लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
डाउनलोड
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

भारतीय गणित

सूची भारतीय गणित

गणितीय गवेषणा का महत्वपूर्ण भाग भारतीय उपमहाद्वीप में उत्पन्न हुआ है। संख्या, शून्य, स्थानीय मान, अंकगणित, ज्यामिति, बीजगणित, कैलकुलस आदि का प्रारम्भिक कार्य भारत में सम्पन्न हुआ। गणित-विज्ञान न केवल औद्योगिक क्रांति का बल्कि परवर्ती काल में हुई वैज्ञानिक उन्नति का भी केंद्र बिन्दु रहा है। बिना गणित के विज्ञान की कोई भी शाखा पूर्ण नहीं हो सकती। भारत ने औद्योगिक क्रांति के लिए न केवल आर्थिक पूँजी प्रदान की वरन् विज्ञान की नींव के जीवंत तत्व भी प्रदान किये जिसके बिना मानवता विज्ञान और उच्च तकनीकी के इस आधुनिक दौर में प्रवेश नहीं कर पाती। विदेशी विद्वानों ने भी गणित के क्षेत्र में भारत के योगदान की मुक्तकंठ से सराहना की है। .

178 संबंधों: चक्रवाल विधि, चक्रवृद्धि ब्याज, चीनी शेषफल प्रमेय, टेलर श्रेणी, डायोफैंटीय समीकरण, तंत्रसंग्रह, त्रिकोणमिति, त्रिकोणमितीय फलन, त्रैराशिक नियम, तैत्तिरीय संहिता, दमयन्ती, दर्शनशास्त्र, दशमलव पद्धति, द्विघात समीकरण, नारद, नारायण पण्डित, नेमिचन्द्र, नीलकण्ठ सोमयाजि, पटना, परमेश्वर, परमेश्वर (गणितज्ञ), परीक्षा, पहाड़ा, पाटीगणित, पाणिनि, पाण्डुलिपि, पाइथागोरस प्रमेय, पिङ्गल, प्रतिशत, प्राचीन भारतीय विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी, प्रिज़्म, पूँजी, पेल का समीकरण, पेशावर, बाबिल, बाल गंगाधर तिलक, बख्शाली पाण्डुलिपि, ब्याज, ब्रह्मगुप्त, ब्रह्मगुप्त का सूत्र, ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त, ब्राह्मी लिपि, बौधायन, बीज-लेखन, बीजगणित, भार, भारत, भारत सरकार, भारत का आर्थिक इतिहास, भारतीय ज्योतिषी, ..., भारतीय गणित का इतिहास, भारतीय गणितज्ञों की सूची, भारतीय अंक प्रणाली, भारतीय उपमहाद्वीप, भास्कर प्रथम, भास्कराचार्य, भिन्न, मयासुर, मलयालम भाषा, महाभास्करीय, महावीर, महावीर (गणितज्ञ), माधवाचार्य की ज्या सारणी, मिस्र, मूल (संख्या का), मेरु प्रस्तार, मोर्स कोड, मोहन जोदड़ो, याज्ञवल्क्य, यजुर्वेद, यज्ञ, यूरोकेन्द्रीयता, रोम, ललितविस्तर सूत्र, लातिन भाषा, लियोनार्ड ओइलर, लघुभास्करीय, लघुगणक, लगध, लीलावती, शतपथ ब्राह्मण, शंकु, शुल्बसूत्र, श्रेणी (गणित), श्रीधराचार्य, श्रीनिवास रामानुजन्, श्रीपति मिश्रा, श्रीहर्ष, श्रीगुप्त, शून्य, सनत्कुमार, समान्तर श्रेढ़ी, समुच्चय सिद्धान्त, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, समीकरण, सिद्धान्त शिरोमणि, सिंधु घाटी सभ्यता, संख्या, संख्या सिद्धान्त, संगमग्राम के माधव, संगीत, सुधाकर द्विवेदी, स्थानांग सूत्र, स्थानिक मान, स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ, सूर्य, सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र, सूर्यसिद्धान्त, हड़प्पा, हेमचन्द्र श्रेणी, होमो सेपियन्स, हीरोन का सूत्र, ज्या, ज्यामिति, ज्योतिष, जैन धर्म, जॉन नेपियर, जीवा, ईंट, घन, घनमूल, घातांक, वटेश्वर, वराह मिहिर, वर्ग, वर्ग समीकरण, वर्गमूल, वितत भिन्न, विधिशास्त्र, विज्ञान, वैदिक गणित (पुस्तक), वेद, वेदान्त दर्शन, वेदांग, वीरसेन, खगोल शास्त्र, गणित, गणितसारसंग्रह, गणितीय विश्लेषण, गणेश दैवज्ञ, गुणोत्तर श्रेणी, गुप्त राजवंश, गौतम बुद्ध, गैलीलियो गैलिली, गोलाध्याय, गोविन्दस्वामी (गणितज्ञ), औद्योगिक क्रांति, आपस्तम्ब, आयत, आर्यभट, आर्यभट की ज्या सारणी, आर्यभट्ट द्वितीय, आर्यभट्ट की संख्यापद्धति, आर्यभटीय, कटपयादि, करण, कलन, कात्यायन, कुट्टक, क्रमचय-संचय, कृत्तिका, केरल, केरलीय गणित सम्प्रदाय, अच्युत पिषारटि, अनिर्धार्य समीकरण, अनंत, अनुयोगद्वार सूत्र, अपरिमेय संख्या, अरबी, अरबी भाषा, अल्गोरिद्म, अष्टाध्यायी, अवकल गणित, अंतर्वेशन, अंकगणित, उपनिषद्, उपपत्ति, छन्दशास्त्र सूचकांक विस्तार (128 अधिक) »

चक्रवाल विधि

चक्रवाल विधि अनिर्धार्य वर्ग समीकरणों (indeterminate quadratic equations) को हल करने की चक्रीय विधि है। इसके द्वारा पेल के समीकरण का भी हल निकल जाता है। इसके आविष्कार का श्रेय प्राय भास्कर द्वितीय को दिया जाता है किन्तु कुछ लोग इसका श्रेय जयदेव (950 ~ 1000 ई) को भी देते हैं। इस विधि का नाम 'चक्रवाल' (चक्र की तरह वलयिय (भ्रमण)) इसलिए पड़ा है क्योंकि इसमें कुट्टक से गुण लब्धि के बाद पुनः वर्गप्रकृति और पुनः कुट्टक किया जाता है। ६२८ ई में ब्रह्मगुप्त ने x और y के सबसे छोटे पूर्णांकों के लिए इसका हल निकाला था। वे N के कुछ ही मानों के लिये इसका हल निकाल सके, सभी के लिये नहीं। जयदेव (गणितज्ञ) और भास्कर (१२वीं शताब्दी) ने चक्रवाल विधि का उपयोग करते हुए इस समीकरण का सबसे पहले हल प्रस्तुत किया था। उन्होने निम्नलिखित समीकरण का हल दिया है- उनके द्वारा निम्नलिखित हल दिया गया है- यह समस्या बहुट कठिन समस्या है क्योंकि x और y के मान बहुत बड़े आते हैं। इसकी कठिनाई का अनुमान इससे ही लगाया जा सकता है कि यूरोप में इसका हल विलियम ब्राउंकर (William Brouncker) ने १६५७-५८ में जाकर निकाला था। अपने बीजगणित नामक ग्रन्थ में भास्कराचार्य ने चक्रवाल विधि का वर्णन इस प्रकार किया है- .

नई!!: भारतीय गणित और चक्रवाल विधि · और देखें »

चक्रवृद्धि ब्याज

जब समय-समय पर अभी तक संचित हुए ब्याज को मूलधन में मिलाकर इस मिश्रधन पर ब्याज की गणना की जाती है तो इसे चक्रवृद्धि ब्याज कहते हैं। जिस अवधि के बाद ब्याज की गणना करके उसे मूलधन में जोड़ा जाता है, उसे चक्रवृद्धि अवधि (compounding period) कहते हैं। इसके विपरीत साधारण ब्याज उस प्रकार की ब्याज गणना का नाम है जिसमें मूलधन (जिस राशि पर ब्याज की गणना की जाती है) अपरिवर्तित रहता है। कुछ छोटे-मोटे मामलों को छोड़कर व्यावहारिक जीवन के प्रायः सभी क्षेत्रों में चक्रवृद्धि ब्याज ही लिया/दिया जाता है। .

नई!!: भारतीय गणित और चक्रवृद्धि ब्याज · और देखें »

चीनी शेषफल प्रमेय

चीनी शेषफल प्रमेय (Chinese remainder theorem) को निम्नलिखित शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है- यदि युग्मशः अभाज्य (pairwise coprime) हों यदि कोई पूर्णांक हैं, तो एक पूर्णांक ऐसा होगा कि, तथा कोई भी दो ऐसे पूर्णांक, सर्वसम मॉड्युलो होंगे।; उदाहरण ऐसा पूर्णांक x प्राप्त कीजिये जो निम्नलिखित शर्तों को सन्तुष्ट करती हो- x ≡ 3 (mod.5) x ≡ 5 (mod.13) x ≡ 7 (mod.29) x ≡ 1 (mod.41) X .

नई!!: भारतीय गणित और चीनी शेषफल प्रमेय · और देखें »

टेलर श्रेणी

गणित में टेलर श्रेणी (Taylor series) एक श्रेणी है किसी फलन को अनन्त पदों के योग से निरूपित करती है। ये पद उस फलन के किसी बिन्दु पर अवकलों के मान से निकाले जाते हैं। इसे अंग्रेज गणितज्ञ ब्रूक टेलर ने १७७५ में दिया था। .

नई!!: भारतीय गणित और टेलर श्रेणी · और देखें »

डायोफैंटीय समीकरण

पूर्णांक भुजाओं वाले सभी समकोण त्रिभुज प्राप्त करना एक प्रकार से डायोफैंटीय समीकरण a^2+b^2.

नई!!: भारतीय गणित और डायोफैंटीय समीकरण · और देखें »

तंत्रसंग्रह

300px तंत्रसंग्रह नीलकण्ठ सोमयाजि द्वारा संस्कृत में रचित खगोलशास्त्रीय ग्रंथ है। यह ग्रंथ 1501 ई में पूर्ण हुआ। इसमें 432 श्लोक हैं जो आठ अध्यायों में विभक्त हैं। इस ग्रन्थ में ग्रहों की गति के पारम्परिक मॉडल के स्थान पर परिस्कृत मॉडल प्रस्तुत किया गया है। इसकी दो टीकाएँ ज्ञात हैं- पहली तंत्रसंग्रहव्याख्या (रचनाकार अज्ञात) तथा युक्तिभाषा (ज्येष्ठदेव द्वारा लगभग १५५० ई में रचित)। तंत्रसंग्रह में नीलकण्ठ सोमयाजि ने बुध और शुक्र ग्रहों की गति का आर्यभट द्वारा प्रस्तुत मॉडल को पुनः सामने रखा। इस ग्रन्थ में दिया हुआ इन दो ग्रहों के केन्द्र का समीकरण १७वीं शताब्दी में केप्लर के पहले तक सबसे शुद्ध मान देता था। .

नई!!: भारतीय गणित और तंत्रसंग्रह · और देखें »

त्रिकोणमिति

किसी दूरस्थ और सीधे मापन में कठिनाई वाले सर्वेक्षण के लिए समरूप त्रिभुज के उपयोग का उदाहरण (1667) त्रिकोणमिति गणित की वह शाखा है जिसमें त्रिभुज और त्रिभुजों से बनने वाले बहुभुजों का अध्ययन होता है। त्रिकोणमिति का शब्दिक अर्थ है 'त्रिभुज का मापन'। त्रिकोणमिति में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है समकोण त्रिभुज का अध्ययन। त्रिभुजों और बहुभुजों की भुजाओं की लम्बाई और दो भुजाओं के बीच के कोणों का अध्ययन करने का मुख्य आधार यह है कि समकोण त्रिभुज की किन्ही दो भुजाओं (आधार, लम्ब व कर्ण) का अनुपात उस त्रिभुज के कोणों के मान पर निर्भर करता है। त्रिकोणमिति का ज्यामिति की प्रसिद्ध बौधायन प्रमेय (पाइथागोरस प्रमेय) से गहरा सम्बन्ध है। .

नई!!: भारतीय गणित और त्रिकोणमिति · और देखें »

त्रिकोणमितीय फलन

right गणित में त्रिकोणमितीय फलन (trigonometric functions) या 'वृत्तीय फलन' (circular functions) कोणों के फलन हैं। ये त्रिभुजों के अध्ययन में तथा आवर्ती संघटनाओं (periodic phenomena) के मॉडलन एवं अन्य अनेकानेक जगह प्रयुक्त होते हैं। ज्या (sine), कोज्या (कोज) (cosine) तथा स्पर्शज्या (स्पर) (tangent) सबसे महत्व के त्रिकोणमितीय फलन हैं। ईकाई त्रिज्या वाले मानक वृत्त के संदर्भ में ये फलन सामने के चित्र में प्रदर्शित हैं। इन तीनों फलनों के व्युत्क्रम फलनों को क्रमशः व्युज्या (व्युज) (cosecant), व्युकोज्या (व्युक) (secant) तथा व्युस्पर्शज्या (व्युस) (cotangent) कहते हैं। .

नई!!: भारतीय गणित और त्रिकोणमितीय फलन · और देखें »

त्रैराशिक नियम

त्रैराशिक नियम (The Rule of Three) का ज्ञान भारतीय गणितज्ञों को ६ठी शताब्दी ईसापूर्व से है। इसे प्रायः 'त्रैराशिक व्यवहार' के नाम से जाना जाता रहा है। यूरोप में इस विधि की जानकारी बहुत बाद में पहुंची। उदाहरण: ५१ रूपए में ३ किलो धान मिलता है तो ८५ रूपए में कितने किलो धान मिलेगा? वेदांग ज्योतिष में त्रैराशिक व्यवहार का यह नियम देखिये- .

नई!!: भारतीय गणित और त्रैराशिक नियम · और देखें »

तैत्तिरीय संहिता

तैत्तिरीय संहिता में ७ काण्ड, ४४ प्रपाठक, तथा ६३१ अनुवाक हैं जिसका वर्ण्यविषय यज्ञीय कर्मकाण्ड (पौरोडास, याजमान, वाजपेय, राजसूय इत्यादि नाना यागानुष्ठान) का विशद वर्णन है। वेदों के एकमात्र सर्वातिशायी भाष्यकार सायण तैत्तिरीय शाखा के ही अनुयायी थे और उन्होने सर्वप्रथम तैत्तिरीय संहिता पर ही अपना वैदुष्यपूर्ण भाष्य लिखा। .

नई!!: भारतीय गणित और तैत्तिरीय संहिता · और देखें »

दमयन्ती

दमयन्ती विदर्भ नरेश भीम की पुत्री थ जो हंस द्वारा गुण श्रवण करके नॅषधराज नल पर अनुरक्त हो गई थी। उसने स्वयम्बर में देवताओं तथा अन्य राजाओं को छोडकर नल को ही वरमाला पहनाई। परिणाम स्वरूप कुपित होकर कलि ने उन्हें अनेक कष्ट दिए। श्रेणी:हिन्दू धर्म.

नई!!: भारतीय गणित और दमयन्ती · और देखें »

दर्शनशास्त्र

दर्शनशास्त्र वह ज्ञान है जो परम् सत्य और प्रकृति के सिद्धांतों और उनके कारणों की विवेचना करता है। दर्शन यथार्थ की परख के लिये एक दृष्टिकोण है। दार्शनिक चिन्तन मूलतः जीवन की अर्थवत्ता की खोज का पर्याय है। वस्तुतः दर्शनशास्त्र स्वत्व, अर्थात प्रकृति तथा समाज और मानव चिंतन तथा संज्ञान की प्रक्रिया के सामान्य नियमों का विज्ञान है। दर्शनशास्त्र सामाजिक चेतना के रूपों में से एक है। दर्शन उस विद्या का नाम है जो सत्य एवं ज्ञान की खोज करता है। व्यापक अर्थ में दर्शन, तर्कपूर्ण, विधिपूर्वक एवं क्रमबद्ध विचार की कला है। इसका जन्म अनुभव एवं परिस्थिति के अनुसार होता है। यही कारण है कि संसार के भिन्न-भिन्न व्यक्तियों ने समय-समय पर अपने-अपने अनुभवों एवं परिस्थितियों के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार के जीवन-दर्शन को अपनाया। भारतीय दर्शन का इतिहास अत्यन्त पुराना है किन्तु फिलॉसफ़ी (Philosophy) के अर्थों में दर्शनशास्त्र पद का प्रयोग सर्वप्रथम पाइथागोरस ने किया था। विशिष्ट अनुशासन और विज्ञान के रूप में दर्शन को प्लेटो ने विकसित किया था। उसकी उत्पत्ति दास-स्वामी समाज में एक ऐसे विज्ञान के रूप में हुई जिसने वस्तुगत जगत तथा स्वयं अपने विषय में मनुष्य के ज्ञान के सकल योग को ऐक्यबद्ध किया था। यह मानव इतिहास के आरंभिक सोपानों में ज्ञान के विकास के निम्न स्तर के कारण सर्वथा स्वाभाविक था। सामाजिक उत्पादन के विकास और वैज्ञानिक ज्ञान के संचय की प्रक्रिया में भिन्न भिन्न विज्ञान दर्शनशास्त्र से पृथक होते गये और दर्शनशास्त्र एक स्वतंत्र विज्ञान के रूप में विकसित होने लगा। जगत के विषय में सामान्य दृष्टिकोण का विस्तार करने तथा सामान्य आधारों व नियमों का करने, यथार्थ के विषय में चिंतन की तर्कबुद्धिपरक, तर्क तथा संज्ञान के सिद्धांत विकसित करने की आवश्यकता से दर्शनशास्त्र का एक विशिष्ट अनुशासन के रूप में जन्म हुआ। पृथक विज्ञान के रूप में दर्शन का आधारभूत प्रश्न स्वत्व के साथ चिंतन के, भूतद्रव्य के साथ चेतना के संबंध की समस्या है। .

नई!!: भारतीय गणित और दर्शनशास्त्र · और देखें »

दशमलव पद्धति

दशमलव पद्धति या दाशमिक संख्या पद्धति या दशाधारी संख्या पद्धति (decimal system, "base ten" or "denary") वह संख्या पद्धति है जिसमें गिनती/गणना के लिये कुल दस संख्याओं (0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9) का सहारा लिया जाता है। यह मानव द्वारा सर्वाधिक प्रयुक्त संख्यापद्धति है। उदाहरण के लिये 645.7 दशमलव पद्धति में लिखी एक संख्या है। (गलतफहमी से बचने के लिये यहाँ दशमलव बिन्दु के स्थान पर 'कॉमा' का प्रयोग किया गया है।) इस पद्धति की सफलता के बहुत से कारण हैं-.

नई!!: भारतीय गणित और दशमलव पद्धति · और देखें »

द्विघात समीकरण

वर्ग समीकरण x^2 -5 x + 6 .

नई!!: भारतीय गणित और द्विघात समीकरण · और देखें »

नारद

कोई विवरण नहीं।

नई!!: भारतीय गणित और नारद · और देखें »

नारायण पण्डित

नारायण पण्डित प्रसिद्ध संस्कृत नीतिपुस्तक हितोपदेश के रचयिता थे। पुस्तक के अंतिम पद्यों के आधार पर इसके रचयिता का नाम नारायण ज्ञात होता है। नारायणेन प्रचरतु रचितः संग्रहोsयं कथानाम् पण्डित नारायण ने पंचतन्त्र तथा अन्य नीति के ग्रंथों की सहायता से हितोपदेश नामक इस ग्रंथ का सृजन किया। स्वयं पं॰ नारायण जी ने स्वीकार किया है-- पंचतन्त्रान्तथाडन्यस्माद् ग्रंथादाकृष्य लिख्यते। इसके आश्रयदाता का नाम धवलचंद्रजी है। धवलचंद्रजी बंगाल के माण्डलिक राजा थे तथा नारायण पण्डित राजा धवलचंद्रजी के राजकवि थे। मंगलाचरण तथा समाप्ति श्लोक से नारायण की शिव में विशेष आस्था प्रकट होती है। उनके समय के बारे में ठीक से ज्ञात नहीं है। कथाओं से प्राप्त साक्ष्यों के विश्लेषण के आधार पर डॉ॰ फ्लीट कर मानना है कि इसकी रचना काल ११ वीं शताब्दी के आस- पास होना चाहिये। हितोपदेश का नेपाली हस्तलेख १३७३ ई. का प्राप्त है। वाचस्पति गैरोलाजी ने इसका रचनाकाल १४ वीं शती के आसपास माना है। इन तथ्यों से नारायण पण्डित का काल ११वीं से १४वीं शताब्दी के आसपास का मालूम होता है। .

नई!!: भारतीय गणित और नारायण पण्डित · और देखें »

नेमिचन्द्र

आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती (९वीं शताब्दी) एक जैन आचार्य थे। उन्होने द्रव्यसंग्रह, गोम्मटसार (जीवकाण्ड व कर्मकाण्ड), त्रिलोकसार, लब्धिसार आदि ग्रन्थों की रचना की। चामुण्डराय के आग्रह पर उन्होने 'गोम्मटसार' की रचना की जिसमें सभी प्रमुख जैन आचार्यों के मतों का सार समाहित है। उनके द्वारा रचित 'द्रव्यसंग्रह' जैन धर्म का पवित्र ग्रन्थ है। .

नई!!: भारतीय गणित और नेमिचन्द्र · और देखें »

नीलकण्ठ सोमयाजि

नीलकण्ठ सोमयाजि (1444-1544) भारतीय गणितज्ञ थे। वह केरल प्रदेश से थे। .

नई!!: भारतीय गणित और नीलकण्ठ सोमयाजि · और देखें »

पटना

पटना (पटनम्) या पाटलिपुत्र भारत के बिहार राज्य की राजधानी एवं सबसे बड़ा नगर है। पटना का प्राचीन नाम पाटलिपुत्र था। आधुनिक पटना दुनिया के गिने-चुने उन विशेष प्राचीन नगरों में से एक है जो अति प्राचीन काल से आज तक आबाद है। अपने आप में इस शहर का ऐतिहासिक महत्व है। ईसा पूर्व मेगास्थनीज(350 ईपू-290 ईपू) ने अपने भारत भ्रमण के पश्चात लिखी अपनी पुस्तक इंडिका में इस नगर का उल्लेख किया है। पलिबोथ्रा (पाटलिपुत्र) जो गंगा और अरेन्नोवास (सोनभद्र-हिरण्यवाह) के संगम पर बसा था। उस पुस्तक के आकलनों के हिसाब से प्राचीन पटना (पलिबोथा) 9 मील (14.5 कि॰मी॰) लम्बा तथा 1.75 मील (2.8 कि॰मी॰) चौड़ा था। पटना बिहार राज्य की राजधानी है और गंगा नदी के दक्षिणी किनारे पर अवस्थित है। जहां पर गंगा घाघरा, सोन और गंडक जैसी सहायक नदियों से मिलती है। सोलह लाख (2011 की जनगणना के अनुसार 1,683,200) से भी अधिक आबादी वाला यह शहर, लगभग 15 कि॰मी॰ लम्बा और 7 कि॰मी॰ चौड़ा है। प्राचीन बौद्ध और जैन तीर्थस्थल वैशाली, राजगीर या राजगृह, नालन्दा, बोधगया और पावापुरी पटना शहर के आस पास ही अवस्थित हैं। पटना सिक्खों के लिये एक अत्यंत ही पवित्र स्थल है। सिक्खों के १०वें तथा अंतिम गुरु गुरू गोबिंद सिंह का जन्म पटना में हीं हुआ था। प्रति वर्ष देश-विदेश से लाखों सिक्ख श्रद्धालु पटना में हरमंदिर साहब के दर्शन करने आते हैं तथा मत्था टेकते हैं। पटना एवं इसके आसपास के प्राचीन भग्नावशेष/खंडहर नगर के ऐतिहासिक गौरव के मौन गवाह हैं तथा नगर की प्राचीन गरिमा को आज भी प्रदर्शित करते हैं। एतिहासिक और प्रशासनिक महत्व के अतिरिक्त, पटना शिक्षा और चिकित्सा का भी एक प्रमुख केंद्र है। दीवालों से घिरा नगर का पुराना क्षेत्र, जिसे पटना सिटी के नाम से जाना जाता है, एक प्रमुख वाणिज्यिक केन्द्र है। .

नई!!: भारतीय गणित और पटना · और देखें »

परमेश्वर

परमेश्वर का शाब्दिक अर्थ 'परम ईश्वर' है। .

नई!!: भारतीय गणित और परमेश्वर · और देखें »

परमेश्वर (गणितज्ञ)

वतसेरी परमेश्वर नम्बुदिरि (मलयालम: വടശ്ശേരി പരമേശ്വരന്‍) (1380 – 1460 ई) भारत के केरलीय गणित सम्प्रदाय से सम्बन्धित एक महान गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री थे। .

नई!!: भारतीय गणित और परमेश्वर (गणितज्ञ) · और देखें »

परीक्षा

विद्यार्थियों के ज्ञान की '''परीक्षा''' चल रही है। किसी वस्तु, व्यक्ति या घटना की विस्तृत जाँच परीक्षा कहलाती है। शैक्षिक एवं व्यावसायिक सन्दर्भ में किसी छात्र या भावी प्रक्टिशनर की क्षमता की जाँच को परीक्षा कहते हैं। रचना, विषय, कठिनाई आदि के अनुसार परीक्षा अनेकों प्रकार की होती है। .

नई!!: भारतीय गणित और परीक्षा · और देखें »

पहाड़ा

पहाड़ा (multiplication table) एक गणितीय सूची है जिसे प्राय: छोटी कक्षा के विद्यार्थियों को अच्छी तरह याद करा दिया जाता है। गुणा और भाग की अंकगणितीय क्रियाओं को करने इसका उपयोग में होता है। प्रायः ९ × ९ तक का पहाडा याद करना पर्याप्त होता है किन्तु १२ × १२ तक का पहाड़ा याद हो तो रोजमर्रा के गणितीय कार्यों में बहुत आसानी होती है। .

