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पारितंत्र

सूची पारितंत्र

पारितंत्र (ecosystem) या पारिस्थितिक तंत्र (ecological system) एक प्राकृतिक इकाई है जिसमें एक क्षेत्र विशेष के सभी जीवधारी, अर्थात् पौधे, जानवर और अणुजीव शामिल हैं जो कि अपने अजैव पर्यावरण के साथ अंतर्क्रिया करके एक सम्पूर्ण जैविक इकाई बनाते हैं। इस प्रकार पारितंत्र अन्योन्याश्रित अवयवों की एक इकाई है जो एक ही आवास को बांटते हैं। पारितंत्र आमतौर अनेक खाद्य जाल बनाते हैं जो पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर इन जीवों के अन्योन्याश्रय और ऊर्जा के प्रवाह को दिखाते हैं। क्रिस्टोफरसन, आरडब्ल्यू (1996) .

31 संबंधों: चिल्का झील, एल नीनो, नवीकरणीय संसाधन, पर्यटन भूगोल, पर्यावरण, पर्यावरण भूगोल, पर्यावरण संरक्षण, पारिस्थितिकी, प्रदूषण, पैंटानल, बायोम, भारत मे पर्यावरण की समस्या, भूमि उपयोग, भूजैवरसायन चक्र, भूगोल शब्दावली, महाराणा प्रताप सागर, समुद्री प्रदूषण, संरक्षित जैवमंडल, हिमालय की पारिस्थितिकी, जटिल तंत्र, जल चक्र, जल संसाधन, जलमण्डल, ज्वालामुखी, जैव संरक्षण, वन्य जीव, वहन क्षमता, केरल अनूपझीलें, अपघटन, अष्टमुडी झील, ऋतु

चिल्का झील

चिल्का झील चिल्का झील उड़ीसा प्रदेश के समुद्री अप्रवाही जल में बनी एक झील है। यह भारत की सबसे बड़ी एवं विश्व की दूसरी सबसे बड़ी समुद्री झील है। इसको चिलिका झील के नाम से भी जाना जाता है। यह एक अनूप है एवं उड़ीसा के तटीय भाग में नाशपाती की आकृति में पुरी जिले में स्थित है। यह 70 किलोमीटर लम्बी तथा 30 किलोमीटर चौड़ी है। यह समुद्र का ही एक भाग है जो महानदी द्वारा लायी गई मिट्टी के जमा हो जाने से समुद्र से अलग होकर एक छीछली झील के रूप में हो गया है। दिसम्बर से जून तक इस झील का जल खारा रहता है किन्तु वर्षा ऋतु में इसका जल मीठा हो जाता है। इसकी औसत गहराई 3 मीटर है। इस झील के पारिस्थितिक तंत्र में बेहद जैव विविधताएँ हैं। यह एक विशाल मछली पकड़ने की जगह है। यह झील 132 गाँवों में रह रहे 150,000 मछुआरों को आजीविका का साधन उपलब्ध कराती है। इस खाड़ी में लगभग 160 प्रजातियों के पछी पाए जाते हैं। कैस्पियन सागर, बैकाल झील, अरल सागर और रूस, मंगोलिया, लद्दाख, मध्य एशिया आदि विभिन्न दूर दराज़ के क्षेत्रों से यहाँ पछी उड़ कर आते हैं। ये पछी विशाल दूरियाँ तय करते हैं। प्रवासी पछी तो लगभग १२००० किमी से भी ज्यादा की दूरियाँ तय करके चिल्का झील पंहुचते हैं। 1981 में, चिल्का झील को रामसर घोषणापत्र के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय महत्व की आद्र भूमि के रूप में चुना गया। यह इस मह्त्व वाली पहली पहली भारतीय झील थी। एक सर्वेक्षण के मुताबिक यहाँ 45% पछी भूमि, 32% जलपक्षी और 23% बगुले हैं। यह झील 14 प्रकार के रैपटरों का भी निवास स्थान है। लगभग 152 संकटग्रस्त व रेयर इरावती डॉल्फ़िनों का भी ये घर है। इसके साथ ही यह झील 37 प्रकार के सरीसृपों और उभयचरों का भी निवास स्थान है। उच्च उत्पादकता वाली मत्स्य प्रणाली वाली चिल्का झील की पारिस्थिकी आसपास के लोगों व मछुआरों के लिये आजीविका उपलब्ध कराती है। मॉनसून व गर्मियों में झील में पानी का क्षेत्र क्रमश: 1165 से 906 किमी2 तक हो जाता है। एक 32 किमी लंबी, संकरी, बाहरी नहर इसे बंगाल की खाड़ी से जोड़ती है। सीडीए द्वारा हाल ही में एक नई नहर भी बनाई गयी है जिससे झील को एक और जीवनदान मिला है। लघु शैवाल, समुद्री घास, समुद्री बीज, मछलियाँ, झींगे, केकणे आदि चिल्का झील के खारे जल में फलते फूलते हैं। .

