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केरल अनूपझीलें

सूची केरल अनूपझीलें

केरल अनूपझीलें या केरल बैकवॉटर्स भारत के दक्षिण में स्थित केरल राज्य में अरब सागर से सामांतर कुछ दूरी पर स्थित खारी अनूप झीलों और झीलों की एक शृंखला है। इसमें प्राकृतिक और कृत्रिम नहरों द्वारा जुड़ी हुई पाँच बड़ी झीलें हैं जिनमें ३८ नदियाँ जल लाती हैं। यह केरल की उत्तर-दक्षिण लम्बाई के लगभग आधे भाग पर विस्तृत है। केरल अनूपझीलें पश्चिमी घाट से उतरती हुई नदियों के नदीमुखों के सामने समुद्री लहरों व ज्वार-भाटा के प्रभाव से बने बाधा द्वीपों के पीछे बन गई हैं। केरल अनूपझील क्षेत्र में नहरों, झीलों, नदियों और समुद्री क्षेत्रों पर विस्तृत ९०० किलोमीटर से अधिक जलमार्ग हैं। यहाँ जल के किनारे कई गाँव और नगर बसे हुए हैं जहाँ से पर्यटक इन अनूपझीलों का आनंद लेने आते हैं। भारत का राष्ट्रीय जलमार्ग ३ यहाँ कोल्लम से कोट्टापुरम तक २०५ किमी तय करता है और दक्षिणी केरल में तट के साथ-साथ समानांतर चलता है। यह माल-वहन और पर्यटन के लिये महत्वपूर्ण है।Ayub, Akber (ed), Kerala: Maps & More, Backwaters, 2006 edition 2007 reprint, pp.

25 संबंधों: ऊदबिलाव, झील, डार्टर, डेल्टा, ताड़, पश्चिमी घाट, पारितंत्र, पंकलंघी, बाधा द्वीप, भारत, मेंढक, सागर (जलनिकाय), सिंचाई, जलकाक, जाति (जीवविज्ञान), ज्वार-भाटा, किंगफिशर, कछुआ, केतकी, केरल, केकड़ा, कोल्लम, अनूप झील, अरब सागर, अष्टमुडी झील

ऊदबिलाव

ऊदबिलाव (अंग्रेज़ी: Otter) एक अर्धजलीय (जल और स्थल में समय बांटने वाला) स्तनधारी जानवर है। यह एक मांसाहारी प्राणी है। इसकी 13 ज्ञात जातियाँ हैं। ऑस्ट्रेलिया और अन्टार्कटिका को छोड़कर ऊदबिलाव बाक़ी सभी महाद्वीपों पर मिलते हैं।, Michael Leach, pp.

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झील

एक अनूप झील बैकाल झील झील जल का वह स्थिर भाग है जो चारो तरफ से स्थलखंडों से घिरा होता है। झील की दूसरी विशेषता उसका स्थायित्व है। सामान्य रूप से झील भूतल के वे विस्तृत गड्ढे हैं जिनमें जल भरा होता है। झीलों का जल प्रायः स्थिर होता है। झीलों की एक महत्वपूर्ण विशेषता उनका खारापन होता है लेकिन अनेक झीलें मीठे पानी की भी होती हैं। झीलें भूपटल के किसी भी भाग पर हो सकती हैं। ये उच्च पर्वतों पर मिलती हैं, पठारों और मैदानों पर भी मिलती हैं तथा स्थल पर सागर तल से नीचे भी पाई जाती हैं। किसी अंतर्देशीय गर्त में पाई जानेवाली ऐसी प्रशांत जलराशि को झील कहते हैं जिसका समुद्र से किसी प्रकार का संबंध नहीं रहता। कभी-कभी इस शब्द का प्रयोग नदियों के चौड़े और विस्तृत भाग के लिए तथा उन समुद्र तटीय जलराशियों के लिए भी किया जाता है, जिनका समुद्र से अप्रत्यक्ष संबंध रहता है। इनके विस्तार में भिन्नता पाई जाती है; छोटे छोटे तालाबों और सरोवर से लेकर मीठे पानीवाली विशाल सुपीरियर झील और लवणजलीय कैस्पियन सागर तक के भी झील के ही संज्ञा दी गई है। अधिकांशत: झीलें समुद्र की सतह से ऊपर पर्वतीय प्रदेशों में पाई जाती हैं, जिनमें मृत सागर, (डेड सी) जो समुद्र की सतह से नीचे स्थित है, अपवाद है। मैदानी भागों में सामान्यत: झीलें उन नदियों के समीप पाई जाती हैं जिनकी ढाल कम हो गई हो। झीलें मीठे पानीवाली तथा खारे पानीवाली, दोनों होती हैं। झीलों में पाया जानेवाला जल मुख्यत: वर्ष से, हिम के पिघलने से अथवा झरनों तथा नदियों से प्राप्त होता है। झीले बनती हैं, विकसित होती हैं, धीरे-धीरे तलछट से भरकर दलदल में बदल जाती हैं तथा उत्थान होंने पर समीपी स्थल के बराबर हो जाती हैं। ऐसी आशंका है कि संयुक्त राज्य अमेरिका की बृहत झीलें ४५,००० वर्षों में समाप्त हो जाएंगी। भू-तल पर अधिकांश झीलें उत्तरी गोलार्ध में स्थित हैं। फिनलैंड में तो इतनी अधिक झीलें हैं कि इसे झीलों का देश ही कहा जाता है। यहाँ पर १,८७,८८८ झीलें हैं जिसमें से ६०,००० झीलें बेहद बड़ी हैं। पृथ्वी पर अनेक झीलें कृत्रिम हैं जिन्हें मानव ने विद्युत उत्पादन के लिए, कृषि-कार्यों के लिए या अपने आमोद-प्रमोद के लिए बनाया है। झीलें उपयोगी भी होती हैं। स्थानीय जलवायु को वे सुहावना बना देती हैं। ये विपुल जलराशि को रोक लेती हैं, जिससे बाढ़ की संभावना घट जाती है। झीलों से मछलियाँ भी प्राप्त होती हैं। .