नई!!: भारतीय गणित और पहाड़ा · और देखें »

पाटीगणित

पाटीगणित श्रीधराचार्य द्वारा संस्कृत में रचित गणित ग्रन्थ है। 'पाटी' से तात्पर्य गणना-विधि (procedure or algorithm) से है। .

नई!!: भारतीय गणित और पाटीगणित · और देखें »

पाणिनि

पाणिनि (५०० ई पू) संस्कृत भाषा के सबसे बड़े वैयाकरण हुए हैं। इनका जन्म तत्कालीन उत्तर पश्चिम भारत के गांधार में हुआ था। इनके व्याकरण का नाम अष्टाध्यायी है जिसमें आठ अध्याय और लगभग चार सहस्र सूत्र हैं। संस्कृत भाषा को व्याकरण सम्मत रूप देने में पाणिनि का योगदान अतुलनीय माना जाता है। अष्टाध्यायी मात्र व्याकरण ग्रंथ नहीं है। इसमें प्रकारांतर से तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्र मिलता है। उस समय के भूगोल, सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा और राजनीतिक जीवन, दार्शनिक चिंतन, ख़ान-पान, रहन-सहन आदि के प्रसंग स्थान-स्थान पर अंकित हैं। .

नई!!: भारतीय गणित और पाणिनि · और देखें »

पाण्डुलिपि

नन्दिनगरी में लिखी हुई एक पाण्डुलिपि सूचना का विकास-पथ पाण्डुलिपि या मातृकाग्रन्थ एक हस्तलिखित ग्रन्थविशेष है । इसको हस्तप्रति, लिपिग्रन्थ इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। आङ्ग्ल भाषा में यह Manuscript शब्द से प्रसिद्ध है इन ग्रन्थों को MS या MSS इन संक्षेप नामों से भी जाना जाता है। हिन्दी भाषा में यह 'पाण्डुलिपि', 'हस्तलेख', 'हस्तलिपि' इत्यादि नामों से प्रसिद्ध है । ऐसा माना जाता है कि सोलहवीं शताब्दी (१६) के आरम्भ में  विदेशियों के द्वारा संस्कृत का अध्ययन आरम्भ हुआ । अध्ययन आरम्भ होने के पश्चात इसकी प्रसिद्धि  सत्रहवीं शताब्दी के अन्त में और अठारवीं शताब्दी के आरम्भ में मानी जाती है । उस कालखण्ड में  भारत में  स्थित मातृकाग्रन्थों का अध्ययन एवं संरक्षण विविध संगठनों के द्वारा किया गया । पाण्डुलिपि (manuscript) उस दस्तावेज को कहते हैं जो एक व्यक्ति या अनेक व्यक्तियों द्वारा हाथ से लिखी गयी हो। जैसे हस्तलिखित पत्र। मुद्रित किया हुआ या किसी अन्य विधि से, किसी दूसरे दस्तावेज से (यांत्रिक/वैद्युत रीति से) नकल करके तैयार सामग्री को पाण्डुलिपि नहीं कहते हैं। पाण्डुलिपि अपनी रक्षा के लिये क्या कहती है, देखें- .

नई!!: भारतीय गणित और पाण्डुलिपि · और देखें »

पाइथागोरस प्रमेय

'''बौधायन का प्रमेय''': समकोण त्रिभुज की दो भुजाओं की लम्बाइयों के वर्गों का योग कर्ण की लम्बाई के वर्ग के बराबर होता है। पाइथागोरस प्रमेय (या, बौधायन प्रमेय) यूक्लिडीय ज्यामिति में किसी समकोण त्रिभुज के तीनों भुजाओं के बीच एक सम्बन्ध बताने वाला प्रमेय है। इस प्रमेय को आमतौर पर एक समीकरण के रूप में निम्नलिखित तरीके से अभिव्यक्त किया जाता है- जहाँ c समकोण त्रिभुज के कर्ण की लंबाई है तथा a और b अन्य दो भुजाओं की लम्बाई है। पाइथागोरस यूनान के गणितज्ञ थे। परम्परानुसार उन्हें ही इस प्रमेय की खोज का श्रेय दिया जाता है,हेथ, ग्रंथ I,p.

नई!!: भारतीय गणित और पाइथागोरस प्रमेय · और देखें »

पिङ्गल

पिंगल भारत के प्राचीन गणितज्ञ और छन्दःसूत्रम् के रचयिता। इनका काल ४०० ईपू से २०० ईपू अनुमानित है। जनश्रुति के अनुसार यह पाणिनि के अनुज थे। छन्द:सूत्र में मेरु प्रस्तार (पास्कल त्रिभुज), द्विआधारी संख्या (binary numbers) और द्विपद प्रमेय (binomial theorem) मिलते हैं। .

नई!!: भारतीय गणित और पिङ्गल · और देखें »

प्रतिशत

प्रतिशत का गणितीय प्रतीक प्रतिशत (Percent) गणित में किसी अनुपात को व्यक्त करने का एक तरीका है। प्रतिशत का अर्थ है प्रति सौ या प्रति सैकड़ा(%.

नई!!: भारतीय गणित और प्रतिशत · और देखें »

प्राचीन भारतीय विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी

प्राचीन भारतीय विज्ञान तथा तकनीक को जानने के लिये पुरातत्व और प्राचीन साहित्य का सहारा लेना पडता है। प्राचीन भारत का साहित्य अत्यन्त विपुल एवं विविधतासम्पन्न है। इसमें धर्म, दर्शन, भाषा, व्याकरण आदि के अतिरिक्त गणित, ज्योतिष, आयुर्वेद, रसायन, धातुकर्म, सैन्य विज्ञान आदि भी वर्ण्यविषय रहे हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में प्राचीन भारत के कुछ योगदान निम्नलिखित हैं-.

नई!!: भारतीय गणित और प्राचीन भारतीय विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी · और देखें »

प्रिज़्म

इस प्रिज़्म के पदार्थ का अपवर्तनांक प्रकाश की आवृत्ति के अनुसर अलग-अलग है। इस कारण से इस पर आपतित प्रकाश बाहर निकलने पर अलग-अलग रंगों में बंटा हुआ दिखता है। प्रकाशिकी में, प्रिज़्म (Prism / संक्षेत्र या क्रकच आयत) एक सपाट चिकनी सतहों वाला एक पारदर्शी प्रकाशीय अवयव है जो, प्रकाश का अपवर्तन करता है। कम से कम दो सपाट सतहों के मध्य एक कोण का होना अनिवार्य है। सतहों के मध्य के कोण की सटीकता उसके अनुप्रयोग पर निर्भर करती हैं। पारंपरिक रूप से संक्षेत्र उस ज्यामितीय आकार को परिभाषित करता है जिसका एक त्रिकोणीय आधार और आयताकार पक्ष होते हैं। कुछ प्रकाशीय संक्षेत्र वास्तव में एक ज्यामितीय संक्षेत्र के आकार के नहीं होते हैं। संक्षेत्रों को हर उस सामग्री से बनाया जा सकता है जो कि, उस तरंगदैर्य के लिए पारदर्शी हो जिसके लिए उन्हें तैयार किया जा रहा है। संक्षेत्रों का निर्माण मुख्यत: कांच, प्लास्टिक और फ्लुराइट से किया जाता है। प्रिज़्म का प्रयोग प्रकाश को उसके संघटक वर्णक्रमीय रंगों (इंद्रधनुष के रंग) में तोड़ने के लिए किया जा सकता है। संक्षेत्रों को प्रकाश के परावर्तन, अथवा प्रकाश के विभिन्न ध्रुवीकरण वाले संघटकों में विभाजित करने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। .

नई!!: भारतीय गणित और प्रिज़्म · और देखें »

पूँजी

पूँजी (Capital) साधारणतया उस धनराशि को कहते हैं जिससे कोई व्यापार चलाया जाए। किंतु कंपनी अधिनियम के अंतर्गत इसका अभिप्राय अंशपूँजी से हैं; न कि उधार राशि से, जिसे कभी कभी उधार पूँजी भी कहते हैं। प्रत्येक कंपनी के लिए यह अनिवार्य है कि वह अपने सीमानियम में अंशपूँजी, जिसे रजिस्टर्ड, प्राधिकृत अथवा अंकित पूँजी कहते हैं, तथा उसके निश्चित मूल्य के अंशों में विभाजन का उल्लेख करे। प्राधिकृत पूँजी के कुछ भाग को निर्गमित (इशू) किया जा सकता है और शेष को आवश्यकतानुसार निर्गमित किया जा सकता है। निर्गमित भाग के अंशों के अंकित मूल्य को निर्गमित पूँजी कहते हैं। जनता जिन अंशों के क्रय के लिए प्रार्थनापात्र दे उनके अंकित मूल्य को प्रार्थित पूँजी (Subscribed captial) तथा अंशधारियों द्वारा जितनी राशि का भुगतान किया जाए उसे दत्तपूँजी (Paid captial) कहते हैं। कंपनी चाहे तो नए अंश निर्गमित करके अंशूपूँजी में वृद्धि कर सकती है, सभी या कुछ पूर्णदत्त अंशों को स्कंधों में परिवर्तित कर सकती है सभी या कुछ अंशों को कम कीमत के छोटे अंशों में परिवर्तित कर सकती है अथवा जिन अंशों का निर्गमन न हुआ हो उन्हें निरस्त कर सकती है। ये सब परिवर्तन तभी संभव हैं जब अंतिर्नियमों (आर्टिकल्स ऑव असोसिएशन) में इनकी व्यवस्था हो। अधिकतर कंपनियों में निम्न प्रकार के अंश होते हैं: 1.

नई!!: भारतीय गणित और पूँजी · और देखें »

पेल का समीकरण

निम्नलिखित स्वरूप वाले समीकरण को पेल् का समीकरण (Pell's equation) कहते हैं- जहाँ n एक धनात्मक अवर्ग पूर्णांक है। इस समीकरण में आये x और y के लिये पूर्णांक हल वांचित होता है। भारत में इस तरह के समीकरणों को वर्ग-प्रकृति कहते थे। ब्रह्मगुप्त ने ऐसे समीकरणों का विस्तृत अध्ययन किया था तथा पेल से १००० वर्ष पहले ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त में इसके हल की चक्रवाल विधि बतायी थी। इनके हल के लिये ब्रह्मगुप्त ने दो प्रमेयिकाओं (लेम्माज) की खोज की थी जिन्हें 'भावना' कहा गया है। .

नई!!: भारतीय गणित और पेल का समीकरण · और देखें »

पेशावर

पेशावर पाकिस्तान का एक शहर है। यह ख़ैबर पख़्तूनख़्वा प्रान्त की राजधानी है। पेशावर उल्लेख पुराने पुस्तकों में "पुरुषपुर" के नाम से मिलता है। इस उपमहाद्वीप के प्राचीन शहरों में से एक है। पेशावर पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत और कबायली इलाकों के वाणिज्यिक केंद्र है। पेशावर में पश्तो भाषा बोली जाती है लेकिन जब उर्दू पाकिस्तान की राष्ट्रीय भाषा है इसलिए उर्दू भी माना जाता है। .

नई!!: भारतीय गणित और पेशावर · और देखें »

बाबिल

बाबिल के इश्टर द्वार का चित्रण बाबिल आजकल के ईराक क्षेत्र की सुमेर के पश्चात दूसरी सभ्यता। इस की भाषा सुमेर की भाषा से भिन्न थी। इसे बेबीलोनियन सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है। बाबिल नगर जो इसी नाम के साम्राज्य की राजधानी था, आजकल के बगदाद से ८० किलोमीटर दक्षिण में स्थित था। बेबीलोन प्राचीन मेसोपोटामिया का एक नगर था। यह बेबीलोनिया साम्राज्य का केन्द्र था। .

नई!!: भारतीय गणित और बाबिल · और देखें »

बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक (अथवा लोकमान्य तिलक,; २३ जुलाई १८५६ - १ अगस्त १९२०), जन्म से केशव गंगाधर तिलक, एक भारतीय राष्ट्रवादी, शिक्षक, समाज सुधारक, वकील और एक स्वतन्त्रता सेनानी थे। ये भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता हुएँ; ब्रिटिश औपनिवेशिक प्राधिकारी उन्हें "भारतीय अशान्ति के पिता" कहते थे। उन्हें, "लोकमान्य" का आदरणीय शीर्षक भी प्राप्त हुआ, जिसका अर्थ हैं लोगों द्वारा स्वीकृत (उनके नायक के रूप में)। इन्हें हिन्दू राष्ट्रवाद का पिता भी कहा जाता है। तिलक ब्रिटिश राज के दौरान स्वराज के सबसे पहले और मजबूत अधिवक्ताओं में से एक थे, तथा भारतीय अन्तःकरण में एक प्रबल आमूल परिवर्तनवादी थे। उनका मराठी भाषा में दिया गया नारा "स्वराज्य हा माझा जन्मसिद्ध हक्क आहे आणि तो मी मिळवणारच" (स्वराज यह मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूँगा) बहुत प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कई नेताओं से एक क़रीबी सन्धि बनाई, जिनमें बिपिन चन्द्र पाल, लाला लाजपत राय, अरविन्द घोष, वी० ओ० चिदम्बरम पिल्लै और मुहम्मद अली जिन्नाह शामिल थे। .

नई!!: भारतीय गणित और बाल गंगाधर तिलक · और देखें »

बख्शाली पाण्डुलिपि

बख्शाली पाण्डुलिपि में प्रयोग किये गये अंक बक्षाली पाण्डुलिपि या बख्शाली पाण्डुलिपि (Bakhshali Manuscript) प्राचीन भारत की गणित से सम्बन्धित पाण्डुलिपि है। यह भोजपत्र पर लिखी है। यह सन् १८८१ में बख्शाली गाँव (तत्कालीन पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त; अब पाकिस्तान में, तक्षशिला से लगभग ७० किमी दूर) में मिली थी। यह शारदा लिपि में है एवं गाथा बोली (संस्कृत एवं प्राकृत का मिलाजुला रूप) में है। यह पाण्डुलिपि अपूर्ण है। इसमें केवल ७० 'पन्ने' (या पत्तियाँ) ही हैं जिनमें से बहुत ही बेकार हो चुकी हैं। बहुत से पन्ने अप्राप्य हैं। .

नई!!: भारतीय गणित और बख्शाली पाण्डुलिपि · और देखें »

ब्याज

ब्याज एक ऐसा शुल्क है जो उधार ली गयी संपत्ति (ऋण) के लिए किया जाता है। यह उधार लिए गए पैसे के लिए अदा की गयी कीमत है, या, जमा धन से अर्जित किया गया पैसा है। जिन संपत्तियों को ब्याज के साथ उधार दिया जाता है उनमें शामिल हैं धन, शेयर, किराए पर खरीद द्वारा उपभोक्ता वस्तुएं, प्रमुख संपत्तियां जैसे विमान और कभी-कभी वित्त पट्टा व्यवस्था पर दिया गया पूरा कारखाना.

नई!!: भारतीय गणित और ब्याज · और देखें »

ब्रह्मगुप्त

ब्रह्मगुप्त का प्रमेय, इसके अनुसार ''AF'' .

नई!!: भारतीय गणित और ब्रह्मगुप्त · और देखें »

ब्रह्मगुप्त का सूत्र

ब्रह्मगुप्त का सूत्र किसी चक्रीय चतुर्भुज का क्षेत्रफल निकालने का सूत्र है यदि उसकी चारों भुजाएँ ज्ञात हों। उस चतुर्भुज को चक्रीय चतुर्भुज कहते हैं जिसके चारों शीर्षों से होकर कोई वृत्त खींचा जा सके।I .

नई!!: भारतीय गणित और ब्रह्मगुप्त का सूत्र · और देखें »

ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त

ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त, ब्रह्मगुप्त की प्रमुख रचना है। यह संस्कृत मे है। इसकी रचना सन ६२८ के आसपास हुई। ध्यानग्रहोपदेशाध्याय को मिलाकर इसमें कुल पचीस (२५) अध्याय हैं। यह ग्रन्थ पूर्णतः काव्य रूप में लिखा गई है। 'ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त' का अर्थ है - 'ब्रह्मगुप्त द्वारा स्फुटित (प्रकाशित) सिद्धान्त'। इस ग्रन्थ में अन्य बातों के अलावा गणित के निम्नलिखित विषय वर्णित हैं-.

नई!!: भारतीय गणित और ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त · और देखें »

ब्राह्मी लिपि

कान्हेरी गुफा की एक शिला पर ब्राह्मी लेख ब्राह्मी एक प्राचीन लिपि है जिससे कई एशियाई लिपियों का विकास हुआ है। देवनागरी सहित अन्य दक्षिण एशियाई, दक्षिण-पूर्व एशियाई, तिब्बती तथा कुछ लोगों के अनुसार कोरियाई लिपि का विकास भी इसी से हुआ था। इथियोपियाई लिपि पर ब्राह्मी लिपि का स्पष्ट प्रभाव है। .

नई!!: भारतीय गणित और ब्राह्मी लिपि · और देखें »

बौधायन

बौधायन भारत के प्राचीन गणितज्ञ और शुल्ब सूत्र तथा श्रौतसूत्र के रचयिता थे। ज्यामिति के विषय में प्रमाणिक मानते हुए सारे विश्व में यूक्लिड की ही ज्यामिति पढ़ाई जाती है। मगर यह स्मरण रखना चाहिए कि महान यूनानी ज्यामितिशास्त्री यूक्लिड से पूर्व ही भारत में कई रेखागणितज्ञ ज्यामिति के महत्वपूर्ण नियमों की खोज कर चुके थे, उन रेखागणितज्ञों में बौधायन का नाम सर्वोपरि है। उस समय भारत में रेखागणित या ज्यामिति को शुल्व शास्त्र कहा जाता था। .

नई!!: भारतीय गणित और बौधायन · और देखें »

बीज-लेखन

द्वितीय विश्व युद्ध में सेना के उच्च स्तरीय जनरल स्टाफ के संदेशों को कूटबद्ध करने के लिए या उन्हें गुप्त भाषा में लिखने के लिए प्रयोग की गई। Lorenz cipher) क्रिप्टोग्राफ़ी या क्रिप्टोलोजी यानि कूट-लेखन यूनानी शब्द κρυπτός,, क्रिपटोस औरγράφω ग्राफ़ो या -λογία,लोजिया (-logia), से लिया गया है। इनके अर्थ हैं क्रमशः छुपा हुआ रहस्य और मैं लिखता हूँ। यह किसी छुपी हुई जानकारी (information) का अध्ययन करने की प्रक्रिया है। आधुनिक समय में, क्रिप्टोग्राफ़ी या कूट-लेखन को गणित और कंप्यूटर विज्ञान (computer science) दोनों की एक शाखा माना जाता है और सूचना सिद्धांत (information theory), कंप्यूटर सुरक्षा (computer security) और इंजीनियरिंग से काफ़ी ज्यादा जुड़ा हुआ है। तकनीकी रूप से उन्नत समाज में कूटलेखन के अनुप्रयोग कई रूपों में मौजूद हैं। उदाहरण के लिये - एटीएम कार्ड (ATM cards), कंप्यूटर पासवर्ड (computer passwords) और इलेक्ट्रॉनिक वाणिज्य (electronic commerce)- ये सभी कूटलेखन पर निर्भर करते हैं। .

नई!!: भारतीय गणित और बीज-लेखन · और देखें »

बीजगणित

बीजगणित (संस्कृत ग्रन्थ) भी देखें। ---- आर्यभट बीजगणित (algebra) गणित की वह शाखा जिसमें संख्याओं के स्थान पर चिन्हों का प्रयोग किया जाता है। बीजगणित चर तथा अचर राशियों के समीकरण को हल करने तथा चर राशियों के मान निकालने पर आधारित है। बीजगणित के विकास के फलस्वरूप निर्देशांक ज्यामिति व कैलकुलस का विकास हुआ जिससे गणित की उपयोगिता बहुत बढ़ गयी। इससे विज्ञान और तकनीकी के विकास को गति मिली। महान गणितज्ञ भास्कराचार्य द्वितीय ने कहा है - अर्थात् मंदबुद्धि के लोग व्यक्ति गणित (अंकगणित) की सहायता से जो प्रश्न हल नहीं कर पाते हैं, वे प्रश्न अव्यक्त गणित (बीजगणित) की सहायता से हल कर सकते हैं। दूसरे शब्दों में, बीजगणित से अंकगणित की कठिन समस्याओं का हल सरल हो जाता है। बीजगणित से साधारणतः तात्पर्य उस विज्ञान से होता है, जिसमें संख्याओं को अक्षरों द्वारा निरूपित किया जाता है। परंतु संक्रिया चिह्न वही रहते हैं, जिनका प्रयोग अंकगणित में होता है। मान लें कि हमें लिखना है कि किसी आयत का क्षेत्रफल उसकी लंबाई तथा चौड़ाई के गुणनफल के समान होता है तो हम इस तथ्य को निमन प्रकार निरूपित करेंगे— बीजगणिति के आधुनिक संकेतवाद का विकास कुछ शताब्दी पूर्व ही प्रारंभ हुआ है; परंतु समीकरणों के साधन की समस्या बहुत पुरानी है। ईसा से 2000 वर्ष पूर्व लोग अटकल लगाकर समीकरणों को हल करते थे। ईसा से 300 वर्ष पूर्व तक हमारे पूर्वज समीकरणों को शब्दों में लिखने लगे थे और ज्यामिति विधि द्वारा उनके हल ज्ञात कर लेते थे। .

नई!!: भारतीय गणित और बीजगणित · और देखें »

भार

भौतिकी में किसी वस्तु पर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के माप को भार या वज़न कहते हैं। पृथ्वी की सतह पर गुरुत्वाकर्षण के कारण त्वरण लगभग समान होता है, इसलिए किसी वस्तु का भार उसके द्रव्यमान के अनुपाती होता है। श्रेणी:मापन vi:Tương tác hấp dẫn#Trọng lực.

नई!!: भारतीय गणित और भार · और देखें »

भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

नई!!: भारतीय गणित और भारत · और देखें »

भारत सरकार

भारत सरकार, जो आधिकारिक तौर से संघीय सरकार व आमतौर से केन्द्रीय सरकार के नाम से जाना जाता है, 29 राज्यों तथा सात केन्द्र शासित प्रदेशों के संघीय इकाई जो संयुक्त रूप से भारतीय गणराज्य कहलाता है, की नियंत्रक प्राधिकारी है। भारतीय संविधान द्वारा स्थापित भारत सरकार नई दिल्ली, दिल्ली से कार्य करती है। भारत के नागरिकों से संबंधित बुनियादी दीवानी और फौजदारी कानून जैसे नागरिक प्रक्रिया संहिता, भारतीय दंड संहिता, अपराध प्रक्रिया संहिता, आदि मुख्यतः संसद द्वारा बनाया जाता है। संघ और हरेक राज्य सरकार तीन अंगो कार्यपालिका, विधायिका व न्यायपालिका के अन्तर्गत काम करती है। संघीय और राज्य सरकारों पर लागू कानूनी प्रणाली मुख्यतः अंग्रेजी साझा और वैधानिक कानून (English Common and Statutory Law) पर आधारित है। भारत कुछ अपवादों के साथ अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्याय अधिकारिता को स्वीकार करता है। स्थानीय स्तर पर पंचायती राज प्रणाली द्वारा शासन का विकेन्द्रीकरण किया गया है। भारत का संविधान भारत को एक सार्वभौमिक, समाजवादी गणराज्य की उपाधि देता है। भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है, जिसका द्विसदनात्मक संसद वेस्टमिन्स्टर शैली के संसदीय प्रणाली द्वारा संचालित है। इसके शासन में तीन मुख्य अंग हैं: न्यायपालिका, कार्यपालिका और व्यवस्थापिका। .

नई!!: भारतीय गणित और भारत सरकार · और देखें »

भारत का आर्थिक इतिहास

इस्वी सन ०००१ से २००३ ई तक विश्व के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं का अंश; ध्यातव्य है कि १८वीं शताब्दी के पहले तक भारत और चीन विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ थीं भारत का आर्थिक विकास सिंधु घाटी सभ्यता से आरम्भ माना जाता है। सिंधु घाटी सभ्यता की अर्थव्यवस्था मुख्यतः व्यापार पर आधारित प्रतीत होती है जो यातायात में प्रगति के आधार पर समझी जा सकती है। लगभग 600 ई॰पू॰ महाजनपदों में विशेष रूप से चिह्नित सिक्कों को ढ़ालना आरम्भ कर दिया था। इस समय को गहन व्यापारिक गतिविधि एवं नगरीय विकास के रूप में चिह्नित किया जाता है। 300 ई॰पू॰ से मौर्य काल ने भारतीय उपमहाद्वीप का एकीकरण किया। राजनीतिक एकीकरण और सैन्य सुरक्षा ने कृषि उत्पादकता में वृद्धि के साथ, व्यापार एवं वाणिज्य से सामान्य आर्थिक प्रणाली को बढ़ाव मिल। अगले 1500 वर्षों में भारत में राष्ट्रकुट, होयसला और पश्चिमी गंगा जैसे प्रतिष्ठित सभ्यताओं का विकास हुआ। इस अवधि के दौरान भारत को प्राचीन एवं 17वीं सदी तक के मध्ययुगीन विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में आंकलित किया जाता है। इसमें विश्व के की कुल सम्पति का एक तिहाई से एक चौथाई भाग मराठा साम्राज्य के पास था, इसमें यूरोपीय उपनिवेशवाद के दौरान तेजी से गिरावट आयी। आर्थिक इतिहासकार अंगस मैडीसन की पुस्तक द वर्ल्ड इकॉनमी: ए मिलेनियल पर्स्पेक्टिव (विश्व अर्थव्यवस्था: एक हज़ार वर्ष का परिप्रेक्ष्य) के अनुसार भारत विश्व का सबसे धनी देश था और 17वीं सदी तक दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यस्था था। भारत में इसके स्वतंत्र इतिहास में केंद्रीय नियोजन का अनुसरण किया गया है जिसमें सार्वजनिक स्वामित्व, विनियमन, लाल फीताशाही और व्यापार अवरोध विस्तृत रूप से शामिल है। 1991 के आर्थिक संकट के बाद केन्द्र सरकार ने आर्थिक उदारीकरण की नीति आरम्भ कर दी। भारत आर्थिक पूंजीवाद को बढ़ावा देन लग गया और विश्व की तेजी से बढ़ती आर्थिक अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनकर उभरा। .