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एल नीनो

दक्षिण प्रशांत महासागर का औसत परिसंचरणऊष्ण कटिबंधीय प्रशांत के भूमध्यीय क्षेत्र के समुद्र के तापमान और वायुमंडलीय परिस्थितियों में आये बदलाव के लिए उत्तरदायी समुद्री घटना को एल नीनो (अल नीनो या अल निनो) कहा जाता है। यह दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी तट पर स्थित ईक्वाडोर और पेरु देशों के तटीय समुद्री जल में कुछ सालों के अंतराल पर घटित होती है। इससे परिणाम स्वरूप समुद्र के सतही जल का तापमान सामान्य से अधिक हो जाता है। इसका विस्तार ३°दक्षिण से १८°दक्षिण अक्षांश तक रहता है| .

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नवीकरणीय संसाधन

नवीकरणीय संसाधन अथवा नव्य संसाधन वे संसाधन हैं जिनके भण्डार में प्राकृतिक/पारिस्थितिक प्रक्रियाओं द्वारा पुनर्स्थापन (replenishment) होता रहता है। हालाँकि मानव द्वारा ऐसे संसाधनों का दोहन (उपयोग) अगर उनके पुनर्स्थापन की दर से अधिक तेजी से हो तो फिर ये नवीकरणीय संसाधन नहीं रह जाते और इनका क्षय होने लगता है। उपरोक्त परिभाषा के अनुसार ऐसे संसाधनों में ज्यादातर जैव संसाधन आते है जिनमें जैविक प्रक्रमों द्वारा पुनर्स्थापन होता रहता है। उदाहरण के लिये एक वन क्षेत्र से वनोपजों का मानव उपयोग वन को एक नवीकरणीय संसाधन बनाता है किन्तु यदि उन वनोपजों का इतनी तेजी से दोहन हो कि उनके पुनर्स्थापन की दर से अधिक हो जाए तो वन का क्षय होने लगेगा। सामान्यतया नवीकरणीय संसाधनों में नवीकरणीय उर्जा संसाधन भी शामिल किये जाते हैं जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा इत्यादि। किन्तु सही अर्थों में ये ऊर्जा संसाधन अक्षय ऊर्जा संसाधन हैं न कि नवीकरणीय। .

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पर्यटन भूगोल

वास्को डि गामा कालीकट, भारत के तट पर 20 मई 1498। पर्यटन भूगोल या भू-पर्यटन, मानव भूगोल की एक प्रमुख शाखा हैं। इस शाखा में पर्यटन एवं यात्राओं से सम्बन्धित तत्वों का अध्ययन, भौगोलिक पहलुओं को ध्यान में रखकर किया जाता है। नेशनल जियोग्रेफ़िक की एक परिभाषा के अनुसार किसी स्थान और उसके निवासियों की संस्कृति, सुरुचि, परंपरा, जलवायु, पर्यावरण और विकास के स्वरूप का विस्तृत ज्ञान प्राप्त करने और उसके विकास में सहयोग करने वाले पर्यटन को "पर्यटन भूगोल" कहा जाता है। भू पर्यटन के अनेक लाभ हैं। किसी स्थल का साक्षात्कार होने के कारण तथा उससे संबंधित जानकारी अनुभव द्वारा प्राप्त होने के कारण पर्यटक और निवासी दोनों का अनेक प्रकार से विकास होता हैं। पर्यटन स्थल पर अनेक प्रकार के सामाजिक तथा व्यापारिक समूह मिलकर काम करते हैं जिससे पर्यटक और निवासी दोनों के अनुभव अधिक प्रामाणिक और महत्त्वपूर्ण बन जाते है। भू पर्यटन परस्पर एक दूसरे को सूचना, ज्ञान, संस्कार और परंपराओं के आदान-प्रदान में सहायक होता है, इससे दोनों को ही व्यापार और आर्थिक विकास के अवसर मिलते हैं, स्थानीय वस्तुओं कलाओं और उत्पाद को नए बाज़ार मिलते हैं और मानवता के विकास की दिशाएँ खुलती हैं साथ ही बच्चों और परिजनों के लिए सच्ची कहानियाँ, चित्र और फिल्में भी मिलती हैं जो पर्यटक अपनी यात्रा के दौरान बनाते हैं। पर्यटन भूगोल के विकास या क्षय में पर्यटन स्थल के राजनैतिक, सामाजिक और प्राकृतिक कारणों का बहुत महत्त्व होता है और इसके विषय में जानकारी के मानचित्र आदि कुछ उपकरणों की आवश्यकता होती है। .