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डार्टर

डार्टर या स्नेकबर्ड, एनहिंगिडे परिवार के मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय जलपक्षी हैं। इसकी चार जीवित प्रजातियां हैं जिनमें से तीन बहुत ही आम हैं और दूर-दूर तक फ़ैली हुई हैं जबकि चौथी प्रजाति अपेक्षाकृत दुर्लभ है और आईयूसीएन (IUCN) द्वारा इसे लगभग-विलुप्तप्राय के रूप में वर्गीकृत किया गया है। "स्नेकबर्ड" शब्द का इस्तेमाल आम तौर पर किसी संयोजन के बिना किसी भी एक क्षेत्र में पायी जाने वाली पूरी तरह से एलोपैट्रिक प्रजातियों के बारे में बताने करने के लिए किया जाता है। इसका संदर्भ उनकी लंबी पतली गर्दन से है जिसका स्वरूप उस समय सांप-की तरह हो जाता है जब वे अपने शरीर को पानी में डुबाकर तैरती हैं या जब साथी जोड़े अपनी अनुनय प्रदर्शन के दौरान इसे मोड़ते हैं। "डार्टर" का प्रयोग किसी विशेष प्रजाति के बारे में बताने के क्रम में एक भौगोलिक शब्दावली के साथ किया जाता है। इससे भोजन प्राप्त करने के उनके तरीके का संकेत मिलता है क्योंकि वे मछलियों को अपने पतली, नुकीली चोंच में फंसा लेती हैं। अमेरिकन डार्टर (ए. एन्हिंगा) को एन्हिंगा के रूप में भी जाना जाता है। एक स्पष्ट रूप से प्रत्यक्ष कारण से दक्षिणी अमेरिका में इसे वाटर टर्की कहा जाता है; हालांकि अमेरिकन डार्टर जंगली टर्की से काफी हद तक असंबद्ध होता है, ये बड़ी और काले रंग की होती हैं जिनके पास लंबी पूंछ होती है जिससे कभी-कभी भोजन के लिए शिकार किया जाता है। Answers.com, बीएलआई (BLI) (2009), मायर्स आदि.

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डेल्टा

नील नदी का डेल्टा नदीमुख-भूमि या डेल्टा नदी के मुहाने पर उसके द्वारा बहाकर लाय गए अवसादों के निक्षेपण से बनी त्रिभुजाकार आक्रति होती हैं। डेल्टा का नामकरणकर्त्ता हेरोडोड़स को माना जाता हैं। .

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ताड़

भारत के कलकत्ता में ताड़ का वृक्ष ताड़ एकबीजपत्री वृक्ष है। इसकी 6 प्रजातियाँ होती हैं। यह अफ्रीका, एशिया तथा न्यूगीनी का मूल-निवासी है। इसका तना सीधा, सबल तथा शाखाविहिन होता है। ऊपरी सिरे पर कई लम्बी वृन्त तथा किनारे से कटी फलकवाली पत्तियाँ लगी होती हैं। इसका फल काष्ठीय गुठलीवाला होता है। ताड़ के वृक्ष 30 मीटर तक बढ़ सकते हैं। .