नई!!: भारतीय गणित और भारत का आर्थिक इतिहास · और देखें »

भारतीय ज्योतिषी

भारतीय ज्योतिषी से अभिप्राय उन ग्रंथकारों से है जिन्होंने अपने ग्रंथ, भारत में विकसित ज्योतिष प्रणाली के आधार पर लिखे। प्राचीन काल के ज्योतिषगणना संबंधी कुछ ग्रंथ ऐसे हैं, जिनके लेखकों ने अपने नाम नहीं दिए हैं। ऐसे ग्रंथ हैं वेदांग ज्योतिष (काल ई पू 1200); पंचसिद्धांतिका में वर्णित पाँच ज्योतिष सिद्धांत ग्रंथ। कुछ ऐसे भी ज्योतिष ग्रंथकार हुए हैं जिनके वाक्य अर्वाचीन ग्रंथों में उद्धृत हैं, किंतु उनके ग्रंथ नहीं मिलते। उनमें मुख्य हैं नारद, गर्ग, पराशर, लाट, विजयानंदि, श्रीषेण, विष्णुचंद आदि। अलबेरूनी के लेख के आधार पर लाट ने मूल सूर्यसिद्धांत के आधार पर इसी नाम के एक ग्रंथ की रचना की है। श्रीषेण के मूल वसिष्ठ सिद्धांत के आधार पर वसिष्ठ-सिद्धांत लिखा। ये सब ज्योतिषी ब्रह्मगुप्त (शक संवत् 520) से पूर्व हुए है। श्रीषेण आर्यभट के बाद तथा ब्रह्मगुप्त से पूर्व हुए हैं। प्रसिद्ध ज्योतिषियों का परिचय निम्नलिखित है:;आर्यभट प्रथम;वराहमिहिर;ब्रह्मगुप्त;मनु रचनाकाल: शक संवत् 800 के लगभग, ग्रंथ: बृहन्मानसकरण।;विटेश्वर रचनाकाल: शंक संवत् 821, ग्रंथ: करणसार।;बटेश्वर इन्होंने सिद्धांत बटेश्वर लिखा है, जिसे हाल ही में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑव ऐस्ट्रोनॉमिकल ऐंड संस्कृत रिसर्च, नई दिल्ली, ने छपाया है। अलबेरुनी के पास इस ग्रंथ का एक अरबी अनुवाद था और उसने इसकी बहुत प्रंशसा की है। इसकी ज्याप्रणाली अन्य सिद्धांतों की ज्याप्रणाली से सूक्ष्म है। कुछ विद्वानों के अनुसार वित्तेश्वर और बटेश्वर एक ही व्यक्ति थे।;मुंजाल इनका रचनाकाल शक संवत् 854 है। इनका उपलब्ध ग्रंथ लघुमानसकरण है। इन्होंने अयनगति 1 कला मानी है। अयनगति के प्रसंग में भास्कराचार्य ने इनका नाम लिया है। मुनीश्वर ने मरीचि में अयनगति विषयक इनके कुछ श्लोक उद्धृत किए हैं, जो लघुमानस के नहीं हैं। इससे पता चलता है कि मुंजाल का एक और मानस नामक ग्रंथ था, जो उपलब्घ नहीं है।;आर्यभट द्वितीय;चतुर्वेद पृथूदक स्वामी, रचनाकाल: 850-900 शक संवत् के भीतर। ग्रंथ: ब्रह्मस्फुटसिद्धांत की टीका।;विजयनंदि रचनाकाल: शक सं 888। ग्रंथ: करणतिलक।;श्रीपति इनका रचनाकाल शक सं 961 हैं। इन्होंने सिद्धांतशेखर तथा धीकोटिदकरण नामक गणित ज्योतिष विषयक और रत्नमाला नामक मुहूर्त्त विषयक ग्रंथ लिखा है। सुधाकर द्विवेदी के अनुसार इनका रत्नसार नामक एक अन्य मुहूर्त ग्रंथ भी है। इनकी विशेषता यह है कि इन्होंने ज्याखंडों के बिना केवल चाप के अंशों से ज्यासाधन किया है। ये नागदेव के पुत्र थे।;वरुण रचनाकाल: शक सं 962। ग्रंथ: खंडखाद्य टीका।;भोजराज इनका रचनाकाल शक सं 964 है। इनका ग्रंथ राजमृगांक है। इसमें इन्होंने ब्रह्मगुप्त के सिद्धांत के लिये बीजसंस्कारों को निकाला है।;दशबल इनका रचनाकाल शक सं 980 है। इसका ग्रंथ करणकमलमार्तंड है। इसकी विशेषता यह है कि इसमें सारणियाँ दी गई हैं, जिनसे ग्रहों की गणना सुगम हो जाती है।;ब्रह्मदेव गणक इनके पिता का नाम चंद्र था। ये मथुरा के रहनेवाले थे। इनका रचनाकाल शक सं 1014 है। इन्होंने करणप्रकाश नामक ग्रंथ लिखा है। इन्होंने आर्यभटीयम् की गतियों में लल्ल के बीजसंस्कार करके उसे ग्रहण किया है। इनका शून्यायनांश वर्ष शक सं 445 है। इन्होंने अयनगति 1 कला मानी है1;शतानंद जगन्नाथपुरी निवासी शतानंद का रचनाकाल शक सं 1021 है। इनका प्रसिद्ध ग्रंथ भास्वतीकरण है। इनका शून्यायनांश वर्ष 450 तथा अयनगति 1 कला है। इन्होंने अहर्गण का साधन स्पष्ट मेष से किया है। इनकी विशेषता यह है कि इन्होंने ग्रहगतियों को शतांश अथवा प्रति शत में रखा है, जिससे गणित करने में सरलता हो जाती है। यह पद्धति आधुनिक दशमलव प्रणाली जैसी है1;महेश्वर प्रसिद्ध गणित ज्योतिषी भास्कराचार्य के पिता तथा गुरु, महेश्वर, का जन्मकाल शक सं 1000 के लगभग है। शेखर इनका गणितज्योतिष का ग्रंथ है। इनके अन्य ग्रंथ हैं। लघुजातकटीका, वृत्तशत, प्रतिष्ठाविधिदीपक।;सोमेश्वर तृतीय इनके अन्य नाम हैं भूलोक मल्ल और सर्वज्ञभूपाल। ये चालुक्य वंश के राजा थे। इन्होंने शक सं 1051 में अभिलाषितार्थचिंतामणि नामक ग्रंथ लिखा।;भास्कराचार्य;वाविलालकोच्चन्ना रचनाकाल: शक संवत् 1220। इन्होंने सूर्यसिद्धांत के आधार पर एक करणग्रंथ लिखा है।;महादेव प्रथम ये गुजराती ब्राह्मण थे। शक संवत् 1238 में इन्होंने चक्रेश्वर नामक ज्योतिषी द्वारा आरंभ किए हुए, ग्रहसिद्धि नामक सारणीग्रंथ को पूर्ण किया।;महादेव तृतीय ये त्र्यंबक की राजसभा के पंडित, बोपदेव, के पुत्र थे। इन्होंने शक संवत् 1289 में कामधेनुकरण नामक ग्रंथ लिखा।;नार्मद रचनाकाल: शक संवत् 1300। रचना: सूर्यसिद्धांत टीका।;पद्नाभ रचनाकाल: शक संवत् 1320। रचना: यंत्ररत्नावली, जिसके द्वितीय अध्याय में प्रसिद्ध ध्रुवमय यंत्र है।;लल्ल पं सुधाकर द्विवेदी ने इनका रचनाकाल शक संवत् 421 तथा केर्न ने शक संवत् 420 माना है, किंतु बालशंकर दीक्षित के अनुसार इनका काल लगभग शक संवत् 560 है। इन्होंने आर्यभटीय के आधार पर अपना शिष्यधीवृद्धिदतंत्र नामक ग्रहगणित का ग्रंथ लिखा है। प्रत्यक्ष वेध द्वारा इन्होंने कुछ बीज संस्कारों का वर्णन किया है। भास्कराचार्य ने सिद्धांतशिरोमणि में कई स्थानों पर इनके गणनासूत्रों की अशुद्धियाँ दिखलाई हैं।;दामोदर रचनाकाल: शक सं 1339, ग्रंथ: भट्टतुल्य। इसकी ग्रहगणना आर्यभट सरीखी है।;गंगाधर रचनाकाल: शक सं 1356। ग्रंथ: चंद्रमान।;मकरंद रचनाकाल: शक सं 1400। इन्होंने सूर्यसिद्धांत के अनुसार सारणियाँ बनाईं, जो बहुत प्रसिद्ध है। आज भी बहुत से पंचांग इनके आधार पर बनते हैं।;केशव प्रसिद्ध ग्रहलाघवाकार गणेश के पिता केशव का रचनाकाल 1418 ई सं के लगभग है। इन्होंने करणग्रंथ ग्रहकौतुक लिखा। ये बहुत निपुण वेधकर्त्ता थे। इन्होंने अपने ग्रंथ में प्रत्यक्ष वेध द्वारा अन्य सिद्धांतकारों के ग्रहगणित की अशुद्धियों का निर्देश किया है।;गणेश केशव के पुत्र गणेश का जन्मकाल 1420 शक सं के लगभग है। इनके ग्रंथ हैं ग्रहलाघव, लघुतिथि चिंतामणि, बृहत्तिथिचिंतामणि, सिद्धांतशिरोमणि टीका, लीलावती टीका, विवाहवृंदावन टीका, मुहूर्तत्व टीका, श्राद्धनिर्णय, छंदोर्णव, टीका, तर्जनीयंत्र, कृष्णाष्टमीनिर्णय, होलिकानिर्णय, लघुपाय पात आदि। इनकी कीर्ति का मुख्य स्तंभ है ग्रहलाघवकरण। सिद्धांतग्रंथों में वर्ण्य प्राय: सभी विषय इसमें हैं। इसकी विशेषता यह है कि इसमें ज्या चाप की गणना के बिना ही सब गणना की गई है और यह अत्यंत शुद्ध है। ये बहुत अच्छे वेधकर्ता थे। इन्होंने अपने पिता के वेधों से भी लाभ उठाया। इसीलिये इन्होंने एक ऐसी गणनाप्रणाली निकाली जो अति सरल होते हुए भी बहुत शुद्ध थी। इनके ग्रंथ के आधार पर भारत में बहुत से पंचांग बनते हैं। ग्रहलाघव की अनेक टीकाएँ हो चुकी हैं।;लक्ष्मीदास रचनाकाल: शक सं 1422, रचना: सिद्धांतशिरोमणि के गणिताध्याय तथा गोलाध्याय की उदाहरण सहित टीका।;ज्ञानराज इनका रचनाकाल शक सं 1425 है। इनका ग्रंथ सुंदरसिद्धांत है। इसके दो मुख्य भाग हैं: गणिताध्याय तथा गोलाध्याय। ग्रहगणित के लिये इन्होंने करणग्रंथों की तरह क्षेपक तथा वर्षगतियाँ भी दी हैं। कहीं कहीं पर इनकी उपपत्तियाँ भास्करसिद्धांत से विशिष्ट हैं। इन्होंने यंत्रमालाधिकार में एक नवीन यंत्र बनाया है।;सूर्य इनका जनम शक सं 1430 है। ये ज्ञानराज के पुत्र थे। इन्होंने गणित ज्योतिष के सूर्यप्रकाश, लीलावती टीका, बीज टीका, श्रीपतिपद्धतिगणित, बीजगणित, नामक ग्रंथों की रचना की है। कोलब्रुक के अनुसार इन्होंने सिद्धांतशिरोमणि टीका तथा गणितमालती ग्रंथ भी बनाए हैं। इनका एक और ग्रंथ है सिद्धांतसंहितासार समुच्चय।;अनंत प्रथम रचनाकाल: शक सं 1447। रचना: अनंतसुधारस नामक सारणीग्रंथ।;ढुंढिराज रचनाकाल: शक सं 1447 के लगभग, रचना: अनुंबसुधारस की सुधारस-चषक-टीका, ग्रहलाघवोदाहरण, ग्रहफलोपपत्ति; पंचांगफल, कुंडकल्पलता तथा प्रसिद्ध फलितग्रंथ जातकाभरण।;नृसिंह प्रथम ये गणेश के भाई, राम, के पुत्र थे। रचना मध्यग्रहसिद्धि (शक सं 1400) तथा ग्रहकौमुदी।;अनंत द्वितीय मुहूर्तचिंतामणि के निर्माता राम तथा ताजिक नीलकंठी के निर्माता, नीलकंठ के पिता अनंत, का रचनाकाल शक सं 1480 है। इन्होंने कामधेनु की टीका तथा जातकपद्धति की रचना की।;नीलकंठ रचनाकाल: शक सं 509, ग्रंथ: तोडरानंद तथा ताजिकनीलकंठी। गणकतरंगिणी के अनुसार इन्होंने जातकपद्धति भी लिखी थी। आफ्रेच सूची के अनुसार इनके अन्य ग्रंथ हैं: तिथिरतनमाला, प्रश्नकौमुदी अथवा ज्योतिषकौमुदी, दैवज्ञवल्लभा, जैमिनीसूत्र की सूबोधिनी टीका। ग्रहलाघव टीका, ग्रहौतक टीका, मकरंद टीका तथा एक मुहूर्तग्रंथ की टीका।;रघुनाथ प्रथम काल: शक सं 1484, रचना: सुबोधमंजरी।;रघुनाथ द्वितीय काल: शक सं 1487, रचना: मणिप्रदीप।;कृपाराम काल: शक सं 1420 के पश्चात्, रचनाएँ: बीजगणित, मकरंद तथा यंत्रचिंतामणि की उदाहरणस्वरूप टीकाएँ। इन्होंने सर्वार्थचिंतामणि, पंचपक्षी तथा मुहूर्ततत्व की टीकाएँ भी की हैं।;दिनकर काल: शक सं 1500, ग्रंथ: खेटकसिद्धि तथा चंद्रार्की।;गंगाधर काल: शक सं 1508, ग्रंथ: ग्रहलाघव की मनोरमा टीका।;रामभट काल: शक सं 1512, ग्रंथ: रामविनोदकरण।;श्रीनाथ काल: शक सं 1512, ग्रंथ: ग्रहचिंतामणि।;विष्णु काल: शक सं 1530, ग्रंथ: एक करणग्रंथ।;मल्लारि काल: शक सं 1524, ग्रंथ: ग्रहलाघव की उपपत्तिसहित टीका।;विश्वनाथ काल: शक सं 1534-1556। ये प्रसिद्ध सोदाहरण टीकाकार हैं। इन्होंने सूर्यसिद्धांत शिरोमणि, करणकुतूहल, मकरंद, केशबीजातक पद्धति, सोमसिद्धांत, तिथिचिंतामणि, चंद्रमानतंत्र, बृहज्जातक, श्रीपतिपद्धति वसिष्ठसंहिता तथा बृहत्संहिता पर टीकाएँ की हैं।;नृसिंह द्वितीय जन्म: शक सं 1508, ग्रंथ: सूर्यसिद्धांत की सौरभाष्य तथा सिद्धांतशिरोमणि की वासनाभाष्य टीकाएँ।;शिव जन्म: शक सं 1510, ग्रंथ: अनंतसुधारस टीका।;कृष्ण प्रथम रचना: शक सं 1500-1530, ग्रंथ: भास्कराचार्य के बीजगणित की बीजनवांकुद तथा जातकपद्धति की टीकाएँ, तथा छादकनिर्णय।;रंगनाथ प्रथम रचना: शक सं 1525, ग्रंथ: सूर्यसिद्धांत की गूढ़ार्थप्रकाशिका टीका।;नागेश रचनाकाल: शक सं-1541, ग्रंथ: करणग्रंथ, तथा ग्रहप्रबोध।;मुनीश्वर ये गूढ़ार्थप्रकाशिकाकार रंगनाथ के पुत्र थे। इनका जन्मकाल श सं 1525 है। इन्होंने सिद्धांतसार्वभौम ग्रंथ लिखा तथा लीलावती पर निसृष्टार्थदूती और सिद्धांतशिरोमणि की मरीचि टीका की। कुछ विद्वान् पाटीसार भी इनका लिखा मानते हैं।;दिवाकर जन्मकाल: शक सं 1528 है, रचना: मकरंद की मकरंदविवृत्ति टीका।;कमलाकर भट्ट जन्म: शक सं 1530 के लगभग। इन्होंने काशी में शक सं 1580 के लगभग सिद्धांततत्वविवेक बनाया। यह आधुनिक सूर्यसिद्धांत के आधार पर लिखा गया है। इसमें बहुत सी गणित संबंधी नवीन रीतियाँ है। तुरीय यंत्र का विस्तृत वर्णन तथा ध्रुवतारा की स्थिरता का वर्णन इनकी नूतनता है। इन्होंने मुनीश्वर तथा भास्कराचार्य का कई स्थलों पर खंडन किया है, जो कुछ स्थलों पर इनके निजी अज्ञान का द्योतक है। ये संक्षिप्त न लिखकर बहुत विस्तार से लिखते हैं। इनके 13 अध्यायों के ग्रंथ में 3,024 श्लोक हैं।;रंगनाथ द्वितीय जन्म: शक सं 1534 के लगभग, ग्रंथ: सिद्धांतशिरोमणि की मितभाषिणी टीका तथा सिद्धांतचूड़ामणि।;नित्यानंद रचनाकाल: शक सं 1561। इन्होंने सायन मानों से सर्वसिद्धांतराज ग्रंथ लिखा है। इसमें वर्तमान 365.14.33.7 40448 दिनादि है, जो वास्तव काल के निकटतर है। इनके दिए हुए भगणों से यह स्पष्ट है कि ये कुशल वेधकर्ता थे।;कृष्ण द्वितीय इन्होंने शक सं 1575 में करणकौस्तुभ लिखा1;रत्नकंठ इन्होंने शक सं 1580 में पंचांगकौस्तुभ नामक सारणीग्रंथ लिखा।;विद्दन शक सं 1626 से कुछ पूर्व, इन्होंने वार्षिकतंत्र लिखा। इनका अन्य ग्रंथ ग्रहणमुकुर है।;जटाधर इन्होंने शक सं 1626 में फत्तेशाह प्रकाश नामक करणग्रंथ लिखा।;दादाभट इन्होंने शक सं 1641 में सूर्यसिद्धांत की करणावलि टीका लिखी1;नारायण रचना: शक सं 1661। इन्होंने होरासारसुधानिधि, नरजातकव्याख्या, गणकप्रिया, स्वरसार तथा ताजकसुधानिधि लिखे।;जयसिंह राजा जयसिंह शंक सं 1615 में राजसिंहासन पर बैठे थे। इन्होंने हिंदू, मुसलमान तथा यूरोपीय ज्योतिष ग्रंथों का अध्ययन किया और देखा कि उनसे स्पष्ट ग्रह तथा दृश्य ग्रहों में अंतर है। इसलिये इन्होंने जयपुर, दिल्ली, मथुरा, उज्जैन तथा काशी में पक्की वेधशालाएँ बनवाईं जो अब भी इनके कीर्तिस्तंभ की तरह विद्यमान हैं। आठ साल तक वेध करवाकर इन्होंने अरबी का जिजमुहम्मद तथा संस्कृत में सम्राट् सिद्धांत नामक ग्रंथ बनवाए। सिद्धांत सम्राट् इन्होंने जगन्नाथ पंडित से शक सं 1653 में बनवाया। इनके ग्रंथ से ग्रह अतिसूक्ष्म आते हैं।;शंकर इन्होंने शक सं 1688 में वैष्णवकरण लिखा।;मणिराम इन्होंने शक सं 1696 में ग्रहगणित चिंतामणि लिखी।;भुला इन्होंने शक सं 1703 में ब्रह्मसिद्धांतसार लिखा।;मथुरानाथ इन्होंने शक सं 1704 में यंत्रराजघटना लिखा।;चिंतामणिदीक्षित शक सं 1658-1733। इन्होंने सूर्यसिद्धांतसारणी तथा गोलानंद नामक वेधग्रंथ लिखा।;शिव इन्होंने शक सं 1737 में तिथिपारिजात लिखा।;दिनकर इन्होंने शक सं 1734 से 1761 के बीच ग्रहविज्ञानसारणी, मासप्रवेशसारणी, लग्नसारणी, क्रांतिसारणी आदि ग्रंथ लिखे।;बापूदेव शास्त्री काशी के संस्कृत कालेज के ज्योतिष के मुख्य अध्यापक थे। बापूदेव शास्त्री (नृसिंह) का जन्म शक सं 1743 में हुआ। ये प्रयाग तथा कलकत्ता विश्वविद्यालयों के परिषद तथा आयरलैंड और ग्रेट ब्रिटेन की रॉयल के सम्मानित सदस्य थे। इन्हें महामहोपाध्याय की उपाधि मिली थी। इनके ग्रंथ हैं: रेखागणित प्रथमाध्याय, त्रिकोणमिति, प्राचीन ज्योतिषाचार्याशयवर्णन, सायनवाद, तत्वविवेकपरीक्षा, मानमंदिरस्थ यंत्रवर्णन, अंकगणित, बीजगणित। इन्होंने सिद्धांतशिरोमणि का संपादन तथा सूर्यसिद्धांत का अंग्रेजी में अनुवाद किया। इनका दृक्सिद्ध पंचांग आज भी वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय से प्रकाशित होता है।;नीलांबर शर्मा इनका गोलप्रकाश शक सं 1793 में प्रकाशित हुआ।;विनायक अथवा केरो लक्ष्मण छत्रे इन्होंने पाश्चात्य ज्योतिष के आधार पर ग्रहसाधनकोष्ठक शक सं 1772 में लिखा। इनका अन्य ग्रंथ चिंतामणि हैं।;चिंतामणि रघुनाथ आचार्य जन्म: शक सं 1750। इन्होंने तमिल में ज्योतिषचिंतामणि लिखा।;कृष्ण शास्त्री गाडबोले जन्म: शक सं 1753। इन्होंने वामनकृष्ण जोशी गद्रे के साथ ग्रहलाघव का मराठी अनुवाद, ज्योतिषशास्त्र तथा पंचांगसाधनसार छपाया तथा "मासानां मार्गशीर्षोहं" लेख द्वारा यह सिद्ध किया कि वेद शकपूर्व 30 हजार वर्ष से प्राचीन हैं1;वेंकटेश बापूजी केतकर इन्होंने शक सं 1812 में पाश्चात्य ज्योतिष के आधार पर "ज्योतिर्गणित" लिखा, जिससे ग्रहगणना बहुत सूक्ष्म होती है।;सुधाकर द्विवेदी इनका जन्मकाल शक सं 1782 है। ये काशी के संस्कृत कालेज के ज्योतिष के प्रधान पंडित तथा अपने समय के अति प्रसिद्ध विद्वान् थे। इन्हें महामहोपाध्याय की उपाधि प्राप्त थी। इनके ग्रंथ हैं: दीर्घवृत्तलक्षण, विचित्र प्रश्न सभंग, द्युचरचार, वास्ववचंद्रश्रृंगोन्नति, पिंडप्रभाकर, भाभ्रम रेखानिरूपण, धराभ्रम, ग्रहणकरण, गोलीयरेखागणित, रेखागणित के एकादश द्वादश अध्याय तथा गणकतरंगिणी। इन्होंने सूर्यसिद्धांत, ग्रहलाघव आदि ग्रंथों की टीकाएँ तथा बहुत से ग्रंथों का संपादन भी किया।; शंकर बालकृष्ण दीक्षित जन्मकाल सं 1775 है। इन्होंने विद्यार्थीबुद्धिवर्द्धिनी, सृष्टिचमत्कार,

नई!!: भारतीय गणित और भारतीय ज्योतिषी · और देखें »

भारतीय गणित का इतिहास

सभी प्राचीन सभ्यताओं में गणित विद्या की पहली अभिव्यक्ति गणना प्रणाली के रूप में प्रगट होती है। अति प्रारंभिक समाजों में संख्यायें रेखाओं के समूह द्वारा प्रदर्शित की जातीं थीं। यद्यपि बाद में, विभिन्न संख्याओं को विशिष्ट संख्यात्मक नामों और चिह्नों द्वारा प्रदर्शित किया जाने लगा, उदाहरण स्वरूप भारत में ऐसा किया गया। रोम जैसे स्थानों में उन्हें वर्णमाला के अक्षरों द्वारा प्रदर्शित किया गया। यद्यपि आज हम अपनी दशमलव प्रणाली के अभ्यस्त हो चुके हैं, किंतु सभी प्राचीन सभ्यताओं में संख्याएं दशमाधार प्रणाली पर आधारित नहीं थीं। प्राचीन बेबीलोन में 60 पर आधारित संख्या-प्रणाली का प्रचलन था। भारत में गणित के इतिहास को मुख्यता ५ कालखंडों में बांटा गया है-.

नई!!: भारतीय गणित और भारतीय गणित का इतिहास · और देखें »

भारतीय गणितज्ञों की सूची

सिन्धु सरस्वती सभ्यता से आधुनिक काल तक भारतीय गणित के विकास का कालक्रम नीचे दिया गया है। सरस्वती-सिन्धु परम्परा के उद्गम का अनुमान अभी तक ७००० ई पू का माना जाता है। पुरातत्व से हमें नगर व्यवस्था, वास्तु शास्त्र आदि के प्रमाण मिलते हैं, इससे गणित का अनुमान किया जा सकता है। यजुर्वेद में बड़ी-बड़ी संख्याओं का वर्णन है। .

