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अंग (शारीरिकी)

सूची अंग (शारीरिकी)

जीवविज्ञान (biology) की दृष्टि से एक विशिष्ट कार्य करने वाले उत्तकों के समूह को अंग (organ) कहते हैं। .

24 संबंधों: तना, तन्त्रिका तन्त्र, तिल्ली, त्वचा, पत्ती, पुष्प, पेशीतन्त्र, फल, बीज, मस्तिष्क, मानव शारीरिकी, मानव का पाचक तंत्र, मानव कंकाल, मूत्राशय, योनि, शिश्न, हृदय, जड़ (वनस्पति), जीव विज्ञान, गुदा, गुर्दा, आँख, आमाशय (पेट), उत्सर्जन तन्त्र

तना

एक पौधे का तना पौधे का वह भाग जो भुमि के ऊपर भ्रूण के प्रांकुर से विकसित होकर पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण के विपरीत प्रकाश की ओर बढ़ता है, तना कहलाता है। इससे शाखाएँ, पत्ते, फूल और फल उत्पन्न होते हैं। .

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तन्त्रिका तन्त्र

मानव का '''तंत्रिकातंत्र''' जिस तन्त्र के द्वारा विभिन्न अंगों का नियंत्रण और अंगों और वातावरण में सामंजस्य स्थापित होता है उसे तन्त्रिका तन्त्र (Nervous System) कहते हैं। तंत्रिकातंत्र में मस्तिष्क, मेरुरज्जु और इनसे निकलनेवाली तंत्रिकाओं की गणना की जाती है। तन्त्रिका कोशिका, तन्त्रिका तन्त्र की रचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है। तंत्रिका कोशिका एवं इसकी सहायक अन्य कोशिकाएँ मिलकर तन्त्रिका तन्त्र के कार्यों को सम्पन्न करती हैं। इससे प्राणी को वातावरण में होने वाले परिवर्तनों की जानकारी प्राप्त होती तथा एककोशिकीय प्राणियों जैसे अमीबा इत्यादि में तन्त्रिका तन्त्र नहीं पाया जाता है। हाइड्रा, प्लेनेरिया, तिलचट्टा आदि बहुकोशिकीय प्राणियों में तन्त्रिका तन्त्र पाया जाता है। मनुष्य में सुविकसित तन्त्रिका तन्त्र पाया जाता है। .

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तिल्ली

प्लीहा या तिल्ली (Spleen) एक अंग है जो सभी रीढ़धारी प्राणियों में पाया जाता है। मानव में तिल्ली पेट में स्थित रहता है। यह पुरानी लाल रक्त कोशिकाओं को नष्ट करने का कार्य करता है तथा रक्त का संचित भंडार भी है। यह रोग निरोधक तंत्र का एक भाग है। प्लीहा शरीर की सबसे बड़ी वाहिनीहीन ग्रंथि (ductless gland) है, जो उदर के ऊपरी भाग में बाईं ओर आमाशय के पीछे स्थित रहती है। इसकी आंतरिक रचना संयोजी ऊतक (connective tissue) तथा स्वतंत्र पेशियों से होती है। इसके अंदर प्लीहावस्तु भरी रहती है, जिसमें बड़ी बड़ी प्लीहा कोशिकाएँ तथा जालक कोशिकाएँ रहती हैं। इनके अतिरिक्त रक्तकरण तथा लसीका कोशिकाएँ भी मिलती हैं। .

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त्वचा

त्वचा या त्वक् (skin) शरीर का बाह्य आवरण होती है जिसे बाह्यत्वचा (एपिडरमिस) भी कहते हैं। यह वेष्टन प्रणाली का सबसे बड़ा अंग है जो उपकला ऊतकों की कई परतों द्वारा निर्मित होती है और अंतर्निहित मांसपेशियों, अस्थियों, अस्थिबंध (लिगामेंट) और अन्य आंतरिक अंगों की रक्षा करती है। चूंकि यह सीधे वातावरण के संपर्क मे आती है, इसलिए त्वचा रोगजनकों के खिलाफ शरीर की सुरक्षा में एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके अन्य कार्यों मे जैसे तापावरोधन (इन्सुलेशन), तापमान विनियमन, संवेदना, विटामिन डी का संश्लेषण और विटामिन बी फोलेट का संरक्षण करती है। बुरी तरह से क्षतिग्रस्त त्वचा निशान ऊतक बना कर चंगा होने की कोशिश करती है। यह अक्सर रंगहीन और वर्णहीन होता है। मानव मे त्वचा का वर्ण प्रजाति के अनुसार बदलता है और त्वचा का प्रकार शुष्क से लेकर तैलीय हो सकता है। .

