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मानव शारीरिकी

सूची मानव शारीरिकी

नर और मादा मानव शरीरों की ऊपरी विशेषताएँ वयस्क मानव (स्त्री तथा पुरूष) के शरीर की संरचना (morphology) का वैज्ञानिक अध्ययन, मानव शरीर-रचना विज्ञान या मानव शारीरिकी (human anatomy) के अन्तर्गत किया जाता है। मानव शरीर कई तन्त्रों से बना है। तंत्र, कई अंगों से मिलकर बनते हैं। अंग, भिन्न-भिन्न प्रकार के ऊतकों से बने होते हैं। ऊतक, कोशिकाओं से बने होते हैं। .

7 संबंधों: ऊतक, तन्त्र, मानव शरीर, मानव कार्यिकी, शारीरिकी, वयस्क, अंग

ऊतक

ऊतक (tissue) किसी जीव के शरीर में कोशिकाओं के ऐसे समूह को कहते हैं जिनकी उत्पत्ति एक समान हो तथा वे एक विशेष कार्य करती हो। अधिकांशतः ऊतको का आकार एंव आकृति एक समान होती है। परंतु कभी कभी कुछ उतकों के आकार एंव आकृति में असमानता पाई जाती है, मगर उनकी उत्पत्ति एंव कार्य समान ही होते हैं। कोशिकाएँ मिलकर ऊतक का निर्माण करती हैं। ऊतक के अध्ययन को ऊतक विज्ञान (Histology) के रूप में जाना जाता है। .

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तन्त्र

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से सम्बन्धित तंत्र या प्रणाली या सिस्टम के बारे में तंत्र (सिस्टम) देखें। ---- तन्त्र कलाएं (ऊपर से, दक्षिणावर्त): हिन्दू तांत्रिक देवता, बौद्ध तान्त्रिक देवता, जैन तान्त्रिक चित्र, कुण्डलिनी चक्र, एक यंत्र एवं ११वीं शताब्दी का सैछो (तेन्दाई तंत्र परम्परा का संस्थापक तन्त्र, परम्परा से जुड़े हुए आगम ग्रन्थ हैं। तन्त्र शब्द के अर्थ बहुत विस्तृत है। तन्त्र-परम्परा एक हिन्दू एवं बौद्ध परम्परा तो है ही, जैन धर्म, सिख धर्म, तिब्बत की बोन परम्परा, दाओ-परम्परा तथा जापान की शिन्तो परम्परा में पायी जाती है। भारतीय परम्परा में किसी भी व्यवस्थित ग्रन्थ, सिद्धान्त, विधि, उपकरण, तकनीक या कार्यप्रणाली को भी तन्त्र कहते हैं। हिन्दू परम्परा में तन्त्र मुख्यतः शाक्त सम्प्रदाय से जुड़ा हुआ है, उसके बाद शैव सम्प्रदाय से, और कुछ सीमा तक वैष्णव परम्परा से भी। शैव परम्परा में तन्त्र ग्रन्थों के वक्ता साधारणतयः शिवजी होते हैं। बौद्ध धर्म का वज्रयान सम्प्रदाय अपने तन्त्र-सम्बन्धी विचारों, कर्मकाण्डों और साहित्य के लिये प्रसिद्ध है। तन्त्र का शाब्दिक उद्भव इस प्रकार माना जाता है - “तनोति त्रायति तन्त्र”। जिससे अभिप्राय है – तनना, विस्तार, फैलाव इस प्रकार इससे त्राण होना तन्त्र है। हिन्दू, बौद्ध तथा जैन दर्शनों में तन्त्र परम्परायें मिलती हैं। यहाँ पर तन्त्र साधना से अभिप्राय "गुह्य या गूढ़ साधनाओं" से किया जाता रहा है। तन्त्रों को वेदों के काल के बाद की रचना माना जाता है जिसका विकास प्रथम सहस्राब्दी के मध्य के आसपास हुआ। साहित्यक रूप में जिस प्रकार पुराण ग्रन्थ मध्ययुग की दार्शनिक-धार्मिक रचनायें माने जाते हैं उसी प्रकार तन्त्रों में प्राचीन-अख्यान, कथानक आदि का समावेश होता है। अपनी विषयवस्तु की दृष्टि से ये धर्म, दर्शन, सृष्टिरचना शास्त्र, प्राचीन विज्ञान आदि के इनसाक्लोपीडिया भी कहे जा सकते हैं। यूरोपीय विद्वानों ने अपने उपनिवीशवादी लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए तन्त्र को 'गूढ़ साधना' (esoteric practice) या 'साम्प्रदायिक कर्मकाण्ड' बताकर भटकाने की कोशिश की है। वैसे तो तन्त्र ग्रन्थों की संख्या हजारों में है, किन्तु मुख्य-मुख्य तन्त्र 64 कहे गये हैं। तन्त्र का प्रभाव विश्व स्तर पर है। इसका प्रमाण हिन्दू, बौद्ध, जैन, तिब्बती आदि धर्मों की तन्त्र-साधना के ग्रन्थ हैं। भारत में प्राचीन काल से ही बंगाल, बिहार और राजस्थान तन्त्र के गढ़ रहे हैं। .