नई!!: भारतीय गणित और भारतीय गणितज्ञों की सूची · और देखें »

भारतीय अंक प्रणाली

भारतीय अंक प्रणाली को पश्चिम के देशों में हिंदू-अरबी अंक प्रणाली के नाम से जाना जाता है क्योंकि यूरोपीय देशों को इस अंक प्रणाली का ज्ञान अरब देश से प्राप्त हुआ था। जबकि अरबों को यह ज्ञान भारत से मिला था। भारतीय अंक प्रणाली में 0 को मिला कर कुल 10 अंक होते हैं। संसार के अधिकतम 10 अंकों वाली अंक प्रणाली भारतीय अंक प्रणाली पर ही आधारित हैं। फ्रांस के प्रसिद्ध गणितज्ञ पियरे साइमन लाप्लास के अनुसार, .

नई!!: भारतीय गणित और भारतीय अंक प्रणाली · और देखें »

भारतीय उपमहाद्वीप

भारतीय उपमहाद्वीप का भौगोलिक मानचित्र भारतीय उपमहाद्वीप, एशिया के दक्षिणी भाग में स्थित एक उपमहाद्वीप है। इस उपमहाद्वीप को दक्षिण एशिया भी कहा जाता है भूवैज्ञानिक दृष्टि से भारतीय उपमहाद्वीप का अधिकांश भाग भारतीय प्रस्तर (या भारतीय प्लेट) पर स्थित है, हालाँकि इस के कुछ भाग इस प्रस्तर से हटकर यूरेशियाई प्रस्तर पर भी स्थित हैं। .

नई!!: भारतीय गणित और भारतीय उपमहाद्वीप · और देखें »

भास्कर प्रथम

भास्कर प्रथम (600 ई – 680 ईसवी) भारत के सातवीं शताब्दी के गणितज्ञ थे। संभवतः उन्होने ही सबसे पहले संख्याओं को हिन्दू दाशमिक पद्धति में लिखना आरम्भ किया। उन्होने आर्यभट्ट की कृतियों पर टीका लिखी और उसी सन्दर्भ में ज्या य (sin x) का परिमेय मान बताया जो अनन्य एवं अत्यन्त उल्लेखनीय है। आर्यभटीय पर उन्होने सन् ६२९ में आर्यभटीयभाष्य नामक टीका लिखी जो संस्कृत गद्य में लिखी गणित एवं खगोलशास्त्र की प्रथम पुस्तक है। आर्यभट की परिपाटी में ही उन्होने महाभास्करीय एवं लघुभास्करीय नामक दो खगोलशास्त्रीय ग्रंथ भी लिखे। .

नई!!: भारतीय गणित और भास्कर प्रथम · और देखें »

भास्कराचार्य

---- भास्कराचार्य या भाष्कर द्वितीय (1114 – 1185) प्राचीन भारत के एक प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं ज्योतिषी थे। इनके द्वारा रचित मुख्य ग्रन्थ सिद्धान्त शिरोमणि है जिसमें लीलावती, बीजगणित, ग्रहगणित तथा गोलाध्याय नामक चार भाग हैं। ये चार भाग क्रमशः अंकगणित, बीजगणित, ग्रहों की गति से सम्बन्धित गणित तथा गोले से सम्बन्धित हैं। आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्य ने उजागर कर दिया था। भास्कराचार्य ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस कारण आकाशीय पिण्ड पृथ्वी पर गिरते हैं’। उन्होने करणकौतूहल नामक एक दूसरे ग्रन्थ की भी रचना की थी। ये अपने समय के सुप्रसिद्ध गणितज्ञ थे। कथित रूप से यह उज्जैन की वेधशाला के अध्यक्ष भी थे। उन्हें मध्यकालीन भारत का सर्वश्रेष्ठ गणितज्ञ माना जाता है। भास्कराचार्य के जीवन के बारे में विस्तृत जानकारी नहीं मिलती है। कुछ–कुछ जानकारी उनके श्लोकों से मिलती हैं। निम्नलिखित श्लोक के अनुसार भास्कराचार्य का जन्म विज्जडविड नामक गाँव में हुआ था जो सहयाद्रि पहाड़ियों में स्थित है। इस श्लोक के अनुसार भास्कराचार्य शांडिल्य गोत्र के थे और सह्याद्रि क्षेत्र के विज्जलविड नामक स्थान के निवासी थे। लेकिन विद्वान इस विज्जलविड ग्राम की भौगोलिक स्थिति का प्रामाणिक निर्धारण नहीं कर पाए हैं। डॉ.

नई!!: भारतीय गणित और भास्कराचार्य · और देखें »

भिन्न

एक केक के चार भाग दर्शाए गये हैं। उसमें से एक भाग को निकाल दिया गया है। इसी को दूसरे शब्दों में कहेंगे कि केक का \tfrac14भाग काटकर निकाल दिया गया है और \tfrac34 भाग बचा है। भिन्न (Fraction) एक संख्या है जो पूर्ण के किसी भाग को दर्शाती है। भिन्न दो पूर्ण संख्याओं का भागफल है। भिन्न का एक उदाहरण है \tfrac जिसमें 3 अंश कहलाता है और 5 हर कहलाता है। .

नई!!: भारतीय गणित और भिन्न · और देखें »

मयासुर

श्रीकृष्ण मयासुर को पाण्डवों के लिये एक महल निर्माण का आदेश देते हुए मय या मयासुर, कश्यप और दुन का पुत्र, नमुचि का भाई, एक प्रसिद्ध दानव। यह ज्योतिष तथा वास्तुशास्त्र का आचार्य था। मय ने दैत्यराज वृषपर्वन् के यज्ञ के अवसर पर बिंदुसरोवर के निकट एक विलक्षण सभागृह का निर्माण कर अपने अद्भुत शिल्पशास्त्र के ज्ञान का परिचय दिया था। इसकी दो पत्नियाँ - हेमा और रंभा थीं जिनसे पाँच पुत्र तथा तीन कन्याएँ हुईं। जब शंकर ने त्रिपुरों को भस्म कर असुरों का नाश कर दिया तब मयासुर ने अमृतकुंड बनाकर सभी को जीवित कर दिया था किंतु विष्णु ने उसके इस प्रयास को विफल कर दिया। ब्रह्मपुराण (124) के अनुसार इंद्र द्वारा नमुचि का वध होने पर इसने इंद्र को पराजित करने के लिये तपस्या द्वारा अनेक माया विद्याएँ प्राप्त कर लीं। भयग्रस्त इंद्र ब्राह्मण वेश बनाकर उसके पास गए और छलपूर्वक मैत्री के लिये उन्होंने अनुरोध किया तथा असली रूप प्रकट कर दिया। इसपर मय ने अभयदान देकर उन्हें माया विद्याओं की शिक्षा दी। .

नई!!: भारतीय गणित और मयासुर · और देखें »

मलयालम भाषा

मलयालं (മലയാളം, मलयालम्‌) या कैरली (കൈരളി, कैरलि) भारत के केरल प्रान्त में बोली जाने वाली प्रमुख भाषा है। ये द्रविड़ भाषा-परिवार में आती है। केरल के अलावा ये तमिलनाडु के कन्याकुमारी तथा उत्तर में कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिला, लक्षद्वीप तथा अन्य कई देशों में बसे मलयालियों द्वारा बोली जाती है। मलयालं, भाषा और लिपि के विचार से तमिल भाषा के काफी निकट है। इस पर संस्कृत का प्रभाव ईसा के पूर्व पहली सदी से हुआ है। संस्कृत शब्दों को मलयालम शैली के अनुकूल बनाने के लिए संस्कृत से अवतरित शब्दों को संशोधित किया गया है। अरबों के साथ सदियों से व्यापार संबंध अंग्रेजी तथा पुर्तगाली उपनिवेशवाद का असर भी भाषा पर पड़ा है। .

नई!!: भारतीय गणित और मलयालम भाषा · और देखें »

महाभास्करीय

महाभास्करीय, भास्कर प्रथम द्वारा रचित गणित एवं खगोल से सम्बन्धित ग्रन्थ है। गोविन्दस्वामी ने इसकी टीका लिखी है जिसमें अन्तर्वेशन का वही सूत्र है जिसे आजकल 'न्यूटन-गाउस अन्तर्वेशन फॉर्मूला' कहते हैं। .

नई!!: भारतीय गणित और महाभास्करीय · और देखें »

महावीर

भगवान महावीर जैन धर्म के चौंबीसवें (२४वें) तीर्थंकर है। भगवान महावीर का जन्म करीब ढाई हजार साल पहले (ईसा से 599 वर्ष पूर्व), वैशाली के गणतंत्र राज्य क्षत्रिय कुण्डलपुर में हुआ था। तीस वर्ष की आयु में महावीर ने संसार से विरक्त होकर राज वैभव त्याग दिया और संन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकल गये। १२ वर्षो की कठिन तपस्या के बाद उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ जिसके पश्चात् उन्होंने समवशरण में ज्ञान प्रसारित किया। ७२ वर्ष की आयु में उन्हें पावापुरी से मोक्ष की प्राप्ति हुई। इस दौरान महावीर स्वामी के कई अनुयायी बने जिसमें उस समय के प्रमुख राजा बिम्बिसार, कुनिक और चेटक भी शामिल थे। जैन समाज द्वारा महावीर स्वामी के जन्मदिवस को महावीर-जयंती तथा उनके मोक्ष दिवस को दीपावली के रूप में धूम धाम से मनाया जाता है। जैन ग्रन्थों के अनुसार समय समय पर धर्म तीर्थ के प्रवर्तन के लिए तीर्थंकरों का जन्म होता है, जो सभी जीवों को आत्मिक सुख प्राप्ति का उपाय बताते है। तीर्थंकरों की संख्या चौबीस ही कही गयी है। भगवान महावीर वर्तमान अवसर्पिणी काल की चौबीसी के अंतिम तीर्थंकर थे और ऋषभदेव पहले। हिंसा, पशुबलि, जात-पात का भेद-भाव जिस युग में बढ़ गया, उसी युग में भगवान महावीर का जन्म हुआ। उन्होंने दुनिया को सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाया। तीर्थंकर महावीर स्वामी ने अहिंसा को सबसे उच्चतम नैतिक गुण बताया। उन्होंने दुनिया को जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत बताए, जो है– अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) और ब्रह्मचर्य। उन्होंने अनेकांतवाद, स्यादवाद और अपरिग्रह जैसे अद्भुत सिद्धांत दिए।महावीर के सर्वोदयी तीर्थों में क्षेत्र, काल, समय या जाति की सीमाएँ नहीं थीं। भगवान महावीर का आत्म धर्म जगत की प्रत्येक आत्मा के लिए समान था। दुनिया की सभी आत्मा एक-सी हैं इसलिए हम दूसरों के प्रति वही विचार एवं व्यवहार रखें जो हमें स्वयं को पसंद हो। यही महावीर का 'जीयो और जीने दो' का सिद्धांत है। .

नई!!: भारतीय गणित और महावीर · और देखें »

महावीर (गणितज्ञ)

महावीर (या महावीराचार्य) नौवीं शती के भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। वे गुलबर्ग के निवासी थे। वे जैन धर्म के अनुयायी थे। उन्होने क्रमचय-संचय (कम्बिनेटोरिक्स) पर बहुत उल्लेखनीय कार्य किये तथा विश्व में सबसे पहले क्रमचयों एवं संचयों (कंबिनेशन्स) की संख्या निकालने का सामान्यीकृत सूत्र प्रस्तुत किया। वे अमोघवर्ष प्रथम नामक महान राष्ट्रकूट राजा के आश्रय में रहे। उन्होने गणितसारसंग्रह नामक गणित ग्रन्थ की रचना की जिसमें बीजगणित एवं ज्यामिति के बहुत से विषयों (टॉपिक्स) की चर्चा है। उनके इस ग्रंथ का पावुलूरि मल्लन ने तेलुगू में 'सारसंग्रह गणितम्' नाम से अनुवाद किया। महावीर ने गणित के महत्व के बारे में कितनी महान बात कही है- .

नई!!: भारतीय गणित और महावीर (गणितज्ञ) · और देखें »

माधवाचार्य की ज्या सारणी

केरलीय गणित सम्प्रदाय के गणितज्ञ तथा खगोलशास्त्री माधवाचार्य ने चौदहवीं शताब्दी में विभिन्न कोणों के ज्या के मानों की एक सारणी निर्मित की थी। इस सारणी में चौबीस कोणों के ज्या के मान दिए गये हैं। जिन कोणों के ज्या के मान दिए गये हैं वे हैं: यह सारणी एक संस्कृत श्लोक के रूप में है जिसमें संख्यात्मक मानों को कटपयादि पद्धति का उपयोग करके निरूपित किया गया है। इससे सम्बन्धित माधव के मूल कार्य प्राप्त नहीं होते हैं किन्तु नीलकण्ठ सोमयाजि (1444–1544) के 'आर्यभटीयभाष्य' तथा शंकर वरियार (circa. 1500-1560) द्वारा रचित तन्त्रसंग्रह की 'युक्तिदीपिका/लघुवृत्ति' नामक टीका में भी हैं। .

नई!!: भारतीय गणित और माधवाचार्य की ज्या सारणी · और देखें »

मिस्र

मिस्र (अरबी; مصر, अंग्रेजी:Egypt), आधिकारिक तौर पर मिस्र अरब गणराज्य, एक देश है जिसका अधिकांश हालांकि उत्तरी अफ्रीका में स्थित है जबकि इसका सिनाई प्रायद्वीप, दक्षिणपश्चिम एशिया में एक स्थल पुल बनाता है। इस प्रकार मिस्र एक अंतरमहाद्वीपीय देश है, तथा अफ्रीका, भूमध्य क्षेत्र, मध्य पूर्व और इस्लामी दुनिया की यह एक प्रमुख शक्ति है। इसका क्षेत्रफल 1010000 वर्ग किलोमीटर है और इसके उत्तर में भूमध्य सागर, पूर्वोत्तर में गाजा पट्टी और इस्राइल, पूर्व में लाल सागर, दक्षिण में सूडान और पश्चिम में लीबिया स्थित है। मिस्र, अफ्रीका और मध्य पूर्व के सबसे अधिक जनसंख्या वाले देशों में से एक है। इसकी अनुमानित 7.90 करोड़ जनसंख्या का अधिकतर हिस्सा नील नदी के किनारे वाले हिस्से में रहता है। नील नदी का यह क्षेत्र लगभग 40000 वर्ग किलोमीटर (15000 वर्ग मील) का है और पूरे देश का सिर्फ इसी क्षेत्र में कृषि योग्य भूमि पायी जाती है। सहारा मरुस्थल के एक बड़े हिस्से में विरल जनसंख्या निवास करती है। मिस्र के लगभग आधे निवासी शहरों में वास करते हैं जिनमें नील नदी के मुहाने के क्षेत्र में बसे सघन जनसंख्या वाले शहर जैसे कि काहिरा, सिकन्दरिया आदि प्रमुख हैं। मिस्र की मान्यता उसकी प्राचीन सभ्यता के लिए है। गीज़ा पिरामिड परिसर और महान स्फिंक्स जैसे प्रसिद्ध स्मारक यहीं स्थित है। मिस्र के प्राचीन खंडहर जैसे कि मेम्फिस, थेबिस, करनाक और राजाओं की घाटी जो लक्सर के बाहर स्थित हैं, पुरातात्विक अध्ययन का एक महत्वपूर्ण केंद्र हैं। यहां के शासक को फारो नाम से जाना जाता था। इस पदवी का प्रयोग ईसाई और इस्लाम काल के पूर्व काल में होता था। इसे फारोह भी लिखते हैं। फारो को मिस्र के देवता होरसका पुनर्जन्म माना जाता था। होरस द्यौ (आकाश) का देवता था और इसे सूर्य भी माना जाता था। मिस्र की कार्यशक्ति का लगभग 12% हिस्सा पर्यटन और लाल सागर रिवेरा में कार्यरत है। मध्य पूर्व में, मिस्र की अर्थव्यवस्था सबसे अधिक विकसित और विविध अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। पर्यटन, कृषि, उद्योग और सेवा जैसे क्षेत्रों का उत्पादन स्तर लगभग एक समान है। 2011 के शुरूआत में मिस्र उस क्रांति का गवाह बना, जिसके द्वारा मिस्र से होस्नी मुबारक नाम के तानाशाह के 30 साल के शासन का खात्मा हुआ। .

नई!!: भारतीय गणित और मिस्र · और देखें »

मूल (संख्या का)

घातांक फलन तथा मूलांक फलन यदि संख्या b पर n घात लगाने पर a प्राप्त होता है तो संख्या b संख्या a का nवाँ मूल (n-th root) कहलाती है। उदाहरण के लिये 2, 16 का 4था मूल है क्योंकि 24 .

नई!!: भारतीय गणित और मूल (संख्या का) · और देखें »

मेरु प्रस्तार

pascal triangleगणित में, मेरुप्रस्तार या हलायुध त्रिकोण या पास्कल त्रिकोण (Pascal's triangle) द्विपद गुणांकों को त्रिभुज के रूप में प्रस्तुत करने से बनता है। पश्चिमी जगत में इसका नाम फ्रांसीसी गणितज्ञ ब्लेज़ पास्कल के नाम पर रखा गया है। किन्तु पास्कल से पहले अनेक गणितज्ञों ने इसका अध्ययन किया है, उदाहरण के लिये भारत के पिंगलाचार्य, परसिया, चीन, जर्मनी आदि के गतिज्ञ। मेरु प्रस्तार की छः पंक्तियां मेरु प्रस्तार का सबसे पहला वर्णन पिंगल के छन्दशास्त्र में है। जनश्रुति के अनुसार पिंगल पाणिनि के अनुज थे। इनका काल ४०० ईपू से २०० ईपू॰ अनुमानित है। छन्दों के विभेद को वर्णित करने वाला 'मेरुप्रस्तार' (मेरु पर्वत की सीढ़ी) पास्कल (Blaise Pascal 1623-1662) के त्रिभुज से तुलनीय बनता है। पिंगल द्वारा दिये गये मेरुप्रस्तार (Pyramidal expansion) नियम की व्याख्या हलायुध ने अपने मृतसंंजीवनी में इस प्रकार की है- मेरु प्रस्तार (पास्कल त्रिकोण) की निर्माण विधि .

नई!!: भारतीय गणित और मेरु प्रस्तार · और देखें »

मोर्स कोड

मोर्स कोड, सन्देश भेजने की एक पद्धति है। इसकी रचना सैमुएल मोर्स ने १८४० के दशक के आरम्भिक वर्षों में वैद्युत टेलीग्राफ के माध्यम से सन्देश भेजने के लिये की थी। बाद में १८९० के दशक से मोर्स कोड का उपयोग रेडियो संचार के आरम्भिक दिनों में भी हुआ। मोर्स कोड के अन्तर्गत एक लघु संकेत तथा दूसरा दीर्घ संकेत प्रयोग किये जाते हैं। इन दो संकेतों के पूर्व निर्धारित मानकीकृत समन्वय से किसी भी संदेश को अभिव्यक्त किया जा सकता है। कागज आदि पर मोर्स कोड में कुछ लिखने के लिये लघु संकेत के लिये डॉट का प्रयोग तथा दीर्घ संकेत के लिये डैश का प्रयोग किया जाता है। किन्तु मोर्स कोड के लघु और दीर्घ संकेतों के लिये अन्य रूप भी प्रयुक्त हो सकते हैं; जैसे - ध्वनि, पल्स या प्रकाश संकेत आदि अन्तर्राष्ट्रीय मार्स कोड के पाँच अवयव हैं: 1.

नई!!: भारतीय गणित और मोर्स कोड · और देखें »

मोहन जोदड़ो

मोहन जोदड़ो- (सिंधी:موئن جو دڙو और उर्दू में अमोमअ मोहनजोदउड़ो भी) वादी सिंध की क़दीम तहज़ीब का एक मरकज़ था। यह लड़काना से बीस किलोमीटर दूर और सक्खर से 80 किलोमीटर जनूब मग़रिब में वाक़िअ है। यह वादी सिंध के एक और अहम मरकज़ हड़पा से 400 मील दूर है यह शहर 2600 क़बल मसीह मौजूद था और 1700 क़बल मसीह में नामालूम वजूहात की बिना पर ख़त्म हो गया। ताहम माहिरीन के ख़्याल में दरयाऐ सिंध के रख की तबदीली, सैलाब, बैरूनी हमला आवर या ज़लज़ला अहम वजूहात हो सकती हैं। मुअन जो दड़ो- को 1922ए में बर्तानवी माहिर असारे क़दीमा सर जान मार्शल ने दरयाफ़त किया और इन की गाड़ी आज भी मुअन जो दड़ो- के अजायब ख़ाने की ज़ीनत है। लेकिन एक मकतबा फ़िक्र ऐसा भी है जो इस तास्सुर को ग़लत समझता है और इस का कहना है कि उसे ग़ैर मुनक़िसम हिंदूस्तान के माहिर असारे क़दीमा आर के भिंडर ने 1911ए में दरयाफ़त किया था। मुअन जो दड़ो- कनज़रवेशन सेल के साबिक़ डायरेक्टर हाकिम शाह बुख़ारी का कहना है कि "आर के भिंडर ने बुध मत के मुक़ामि मुक़द्दस की हैसीयत से इस जगह की तारीख़ी हैसीयत की जानिब तवज्जो मबज़ूल करवाई, जिस के लगभग एक अशरऐ बाद सर जान मार्शल यहां आए और उन्हों ने इस जगह खुदाई शुरू करवाई।यह शहर बड़ी तरतीब से बसा हुआ था। इस शहर की गलियां खुली और सीधी थीं और पानी की निकासी का मुनासिब इंतिज़ाम था। अंदाज़न इस में 35000 के क़रीब लोग रिहाइश पज़ीर थे। माहिरीन के मुताबिक यह शहर सात मरत्तबा उजड़ा और दुबारा बसाया गया जिस की अहम तरीन वजह दरयाऐ सिंध का सैलाब था।यहाँ दुनिया का प्रथम स्नानघर मिला है जिसका नाम बृहत्स्नानागार है और अंग्रेजी में Great Bath.

नई!!: भारतीय गणित और मोहन जोदड़ो · और देखें »

याज्ञवल्क्य

भगवती सरस्वती याज्ञवल्क्य के सम्मुख प्रकट हुईं याज्ञवल्क्य (ईसापूर्व ७वीं शताब्दी), भारत के वैदिक काल के एक ऋषि तथा दार्शनिक थे। वे वैदिक साहित्य में शुक्ल यजुर्वेद की वाजसनेयी शाखा के द्रष्टा हैं। इनको अपने काल का सर्वोपरि वैदिक ज्ञाता माना जाता है। याज्ञवल्क्य का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य शतपथ ब्राह्मण की रचना है - बृहदारण्यक उपनिषद जो बहुत महत्वपूर्ण उपनिषद है, इसी का भाग है। इनका काल लगभग १८००-७०० ई पू के बीच माना जाता है। इन ग्रंथों में इनको राजा जनक के दरबार में हुए शास्त्रार्थ के लिए जाना जाता है। शास्त्रार्थ और दर्शन की परंपरा में भी इनसे पहले किसी ऋषि का नाम नहीं लिया जा सकता। इनको नेति नेति (यह नहीं, यह भी नहीं) के व्यवहार का प्रवर्तक भी कहा जाता है। .

नई!!: भारतीय गणित और याज्ञवल्क्य · और देखें »

यजुर्वेद

यजुर्वेद हिन्दू धर्म का एक महत्त्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ और चार वेदों में से एक है। इसमें यज्ञ की असल प्रक्रिया के लिये गद्य और पद्य मन्त्र हैं। ये हिन्दू धर्म के चार पवित्रतम प्रमुख ग्रन्थों में से एक है और अक्सर ऋग्वेद के बाद दूसरा वेद माना जाता है - इसमें ऋग्वेद के ६६३ मंत्र पाए जाते हैं। फिर भी इसे ऋग्वेद से अलग माना जाता है क्योंकि यजुर्वेद मुख्य रूप से एक गद्यात्मक ग्रन्थ है। यज्ञ में कहे जाने वाले गद्यात्मक मन्त्रों को ‘'यजुस’' कहा जाता है। यजुर्वेद के पद्यात्मक मन्त्र ॠग्वेद या अथर्ववेद से लिये गये है।। भारत कोष पर देखें इनमें स्वतन्त्र पद्यात्मक मन्त्र बहुत कम हैं। यजुर्वेद में दो शाखा हैं: दक्षिण भारत में प्रचलित कृष्ण यजुर्वेद और उत्तर भारत में प्रचलित शुक्ल यजुर्वेद शाखा। जहां ॠग्वेद की रचना सप्त-सिन्धु क्षेत्र में हुई थी वहीं यजुर्वेद की रचना कुरुक्षेत्र के प्रदेश में हुई।। ब्रज डिस्कवरी कुछ लोगों के मतानुसार इसका रचनाकाल १४०० से १००० ई.पू.

नई!!: भारतीय गणित और यजुर्वेद · और देखें »

यज्ञ

यज्ञ, योग की विधि है जो परमात्मा द्वारा ही हृदय में सम्पन्न होती है। जीव के अपने सत्य परिचय जो परमात्मा का अभिन्न ज्ञान और अनुभव है, यज्ञ की पूर्णता है। यह शुद्ध होने की क्रिया है। इसका संबंध अग्नि से प्रतीक रूप में किया जाता है। यज्ञ का अर्थ जबकि योग है किन्तु इसकी शिक्षा व्यवस्था में अग्नि और घी के प्रतीकात्मक प्रयोग में पारंपरिक रूचि का कारण अग्नि के भोजन बनाने में, या आयुर्वेद और औषधीय विज्ञान द्वारा वायु शोधन इस अग्नि से होने वाले धुओं के गुण को यज्ञ समझ इस 'यज्ञ' शब्द के प्रचार प्रसार में बहुत सहायक रहे। अधियज्ञोअहमेवात्र देहे देहभृताम वर ॥ 4/8 भगवत गीता शरीर या देह के दासत्व को छोड़ देने का वरण या निश्चय करने वालों में, यज्ञ अर्थात जीव और आत्मा के योग की क्रिया या जीव का आत्मा में विलय, मुझ परमात्मा का कार्य है। अनाश्रित: कर्म फलम कार्यम कर्म करोति य: स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रिय: ॥ 1/6 भगवत गीता .