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पत्ती

पत्ती का चित्र पत्ती संवहनीय पादपों का एक अंग है। पत्तियाँ और तना सम्मिलित रूप से प्ररोह (shoot) बनाते हैं। पत्तियाँ पर्वसन्धियों से निकलती हैं। इनके कक्ष में एक कक्ष-कलिका होती है। पत्तियों में प्रकाश-संश्लेषण की महत्वपूर्ण क्रिया होती है। वाष्पोत्सर्जन की क्रिया भी पत्तियों में होती हैं। साधारणतः पत्तियाँ दो प्रकार की होती हैं, सरल पत्ती एवं संयुक्त पत्ती। कुछ प्रमुख पत्तियों का आकार .

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पुष्प

flower bouquet) पर चित्रकारी रेशम पर स्याही और रंग, १२ वीं शताब्दी की अंत-अंत में और १३ वीं शताब्दी के प्रारम्भ में. पुष्प, अथवा फूल, जनन संरचना है जो पौधों में पाए जाते हैं। ये (मेग्नोलियोफाईटा प्रकार के पौधों में पाए जाते हैं, जिसे एग्नियो शुक्राणु भी कहा जाता है। एक फूल की जैविक क्रिया यह है कि वह पुरूष शुक्राणु और मादा बीजाणु के संघ के लिए मध्यस्तता करे। प्रक्रिया परागन से शुरू होती है, जिसका अनुसरण गर्भधारण से होता है, जो की बीज के निर्माण और विखराव/ विसर्जन में ख़त्म होता है। बड़े पौधों के लिए, बीज अगली पुश्त के मूल रूप में सेवा करते हैं, जिनसे एक प्रकार की विशेष प्रजाति दुसरे भूभागों में विसर्जित होती हैं। एक पौधे पर फूलों के जमाव को पुष्पण (inflorescence) कहा जाता है। फूल-पौधों के प्रजनन अवयव के साथ-साथ, फूलों को इंसानों/मनुष्यों ने सराहा है और इस्तेमाल भी किया है, खासकर अपने माहोल को सजाने के लिए और खाद्य के स्रोत के रूप में भी। .

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पेशीतन्त्र

सामने की पेशियाँ पीछे की पेशियाँ पेशीतंत्र (मस्क्युलर सिस्टम) में केवल ऐच्छिक पेशियों की गणना की जाती है, जो अस्थियों पर लगी हुई हैं तथा जिनके संकुचन से अंगों की गति होती है और शरीर हिल-डुल तथा चल सकता है। पेशी एक अस्थि से निकलती है, जो उसका मूलबंध कहलाता है और दूसरी अस्थि पर कंडरा द्वारा लगती है, जो उसका चेष्टाबिंदु होता है। कुछ ऐसी भी पेशियाँ हैं, जो कलावितान (aponeurosis) में लगती है। दोनों के बीच में लंगे लंबे मांससूत्र रहते हें, जिनकी संख्या बीच के भाग में अधिक होती है। जब पेशी संकुचन करती है तब खिंचाव होता है और जिस अस्थि पर उसका चेष्टाबिंदु होता है वह खिच कर दूसरी अस्थि के पास या उससे दूर चली जाती है। यह पेशी की स्थिति पर निर्भर करता है, किंतु संकुचन का रूप, अर्थात्‌ पेशीसूत्रों में होनेवाले रासायनिक तथा विद्युत्परिवर्तनों या क्रियाओं का रूप, एक समान होता है। शरीर की सभी अस्थियाँ (करोटि की आभ्यंतर अस्थियों को छोड़कर) ऐच्छिक पेशियों से छाई हुई हैं। इन पेशियों के समूह बन गए हैं। प्रत्येक क्रिया एक समूह के संकुचन का परिणाम होती है। केवल एक पेशी संकुचन नहीं करती। छोटी से छोटी क्रिया में एक या कई समूह काम करते हैं। ये क्रियाएँ विस्तार (extension), आकुंचन (flexion), अभिवर्तन (adduction), अपवर्तन (abduction) और घूर्णन (rotation) होती है। पर्यावर्तन (circumduction) गति इन क्रियाओं का सामूहिक फल होता है। उत्तानन (supination) और अवतानन (pronation) क्रिया करनेवाली पेशियाँ केवल अग्रबाहु में स्थित हैं। शरीर की पेशियों का नीचे संक्षेप में वर्णन किया जाता है। .

