन् १४५३ में उस्मानों (ऑटोमन तुर्क) ने इसपर भी अधिकार कर लिया था। यह यूरोप के इतिहास और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अंग है। .

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लातिन भाषा

लातीना (Latina लातीना) प्राचीन रोमन साम्राज्य और प्राचीन रोमन धर्म की राजभाषा थी। आज ये एक मृत भाषा है, लेकिन फिर भी रोमन कैथोलिक चर्च की धर्मभाषा और वैटिकन सिटी शहर की राजभाषा है। ये एक शास्त्रीय भाषा है, संस्कृत की ही तरह, जिससे ये बहुत ज़्यादा मेल खाती है। लातीना हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की रोमांस शाखा में आती है। इसी से फ़्रांसिसी, इतालवी, स्पैनिश, रोमानियाई और पुर्तगाली भाषाओं का उद्गम हुआ है (पर अंग्रेज़ी का नहीं)। यूरोप में ईसाई धर्म के प्रभुत्व की वजह से लातीना मध्ययुगीन और पूर्व-आधुनिक कालों में लगभग सारे यूरोप की अंतर्राष्ट्रीय भाषा थी, जिसमें समस्त धर्म, विज्ञान, उच्च साहित्य, दर्शन और गणित की किताबें लिखी जाती थीं। .

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लाल बौना

ब्रह्माण्ड में अधिकतर तारे लाल बौने ही हैं - यह लाल बौने का चित्र एक चित्रकार ने अपनी कल्पना से बनाया है खगोलशास्त्र में लाल बौना या रॅड ड्वार्फ़ मुख्य अनुक्रम के एक छोटे और सूर्य की तुलना में ठन्डे, तारे को बोला जाता है जो "K" या "M" की श्रेणी का तारा होता है। इन तारों का रंग हमारे सूरज की तुलना में अधिक लाल होता है जिसकी वजह से इन्हें लाल बौना कहा जाता है। ब्रह्माण्ड में अधिकतर तारे इसी श्रेणी के हैं। इनका सतही तापमान ४,०००° कैल्विन के आसपास होता है। अकार में यह सूर्य के ५०% से लेकर ७.५% तक के होते हैं। इस से भी अगर छोटे हो तो सही अर्थ में तारा बन नहीं पाते और उसके बजाए भूरा बौना बन जाते हैं।, 6 February 2013, Jason Palmer, BBC, retrieved at 11 April 2013 .

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लग्रांज बिन्दु

The five Lagrangian points (marked in green) at two objects orbiting each other (here a yellow sun and blue earth) कल्पना किजिए यदि सूर्य के केंद्र से शुरू कर पृथ्वी के केंद्र तक एक सीधी सरल रेखा खींच दी जाए और इस सरल रेखा के ठीक बीच में किसी वस्तु को रख दिया जाए तो क्या होगा ? स्वाभाविक है सूर्य का शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण बल जो कि पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल से कही अधिक है, इस वस्तु को अपनी ओर खींच लेगा | अब यदि सरल रेखा के बीच रखी इस वस्तु को धीरे धीरे पृथ्वी की ओर ले जाया जाए, तो क्या होगा ? जैसे जैसे यह वस्तु पृथ्वी के करीब होती चली जायेगी इस पर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल का प्रभाव बढ़ता जाएगा और सूर्य का प्रभाव उसी अनुपात में घटता जाएगा और एक स्थिति ऐसी आएगी जब इस वस्तु पर सूर्य और पृथ्वी दोनों का प्रभाव बराबर हो जाएगा अर्थात इस स्थिति में इस वस्तु को ना तो सूर्य अपनी ओर खींच पायेगा और ना ही पृथ्वी इसे अपनी ओर खींच सकेगी, बल्कि वस्तु अधर में लटकी रहेगी | अतः ऐसे संतुलन बिंदु जहां सूर्य और पृथ्वी के गुरुत्वीय बल बराबर होते है लग्रांज बिन्दु कहलाते हैं। यह तो एक उदाहरण है किन्तु वास्तव में सूर्य और पृथ्वी के बीच केवल गुरुत्वीय बलों की खीचतान नहीं होती, बल्कि इसके अतिरिक्त भी कई ऐसे बल है जो अपना प्रभाव डालते है, जैसे कि पृथ्वी के घूर्णन गति से उत्पन्न बल और पृथ्वी के कक्षीय गति से उत्पन्न केंद्रीय अपसारी बल | इन सभी बलों के आपसी खींचतान के फलस्वरूप सूर्य और पृथ्वी के प्रभाव क्षेत्र में पांच संतुलन बिंदु या लग्रांज बिंदु बनते है जिसे क्रमशः L1, L2, L3, L4 और L5 चिन्ह से प्रदर्शित किया जाता है। श्रेणी:भौतिकी en:Lagrangian point.

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शनि

कोई विवरण नहीं।

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शनि के छल्ले

शनि के छल्लों की तस्वीर - बाहरी "ए" छल्ले और भीतरी "बी" छल्ले के बीच की कैसिनी दरार साफ़ नज़र आ रही है शनि के छल्ले हमारे सौर मण्डल के सबसे शानदार उपग्रही छल्लों का गुट हैं। यह छोटे-छोटे कणों से लेकर कई मीटर बड़े अनगिनत टुकड़ों से बने हुए हैं जो सारे इन छल्लों का हिस्सा बने शनि की परिक्रमा कर रहें हैं। यह सारे टुकड़े अधिकतर पानी की बर्फ़ के बने हुए हैं जिनमें कुछ-कुछ धुल भी मिश्रित है। यह सारे छल्ले एक चपटे चक्र में एक के अन्दर एक हैं। इस चक्र में छल्लों के बीच कुछ ख़ाली छल्ले-रुपी अंतराल या दरारे भी हैं। इन में से कुछ दरारे तो इस चक्र में परिक्रमा करते हुए उपग्रहों ने बना लीं हैं: जहाँ इनकी परिक्रमा की कक्षाएँ हैं वहाँ इन्होने छल्लों में से मलबा हटा दिया है। लेकिन कुछ दरारों के कारण अभी वैज्ञानिकों को ज्ञात नहीं हैं। .

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शुक्र

शुक्र (Venus), सूर्य से दूसरा ग्रह है और प्रत्येक 224.7 पृथ्वी दिनों मे सूर्य परिक्रमा करता है। ग्रह का नामकरण प्रेम और सौंदर्य की रोमन देवी पर हुआ है। चंद्रमा के बाद यह रात्रि आकाश में सबसे चमकीली प्राकृतिक वस्तु है। इसका आभासी परिमाण -4.6 के स्तर तक पहुँच जाता है और यह छाया डालने के लिए पर्याप्त उज्जवलता है। चूँकि शुक्र एक अवर ग्रह है इसलिए पृथ्वी से देखने पर यह कभी सूर्य से दूर नज़र नहीं आता है: इसका प्रसरकोण 47.8 डिग्री के अधिकतम तक पहुँचता है। शुक्र सूर्योदय से पहले या सूर्यास्त के बाद केवल थोड़ी देर के लए ही अपनी अधिकतम चमक पर पहुँचता है। यहीं कारण है जिसके लिए यह प्राचीन संस्कृतियों के द्वारा सुबह का तारा या शाम का तारा के रूप में संदर्भित किया गया है। शुक्र एक स्थलीय ग्रह के रूप में वर्गीकृत है और समान आकार, गुरुत्वाकर्षण और संरचना के कारण कभी कभी उसे पृथ्वी का "बहन ग्रह" कहा गया है। शुक्र आकार और दूरी दोनों मे पृथ्वी के निकटतम है। हालांकि अन्य मामलों में यह पृथ्वी से एकदम अलग नज़र आता है। शुक्र सल्फ्यूरिक एसिड युक्त अत्यधिक परावर्तक बादलों की एक अपारदर्शी परत से ढँका हुआ है। जिसने इसकी सतह को दृश्य प्रकाश में अंतरिक्ष से निहारने से बचा रखा है। इसका वायुमंडल चार स्थलीय ग्रहों मे सघनतम है और अधिकाँशतः कार्बन डाईऑक्साइड से बना है। ग्रह की सतह पर वायुमंडलीय दबाव पृथ्वी की तुलना मे 92 गुना है। 735° K (462°C,863°F) के औसत सतही तापमान के साथ शुक्र सौर मंडल मे अब तक का सबसे तप्त ग्रह है। कार्बन को चट्टानों और सतही भूआकृतियों में वापस जकड़ने के लिए यहाँ कोई कार्बन चक्र मौजूद नही है और ना ही ज़ीवद्रव्य को इसमे अवशोषित करने के लिए कोई कार्बनिक जीवन यहाँ नज़र आता है। शुक्र पर अतीत में महासागर हो सकते हैलेकिन अनवरत ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण बढ़ते तापमान के साथ वह वाष्पीकृत होते गये होंगे |B.M. Jakosky, "Atmospheres of the Terrestrial Planets", in Beatty, Petersen and Chaikin (eds), The New Solar System, 4th edition 1999, Sky Publishing Company (Boston) and Cambridge University Press (Cambridge), pp.

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सल्फर डाइऑक्साइड

सल्फर डाइऑक्साइड (Sulfur dioxide), एक रासायनिक यौगिक है। इसका रासायनिक सूत्र SO2 है। यह तीव्र गंध युक्त, एक तीक्ष्ण विषैली गैस है, जो कई तरह की औद्योगिक प्रक्रियाओं में तथा ज्वालामुखियों द्वारा छोड़ी जाती है। .

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सापेक्ष कांतिमान

क्षुद्रग्रह ६५ सिबअली और २ तारे जिनकें सापेक्ष कान्तिमान (apmag) लिखे गए हैं सापेक्ष कांतिमान किसी खगोलीय वस्तु के पृथ्वी पर बैठे दर्शक द्वारा प्रतीत होने वाले चमकीलेपन को कहते हैं। सापेक्ष कान्तिमान को मापने के लिए यह शर्त होती है कि आकाश में कोई बादल, धूल, वगैरा न हो और वह वस्तु साफ़ देखी जा सके। निरपेक्ष कांतिमान और सापेक्ष कांतिमान दोनों को मापने की इकाई "मैग्निट्यूड" (magnitude) कहलाती है। .

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सिलिकॉन

सिलिकॉन (Silicon); प्रतीक: Si) एक रासायनिक तत्व है। यह पृथ्वी पर ऑक्सीजन के बाद सबसे अधिक पाया जाने वाला तत्व है। सिलिकॉन के यौगिक एलेक्ट्रॉनिक अवयव, साबुन, शीशे एवं कंप्यूटर चिप्स में इस्तेमाल किए जाते हैं। सिलिकॉन की खोज १८२४ में स्वीडन के रसायनशास्त्री जोंस जकब बज्रेलियस ने की थी। आवर्त सारिणी में इसे १४वें स्थान पर रखा गया है। .

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संयोजन (खगोलशास्त्र)

संयोजन (Conjuction), तब होता है जब कोई ग्रह पृथ्वी और सूर्य के बीच की सीधी रेखा पर स्थित होता है। संयोजन का खगोलीय प्रतीक ơ है। इसे हस्तलिपी में और यूनिकोड में U+260C लिखते हैं। हालांकि, इस प्रतीक को आधुनिक खगोल विज्ञान में कभी इस्तेमाल नहीं किया गया है, मात्र ऐतिहासिक रुचि भर का है। ग्रहों के औसत कक्षीय वेग, सूर्य से बढ़ती दूरी के साथ घटते जाते है, जो ग्रहों की परस्पर बदलती स्थिति का कारण बनता है। उदाहरण के लिए, पृथ्वी अपनी कक्षा पर मंगल से ज्यादा तेज चलती है, इसलिए नियमित रूप से मंगल के पास से होकर गुजरती है। इसी तरह से, शुक्र पृथ्वी को पकड़ लेता है और नियमित रूप से उसे पार करता है क्योंकि शुक्र का कक्षीय वेग पृथ्वी की तुलना में ज्यादा है। ग्रहों की पृथ्वी और सूर्य के सापेक्ष स्थिति का परिणाम संयोजन और विमुखता के रूप में होता है। यदि कोई अवर ग्रह (बुध व शुक्र) सूर्य और पृथ्वी के ठीक बीच आ जाये तो स्थिति अवर संयोजन कहलाती है। इन्ही में से कोई एक ग्रह यदि सूर्य के पीछे की तरफ चला जाये तो स्थिति वरिष्ठ संयोजन कहलाती है। वरिष्ठ ग्रहों (मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेप्च्यून) के संयोजन तब होते है जब इनमें से कोई ग्रह पृथ्वी के सापेक्ष सूर्य के पीछे की तरफ होता है। इसके विपरित, जब वरिष्ठ ग्रह पृथ्वी की तरफ होते है तब संयोजन को विमुखता के रूप में निर्दिष्ट किया जाता है। वरिष्ठ ग्रहों को संयोजन में नहीं देख सकते क्योंकि तब वें सूर्य के पीछे मौजुद होते हैं। हालांकि, जब वें विमुखता पर होते है उनकी स्पष्टता सर्वोत्तम होती है। ध्यान रहें केवल अवर ग्रहों में ही अवर और वरिष्ठ संयोजन होते हैं। वरिष्ठ ग्रहों में या तो संयोजन होता है या विमुखता होती है और यह इस बात पर निर्भर करता है कि वें कहां पर स्थित है, पृथ्वी से देखने पर सूर्य के पीछे की तरफ या सूर्य के इस तरफ जहां पृथ्वी है। जब बुध या शुक्र ग्रह, पृथ्वी और सूर्य के बीच से गुजरते है, पृथ्वी से देखने पर हो सकता है उनकी छवि काली चकती जैसी नजर आये और सूर्य की मुखाकृति के आरपार खिसकती हुई दिखाई दे, इस तरह की स्थिति पारगमन कहलाती है। पारगमन सभी परिस्थिति में पृथ्वी से नहीं नजर आते, कारण, उनकी कक्षाओं का क्रांतिवृत्त से झुकाव। .