नई!!: भारतीय गणित और यज्ञ · और देखें »

यूरोकेन्द्रीयता

विश्व का उल्टा मानचित्र: यह यूरोकेन्द्रीयता-रहित है। अधिकांश स्थानों पर यह बताया जाता है कि लोकतंत्र यूरोपीय संस्कृति के देन है। अन्य संस्कृतियों में लोकतंत्र बहुत पहले से पाया जाता है - यह बात कहीं कोनें में छोटे अक्षरों में लिख दी जाती है। कास्तुन्तुनिया पर तुर्कों के अधिकार ने यूरोकेन्द्रीयता को बहुत धक्का पहुँचाया। यूरोकेन्द्रीयता (Eurocentrism) वह पक्षपातपूर्ण विचारधारा है जिसमे यूरोप को सारी अच्छी चीजों की जन्मस्थली माना जाता है तथा हर चीज को यूरोप के नजरिये से देखने की कोशिश की जाती है। .

नई!!: भारतीय गणित और यूरोकेन्द्रीयता · और देखें »

रोम

यह लेख इटली की राजधानी एवं प्राचीन नगर 'रोम' के बारे में है। इसी नाम के अन्य नगर संयुक्त राज्य अमरीका में भी है। स्तनधारियों की त्वचा पर पाए जाने वाले कोमल बाल (en:hair) के लिये बाल देखें। इसका पर्यायवाची शब्द रोयाँ या रोआँ (बहुवचन - रोएँ) है। ---- '''रोम''' नगर की स्थिति रोम (Rome) इटली देश की राजधानी है। .

नई!!: भारतीय गणित और रोम · और देखें »

ललितविस्तर सूत्र

सिद्धार्थ गौतम के रूप में जन्मने से पूर्व तुषितलोक में बोधिसत्व (बोरोबुदुर, इण्डोनेशिया) ललितविस्तर सूत्र, महायान बौद्ध सम्प्रदाय का ग्रन्थ है। इसमें भगवान बुद्ध की लीलाओं का वर्णन है। इसकी रचना किसी एक व्यक्ति ने नहीं की बल्कि इसकी रचना में कई व्यक्तियों का योगदान है। इसका रचना काल ईसा के पश्चात तीसरी शताब्दी माना गया है। इसमें २७ अध्याय हैं। .

नई!!: भारतीय गणित और ललितविस्तर सूत्र · और देखें »

लातिन भाषा

लातीना (Latina लातीना) प्राचीन रोमन साम्राज्य और प्राचीन रोमन धर्म की राजभाषा थी। आज ये एक मृत भाषा है, लेकिन फिर भी रोमन कैथोलिक चर्च की धर्मभाषा और वैटिकन सिटी शहर की राजभाषा है। ये एक शास्त्रीय भाषा है, संस्कृत की ही तरह, जिससे ये बहुत ज़्यादा मेल खाती है। लातीना हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की रोमांस शाखा में आती है। इसी से फ़्रांसिसी, इतालवी, स्पैनिश, रोमानियाई और पुर्तगाली भाषाओं का उद्गम हुआ है (पर अंग्रेज़ी का नहीं)। यूरोप में ईसाई धर्म के प्रभुत्व की वजह से लातीना मध्ययुगीन और पूर्व-आधुनिक कालों में लगभग सारे यूरोप की अंतर्राष्ट्रीय भाषा थी, जिसमें समस्त धर्म, विज्ञान, उच्च साहित्य, दर्शन और गणित की किताबें लिखी जाती थीं। .

नई!!: भारतीय गणित और लातिन भाषा · और देखें »

लियोनार्ड ओइलर

लियोनार्ड ओइलर लियोनार्ड ओइलर (Leonhard Euler; १५ अप्रैल १७०७, बाज़ेल - १८ सितंबर १७८३) एक स्विस गणितज्ञ थे। ये जोहैन बेर्नूली के शिष्य थे। गणित के संकेतों को भी ऑयलर की देन अपूर्व है। इन्होंने संकेतों में अनेक संशोधन करके त्रिकोणमितीय सूत्रों को क्रमबद्ध किया। 1734 ई. में ऑयलर ने x के किसी फलन के लिए f (x), 1728 ई. में लघुगणकों के प्राकृत आधार के लिए e, 1750 ई. में अर्ध-परिमिति के लिए s, 1755 ई. में योग के लिए Σ और काल्पनिक ईकाई के लिए i संकेतों का प्रचलन किया। 1766 ई. में ये अंधे हो गए, परंतु मृत्यु पर्यंत (18 सितंबर 1783 ई.) शोधकार्य में संलग्न रहे। .

नई!!: भारतीय गणित और लियोनार्ड ओइलर · और देखें »

लघुभास्करीय

लघुभास्करीय भास्कर प्रथम द्वारा रचित गणित एवं ज्योतिष का ग्रन्थ है। शंकरनारायण ने इस पर 'लघुभास्करीयविवरण' नामक भाष्य लिखा है। उदयदिवाकर ने इसकी (लघुभास्करीय की) सुन्दरी नामक टीका लिखी है। महाभास्करीय की तरह लघुभास्करीय में भी ८ अध्याय हैं। .

नई!!: भारतीय गणित और लघुभास्करीय · और देखें »

लघुगणक

अलग-अलग आधार के लिये लघुगणकीय फलन का आरेखण: लाल रंग वाला ''e'', हरा रंग वाला 10, तथाबैगनी वाला 1.7. सभी आधारों के लघुगणक बिन्दु (1, 0) से होकर गुजरते हैं क्योंकि किसी भी संख्या पर शून्य घातांक का मान 1 होता है। स्कॉटलैंड निवासी जाॅन नेपियर द्वारा प्रतिपादित लघुगणक (Logarithm / लॉगेरिद्म) एक ऐसी गणितीय युक्ति है जिसके प्रयोग से गणनाओं को छोटा किया जा सकता है। इसके प्रयोग से गुणा और भाग जैसी जटिल प्रक्रियाओं को जोड़ और घटाने जैसी अपेक्षाकृत सरल क्रियाओं में बदल दिया जाता है। कम्प्यूटर और कैलकुलेटर के आने के पहले जटिल गणितीय गननाएँ लघुगणक के सहारे ही की जातीं थीं। .

नई!!: भारतीय गणित और लघुगणक · और देखें »

लगध

लगध ऋषि वैदिक ज्योतिषशास्त्र की पुस्तक वेदांग ज्योतिष के प्रणेता है। इनका काल १३५० ई पू माना जाता है। इस ग्रन्थ का उपयोग करके वैदिक यज्ञों के अनुष्ठान का समय निश्चित किया जाता था। इसे भारत में गणितीय खगोलशास्त्र पर आद्य कार्य माना जाता है। लगध ऋषि का एक प्रमुख नवोन्मेष तिथि (महीने का १/३०) का एक मानक समय मात्रक के रूप में का प्रयोग है। .

नई!!: भारतीय गणित और लगध · और देखें »

लीलावती

लीलावती, भारतीय गणितज्ञ भास्कर द्वितीय द्वारा सन ११५० ईस्वी में संस्कृत में रचित, गणित और खगोल शास्त्र का एक प्राचीन ग्रन्थ है, साथ ही यह सिद्धान्त शिरोमणि का एक अंग भी है। लीलावती में अंकगणित का विवेचन किया गया है। 'लीलावती', भास्कराचार्य की पुत्री का नाम था। इस ग्रन्थ में पाटीगणित (अंकगणित), बीजगणित और ज्यामिति के प्रश्न एवं उनके उत्तर हैं। प्रश्न प्रायः लीलावती को सम्बोधित करके पूछे गये हैं। किसी गणितीय विषय (प्रकरण) की चर्चा करने के बाद लीलावती से एक प्रश्न पूछते हैं। उदाहरण के लिये निम्नलिखित श्लोक देखिये- .

नई!!: भारतीय गणित और लीलावती · और देखें »

शतपथ ब्राह्मण

शतपथ ब्राह्मण शुक्ल यजुर्वेद का ब्राह्मणग्रन्थ है। ब्राह्मण ग्रन्थों में इसे सर्वाधिक प्रमाणिक माना जाता है। .

नई!!: भारतीय गणित और शतपथ ब्राह्मण · और देखें »

शंकु

एक सामान्य लम्बवृत्तीय शंकु शंकु, एक त्रि-विमिय संरचना है, जो शीर्ष बिन्दु और एक आधार वृत्त को मिलाने वाली रेखाओं द्वारा निर्मित होती है। यह बेलन के १/३ भाग के बराबर होता है। .

नई!!: भारतीय गणित और शंकु · और देखें »

शुल्बसूत्र

शुल्ब सूत्र या शुल्बसूत्र संस्कृत के सूत्रग्रन्थ हैं जो स्रौत कर्मों से सम्बन्धित हैं। इनमें यज्ञ-वेदी की रचना से सम्बन्धित ज्यामितीय ज्ञान दिया हुआ है। संस्कृत कें शुल्ब शब्द का अर्थ नापने की रस्सी या डोरी होता है। अपने नाम के अनुसार शुल्ब सूत्रों में यज्ञ-वेदियों को नापना, उनके लिए स्थान का चुनना तथा उनके निर्माण आदि विषयों का विस्तृत वर्णन है। ये भारतीय ज्यामिति के प्राचीनतम ग्रन्थ हैं। .

नई!!: भारतीय गणित और शुल्बसूत्र · और देखें »

श्रेणी (गणित)

गणित में किसी अनुक्रम के जोड़ को सीरीज कहा जाता है। उदाहरण के लिए, कोई श्रेणी सीमित (लिमिटेड) हो सकती है या अनन्त (इनफाइनाइट)। .

नई!!: भारतीय गणित और श्रेणी (गणित) · और देखें »

श्रीधराचार्य

श्रीधराचार्य (जन्म: ७५० ई) प्राचीन भारत के एक महान गणितज्ञ थे। इन्होंने शून्य की व्याख्या की तथा द्विघात समीकरण को हल करने सम्बन्धी सूत्र का प्रतिपादन किया। उनके बारे में हमारी जानकारी बहुत ही अल्प है। उनके समय और स्थान के बारे में निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। किन्तु ऐसा अनुमान है कि उनका जीवनकाल ८७० ई से ९३० ई के बीच था; वे वर्तमान हुगली जिले में उत्पन्न हुए थे; उनके पिताजी का नाम बलदेवाचार्य औरा माताजी का नाम अच्चोका था। .

नई!!: भारतीय गणित और श्रीधराचार्य · और देखें »

श्रीनिवास रामानुजन्

श्रीनिवास रामानुजन् इयंगर (तमिल ஸ்ரீனிவாஸ ராமானுஜன் ஐயங்கார்) (22 दिसम्बर 1887 – 26 अप्रैल 1920) एक महान भारतीय गणितज्ञ थे। इन्हें आधुनिक काल के महानतम गणित विचारकों में गिना जाता है। इन्हें गणित में कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं मिला, फिर भी इन्होंने विश्लेषण एवं संख्या सिद्धांत के क्षेत्रों में गहन योगदान दिए। इन्होंने अपने प्रतिभा और लगन से न केवल गणित के क्षेत्र में अद्भुत अविष्कार किए वरन भारत को अतुलनीय गौरव भी प्रदान किया। ये बचपन से ही विलक्षण प्रतिभावान थे। इन्होंने खुद से गणित सीखा और अपने जीवनभर में गणित के 3,884 प्रमेयों का संकलन किया। इनमें से अधिकांश प्रमेय सही सिद्ध किये जा चुके हैं। इन्होंने गणित के सहज ज्ञान और बीजगणित प्रकलन की अद्वितीय प्रतिभा के बल पर बहुत से मौलिक और अपारम्परिक परिणाम निकाले जिनसे प्रेरित शोध आज तक हो रहा है, यद्यपि इनकी कुछ खोजों को गणित मुख्यधारा में अब तक नहीं अपनाया गया है। हाल में इनके सूत्रों को क्रिस्टल-विज्ञान में प्रयुक्त किया गया है। इनके कार्य से प्रभावित गणित के क्षेत्रों में हो रहे काम के लिये रामानुजन जर्नल की स्थापना की गई है। .

नई!!: भारतीय गणित और श्रीनिवास रामानुजन् · और देखें »

श्रीपति मिश्रा

श्रीपति मिश्रा उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री थे। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक नेता थे। .

नई!!: भारतीय गणित और श्रीपति मिश्रा · और देखें »

श्रीहर्ष

श्रीहर्ष 12वीं सदी के संस्कृत के प्रसिद्ध कवि। वे बनारस एवं कन्नौज के गहड़वाल शासकों - विजयचन्द्र एवं जयचन्द्र की राजसभा को सुशोभित करते थे। उन्होंने कई ग्रन्थों की रचना की, जिनमें ‘नैषधीयचरित्’ महाकाव्य उनकी कीर्ति का स्थायी स्मारक है। नैषधचरित में निषध देश के शासक नल तथा विदर्भ के शासक भीम की कन्या दमयन्ती के प्रणय सम्बन्धों तथा अन्ततोगत्वा उनके विवाह की कथा का काव्यात्मक वर्णन मिलता है। .

नई!!: भारतीय गणित और श्रीहर्ष · और देखें »

श्रीगुप्त

श्रीगुप्त (शासनकाल  240 – 280 ई) गुप्त साम्राज्य का संस्थापक राजा था। श्रीगुप्त को प्रभावती गुप्ता के पूना ताम्रफलक में आदिराज और उसके प्रपौत्र समुद्रगुप्त को प्रयाग प्रशस्ति में महाराज कहा गया है। विद्वानों ने उसका समय प्राय: २६० और ३०० ई. के बीच निश्चित किया है। ७वीं सदी के अंमिम चरण में भारत आए चीनी यात्री इत्सिंग ने चि-लि-कि-तो (श्रीगुप्त) नामक एक शासक की चर्चा की है जो ५०० वर्ष पहले नालन्दा से लगभग ४० योजन पूर्व दिशा में शासन करता था। .

नई!!: भारतीय गणित और श्रीगुप्त · और देखें »

शून्य

शून्य (0) एक अंक है जो संख्याओं के निरूपण के लिये प्रयुक्त आजकी सभी स्थानीय मान पद्धतियों का अपरिहार्य प्रतीक है। इसके अलावा यह एक संख्या भी है। दोनों रूपों में गणित में इसकी अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका है। पूर्णांकों तथा वास्तविक संख्याओं के लिये यह योग का तत्समक अवयव (additive identity) है। .

नई!!: भारतीय गणित और शून्य · और देखें »

सनत्कुमार

ब्रह्मा के चार मानसपुत्रों (कुमारों) को सामूहिक रूप से सनत्कुमार कहते हैं। .

नई!!: भारतीय गणित और सनत्कुमार · और देखें »

समान्तर श्रेढ़ी

गणित में समान्तर श्रेणी (Arithmetic progression) अथवा समान्तर अनुक्रम संख्याओं का एक ऐसा अनुक्रम है जिसके दो क्रमागत पदो का अन्तर नियत होता है। जैसे अनुक्रम 4, 7, 10, 13, 16...

नई!!: भारतीय गणित और समान्तर श्रेढ़ी · और देखें »

समुच्चय सिद्धान्त

वेन-आरेख द्वारा दो समुच्चयों के सर्वनिष्‍ठ का सरल प्रदर्शन समुच्चय सिद्धान्त (set theory), गणित की एक शाखा है जो समुच्चयों का अध्ययन करती है। वस्तुओं के संग्रह (collection) को समुच्चय कहते हैं। यद्यपि समुच्चय के अन्तर्गत किसी भी प्रकार की वस्तुओं का संग्रह सम्भव है, किन्तु समुच्चय सिद्धान्त मुख्यतः गणित से सम्बन्धित समुच्चयों का ही अध्ययन करता है। स्थूल रूप से अंग्रेजी समुच्चय के पर्याय 'सेट' (set), ऐग्रिगेट (aggregate), क्लास (class), डोमेन (domain) तथा टोटैलिटी (totality) हैं। समुच्चय में अवयवों का विभिन्न होना आवश्यक है। प्रथम श्रेणी के तर्क (first-order logic) से सुव्यवस्थित (formalized) किया हुआ समुच्चय सिद्धान्त आज गणित का सर्वाधिक प्रयुक्त आधारभूत तन्त्र है। समुच्चय सिद्धान्त की भाषा गणित के लगभग सभी वस्तुओं (यथा- फलन) को परिभाषित करने के काम आती है। समुच्चय सिद्धान्त के आरम्भिक कांसेप्ट इतने सरल हैं कि इन्हें प्राथमिक विद्यालयों के पाठ्यक्रम में भी पढाया जा सकता है। .

नई!!: भारतीय गणित और समुच्चय सिद्धान्त · और देखें »

सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय

सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय उत्तरप्रदेश के वाराणसी नगर में स्थित एक संस्कृत विश्वविद्यालय है। यह पूर्वात्य शिक्षा एवं संस्कृत से सम्बन्धित विषयों पर उच्च शिक्षा का केन्द्र है। यह विश्वविद्यालय मूलतः 'शासकीय संस्कृत महाविद्यालय' था जिसकी स्थापना सन् १७९१ में की गई थी। वर्ष 1894 में सरस्वती भवन ग्रंथालय नामक प्रसिद्ध भवन का निर्माण हुआ जिसमें हजारों पाण्डुलिपियाँ संगृहीत हैं। 22 मार्च 1958 को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ सम्पूर्णानन्द के विशेष प्रयत्न से इसे विश्वविद्यालय का स्तर प्रदान किया गया। उस समय इसका नाम 'वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय' था। सन् १९७४ में इसका नाम बदलकर 'सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय' रख दिया गया। भारत और नेपाल के महाविद्यालय इसके विश्वविद्यालय बनने के पहले से ही इससे सम्बद्ध थे। केवल उत्तर प्रदेश के सम्बद्ध महाविद्यालयों की संख्या 1441 थी। इस प्रकार यह संस्थान न केवल भारत के लिए बल्कि दूसरे देशों के महाविद्यालयों के लिए भी विश्वविद्यालय के समान ही था। .

नई!!: भारतीय गणित और सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय · और देखें »

समीकरण

---- समीकरण (equation) प्रतीकों की सहायता से व्यक्त किया गया एक गणितीय कथन है जो दो वस्तुओं को समान अथवा तुल्य बताता है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आधुनिक गणित में समीकरण सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय है। आधुनिक विज्ञान एवं तकनीकी में विभिन्न घटनाओं (फेनामेना) एवं प्रक्रियाओं का गणितीय मॉडल बनाने में समीकरण ही आधारका काम करने हैं। समीकरण लिखने में समता चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। यथा- समीकरण प्राय: दो या दो से अधिक व्यंजकों (expressions) की समानता को दर्शाने के लिये प्रयुक्त होते हैं। किसी समीकरण में एक या एक से अधिक चर राशि (यां) (variables) होती हैं। चर राशि के जिस मान के लिये समीकरण के दोनो पक्ष बराबर हो जाते हैं, वह/वे मान समीकरण का हल या समीकरण का मूल (roots of the equation) कहलाता/कहलाते है। ऐसा समीकरण जो चर राशि के सभी मानों के लिये संतुष्ट होता है, उसे सर्वसमिका (identity) कहते हैं। जैसे - एक सर्वसमिका है। जबकि एक समीकरण है जिसका मूल हैं x.

नई!!: भारतीय गणित और समीकरण · और देखें »

सिद्धान्त शिरोमणि

सिद्धान्त शिरोमणि, संस्कृत में रचित गणित और खगोल शास्त्र का एक प्राचीन ग्रन्थ है। इसकी रचना भास्कर द्वितीय (या भास्कराचार्य) ने सन ११५० के आसपास की थी। सिद्धान्त शिरोमणि का रचीता। इसके चार भाग हैं: ग्रहगणिताध्याय और गोलाध्याय में खगोलशास्त्र का विवेचन है। .

नई!!: भारतीय गणित और सिद्धान्त शिरोमणि · और देखें »

सिंधु घाटी सभ्यता

सिंधु घाटी सभ्यता अपने शुरुआती काल में, 3250-2750 ईसापूर्व सिंधु घाटी सभ्यता (3300 ईसापूर्व से 1700 ईसापूर्व तक,परिपक्व काल: 2600 ई.पू. से 1900 ई.पू.) विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता है। जो मुख्य रूप से दक्षिण एशिया के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में, जो आज तक उत्तर पूर्व अफगानिस्तान,पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम और उत्तर भारत में फैली है। प्राचीन मिस्र और मेसोपोटामिया की प्राचीन सभ्यता के साथ, यह प्राचीन दुनिया की सभ्यताओं के तीन शुरुआती कालक्रमों में से एक थी, और इन तीन में से, सबसे व्यापक तथा सबसे चर्चित। सम्मानित पत्रिका नेचर में प्रकाशित शोध के अनुसार यह सभ्यता कम से कम 8000 वर्ष पुरानी है। यह हड़प्पा सभ्यता और 'सिंधु-सरस्वती सभ्यता' के नाम से भी जानी जाती है। इसका विकास सिंधु और घघ्घर/हकड़ा (प्राचीन सरस्वती) के किनारे हुआ। मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल, धोलावीरा, राखीगढ़ी और हड़प्पा इसके प्रमुख केन्द्र थे। दिसम्बर २०१४ में भिर्दाना को सिंधु घाटी सभ्यता का अब तक का खोजा गया सबसे प्राचीन नगर माना गया है। ब्रिटिश काल में हुई खुदाइयों के आधार पर पुरातत्ववेत्ता और इतिहासकारों का अनुमान है कि यह अत्यंत विकसित सभ्यता थी और ये शहर अनेक बार बसे और उजड़े हैं। 7वी शताब्दी में पहली बार जब लोगो ने पंजाब प्रांत में ईटो के लिए मिट्टी की खुदाई की तब उन्हें वहां से बनी बनाई इटे मिली जिसे लोगो ने भगवान का चमत्कार माना और उनका उपयोग घर बनाने में किया उसके बाद 1826 में चार्ल्स मैसेन ने पहली बार इस पुरानी सभ्यता को खोजा। कनिंघम ने 1856 में इस सभ्यता के बारे में सर्वेक्षण किया। 1856 में कराची से लाहौर के मध्य रेलवे लाइन के निर्माण के दौरान बर्टन बंधुओं द्वारा हड़प्पा स्थल की सूचना सरकार को दी। इसी क्रम में 1861 में एलेक्जेंडर कनिंघम के निर्देशन में भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना की। 1904 में लार्ड कर्जन द्वारा जॉन मार्शल को भारतीय पुरातात्विक विभाग (ASI) का महानिदेशक बनाया गया। फ्लीट ने इस पुरानी सभ्यता के बारे में एक लेख लिखा। १९२१ में दयाराम साहनी ने हड़प्पा का उत्खनन किया। इस प्रकार इस सभ्यता का नाम हड़प्पा सभ्यता रखा गया व दयाराम साहनी को इसका खोजकर्ता माना गया। यह सभ्यता सिन्धु नदी घाटी में फैली हुई थी इसलिए इसका नाम सिन्धु घाटी सभ्यता रखा गया। प्रथम बार नगरों के उदय के कारण इसे प्रथम नगरीकरण भी कहा जाता है। प्रथम बार कांस्य के प्रयोग के कारण इसे कांस्य सभ्यता भी कहा जाता है। सिन्धु घाटी सभ्यता के १४०० केन्द्रों को खोजा जा सका है जिसमें से ९२५ केन्द्र भारत में है। ८० प्रतिशत स्थल सरस्वती नदी और उसकी सहायक नदियों के आस-पास है। अभी तक कुल खोजों में से ३ प्रतिशत स्थलों का ही उत्खनन हो पाया है। .

नई!!: भारतीय गणित और सिंधु घाटी सभ्यता · और देखें »

संख्या

समिश्र संख्याओं के उपसमुच्चय संख्याएं हमारे जीवन के ढर्रे को निर्धरित करती हैं। जीवन के कुछ ऐसे क्षेत्रों में भी संख्याओं की अहमियत है जो इतने आम नहीं माने जाते। किसी धावक के समय में 0.001 सैकिंड का अंतर भी उसे स्वर्ण दिला सकता है या उसे इससे वंचित कर सकता है। किसी पहिए के व्यास में एक सेंटीमीटर के हजारवें हिस्से जितना फर्क उसे किसी घड़ी के लिए बेकार कर सकता है। किसी व्यक्ति की पहचान के लिए उसका टेलीफोन नंबर, राशन कार्ड पर पड़ा नंबर, बैंक खाते का नंबर या परीक्षा का रोल नंबर मददगार होते हैं। .

नई!!: भारतीय गणित और संख्या · और देखें »

संख्या सिद्धान्त

यह लेख संख्या पद्धति (number system) के बारे में नहीं है। ---- लेमर चलनी (A Lehmer sieve), जो 'आदिम कम्प्यूटर' कही जा सकती है। किसी समय इसी का उपयोग करके अभाज्य संख्याएँ प्राप्त की जातीं थीं तथा सरल डायोफैण्टीय समीकरण हल किए जाते थे। संख्या सिद्धांत (Number theory) सामान्यत: सभी प्रकार की संख्याओं के गुणधर्म का अध्ययन करता है किन्तु विशेषत: यह प्राकृतिक संख्याओं 1, 2, 3....के गुणधर्मों का अध्ययन करता है। पूर्णता के विचार से इन संख्याओं में हम ऋण संख्याओं तथा शून्य को भी सम्मिलित कर लेते हैं। जब तक निश्चित रूप से न कहा जाए, तब तक संख्या से कोई प्राकृतिक संख्या, धन, या ऋण पूर्ण संख्या या शून्य समझना चाहिए। संख्यासिद्धांत को गाउस (Gauss) 'गणित की रानी' कहता था। संख्या सिद्धान्त, शुद्ध गणित की शाखा है। 'संख्या सिद्धान्त' के लिये "अंकगणित" या "उच्च अंकगणित" शब्दों का भी प्रयोग किया जता है। ये शब्द अपेक्षाकृत पुराने हैं और अब बहुत कम प्रयोग किये जाते हैं। .