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फल

फल और सब्ज़ियाँ निषेचित, परिवर्तित एवं परिपक्व अंडाशय को फल कहते हैं। साधारणतः फल का निर्माण फूल के द्वारा होता है। फूल का स्त्री जननकोष अंडाशय निषेचन की प्रक्रिया द्वारा रूपान्तरित होकर फल का निर्माण करता है। कई पादप प्रजातियों में, फल के अंतर्गत पक्व अंडाशय के अतिरिक्त आसपास के ऊतक भी आते है। फल वह माध्यम है जिसके द्वारा पुष्पीय पादप अपने बीजों का प्रसार करते हैं, हालांकि सभी बीज फलों से नहीं आते। किसी एक परिभाषा द्वारा पादपों के फलों के बीच में पायी जाने वाली भारी विविधता की व्याख्या नहीं की जा सकती है। छद्मफल (झूठा फल, सहायक फल) जैसा शब्द, अंजीर जैसे फलों या उन पादप संरचनाओं के लिए प्रयुक्त होता है जो फल जैसे दिखते तो है पर मूलत: उनकी उत्पप्ति किसी पुष्प या पुष्पों से नहीं होती। कुछ अनावृतबीजी, जैसे कि यूउ के मांसल बीजचोल फल सदृश होते है जबकि कुछ जुनिपरों के मांसल शंकु बेरी जैसे दिखते है। फल शब्द गलत रूप से कई शंकुधारी वृक्षों के बीज-युक्त मादा शंकुओं के लिए भी होता है। .

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बीज

विभिन्न पौधों के बीज बीज की परिभाषा बीज एक परिपक्व बीजाण्ड है,जो निषेचन के बाद क्रियाशिल होता है,बीज उचित परिस्थितिया जैसे जल,वायु,सूर्य प्रकास आदि मिलने पर क्रियाशिल होता है। .