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पश्चिमी घाट

भारत की प्रमुख पर्वत-शृंखलाएँ; इसमें पश्चिमी तट के लगभग समान्तर जो पर्वत-श्रेणी है, वही ''''पश्चिमी घाट'''' कहलाती है। भारत के पश्चिमी तट पर स्थित पर्वत शृंखला को पश्चिमी घाट या सह्याद्रि कहते हैं। दक्‍कनी पठार के पश्चिमी किनारे के साथ-साथ यह पर्वतीय शृंखला उत्‍तर से दक्षिण की तरफ 1600 किलोमीटर लम्‍बी है। विश्‍व में जैविकीय विवधता के लिए यह बहुत महत्‍वपूर्ण है और इस दृष्टि से विश्‍व में इसका 8वां स्थान है। यह गुजरात और महाराष्ट्र की सीमा से शुरू होती है और महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तमिलनाडु तथा केरल से होते हुए कन्याकुमारी में समाप्‍त हो जाती है। वर्ष 2012 में यूनेस्को ने पश्चिमी घाट क्षेत्र के 39 स्‍थानों को विश्व धरोहर स्‍थल घोषित किया है।" पश्चिमी घाट का संस्कृत नाम सह्याद्रि पर्वत है। यह पर्वतश्रेणी महाराष्ट्र में कुंदाइबारी दर्रे से आरंभ होकर, तट के समांतर, सागरतट से ३० किमी से लेकर १०० किमी के अंतर से लगभग ४,००० फुट तक ऊँची दक्षिण की ओर जाती है। यह श्रेणी कोंकण के निम्न प्रदेश एवं लगभग २,००० फुट ऊँचे दकन के पठार को एक दूसरे से विभक्त करती है। इसपर कई इतिहासप्रसिद्ध किले बने हैं। कुंदाईबारी दर्रा भरुच तथा दकन पठार के बीच व्यापार का मुख्य मार्ग है। इससे कई बड़ी बड़ी नदियाँ निकलकर पूर्व की ओर बहती हैं। इसमें थाल घाट, भोर घाट, पाल घाट तीन प्रसिद्ध दर्रे हैं। थाल घाट से होकर बंबई-आगरा-मार्ग जाता है। कलसूबाई चोटी सबसे ऊँची (५,४२७ फुट) चोटी है। भोर घाट से बंबई-पूना मार्ग गुजरता है। इन दर्रो के अलावा जरसोपा, कोल्लुर, होसंगादी, आगुंबी, बूँध, मंजराबाद एवं विसाली आदि दर्रे हैं। अंत में दक्षिण में जाकर यह श्रेणी पूर्वी घाट पहाड़ से नीलगिरि के पठार के रूप में मिल जाती है। इसी पठार पर पहाड़ी सैरगाह ओत्तकमंदु स्थित है, जो सागरतल से ७,००० फुट की ऊँचाई पर बसा है। नीलगिरि पठार के दक्षिण में प्रसिद्ध दर्रा पालघाट है। यह दर्रा २५ किमी चौड़ा तथा सगरतल से १,००० फुट ऊँचा है। केरल-मद्रास का संबंध इसी दर्रे से है। इस दर्रे के दक्षिण में यह श्रेणी पुन: ऊँची हाकर अन्नाईमलाई पहाड़ी के रूप में चलती है। पाल घाट के दक्षिण में श्रेणी की पूर्वी पश्चिमी दोनों ढालें खड़ी हैं। पश्चिमी घाट में सुंदर सुंदर दृश्य देखने को मिलती हैं। जंगलों में शिकार भी खेला जाता है। प्राचीन समय से यातायात की बाधा के कारण इस श्रेणी के पूर्व एवं पश्चिम के भागों के लोगों की बोली, रहन सहन आदि में बड़ा अंतर है। यहाँ कई जंगली जातियाँ भी रहती हैं। पश्चिमी घाट का उपग्रह से लिया गया चित्र .

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पारितंत्र

पारितंत्र (ecosystem) या पारिस्थितिक तंत्र (ecological system) एक प्राकृतिक इकाई है जिसमें एक क्षेत्र विशेष के सभी जीवधारी, अर्थात् पौधे, जानवर और अणुजीव शामिल हैं जो कि अपने अजैव पर्यावरण के साथ अंतर्क्रिया करके एक सम्पूर्ण जैविक इकाई बनाते हैं। इस प्रकार पारितंत्र अन्योन्याश्रित अवयवों की एक इकाई है जो एक ही आवास को बांटते हैं। पारितंत्र आमतौर अनेक खाद्य जाल बनाते हैं जो पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर इन जीवों के अन्योन्याश्रय और ऊर्जा के प्रवाह को दिखाते हैं। क्रिस्टोफरसन, आरडब्ल्यू (1996) .

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पंकलंघी

पंकलंघी (अंग्रेज़ी: mudskipper, मडस्किपर; बंगाली: চিড়িং মাছ, चिड़िम माछ) एक प्रकार की उभयचर मछली होती है, यानि ऐसी मछली जो लम्बे समय के लिये पानी से बाहर गीली रेत में रह सके और कुछ हद तक चलने में भी सक्षम हो। पंकलंघी अपने फ़िनों का प्रयोग कर के धरती पर चल पाती हैं और ऐसे क्षेत्रों में रहती हैं जो ज्वार-भाटा से कभी तो समुद्री पानी से ढके होते हैं और कभी पानी से बाहर हो जाते हैं। इन क्षेत्रों में अन्य मछलियाँ भी रहती हैं लेकिन, जहाँ वे पानी वापस जाने पर बचने वाले पानी के छोटे पोखरों में आश्रय लेती हैं, वहाँ पंकलंघी खुली रेत पर ही भ्रमण करने लगते हैं। .

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बाधा द्वीप

बाधा द्वीप (barrier island) तटों पर स्थित एक प्रकार के द्वीप होते हैं जो बहुत चपटे या ढेरों के रूप में जमा रेत के बने होते हैं और समुद्री लहरों व ज्वारभाटाओं द्वारा तट के समानांतर बन जाते हैं। यह अक्सर शृंखलाओं में बन जाते हैं जिनमें चंद द्वीपों से लेकर दर्ज़न से भी अधिक द्वीप हो सकते हैं। आंधी-तूफ़ान और अन्य प्रक्रियाओं से इनमें बदलाव होते रहते हैं लेकिन बाधा द्वीप समुद्री लहरों की ऊर्जा झेलकर अपने पीछे स्थित खारी अनूप झीलों के पानी को शांत रखते हैं जिससे वहाँ आर्द्रभूमि वातावरण पनप सकते हैं। बाधा द्वीपों की शृंखलाएँ सैंकड़ों किलोमीटर तक चल सकती हैं जिनमें लम्बे आकार के द्वीप एक दूसरे से केवल ज्वारभाटा जल के प्रवाह द्वारा कटी हुई नहरों से से अलग परिभाषित होते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के टेक्सस राज्य का पादरे द्वीप विश्व का सबसे लम्बा बाधा द्वीप है और इसकी लम्बाई १८२ किमी है। अनुमान लगाया गया है कि दुनिया के लगभग १३% तटरेखाओं पर बाधा द्वीप बने हुए हैं।Smith, Q.H.T., Heap, A.D., and Nichol, S.L., 2010, "Origin and formation of an estuarine barrier island, Tapora Island, New Zealand:" Journal of Coastal Research, v. 26, p. 292–300.