नई!!: भारतीय गणित और संख्या सिद्धान्त · और देखें »

संगमग्राम के माधव

संगमग्राम के माधव (सी. 1350 - सी. 1425) एक प्रसिद्ध केरल गणितज्ञ-खगोलज्ञ थे, ये भारत के केरल राज्य के कोचीन जिले के निकट स्थित एक कस्बे इरन्नलक्कुता से थे। इन्हें केरलीय गणित सम्प्रदाय (केरल स्कूल ऑफ एस्ट्रोनॉमी एंड मैथेमैटिक्स) का संस्थापक माना जाता है। वे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने अनेक अनंत श्रेणियों वाले निकटागमन का विकास किया था, जिसे "सीमा-परिवर्तन को अनंत तक ले जाने में प्राचीन गणित की अनंत पद्धति से आगे एक निर्णायक कदम" कहा जाता है। उनकी खोज ने वे रास्ते खोल दिए, जिन्हें आज गणितीय विश्लेषण (मैथेमैटिकल एनालिसि) के नाम से जाना जाता है। माधवन ने अनंत श्रेणियों, कलन (कैलकुलस), त्रिकोणमिति, ज्यामिति और बीजगणित के अध्ययन में अग्रणी योगदान किया। वे मध्य काल के महानतम गणितज्ञों-खगोलज्ञों में से एक थे। कुछ विद्वानों ने यह विचार भी दिया है कि माधव के कार्य केरल स्कूल के माध्यम से, जेसूट मिशनरियों और व्यापारियों द्वारा, जो उस समय कोच्ची के प्राचीन पत्तन के आसपास काफी सक्रिय रहते थे, यूरोप तक भी प्रसारित हुए हैं। जिसके परिणामस्वरूप, इसका प्रभाव विश्लेषण और कलन में हुए बाद के यूरोपीय विकास क्रम पर भी पड़ा होगा.

नई!!: भारतीय गणित और संगमग्राम के माधव · और देखें »

संगीत

नेपाल की नुक्कड़ संगीत-मण्डली द्वारा पारम्परिक संगीत सुव्यवस्थित ध्वनि, जो रस की सृष्टि करे, संगीत कहलाती है। गायन, वादन व नृत्य ये तीनों ही संगीत हैं। संगीत नाम इन तीनों के एक साथ व्यवहार से पड़ा है। गाना, बजाना और नाचना प्रायः इतने पुराने है जितना पुराना आदमी है। बजाने और बाजे की कला आदमी ने कुछ बाद में खोजी-सीखी हो, पर गाने और नाचने का आरंभ तो न केवल हज़ारों बल्कि लाखों वर्ष पहले उसने कर लिया होगा, इसमें संदेह नहीं। गान मानव के लिए प्राय: उतना ही स्वाभाविक है जितना भाषण। कब से मनुष्य ने गाना प्रारंभ किया, यह बतलाना उतना ही कठिन है जितना कि कब से उसने बोलना प्रारंभ किया। परंतु बहुत काल बीत जाने के बाद उसके गान ने व्यवस्थित रूप धारण किया। जब स्वर और लय व्यवस्थित रूप धारण करते हैं तब एक कला का प्रादुर्भाव होता है और इस कला को संगीत, म्यूजिक या मौसीकी कहते हैं। .

नई!!: भारतीय गणित और संगीत · और देखें »

सुधाकर द्विवेदी

पंडित सुधाकर द्विवेदी महामहोपाध्याय पण्डित सुधाकर द्विवेदी (अनुमानतः २६ मार्च १८५५ -- २८ नवंबर, १९१० ई. (मार्गशीर्ष कृष्ण द्वादशी सोमवार संवत् १९६७)) भारत के आधुनिक काल के महान गणितज्ञ एवं उद्भट ज्योतिर्विद थे। आप हिन्दी साहित्यकार एवं नागरी के प्रबल पक्षधर भी थे। .

नई!!: भारतीय गणित और सुधाकर द्विवेदी · और देखें »

स्थानांग सूत्र

स्थानांग सूत्र जैन ग्रंथ है जो प्रथम ग्यारह आगमों में से एक है। इसमें प्रयुक्त भाषा अर्धमागधी है। इसके मूल सूत्रों को टीका के बिना समझना बहुत कठिन है। इसलिये ११वीं शताब्दी में अभयदेवसूरी जी ने स्थानांग सूत्र पर संस्कृत में एक पारिभाषिक ग्रन्थ की रचना की। यह ग्रन्थ जैन तत्वमीमांसा का 'अंग-ग्रन्थ' है। किन्तु इसमें गणित के बहुत से विषय, विधियाँ और संक्रियाएँ दी गयी हैं। .

नई!!: भारतीय गणित और स्थानांग सूत्र · और देखें »

स्थानिक मान

स्थानिक मान पद्धति (place-value notation) या स्थिति-चिह्न (Positional notation) संख्याओं को निरूपित करने की वह प्रणाली जिसमें किसी संकेत (अंक) का मान इस बात पर निर्भर करता है कि संख्या में उस अंक का स्थान कहाँ है। उदाहरण के लिये ३२५ (तीन सौ पचीस) में ५ का स्थानीय मान पांच है किन्तु ५२३ में ५ का स्थानीय मान 'पाँच सौ' है। इस तरह संख्याओं के निरूपण की यह पद्धति रोमन अंक पद्धति आदि अन्य निरूपण पद्धतियों से भिन्न है। स्थानीय मान पर आधारित संख्या निरूपण से बहुत सी अंकगणितीय संक्रियाएँ बहुत सरलता से की जाने लगीं और इस कारण यह पद्धति शीघ्र ही पूरे संसार में अपना ली गयी। आजकल स्थानीय मान पर आधारित बहुत सी पद्धतियाँ प्रचलित हैं जिनमें दस आधार वाली हिन्दू अंक पद्धति सबसे पुरानी और सर्वाधिक प्रयुक्त पद्धति है। इसके अतिरिक्त द्विआधारी संख्या पद्धति (बाइनरी नम्बर सिस्टम), अष्टाधारी संख्या पद्धति (ऑक्टल नम्बर सिस्टम) तथा षोडशाधारी संख्या पद्धति (हेक्साडेसिमल नम्बर सिस्टम) भी प्रयुक्त होते हैं (मुख्यत: संगणकीय गणित में)। स्थानीय मान पद्धति में दशमलव बिन्दु का प्रयोग करके भिन्नात्मक संख्याओं (fractions) को भी निरूपित करने की क्षमता रखती है। अर्थात यह पद्धति सभी वास्तविक संख्याओं को निरूपित करने की क्षमता रखती है। .

नई!!: भारतीय गणित और स्थानिक मान · और देखें »

स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ

स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज स्वामी भारती कृष्णतीर्थ जी महाराज (14 मार्च 1884 - 2 फ़रवरी 1960) जगन्नाथपुरी के शंकराचार्य थे। शास्त्रोक्त अष्टादश विद्याओं के ज्ञाता, अनेक भाषाओं के प्रकांड पंडित तथा दर्शन के अध्येता पुरी के शंकराचार्य स्वामी भारती कृष्णतीर्थ जी महाराज ने वैदिक गणित की खोज कर समस्त विश्व को आश्चर्यचकित कर दिया था। वे एक ऐसे अनूठे धर्माचार्य थे जिन्होंने शिक्षा के प्रसार से लेकर स्वदेशी, स्वाधीनता तथा सामाजिक क्रांति में अनूठा योगदान कर पूरे संसार में ख्याति अर्जित की थी। .

नई!!: भारतीय गणित और स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ · और देखें »

सूर्य

सूर्य अथवा सूरज सौरमंडल के केन्द्र में स्थित एक तारा जिसके चारों तरफ पृथ्वी और सौरमंडल के अन्य अवयव घूमते हैं। सूर्य हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा पिंड है और उसका व्यास लगभग १३ लाख ९० हज़ार किलोमीटर है जो पृथ्वी से लगभग १०९ गुना अधिक है। ऊर्जा का यह शक्तिशाली भंडार मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम गैसों का एक विशाल गोला है। परमाणु विलय की प्रक्रिया द्वारा सूर्य अपने केंद्र में ऊर्जा पैदा करता है। सूर्य से निकली ऊर्जा का छोटा सा भाग ही पृथ्वी पर पहुँचता है जिसमें से १५ प्रतिशत अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाता है, ३० प्रतिशत पानी को भाप बनाने में काम आता है और बहुत सी ऊर्जा पेड़-पौधे समुद्र सोख लेते हैं। इसकी मजबूत गुरुत्वाकर्षण शक्ति विभिन्न कक्षाओं में घूमते हुए पृथ्वी और अन्य ग्रहों को इसकी तरफ खींच कर रखती है। सूर्य से पृथ्वी की औसत दूरी लगभग १४,९६,००,००० किलोमीटर या ९,२९,६०,००० मील है तथा सूर्य से पृथ्वी पर प्रकाश को आने में ८.३ मिनट का समय लगता है। इसी प्रकाशीय ऊर्जा से प्रकाश-संश्लेषण नामक एक महत्वपूर्ण जैव-रासायनिक अभिक्रिया होती है जो पृथ्वी पर जीवन का आधार है। यह पृथ्वी के जलवायु और मौसम को प्रभावित करता है। सूर्य की सतह का निर्माण हाइड्रोजन, हिलियम, लोहा, निकेल, ऑक्सीजन, सिलिकन, सल्फर, मैग्निसियम, कार्बन, नियोन, कैल्सियम, क्रोमियम तत्वों से हुआ है। इनमें से हाइड्रोजन सूर्य के सतह की मात्रा का ७४ % तथा हिलियम २४ % है। इस जलते हुए गैसीय पिंड को दूरदर्शी यंत्र से देखने पर इसकी सतह पर छोटे-बड़े धब्बे दिखलाई पड़ते हैं। इन्हें सौर कलंक कहा जाता है। ये कलंक अपने स्थान से सरकते हुए दिखाई पड़ते हैं। इससे वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि सूर्य पूरब से पश्चिम की ओर २७ दिनों में अपने अक्ष पर एक परिक्रमा करता है। जिस प्रकार पृथ्वी और अन्य ग्रह सूरज की परिक्रमा करते हैं उसी प्रकार सूरज भी आकाश गंगा के केन्द्र की परिक्रमा करता है। इसको परिक्रमा करनें में २२ से २५ करोड़ वर्ष लगते हैं, इसे एक निहारिका वर्ष भी कहते हैं। इसके परिक्रमा करने की गति २५१ किलोमीटर प्रति सेकेंड है। Barnhart, Robert K. (1995) The Barnhart Concise Dictionary of Etymology, page 776.

नई!!: भारतीय गणित और सूर्य · और देखें »

सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र

कागज पर सूर्य प्रज्ञप्तिसूत्र (१५०० ई, पश्चिमी भारत) सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र जैन धर्म का एक ग्रन्थ है। श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय इसकी शिक्षाओं का अनुसरण करता है। इसको सूर्य पन्नति भी कहते हैं। वस्तुतः यह उपांग आगम है। यह ग्रन्थ सूर्य एवं ग्रहों के बारे में है। इसमें इन सबका वृहद वर्णन है। सूर्य एवं ग्रहों की गति एवं स्थिति की गणना के लिये आवश्यक गणित का इसमें विस्तार से वर्णन है। .

नई!!: भारतीय गणित और सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र · और देखें »

सूर्यसिद्धान्त

सूर्यसिद्धान्त भारतीय खगोलशास्त्र का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। कई सिद्धान्त-ग्रन्थों के समूह का नाम है। वर्तमान समय में उपलब्ध ग्रन्थ मध्ययुग में रचित ग्रन्थ लगता है किन्तु अवश्य ही यह ग्रन्थ पुराने संस्क्रणों पर आधारित है जो ६ठी शताब्दी के आरम्भिक चरण में रचित हुए माने जाते हैं। भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्रियों ने इसका सन्दर्भ भी लिया है, जैसे आर्यभट्ट और वाराहमिहिर, आदि.

नई!!: भारतीय गणित और सूर्यसिद्धान्त · और देखें »

हड़प्पा

सिंधु घाटी सभ्यता मे हड़प्पा का स्थान हड़प्पा पूर्वोत्तर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का एक पुरातात्विक स्थल है। यह साहिवाल शहर से २० किलोमीटर पश्चिम में स्थित है। सिन्धु घाटी सभ्यता के अनेकों अवशेष यहाँ से प्राप्त हुए हैं। सिंधु घाटी सभ्यता को इसी शहर के नाम के कारण हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है। १९२१ में जब जॉन मार्शल भारत के पुरातात्विक विभाग के निर्देशक थे तब दयाराम साहनी ने इस जगह पर सर्वप्रथम खुदाई का कार्य करवाया था। दयाराम साहनी के अलावा माधव स्वरुप व मार्तीमर वीहलर ने भी खुदाई का कार्य किया था। हड़प्पा शहर का अधिकांश भाग रेलवे लाइन निर्माण के कारण नष्ट हो गया था। .

नई!!: भारतीय गणित और हड़प्पा · और देखें »

हेमचन्द्र श्रेणी

वर्गों सहित खपरैल, जिसकी भुजाएं लंबाई में क्रमिक फाइबोनैचि संख्याएं हैं युपाना ("गणन यंत्र" के लिए क्वेचुआ) एक कैलकुलेटर है, जिसका उपयोग इन्कास ने किया. शोधकर्ताओं का मानना है कि प्रति क्षेत्र आवश्यक कणों की संख्या को कम करने के लिए परिकलन फाइबोनैचि संख्याओं पर आधारित थे.0 फाइबोनैचि खपरैल में वर्गों के विपरीत कोनों को जोड़ने के लिए चाप के चित्रण द्वारा तैयार फाइबोनैचि सर्पिल घुमाव; इसमें 1, 1, 2, 3, 5, 8, 13, 21 और 34 आकार के वर्गों का उपयोग हुआ है; देखें स्वर्णिम सर्पिल गणित में संख्याओं का निम्नलिखित अनुक्रम हेमचंद्र श्रेणी या फिबोनाची श्रेणी (Fibonacci number) कहलाता हैं: परिभाषा के अनुसार, पहली दो हेमचंद्र संख्याएँ 0 और 1 हैं। इसके बाद आने वाली प्रत्येक संख्या पिछले दो संख्याओं का योग है। कुछ लोग आरंभिक 0 को छोड़ देते हैं, जिसकी जगह दो 1 के साथ अनुक्रम की शुरूआत की जाती है। गणितीय सन्दर्भ में, फिबोनाची संख्या के F n अनुक्रम को आवर्तन संबंध द्वारा दर्शाया जा सकता है- तथा, अंगूठाकार फिबोनाची अनुक्रम का नाम पीसा के लियोनार्डो फिबोनाची के नाम पर रखा गया, जो फाइबोनैचि (फिलियस बोनैचियो का संक्षिप्त रूप, "बोनैचियो के बेटे") के नाम से जाने जाते थे। फाइबोनैचि द्वारा लिखित 1202 की पुस्तक लिबर अबेकी ने पश्चिम यूरोपीय गणित में इस अनुक्रम को प्रवर्तित किया, हालांकि पहले ही भारतीय गणित में इस अनुक्रम का वर्णन किया गया है.

नई!!: भारतीय गणित और हेमचन्द्र श्रेणी · और देखें »

होमो सेपियन्स

होमो सेपियन्स/आधुनिक मानव स्तनपायी सर्वाहारी प्रधान जंतुओं की एक जाति, जो बात करने, अमूर्त्त सोचने, ऊर्ध्व चलने तथा परिश्रम के साधन बनाने योग्य है। मनुष्य की तात्विक प्रवीणताएँ हैं: तापीय संसाधन के द्वारा खाना बनाना और कपडों का उपयोग। मनुष्य प्राणी जगत का सर्वाधिक विकसित जीव है। जैव विवर्तन के फलस्वरूप मनुष्य ने जीव के सर्वोत्तम गुणों को पाया है। मनुष्य अपने साथ-साथ प्राकृतिक परिवेश को भी अपने अनुकूल बनाने की क्षमता रखता है। अपने इसी गुण के कारण हम मनुष्यों नें प्रकृति के साथ काफी खिलवाड़ किया है। आधुनिक मानव अफ़्रीका में 2 लाख साल पहले, सबके पूर्वज अफ़्रीकी थे। होमो इरेक्टस के बाद विकास दो शाखाओं में विभक्त हो गया। पहली शाखा का निएंडरथल मानव में अंत हो गया और दूसरी शाखा क्रोमैग्नॉन मानव अवस्था से गुजरकर वर्तमान मनुष्य तक पहुंच पाई है। संपूर्ण मानव विकास मस्तिष्क की वृद्धि पर ही केंद्रित है। यद्यपि मस्तिष्क की वृद्धि स्तनी वर्ग के अन्य बहुत से जंतुसमूहों में भी हुई, तथापि कुछ अज्ञात कारणों से यह वृद्धि प्राइमेटों में सबसे अधिक हुई। संभवत: उनका वृक्षीय जीवन मस्तिष्क की वृद्धि के अन्य कारणों में से एक हो सकता है। .

नई!!: भारतीय गणित और होमो सेपियन्स · और देखें »

हीरोन का सूत्र

एक त्रिभुज जिसकी भुजाएँ a, b तथा c हैं। ज्यामिति में हीरोन का सूत्र (Heron's formula) त्रिभुज की तीनों भुजाएँ ज्ञात होने पर उसका क्षेत्रफल निकालने का एक सूत्र है। इसे 'हीरो का सूत्र' (Hero's formula) भी कहते हैं। सूत्र का यह नाम अलेक्जैण्ड्रिया के हीरोन के नाम पर पड़ा है। इस सूत्र के अनुसार, यदि किसी त्रिभुज की तीन भुजाएँ a, b और c हों तो उसका क्षेत्रफल जहाँ s उस त्रिभुज का अर्धपरिमाप है, अर्थात् हीरोन का सूत्र चक्रीय चतुर्भुज का क्षेत्रफल निकालने के लिए ब्रह्मगुप्त के सूत्र की एक विशेष स्थिति (केस) है। ब्रह्मगुप्त का सूत्र यह है: जहाँ, .

नई!!: भारतीय गणित और हीरोन का सूत्र · और देखें »

ज्या

समकोण त्रिभुज में किसी कोण की ज्या उस कोण के सामने की भुजा और कर्ण के अनुपात के बराबर होती है। गणित में ज्या (Sine), एक त्रिकोणमितीय फलन का नाम है। समकोण त्रिभुज में का समकोण के अलावा एक कोण x है तो, उदाहरण के लिये, यदि कोण का मान डिग्री में हो तो, .

नई!!: भारतीय गणित और ज्या · और देखें »

ज्यामिति

ब्रह्मगुप्त ब्रह्मगुप्त का प्रमेय, इसके अनुसार ''AF'' .

नई!!: भारतीय गणित और ज्यामिति · और देखें »

ज्योतिष

ज्‍योतिष या ज्यौतिष विषय वेदों जितना ही प्राचीन है। प्राचीन काल में ग्रह, नक्षत्र और अन्‍य खगोलीय पिण्‍डों का अध्‍ययन करने के विषय को ही ज्‍योतिष कहा गया था। इसके गणित भाग के बारे में तो बहुत स्‍पष्‍टता से कहा जा सकता है कि इसके बारे में वेदों में स्‍पष्‍ट गणनाएं दी हुई हैं। फलित भाग के बारे में बहुत बाद में जानकारी मिलती है। भारतीय आचार्यों द्वारा रचित ज्योतिष की पाण्डुलिपियों की संख्या एक लाख से भी अधिक है। प्राचीनकाल में गणित एवं ज्यौतिष समानार्थी थे परन्तु आगे चलकर इनके तीन भाग हो गए।.

नई!!: भारतीय गणित और ज्योतिष · और देखें »

जैन धर्म

जैन ध्वज जैन धर्म भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। 'जैन धर्म' का अर्थ है - 'जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म'। जो 'जिन' के अनुयायी हों उन्हें 'जैन' कहते हैं। 'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' माने - जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया और विशिष्ट ज्ञान को पाकर सर्वज्ञ या पूर्णज्ञान प्राप्त किया उन आप्त पुरुष को जिनेश्वर या 'जिन' कहा जाता है'। जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान्‌ का धर्म। अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है। जैन दर्शन में सृष्टिकर्ता कण कण स्वतंत्र है इस सॄष्टि का या किसी जीव का कोई कर्ता धर्ता नही है।सभी जीव अपने अपने कर्मों का फल भोगते है।जैन धर्म के ईश्वर कर्ता नही भोगता नही वो तो जो है सो है।जैन धर्म मे ईश्वरसृष्टिकर्ता इश्वर को स्थान नहीं दिया गया है। जैन ग्रंथों के अनुसार इस काल के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव आदिनाथ द्वारा जैन धर्म का प्रादुर्भाव हुआ था। जैन धर्म की अत्यंत प्राचीनता करने वाले अनेक उल्लेख अ-जैन साहित्य और विशेषकर वैदिक साहित्य में प्रचुर मात्रा में हैं। .

नई!!: भारतीय गणित और जैन धर्म · और देखें »

जॉन नेपियर

जॉन नेपियर (John Napier) (१५५०-१६१७) एक स्कॉटिस गणितज्ञ थे। उन्होने संख्याओं से संबंधित कई महत्वपूर्ण खोजे की थी। नेपियर लघुगणक की खोज के कारण बहुत प्रसिध्द थे। लघुगणक ने जटिल गणनाओं को बहुत आसान बना दिया था। कई गणितज्ञ एवं वैज्ञानिक लघुगणक का उपयोग समस्याओ को हल करने और नये सिध्दांत बनाने में करते हैं। श्रेणी:गणितज्ञ श्रेणी:भौतिक विज्ञानी श्रेणी:स्कॉटलैण्ड के लोग.

नई!!: भारतीय गणित और जॉन नेपियर · और देखें »

जीवा

वृत्त की '''जीवा''' किसी वृत्त की जीवा (chord) वह सरल रेखा है जिसके दोनों सिरे उस वृत्त की परिधि पर स्थित हों। जीवा को दोनों तरफ बढाने से प्राप्त रेखा को छेदक रेखा (secant line) कहते हैं। अधिक व्यापक रूप में कहें तो किसी भी वक्र के किन्हीं दो बिन्दुओं को जोड़ने वाली रेखा को 'जीवा' कहते हैं (जैसे किसी दीर्घवृत्त की जीवा)। वृत्त के केन्द्र से होकर जाने वाली जीवा वृत्त का व्यास (diameter) कहलाती है। श्रेणी:ज्यामिति.

नई!!: भारतीय गणित और जीवा · और देखें »

ईंट

शीर्षों और चौखटों के वैकल्‍पिक विधियों के साथ रखा गया अंग्रेजी बंध पत्र में पुरानी ईंट की दीवार ऐतिहासिक नत्चितोचेस, लुइसियाना में ईंट से निर्मिति केन नदी के साथ सामने की गली चिनाई के कार्य में उपयोग किया जाने वाला ईंट मिट्टी का ब्लॉक है, जिन्हें सामान्‍यत: विभिन्‍न प्रकार के गारे का उपयोग कर चिना जाता है। .

नई!!: भारतीय गणित और ईंट · और देखें »

घन

घन का अर्थ होता है बादल। .

नई!!: भारतीय गणित और घन · और देखें »

घनमूल

x \ge 0 के लिये ''y'' .

नई!!: भारतीय गणित और घनमूल · और देखें »

घातांक

किसी संख्या पर घात लगाना या घातांकन (Exponentiation या Involution, इनवॉल्यूशन) एक गणितीय संक्रिया है जिसमें किसी संख्या को लगातार अपने से दो या अधिक बार गुणा किया जाता है। जितने बार गुणा किया जाता है, वह उस संख्या का 'घात' कहलाता है। घात को संख्या के ऊपर दाहिनी ओर थोड़ा हटाकर लिखा जाता है; इस प्रकर ३४ .

नई!!: भारतीय गणित और घातांक · और देखें »

वटेश्वर

वटेश्वर (जन्म 880), दसवीं शताब्दी के भारतीय (काश्मीरी) गणितज्ञ थे जिन्होने 24 वर्ष की उम्र में वटेश्वर-सिद्धान्त नामक ग्रन्थ की रचना की और कई त्रिकोणमितीय सर्वसमिकाएँ प्रस्तुत कीं। वटेश्वर-सिद्धान्त, खगोल शास्त्र और व्यावहारिक गणित से सम्बन्धित ग्रन्थ है जिसकी रचना सन् 904 में हुई थी। .

नई!!: भारतीय गणित और वटेश्वर · और देखें »

वराह मिहिर

वराहमिहिर (वरःमिहिर) ईसा की पाँचवीं-छठी शताब्दी के भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ थे। वाराहमिहिर ने ही अपने पंचसिद्धान्तिका में सबसे पहले बताया कि अयनांश का मान 50.32 सेकेण्ड के बराबर है। कापित्थक (उज्जैन) में उनके द्वारा विकसित गणितीय विज्ञान का गुरुकुल सात सौ वर्षों तक अद्वितीय रहा। वरःमिहिर बचपन से ही अत्यन्त मेधावी और तेजस्वी थे। अपने पिता आदित्यदास से परम्परागत गणित एवं ज्योतिष सीखकर इन क्षेत्रों में व्यापक शोध कार्य किया। समय मापक घट यन्त्र, इन्द्रप्रस्थ में लौहस्तम्भ के निर्माण और ईरान के शहंशाह नौशेरवाँ के आमन्त्रण पर जुन्दीशापुर नामक स्थान पर वेधशाला की स्थापना - उनके कार्यों की एक झलक देते हैं। वरःमिहिर का मुख्य उद्देश्य गणित एवं विज्ञान को जनहित से जोड़ना था। वस्तुतः ऋग्वेद काल से ही भारत की यह परम्परा रही है। वरःमिहिर ने पूर्णतः इसका परिपालन किया है। .