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संहति-केन्द्र

अलग-अलग द्रव्यमान वाली चार गेंदों के निकाय का '''संहति-केन्द्र भौतिकी में, संहतियों के किसी वितरण का संहति-केंद्र (center of mass) वह बिन्दु है जिस पर वह सारी संहतियाँ केन्द्रीभूत मानी जा सकती हैं। संहति केन्द्र के कुछ विशेष गुण हैं, उदाहरण के लिये यदि किसी वस्तु पर कोई बल लगाया जाय जिसकी क्रियारेखा उस वस्तु के संहति-केन्द्र से होकर जाती हो तो उस वस्तु में केवल स्थानातरण गति होगी (घूर्णी गति नहीं)। संहति-केन्द्र के सापेक्ष उस वस्तु में निहित सभी संहतियों के आघूर्णों (मोमेण्ट) का योग शून्य होता है। दूसरे शब्दों में, संहति-केन्द्र के सापेक्ष, सभी संहतियों की स्थिति का भारित औसत (वेटेड एवरेज) शून्य होता है। कणों के किसी निकाय का संहति केन्द्र वह बिन्दु है जहाँ, अधिकांश उद्देश्यों के लिए, निकाय ऐसे गति करता है जैसे निकाय का सब द्रव्यमान उस बिन्दु पर संकेंद्रित हो। संहति केन्द्र, केवल निकाय के कणों के स्थिति-सदिश और द्रव्यमान पर निर्भर होता है। संहति केन्द्र पर वास्तविक पदार्थ होना अनिवार्य नहीं है (जैसे, एक खोखले गोले का संहति-केन्द्र उस गोले के केन्द्र पर होता है जहाँ कोई द्रव्यमान ही नहीं है)। गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के एकसमान होने की स्थिति में कभी-कभी इसे गलती से गुरुत्वाकर्षण केन्द्र भी कहा जाता है। किसी वस्तु का रेखागणितीय केन्द्र, द्रव्यमान केन्द्र तथा गुरुत्व केन्द्र अलग-अलग हो सकते हैं। संवेग-केन्द्रीय निर्देश तंत्र वह निर्देश तंत्र है जिसमें निकाय का द्रव्यमान केन्द्र स्थिर है। यह एक जड़त्वीय फ्रेम है। एक द्रव्यमान-केन्द्रीय निर्देश तंत्र वह तंत्र है जहाँ द्रव्यमान केन्द्र न केवल स्थिर है बल्कि निर्देशांक निकाय के मूल बिन्दु पर स्थित है। .

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स्पेक्ट्रोस्कोपी

स्पेक्ट्रमिकी का सबसे सरल उदाहरण: श्वेत प्रकाश को प्रिज्म होकर ले जाने पर वह सात रंगों में बंट जाती है। स्पेक्ट्रमिकी, भौतिकी विज्ञान की एक शाखा है जिसमें पदार्थों द्वारा उत्सर्जित या अवशोषित विद्युत चुंबकीय विकिरणों के स्पेक्ट्रमों का अध्ययन किया जाता है और इस अध्ययन से पदार्थों की आंतरिक रचना का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। इस शाखा में मुख्य रूप से वर्णक्रम का ही अध्ययन होता है अत: इसे स्पेक्ट्रमिकी या स्पेक्ट्रमविज्ञान (Spectroscopy) कहते हैं। मूलत: विकिरण एवं पदार्थ के बीच अन्तरक्रिया (interaction) के अध्ययन को स्पेक्ट्रमिकी या स्पेक्ट्रोस्कोपी (Spectroscopy) कहा जाता था। वस्तुत: ऐतिहासिक रूप से दृष्य प्रकाश का किसी प्रिज्म से गुजरने पर अलग-अलग आवृत्तियों का अलग-अलग रास्ते पर जाना ही स्पेक्ट्रोस्कोपी कहलाता था। बाद में 'स्पेक्ट्रोस्कोपी' शबद के अर्थ का विस्तार हुआ। अब तरंगदैर्ध्य (या आवृत्ति) के फलन के रूप में किसी भी राशि का मापन स्पेक्ट्रोस्कोपी कहलाती है। इसकी परिभाषा का और विस्तार तब मिला जब उर्जा (E) को चर राशि के रूप में सम्मिलित कर लिया गया (क्योंकि पता चला कि उर्जा और आवृत्ति में सीधा सम्बन्ध है: E .

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सौर द्रव्यमान

वी॰वाए॰ कैनिस मेजौरिस का द्रव्यमान ३०-४० \beginsmallmatrixM_\odot\endsmallmatrix है, यानि सूरज के द्रव्यमान का ३०-४० गुना है खगोलविज्ञान में सौर द्रव्यमान (solar mass) (\beginM_\odot\end) द्रव्यमान की मानक इकाई है, जिसका मान १.९८८९२ X १०३० कि.ग्रा.

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सौर मण्डल

सौर मंडल में सूर्य और वह खगोलीय पिंड सम्मलित हैं, जो इस मंडल में एक दूसरे से गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा बंधे हैं। किसी तारे के इर्द गिर्द परिक्रमा करते हुई उन खगोलीय वस्तुओं के समूह को ग्रहीय मण्डल कहा जाता है जो अन्य तारे न हों, जैसे की ग्रह, बौने ग्रह, प्राकृतिक उपग्रह, क्षुद्रग्रह, उल्का, धूमकेतु और खगोलीय धूल। हमारे सूरज और उसके ग्रहीय मण्डल को मिलाकर हमारा सौर मण्डल बनता है। इन पिंडों में आठ ग्रह, उनके 166 ज्ञात उपग्रह, पाँच बौने ग्रह और अरबों छोटे पिंड शामिल हैं। इन छोटे पिंडों में क्षुद्रग्रह, बर्फ़ीला काइपर घेरा के पिंड, धूमकेतु, उल्कायें और ग्रहों के बीच की धूल शामिल हैं। सौर मंडल के चार छोटे आंतरिक ग्रह बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल ग्रह जिन्हें स्थलीय ग्रह कहा जाता है, मुख्यतया पत्थर और धातु से बने हैं। और इसमें क्षुद्रग्रह घेरा, चार विशाल गैस से बने बाहरी गैस दानव ग्रह, काइपर घेरा और बिखरा चक्र शामिल हैं। काल्पनिक और्ट बादल भी सनदी क्षेत्रों से लगभग एक हजार गुना दूरी से परे मौजूद हो सकता है। सूर्य से होने वाला प्लाज़्मा का प्रवाह (सौर हवा) सौर मंडल को भेदता है। यह तारे के बीच के माध्यम में एक बुलबुला बनाता है जिसे हेलिओमंडल कहते हैं, जो इससे बाहर फैल कर बिखरी हुई तश्तरी के बीच तक जाता है। .

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सौर अर्धव्यास

सौर अर्धव्यास (solar radius), जिसे \beginR_\odot\end के चिन्ह से दर्शाया जाता है, हमारे सूरज का अर्धव्यास (रेडियस) है जो ६.९५५ x १०५ किलोमीटर के बराबर है। खगोलशास्त्र में, सौर्य अर्धव्यास का तारों के अर्धव्यास बताने के लिए इकाई की तरह इस्तेमाल होता है। अगर किसी तारे का अर्धव्यास हमारे सूरज से बीस गुना है, जो कहा जाएगा के उसका अर्धव्यास २० \beginR_\odot\end है। ज़ाहिर है के सूरज का अपना अर्धव्यास १ \beginR_\odot\end है। .

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सूर्य

सूर्य अथवा सूरज सौरमंडल के केन्द्र में स्थित एक तारा जिसके चारों तरफ पृथ्वी और सौरमंडल के अन्य अवयव घूमते हैं। सूर्य हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा पिंड है और उसका व्यास लगभग १३ लाख ९० हज़ार किलोमीटर है जो पृथ्वी से लगभग १०९ गुना अधिक है। ऊर्जा का यह शक्तिशाली भंडार मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम गैसों का एक विशाल गोला है। परमाणु विलय की प्रक्रिया द्वारा सूर्य अपने केंद्र में ऊर्जा पैदा करता है। सूर्य से निकली ऊर्जा का छोटा सा भाग ही पृथ्वी पर पहुँचता है जिसमें से १५ प्रतिशत अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाता है, ३० प्रतिशत पानी को भाप बनाने में काम आता है और बहुत सी ऊर्जा पेड़-पौधे समुद्र सोख लेते हैं। इसकी मजबूत गुरुत्वाकर्षण शक्ति विभिन्न कक्षाओं में घूमते हुए पृथ्वी और अन्य ग्रहों को इसकी तरफ खींच कर रखती है। सूर्य से पृथ्वी की औसत दूरी लगभग १४,९६,००,००० किलोमीटर या ९,२९,६०,००० मील है तथा सूर्य से पृथ्वी पर प्रकाश को आने में ८.३ मिनट का समय लगता है। इसी प्रकाशीय ऊर्जा से प्रकाश-संश्लेषण नामक एक महत्वपूर्ण जैव-रासायनिक अभिक्रिया होती है जो पृथ्वी पर जीवन का आधार है। यह पृथ्वी के जलवायु और मौसम को प्रभावित करता है। सूर्य की सतह का निर्माण हाइड्रोजन, हिलियम, लोहा, निकेल, ऑक्सीजन, सिलिकन, सल्फर, मैग्निसियम, कार्बन, नियोन, कैल्सियम, क्रोमियम तत्वों से हुआ है। इनमें से हाइड्रोजन सूर्य के सतह की मात्रा का ७४ % तथा हिलियम २४ % है। इस जलते हुए गैसीय पिंड को दूरदर्शी यंत्र से देखने पर इसकी सतह पर छोटे-बड़े धब्बे दिखलाई पड़ते हैं। इन्हें सौर कलंक कहा जाता है। ये कलंक अपने स्थान से सरकते हुए दिखाई पड़ते हैं। इससे वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि सूर्य पूरब से पश्चिम की ओर २७ दिनों में अपने अक्ष पर एक परिक्रमा करता है। जिस प्रकार पृथ्वी और अन्य ग्रह सूरज की परिक्रमा करते हैं उसी प्रकार सूरज भी आकाश गंगा के केन्द्र की परिक्रमा करता है। इसको परिक्रमा करनें में २२ से २५ करोड़ वर्ष लगते हैं, इसे एक निहारिका वर्ष भी कहते हैं। इसके परिक्रमा करने की गति २५१ किलोमीटर प्रति सेकेंड है। Barnhart, Robert K. (1995) The Barnhart Concise Dictionary of Etymology, page 776.

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सूर्य केंद्रीय सिद्धांत

सूर्य केंद्रीय सिद्धांत अथवा सूर्य केन्द्रीयता (heliocentricism), एक खगोलीय मॉडल है जिसमें पृथ्वी और ग्रह सौरमंडल के केंद्र में एक अपेक्षाकृत स्थिर सूर्य के चारों ओर घूमते है। यह शब्द प्राचीन यूनानी भाषा से आया है (ἥλιος हिलीयस "सूर्य" और κέντρον केंट्रोन "केंद्र")। ऐतिहासिक रूप से, सूर्य केन्द्रीयता ने भूकेंद्रीयता का विरोध किया था जिसने पृथ्वी को केंद्र पर रखा था। यह धारणा कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है, सैमोस के एरिसटेरकस द्वारा तीसरी शताब्दी ईपू के उत्तरार्ध में प्रस्तावित किया गया था। किंतु एरिसटेरकस के सूर्य केन्द्रीयता ने थोड़े समय के लिए ध्यान आकर्षित किया जब तक कोपरनिकस पुनर्जीवित हुआ और इसका सविस्तार हुआ। तथापि, लुसियो रुसो का तर्क है कि यह हेलेनिस्टिक युग के वैज्ञानिक कार्यों के नुकसान से उत्पन्न एक भ्रामक धारणा है। अप्रत्यक्ष प्रमाण का प्रयोग कर वे तर्क देते हैं कि एक सूर्य केंद्रीय विचार को हिप्पारकस के गुरुत्वाकर्षण पर कार्य में समझाया गया था। .