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भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

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मेंढक

मेंढक उभयचर वर्ग का जंतु है जो पानी तथा जमीन पर दोनों जगह रह सकता है। यह एक शीतरक्ती प्राणी है अर्थात् इसके शरीर का तापमान वातावरण के ताप के अनुसार घटता या बढ़ता रहता है। शीतकाल में यह ठंडक से बचने के लिए पोखर आदि की निचली सतह की मिट्टी लगभग दो फुट की गहराई तक खोदकर उसी में पड़ा रहता है। यहाँ तक कि कुछ खाता भी नहीं है। इस क्रिया को शीतनिद्रा या शीतसुषुप्तावस्था कहते हैं। इसी तरह की क्रिया गर्मी के दिनों में होती है। ग्रीष्मकाल की इस निष्क्रिय अवस्था को ग्रीष्मसुषुप्तावस्था कहते हैं। मेंढक के चार पैर होते हैं। पिछले दो पैर अगले पैरों से बड़े होतें हैं। जिसके कारण यह लम्बी उछाल लेता है। अगले पैरों में चार-चार तथा पिछले पैरों में पाँच-पाँच झिल्लीदार उँगलिया होतीं हैं, जो इसे तैरने में सहायता करती हैं। मेंढकों का आकार ९.८ मिलीमीटर (०.४ ईन्च) से लेकर ३० सेण्टीमीटर (१२ ईन्च) तक होता है। नर साधारणतः मादा से आकार में छोटे होते हैं। मेंढकों की त्वचा में विषग्रन्थियाँ होतीं हैं, परन्तु ये शिकारी स्तनपायी, पक्षी तथा साँपों से इनकी सुरक्षा नहीं कर पाती हैं। भेक या दादुर (टोड) तथा मेंढक में कुछ अंतर है जैसे दादुर अधिकतर जमीन पर रहता है, इसकी त्वचा शुष्क एवं झुर्रीदार होती है जबकि मेंढक की त्वचा कोमल एवं चिकनी होती है। मेंढक का सिर तिकोना जबकि टोड का अर्द्ध-वृत्ताकार होता है। भेक के पिछले पैर की अंगुलियों के बीच झिल्ली भी नहीं मिलती है। परन्तु वैज्ञानिक वर्गीकरण की दृष्टि से दोनों बहुत हद तक समान जंतु हैं तथा उभयचर वर्ग के एनुरा गण के अन्तर्गत आते हैं। मेंढक प्रायः सभी जगहों पर पाए जाते हैं। इसकी ५००० से अधिक प्रजातियों की खोज हो चुकी है। वर्षा वनों में इनकी संख्या सर्वाधिक है। कुछ प्रजातियों की संख्या तेजी से कम हो रही है। .

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सागर (जलनिकाय)

पृथ्वी की सतह के 70 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र में फैला, सागर, खारे पानी का एक सतत निकाय है। पृथ्वी पर जलवायु को संयमित करने, भोजन और ऑक्सीजन प्रदान करने, जैव विविधता को बनाये रखने और परिवहन के क्षेत्र में सागर अत्यावश्यक भूमिका निभाते हैं। प्राचीन काल से लोग सागर की यात्रा करने और इसके रहस्यों को जानने की कोशिश में लगे रहे हैं, परंतु माना जाता है कि सागर के वैज्ञानिक अध्ययन जिसे समुद्र विज्ञान कहते हैं की शुरुआत कप्तान जेम्स कुक द्वारा 1768 और 1779 के बीच प्रशांत महासागर के अन्वेषण के लिए की गयीं समुद्री यात्राओं से हुई। सागर के पानी की विशेषता इसका खारा या नमकीन होना है। पानी को यह खारापन मुख्य रूप से ठोस सोडियम क्लोराइड द्वारा मिलता है, लेकिन पानी में पोटेशियम और मैग्नीशियम के क्लोराइड के अतिरिक्त विभिन्न रासायनिक तत्व भी होते हैं जिनका संघटन पूरे विश्व मे फैले विभिन्न सागरों में बमुश्किल बदलता है। हालाँकि पानी की लवणता में भीषण परिवर्तन आते हैं, जहां यह पानीकी ऊपरी सतह और नदियों के मुहानों पर कम होती है वहीं यह पानी की ठंडी गहराइयों में अधिक होती है। सागर की सतह पर उठती लहरें इनकी सतह पर बहने वाली हवा के कारण बनती है। भूमि के पास उथले पानी में पहँचने पर यह लहरें मंद पड़ती हैं और इनकी ऊँचाई में वृद्धि होती है, जिसके कारण यह अधिक ऊँची और अस्थिर हो जाती हैं और अंतत: सागर तट पर झाग के रूप में टूटती हैं। सुनामी नामक लहरें समुद्र तल पर आये भूकंप या भूस्खलन की वजह से उत्पन्न होती है और सागर के बाहर बमुश्किल दिखाई देती हैं, लेकिन किनारे पर पहँचने पर यह लहरें प्रचंड और विनाशकारी साबित हो सकती हैं। हवायें सागर की सतह पर घर्षण के द्वारा धाराओं का निर्माण करती हैं जिसकी वजह से पूरे सागर के पानी एक धीमा लेकिन स्थिर परिसंचरण स्थापित होता है। इस परिसंचरण की दिशा कई कारकों पर निर्भर करती है जिनमें महाद्वीपों का आकार और पृथ्वी का घूर्णन शामिल हैं। गहरे सागर की जटिल धारायें जिन्हें वैश्विक वाहक पट्टे के नाम से भी जाना जाता है ध्रुवों के ठंडे सागरीय जल को हर महासागर तक ले जाती हैं। सागरीय जल का बड़े पैमाने पर संचलन ज्वार के कारण होता है, दैनिक रूप से दो बार घटने वाली यह घटना चंद्रमा द्वारा पृथ्वी पर लगाये जाने वाला गुरुत्व बल के कारण घटित होती है, हालाँकि पृथ्वी, सूर्य द्वारा लगाये जाने वाला गुरुत्व बल से भी प्रभावित होती है पर चंद्रमा की तुलना में यह बहुत कम होता है। उन खाड़ियों और ज्वारनदमुखों में इन ज्वारों का स्तर बहुत अधिक हो सकता है जहां ज्वारीय प्रवाह संकीर्ण वाहिकों में बहता है। सागर में जीवित प्राणियो के सभी प्रमुख समूह जैसे कि जीवाणु, प्रोटिस्ट, शैवाल, कवक, पादप और जीव पाए जाते हैं। माना जाता है कि जीवन की उत्पत्ति सागर में ही हुई थी, साथ ही यहाँ पर ही जीवों के बड़े समूहों मे से कइयों का विकास हुआ। सागरों में पर्यावास और पारिस्थितिकी प्रणालियों की एक विस्तृत श्रृंखला समाहित है। सागर दुनिया भर के लोगों के लिए भोजन, मुख्य रूप से मछली उपलब्ध कराता है किंतु इसके साथ ही यह कस्तूरों, सागरीय स्तनधारी जीवों और सागरीय शैवाल की भी पर्याप्त आपूर्ति करता है। इनमें से कुछ को मछुआरों द्वारा पकड़ा जाता है तो कुछ की खेती पानी के भीतर की जाती है। सागर के अन्य मानव उपयोगों में व्यापार, यात्रा, खनिज दोहन, बिजली उत्पादन और नौसैनिक युद्ध शामिल हैं, वहीं आन्न्द के लिए की गयी गतिविधियों जैसे कि तैराकी, नौकायन और स्कूबा डाइविंग के लिए भी सागर एक आधार प्रदान करता है। इन गतिविधियों मे से कई गतिविधियां सागरीय प्रदूषण का कारण बनती हैं। मानव संस्कृति में सागर महत्वपूर्ण है और इसका प्रयोग सिनेमा, शास्त्रीय संगीत, साहित्य, रंगमंच और कलाओं में बहुतायत से किया जाता है। हिंदु संस्कृति में सागर को एक देव के रूप में वर्णित किया गया है। विश्व के कई हिस्सों में प्रचलित पौराणिक कथाओं में सागर को विभिन्न रूपों में दर्शाया गया है। हिन्दी भाषा में सागर के कई पर्यायवाची शब्द हैं जिनमें जलधि, जलनिधि, नीरनिधि, उदधि, पयोधि, नदीश, तोयनिधि, कम्पती, वारीश, अर्णव आदि प्रमुख हैं। .

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सिंचाई

गेहूं की सिंचाई पंजाब में सिंचाईसिंचाई मिट्टी को कृत्रिम रूप से पानी देकर उसमे उपलब्ध जल की मात्रा में वृद्धि करने की क्रिया है और आमतौर पर इसका प्रयोग फसल उगाने के दौरान, शुष्क क्षेत्रों या पर्याप्त वर्षा ना होने की स्थिति में पौधों की जल आवश्यकता पूरी करने के लिए किया जाता है। कृषि के क्षेत्र में इसका प्रयोग इसके अतिरिक्त निम्न कारणें से भी किया जाता है: -.