नई!!: भारतीय गणित और वराह मिहिर · और देखें »

वर्ग

वर्ग (Square) ज्यामिति की एक आकृति है। यदि किसी चतुर्भुज की चारों भुजाएं बराबर हों और चारो कोण समकोण हों तो उस चतुर्भुज को वर्ग कहते है। .

नई!!: भारतीय गणित और वर्ग · और देखें »

वर्ग समीकरण

गणित में दो घात वाले समीकरण को वर्ग समीकरण (quadratic equation) या द्विघात समीकरण कहते हैं। विज्ञान, तकनीकी एवं अन्य अनेक स्थितियों में किसी समस्या के समाधान के समय वर्ग समीकरण से अक्सर सामना पडता रहता है। इसलिये वर्ग समीकरण का हल बहुत महत्व रखता है। वर्ग समीकरण का सामान्य समीकरण(General Equation) इस प्रकार का होता है: यहाँ a ≠ 0.

नई!!: भारतीय गणित और वर्ग समीकरण · और देखें »

वर्गमूल

संख्या के साथ उसके वर्गमूल का आलेख गणित में किसी संख्या x का वर्गमूल (square root (\sqrt) या x^) वह संख्या (r) होती है जिसका वर्ग करने पर x प्राप्त होता है; अर्थात् यदि r‍‍2 .

नई!!: भारतीय गणित और वर्गमूल · और देखें »

वितत भिन्न

गणित में निम्नलिखित प्रकार के व्यंजक (expression) को वितत भिन्न (continued fraction) कहते हैं। यहाँ, a0 एक पूर्णांक है तथान्य सभी संख्याएँ ai (i ≠ 0) धनात्मक पूर्णांक हैं। यदि उपरोक्त वितत भिन्न में अंश एवं हर का मान कुछ भी होने की स्वतंत्रता दे दी जाय (जैसे फलन होने की छूट) तो इसे 'सामान्यीकृत वितत भिन्न' कह सकते हैं। .

नई!!: भारतीय गणित और वितत भिन्न · और देखें »

विधिशास्त्र

न्यायशास्त्र के दार्शनिक स्वयं से ही प्रश्न करते रहते हैं - "नियम क्या है?"; "क्या नियम होना चाहिये?" विधिशास्त्र या न्यायशास्त्र (Jurisprudence), विधि का सिद्धान्त, अध्ययन व दर्शन हैं। इसमें समस्त विधिक सिद्धान्त सम्मिलित हैं, जो क़ानून बनाते हैं। विधिशास्त्र के विद्वान, जिन्हें जूरिस्ट या विधिक सिद्धान्तवादी (विधिक दार्शनिक और विधि के सामाजिक सिद्धान्तवादी, समेत) भी कहा जाता हैं, विधि, विधिक कारणन, विधिक प्रणाली और विधिक संस्थाओं के प्रकृति की गहरी समझ प्राप्त कर पाने की आशा रखते हैं। विधि के विज्ञान के रूप में विधिशास्त्र विधि के बारे में एक विशेष तरह की खोजबीन है। विधिशास्त्र "जूरिसप्रूडेंस" अर्थात् Juris .

नई!!: भारतीय गणित और विधिशास्त्र · और देखें »

विज्ञान

संक्षेप में, प्रकृति के क्रमबद्ध ज्ञान को विज्ञान (Science) कहते हैं। विज्ञान वह व्यवस्थित ज्ञान या विद्या है जो विचार, अवलोकन, अध्ययन और प्रयोग से मिलती है, जो किसी अध्ययन के विषय की प्रकृति या सिद्धान्तों को जानने के लिये किये जाते हैं। विज्ञान शब्द का प्रयोग ज्ञान की ऐसी शाखा के लिये भी करते हैं, जो तथ्य, सिद्धान्त और तरीकों को प्रयोग और परिकल्पना से स्थापित और व्यवस्थित करती है। इस प्रकार कह सकते हैं कि किसी भी विषय के क्रमबद्ध ज्ञान को विज्ञान कह सकते है। ऐसा कहा जाता है कि विज्ञान के 'ज्ञान-भण्डार' के बजाय वैज्ञानिक विधि विज्ञान की असली कसौटी है। .

नई!!: भारतीय गणित और विज्ञान · और देखें »

वैदिक गणित (पुस्तक)

जगद्गुरू स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ द्वारा विरचित वैदिक गणित अंकगणितीय गणना की वैकल्पिक एवं संक्षिप्त विधियों का समूह है। इसमें १६ मूल सूत्र दिये गये हैं। वैदिक गणित गणना की ऐसी पद्धति है, जिससे जटिल अंकगणितीय गणनाएं अत्यंत ही सरल, सहज व त्वरित संभव हैं। स्वामीजी ने इसका प्रणयन बीसवीं सदी के आरम्भिक दिनों में किया। स्वामीजी के कथन के अनुसार वे सूत्र, जिन पर ‘वैदिक गणित’ नामक उनकी कृति आधारित है, अथर्ववेद के परिशिष्ट में आते हैं। परंतु विद्वानों का कथन है कि ये सूत्र अभी तक के ज्ञात अथर्ववेद के किसी परिशिष्ट में नहीं मिलते। हो सकता है कि स्वामीजी ने ये सूत्र जिस परिशिष्ट में देखे हों वह दुर्लभ हो तथा केवल स्वामीजी के ही सज्ञान में हो। वस्तुतः आज की स्थिति में स्वामीजी की ‘वैदिक गणित’ नामक कृति स्वयं में एक नवीन वैदिक परिशिष्ट बन गई है। .

नई!!: भारतीय गणित और वैदिक गणित (पुस्तक) · और देखें »

वेद

वेद प्राचीन भारत के पवितत्रतम साहित्य हैं जो हिन्दुओं के प्राचीनतम और आधारभूत धर्मग्रन्थ भी हैं। भारतीय संस्कृति में वेद सनातन वर्णाश्रम धर्म के, मूल और सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं, जो ईश्वर की वाणी है। ये विश्व के उन प्राचीनतम धार्मिक ग्रंथों में हैं जिनके पवित्र मन्त्र आज भी बड़ी आस्था और श्रद्धा से पढ़े और सुने जाते हैं। 'वेद' शब्द संस्कृत भाषा के विद् शब्द से बना है। इस तरह वेद का शाब्दिक अर्थ 'ज्ञान के ग्रंथ' है। इसी धातु से 'विदित' (जाना हुआ), 'विद्या' (ज्ञान), 'विद्वान' (ज्ञानी) जैसे शब्द आए हैं। आज 'चतुर्वेद' के रूप में ज्ञात इन ग्रंथों का विवरण इस प्रकार है -.

नई!!: भारतीय गणित और वेद · और देखें »

वेदान्त दर्शन

वेदान्त ज्ञानयोग की एक शाखा है जो व्यक्ति को ज्ञान प्राप्ति की दिशा में उत्प्रेरित करता है। इसका मुख्य स्रोत उपनिषद है जो वेद ग्रंथो और अरण्यक ग्रंथों का सार समझे जाते हैं। उपनिषद् वैदिक साहित्य का अंतिम भाग है, इसीलिए इसको वेदान्त कहते हैं। कर्मकांड और उपासना का मुख्यत: वर्णन मंत्र और ब्राह्मणों में है, ज्ञान का विवेचन उपनिषदों में। 'वेदान्त' का शाब्दिक अर्थ है - 'वेदों का अंत' (अथवा सार)। वेदान्त की तीन शाखाएँ जो सबसे ज्यादा जानी जाती हैं वे हैं: अद्वैत वेदान्त, विशिष्ट अद्वैत और द्वैत। आदि शंकराचार्य, रामानुज और श्री मध्वाचार्य जिनको क्रमश: इन तीनो शाखाओं का प्रवर्तक माना जाता है, इनके अलावा भी ज्ञानयोग की अन्य शाखाएँ हैं। ये शाखाएँ अपने प्रवर्तकों के नाम से जानी जाती हैं जिनमें भास्कर, वल्लभ, चैतन्य, निम्बारक, वाचस्पति मिश्र, सुरेश्वर और विज्ञान भिक्षु। आधुनिक काल में जो प्रमुख वेदान्ती हुये हैं उनमें रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, अरविंद घोष, स्वामी शिवानंद राजा राममोहन रॉय और रमण महर्षि उल्लेखनीय हैं। ये आधुनिक विचारक अद्वैत वेदान्त शाखा का प्रतिनिधित्व करते हैं। दूसरे वेदान्तो के प्रवर्तकों ने भी अपने विचारों को भारत में भलिभाँति प्रचारित किया है परन्तु भारत के बाहर उन्हें बहुत कम जाना जाता है। .

नई!!: भारतीय गणित और वेदान्त दर्शन · और देखें »

वेदांग

वेदांग हिन्दू धर्म ग्रन्थ हैं। शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, छन्द और निरूक्त - ये छ: वेदांग है।.

नई!!: भारतीय गणित और वेदांग · और देखें »

वीरसेन

आचार्य वीरसेन आठवीँ शताब्दी के भारतीय गणितज्ञ एवं जैन दार्शनिक थे। वे प्रखर वक्ता एवं कवि भी थे। धवला उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है। 'जयधवला' के भी वे रचयिता हैं। उन्होने स्तम्भस्थूण या 'फ्रस्टम' (frustum) का आयतन निकालने की विधि बतायी। वे 'अर्धच्छेद', 'त्रकच्छेद' और 'चतुर्थच्छेद' नाम के काँसेप्ट का प्रयोग करते थे। अर्धच्छेद में देखते हैं कि कोई संख्या कितनी बार में २ से विभाजित होकर अन्ततः १ हो जाती है। वस्तुतः यह २ आधार पर उस संख्या का लघुगणक (log2x) की खोज है। इसी प्रकार 'त्रक्च्छेद' और 'चतुर्च्छेद' क्रमशः (log3x) और (log4x) हैं। आचार्य वीरसेन ने किसी वृत्त की परिधि C और उसके व्यास d के बीच सम्बध के लिये एक सन्निकट सूत्र दिया: d के बड़े मानों के लिये यह सूत्र पाई का मान लगभग π ≈ 355/113 .

नई!!: भारतीय गणित और वीरसेन · और देखें »

खगोल शास्त्र

चन्द्र संबंधी खगोल शास्त्र: यह बडा क्रेटर है डेडलस। १९६९ में चन्द्रमा की प्रदक्षिणा करते समय अपोलो ११ के चालक-दल (क्रू) ने यह चित्र लिया था। यह क्रेटर पृथ्वी के चन्द्रमा के मध्य के नज़दीक है और इसका व्यास (diameter) लगभग ९३ किलोमीटर या ५८ मील है। खगोल शास्त्र, एक ऐसा शास्त्र है जिसके अंतर्गत पृथ्वी और उसके वायुमण्डल के बाहर होने वाली घटनाओं का अवलोकन, विश्लेषण तथा उसकी व्याख्या (explanation) की जाती है। यह वह अनुशासन है जो आकाश में अवलोकित की जा सकने वाली तथा उनका समावेश करने वाली क्रियाओं के आरंभ, बदलाव और भौतिक तथा रासायनिक गुणों का अध्ययन करता है। बीसवीं शताब्दी के दौरान, व्यावसायिक खगोल शास्त्र को अवलोकिक खगोल शास्त्र तथा काल्पनिक खगोल तथा भौतिक शास्त्र में बाँटने की कोशिश की गई है। बहुत कम ऐसे खगोल शास्त्री है जो दोनो करते है क्योंकि दोनो क्षेत्रों में अलग अलग प्रवीणताओं की आवश्यकता होती है, पर ज़्यादातर व्यावसायिक खगोलशास्त्री अपने आप को दोनो में से एक पक्ष में पाते है। खगोल शास्त्र ज्योतिष शास्त्र से अलग है। ज्योतिष शास्त्र एक छद्म-विज्ञान (Pseudoscience) है जो किसी का भविष्य ग्रहों के चाल से जोड़कर बताने कि कोशिश करता है। हालाँकि दोनों शास्त्रों का आरंभ बिंदु एक है फिर भी वे काफ़ी अलग है। खगोल शास्त्री जहाँ वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग करते हैं जबकि ज्योतिषी केवल अनुमान आधारित गणनाओं का सहारा लेते हैं। .

नई!!: भारतीय गणित और खगोल शास्त्र · और देखें »

गणित

पुणे में आर्यभट की मूर्ति ४७६-५५० गणित ऐसी विद्याओं का समूह है जो संख्याओं, मात्राओं, परिमाणों, रूपों और उनके आपसी रिश्तों, गुण, स्वभाव इत्यादि का अध्ययन करती हैं। गणित एक अमूर्त या निराकार (abstract) और निगमनात्मक प्रणाली है। गणित की कई शाखाएँ हैं: अंकगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति, सांख्यिकी, बीजगणित, कलन, इत्यादि। गणित में अभ्यस्त व्यक्ति या खोज करने वाले वैज्ञानिक को गणितज्ञ कहते हैं। बीसवीं शताब्दी के प्रख्यात ब्रिटिश गणितज्ञ और दार्शनिक बर्टेंड रसेल के अनुसार ‘‘गणित को एक ऐसे विषय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें हम जानते ही नहीं कि हम क्या कह रहे हैं, न ही हमें यह पता होता है कि जो हम कह रहे हैं वह सत्य भी है या नहीं।’’ गणित कुछ अमूर्त धारणाओं एवं नियमों का संकलन मात्र ही नहीं है, बल्कि दैनंदिन जीवन का मूलाधार है। .

नई!!: भारतीय गणित और गणित · और देखें »

गणितसारसंग्रह

गणितसारसंग्रहः भारतीय गणितज्ञ महावीराचार्य द्वारा संस्कृत भाषा में रचित एक गणित ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में गणित के जो प्रश्न पूछे गये हैं वे कई अर्थों में गणित के पूर्ववर्ती ग्रन्थों में पूछे गये प्रश्नों से भिन्न हैं। .

नई!!: भारतीय गणित और गणितसारसंग्रह · और देखें »

गणितीय विश्लेषण

गणितीय विश्लेषण (Mathematical analysis) शुद्ध गणित की एक शाखा है। इसके अन्तर्गत अवकलन, समाकलन, सीमा, अनन्त श्रेणी तथा वैश्लेषिक फलनों (analytic functions) के सिद्धान्त आदि आते हैं। ये सिद्धान्त प्रायः वास्तविक संख्याओं, समिश्र संख्याओं तथा वास्तविक एवं समिश्र फलनों के सन्दर्भ में अध्ययन किए जाते हैं। विश्लेषण को परम्परागत रूप से ज्यामिति से अलग गणित की श्रेणी में रखा जाता रहा है। .

नई!!: भारतीय गणित और गणितीय विश्लेषण · और देखें »

गणेश दैवज्ञ

गणेश दैवज्ञ एक खगोलविद थे। उनके द्वारा रचित ग्रहलाघव प्रसिद्ध ग्रन्थ है। इसके अलावा बुद्धिविलासिनी टीका भी प्रसिद्ध है। बुद्धिविलासिनी में गणेश दैवज्ञ ने गणित की परिभाषा निम्नवत की है- गणेश ने अपना गणित ग्रंथ ‘ग्रहलाघव’ सन् 1521 के आस-पास आरम्भ किया। ग्रहगणित पर गणेश की जितनी कृतियाँ प्रचलित हैं, उतनी अन्य किसी की नहीं। ज्योतिष पर भी गणेश ने कार्य किया है। इन्होंने भास्करकृत ‘लीलावती’ की टीका लिखी थी। इसी टीका में उन्होंने गुणन की एक विधि का वर्णन किया है जो 8वीं शती या उससे पहले के हिंदुओं को स्मरण थी। जब गणेश ने इसका उल्लेख किया तो वह सहज ही अरब पहुंची और अन्य यूरोपीय देशों में भी। पसियोली के ‘सूमा’ नामक ग्रंथ में भी इसका उल्लेख मिलता है। श्रेणी:भारतीय गणितज्ञ श्रेणी:भारतीय खगोलविद.

नई!!: भारतीय गणित और गणेश दैवज्ञ · और देखें »

गुणोत्तर श्रेणी

गुणोत्तर श्रेणी (Geometric series) वह श्रेणी है जिसके क्रमागत पदों का अनुपात अचर होता है। उदाहरण के लिये, एक गुणोत्तर श्रेणी है जिसका सर्वनिष्त अनुपात (कॉमन रेशियो) ३ है। .

नई!!: भारतीय गणित और गुणोत्तर श्रेणी · और देखें »

गुप्त राजवंश

गुप्त राज्य लगभग ५०० ई इस काल की अजन्ता चित्रकला गुप्त राजवंश या गुप्त वंश प्राचीन भारत के प्रमुख राजवंशों में से एक था। मौर्य वंश के पतन के बाद दीर्घकाल तक भारत में राजनीतिक एकता स्थापित नहीं रही। कुषाण एवं सातवाहनों ने राजनीतिक एकता लाने का प्रयास किया। मौर्योत्तर काल के उपरान्त तीसरी शताब्दी इ. में तीन राजवंशो का उदय हुआ जिसमें मध्य भारत में नाग शक्‍ति, दक्षिण में बाकाटक तथा पूर्वी में गुप्त वंश प्रमुख हैं। मौर्य वंश के पतन के पश्चात नष्ट हुई राजनीतिक एकता को पुनस्थापित करने का श्रेय गुप्त वंश को है। गुप्त साम्राज्य की नींव तीसरी शताब्दी के चौथे दशक में तथा उत्थान चौथी शताब्दी की शुरुआत में हुआ। गुप्त वंश का प्रारम्भिक राज्य आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार में था। गुप्त वंश पर सबसे ज्यादा रिसर्च करने वाले इतिहासकार डॉ जयसवाल ने इन्हें जाट बताया है।इसके अलावा तेजराम शर्माhttps://books.google.co.in/books?id.

नई!!: भारतीय गणित और गुप्त राजवंश · और देखें »

गौतम बुद्ध

गौतम बुद्ध (जन्म 563 ईसा पूर्व – निर्वाण 483 ईसा पूर्व) एक श्रमण थे जिनकी शिक्षाओं पर बौद्ध धर्म का प्रचलन हुआ। उनका जन्म लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था। उनकी माँ का नाम महामाया था जो कोलीय वंश से थी जिनका इनके जन्म के सात दिन बाद निधन हुआ, उनका पालन महारानी की छोटी सगी बहन महाप्रजापती गौतमी ने किया। सिद्धार्थ विवाहोपरांत एक मात्र प्रथम नवजात शिशु राहुल और पत्नी यशोधरा को त्यागकर संसार को जरा, मरण, दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग की तलाश एवं सत्य दिव्य ज्ञान खोज में रात में राजपाठ छोड़कर जंगल चले गए। वर्षों की कठोर साधना के पश्चात बोध गया (बिहार) में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ गौतम से बुद्ध बन गए। .

नई!!: भारतीय गणित और गौतम बुद्ध · और देखें »

गैलीलियो गैलिली

गैलीलियो गैलिली (१५ फरवरी, १५६५ - ८ जनवरी, १६४२) इटली के वैज्ञानिक थे। वे एक महान आविष्कारक थे तथा दूरदर्शी के विकास में उनका अतुलनीय सहयोग था। .

नई!!: भारतीय गणित और गैलीलियो गैलिली · और देखें »

गोलाध्याय

गोलाध्याय, भास्कराचार्य द्वारा रचित ग्रन्थ सिद्धान्त शिरोमणि के चार भागों में से एक भाग है। अन्य तीन भाग लीलावती, बीजगणित, तथा ग्रहगणित हैं। इसमें चक्रवाल गणित का एक प्रश्न देखिए- .

नई!!: भारतीय गणित और गोलाध्याय · और देखें »

गोविन्दस्वामी (गणितज्ञ)

गोविन्दस्वामी (800 ई – 860 ई) भारत के गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री (ज्योतिषी) थे। उन्होने भास्कर प्रथम के ग्रन्थ महाभास्करीय पर एक भाष्य की रचना की (लगभग ८३० ई)। इस भाष्य में स्थानीय मान के प्रयोग के लिये कई उदाहरण दिये हैं और ज्या सारणी (साइन टेबल) के निर्माण की विधि दी हुई है। उनकी एक कृति 'गोविन्दकृति' थी जो 'आर्यभटीय' के क्रम में रचित गणितीय ग्रन्थ था। किन्तु अब यह अप्राप्य है। शंकरनारायण (८६९ ई), उदयदिवाकर (१०७३ ई) तथा नीलकण्ठ सोमयाजि ने गोविन्दस्वामी को अनेक बार उद्धृत किया है। .

नई!!: भारतीय गणित और गोविन्दस्वामी (गणितज्ञ) · और देखें »

औद्योगिक क्रांति

'''वाष्प इंजन''' औद्योगिक क्रांति का प्रतीक था। अट्ठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध तथा उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में कुछ पश्चिमी देशों के तकनीकी, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक स्थिति में काफी बड़ा बदलाव आया। इसे ही औद्योगिक क्रान्ति (Industrial Revolution) के नाम से जाना जाता है। यह सिलसिला ब्रिटेन से आरम्भ होकर पूरे विश्व में फैल गया। "औद्योगिक क्रांति" शब्द का इस संदर्भ में उपयोग सबसे पहले आरनोल्ड टायनबी ने अपनी पुस्तक "लेक्चर्स ऑन दि इंड्स्ट्रियल रिवोल्यूशन इन इंग्लैंड" में सन् 1844 में किया। औद्योगिक क्रान्ति का सूत्रपात वस्त्र उद्योग के मशीनीकरण के साथ आरम्भ हुआ। इसके साथ ही लोहा बनाने की तकनीकें आयीं और शोधित कोयले का अधिकाधिक उपयोग होने लगा। कोयले को जलाकर बने वाष्प की शक्ति का उपयोग होने लगा। शक्ति-चालित मशीनों (विशेषकर वस्त्र उद्योग में) के आने से उत्पादन में जबरदस्त वृद्धि हुई। उन्नीसवी सदी के प्रथम् दो दशकों में पूरी तरह से धातु से बने औजारों का विकास हुआ। इसके परिणामस्वरूप दूसरे उद्योगों में काम आने वाली मशीनों के निर्माण को गति मिली। उन्नीसवी शताब्दी में यह पूरे पश्चिमी यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका में फैल गयी। अलग-अलग इतिहासकार औद्योगिक क्रान्ति की समयावधि अलग-अलग मानते नजर आते हैं जबकि कुछ इतिहासकार इसे क्रान्ति मानने को ही तैयार नहीं हैं। अनेक विचारकों का मत है कि गुलाम देशों के स्रोतों के शोषण और लूट के बिना औद्योगिक क्रान्ति सम्भव नही हुई होती, क्योंकि औद्योगिक विकास के लिये पूंजी अति आवश्यक चीज है और वह उस समय भारत आदि गुलाम देशों के संसाधनों के शोषण से प्राप्त की गयी थी। .

नई!!: भारतीय गणित और औद्योगिक क्रांति · और देखें »

आपस्तम्ब

आपस्तम्ब भारत के प्राचीन गणितज्ञ और शुल्ब सूत्र के रचयिता हैं। वे सूत्रकार हैं; ऋषि नहीं। वैदिक संहिताओं में इनका उल्लेख नहीं पाया जाता। आपस्तंबधर्मसूत्र में सूत्रकार ने स्वयं अपने को "अवर" (परवर्ती) कहा है (1.2.5.4)। .

नई!!: भारतीय गणित और आपस्तम्ब · और देखें »

आयत

आयत ऐसा चतुर्भुज जिसके चारों अंतः कोण समकोण हों उसे आयत (रेक्टैंगल) कहते हैं। .

नई!!: भारतीय गणित और आयत · और देखें »

आर्यभट

आर्यभट (४७६-५५०) प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। इन्होंने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। इसी ग्रंथ में इन्होंने अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 लिखा है। बिहार में वर्तमान पटना का प्राचीन नाम कुसुमपुर था लेकिन आर्यभट का कुसुमपुर दक्षिण में था, यह अब लगभग सिद्ध हो चुका है। एक अन्य मान्यता के अनुसार उनका जन्म महाराष्ट्र के अश्मक देश में हुआ था। उनके वैज्ञानिक कार्यों का समादर राजधानी में ही हो सकता था। अतः उन्होंने लम्बी यात्रा करके आधुनिक पटना के समीप कुसुमपुर में अवस्थित होकर राजसान्निध्य में अपनी रचनाएँ पूर्ण की। .

नई!!: भारतीय गणित और आर्यभट · और देखें »

आर्यभट की ज्या सारणी

आर्यभट द्वारा रचित आर्यभटीय में दिये गये २४ संख्याओं का समुच्चय आर्यभट की ज्या-सारणी (Āryabhaṭa's sine table) कहलाता है। आधुनिक अर्थ में यह कोई गणितीय सारणी (टेबुल) नहीं है जिसमें संख्याएँ पंक्ति व स्तम्भ के रूप में विन्यस्त (arranged) हों। वृत्त में चाप (Arc) तथा जीवा (chord) परम्परागत अर्थों में यह त्रिकोणमिति में प्रयुक्त ज्या फलन (sine function) के मानों की सूची भी नहीं है बल्कि यह ज्या फलन के मानों के प्रथम अन्तर (first differences) है। इसी लिये इसे 'आर्यभट की ज्या-अन्तर सारणी (Āryabhaṭa's table of sine-differences) भी कहा जाता है। आर्यभट की यह सारणी, गणित के इतिहास में, विश्व की सबसे पहले रचित ज्या-सारणी है। .