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सूर्यपथ

खगोलीय मध्य रेखा पृथ्वी की भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर है और क्रांतिवृत्त से २३.४ डिग्री के कोण पर है। २१ मार्च और २३ सितम्बर (विषुव/इक्विनोक्स के दिन) को क्रांतिवृत्त और खगोलीय मध्य रेखा एक दुसरे को काटती हैं। २१ जून और २१ दिसम्बर (संक्रांति/सॉल्सटिस के दिन) को क्रांतिवृत्त और खगोलीय मध्य रेखा एक दुसरे से चरम दूरी पर होते हैं। खगोलशास्त्र में क्रांतिवृत्त या सूर्यपथ या ऍक्लिप्टिक आकाश के खगोलीय गोले पर वह मार्ग है जिसे ज़मीन पर बैठे किसी दर्शक के दृष्टिकोण से सूरज वर्ष भर में लेता है। आम भाषा में अगर यह कल्पना की जाए के पृथ्वी एक काल्पनिक गोले से घिरी हुई है (जिसे खगोलीय गोला कहा जाता है) और सूरज उसपर स्थित एक रोशनी है, तो अगर सालभर के लिए कोई हर रोज़ दोपहर के बराह बजे सूरज खगोलीय गोले पर जहाँ स्थित है वहाँ एक काल्पनिक बिंदु बना दे और फिर इन ३६५ बिन्दुओं (वर्ष के हर दिन का एक बिंदु) को जोड़ दे और उस रेखा को दोनों तरफ़ बढ़ाकर क्षितिज की ओर ले जाए तो उसे क्रांतिवृत्त मिल जाएगा.

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हाइड्रोजन

हाइड्रोजन पानी का एक महत्वपूर्ण अंग है शुद्ध हाइड्रोजन से भरी गैस डिस्चार्ज ट्यूब हाइड्रोजन (उदजन) (अंग्रेज़ी:Hydrogen) एक रासायनिक तत्व है। यह आवर्त सारणी का सबसे पहला तत्व है जो सबसे हल्का भी है। ब्रह्मांड में (पृथ्वी पर नहीं) यह सबसे प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। तारों तथा सूर्य का अधिकांश द्रव्यमान हाइड्रोजन से बना है। इसके एक परमाणु में एक प्रोट्रॉन, एक इलेक्ट्रॉन होता है। इस प्रकार यह सबसे सरल परमाणु भी है। प्रकृति में यह द्विआण्विक गैस के रूप में पाया जाता है जो वायुमण्डल के बाह्य परत का मुख्य संघटक है। हाल में इसको वाहनों के ईंधन के रूप में इस्तेमाल कर सकने के लिए शोध कार्य हो रहे हैं। यह एक गैसीय पदार्थ है जिसमें कोई गंध, स्वाद और रंग नहीं होता है। यह सबसे हल्का तत्व है (घनत्व 0.09 ग्राम प्रति लिटर)। इसकी परमाणु संख्या 1, संकेत (H) और परमाणु भार 1.008 है। यह आवर्त सारणी में प्रथम स्थान पर है। साधारणतया इससे दो परमाणु मिलकर एक अणु (H2) बनाते है। हाइड्रोजन बहुत निम्न ताप पर द्रव और ठोस होता है।।इण्डिया वॉटर पोर्टल।०८-३०-२०११।अभिगमन तिथि: १७-०६-२०१७ द्रव हाइड्रोजन - 253° से.

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हाइड्रोजन सल्फाइड

हाइड्रोजन सल्फाइड एक अकार्बनिक यौगिक है। हाइड्रोजन सल्फाइड (Hydrogen sulfide) एक अकार्बनिक रासायनिक यौगिक है जिसका अणुसूत्र है। यह एक रंगहीन गैस है जिसकी गंध सड़े अण्डे जैसी होती है। यह हवा से भारी है, बहुत विषैली, ज्वलनशील, विस्फोटक और संक्षारक (कोरोसिव) है। .

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हाइड्रोकार्बन

मिथेन एक प्रमुख हाइड्रोकार्बन है। इसके अणु का त्रि-बिमीय 'बाल ऐण्ड स्टिक मॉडल' हाइड्रोकार्बन कार्बनिक यौगिक होते हैं जो हाइड्रोजन और कार्बन के परमाणुओं से मिलकर बने होते हैं। इनका मुख्य स्रोत भूतैल है। प्राकृतिक गैस में भी केवल हाइड्रोकार्बन पाए जाते हैं। हाइड्रोकार्बन संतृप्त तथा असंतृप्त दो प्रकार के होते हैं। .

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हिलियम

तरलीकृत हीलियम शुद्ध हीलियम से भरी गैस डिस्चार्ज ट्यूब हिलियम (Helium) एक रासायनिक तत्त्व है जो प्रायः गैसीय अवस्था में रहता है। यह एक निष्क्रिय गैस या नोबेल गैस (Noble gas) है तथा रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन, विष-हीन (नॉन-टॉक्सिक) भी है। इसका परमाणु क्रमांक २ है। सभी तत्वों में इसका क्वथनांक (boiling point) एवं गलनांक (melting point) सबसे कम है। द्रव हिलियम का प्रयोग पदार्थों को अत्यन्त कम ताप तक ठण्डा करने के लिये किया जाता है; जैसे अतिचालक तारों को १.९ डिग्री केल्विन तक ठण्डा करने के लिये। हीलियम अक्रिय गैसों का एक प्रमुख सदस्य है। इसका संकेत He, परमाणुभार ४, परमाणुसंख्या २, घनत्व ०.१७८५, क्रांतिक ताप -२६७.९०० और क्रांतिक दबाव २ २६ वायुमंडल, क्वथनांक -२६८.९० सें.

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होहमान्न स्थानांतरण कक्षा

होहमान्न स्थानांतरण कक्षा (पीले रंग की) कक्षीय यांत्रिकी में, होहमान्न स्थानांतरण कक्षा (Hohmann transfer orbit) एक अंडाकार कक्षा है, जिसका उपयोग दो वृत्तीय कक्षाओं के बीच स्थानांतरण के लिए किया जाता है, आम तौर पर दोनों कक्षाएँ एक ही समतल में होती हैं। श्रेणी:खगोलशास्त्र.

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जल

जल या पानी एक आम रासायनिक पदार्थ है जिसका अणु दो हाइड्रोजन परमाणु और एक ऑक्सीजन परमाणु से बना है - H2O। यह सारे प्राणियों के जीवन का आधार है। आमतौर पर जल शब्द का प्प्रयोग द्रव अवस्था के लिए उपयोग में लाया जाता है पर यह ठोस अवस्था (बर्फ) और गैसीय अवस्था (भाप या जल वाष्प) में भी पाया जाता है। पानी जल-आत्मीय सतहों पर तरल-क्रिस्टल के रूप में भी पाया जाता है। पृथ्वी का लगभग 71% सतह को 1.460 पीटा टन (पीटी) (1021 किलोग्राम) जल से आच्छदित है जो अधिकतर महासागरों और अन्य बड़े जल निकायों का हिस्सा होता है इसके अतिरिक्त, 1.6% भूमिगत जल एक्वीफर और 0.001% जल वाष्प और बादल (इनका गठन हवा में जल के निलंबित ठोस और द्रव कणों से होता है) के रूप में पाया जाता है। खारे जल के महासागरों में पृथ्वी का कुल 97%, हिमनदों और ध्रुवीय बर्फ चोटिओं में 2.4% और अन्य स्रोतों जैसे नदियों, झीलों और तालाबों में 0.6% जल पाया जाता है। पृथ्वी पर जल की एक बहुत छोटी मात्रा, पानी की टंकिओं, जैविक निकायों, विनिर्मित उत्पादों के भीतर और खाद्य भंडार में निहित है। बर्फीली चोटिओं, हिमनद, एक्वीफर या झीलों का जल कई बार धरती पर जीवन के लिए साफ जल उपलब्ध कराता है। जल लगातार एक चक्र में घूमता रहता है जिसे जलचक्र कहते है, इसमे वाष्पीकरण या ट्रांस्पिरेशन, वर्षा और बह कर सागर में पहुॅचना शामिल है। हवा जल वाष्प को स्थल के ऊपर उसी दर से उड़ा ले जाती है जिस गति से यह बहकर सागर में पहँचता है लगभग 36 Tt (1012किलोग्राम) प्रति वर्ष। भूमि पर 107 Tt वर्षा के अलावा, वाष्पीकरण 71 Tt प्रति वर्ष का अतिरिक्त योगदान देता है। साफ और ताजा पेयजल मानवीय और अन्य जीवन के लिए आवश्यक है, लेकिन दुनिया के कई भागों में खासकर विकासशील देशों में भयंकर जलसंकट है और अनुमान है कि 2025 तक विश्व की आधी जनसंख्या इस जलसंकट से दो-चार होगी।.

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जुपिटर

यूपीतेर (लातीनी भाषा: iupiterयूपीतेर) प्राचीन रोमन धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक थे और देवताओं के राजा थे। वो वर्षा, बिजली और पुरुषत्व के देवता थे। उनके समतुल्य प्राचीन यूनानी धर्म के देवता थे स़ेउस (यूनानी में: ζευς)। रोमन धर्मशास्त्र में आकाश की आत्मा को 'जूपितर' की संज्ञा दी गई है। वर्षा और विद्युत के देवता के रूप में इसकी पूजा की जाती है। वह रोमन जातियों का रक्षक माना गया है। .

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ज्योतिष

ज्‍योतिष या ज्यौतिष विषय वेदों जितना ही प्राचीन है। प्राचीन काल में ग्रह, नक्षत्र और अन्‍य खगोलीय पिण्‍डों का अध्‍ययन करने के विषय को ही ज्‍योतिष कहा गया था। इसके गणित भाग के बारे में तो बहुत स्‍पष्‍टता से कहा जा सकता है कि इसके बारे में वेदों में स्‍पष्‍ट गणनाएं दी हुई हैं। फलित भाग के बारे में बहुत बाद में जानकारी मिलती है। भारतीय आचार्यों द्वारा रचित ज्योतिष की पाण्डुलिपियों की संख्या एक लाख से भी अधिक है। प्राचीनकाल में गणित एवं ज्यौतिष समानार्थी थे परन्तु आगे चलकर इनके तीन भाग हो गए।.

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ज्वारभाटा बल

बृहस्पति से टकराया - बृहस्पति के भयंकर ज्वारभाटा बल ने उसे तोड़ डाला पृथ्वी पर ज्वार-भाटा चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण से बने ज्वारभाटा बल से आते हैं शनि के उपग्रही छल्ले ज्वारभाटा बल की वजह से जुड़कर उपग्रह नहीं बन जाते ज्वारभाटा बल वह बल है जो एक वस्तु अपने गुरुत्वाकर्षण से किसी दूसरी वस्तु पर स्थित अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग स्तर से लगाती है। पृथ्वी पर समुद्र में ज्वार-भाटा के उतार-चढ़ाव का यही कारण है। .

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ज्वालामुखी

तवुर्वुर का एक सक्रिय ज्वालामुखी फटते हुए, राबाउल, पापुआ न्यू गिनिया ज्वालामुखी पृथ्वी की सतह पर उपस्थित ऐसी दरार या मुख होता है जिससे पृथ्वी के भीतर का गर्म लावा, गैस, राख आदि बाहर आते हैं। वस्तुतः यह पृथ्वी की ऊपरी परत में एक विभंग (rupture) होता है जिसके द्वारा अन्दर के पदार्थ बाहर निकलते हैं। ज्वालामुखी द्वारा निःसृत इन पदार्थों के जमा हो जाने से निर्मित शंक्वाकार स्थलरूप को ज्वालामुखी पर्वत कहा जाता है। ज्वालामुखी का सम्बंध प्लेट विवर्तनिकी से है क्योंकि यह पाया गया है कि बहुधा ये प्लेटों की सीमाओं के सहारे पाए जाते हैं क्योंकि प्लेट सीमाएँ पृथ्वी की ऊपरी परत में विभंग उत्पन्न होने हेतु कमजोर स्थल उपलब्ध करा देती हैं। इसके अलावा कुछ अन्य स्थलों पर भी ज्वालामुखी पाए जाते हैं जिनकी उत्पत्ति मैंटल प्लूम से मानी जाती है और ऐसे स्थलों को हॉटस्पॉट की संज्ञा दी जाती है। भू-आकृति विज्ञान में ज्वालामुखी को आकस्मिक घटना के रूप में देखा जाता है और पृथ्वी की सतह पर परिवर्तन लाने वाले बलों में इसे रचनात्मक बल के रूप में वर्गीकृत किया जाता है क्योंकि इनसे कई स्थलरूपों का निर्माण होता है। वहीं, दूसरी ओर पर्यावरण भूगोल इनका अध्ययन एक प्राकृतिक आपदा के रूप में करता है क्योंकि इससे पारितंत्र और जान-माल का नुकसान होता है। .

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जूनो (अंतरिक्ष यान)

बृहस्पति के आगे जूनो शोध यान का काल्पनिक चित्र जूनो (अंग्रेज़ी: Juno) अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसन्धान परिषद्, नासा, द्वारा हमारे सौर मंडल के पाँचवे ग्रह, बृहस्पति, पर अध्ययन करने के लिए पृथ्वी से ५ अगस्त २०११ को छोड़ा गया एक अंतरिक्ष शोध यान है। लगभग ५ वर्ष लंबी यात्रा के बाद ५ जुलाई २०१६ को यह बृहस्पति तक पहुँचने में सफल रहा। इस अभियान पर लगभग १.१ अरब डॉलर की लागत का अनुमान है। .

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घनत्व

भौतिकी में किसी पदार्थ के इकाई आयतन में निहित द्रव्यमान को उस पदार्थ का घनत्व (डेंसिटी) कहते हैं। इसे ρ या d से निरूपित करते हैं। अर्थात अतः घनत्व किसी पदार्थ के घनेपन की माप है। यह इंगित करता है कि कोई पदार्थ कितनी अच्छी तरह सजाया हुआ है। इसकी इकाई किग्रा प्रति घन मीटर होती है। .

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घूर्णन

अक्ष पर घूर्णन करती हुई पृथ्वी घूर्णन करते हुए तीन छल्ले भौतिकी में किसी त्रिआयामी वस्तु के एक स्थान में रहते हुए (लट्टू की तरह) घूमने को घूर्णन (rotation) कहते हैं। यदि एक काल्पनिक रेखा उस वस्तु के बीच में खींची जाए जिसके इर्द-गिर्द वस्तु चक्कर खा रही है तो उस रेखा को घूर्णन अक्ष कहा जाता है। पृथ्वी अपने अक्ष पर घूर्णन करती है। .

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घूर्णन अक्ष

अपने घूर्णन अक्ष पर घूर्णन करता हुआ एक गोला भौतिकी में, घूर्णन अक्ष उस काल्पनिक लकीर को कहा जाता है जिसके इर्द-गिर्द कोई घूर्णन करती हुई (यानि लट्टू की तरह घूमती हुई) वस्तु घूम रही हो। खगोलशास्त्र में पृथ्वी अपने अक्ष पर घूर्णन करती है। .

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वरुण (ग्रह)

वरुण, नॅप्टयून या नॅप्चयून हमारे सौर मण्डल में सूर्य से आठवाँ ग्रह है। व्यास के आधार पर यह सौर मण्डल का चौथा बड़ा और द्रव्यमान के आधार पर तीसरा बड़ा ग्रह है। वरुण का द्रव्यमान पृथ्वी से १७ गुना अधिक है और अपने पड़ौसी ग्रह अरुण (युरेनस) से थोड़ा अधिक है। खगोलीय इकाई के हिसाब से वरुण की कक्षा सूरज से ३०.१ ख॰ई॰ की औसत दूरी पर है, यानि वरुण पृथ्वी के मुक़ाबले में सूरज से लगभग तीस गुना अधिक दूर है। वरुण को सूरज की एक पूरी परिक्रमा करने में १६४.७९ वर्ष लगते हैं, यानि एक वरुण वर्ष १६४.७९ पृथ्वी वर्षों के बराबर है। हमारे सौर मण्डल में चार ग्रहों को गैस दानव कहा जाता है, क्योंकि इनमें मिटटी-पत्थर की बजाय अधिकतर गैस है और इनका आकार बहुत ही विशाल है। वरुण इनमे से एक है - बाकी तीन बृहस्पति, शनि और अरुण (युरेनस) हैं। इनमें से अरुण की बनावट वरुण से बहुत मिलती-जुलती है। अरुण और वरुण के वातावरण में बृहस्पति और शनि के तुलना में बर्फ़ अधिक है - पानी की बर्फ़ के अतिरिक्त इनमें जमी हुई अमोनिया और मीथेन गैसों की बर्फ़ भी है। इसलिए कभी-कभी खगोलशास्त्री इन दोनों को "बर्फ़ीले गैस दानव" नाम की श्रेणी में डाल देते हैं। .

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वर्ष

एक वर्ष या साल सूर्य की चारों ओर अपनी कक्षा में चलती पृथ्वी की कक्षीय अवधि है। पृथ्वी के अक्षीय झुकाव के कारण, एक वर्ष का कोर्स ऋतुओं के गुजरने को देखता है, और वह चिन्हित होता हैं मौसम में, दिवालोक के घंटों में, और परिणामस्वरूप, वनस्पति और मिट्टी उर्वरता में बदलावों द्वारा। ग्रह के शीतोष्ण और उपध्रुवीय क्षेत्रों में, चार ऋतु आमतौर पर पहचाने जाते हैं: वसंत, ग्रीष्म, शरद और शीत ऋतु। उष्णकटिबन्धीय और उपोष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों में, कई भौगोलिक क्षेत्र परिभाषित मौसम प्रस्तुत नहीं करते हैं; लेकिन मौसमी उष्णकटिबन्ध में, वार्षिक आर्द्र (गीले) और शुष्क (सूखे) ऋतु पहचाने जाते हैं और ट्रैक किए जाते हैं। चालू वर्ष है। एक कालदर्शक वर्ष किसी प्रदत्त कालदर्शक में गिने हुएँ पृथ्वी की कक्षीय अवधि के दिनों की संख्या का अनुमान है। ग्रेगोरियन, या आधुनिक, कालदर्शक, अपने कालदर्शक के रूप में 365 दिनों के एक आम वर्ष या 366 दिनों के अधिवर्ष को प्रस्तुत करता है, जो जूलियन कालदर्शक भी करते हैं; नीचे देखो। .

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विकिरण

भौतिकी में प्रयुक्त विकिरण ऊर्जा का एक रूप है जो तरंगों या किसी परमाणु या अन्य निकाय द्वारा उत्सर्जित गतिशील उपपरमाणुविक कणों के रूप में उच्च से निम्न ऊर्जा अवस्था की ओर चलती है। विकिरण को परमाणु पदार्थ पर उसके प्रभाव के आधार पर या विआयनीकारक के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। विकिरण जो अणु या परमाणु का आयनीकरण करने मे सक्षम होता है उसमे उर्जा का स्तर विआयनीकारक विकिरण से अधिक होता है। रेडियोधर्मी पदार्थ वो भौतिक पदार्थ है जो कि आयनीकारक विकिरण उत्सर्जित करती है। तीन भिन्न प्रकार के विकिरण और उनका भेदन .

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व्यास

कोई विवरण नहीं।

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वॉयेजर

कोई विवरण नहीं।

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वॉयेजर द्वितीय

वायेजर द्वितीय एक अमरीकी मानव रहित अंतरग्रहीय शोध यान था जिसे वायेजर १ से पहले २० अगस्त १९७७ को अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा प्रक्षेपित किया गया था। यह काफी कुछ अपने पूर्व संस्करण यान वायेजर १ के समान ही था, किन्तु उससे अलग इसका यात्रा पथ कुछ धीमा है। इसे धीमा रखने का कारण था इसका पथ युरेनस और नेपचून तक पहुंचने के लिये अनुकूल बनाना। इसके पथ में जब शनि ग्रह आया, तब उसके गुरुत्वाकर्षण के कारण यह युरेनस की ओर अग्रसर हुआ था और इस कारण यह भी वायेजर १ के समान ही बृहस्पति के चन्द्रमा टाईटन का अवलोकन नहीं कर पाया था। किन्तु फिर भी यह युरेनस और नेपच्युन तक पहुंचने वाला प्रथम यान था। इसकी यात्रा में एक विशेष ग्रहीय परिस्थिति का लाभ उठाया गया था जिसमे सभी ग्रह एक सरल रेखा मे आ जाते है। यह विशेष स्थिति प्रत्येक १७६ वर्ष पश्चात ही आती है। इस कारण इसकी ऊर्जा में बड़ी बचत हुई और इसने ग्रहों के गुरुत्व का प्रयोग किया था। .

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वॉयेजर प्रथम

वोयेजर प्रथम अंतरिक्ष यान एक ७२२ कि.ग्रा का रोबोटिक अंतरिक्ष प्रोब था। इसे ५ सितंबर, १९७७ को लॉन्च किया गया था। वायेजर १ अंतरिक्ष शोध यान एक ८१५ कि.ग्रा वजन का मानव रहित यान है जिसे हमारे सौर मंडल और उसके बाहर की खोज के लिये प्रक्षेपित किया गया था। यह अभी भी (मार्च २००७) कार्य कर रहा है। यह नासा का सबसे लम्बा अभियान है। इस यान ने गुरू और शनि ग्रहों की यात्रा की है और यह यान इन महाकाय ग्रहों के चन्द्रमा की तस्वीरें भेजने वाला पहला शोध यान है। वायेजर १ मानव निर्मित सबसे दूरी पर स्थित वस्तु है और यह पृथ्वी और सूर्य दोनों से दूर अनंत अंतरिक्ष में अभी भी गतिशील है। न्यू हॉराइज़ंस शोध यान जो इसके बाद छोड़ा गया था, वायेजर १ की तुलना में कम गति से चल रहा है इसलिये वह कभी भी वायेजर १ को पीछे नहीं छोड़ पायेगा। .

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खगोल शास्त्र

चन्द्र संबंधी खगोल शास्त्र: यह बडा क्रेटर है डेडलस। १९६९ में चन्द्रमा की प्रदक्षिणा करते समय अपोलो ११ के चालक-दल (क्रू) ने यह चित्र लिया था। यह क्रेटर पृथ्वी के चन्द्रमा के मध्य के नज़दीक है और इसका व्यास (diameter) लगभग ९३ किलोमीटर या ५८ मील है। खगोल शास्त्र, एक ऐसा शास्त्र है जिसके अंतर्गत पृथ्वी और उसके वायुमण्डल के बाहर होने वाली घटनाओं का अवलोकन, विश्लेषण तथा उसकी व्याख्या (explanation) की जाती है। यह वह अनुशासन है जो आकाश में अवलोकित की जा सकने वाली तथा उनका समावेश करने वाली क्रियाओं के आरंभ, बदलाव और भौतिक तथा रासायनिक गुणों का अध्ययन करता है। बीसवीं शताब्दी के दौरान, व्यावसायिक खगोल शास्त्र को अवलोकिक खगोल शास्त्र तथा काल्पनिक खगोल तथा भौतिक शास्त्र में बाँटने की कोशिश की गई है। बहुत कम ऐसे खगोल शास्त्री है जो दोनो करते है क्योंकि दोनो क्षेत्रों में अलग अलग प्रवीणताओं की आवश्यकता होती है, पर ज़्यादातर व्यावसायिक खगोलशास्त्री अपने आप को दोनो में से एक पक्ष में पाते है। खगोल शास्त्र ज्योतिष शास्त्र से अलग है। ज्योतिष शास्त्र एक छद्म-विज्ञान (Pseudoscience) है जो किसी का भविष्य ग्रहों के चाल से जोड़कर बताने कि कोशिश करता है। हालाँकि दोनों शास्त्रों का आरंभ बिंदु एक है फिर भी वे काफ़ी अलग है। खगोल शास्त्री जहाँ वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग करते हैं जबकि ज्योतिषी केवल अनुमान आधारित गणनाओं का सहारा लेते हैं। .

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खगोल विज्ञानी

खगोल विज्ञानी अथवा खगोल शास्त्री वे वैज्ञानिक अध्ययनकर्ता हैं जी आकाशीय पिण्डों, उनकी गतियों और अंतरिक्ष में मौजूद विविध प्रकार की चीजों की खोज और अध्ययन का कार्य करते हैं। पश्चिमी संस्कृति में गैलीलियो नामक खगोल विज्ञानी को आधुनिक खगोलशास्त्र का पिता माना जाता है। हालाँकि कुछ लोग यह नाम कॉपरनिकस को देते हैं। .

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खगोलशास्त्र से सम्बन्धित शब्दावली

यह पृष्ठ खगोलशास्त्र की शब्दावली है। खगोलशास्त्र वह वैज्ञानिक अध्ययन है जिसका सबंध पृथ्वी के वातावरण के बाहर उत्पन्न होने वाले खगोलीय पिंडों और घटनाओं से होता है। .

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खगोलीय यांत्रिकी

खगोलीय यांत्रिकी (Celestial mechanics) में आकाशीय पिंडों (heavenly bodies) की गतियों के गणितीय सिद्धांतों का विवेचन किया जाता है। न्यूटन द्वारा प्रिंसिपिया में उपस्थापित गुरुत्वाकर्षण नियम तथा तीन गतिनियम खगोलीय यांत्रिकी के मूल आधार हैं। इस प्रकार इसमें विचारणीय समस्या द्वितीय वर्ण के सामान्य अवकल समीकरणों के एक वर्ग के हल करने तक सीमित हो जाती है। .

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खगोलीय इकाई

खगोलीय इकाई (AU या au या a.u. या यद कदा ua) लम्बाई की इकाई है, जो लगभग 150 मिलियन किलोमीटर है और पृथ्वी से सूर्य की दूरी पर आधारित है। इसकी सही सही मान है 149,597,870,691 ± 30 मीटर (लगभग 150 मिलियन किलोमीटर या 93 मिलियन मील).

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गणितज्ञ

लियोनार्ड यूलर को हमेशा से एक प्रसिद्ध गणितज्ञ माना गया है एक गणितज्ञ वह व्यक्ति होता है जिसके अध्ययन और अनुसंधान का प्राथमिक क्षेत्र गणित ही रहता है। .

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गियोवन्नी डोमेनिको कैसिनी

गियोवन्नी डोमेनिको कैसिनी (Giovanni Domenico Cassini) (8 जून 1625 - 14 सितंबर 1712), एक इतालवी/फ्रांसीसी गणितज्ञ, खगोल विज्ञानी, इंजीनियर और ज्योतिषी थे। उनका जन्म उस समय की नाइस की काउंटी में इम्पीरिया के नजदीक पेरिनाल्डो में हुआ था। श्रेणी:खगोलशास्त्री श्रेणी:गणितज्ञ श्रेणी:ज्योतिषाचार्य.

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गंधक

हल्के पीले रंग के गंधक के क्रिस्टल गंधक (Sulfur) एक रासायनिक अधातुक तत्त्व है। .

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गुरुत्वाकर्षण

गुरुत्वाकर्षण के कारण ही ग्रह, सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा पाते हैं और यही उन्हें रोके रखती है। गुरुत्वाकर्षण (ग्रैविटेशन) एक पदार्थ द्वारा एक दूसरे की ओर आकृष्ट होने की प्रवृति है। गुरुत्वाकर्षण के बारे में पहली बार कोई गणितीय सूत्र देने की कोशिश आइजक न्यूटन द्वारा की गयी जो आश्चर्यजनक रूप से सही था। उन्होंने गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का प्रतिपादन किया। न्यूटन के सिद्धान्त को बाद में अलबर्ट आइंस्टाइन द्वारा सापेक्षता सिद्धांत से बदला गया। इससे पूर्व वराह मिहिर ने कहा था कि किसी प्रकार की शक्ति ही वस्तुओं को पृथिवी पर चिपकाए रखती है। .

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गुरुवार

गुरुवार सप्ताह का पाँचवा दिन है। इसे बृहस्पतिवार, वीरवार या बीफ़े भी कहा जाता है। यह बुधवार के बाद और शुक्रवार से पहले आता है। मुसलमान इसे ज़ुमेरात कहते हैं क्योंकि यह जुम्मा (शुक्रवार) से एक दिन पहले आता है। .

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ग्रह

हमारे सौरमण्डल के ग्रह - दायें से बाएं - बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, युरेनस और नेप्चून सौर मंडल के ग्रहों, सूर्य और अन्य पिंडों के तुलनात्मक चित्र सूर्य या किसी अन्य तारे के चारों ओर परिक्रमा करने वाले खगोल पिण्डों को ग्रह कहते हैं। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ के अनुसार हमारे सौर मंडल में आठ ग्रह हैं - बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, युरेनस और नेप्चून। इनके अतिरिक्त तीन बौने ग्रह और हैं - सीरीस, प्लूटो और एरीस। प्राचीन खगोलशास्त्रियों ने तारों और ग्रहों के बीच में अन्तर इस तरह किया- रात में आकाश में चमकने वाले अधिकतर पिण्ड हमेशा पूरब की दिशा से उठते हैं, एक निश्चित गति प्राप्त करते हैं और पश्चिम की दिशा में अस्त होते हैं। इन पिण्डों का आपस में एक दूसरे के सापेक्ष भी कोई परिवर्तन नहीं होता है। इन पिण्डों को तारा कहा गया। पर कुछ ऐसे भी पिण्ड हैं जो बाकी पिण्डों के सापेक्ष में कभी आगे जाते थे और कभी पीछे - यानी कि वे घुमक्कड़ थे। Planet एक लैटिन का शब्द है, जिसका अर्थ होता है इधर-उधर घूमने वाला। इसलिये इन पिण्डों का नाम Planet और हिन्दी में ग्रह रख दिया गया। शनि के परे के ग्रह दूरबीन के बिना नहीं दिखाई देते हैं, इसलिए प्राचीन वैज्ञानिकों को केवल पाँच ग्रहों का ज्ञान था, पृथ्वी को उस समय ग्रह नहीं माना जाता था। ज्योतिष के अनुसार ग्रह की परिभाषा अलग है। भारतीय ज्योतिष और पौराणिक कथाओं में नौ ग्रह गिने जाते हैं, सूर्य, चन्द्रमा, बुध, शुक्र, मंगल, गुरु, शनि, राहु और केतु। .

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गैनिमीड (उपग्रह)

गैनीमीड का अंदरूनी ढांचा - सब से बाहर सख़्त बर्फ़ की पर्त, फिर पानी का महासागर, फिर एक पथरीला गोला और केंद्र में लोहे और अन्य धातुओं का गोला गैनिमीड हमारे सौर मण्डल के पाँचवे ग्रह बृहस्पति का सब से बड़ा उपग्रह है और यह पूरे सौर मंडल का भी सब से बड़ा चन्द्रमा है। इसका व्यास (डायामीटर) 5,268 किमी है, जो बुध ग्रह से भी 8% बड़ा है। इसका द्रव्यमान भी सौर मंडल के सारे चंद्रमाओं में सबसे ज़्यादा है और पृथ्वी के चन्द्रमा का 2.2 गुना है। .

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गैलिलेयो (अंतरिक्ष यान)

गैलिलेयो यान निर्मित होते हुए गैलिलेयो (या गैलिलियो) एक अमेरिकी अंतरिक्ष अन्वेषण यान था जो कि बृहस्पति ग्रह का अन्वेषण करता था। गैलिलेयो (Galileo) अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान संस्था नासा द्वारा अंतरिक्ष शटल अटलांटिस से भेजा गया अंतरिक्ष यान था जो हमारे सौर मंडल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति और उसके प्राकृतिक उपग्रहों का अध्ययन करने के लिए भेजा गया था। यह परिक्रमा करने वाले ऑर्बिटर प्रकार का था। .

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गैलीलियन चंद्रमा

गैलीलियन चन्द्रमा (Galilean moons), गैलीलियो गैलीली द्वारा जनवरी 1610 में खोजे गए बृहस्पति के चार चन्द्रमा हैं। वे बृहस्पति के कई चन्द्रमाओं में से सबसे बड़े हैं और वें है: आयो, युरोपा, गेनिमेड और कैलिस्टो। सूर्य और आठ ग्रहों को छोड़कर किसी भी वामन ग्रह से बड़ी त्रिज्या के साथ वें सौरमंडल में सबसे बड़े चंद्रमाओं में से है। तीन भीतरी चांद - गेनीमेड, यूरोपा और आयो एक 1: 2: 4 के कक्षीय अनुनाद में भाग लेते हैं। यह चारों चंद्रमा सन् 1609 और 1610 के बीच किसी समय खोजे गए जब गैलिलियो ने अपनी दूरबीन मे सुधार किया, जिसे उन्हे उन सूदूर आकाशीय पिंडो के प्रेक्षण के योग्य बनाया जिन्हे पहले कभी देखने की संभावना नहीं थी।Galilei, Galileo, Sidereus Nuncius.

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गैलीलियो गैलिली

गैलीलियो गैलिली (१५ फरवरी, १५६५ - ८ जनवरी, १६४२) इटली के वैज्ञानिक थे। वे एक महान आविष्कारक थे तथा दूरदर्शी के विकास में उनका अतुलनीय सहयोग था। .

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गैस

गैसों का कण मॉडल: गैसों के कणों के बीच की औसत दूरी अपेक्षाकृत अधिक होती है। गैस (Gas) पदार्थ की तीन अवस्थाओं में से एक अवस्था का नाम है (अन्य दो अवस्थाएँ हैं - ठोस तथा द्रव)। गैस अवस्था में पदार्थ का न तो निश्चित आकार होता है न नियत आयतन। ये जिस बर्तन में रखे जाते हैं उसी का आकार और पूरा आयतन ग्रहण कर लेते हैं। जीवधारियों के लिये दो गैसे मुख्य हैं, आक्सीजन गैस जिसके द्वारा जीवधारी जीवित रहता है, दूसरी जिसे जीवधारी अपने शरीर से छोड़ते हैं, उसका नाम कार्बन डाई आक्साइड है। इनके अलावा अन्य गैसों का भी बहु-प्रयोग होता है, जैसे खाना पकाने वाली रसोई गैस। पानी दो गैसों से मिलकर बनता है, आक्सीजन और हाइड्रोजन। .

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गैस दानव

हमारे सौर मण्डल के चार गैस दानव - सूर्य के आगे दर्शाए गए गैस दानव उन ग्रहों को कहा जाता है जिनमें मिटटी-पत्थर की बजाय ज़्यादातर गैस ही गैस होती है और जिनका आकार बहुत ही विशाल होता है। हमारे सौर मण्डल में चार ग्रह इस श्रेणी में आते हैं - बृहस्पति, शनि, अरुण (युरेनस)) और वरुण (नॅप्टयून)। इनमें पायी जाने वाली गैस ज़्यादातर हाइड्रोजन और हीलियम होती है, हालाँकि इनमें अक्सर और गैसें भी मिलती हैं, जैसे कि अमोनिया। अन्य सौर मंडलों में बहुत से गैस दानव ग्रह पाए जा चुके हैं। .

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ऑक्सीजन

ऑक्सीजन या प्राणवायु या जारक (Oxygen) रंगहीन, स्वादहीन तथा गंधरहित गैस है। इसकी खोज, प्राप्ति अथवा प्रारंभिक अध्ययन में जे.

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और्ट बादल

चित्रकार द्वारा कल्पित और्ट बादल का चित्र - ऊपर बाएँ की और काइपर घेरा दिखाया गया है और्ट बादल या और्ट क्लाउड एक गोले के रूप का धूमकेतुओं का बादल है जो सूर्य से लगभग एक प्रकाश-वर्ष के दूरी पर हमारे सौर मण्डल को घेरे हुए है। इसमें अरबों की संख्या में धूमकेतु हैं। खगोलीय इकाई में एक प्रकाश वर्ष लगभग ५०,००० ख॰ई॰ होता है (१ ख॰ई॰ पृथ्वी से सूरज की दूरी है), यानि और्ट बादल सूरज से पृथ्वी के मुक़ाबले में पचास हज़ार गुना अधिक दूर है। और्ट बादल सौर मण्डल के सब से दूर-तरीन क्षेत्र है। सौर मण्डल के काइपर घेरे और बिखरा चक्र वाले क्षेत्र - जो वैसे बहुत बाहर की ओर माने जाते हैं - दोनों और्ट बादल के हज़ार गुना अधिक सूरज के पास है। यह बात ध्यान योग्य है के वैज्ञानिकों ने और्ट बादल के अस्तित्व के मिल जाने की भविष्यवाणी तो की है लेकिन इसके अस्तित्व का अभी कोई पक्का प्रमाण नहीं मिला है। मानना है के और्ट बादल हमारे सौर मण्डल की गुरुत्वाकर्षक सीमा पर है और उसके बाद सूरज का खिचाव बहुत कम रह जाता है। .

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आदि भीषण बमबारी

आदि भीषण बमबारी (चंद्र प्रलय) के दौरान चन्द्रमा की एक कलात्मक छाप और आज का चन्द्रमा आदि भीषण बमबारी (Late Heavy Bombardment LHB) (साधारणतया चंद्र प्रलय के रूप में संदर्भित), लगभग ४.१ से ३.८ अरब वर्षों पूर्व की एक अवधि है, जिसके दरम्यान माना जाता है कि चन्द्रमा पर बड़ी संख्या के संघात क्रेटरों का गठन हुआ | श्रेणी:खगोलशास्त्र श्रेणी:चंद्रमा.