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मस्तिष्क

मानव मस्तिष्क मस्तिष्क जन्तुओं के केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का नियंत्रण केन्द्र है। यह उनके आचरणों का नियमन एंव नियंत्रण करता है। स्तनधारी प्राणियों में मस्तिष्क सिर में स्थित होता है तथा खोपड़ी द्वारा सुरक्षित रहता है। यह मुख्य ज्ञानेन्द्रियों, आँख, नाक, जीभ और कान से जुड़ा हुआ, उनके करीब ही स्थित होता है। मस्तिष्क सभी रीढ़धारी प्राणियों में होता है परंतु अमेरूदण्डी प्राणियों में यह केन्द्रीय मस्तिष्क या स्वतंत्र गैंगलिया के रूप में होता है। कुछ जीवों जैसे निडारिया एंव तारा मछली में यह केन्द्रीभूत न होकर शरीर में यत्र तत्र फैला रहता है, जबकि कुछ प्राणियों जैसे स्पंज में तो मस्तिष्क होता ही नही है। उच्च श्रेणी के प्राणियों जैसे मानव में मस्तिष्क अत्यंत जटिल होते हैं। मानव मस्तिष्क में लगभग १ अरब (१,००,००,००,०००) तंत्रिका कोशिकाएं होती है, जिनमें से प्रत्येक अन्य तंत्रिका कोशिकाओं से १० हजार (१०,०००) से भी अधिक संयोग स्थापित करती हैं। मस्तिष्क सबसे जटिल अंग है। मस्तिष्क के द्वारा शरीर के विभिन्न अंगो के कार्यों का नियंत्रण एवं नियमन होता है। अतः मस्तिष्क को शरीर का मालिक अंग कहते हैं। इसका मुख्य कार्य ज्ञान, बुद्धि, तर्कशक्ति, स्मरण, विचार निर्णय, व्यक्तित्व आदि का नियंत्रण एवं नियमन करना है। तंत्रिका विज्ञान का क्षेत्र पूरे विश्व में बहुत तेजी से विकसित हो रहा है। बडे-बड़े तंत्रिकीय रोगों से निपटने के लिए आण्विक, कोशिकीय, आनुवंशिक एवं व्यवहारिक स्तरों पर मस्तिष्क की क्रिया के संदर्भ में समग्र क्षेत्र पर विचार करने की आवश्यकता को पूरी तरह महसूस किया गया है। एक नये अध्ययन में निष्कर्ष निकाला गया है कि मस्तिष्क के आकार से व्यक्तित्व की झलक मिल सकती है। वास्तव में बच्चों का जन्म एक अलग व्यक्तित्व के रूप में होता है और जैसे जैसे उनके मस्तिष्क का विकास होता है उसके अनुरुप उनका व्यक्तित्व भी तैयार होता है। मस्तिष्क (Brain), खोपड़ी (Skull) में स्थित है। यह चेतना (consciousness) और स्मृति (memory) का स्थान है। सभी ज्ञानेंद्रियों - नेत्र, कर्ण, नासा, जिह्रा तथा त्वचा - से आवेग यहीं पर आते हैं, जिनको समझना अर्थात् ज्ञान प्राप्त करना मस्तिष्क का काम्र है। पेशियों के संकुचन से गति करवाने के लिये आवेगों को तंत्रिकासूत्रों द्वारा भेजने तथा उन क्रियाओं का नियमन करने के मुख्य केंद्र मस्तिष्क में हैं, यद्यपि ये क्रियाएँ मेरूरज्जु में स्थित भिन्न केन्द्रो से होती रहती हैं। अनुभव से प्राप्त हुए ज्ञान को सग्रह करने, विचारने तथा विचार करके निष्कर्ष निकालने का काम भी इसी अंग का है। .

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मानव शारीरिकी

नर और मादा मानव शरीरों की ऊपरी विशेषताएँ वयस्क मानव (स्त्री तथा पुरूष) के शरीर की संरचना (morphology) का वैज्ञानिक अध्ययन, मानव शरीर-रचना विज्ञान या मानव शारीरिकी (human anatomy) के अन्तर्गत किया जाता है। मानव शरीर कई तन्त्रों से बना है। तंत्र, कई अंगों से मिलकर बनते हैं। अंग, भिन्न-भिन्न प्रकार के ऊतकों से बने होते हैं। ऊतक, कोशिकाओं से बने होते हैं। .

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मानव का पाचक तंत्र

मानव का पाचन-तन्त्र मानव के पाचन तंत्र में एक आहार-नाल और सहयोगी ग्रंथियाँ (यकृत, अग्न्याशय आदि) होती हैं। आहार-नाल, मुखगुहा, ग्रसनी, ग्रसिका, आमाशय, छोटी आंत, बड़ी आंत, मलाशय और मलद्वार से बनी होती है। सहायक पाचन ग्रंथियों में लार ग्रंथि, यकृत, पित्ताशय और अग्नाशय हैं। .

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मानव कंकाल

मानव कंकाल शरीर की आन्तरिक संरचना होती है। यह जन्म के समय २७० हड्डियों से बना होता है और युवावस्था में कुछ हड्डियों के संगलित होने से यह २०६ तक सीमित हो जाती है। तंत्रिका में हड्डियों का द्रव्यमान ३० वर्ष की आयु के लगभग अपने अधिकतम घनत्व पर पहुँचती है। मानव कंकाल को अक्षीय कंकाल और उपांगी कंकाल में विभाजित किया जाता है। अक्षीय कंकाल मेरूदण्ड, पसली पिंजर और खोपड़ी से मिलकर बना होता है। उपांगी कंकाल अक्षीय कंकाल से जुड़ा हुआ होता है तथा अंस मेखला, श्रोणि मेखला और अधः पाद एवं ऊपरी पाद की हड्डियों से मिलकर बना होता है। मानव कंकाल निम्नलिखित छः कार्य करता है: उपजीवन, गति, रक्षण, रुधिर कणिकाओं का निर्माण, आयनों का भंडारण और अंत: स्रावी विनियमन। मानव कंकाल अन्य प्रजातियों के समान लैंगिक द्विरूपता नहीं रखता लेकिन मस्तिष्क, दंत विन्यास, लम्बी हड्डियों और श्रोणियों में आकीरिकी के अनुसार अल्प अन्तर होता है। सामान्यतः महिला कंकाल के अवयवों उसी तरह के पुरुषों की की तुलना में कुछ मात्रा में छोटे और कम मजबूत होते हैं। अन्य प्राणियों से भिन्न, मानव पुरुष का लिंग स्तंभास्थि रहित होता है।Patterns of Sexual Behavior Clellan S. Ford and Frank A. Beach, published by Harper & Row, New York in 1951.

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मूत्राशय

मूत्राशय शरीर रचना विज्ञान मूत्राशय (urinary bladder) वह आन्तरिक अंग है जो मूत्र विसर्जन के पहले वृक्कों द्वारा निर्मित मूत्र को इकट्ठा रखता है। .

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योनि

मादा के जननांग को योनि (वेजाइना) कहा जाता है। इसके पर्यायवाची शब्द भग, आदि हैं। सामान्य तौर पर "योनि" शब्द का प्रयोग अक्सर भग के लिये किया जाता है, लेकिन जहाँ भग बाहर से दिखाई देने वाली संरचना है वहीं योनि एक विशिष्ट आंतरिक संरचना है। .

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शिश्न

शिश्न की संरचना: 1 — मूत्राशय, 2 — जघन संधान, 3 — पुरस्थ ग्रन्थि, 4 — कोर्पस कैवर्नोसा, 5 — शिश्नमुंड, 6 — अग्रत्वचा, 7 — कुहर (मूत्रमार्ग), 8 — वृषणकोष, 9 — वृषण, 10 — अधिवृषण, 11— शुक्रवाहिनी शिश्न (Penis) कशेरुकी और अकशेरुकी दोनो प्रकार के कुछ नर जीवों का एक बाह्य यौन अंग है। तकनीकी रूप से शिश्न मुख्यत: स्तनधारी जीवों में प्रजनन हेतु एक प्रवेशी अंग है, साथ ही यह मूत्र निष्कासन हेतु एक बाहरी अंग के रूप में भी कार्य करता है। शिश्न आमतौर स्तनधारी जीवों और सरीसृपों में पाया जाता है। हिन्दी में शिश्न को लिंग भी कहते हैं पर, इन दोनो शब्दों के प्रयोग में अंतर होता है, जहाँ शिश्न का प्रयोग वैज्ञानिक और चिकित्सीय संदर्भों में होता है वहीं लिंग का प्रयोग आध्यात्म और धार्मिक प्रयोगों से संबंद्ध है। दूसरे अर्थो में लिंग शब्द, किसी व्यक्ति के पुरुष (नर) या स्त्री (मादा) होने का बोध भी कराता है। हिन्दी में सभी संज्ञायें या तो पुल्लिंग या फिर स्त्रीलंग होती हैं। .

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हृदय

कोरोनरी धमनियों के साथ मानव हृदय. हृदय या हिया या दिल एक पेशीय (muscular) अंग है, जो सभी कशेरुकी (vertebrate) जीवों में आवृत ताल बद्ध संकुचन के द्वारा रक्त का प्रवाह शरीर के सभी भागो तक पहुचाता है। कशेरुकियों का ह्रदय हृद पेशी (cardiac muscle) से बना होता है, जो एक अनैच्छिक पेशी (involuntary muscle) ऊतक है, जो केवल ह्रदय अंग में ही पाया जाता है। औसतन मानव ह्रदय एक मिनट में ७२ बार धड़कता है, जो (लगभग ६६वर्ष) एक जीवन काल में २.५ बिलियन बार धड़कता है। इसका भार औसतन महिलाओं में २५० से ३०० ग्राम और पुरुषों में ३०० से ३५० ग्राम होता है। .

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जड़ (वनस्पति)

आम के वृक्ष का जड़ पौधे का वह भाग जो जमीन के अन्दर मुलांकुर से विकसित होकर प्रवेश करता है तथा प्रकाश के विपरीत जाता है, जड़ या मूल (root) कहलाता है। .