नई!!: भारतीय गणित और आर्यभट की ज्या सारणी · और देखें »

आर्यभट्ट द्वितीय

आर्यभट्ट (द्वितीय) गणित और ज्योतिष दोनों विषयों के अच्छे आचार्य थे। इनका बनाया हुआ महासिद्धान्त ग्रंथ ज्योतिष सिद्धांत का अच्छा ग्रंथ है। .

नई!!: भारतीय गणित और आर्यभट्ट द्वितीय · और देखें »

आर्यभट्ट की संख्यापद्धति

संख्याओं को शब्दों में बदलने के लिये आर्यभट द्वारा प्रयुक्त पद्धति की तालिका आर्यभट्ट ने आर्यभटीय के 'गीतिकापादम्' नामक अध्याय में संख्याओं को 'शब्दों' के रूप में बदलने की पद्धति का विवरण दिया है। इस पद्धति की मुख्य विशेषता यह है कि इसके उपयोग से गणित तथा खगोलिकी में आने वाली संख्याएँ भी श्लोकों में आसानी से प्रयुक्त की जा सकती थीं। इस पद्धति का आधार आर्यभट्ट की महान रचना आर्यभटीय के प्रथम अध्याय (गीतिकापदम्) के द्वितीय श्लोक में वर्णित है। आर्यभट को अपना ग्रंथ पद्य में लिखना था, गणित व ज्योतिष के विषयों को श्लोकबद्ध करना था। प्रचलित शब्दांकों से आर्यभट का काम नहीं चल सकता था, इसलिए उन्होंने संस्कृत वर्णमाला का उपयोग करके एक नई वर्णांक या अक्षरांक पद्धति को जन्म दिया। संस्कृत व्याकरण के विशिष्ट शब्दों का उपयोग करके आर्यभट ने अपनी नई अक्षरांक-पद्धति के सारे नियम एक श्लोक में भर दिए। ग्रंथ के आरंभ में ही अपनी नई अक्षरांक पद्धति को प्रस्तुत कर देने के बाद आर्यभट अब बड़ी-बड़ी संख्याओं को अत्यंत संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत रूप में रखने में समर्थ थे। उन्होंने शब्दांकों का भी काफी प्रयोग किया है। वह अद्भुत श्लोक है- अर्थात् क से प्रारंभ करके वर्ग अक्षरों को वर्ग स्थानों में और अवर्ग अक्षरों को अवर्ग स्थानों में (व्यवहार करना चाहिए), (इस प्रकार) ङ और म का जोड़ य (होता है)। वर्ग और अवर्ग स्थानों के नव के दूने शून्यों को नव स्वर व्यक्त करते हैं। नव वर्ग स्थानों और नव अवर्ग स्थानों के पश्चात् (अर्थात् इनसे अधिक स्थानों के उपयोग की आवश्यकता होने पर) इन्हीं नव स्वरों का उपयोग करना चाहिए। 'आर्यभटीय' के भाष्यकार परमेश्वर कहते हैं- 'केनचिदनुस्वारादिविशेषण संयुक्ताः प्रयोज्या इत्यर्थः' अर्थात् किसी अनुस्वार आदि विशेषणों का उपयोग (स्वरों में) करना चाहिए। संस्कृत वर्णमाला में क से म तक पच्चीस वर्ग अक्षर हैं और य से ह तक आठ अवर्ग अक्षर हैं। संख्याओं के लिखने में दाहिनी ओर से पहला, तीसरा, पाँचवाँ अर्थात् विषम स्थान और दूसरा, चौथा, छठा आदि सम स्थान अवर्ग स्थान है। क से म तक 25 अक्षर हैं। आर्यभट ने इन्हें 1 से 25 तक मान दिए हैं अर्थात् क .

नई!!: भारतीय गणित और आर्यभट्ट की संख्यापद्धति · और देखें »

आर्यभटीय

आर्यभटीय नामक ग्रन्थ की रचना आर्यभट प्रथम (४७६-५५०) ने की थी। यह संस्कृत भाषा में आर्या छंद में काव्यरूप में रचित गणित तथा खगोलशास्त्र का ग्रंथ है। इसकी रचनापद्धति बहुत ही वैज्ञानिक और भाषा बहुत ही संक्षिप्त तथा मंजी हुई है। इसमें चार अध्यायों में १२३ श्लोक हैं। आर्यभटीय, दसगीतिका पाद से आरम्भ होती है। इसके चार अध्याय इस प्रकार हैं: 1.

नई!!: भारतीय गणित और आर्यभटीय · और देखें »

कटपयादि

कटपयादि (.

नई!!: भारतीय गणित और कटपयादि · और देखें »

करण

कोई विवरण नहीं।

नई!!: भारतीय गणित और करण · और देखें »

कलन

कलन (Calculus) गणित का प्रमुख क्षेत्र है जिसमें राशियों के परिवर्तन का गणितीय अध्ययन किया जाता है। इसकी दो मुख्य शाखाएँ हैं- अवकल गणित (डिफरेंशियल कैल्कुलस) तथा समाकलन गणित (इटीग्रल कैलकुलस)। कैलकुलस के ये दोनों शाखाएँ कलन के मूलभूत प्रमेय द्वारा परस्पर सम्बन्धित हैं। वर्तमान समय में विज्ञान, इंजीनियरी, अर्थशास्त्र आदि के क्षेत्र में कैल्कुलस का उपयोग किया जाता है। भारत में कैल्कुलस से सम्बन्धित कई कॉन्सेप्ट १४वीं शताब्दी में ही विकसित हो गये थे। किन्तु परम्परागत रूप से यही मान्यता है कि कैलकुलस का प्रयोग 17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में आरंभ हुआ तथा आइजक न्यूटन तथा लैब्नीज इसके जनक थे। .

नई!!: भारतीय गणित और कलन · और देखें »

कात्यायन

धर्मग्रंथों से जिन कात्यायनों का परिचय मिलता है, उनमें तीन प्रधान हैं-.

नई!!: भारतीय गणित और कात्यायन · और देखें »

कुट्टक

कुट्टक रैखिक डायोफैंटीय समीकरणों के पूर्णांक हल निकालने की विधि (algorithm) हैं जो भारतीय गणित में बहुत प्रसिद्ध हैं। .

नई!!: भारतीय गणित और कुट्टक · और देखें »

क्रमचय-संचय

दोहराव के साथ क्रमपरिवर्तन। क्रमचय-संचय (Combinatorics) गणित की शाखा है जिसमें गिनने योग्य विवर्त (discrete) संरचनाओं (structures) का अध्ययन किया जाता है। शुद्ध गणित, बीजगणित, प्रायिकता सिद्धांत, टोपोलोजी तथा ज्यामिति आदि गणित के विभिन्न क्षेत्रों में क्रमचय-संचय से संबन्धित समस्याये पैदा होतीं हैं। इसके अलावा क्रमचय-संचय का उपयोग इष्टतमीकरण (आप्टिमाइजेशन), संगणक विज्ञान, एर्गोडिक सिद्धांत (ergodic theory) तथा सांख्यिकीय भौतिकी में भी होता है। ग्राफ सिद्धांत, क्रमचय-संचय के सबसे पुराने एवं सर्वाधिक प्रयुक्त भागों में से है। ऐतिहासिक रूप से क्रमचय-संचय के बहुत से प्रश्न विलगित रूप में उठते रहे थे और उनके तदर्थ हल प्रस्तुत किये जाते रहे। किन्तु बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में शक्तिशाली एवं सामान्य सैद्धांतिक विधियाँ विकसित हुईं और क्रमचय-संचय गणित की स्वतंत्र शाखा बनकर उभरा। .

नई!!: भारतीय गणित और क्रमचय-संचय · और देखें »

कृत्तिका

कृत्तिका वा कयबचिया एक नक्षत्र है। इसका लैटिन/अंग्रेजी में नाम Pleiades है। पृथ्वी से देखने पर पास-पास दिखने वाले कई तारों का इस समूह को भारतीय खगोलशास्त्र और हिन्दू धर्म में सप्त ऋषि की पत्नियां भी कहा गया है। कृत्तिका एक तारापुंज है जो आकाश में वृष राशि के समीप दिखाई पड़ता है। कोरी आँख से प्रथम दृष्टि डालने पर इस पुंज के तारे अस्पष्ट और एक दूसरे से मिले हुए तथा किचपिच दिखाई पड़ते हैं जिसके कारण बोलचाल की भाषा में इसे किचपिचिया कहते हैं। ध्यान से देखने पर इसमें छह तारे पृथक पृथक दिखाई पड़ते हैं। दूरदर्शक से देखने पर इसमें सैकड़ों तारे दिखाई देते हैं, जिनके बीच में नीहारिका (Nebula) की हलकी धुंध भी दिखाई पड़ती है। इस तारापुंज में ३०० से ५०० तक तारे होंगे जो ५० प्रकाशवर्ष के गोले में बिखरे हुए हैं। केंद्र में तारों का घनत्व अधिक है। चमकीले तारे भी केंद्र के ही पास हैं। कृत्तिका तारापुंज पृथ्वी से लगभग ५०० प्रकाशवर्ष दूर है। .

नई!!: भारतीय गणित और कृत्तिका · और देखें »

केरल

केरल (मलयालम: കേരളം, केरळम्) भारत का एक प्रान्त है। इसकी राजधानी तिरुवनन्तपुरम (त्रिवेन्द्रम) है। मलयालम (മലയാളം, मलयाळम्) यहां की मुख्य भाषा है। हिन्दुओं तथा मुसलमानों के अलावा यहां ईसाई भी बड़ी संख्या में रहते हैं। भारत की दक्षिण-पश्चिमी सीमा पर अरब सागर और सह्याद्रि पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य एक खूबसूरत भूभाग स्थित है, जिसे केरल के नाम से जाना जाता है। इस राज्य का क्षेत्रफल 38863 वर्ग किलोमीटर है और यहाँ मलयालम भाषा बोली जाती है। अपनी संस्कृति और भाषा-वैशिष्ट्य के कारण पहचाने जाने वाले भारत के दक्षिण में स्थित चार राज्यों में केरल प्रमुख स्थान रखता है। इसके प्रमुख पड़ोसी राज्य तमिलनाडु और कर्नाटक हैं। पुदुच्चेरी (पांडिचेरि) राज्य का मय्यष़ि (माहि) नाम से जाता जाने वाला भूभाग भी केरल राज्य के अन्तर्गत स्थित है। अरब सागर में स्थित केन्द्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप का भी भाषा और संस्कृति की दृष्टि से केरल के साथ अटूट संबन्ध है। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व केरल में राजाओं की रियासतें थीं। जुलाई 1949 में तिरुवितांकूर और कोच्चिन रियासतों को जोड़कर 'तिरुकोच्चि' राज्य का गठन किया गया। उस समय मलाबार प्रदेश मद्रास राज्य (वर्तमान तमिलनाडु) का एक जिला मात्र था। नवंबर 1956 में तिरुकोच्चि के साथ मलाबार को भी जोड़ा गया और इस तरह वर्तमान केरल की स्थापना हुई। इस प्रकार 'ऐक्य केरलम' के गठन के द्वारा इस भूभाग की जनता की दीर्घकालीन अभिलाषा पूर्ण हुई। * केरल में शिशुओं की मृत्यु दर भारत के राज्यों में सबसे कम है और स्त्रियों की संख्या पुरुषों से अधिक है (2001 की जनगणना के आधार पर)।.

नई!!: भारतीय गणित और केरल · और देखें »

केरलीय गणित सम्प्रदाय

केरलीय गणित सम्प्रदाय केरल के गणितज्ञों और खगोलशास्त्रियों का एक के बाद एक आने वाला क्रम था जिसने गणित और खगोल के क्षेत्र में बहुत उन्नत कार्य किया। इसकी स्थापना संगमग्राम के माधव द्वारा की गयी थी। परमेश्वर, नीलकण्ठ सोमजाजिन्, ज्येष्ठदेव, अच्युत पिशारती, मेलापतुर नारायण भट्टतिरि तथा अच्युत पान्निकर इसके अन्य सदस्य थे। यह सम्प्रदाय १४वीं शदी से लेकर १६वीं शदी तक फला-फूला। खगोलीय समस्याओं के समाधान के खोज के चक्कर में इस सम्प्रदाय ने स्वतंत्र रूप से अनेकों महत्वपूर्ण गणितीय संकल्पनाएँ सृजित की। इनमें नीलकंठ द्वारा तंत्रसंग्रह नामक ग्रन्थ में दिया गया त्रिकोणमितीय फलनों का श्रेणी के रूप में प्रसार सबसे महत्वपूर्ण है। केरलीय गणित सम्प्रदाय माधवन के बाद कम से कम दो शताब्दियों तक फलता-फूलता रहा। ज्येष्ठदेव से हमें समाकलन का विचार मिला, जिसे संकलितम कहा गया था, (हिंदी अर्थ संग्रह), जैसा कि इस कथन में है: जो समाकलन को एक ऐसे चर (पद) के रूप में अनुवादित करता है जो चर के वर्ग के आधे के बराबर होगा; अर्थात x dx का समाकलन x2 / 2 के बराबर होगा। यह स्पष्ट रूप से समाकलन की शुरुआत है। इससे सम्बंधित एक अन्य परिणाम कहता है कि किसी वक्र के अन्दर का क्षेत्रफल उसके समाकल के बराबर होता है। इसमें से अधिकांश परिणाम यूरोप में ऐसे ही परिणामों के अस्तित्व से कई शताब्दियों पूर्व के हैं। अनेक प्रकार से, ज्येष्ठदेव की युक्तिभाषा कलन पर विश्व की पहली पुस्तक मानी जा सकती है। इस समूह ने खगोल विज्ञान में अन्य कई कार्य भी किये; वास्तव में खगोलीय परिकलनों पर विश्लेषण संबंधी परिणामों की तुलना में कहीं अधिक पृष्ठ लिखे गए हैं। केरल स्कूल ने भाषाविज्ञान (भाषा और गणित के मध्य सम्बन्ध एक प्राचीन भारतीय परंपरा है, देखें, कात्यायन) में भी योगदान दिया है। केरल की आयुर्वेदिक और काव्यमय परंपरा की जड़ें भी इस स्कूल में खोजी जा सकती हैं। प्रसिद्ध कविता, नारायणीयम, की रचना नारायण भात्ताथिरी द्वारा की गयी थी। .

नई!!: भारतीय गणित और केरलीय गणित सम्प्रदाय · और देखें »

अच्युत पिषारटि

अच्युत पिषारटि (१५५० - ७ जुलाई १६२१) भारत के खगोलशास्त्री, ज्योतिषी, गणितज्ञ तथा संस्कृत के वैयाकरण थे। वे ज्येष्ठदेव के शिष्य एवं केरलीय गणित सम्प्रदाय के प्रमुख गणितज्ञ थे। वे अपने शिष्य मेल्पत्तूर नारायण भट्टतिरि को नारायणीयम की रचना करते समय दिए गए योगदान के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं। .

नई!!: भारतीय गणित और अच्युत पिषारटि · और देखें »

अनिर्धार्य समीकरण

जिस समीकरण के अनन्त हल हों उसे अनिर्धार्य समीकरण (indeterminate equation) कहते हैं। जैसे, 2x .

नई!!: भारतीय गणित और अनिर्धार्य समीकरण · और देखें »

अनंत

अनंत (Infinity) का अर्थ होता है जिसका कोई अंत न हो। इसको ∞ से निरूपित करते हैं। यह गणित और दर्शन में एक कांसेप्ट है जो ऐसी राशि को कहते हैं जिसकी कोई सीमा न हो या अन्त न हो। भूतकाल में लोगों ने अनन्त के बारे में तरह-तरह के विचार व्यक्त किये हैं। अनंत शब्द का अंग्रेजी पर्याय "इनफिनिटी" लैटिन भाषा के 'इन्' (अन्) और 'फिनिस' (अंत) की संधि है। यह शब्द उन राशियों के लिए प्रयुक्त किया जाता है जिनकी भाप अथवा गणना उनके परिमित न रहने के कारण असंभव है। अपरिमित सरल रेखा की लंबाई सीमाविहीन और इसलिए अनंत होती है। .

नई!!: भारतीय गणित और अनंत · और देखें »

अनुयोगद्वार सूत्र

अनुयोगद्वार सूत्र ईसा से १०० वर्ष पूर्व रचित जैन ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में बड़ी-बड़ी संख्याएं आयी हैं जैसे, 1096। इसके अलावा अनेक गणितीय संक्रियाओं के बारे में बताया गया है, जैसे घातों के गुण। श्रेणी:जैन ग्रंथ श्रेणी:भारतीय गणित श्रेणी:चित्र जोड़ें.

नई!!: भारतीय गणित और अनुयोगद्वार सूत्र · और देखें »

अपरिमेय संख्या

गणित में, अपरिमेय संख्या (irrational number) वह वास्तविक संख्या है जो परिमेय नहीं है, अर्थात् जिसे भिन्न p /q के रूप में व्यक्त नहीं किया जा सकता है, जहां p और q पूर्णांक हैं, जिसमें q गैर-शून्य है और इसलिए परिमेय संख्या नहीं है। अनौपचारिक रूप से, इसका मतलब है कि एक अपरिमेय संख्या को एक सरल भिन्न के रूप में प्रदर्शित नहीं किया जा सकता। उदाहरण के लिये २ का वर्गमूल, और पाई अपरिमेय संख्याएँ हैं। यह साबित हो सकता है कि अपरिमेय संख्याएं विशिष्ट रूप से ऐसी वास्तविक संख्याएं हैं जिन्हें समापक या सतत दशमलव के रूप में नहीं दर्शाया जा सकता है, हालांकि गणितज्ञ इसे परिभाषा के रूप में नहीं लेते हैं। कैंटर प्रमाण के परिणामस्वरूप कि वास्तविक संख्याएं अगणनीय हैं (और परिमेय गणनीय) यह मानता है कि लगभग सभी वास्तविक संख्याएं अपरिमेय हैं। शायद, सर्वाधिक प्रसिद्ध अपरिमेय संख्याएं हैं π, e और √२.

नई!!: भारतीय गणित और अपरिमेय संख्या · और देखें »

अरबी

अरबी बहुविकल्पी शब्द है जिस्का संबंध निम्नलिखित पृष्ठों से होता है। साहित्य और धर्म में-.

नई!!: भारतीय गणित और अरबी · और देखें »

अरबी भाषा

अरबी भाषा सामी भाषा परिवार की एक भाषा है। ये हिन्द यूरोपीय परिवार की भाषाओं से मुख़्तलिफ़ है, यहाँ तक कि फ़ारसी से भी। ये इब्रानी भाषा से सम्बन्धित है। अरबी इस्लाम धर्म की धर्मभाषा है, जिसमें क़ुरान-ए-शरीफ़ लिखी गयी है। .

नई!!: भारतीय गणित और अरबी भाषा · और देखें »

अल्गोरिद्म

महत्तम समापवर्तक (HCF) निकालने के लिए यूक्लिड के अल्गोरिद्म का फ्लोचार्ट गणित, संगणन तथा अन्य विधाओं में किसी कार्य को करने के लिये आवश्यक चरणों के समूह को कलन विधि (अल्गोरिद्म) कहते है। कलन विधि को किसी स्पष्ट रूप से पारिभाषित गणनात्मक समस्या का समाधान करने के औजार (tool) के रूप में भी समझा जा सकता है। उस समस्या का इनपुट और आउटपुट सामान्य भाषा में वर्णित किये गये रहते हैं; इसके समाधान के रूप में कलन विधि, क्रमवार ढंग से बताता है कि यह इन्पुट/आउटपुट सम्बन्ध किस प्रकार से प्राप्त किया जा सकता है। कुछ उदाहरण: १) कुछ संख्यायें बिना किसी क्रम के दी हुई हैं; इन्हें आरोही क्रम (ascending order) में कैसे सजायेंगे? २) दो पूर्णांक संख्याएं दी हुई हैं; उनका महत्तम समापवर्तक (Highest Common Factor) कैसे निकालेंगे ? .

नई!!: भारतीय गणित और अल्गोरिद्म · और देखें »

अष्टाध्यायी

अष्टाध्यायी (अष्टाध्यायी .

नई!!: भारतीय गणित और अष्टाध्यायी · और देखें »

अवकल गणित

गणित में अवकल गणित (differential calculus) कैलकुलस का उपभाग है जिसमें परिवर्तन की दर का अध्ययन किया जाता है। कैलकुलस का दूसरा उपभाग समाकलन गणित (इटीग्रल कैलकुलस) है।; अवकलज की परिभाषा f'(x).

नई!!: भारतीय गणित और अवकल गणित · और देखें »

अंतर्वेशन

अंतर्वेशन (इंटरपोलेशन / Interpolation) का अर्थ है किसी गणितीय सारणी में दिए हुए मानों के बीच वाले मानों को ज्ञात करना। अंग्रेजी शब्द इंटरपोलेशन का शाब्दिक अर्थ है - 'बीच में शब्द बढ़ाना' या किसी के वर्ग या समूह के बीच में उसी तरह की और कोई चीज बाहर से लाकर जमाना, बैठाना या लगाना।। .

नई!!: भारतीय गणित और अंतर्वेशन · और देखें »

अंकगणित

पुणे में आर्यभट की मूर्ति ४७६-५५० अंकगणित (ग्रीक मेंΑριθμητική, जर्मन मेंArithmetik, अंग्रेजी मेंArithmetic) गणित की तीन बड़ी शाखाओं में से एक है। अंकों तथा संख्याओं की गणनाओं से सम्बंधित गणित की शाखा को अंकगणित कहा जाता हैं। यह गणित की मौलिक शाखा है तथा इसी से गणित की प्रारम्भिक शिक्षा का आरम्भ होता है। प्रत्येक मनुष्य अपने दैनिक जीवन में प्रायः अंकगणित का उपयोग करता है। अंकगणित के अन्तर्गत जोड़, घटाना, गुणा, भाग, भिन्न, दशमलव आदि प्रक्रियाएँ आती हैं। .

नई!!: भारतीय गणित और अंकगणित · और देखें »

उपनिषद्

उपनिषद् हिन्दू धर्म के महत्त्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ हैं। ये वैदिक वाङ्मय के अभिन्न भाग हैं। इनमें परमेश्वर, परमात्मा-ब्रह्म और आत्मा के स्वभाव और सम्बन्ध का बहुत ही दार्शनिक और ज्ञानपूर्वक वर्णन दिया गया है। उपनिषदों में कर्मकांड को 'अवर' कहकर ज्ञान को इसलिए महत्व दिया गया कि ज्ञान स्थूल से सूक्ष्म की ओर ले जाता है। ब्रह्म, जीव और जगत्‌ का ज्ञान पाना उपनिषदों की मूल शिक्षा है। भगवद्गीता तथा ब्रह्मसूत्र उपनिषदों के साथ मिलकर वेदान्त की 'प्रस्थानत्रयी' कहलाते हैं। उपनिषद ही समस्त भारतीय दर्शनों के मूल स्रोत हैं, चाहे वो वेदान्त हो या सांख्य या जैन धर्म या बौद्ध धर्म। उपनिषदों को स्वयं भी वेदान्त कहा गया है। दुनिया के कई दार्शनिक उपनिषदों को सबसे बेहतरीन ज्ञानकोश मानते हैं। उपनिषद् भारतीय सभ्यता की विश्व को अमूल्य धरोहर है। मुख्य उपनिषद 12 या 13 हैं। हरेक किसी न किसी वेद से जुड़ा हुआ है। ये संस्कृत में लिखे गये हैं। १७वी सदी में दारा शिकोह ने अनेक उपनिषदों का फारसी में अनुवाद कराया। १९वीं सदी में जर्मन तत्त्ववेता शोपेनहावर और मैक्समूलर ने इन ग्रन्थों में जो रुचि दिखलाकर इनके अनुवाद किए वह सर्वविदित हैं और माननीय हैं। .

नई!!: भारतीय गणित और उपनिषद् · और देखें »

उपपत्ति

प्रकरण से प्रतिपादित अर्थ के साधन में जो युक्ति प्रस्तुत की जाती है उसे उपपत्ति कहते हैं- ज्ञान के साधन में उपपत्ति का महत्वपूर्ण स्थान है। आत्मज्ञान की प्राप्ति में जो तीन क्रमिक श्रेणियाँ उपनिषदों में बतलाई गई हैं उनमें मनन की सिद्धि उपपत्ति के ही द्वारा होती है। वेद के उपदेश को श्रुतिवाक्यों से प्रथमतः सुनना चाहिए (श्रवण) और तदनन्तर उनका मनन करना चाहिए (मनन)। युक्तियों के सहारे ही कोई तत्व दृढ़ और हृदयंगम बताया जा सकता है। बिना युक्ति के मनन निराधार रहता है और यह आत्मविश्वास नहीं उत्पन्न कर सकता। मनन की सिद्धि के अनंतर निदिध्यासन करने पर ही आत्मा की पूर्ण साधना निष्पन्न होती है। "मन्तव्यश्चोपपत्तिभिः" की व्याख्या में माथुरी उपपत्ति को हेतु का पर्याय मानती है। .

नई!!: भारतीय गणित और उपपत्ति · और देखें »

छन्दशास्त्र

छन्दः शास्त्र पिंगल द्वारा रचित छन्द का मूल ग्रन्थ है। यह सूत्रशैली में है और बिना भाष्य के अत्यन्त कठिन है। इस ग्रन्थ में पास्कल त्रिभुज का स्पष्ट वर्णन है। इस ग्रन्थ में इसे 'मेरु-प्रस्तार' कहा गया है। दसवीं शती में हलायुध ने इस पर 'मृतसंजीवनी' नामक भाष्य की रचना की। अन्य टीकाएं-.

नई!!: भारतीय गणित और छन्दशास्त्र · और देखें »

यहां पुनर्निर्देश करता है:

भारतीय गणितज्ञ

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »