सामग्री की तालिका
भविष्य पुराण
भविष्य पुराण १८ प्रमुख पुराणों में से एक है। इसकी विषय-वस्तु एवं वर्णन-शैलीकी दृष्टि से अत्यन्त उच्च कोटि का है। इसमें धर्म, सदाचार, नीति, उपदेश, अनेकों आख्यान, व्रत, तीर्थ, दान, ज्योतिष एवं आयुर्वेद के विषयों का अद्भुत संग्रह है। वेताल-विक्रम-संवाद के रूप में कथा-प्रबन्ध इसमें अत्यन्त रमणीय है। इसके अतिरिक्त इसमें नित्यकर्म, संस्कार, सामुद्रिक लक्षण, शान्ति तथा पौष्टिक कर्म आराधना और अनेक व्रतोंका भी विस्तृत वर्णन है। भविष्य पुराण में भविष्य में होने वाली घटनाओं का वर्णन है। इससे पता चलता है ईसा और मुहम्मद साहब के जन्म से बहुत पहले ही भविष्य पुराण में महर्षि वेद व्यास ने पुराण ग्रंथ लिखते समय मुस्लिम धर्म के उद्भव और विकास तथा ईसा मसीह तथा उनके द्वारा प्रारंभ किए गए ईसाई धर्म के विषय में लिख दिया था। यह पुराण भारतवर्ष के वर्तमान समस्त आधुनिक इतिहास का आधार है। इसके प्रतिसर्गपर्व के तृतीय तथा चतुर्थ खण्ड में इतिहासकी महत्त्वपूर्ण सामग्री विद्यमान है। इतिहास लेखकों ने प्रायः इसी का आधार लिया है। इसमें मध्यकालीन हर्षवर्धन आदि हिन्दू राजाओं और अलाउद्दीन, मुहम्मद तुगलक, तैमूरलंग, बाबर तथा अकबर आदि का प्रामाणिक इतिहास निरूपित है। इसके मध्यमपर्व में समस्त कर्मकाण्ड का निरूपण है। इसमें वर्णित व्रत और दान से सम्बद्ध विषय भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। इतने विस्तार से व्रतों का वर्णन न किसी पुराण, धर्मशास्त्र में मिलता है और न किसी स्वतन्त्र व्रत-संग्रह के ग्रन्थ में। हेमाद्रि, व्रतकल्पद्रुम, व्रतरत्नाकर, व्रतराज आदि परवर्ती व्रत-साहित्य में मुख्यरूप से भविष्यपुराण का ही आश्रय लिया गया है। भविष्य पुराण के अनुसार, इसके श्लोकों की संख्या पचास हजार के लगभग होनी चाहिए, परन्तु वर्तमान में कुल १४,००० श्लोक ही उपलब्ध हैं। विषय-वस्तु, वर्णनशैली तथा काव्य-रचना की द्रष्टि से भविष्यपुराण उच्चकोटि का ग्रन्थ है। इसकी कथाएँ रोचक तथा प्रभावोत्कपादक हैं। भविष्य पुराण में भगवान सूर्य नारायण की महिमा, उनके स्वरूप, पूजा उपासना विधि का विस्तार से उल्लेख किया गया है। इसीलिए इसे ‘सौर-पुराण’ या ‘सौर ग्रन्थ’ भी कहा गया है। .
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म्लेच्छ
म्लेच्छ प्राचीन भारत में दूसरे देशों से आये हुए लोगों को कहते थे जो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, और शूद्र से इतर थे। वैसे म्लेंच्छ का अर्थ होता है: नीच, दुराचारी, अत्याचारी, अनार्य(आर्य शब्द का उलट अर्थ अनार्य, और आर्य का अर्थ होता है कोई भी श्रेष्ठ आचरण वाले लोग) विदेश से आये हुए लोगों को म्लेंच्छ कहते थे क्योंकी वे कर्म से नीच थे और अत्याचारी थे। श्रेणी:प्राचीन भारतीय समाज.
देखें प्रद्योत वंश और म्लेच्छ
वायु पुराण
इस पुराण में शिव उपासना चर्चा अधिक होने के कारण इस को शिवपुराण का दूसरा अंग माना जाता है, फिर भी इसमें वैष्णव मत पर विस्तृत प्रतिपादन मिलता है। इसमें खगोल, भूगोल, सृष्टिक्रम, युग, तीर्थ, पितर, श्राद्ध, राजवंश, ऋषिवंश, वेद शाखाएं, संगीत शास्त्र, शिवभक्ति, आदि का सविस्तार निरूपण है। .
देखें प्रद्योत वंश और वायु पुराण
अवन्ति
अवन्ति प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों में से एक था। यह जनपद पश्चिमी और मध्य मालवा के क्षेत्र में बसा हुआ था जिसके दो भाग थे। उत्तरी अवन्ति जिसकी राजधानी उज्जयिनी थी तथा दक्षिणी अवन्ति जिसकी राजधानी महिष्मती थी। इन दोनों क्षेत्रो के बीच नेत्रावती नदी बहती थी। उज्जयिनी की पहचान मध्यप्रदेश के वर्तमान उज्जैन नगर से की जा सकती हैं। महावीर स्वामी तथा गौतम बुद्ध के समकालीन यहा के शासक चण्डप्रदयोत था। इसके प्रमुख नगर कुरारगढ, मक्करगढ एव सुदर्शनपुर थे। .
देखें प्रद्योत वंश और अवन्ति
यह भी देखें
भारत के राजवंश
- अराविदु राजवंश
- आदिल शाह सूरी
- उत्पल वंश
- ओडेयर राजवंश
- कत्यूरी राजवंश
- कदंब राजवंश
- कर्नाट वंश
- कलचुरि राजवंश
- काकतीय वंश
- कुषाण राजवंश
- कोच राजवंश
- खस (प्राचीन जाति)
- गुप्त राजवंश
- गुप्तवंश (मागध अथवा मालव वंश)
- चन्द राजवंश
- चालुक्य राजवंश
- चुटु राजवंश
- चेर
- चेर राजवंश
- चोड
- चोल राजवंश
- चौहान वंश
- तोमर वंश
- देवगिरि के यादव
- नद्दुल चाहमान राजवंश
- नारायण राजवंश
- पटवर्धन
- पश्चिम गंग वंश
- पश्चिमी क्षत्रप
- पूर्वी गंगवंश
- पूर्वी चालुक्य
- प्रतीच्य चालुक्य
- प्रद्योत वंश
- मदुरै नायक राजवंश
- मराठा साम्राज्य
- मैत्रक राजवंश
- मौखरि वंश
- राय वंश
- राष्ट्रकूट राजवंश
- वाकाटक
- सम्माँ राजवंश
- सिंधिया
- सेन राजवंश
- होलकर
मगध
- नंद वंश
- प्रद्योत वंश
- मगध महाजनपद
- मगध साम्राज्य
- मौर्य राजवंश
- शुंग राजवंश