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पर्यावरण

पर्यावरण प्रदूषण - कारखानों द्वारा धुएँ का उत्सर्जन पर्यावरण (Environment) शब्द का निर्माण दो शब्दों से मिल कर हुआ है। "परि" जो हमारे चारों ओर है और "आवरण" जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है। पर्यावरण उन सभी भौतिक, रासायनिक एवं जैविक कारकों की समष्टिगत इकाई है जो किसी जीवधारी अथवा पारितंत्रीय आबादी को प्रभावित करते हैं तथा उनके रूप, जीवन और जीविता को तय करते हैं। सामान्य अर्थों में यह हमारे जीवन को प्रभावित करने वाले सभी जैविक और अजैविक तत्वों, तथ्यों, प्रक्रियाओं और घटनाओं के समुच्चय से निर्मित इकाई है। यह हमारे चारों ओर व्याप्त है और हमारे जीवन की प्रत्येक घटना इसी के अन्दर सम्पादित होती है तथा हम मनुष्य अपनी समस्त क्रियाओं से इस पर्यावरण को भी प्रभावित करते हैं। इस प्रकार एक जीवधारी और उसके पर्यावरण के बीच अन्योन्याश्रय संबंध भी होता है। पर्यावरण के जैविक संघटकों में सूक्ष्म जीवाणु से लेकर कीड़े-मकोड़े, सभी जीव-जंतु और पेड़-पौधे आ जाते हैं और इसके साथ ही उनसे जुड़ी सारी जैव क्रियाएँ और प्रक्रियाएँ भी। अजैविक संघटकों में जीवनरहित तत्व और उनसे जुड़ी प्रक्रियाएँ आती हैं, जैसे: चट्टानें, पर्वत, नदी, हवा और जलवायु के तत्व इत्यादि। .

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पर्यावरण भूगोल

पर्यावरण भूगोल (अंग्रेजी: Environmental geography) पर्यावरणीय दशाओं, उनकी कार्यशीलता और तकनीकी रूप से सबल आर्थिक मानव और पर्यावरण के बीच संबंधों का अध्यययन स्थानिक तथा कालिक (spatio-temporal) सन्दर्भों में करता है। यह एक तरह का संश्लेषणात्मक विज्ञान है और इसे इंटीग्रेटेड भूगोल (समन्वयात्मक भूगोल) के रूप में भी जाना जाता है। भूगोल कि यह शाखा एक प्रकार से भौतिक भूगोल और मानव भूगोल के विभाजन और बढ़ती दूरियों को कम करने का कार्य करती है| भूगोल सदैव ही मानव और उसके पर्यावरण का अध्ययन स्थान के सन्दर्भों में करता रहा है लेकिन 1950-1970 के बीच भौतिक भूगोल और मानव भूगोल के बीच बढती दूरियों ने इसे पर्यावरण के अध्ययन से विमुख कर दिया था और इस दौरान पर्यावरण के झण्डाबरदार जीव विज्ञानी रहे। बाद में तंत्र विश्लेषण और पारिस्थितिकीय उपागम के बढ़ते महत्व को भूगोल में तेजी से स्वीकृति मिली और पर्यावरण भूगोल, भौतिक और मानव भूगोल के बीच एक बहुआयामी संश्लेषण के रूप में उभरा। पर्यावरण भूगोल के अध्ययन का क्षेत्र: (1) पर्यावरण का एक पारितंत्र के रूप में संगठन और उसकी कार्यशीलता, (2) मानव-पारितंत्रीय संबंध विश्लेषण और पर्यावरणीय अवनयन, (3) पर्यावरणीय दशाओं और मानव-पर्यावरण संबंधों का स्थानिक संदर्भ में अध्ययन, तथा (4) पर्यावरण संरक्षण और प्रबंधन से जुड़े स्थानिक पहलू (5) भौगोलिक सूचना प्रणाली (जी॰ आइ॰ एस॰) और सुदूर संवेदन तकनीक का पर्यावरणीय अध्ययन में अनुप्रयोग कि दशा और दिशा निर्धारित करना है। अतः प्राकृतिक या भौतिक भूगोल और मानव भूगोल के मध्य समन्वय स्थापित करने और इनके बहु आयामी संश्लेषण के कारण पर्यावरण भूगोल को एक तीसरी नई शाखा के रूप में भी कुछ विद्वानों द्वारा देखा गया है। .