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मानव शरीर

मानव शरीर मानव शरीर एक मानव जीव की संपूर्ण संरचना है, जिसमें एक सिर, गर्दन, धड़, दो हाथ और दो पैर होते हैं। किसी मानव के वयस्क होने तक उसका शरीर लगभग 50 ट्रिलियन कोशिकाओं, जो कि जीवन की आधारभूत इकाई हैं, से मिल कर बना होता है। इन कोशिकाओं के जीववैज्ञानिक संगठन से अंतत: पूरे शरीर की रचना होती है। .

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मानव कार्यिकी

मानव हृदय स्वस्थ मानव, उसके अंगों तथा कोशिकाओं के यांत्रिक, भौतिक, जैवविद्युत, तथा जैवरासायनिक कार्यों का वैज्ञानिक अध्ययन 'मानव कार्यिकी' (Human physiology) कहलाता है। .

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शारीरिकी

अंगूठाकार शारीरिकी, शारीर या शरीररचना-विज्ञान (अंग्रेजी:Anatomy), जीव विज्ञान और आयुर्विज्ञान की एक शाखा है जिसके अंतर्गत किसी जीवित (चल या अचल) वस्तु का विच्छेदन कर, उसके अंग प्रत्यंग की रचना का अध्ययन किया जाता है। अचल में वनस्पतिजगत तथा चल में प्राणीजगत का समावेश होता है और वनस्पति और प्राणी के संदर्भ में इसे क्रमश: पादप शारीरिकी और जीव शारीरिकी कहा जाता है। जब किसी विशेष प्राणी अथवा वनस्पति की शरीररचना का अध्ययन किया जाता है, तब इसे विशेष शारीरिकी (अंग्रेजी:Special Anatomy) अध्ययन कहते हैं। जब किसी प्राणी या वनस्पति की शरीररचना की तुलना किसी दूसरे प्राणी अथवा वनस्पति की शरीररचना से की जाती है उस स्थिति में यह अध्ययन तुलनात्मक शारीरिकी (अंग्रेजी:Comparative Anatomy) कहलाता है। जब किसी प्राणी के अंगों की रचना का अध्ययन किया जाता है, तब यह आंगिक शारीरिकी (अंग्रेजी:Regional Anatomy) कहलाती है। .

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वयस्क

वयस्क (या बालिग) शब्द के तीन भिन्न अर्थ होते है। पहला: यह एक पूर्ण विकसित व्यक्ति को दर्शाता है, दूसरा: यह एक पौधे या जानवर को भी इंगित करता है जिसने पूर्ण विकास कर लिया हो (बडा़ हो गया हो) तीसरा: किसी काम के लिये व्यक्ति ने एक कानूनी उम्र प्राप्त कर ली हो (जैसे भारत में व्यस्क प्रमाणपत्र मिली फिल्म को देखने के लिये व्यक्ति को 18 वर्ष का होना अनिवार्य है)। यह नाबालिग का विलोम होता है। वयस्कता को जीव विज्ञान, मनोवैज्ञानिक वयस्क विकास, कानून, व्यक्तिगत चरित्र, या सामाजिक स्थिति के संदर्भ में परिभाषित किया जा सकता है। वयस्कता के यह विभिन्न पहलु अक्सर असंगत और विरोधाभासी होते हैं। एक व्यक्ति जीव विज्ञान के अनुसार एक वयस्क, हो सकता है और उसके शारीरिक और व्यवहार संबंधी लक्षण भी वयस्को वाले हो सकते हैं लेकिन फिर भी उसे बच्चा माना जाएगा, क्योंकि उसने एक कानूनी उम्र नहीं प्राप्त की है। इसके विपरीत एक व्यक्ति कानूनी तौर पर एक वयस्क हो सकता है भले ही उसमे वयस्क चरित्र को परिभाषित करने वाली परिपक्वता और जिम्मेदारी का कोई भी लक्षण ना हो। *.

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अंग

* अंग महाजनपद.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

मानव शरीर रचना विज्ञान, मानव का शरीर रचना विज्ञान

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