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आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा

हिन्द-यूरोपीय भाषाओँ का वर्गीकरण ''(अंग्रेजी में, देखने के लिए क्लिक करें)'' आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा (आ॰हि॰यू॰), जिसे प्रोटो-इंडो-यूरोपियन भाषा (अंग्रेजी: Proto-Indo-European) भी कहा जाता है, भाषावैज्ञानिकों द्वारा पूरे हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की सभी भाषाओं की एकमात्र प्राचीन जननी भाषा मानी जाती है। माना जाता है के इसे प्राचीन काल में आदिम-हिन्द-यूरोपीय लोग बोला करते थे, लेकिन यह भाषा हज़ारों वर्ष पूर्व ही पूरी तरह से लुप्त हो चुकी थी। बहुत सी हिन्द-यूरोपीय भाषाओं के सजातीय शब्दों की एक-दुसरे से तुलना के बाद भाषावैज्ञानिकों ने इस लुप्त भाषा का पुनर्निर्माण किया है जिस से इस के शब्दों का अनुमान लगाया जा सकता है। भाषावैज्ञानिक अनुमान लगाते हैं के आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा लगभग ३७०० ई॰पू॰ तक बोली जाती रही और फिर उसका विभिन्न भाषाओं में खंडन होने लगा। इस तिथि के बारे में विद्वानों में हज़ार वर्ष इधर-उधर तक का आपसी मतभेद है। इस बात पर भी कई अवधारणाएँ हैं के इस भाषा को बोलने वाले कहाँ रहते थे, लेकिन बहुत से पश्चिमी विद्वान् कुरगन अवधारणा में विश्वास रखते हैं। कुरगन अवधारणा के अनुसार इस भाषा को बोलने वाले आदिम-हिन्द-यूरोपीय लोग पूर्वी यूरोप और पश्चिमी एशिया के कुछ हिस्सों में फैले हुए पोंटिक-कैस्पियाई स्तेपी के क्षेत्र में रहते थे। आधुनिक युग में विलियम जोन्स पहले विद्वान् थे जिन्होंने प्राचीन संस्कृत, प्राचीन यूनानी, प्राचीन फारसी और लातिन भाषाओं में समानताएँ देखकर यह दावा किया था के ये सारी एक ही आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा से उपजी भाषाएँ हैं। बीसवी शताब्दी की शुरुआत तक भाषावैज्ञानिकों के परिश्रम से आदिम-हिन्द-यूरोपीय (आ॰हि॰यू॰) भाषा का चित्रण काफ़ी हद तक किया जा चुका था, जिसमे छोटे-मोटे सुधार लगातार होते रहे हैं। .

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आयतन

सभी पदार्थ स्थान (त्रि-बीमीय स्थान) घेरते हैं। इसी त्रि-बीमीय स्थान की मात्रा की माप को आयतन कहते हैं। एक-बीमीय आकृतियाँ (जैसे रेखा) एवं द्वि-बीमीय आकृतियाँ (जैसे त्रिभुज, चतुर्भुज, वर्ग आदि) का आयतन शून्य होता है। .

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आयन

आयन (ion) ऐसे परमाणु या अणु है जिसमें इलेक्ट्रानों और प्रोटोनों की संख्या असामान होती है। इस से आयन में विद्युत आवेश (चार्ज) होता है। अगर इलेक्ट्रॉन की तादाद प्रोटोन से अधिक हो तो आयन में ऋणात्मक (नेगेटिव) आवेश होता है और उसे ऋणायन (anion, ऐनायन) भी कहते हैं। इसके विपरीत अगर इलेक्ट्रॉन की तादाद प्रोटोन से कम हो तो आयन में धनात्मक (पोज़िटिव) आवेश होता है और उसे धनायन (cation, कैटायन) भी कहते हैं। .

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आयो (उपग्रह)

आयो (Io), हमारे सौर मण्डल के पाँचवे ग्रह बृहस्पति का तीसरा सब से बड़ा उपग्रह है और यह पूरे सौर मंडल का चौथा सब से बड़ा चन्द्रमा है। आयो का व्यास (डायामीटर) 3,642 किमी है। बृहस्पति के चार प्रमुख उपग्रहों (गैनिमीड, कलिस्टो, आयो और यूरोपा) में यह बृहस्पति की सब से क़रीबी कक्षा में परिक्रमा करने वाला चन्द्रमा है। बृहस्पति के इतना समीप होने की वजह से उस ग्रह के भयंकर गुरुत्वाकर्षण से पैदा होने वाला ज्वारभाटा बल आयो को गूंथता रहता है जिस से इस उपग्रह पर बहुत से ज्वालामुखी हैं। सन् 2010 तक आयो पर 400 से भी अधिक सक्रीय ज्वालामुखी गिने जा चुके थे। पूरे सौर मंडल में और कोई वस्तु नहीं जहाँ आयो से ज़्यादा भौगोलिक उथल-पुथल हो रही हो। सौर मंडल के बाहरी चंद्रमाओं की बनावट में ज़्यादातर बर्फ़ की बहुतायत होती है लेकिन आयो पर ऐसा नहीं है। आयो अधिकतर पत्थरीले पदार्थों का बना हुआ है। .

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आर्यभट

आर्यभट (४७६-५५०) प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। इन्होंने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। इसी ग्रंथ में इन्होंने अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 लिखा है। बिहार में वर्तमान पटना का प्राचीन नाम कुसुमपुर था लेकिन आर्यभट का कुसुमपुर दक्षिण में था, यह अब लगभग सिद्ध हो चुका है। एक अन्य मान्यता के अनुसार उनका जन्म महाराष्ट्र के अश्मक देश में हुआ था। उनके वैज्ञानिक कार्यों का समादर राजधानी में ही हो सकता था। अतः उन्होंने लम्बी यात्रा करके आधुनिक पटना के समीप कुसुमपुर में अवस्थित होकर राजसान्निध्य में अपनी रचनाएँ पूर्ण की। .

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इथेन

इथेन इथेन इथेन इथेन एक हाइड्रोकार्बन है। यह एक अल्केन है। श्रेणी:अल्केन.

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कलिस्टो (उपग्रह)

कलिस्टो हमारे सौर मण्डल के पाँचवे ग्रह बृहस्पति का दूसरा सब से बड़ा उपग्रह है और यह पूरे सौर मंडल का तीसरा सब से बड़ा चन्द्रमा है (बृहस्पति के ही गैनिमीड और शनि के टाइटन के बाद)। इसका व्यास (डायामीटर) लगभग 4,820 किमी है, जो बुध ग्रह का 99% है लेकिन बुध से काफ़ी घनत्व होने के कारण इसका द्रव्यमान बुध का केवल एक-तिहाई है। .

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कार्बन

कार्बन का एक बहुरूप हीरा। कार्बन का एक अन्य बहुरूप ग्रेफाइट। पृथ्वी पर पाए जाने वाले तत्वों में कार्बन या प्रांगार एक प्रमुख एवं महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। इस रासायनिक तत्त्व का संकेत C तथा परमाणु संख्या ६, मात्रा संख्या १२ एवं परमाणु भार १२.००० है। कार्बन के तीन प्राकृतिक समस्थानिक 6C12, 6C13 एवं 6C14 होते हैं। कार्बन के समस्थानिकों के अनुपात को मापकर प्राचीन तथा पुरातात्विक अवशेषों की आयु मापी जाती है। कार्बन के परमाणुओं में कैटिनेशन नामक एक विशेष गुण पाया जाता है जिसके कारण कार्बन के बहुत से परमाणु आपस में संयोग करके एक लम्बी शृंखला का निर्माण कर लेते हैं। इसके इस गुण के कारण पृथ्वी पर कार्बनिक पदार्थों की संख्या सबसे अधिक है। यह मुक्त एवं संयुक्त दोनों ही अवस्थाओं में पाया जाता है। इसके विविध गुणों वाले कई बहुरूप हैं जिनमें हीरा, ग्रेफाइट काजल, कोयला प्रमुख हैं। इसका एक अपरूप हीरा जहाँ अत्यन्त कठोर होता है वहीं दूसरा अपरूप ग्रेफाइट इतना मुलायम होता है कि इससे कागज पर निशान तक बना सकते हैं। हीरा विद्युत का कुचालक होता है एवं ग्रेफाइट सुचालक होता है। इसके सभी अपरूप सामान्य तापमान पर ठोस होते हैं एवं वायु में जलकर कार्बन डाइ-आक्साइड गैस बनाते हैं। हाइड्रोजन, हीलियम एवं आक्सीजन के बाद विश्व में सबसे अधिक पाया जाने वाला यह तत्व विभिन्न रूपों में संसार के समस्त प्राणियों एवं पेड़-पौधों में उपस्थित है। यह सभी सजीवों का एक महत्त्वपूर्ण अवयव होता है, मनुष्य के शरीर में इसकी मात्रा १८.५ प्रतिशत होती है और इसको जीवन का रासायनिक आधार कहते हैं। कार्बन शब्द लैटिन भाषा के कार्बो शब्द से आया है जिसका अर्थ कोयला या चारकोल होता है। कार्बन की खोज प्रागैतिहासिक युग में हुई थी। कार्बन तत्व का ज्ञान विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं को भी था। चीन के लोग ५००० वर्षों पहले हीरे के बारे में जानते थे और रोम के लोग लकड़ी को मिट्टी के पिरामिड से ढककर चारकोल बनाते थे। लेवोजियर ने १७७२ में अपने प्रयोगो द्वारा यह प्रमाणित किया कि हीरा कार्बन का ही एक अपरूप है एवं कोयले की ही तरह यह जलकर कार्बन डाइ-आक्साइड गैस उत्पन्न करता है। कार्बन का बहुत ही उपयोगी बहुरूप फुलेरेन की खोज १९९५ ई. में राइस विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आर इ स्मैली तथा उनके सहकर्मियों ने की। इस खोज के लिए उन्हें वर्ष १९९६ ई. का नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ। .

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काइपर घेरा

काइपर घेरे की ज्ञात वस्तुएँ - मुख्य घेरे की वस्तुएँ हरे रंग में, घेरे की बिखरी हुई वस्तुएँ नारंगी रंग में, सौर मण्डल के चार बाहरी ग्रह नीले रंग में, वरुण (नॅप्ट्यून) के इर्द-गिर्द की वस्तुएँ पीले रंग में और बृहस्पति के इर्द-गिर्द की वस्तुएँ गुलाबी रंग में दिखाई गयी हैं काइपर घेरा, काइपर-ऍजवर्थ घेरा या काइपर बॅल्ट हमारे सौर मण्डल का एक बाहरी क्षेत्र है जो वरुण ग्रह (नॅप्ट्यून) की कक्षा (जो सूरज से लगभग ३० खगोलीय इकाई दूर है) से लेकर सूर्य से ५५ ख॰इ॰ तक फैला हुआ है। क्षुद्रग्रह घेरे की तरह इसमें भी हज़ारों-लाखों छोटी-बड़ी खगोलीय वस्तुएँ हैं जो सौर मण्डल के ग्रहों के सृजनात्मक दौर से बची हुई रह गयी। काइपर घेरा का क्षेत्र क्षुद्रग्रह घेरे के क्षेत्र से २० गुना चौड़ा और २०० गुना ज़्यादा फैला हुआ है। जहाँ क्षुद्रग्रह घेरे की वस्तुएँ पत्थर और धातुओं की बनी हुई हैं, वहाँ काइपर घेरे की वस्तुएँ सर्दी की सख्ती से जमे हुए पानी, मीथेन और अमोनिया की मिली-जुली बर्फ़ों की बनी हुई हैं। सौर मण्डल के ज्ञात बौने ग्रहों में से तीन - यम, हउमेया और माकेमाके - काइपर घेरे के निवासी हैं। वैज्ञानिकों का यह भी मानना है के सौर मण्डल के कुछ प्राकृतिक उपग्रह भी इसी घेरे में जन्मे और घुमते-फिरते अपने ग्रहों के निटक पहुँच कर उनके गुरुत्वाकर्षण में फँस कर उनकी परिक्रमा करने लगे, जैसे की वरुण (नॅप्ट्यून) का उपग्रह ट्राइटन और शनि का उपग्रह फ़ीबी। काइपर घेरे का नाम डच-अमेरिकी खगोलशास्त्री जेरार्ड काइपर के नाम पर रखा गया हालाँकि, वास्तव में खुद उन्होंने इसके अस्तित्व की भविष्यवाणी नहीं की थी। वर्ष 1992 में, यम के बाद खोजा जाने वाला पहला काइपर घेरा वस्तु (केबीओ) था। इसकी खोज के बाद से अब तक, ज्ञात काइपर घेरा वस्तुओं (केबीओ'स) की संख्या हज़ार से अधिक हो चुकी है और से अधिक व्यास वाले 1,00,000 से अधिक केबीओ'स के होने का अनुमान है। प्रारम्भ में यह सोचा गया था कि काइपर बेल्ट ही उन सावधिक धूमकेतुओं का भण्डार है जिनकी कक्षायें 200 सालों से कम अवधि वाली हैं। हालाँकि, नब्बे के दशक के बाद के अध्ययनों ने दर्शाया है कि यह घेरा गतिशीलता की दृष्टि से स्थायित्व वाला है, और धूमकेतुओं की उत्पत्ति का वास्तविक स्थल एक प्रकीर्ण डिस्क है जो नेपच्यून की बहिर्मुखी गति द्वारा 4.5 बिलियन वर्ष पूर्व निर्मित, गतिशीलता के दृष्टि से एक सक्रिय मंडल है; इस प्रकीर्ण डिस्क के कुछ पिण्डों, जैसे कि ऍरिस इत्यादि, की विकेन्द्रता अत्यंत अधिक है और वे अपने परिक्रमा पथ में सूर्य से 100 AU तक की दूरी तक भी चले जाते हैं। .