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जीव विज्ञान

जीवविज्ञान भांति-भांति के जीवों का अध्ययन करता है। जीवविज्ञान प्राकृतिक विज्ञान की तीन विशाल शाखाओं में से एक है। यह विज्ञान जीव, जीवन और जीवन के प्रक्रियाओं के अध्ययन से सम्बन्धित है। इस विज्ञान में हम जीवों की संरचना, कार्यों, विकास, उद्भव, पहचान, वितरण एवं उनके वर्गीकरण के बारे में पढ़ते हैं। आधुनिक जीव विज्ञान एक बहुत विस्तृत विज्ञान है, जिसकी कई शाखाएँ हैं। 'बायलोजी' (जीवविज्ञान) शब्द का प्रयोग सबसे पहले लैमार्क और ट्रविरेनस नाम के वैज्ञानिको ने १८०२ ई० में किया। जिन वस्तुओं की उत्पत्ति किसी विशेष अकृत्रिम जातीय प्रक्रिया के फलस्वरूप होती है, जीव कहलाती हैं। इनका एक परिमित जीवनचक्र होता है। हम सभी जीव हैं। जीवों में कुछ मौलिक प्रक्रियाऐं होती हैं.

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गुदा

पुरुष की गुदा मलाशय एवं गुदा जीवों के पाचन तंत्र के अन्तिम छोर के द्वार (छेद) को गुदा (anus) कहते हैं। इसका कार्य मल निष्कासन का नियंत्रण करना है। .

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गुर्दा

वृक्क या गुर्दे का जोड़ा एक मानव अंग हैं, जिनका प्रधान कार्य मूत्र उत्पादन (रक्त शोधन कर) करना है। गुर्दे बहुत से वर्टिब्रेट पशुओं में मिलते हैं। ये मूत्र-प्रणाली के अंग हैं। इनके द्वारा इलेक्त्रोलाइट, क्षार-अम्ल संतुलन और रक्तचाप का नियामन होता है। इनका मल स्वरुप मूत्र कहलाता है। इसमें मुख्यतः यूरिया और अमोनिया होते हैं। गुर्दे युग्मित अंग होते हैं, जो कई कार्य करते हैं। ये अनेक प्रकार के पशुओं में पाये जाते हैं, जिनमें कशेरुकी व कुछ अकशेरुकी जीव शामिल हैं। ये हमारी मूत्र-प्रणाली का एक आवश्यक भाग हैं और ये इलेक्ट्रोलाइट नियंत्रण, अम्ल-क्षार संतुलन, व रक्तचाप नियंत्रण आदि जैसे समस्थिति (homeostatic) कार्य भी करते है। ये शरीर में रक्त के प्राकृतिक शोधक के रूप में कार्य करते हैं और अपशिष्ट को हटाते हैं, जिसे मूत्राशय की ओर भेज दिया जाता है। मूत्र का उत्पादन करते समय, गुर्दे यूरिया और अमोनियम जैसे अपशिष्ट पदार्थ उत्सर्जित करते हैं; गुर्दे जल, ग्लूकोज़ और अमिनो अम्लों के पुनरवशोषण के लिये भी ज़िम्मेदार होते हैं। गुर्दे हार्मोन भी उत्पन्न करते हैं, जिनमें कैल्सिट्रिओल (calcitriol), रेनिन (renin) और एरिथ्रोपिटिन (erythropoietin) शामिल हैं। औदरिक गुहा के पिछले भाग में रेट्रोपेरिटोनियम (retroperitoneum) में स्थित गुर्दे वृक्कीय धमनियों के युग्म से रक्त प्राप्त करते हैं और इसे वृक्कीय शिराओं के एक जोड़े में प्रवाहित कर देते हैं। प्रत्येक गुर्दा मूत्र को एक मूत्रवाहिनी में उत्सर्जित करता है, जो कि स्वयं भी मूत्राशय में रिक्त होने वाली एक युग्मित संरचना होती है। गुर्दे की कार्यप्रणाली के अध्ययन को वृक्कीय शरीर विज्ञान कहा जाता है, जबकि गुर्दे की बीमारियों से संबंधित चिकित्सीय विधा मेघविज्ञान (nephrology) कहलाती है। गुर्दे की बीमारियां विविध प्रकार की हैं, लेकिन गुर्दे से जुड़ी बीमारियों के रोगियों में अक्सर विशिष्ट चिकित्सीय लक्षण दिखाई देते हैं। गुर्दे से जुड़ी आम चिकित्सीय स्थितियों में नेफ्राइटिक और नेफ्रोटिक सिण्ड्रोम, वृक्कीय पुटी, गुर्दे में तीक्ष्ण घाव, गुर्दे की दीर्घकालिक बीमारियां, मूत्रवाहिनी में संक्रमण, वृक्कअश्मरी और मूत्रवाहिनी में अवरोध उत्पन्न होना शामिल हैं। गुर्दे के कैंसर के अनेक प्रकार भी मौजूद हैं; सबसे आम वयस्क वृक्क कैंसर वृक्क कोशिका कर्कट (renal cell carcinoma) है। कैंसर, पुटी और गुर्दे की कुछ अन्य अवस्थाओं का प्रबंधन गुर्दे को निकाल देने, या वृक्कुच्छेदन (nephrectomy) के द्वारा किया जा सकता है। जब गुर्दे का कार्य, जिसे केशिकागुच्छीय शुद्धिकरण दर (glomerular filtration rate) के द्वारा नापा जाता है, लगातार बुरी हो, तो डायालिसिस और गुर्दे का प्रत्यारोपण इसके उपचार के विकल्प हो सकते हैं। हालांकि, पथरी बहुत अधिक हानिकारक नहीं होती, लेकिन यह भी दर्द और समस्या का कारण बन सकती है। पथरी को हटाने की प्रक्रिया में ध्वनि तरंगों द्वारा उपचार शामिल है, जिससे पत्थर को छोटे टुकड़ों में तोड़कर मूत्राशय के रास्ते बाहर निकाल दिया जाता है। कमर के पिछले भाग के मध्यवर्ती/पार्श्विक खण्डों में तीक्ष्ण दर्द पथरी का एक आम लक्षण है। .