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जलकाक

जलकाक या पनकौवा जलकाक (Cormorant) या पनकौआ पक्षियों में बक गण (Order Ciconiformes) के जलकाक कुल (Family Phalacrocoracidae) का प्रसिद्ध पक्षी है जिसकी कई जातियाँ सारे संसार में पाई जाती हैं। इस कुल के पक्षियों का रंग काला, चोंच लंबी, टाँगें छोटी और उँगलियाँ ज़ालपाद होती है। ये अपना अधिक समय पानी में ही बिताते हैं और पानी के भीतर मछलियों की तरह तैर लेते हैं। ये सब मछलीखोर पक्षी हैं। जलकाक का दूसरा नाम पनकौआ भी है। इसकी एक छोटी जाति भी होती है जो छोटा पनकौआ (Little cormorant) कही जाती हैं। कद की छोटाई के अलावा इन दोनों में कोई भेद नहीं है। तीसरी जाति के पक्षी बानवर (Darter) कहे जाते हैं। पूर्वोक्त दोनों जातियों से इनकी चोंच अवश्य भिन्न होती है, लेकिन इसके अतिरिक्त इनके रहन सहन, स्वभाव, तथा भोजन आदि में कोई भेद नहीं है। पनकौओं की चोंच जहाँ आगे की ओर थोड़ी मुड़ी रहती है, वहीं बानवर की चोंच सीधी पतली और नुकीली रहती है। पनकौए 10- 12 इंच लंबे पक्षी हैं जिनके नर और मादा एक ही जैसे होते हैं। ये या तो किसी जलाशय में मछलियाँ पकड़ते रहते हैं या पानी के किनारे या किसी ठूँठ पर डैने फैलाए बैठे अपने पंख सुखाते रहते हैं। इनका जोड़ा बाँधने का समय जुलाई है, जब ये सैकड़ों की संख्या में इकट्ठे होकर अपने बड़े बड़े गिरोह बना लेते हैं। इनका गरोह एक ही जगह मिलकर घोंसला बनाता है, जिसमें मादा 4-5 अंडे देती है। .

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जाति (जीवविज्ञान)

जाति (स्पीशीज़) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण की सबसे बुनियादी और निचली श्रेणी है जाति (अंग्रेज़ी: species, स्पीशीज़) जीवों के जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में सबसे बुनियादी और निचली श्रेणी होती है। जीववैज्ञानिक नज़रिए से ऐसे जीवों के समूह को एक जाति बुलाया जाता है जो एक दुसरे के साथ संतान उत्पन्न करने की क्षमता रखते हो और जिनकी संतान स्वयं आगे संतान जनने की क्षमता रखती हो। उदाहरण के लिए एक भेड़िया और शेर आपस में बच्चा पैदा नहीं कर सकते इसलिए वे अलग जातियों के माने जाते हैं। एक घोड़ा और गधा आपस में बच्चा पैदा कर सकते हैं (जिसे खच्चर बुलाया जाता है), लेकिन क्योंकि खच्चर आगे बच्चा जनने में असमर्थ होते हैं, इसलिए घोड़े और गधे भी अलग जातियों के माने जाते हैं। इसके विपरीत कुत्ते बहुत अलग आकारों में मिलते हैं लेकिन किसी भी नर कुत्ते और मादा कुत्ते के आपस में बच्चे हो सकते हैं जो स्वयं आगे संतान पैदा करने में सक्षम हैं। इसलिए सभी कुत्ते, चाहे वे किसी नसल के ही क्यों न हों, जीववैज्ञानिक दृष्टि से एक ही जाति के सदस्य समझे जाते हैं।, Sahotra Sarkar, Anya Plutynski, John Wiley & Sons, 2010, ISBN 978-1-4443-3785-3,...

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ज्वार-भाटा

धरती पर स्थित सागरों के जल-स्तर का सामान्य-स्तर से ऊपर उठना ज्वार तथा नीचे गिरना भाटा कहलाता है। ज्वार-भाटा की घटना केवल सागर पर ही लागू नहीं होती बल्कि उन सभी चीजों पर लागू होतीं हैं जिन पर समय एवं स्थान के साथ परिवर्तनशील गुरुत्व बल लगता है। (जैसे ठोस जमीन पर भी) पृथ्वी, चन्द्रमा और सूर्य की पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण शक्ति की क्रियाशीलता ही ज्वार-भाटा की उत्पत्ति का प्रमुख कारण हैं। .

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किंगफिशर

किंगफिशर कोरासीफोर्म्स वर्ग के छोटे से मध्यम आकार के चमकीले रंग के पंक्षियों का एक समूह है। इनका एक सर्वव्यापी वितरण है जिनमें से ज्यादातर प्रजातियाँ ओल्ड वर्ल्ड और ऑस्ट्रेलिया में पायी जाती हैं। इस समूह को या तो एक एकल परिवार एल्सिडिनिडी के रूप में या फिर उपवर्ग एल्सिडाइन्स में माना जाता है जिनमें तीन परिवार शामिल हैं, एल्सिडिनिडी (नदीय किंगफिशर), हैल्सियोनिडी (वृक्षीय किंगफिशर) और सेरीलिडी जलीय किंगफिशर). किंगफिशर की लगभग 90 प्रजातियां हैं। सभी के बड़े सिर, लंबे, तेज, नुकीले चोंच, छोटे पैर और ठूंठदार पूंछ हैं। अधिकांश प्रजातियों के पास चमकीले पंख हैं जिनमें अलग-अलग लिंगों के बीच थोड़ा अंतर है। अधिकांश प्रजातियां वितरण के लिहाज से उष्णकटिबंधीय हैं और एक मामूली बड़ी संख्या में केवल जंगलों में पायी जाती हैं। ये एक व्यापक रेंज के शिकार और मछली खाते हैं, जिन्हें आम तौर पर एक ऊंचे स्थान से झपट्टा मारकर पकड़ा जाता है। अपने वर्ग के अन्य सदस्यों की तरह ये खाली जगहों में घोंसला बनाते हैं, जो आम तौर पर जमीन पर प्राकृतिक या कृत्रिम तरीके से बने किनारों में खोदे गए सुरंगों में होते हैं। कुछ प्रजातियों, मुख्यतः द्वीपीय स्वरूपों के विलुप्त होने का खतरा बताया जाता है। .

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कछुआ

कछुए (Turtles) या कर्म टेस्टूडनीज़ नामक सरीसृपों के जीववैज्ञानिक गण के सदस्य होते हैं जो उनके शरीरों के मुख्य भाग को उनकी पसलियों से विकसित हुए ढाल-जैसे कवच से पहचाने जाते हैं। विश्व में स्थलीय कछुओं और जलीय कछुओं दोनों की कई जातियाँ हैं। कछुओं की सबसे पहली जातियाँ आज से १५.७ करोड़ वर्ष पहले उत्पन्न हुई थीं, जो की सर्वप्रथम सर्पों व मगरमच्छों से भी पहले था। इसलिये वैज्ञानिक उन्हें प्राचीनतम सरीसृपों में से एक मानते हैं। कछुओं की कई जातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं लेकिन ३२७ आज भी अस्तित्व में हैं। इनमें से कई जातियाँ ख़तरे में हैं और उनका संरक्षण करना एक चिंता का विषय है। इसकी उम्र 300 साल से अधिक होती है .

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केतकी

केतकी का झाड़ केतकी एक छोटा सुवासित झाड़। इसकी पत्तियाँ लंबी, नुकीली, चपटी, कोमल और चिकनी होती हैं जिसके किनारे और पीठ पर छोटे छोटे काँटे होते हैं। यह दो प्रकार की होती है। एक सफेद, दूसरी पीली। सफेद केतकी को लोग प्राय: 'केवड़ा' के नाम से जानते और पहचानते हैं और पीली अर्थात्‌ सुवर्ण केतकी को ही केतकी कहते हैं। बरसात में इसमें फूल लगते हैं जो लंबे और सफेद होते है और उसमें तीव्र सुगंध होती है। इसका फूल बाल की तरह होता है और ऊपर से लंबी पत्तियों से ढका रहता है। इसके फूल से इत्र बनाया और जल सुगंधित किया जाता है। इससे कत्थे को भी सुवासित करते हैं। केवड़े का प्रयोग केशों के दुर्गंध दूर करने के लिए किया जाता है। प्रवाद है कि इसके फूल पर भ्रमर नहीं बैठते और शिव पर नहीं चढ़ाया जाता। इसकी पत्तियों की चटाइयाँ, छाते और टोपियाँ बनती हैं। इसके तने से बोतल बंद करने वाला काग बनाए जाते हैं। कहीं कहीं लोग इसकी नरम पत्तियों का साग भी बनाकर खाते हैं। वैद्यक में इसके शाक को कफनाशक बताया गया है। ---- (2) संगीत से संबंधित एक रागिनी का नाम। .

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केरल

केरल (मलयालम: കേരളം, केरळम्) भारत का एक प्रान्त है। इसकी राजधानी तिरुवनन्तपुरम (त्रिवेन्द्रम) है। मलयालम (മലയാളം, मलयाळम्) यहां की मुख्य भाषा है। हिन्दुओं तथा मुसलमानों के अलावा यहां ईसाई भी बड़ी संख्या में रहते हैं। भारत की दक्षिण-पश्चिमी सीमा पर अरब सागर और सह्याद्रि पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य एक खूबसूरत भूभाग स्थित है, जिसे केरल के नाम से जाना जाता है। इस राज्य का क्षेत्रफल 38863 वर्ग किलोमीटर है और यहाँ मलयालम भाषा बोली जाती है। अपनी संस्कृति और भाषा-वैशिष्ट्य के कारण पहचाने जाने वाले भारत के दक्षिण में स्थित चार राज्यों में केरल प्रमुख स्थान रखता है। इसके प्रमुख पड़ोसी राज्य तमिलनाडु और कर्नाटक हैं। पुदुच्चेरी (पांडिचेरि) राज्य का मय्यष़ि (माहि) नाम से जाता जाने वाला भूभाग भी केरल राज्य के अन्तर्गत स्थित है। अरब सागर में स्थित केन्द्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप का भी भाषा और संस्कृति की दृष्टि से केरल के साथ अटूट संबन्ध है। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व केरल में राजाओं की रियासतें थीं। जुलाई 1949 में तिरुवितांकूर और कोच्चिन रियासतों को जोड़कर 'तिरुकोच्चि' राज्य का गठन किया गया। उस समय मलाबार प्रदेश मद्रास राज्य (वर्तमान तमिलनाडु) का एक जिला मात्र था। नवंबर 1956 में तिरुकोच्चि के साथ मलाबार को भी जोड़ा गया और इस तरह वर्तमान केरल की स्थापना हुई। इस प्रकार 'ऐक्य केरलम' के गठन के द्वारा इस भूभाग की जनता की दीर्घकालीन अभिलाषा पूर्ण हुई। * केरल में शिशुओं की मृत्यु दर भारत के राज्यों में सबसे कम है और स्त्रियों की संख्या पुरुषों से अधिक है (2001 की जनगणना के आधार पर)।.

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केकड़ा

केकड़ा केकड़ा आर्थ्रोपोडा संघ का एक जन्तु है। इसका शरीर गोलाकार तथा चपटा होता है। सिरोवक्ष (सिफेलोथोरेक्स) तथा उदर में बँटा रहता है। इसका उदर बहुत छोटा होता है। इसके सिरोवक्ष के अधर वाले भाग में पाँच जोड़े चलन पाद मिलते हैं। सिर पर एक जोड़ा सवृन्त संयुक्त नेत्र मिलता है। इसमें श्वसन गिल्स द्वारा होता है। .

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कोल्लम

कोल्लम(मलयालम: കൊല്ലം, कॊल्लम्)केरल में अरब सागर के तट पर अष्टमुदी झील के निकट बसा एक बंदरगाह नगर है। व्यवसायिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस नगर का प्राचीन काल से विशेष महत्व रहा है। इब्न बतूता ने 14वीं शताब्दी में इसे भारत के पांच बड़े बंदरगाहों में शुमार किया था। माना जाता है कि इस शहर की स्‍थापना नौवीं शताब्दी में सीरिया के व्यापारी सपीर ईसो ने की थी। कोल्लम को यहां की प्राकृतिक खूबसूरती और विविधताओं के लिए जाना जाता है। समुद्र, झील, मैदान, पहाड़, नदियां, बैकवाटर, जंगल, घने जंगल आदि विविधताएं इसे अन्य स्थानों से पृथक करती हैं। .

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अनूप झील

एक अनूप झील नदियों के मुहाने पर समुद्र की धाराएँ या पवनें बालू मिट्टी के टीले बनाकर जल के क्षेत्र को समुद्र से अलग कर देती हैं, इन्हें अनूप कहते हैं। भारत के पूर्वी तट पर उड़ीसा की चिल्का और नेल्लोर की पुलीकट झीलें, गोदावरी और कृष्णा नदी के डेल्टाओं में कोलेरू झील (आन्ध्र प्रदेश) इसी प्रकार वनी हैं। भारत के पश्चिमी तट पर केरल राज्य में भी असंख्य अनूप या कयाल पाये जाते हैं। श्रेणी:झीलें श्रेणी:जलसमूह श्रेणी:भूगोल शब्दावली * श्रेणी:समुद्र-वैज्ञानिक पारिभाषिकी.

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अरब सागर

अरब सागर जिसका भारतीय नाम सिंधु सागर है, भारतीय उपमहाद्वीप और अरब क्षेत्र के बीच स्थित हिंद महासागर का हिस्सा है। अरब सागर लगभग 38,62,000 किमी2 सतही क्षेत्र घेरते हुए स्थित है तथा इसकी अधिकतम चौड़ाई लगभग 2,400 किमी (1,500 मील) है। सिन्धु नदी सबसे महत्वपूर्ण नदी है जो अरब सागर में गिरती है, इसके आलावा भारत की नर्मदा और ताप्ती नदियाँ अरब सागर में गिरती हैं। यह एक त्रिभुजाकार सागर है जो दक्षिण से उत्तर की ओर क्रमश: संकरा होता जाता है और फ़ारस की खाड़ी से जाकर मिलता है। अरब सागर के तट पर भारत के अलावा जो महत्वपूर्ण देश स्थित हैं उनमें ईरान, ओमान, पाकिस्तान, यमन और संयुक्त अरब अमीरात सबसे प्रमुख हैं। .

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अष्टमुडी झील

अष्टमुडी झील भारत के केरल राज्य के केरल अनूपझील क्षेत्र की एक अनूप झील है। इसका आकार आठ-भुजाओं वाला है, जिस से इसका नाम पड़ा है। यह पर्यटकों में लोकप्रिय है और केरल अनूझीलों में भ्रमण करने वालों के लिये एक आरम्भिक बिन्दु है।http://www.hotelskerala.com/ashtamudi/facilities.htm Back water Retreat Ashtamudihttp://www.wwfindia.org/about_wwf/what_we_do/freshwater_wetlands/our_work/ramsar_sites/ashtamudi_lake.cfm Ashtamudi Lakehttp://www.kerenvis.nic.in/water/Ramsar%20cites.pdf झील का पारिस्थितिक तंत्र अनूठा है और यह भारत के महत्वपूर्ण आर्द्रभूमि क्षेत्रों में से एक है और रामसर सम्मेलन की सूची में शामिल है। झील के दोनो तटों और उस से जुड़ी हुई नहरों के किनारों पर नारियल और ताड़ के वृक्ष उगे हुए हैं और स्थान-स्थान पर गाँव-कस्बे हैं। कोल्लम एक ऐतिहारिक बंदरगाही नगर है जो झील के दाएँ (पूर्वी) किनारे पर है। यहाँ से आलापुड़ा (आलेप्पी) तक एक नाव-सेवा चलती है। झील पर पर्यटकों के लिये हाउसबोट सेवा भी उपलब्ध है जो झीलों व नहरों से होती हुई कई गाँवो के समीप से निकलती है - यह ८ घंटों की यात्रा सैलानियों को स्थानीय सौन्दर्य से परिचित कराती है। जलमार्ग पर मछुआरों द्वारा लगाये गये चीनी-शैली के मछली पकड़ने के जाल दिखते हैं।http://www.kazhakuttom.com/kollam.htm Kollam at a Glance .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

केरल अनूझील क्षेत्र, केरल अनूपझील क्षेत्र

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