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कक्षा (भौतिकी)

दिक् में एक बिंदु के इर्द-गिर्द अपनी अलग-अलग कक्षाओं में परिक्रमा करती दो अलग आकारों की वस्तुएँ भौतिकी में कक्षा या ऑर्बिट दिक् (स्पेस) में स्थित एक बिंदु के इर्द-गिर्द एक मार्ग को कहते हैं जिसपर चलकर कोई वस्तु उस बिंदु की परिक्रमा करती है। खगोलशास्त्र में अक्सर उस बिंदु पर कोई बड़ा तारा या ग्रह स्थित होता है जिसके इर्द-गिर्द कोई छोटा ग्रह या उपग्रह अपनी कक्षा में उसकी परिक्रमा करता है। यदि खगोलीय वस्तुओं की कक्षाओं को देखा जाए तो कई भिन्न तरह की कक्षाएँ देखी जाती हैं - कुछ गोलाकार हैं, कुछ अण्डाकार हैं और कुछ इन से अधिक पेचीदा हैं। श्रेणी:भौतिकी श्रेणी:खगोलशास्त्र श्रेणी:हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना * श्रेणी:ज्योतिष पक्ष.

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कक्षीय विकेन्द्रता

एक अण्डाकार केपलर कक्षा (लाल) एक ०.७ की विकेन्द्रता के साथ, एक परवलयिक केपलर कक्षा (हरा) और एक अतिपरवलयिक केपलर कक्षा (नीला) १.३ की विकेन्द्रता के साथ. किसी खगोलीय पिंड की कक्षीय विकेन्द्रता (Orbital eccentricity) वह राशि है जिसके द्वारा उसकी कक्षा एक पूर्ण वृत्त से विचलित हो जाती है। जहां शून्य एक पूर्ण वृत्त है और १.० एक परवलय है। इसे अंग्रेजी अक्षर e से प्रदर्शित किया जाता है। विकेन्द्रता निम्न मान ले सकती है.

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कक्षीय अनुनाद

कक्षीय अनुनाद (Orbital resonance) पाया जाता है जब दो या दो से अधिक पिंड किसी एक ही बड़े पिंड की परिक्रमा समान अवधि में पूरी करते है। उदाहरण के लिए बृहस्पति के उपग्रहों गेनिमेड, युरोपा और आयो का 1: 2: 4 का अनुनाद, तथा प्लुटो और नेप्च्यून के बीच 2: 3 का अनुनाद। आयो, युरोपा और गेनिमेड बृहस्पति के ठीक क्रमशः चार, दो व एक चक्कर लगाने में समान समय लेते है। इसी तरह प्लूटो सूर्य के दो चक्कर (246 x 2 .

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कक्षीय अवधि

किसी पिण्ड की कक्षीय अवधि अथवा परिक्रमण काल या संयुति काल उसके द्वारा किसी दूसरे निकाय का एक पूरा चक्कर लगाने में लिया गया समय है। .

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क्लाडियस टॉलमी

टाँलेमी एक प्रख्यात ज्योतिर्विद थे। उन्होंने पृथ्वी के एक चक्कर लगाने में चन्द्रमा को जो समय लगता है उसका निर्धारण किया। उन्होंने प्रकाश के नियम का भी प्रतिपादन किया। क्लाडियस टॉलमी एक प्रमुख भूगोलवेत्ता था। वह मिस्त्र का निवासी था। उसका जन्म टॉलेमस सरसी या पेलुसियम मे हुवा (जीवन काल ९० से १६८ ई. या १०० से १७८ ई.)। टॉलमी नें अपना अधिकांश गणित व प्र्क्षेप निर्माण सम्बन्धी सचना कार्य एवं पेक्षण सिकन्दरिया के महान पुस्तकालय में ३-४ दशकों में पूरे किए। उसने सिकन्दरिया के निकट के एक नगर नोरस से कई खगोलिए बेध किए। .

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क्षुद्रग्रह घेरा

कक्षाओं के बीच स्थित है - सफ़ेद बिन्दुएँ इस घेरे में मौजूद क्षुद्रग्रहों को दर्शाती हैं क्षुद्रग्रह घेरा या ऐस्टरौएड बॅल्ट हमारे सौर मण्डल का एक क्षेत्र है जो मंगल ग्रह (मार्ज़) और बृहस्पति ग्रह (ज्यूपिटर) की कक्षाओं के बीच स्थित है और जिसमें हज़ारों-लाखों क्षुद्रग्रह (ऐस्टरौएड) सूरज की परिक्रमा कर रहे हैं। इनमें एक ९५० किमी के व्यास वाला सीरीस नाम का बौना ग्रह भी है जो अपने स्वयं के गुरुत्वाकर्षक खिचाव से गोल अकार पा चुका है। यहाँ तीन और ४०० किमी के व्यास से बड़े क्षुद्रग्रह पाए जा चुके हैं - वॅस्टा, पैलस और हाइजिआ। पूरे क्षुद्रग्रह घेरे के कुल द्रव्यमान में से आधे से ज़्यादा इन्ही चार वस्तुओं में निहित है। बाक़ी वस्तुओं का अकार भिन्न-भिन्न है - कुछ तो दसियों किलोमीटर बड़े हैं और कुछ धूल के कण मात्र हैं। .

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कैलिफ़ोर्निया

कैलिफ़ोर्निया संयुक्त राज्य अमेरिका के पश्चिमी तट पर स्थित एक राज्य है। यह अमेरिका का सबसे अधिक आबादी और क्षेत्रफल में अलास्का और टेक्सस के पश्चात तीसरा सबसे बड़ा राज्य हैं। कैलिफ़ोर्निया के उत्तर में औरिगन, और दक्षिण में मेक्सिको है। कैलिफ़ोर्निया की राजधानी सैक्रामेण्टो है। संयुक्त राज्य अमेरिका की अर्थव्यवस्था में यह राज्य 14 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखता है। अगर कैलिफ़ोर्निया एक स्वतंत्र देश होता तो दुनिया में उसका सकल घरेलू उत्पाद (जी॰ डी॰ पी॰) 6वां स्थान पर होता और जनसंख्या 35वें स्थान पर होती। अंग्रेज़ी राज्य की अधिकारिक भाषा है जो लगभग 57% प्रतिशत जनता मातृभाषा के रूप में बोलती है। स्पेनी 29% प्रतिशत, चीनी 2% और टागालोग भाषा 2% द्वारा बोली जाती है। लॉस एंजेलिस सबसे बड़ा शहर है। .

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कैसिनी-होयगेन्स

छल्लों के आगे कैसिनी शोध यान का काल्पनिक चित्रण कैसिनी-होयगेन्स (Cassini-Huygens) एक अंतरिक्ष यान मिशन है जो सन् २००४ से हमारे सौर मंडल के दूसरे सबसे बड़े ग्रह शनि और उसके प्राकृतिक उपग्रहों का अध्ययन कर रहा है। यह १९९७ में पृथ्वी से रोकेट के ज़रिये छोड़ा गया और इस मिशन में शनि के इर्द-गर्द कक्षा (ऑरबिट) में घूमने वाला एक कृत्रिम उपग्रह और शनि के सबसे बड़े चन्द्रमा टाइटन पर उतरना वाला एक यान शामिल थे। टाइटन पर उतरने वाले यान का नाम 'होयगेन्स' था और २००५ में वह मुख्य कैसिनी यान से अलग होकर उस उपग्रह पर उतरा। कैसिनी सन् २०१५ तक शनि की परिक्रमा करके उसकी तस्वीरें लेता रहेगा और उसपर जानकारी एकत्रिक कर के पृथ्वी की ओर प्रसारित करता रहेगा। २०१५ में उसे शनि के भयंकर वायुमंडल में गिराकर ध्वस्त का दिया जाएगा।, Michele Dougherty, Larry Esposito, Springer, 2009, ISBN 978-1-4020-9216-9, David Michael Harland, Springer, 2007, ISBN 978-0-387-26129-4 .

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केल्विन

कैल्विन (चिन्ह: K) तापमान की मापन इकाई है। यह सात मूल इकाईयों में से एक है। कैल्विन पैमाना ऊष्मगतिकीय तापमान पैमाना है, जहाँ, परिशुद्ध शून्य, पूर्ण ऊर्जा की सैद्धांतिक अनुपस्थिति है, जिसे शून्य कैल्विन भी कहते हैं। (0 K) कैल्विन पैमाना और कैल्विन के नाम ब्रिटिश भौतिक शास्त्री और अभियाँत्रिक विलियम थामसन, प्रथम बैरन कैल्विन (1824–1907) के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने विशुद्ध तापमानमापक पैमाने की आअवश्यकत जतायी थी। .

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केल्विन-हेल्महोल्ट्ज़ तंत्र

केल्विन, हेल्महोल्ट्ज़ और अपने तंत्र केल्विन-हेल्महोल्ट्ज़ तंत्र (Kelvin–Helmholtz mechanism), एक खगोलीय प्रक्रिया है। यह तब पाई जाती है जब किसी तारे या ग्रह की सतह ठंडी होती है। यह ठंडापन, दाब के पतन का कारण बनता है, परिणामस्वरूप तारा या ग्रह सिकुड़ता है। यह संपीड़न, अगले चरण में, तारा/ग्रह के कोर को तप्त कर देता है। यह तंत्र बृहस्पति व शनि और भूरे बौनों पर प्रमाणित हुए, जिनके केंद्रीय तापमान नाभिकीय संलयन अंतर्गत गुजरने के लिए पर्याप्त ऊंचे नहीं हैं | ऐसा अनुमान है कि इस तंत्र के माध्यम से बृहस्पति सूर्य से प्राप्त ऊर्जा की तुलना में अधिक छोड़ता है, पर शनि कदाचित नहीं। यह तंत्र सूर्य की ऊर्जा के स्रोत की व्याख्या करने के लिए 19 वीं सदी में मूल रूप से केल्विन और हेल्महोल्ट्ज़ द्वारा प्रस्तावित हुआ था। मध्य 19 वीं शताब्दी तक, ऊर्जा का संरक्षण स्वीकार कर लिया गया था और भौतिकी के इस सिद्धांत का एक परिणाम यह है कि सूर्य के पास अपनी चमक को जारी रखने के लिए कुछ ऊर्जा स्रोत अवश्य होने चाहिए | चुंकि परमाणु अभिक्रिया अज्ञात थी, सौर ऊर्जा के स्रोत के लिए मुख्य उम्मीदवार गुरुत्वीय संकुचन था | हालांकि, इसे सर आर्थर एडिंगटन और दूसरों के द्वारा शीघ्र मान्यता दी गई कि इस तंत्र के माध्यम से उपलब्ध ऊर्जा की कुल राशि ने सूर्य को अरबों वर्षों के बजाय केवल लाखों वर्षों के लिए ही चमकने की अनुमति दी थी, जिसे कि भूवैज्ञानिक और जैविक प्रमाण ने पृथ्वी की आयु के लिए सुझाया हुआ था। (केल्विन ने खुद तर्क दिया था कि पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी है, न कि अरबों वर्ष) सूर्य की ऊर्जा का वास्तविक स्रोत 1930 के दशक तक, नाभिकीय संलयन होने के लिए इसे हैंस बेथे द्वारा दिखाए जाने तक, अनिश्चित बना रहा था। .

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कोणीय व्यास

कोणीय व्यास (Angular diameter) या स्पष्ट आकार, किसी दी गई स्थिति से, जैसा कि उसे देखा गया, किसी वस्तु का कोण के रूप में मापा गया "दृश्य व्यास" है। दृष्टि विज्ञान में इसे दृश्य कोण कहा जाता है। श्रेणी:ज्यामिति श्रेणी:कोणधारी श्रेणी:खगोलमिति.

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अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला

अंतर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला (अ॰ध्व॰व॰, अंग्रेज़ी: International Phonetic Alphabet, इंटरनैशनल फ़ोनॅटिक ऐल्फ़ाबॅट) एक ऐसी लिपि है जिसमें विश्व की सारी भाषाओं की ध्वनियाँ लिखी जा सकती हैं। इसके हर अक्षर और उसकी ध्वनि का एक-से-एक का सम्बन्ध होता है। आरम्भ में इसके अधिकतर अक्षर रोमन लिपि से लिए गए थे, लेकिन जैसे-जैसे इसमें विश्व की बहुत सी भाषाओँ की ध्वनियाँ जोड़ी जाने लगी तो बहुत से यूनानी लिपि से प्रेरित अक्षर लिए गए और कई बिलकुल ही नए अक्षरों का इजाद किया गया। इसमें सन् २०१० तक १६० से अधिक ध्वनियों के लिए चिह्न दर्ज किए जा चुके थे, लेकिन किसी भी एक भाषा को दर्शाने के लिए इस वर्णमाला का एक भाग की ही ज़रुरत होती है। इस प्रणाली के ध्वन्यात्मक प्रतिलेखन (ट्रान्सक्रिप्शन) में सूक्ष्म प्रतिलेखन के चिन्हों के बीच में और स्थूल प्रतिलेखन / / के चिन्हों के अन्दर लिखे जाते हैं। इसकी नियामक अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक संघ है। उदाहरण के लिए.

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अमोनिया

अमोनिया एक तीक्ष्म गंध वाली रंगहीन गैस है। यह हवा से हल्की होती है तथा इसका वाष्प घनत्व ८.५ है। यह जल में अति विलेय है। अमोनिया के जलीय घोल को लिकर अमोनिया कहा जाता है यह क्षारीय प्रकृति का होता है। जोसेफ प्रिस्टले ने सर्वप्रथम अमोनियम क्लोराइड को चूने के साथ गर्म करके अमोनिया गैस को तैयार किया। बर्थेलाट ने इसके रासायनिक गठन का अध्ययन किया तथा इसको बनाने वाले तत्वों को पता लगाया। प्रयोगशाला में अमोनियम क्लोराइड तथा बुझे हुए सूखे चूने के मिश्रण को गर्म करके अमोनिया गैस तैयार की जाती है। .

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अमीनो अम्ल

फिनाइल एलानिन, एक सामान्य अमीनो अम्ल अमीनो अम्ल, वे अणु हैं जिनमें अमाइन तथा कार्बोक्सिल दोनों ही ग्रुप पाएं जाते हैं। इनका साधारण सुत्र H2NCHROOH है। इसमें R एक पार्श्व कड़ी है। जो परिवर्तनशील विभिन्न अणुओं का ग्रूप होता है। कार्बोक्सिल (-COOH) तथा अमाइन (-NH2) ग्रूप कार्बन परमाणु से लगा रहता है। अमीनो अम्ल प्रोभूजिन के गठनकर्ता अणु हैं। बहुत सारे अमीनो अम्ल पेप्टाइड बंधन द्वारा युक्त होकर प्रोभूजिन बनाते हैं। प्रोभूजिन बनाने में 20 अमीनो अम्ल भाग लेते हैं। यह प्रोभूजिन निर्माण के कर्णधार होते हैं। प्रकृति में लगभग बीस अमीनों अम्लों का अस्तित्व है। प्रोभूजिन अणुओं में सैंकड़ों या हजारों अमीनो अम्ल एक दूसरे से जुड़े रहते हैं। प्रत्येक प्रोभूजिन में प्रायः सभी अमीनो अम्ल एक विशेष अनुक्रम से जुड़े रहते हैं। विभिन्न अमीनो अम्लों का यही अनुक्रम प्रत्येक प्रोभूजिन को उसकी विशेषताएं प्रदान करता है। अमीनो अम्लों का यही विशिष्ट अनुक्रम डी एन ए के न्यूक्लोटाइडस के क्रम से निर्धारित होता है। श्रेणी:जैवरसायनिकी श्रेणी:शब्दावली श्रेणी:सूक्ष्मजैविकी श्रेणी:जैव प्रौद्योगिकी श्रेणी:आण्विक जैविकी श्रेणी:अनुवांशिकी *.

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अरुण (ग्रह)

अरुण (Uranus), या यूरेनस हमारे सौर मण्डल में सूर्य से सातवाँ ग्रह है। व्यास के आधार पर यह सौर मण्डल का तीसरा बड़ा और द्रव्यमान के आधार पर चौथा बड़ा ग्रह है। द्रव्यमान में यह पृथ्वी से १४.५ गुना अधिक भारी और अकार में पृथ्वी से ६३ गुना अधिक बड़ा है। औसत रूप में देखा जाए तो पृथ्वी से बहुत कम घना है - क्योंकि पृथ्वी पर पत्थर और अन्य भारी पदार्थ अधिक प्रतिशत में हैं जबकि अरुण पर गैस अधिक है। इसीलिए पृथ्वी से तिरेसठ गुना बड़ा अकार रखने के बाद भी यह पृथ्वी से केवल साढ़े चौदह गुना भारी है। हालांकि अरुण को बिना दूरबीन के आँख से भी देखा जा सकता है, यह इतना दूर है और इतनी माध्यम रोशनी का प्रतीत होता है के प्राचीन विद्वानों ने कभी भी इसे ग्रह का दर्जा नहीं दिया और इसे एक दूर टिमटिमाता तारा ही समझा। १३ मार्च १७८१ में विलियम हरशल ने इसकी खोज की घोषणा करी। अरुण दूरबीन द्वारा पाए जाने वाला पहला ग्रह था। हमारे सौर मण्डल में चार ग्रहों को गैस दानव कहा जाता है, क्योंकि इनमें मिटटी-पत्थर की बजाय अधिकतर गैस है और इनका आकार बहुत ही विशाल है। अरुण इनमे से एक है - बाकी तीन बृहस्पति, शनि और वरुण (नॅप्टयून) हैं। इनमें से अरुण की बनावट वरुण से बहुत मिलती-जुलती है। अरुण और वरुण के वातावरण में बृहस्पति और शनि के तुलना में बर्फ़ अधिक है - पानी की बर्फ़ के अतिरिक्त इनमें जमी हुई अमोनिया और मीथेन गैसों की बर्फ़ भी है। इसलिए कभी-कभी खगोलशास्त्री इन दोनों को "बर्फ़ीले गैस दानव" नाम की श्रेणी में डाल देते हैं। सौर मण्डल के सारे ग्रहों में से अरुण का वायुमण्डल सब से ठण्डा पाया गया है और उसका न्यूनतम तापमान -४९ कैल्विन (यानी -२२४° सेण्टीग्रेड) देखा गया है। इस ग्रह में बादलों की कई तहें देखी गई हैं। मानना है के सब से नीचे पानी के बादल हैं और सब से ऊपर मीथेन गैस के बादल हैं। यह भी माना जाता है कि यदि किसी प्रकार अरुण के बिलकुल बीच जाकर इसका केन्द्र देखा जा सकता तो वहाँ बर्फ़ और पत्थर पाए जाते। .

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अर्ध दीर्घ अक्ष

एक दीर्घवृत्त का अर्द्ध-मुख्य अक्ष मुख्य अक्ष (major axis) एक दीर्घवृत्त का सबसे लंबा व्यास है, एक रेखा जो केंद्र और दोनों नाभियों से होकर गुजरती है, इसके छोर आकार के सर्वाधिक दूरी के बिंदु है। मुख्य अक्ष का आधा अर्द्ध-मुख्य अक्ष (semi-major axis) है और इस तरह नाभि से होकर केंद्र से दीर्घवृत्त के किनारे तक जाती है; अनिवार्य रूप से, यह कक्षा के सबसे दूरस्थ बिन्दुओं से ली गई, कक्षा की त्रिज्या की एक माप है। वृत्त के विशेष मामले में, अर्द्ध-मुख्य अक्ष एक त्रिज्या है। एक तरह से सोचे तो अर्द्ध-मुख्य अक्ष एक दीर्घवृत्त की सबसे लम्बी त्रिज्या है। .

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अवरक्त

दो व्यक्तियों की मध्य अधोरक्त (तापीय) प्रकाश में छाया चित्र अवरक्त किरणें, अधोरक्त किरणें या इन्फ़्रारेड वह विद्युत चुम्बकीय विकिरण है जिसका तरंग दैर्घ्य (वेवलेन्थ) प्रत्यक्ष प्रकाश से बड़ा हो एवं सूक्ष्म तरंग से कम हो। इसका नाम 'अधोरक्त' इसलिए है क्योंकि विद्युत चुम्बकीय तरंग के वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) में यह मानव द्वारा दर्शन योग्य लाल वर्ण से नीचे (या अध) होती है। इसका तरंग दैर्घ्य 750 nm and 1 mm के बीच होता है। सामान्य शारिरिक तापमान पर मानव शरीर 10 माइक्रॉन की अधोरक्त तरंग प्रकाशित कर सकता है। .

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अंतरिक्ष यान

इंजन चालू होने के कुछ ही क्षण बाद ''कोलम्बिया'' नामक अंतरिक्ष यान। वह यान जो कि अन्तरिक्ष अथवा व्योम में जाने के काम आता है उसे अंतरिक्ष यान (अंग्रेज़ी: "Spacecraft") कहते हैं। .

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अक्षीय झुकाव

पृथ्वी का अक्षीय झुकाव २३.४४° है अक्षीय झुकाव (अंग्रेजी: Axial tilt) खगोलशास्त्र में किसी कक्षा (ऑरबिट) में परिक्रमा करती खगोलीय वस्तु के घूर्णन अक्ष (एक्सिस) और उसकी कक्षा पर खड़े किसी काल्पनिक लम्ब (परपॅन्डीक्यूलर) के बीच बने कोण (ऐंगल) को कहते हैं। अगर किसी पृथ्वी जैसी गोल वस्तु की दोनों मुख हिलावाटों को देखा जाए - अपने अक्ष पर घूर्णन (रोटेशन) और सूरज के इर्द-गिर्द परिक्रमा - तो अक्षीय झुकाव होने से उसके ध्रुव कक्षा (ऑरबिट) के मार्ग के ठीक ऊपर या नीचे नहीं होते। एक ध्रुव कक्षा से ज़रा अन्दर सूरज के थोड़ा अधिक समीप होता है और दूसरा कक्षा से ज़रा बाहर सूरज से थोड़ा दूर। परिक्रमा करते हुए कुछ देर बाद अन्दर वाला ध्रुव बाहर आ जाता है और दूसरा वाला अन्दर। यही मौसम बदलने का मुख्य कारण है - जब दक्षिणी ध्रुव अन्दर को होता है तो दक्षिणी गोलार्ध (हेमिस्फ़ीयर) में गर्मी का मौसम चलता है और उत्तरी में सर्दी का। छह महीने बाद जब पृथ्वी अपनी कक्षा के दूसरी पार होती है तो पासा पलट जाता है - दक्षिणी गोलार्ध (हेमिस्फ़ीयर) में सर्दियाँ होती हैं और उत्तरी में गर्मियाँ।, William F. Ruddiman, Macmillan, 2001, ISBN 978-0-7167-3741-4,...

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उपग्रह

ERS 2) अन्तरिक्ष उड़ान (spaceflight) के संदर्भ में, उपग्रह एक वस्तु है जिसे मानव (USA 193) .

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उपग्रही छल्ला

हमारे सौर मण्डल के शनि ग्रह के मशहूर उपग्रहीय छल्ले बर्फ़ और धूल के बने हैं खगोलशास्त्र में उपग्रही छल्ला किसी ग्रह के इर्द गिर्द घूमता हुआ पत्थरों, धुल, बर्फ़ और अन्य पदार्थों का बना हुआ छल्ला होता है। हमारे सौर मण्डल में इसकी सबसे बड़ी मिसाल शनि की परिक्रमा करते हुए उसके छल्ले हैं। हमारे सौर मण्डल के अन्य तीन गैस दानव ग्रहों - बृहस्पति, अरुण और वरुण - के इर्द-गिर्द भी उपग्रहीय छल्ले हैं लेकिन उनकी संख्या और चौड़ाई शनि के छल्लों से कई कम है। .

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ऋतु

ऋतु एक वर्ष से छोटा कालखंड है जिसमें मौसम की दशाएँ एक खास प्रकार की होती हैं। यह कालखण्ड एक वर्ष को कई भागों में विभाजित करता है जिनके दौरान पृथ्वी के सूर्य की परिक्रमा के परिणामस्वरूप दिन की अवधि, तापमान, वर्षा, आर्द्रता इत्यादि मौसमी दशाएँ एक चक्रीय रूप में बदलती हैं। मौसम की दशाओं में वर्ष के दौरान इस चक्रीय बदलाव का प्रभाव पारितंत्र पर पड़ता है और इस प्रकार पारितंत्रीय ऋतुएँ निर्मित होती हैं यथा पश्चिम बंगाल में जुलाई से सितम्बर तक वर्षा ऋतु होती है, यानि पश्चिम बंगाल में जुलाई से अक्टूबर तक, वर्ष के अन्य कालखंडो की अपेक्षा अधिक वर्षा होती है। इसी प्रकार यदि कहा जाय कि तमिलनाडु में मार्च से जुलाई तक ग्रीष्म ऋतु होती है, तो इसका अर्थ है कि तमिलनाडु में मार्च से जुलाई तक के महीने साल के अन्य समयों की अपेक्षा गर्म रहते हैं। एक ॠतु .

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