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आँख

मानव आँख का पास से लिया गया चित्र मानव नेत्र का योजनात्मक आरेख आँख या नेत्र जीवधारियों का वह अंग है जो प्रकाश के प्रति संवेदनशील है। यह प्रकाश को संसूचित करके उसे तंत्रिका कोशिकाओ द्वारा विद्युत-रासायनिक संवेदों में बदल देता है। उच्चस्तरीय जन्तुओं की आँखें एक जटिल प्रकाशीय तंत्र की तरह होती हैं जो आसपास के वातावरण से प्रकाश एकत्र करता है; मध्यपट के द्वारा आंख में प्रवेश करने वाले प्रकाश की तीव्रता का नियंत्रण करता है; इस प्रकाश को लेंसों की सहायता से सही स्थान पर केंद्रित करता है (जिससे प्रतिबिम्ब बनता है); इस प्रतिबिम्ब को विद्युत संकेतों में बदलता है; इन संकेतों को तंत्रिका कोशिकाओ के माध्यम से मस्तिष्क के पास भेजता है। .

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आमाशय (पेट)

कशेरुकी, एकाइनोडर्मेटा वंशीय जंतु, कीट (आद्यमध्यांत्र) और मोलस्क सहित, कुछ जंतुओं में, आमाशय एक पेशीय, खोखला, पोषण नली का फैला हुआ भाग है जो पाचन नली के प्रमुख अंग के रूप में कार्य करता है। यह चर्वण (चबाना) के बाद, पाचन के दूसरे चरण में शामिल होता है। आमाशय, ग्रास नली और छोटी आंत के बीच में स्थित होता है। यह छोटी आंतों में आंशिक रूप से पचे भोजन (अम्लान्न) को भेजने से पहले, अबाध पेशी ऐंठन के माध्यम से भोजन के पाचन में सहायता के लिए प्रोटीन-पाचक प्रकिण्व(एन्ज़ाइम) और तेज़ अम्लों को स्रावित करता है (जो ग्रासनलीय पुरःसरण के ज़रिए भेजा जाता है).

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उत्सर्जन तन्त्र

गुर्दे महत्वपूर्ण अंग है कि कई कार्य किया है।.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

शारीरिक अंग, अंग (शरीर रचना)

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