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पर्यावरण संरक्षण

पर्यावरण शब्द परि+आवरण के संयोग से बना है। 'परि' का आशय चारों ओर तथा 'आवरण' का आशय परिवेश है। दूसरे शब्दों में कहें तो पर्यावरण अर्थात वनस्पतियों,प्राणियों,और मानव जाति सहित सभी सजीवों और उनके साथ संबंधित भौतिक परिसर को पर्यावरण कहतें हैं वास्तव में पर्यावरण में वायु,जल,भूमि,पेड़-पौधे, जीव-जन्तु,मानव और उसकी विविध गतिविधियों के परिणाम आदि सभी का समावेश होता हैं। .

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पारिस्थितिकी

260 px 95px 173px 115px 125px पारिस्थितिकी का वैज्ञानिक साम्राज्य वैश्विक प्रक्रियाओं (ऊपर), से सागरीय एवं पार्थिव सतही प्रवासियों (मध्य) से लेकर अन्तर्विशःइष्ट इंटरैक्शंस जैसे प्रिडेशन एवं परागण (नीचे) तक होता है। पारिस्थितिकी (अंग्रेज़ी:इकोलॉजी) जीवविज्ञान की एक शाखा है जिसमें जीव समुदायों का उसके वातावरण के साथ पारस्परिक संबंधों का अध्ययन करतें हैं। प्रत्येक जन्तु या वनस्पति एक निशिचत वातावरण में रहता है। पारिस्थितिज्ञ इस तथ्य का पता लगाते हैं कि जीव आपस में और पर्यावरण के साथ किस तरह क्रिया करते हैं और वह पृथ्वी पर जीवन की जटिल संरचना का पता लगाते हैं।। हिन्दुस्तान लाइव। २ मई २०१०। पारिस्थितिकी को एन्वायरनमेंटल बायोलॉजी भी कहा जाता है। इस विषय में व्यक्ति, जनसंख्या, समुदायों और इकोसिस्टम का अध्ययन होता है। इकोलॉजी अर्थात पारिस्थितिकी (जर्मन: Oekologie) शब्द का प्रथम प्रयोग १८६६ में जर्मन जीववैज्ञानिक अर्नेस्ट हैकल ने अपनी पुस्तक "जनरेल मोर्पोलॉजी देर ऑर्गैनिज़्मेन" में किया था। बीसवीं सदी के आरम्भ में मनुष्य और उसके पर्यावरण के बीच संबंधों पर अध्ययन प्रारंभ हुआ और एक साथ कई विषयों में इस ओर ध्यान दिया गया। परिणामस्वरूप मानव पारिस्थितिकी की संकलपना आयी। प्राकृतिक वातावरण बेहद जटिल है इसलिए शोधकर्ता अधिकांशत: किसी एक किस्म के प्राणियों की नस्ल या पौधों पर शोध करते हैं। उदाहरण के लिए मानवजाति धरती पर निर्माण करती है और वनस्पति पर भी असर डालती है। मनुष्य वनस्पति का कुछ भाग सेवन करते हैं और कुछ भाग बिल्कुल ही अनोपयोगी छोड़ देते हैं। वे पौधे लगातार अपना फैलाव करते रहते हैं। बीसवीं शताब्दी सदी में ये ज्ञात हुआ कि मनुष्यों की गतिविधियों का प्रभाव पृथ्वी और प्रकृति पर सर्वदा सकारात्मक ही नहीं पड़ता रहा है। तब मनुष्य पर्यावरण पर पड़ने वाले गंभीर प्रभाव के प्रति जागरूक हुए। नदियों में विषाक्त औद्योगिक कचरे का निकास उन्हें प्रदूषित कर रहा है, उसी तरह जंगल काटने से जानवरों के रहने का स्थान खत्म हो रहा है। पृथ्वी के प्रत्येक इकोसिस्टम में अनेक तरह के पौधे और जानवरों की प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनके अध्ययन से पारिस्थितिज्ञ किसी स्थान विशेष के इकोसिस्टम के इतिहास और गठन का पता लगाते हैं। इसके अतिरिक्त पारिस्थितिकी का अध्ययन शहरी परिवेश में भी हो सकता है। वैसे इकोलॉजी का अध्ययन पृथ्वी की सतह तक ही सीमित नहीं, समुद्री जनजीवन और जलस्रोतों आदि पर भी यह अध्ययन किया जाता है। समुद्री जनजीवन पर अभी तक अध्ययन बहुत कम हो पाया है, क्योंकि बीसवीं शताब्दी में समुद्री तह के बारे में नई जानकारियों के साथ कई पुराने मिथक टूटे और गहराई में अधिक दबाव और कम ऑक्सीजन पर रहने वाले जीवों का पता चला था। .

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प्रदूषण

कारखानों द्वारा धुएँ का उत्सर्जन प्रदूषण, पर्यावरण में दूषक पदार्थों के प्रवेश के कारण प्राकृतिक संतुलन में पैदा होने वाले दोष को कहते हैं। प्रदूषक पर्यावरण को और जीव-जन्तुओं को नुकसान पहुंचाते हैं। प्रदूषण का अर्थ है - 'हवा, पानी, मिट्टी आदि का अवांछित द्रव्यों से दूषित होना', जिसका सजीवों पर प्रत्यक्ष रूप से विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान द्वारा अन्य अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ते हैं। वर्तमान समय में पर्यावरणीय अवनयन का यह एक प्रमुख कारण है।.

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पैंटानल

पैंटानल विश्व का सबसे विशालकाय आर्द्रभूमि/दलदली भूमि वाला उष्णकटिबन्धीय प्राकृतिक क्षेत्र है। यह मुख्यत: ब्राज़ील के राज्य मातो ग्रोसो दो सुल में स्थित है लेकिन इसके कुछ हिस्से अन्य राज्य मातो ग्रोसो और ब्राज़ील की सीमा पार बोलीविया और पराग्वे तक भी फैले हुए हैं। यह अनुमानत: के क्षेत्रफल में फैला हुआ विशालकाय क्षेत्र है। यहाँ विभिन्न उपक्षेत्रीय पारिस्थितिक तंत्र मौजूद हैं जिनमें विभिन्न किस्म के जलीय, भौगोलिक और पारिस्थितिकीय अभिलक्षण मिलते हैं। इनमें से कम से कम १२ को (रैडमब्राज़ील 1982) में परिभाषित किया गया है।सुजन मक्ग्राथ, जोएल सारतोरे द्वारा चित्र, Brazil's Wild Wet, नैशनल जियोग्राफ़िक पत्रिका, अगस्त 2005 पैंटानल के लगभग 80% आहार क्षेत्र बारिश के मौसम में डूब जाते हैं जिसमें एक बेहद ही विविध और विभिन्न प्रकार के जैव विविधता वाले जलीय पौधों का विकास होता है। इनसे एक बहुत ही भारी संख्या में जलीय पशुओं को विकास में सहायता मिलती है। "पैंटानल" शब्द पुर्तगाली भाषा के शब्द pântano से निकला है जिसका अर्थ है आद्र/दलदली भूमि। .

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बायोम

दुनिया के मुख्य प्रकार के बायोम बायोम (biome) या जीवोम धरती या समुद्र के किसी ऐसे बड़े क्षेत्र को बोलते हैं जिसके सभी भागों में मौसम, भूगोल और निवासी जीवों (विशेषकर पौधों और प्राणी) की समानता हो।, David Sadava, H. Craig Heller, David M. Hillis, May Berenbaum, Macmillan, 2009, ISBN 978-1-4292-1962-4,...

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भारत मे पर्यावरण की समस्या

भारत में पर्यावरण की कई समस्या है। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, कचरा, और प्राकृतिक पर्यावरण के प्रदूषण भारत के लिए चुनौतियों हैं। पर्यावरण की समस्या की परिस्थिति 1947 से 1995 तक बहुत ही खराब थी। 1995 से २०१० के बीच विश्व बैंक के विशेषज्ञों के अध्ययन के अनुसार, अपने पर्यावरण के मुद्दों को संबोधित करने और अपने पर्यावरण की गुणवत्ता में सुधार लाने में के अनुसार भारत दुनिया में सबसे तेजी से प्रगति कर रहा है। फिर भी, भारत विकसित अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों के स्तर तक आने में इसी तरह के पर्यावरण की गुणवत्ता तक पहुँचने के लिए एक लंबा रास्ता तय करना है। भारत के लिए एक बड़ी चुनौती और अवसर है। पर्यावरण की समस्या का, बीमारी, स्वास्थ्य के मुद्दों और भारत के लिए लंबे समय तक आजीविका पर प्रभाव का मुख्य कारण हैं। .

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भूमि उपयोग

भूमि उपयोग पृथ्वी के किसी क्षेत्र का मनुष्य द्वारा उपयोग को सूचित करता है। सामान्यतः जमीन के हिस्से पर होने वाले आर्थिक क्रिया-कलाप को सूचित करते हुए उसे वन भूमि, कृषि भूमि, परती, चरागाह इत्यादि वर्गों में बाँटा जाता है। और अधिक तकनीकी भाषा में भूमि उपयोग को "किसी विशिष्ट भू-आवरण-प्रकार की रचना, परिवर्तन अथवा संरक्षण हेतु मानव द्वारा उस पर किये जाने वाले क्रिया-कलापों" के रूप में परिभाषित किया गया है। वृहत् स्तर पर ग्रेट ब्रिटेन में प्रथम भूमि उपयोग सर्वेक्षण सन् 1930 ई॰ में डडले स्टाम्प महोदय द्वारा किया गया था। इण्डिया वाटर पोर्टल पर। भारत में भूमि उपयोग से संबंधित मामले 'भारत सरकार' के 'ग्रामीण विकास मंत्रालय' के 'भूमि संसाधन विभाग' के अंतर्गत आते हैं। वहीं राष्ट्रीय स्तर पर भूमि उपयोग से संबंधित सर्वेक्षणों का कार्य नागपुर स्थित 'राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो' नामक संस्था करती है। इस संस्था द्वारा भारत के विभिन्न हिस्सों के भूमि उपयोग मानचित्र प्रकाशित किये जाते हैं। भूमि उपयोग और इसमें परिवर्तन का किसी क्षेत्र के पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर अत्यंत महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। प्राकृतिक संसाधन संरक्षण से जुड़े मुद्दों में भूमि उपयोग संरक्षण से जुड़े बिंदु हैं: मृदा अपरदन एवं संरक्षण, मृदा गुणवत्ता संवर्धन, जल गुणवत्ता और उपलब्धता, वनस्पति संरक्षण, वन्य-जीव आवास इत्यादि। .

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भूजैवरसायन चक्र

भूजैवरसायन चक्र अथवा जैवभूरसायन चक्र एक पारिस्थितिकीय संकल्पना है जिसके अंतर्गत किसी पारितंत्र में पदार्थों के चक्रण को दर्शाया जाता है। यह पारितंत्र की कार्यशीलता का अभिन्न अंग है। इसके विभिन्न रूप हैं जैसे, कार्बन चक्र, जल चक्र इत्यादि। .

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भूगोल शब्दावली

कोई विवरण नहीं।

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महाराणा प्रताप सागर

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के शिवालिक पहाड़ियों के आर्द्र भूमि पर ब्यास नदी पर बाँध बनाकर एक जलाशय का निर्माण किया गया है जिसे महाराणा प्रताप सागर नाम दिया गया है। इसे पौंग जलाशय या पौंग बांध के नाम से भी जाना जाता है। यह बाँध 1975 में बनाया गया था। महाराणा प्रताप के सम्मान में नामित यह जलाशय या झील (1572–1597) एक प्रसिद्ध वन्यजीव अभयारण्य है और रामसर सम्मेलन द्वारा भारत में घोषित 25 अंतरराष्ट्रीय आर्द्रभूमि साइटों में से एक है।"Salient Features of some prominent wetlands of India", pib.nic.in, Release ID 29706, web: सूर्योदय पौंग जलाशय और गोविन्दसागर जलाशय हिमाचल प्रदेश में हिमालय की तलहटी में दो सबसे महत्वपूर्ण मछली वाले जलाशय हैं।, इन जलाशयों में हिमालय राज्यों के भीतर मछली के प्रमुख स्रोत हैं। .

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समुद्री प्रदूषण

अक्सर प्रदूषण के कारण ज्यादातर नुकसान को देखा नहीं जा सकता है, जबकि समुद्री प्रदूषण को स्पष्ट किया जा सकता है जैसा कि समुद्र के ऊपर दिखाए गए मलबे को देखा जा सकता है। समुद्री प्रदूषण तब होता है जब रसायन, कण, औद्योगिक, कृषि और रिहायशी कचरा, शोर या आक्रामक जीव महासागर में प्रवेश करते हैं और हानिकारक प्रभाव, या संभवतः हानिकारक प्रभाव उत्पन्न करते हैं। समुंद्री प्रदूषण के ज्यादातर स्रोत थल आधारित होते हैं। प्रदूषण अक्सर कृषि अपवाह या वायु प्रवाह से पैदा हुए कचरे जैसे अस्पष्ट स्रोतों से होता है। कई सामर्थ्य ज़हरीले रसायन सूक्ष्म कणों से चिपक जाते हैं जिनका सेवन प्लवक और नितल जीवसमूह जन्तु करते हैं, जिनमें से ज्यादातर तलछट या फिल्टर फीडर होते हैं। इस तरह ज़हरीले तत्व समुद्री पदार्थ क्रम में अधिक गाढ़े हो जाते हैं। कई कण, भारी ऑक्सीजन का इस्तेमाल करते हुई रसायनिक प्रक्रिया के ज़रिए मिश्रित होते हैं और इससे खाड़ियां ऑक्सीजन रहित हो जाती हैं। जब कीटनाशक समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में शामिल होते हैं तो वो समुद्री फूड वेब में बहुत जल्दी सोख लिए जाते हैं। एक बार फूड वेब में शामिल होने पर ये कीटनाशक उत्परिवर्तन और बीमारियों को अंजाम दे सकते हैं, जो इंसानों के लिए हानिकारक हो सकते हैं और समूचे फूड वेब के लिए भी.

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संरक्षित जैवमंडल

संरक्षित जैवमंडल (कई स्थानों पर आरक्षित जैवमंडल भी कहा जाता है) या बायोस्फेयर रिज़र्व, यूनेस्को द्वारा अपने कार्यक्रम मैन एंड द बाओस्फेयर (मानव और जैवमंडल) (MAB) के अंतर्गत दिया जाने वाला एक अंतरराष्ट्रीय संरक्षण उपनाम है। संरक्षित जैवमंडलों का विश्व नेटवर्क, विश्व के 107 देशों के सभी 533 संरक्षित जैवमंडलों का एक संग्रह है (मई, 2009 तक)।संरक्षित जैवमंडल के रूप में मान्यता प्राप्त स्थल, किसी अंतरराष्ट्रीय समझौते का विषय नहीं है बस इनके लिए एक समान मानदंडों का पालन करना होता है। यह उस देश के संप्रभु अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं जहाँ पर यह स्थित हैं, हालांकि, यह विचारों और अनुभवों को क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संरक्षित जैवमंडलों का विश्व नेटवर्क के अंतर्गत साझा करते हैं। संरक्षित जैवमंडलों का विश्व नेटवर्क के वैधानिक ढाँचे के अनुसार जैवमंडलों का निर्माण उद्देश्य “मानव और जैवमंडल के बीच एक संतुलित संबंध का प्रदर्शन करना और इसे बढ़ावा देना है”। अनुच्छेद 4 के अंतर्गत, किसी भी संरक्षित जैवमंडल के अंतर्गत सभी उपस्थित पारिस्थितिक तंत्रों का समावेश होना चाहिए यानि इसे तटीय, पार्थिव या समुद्री पारिस्थितिक तंत्रों के संयोजन से मिलकर बना होना चाहिए। उपयुक्त अंचलों के निर्माण और प्रबंधन के माध्यम से, इन पारिस्थितिक तंत्रों के संरक्षण और उनमें जैव विविधता को बनाए रखा जा सकता है। संरक्षित जैवमंडल का डिजाइन के अनुसार किसी भी जैवमंडल को तीन क्षेत्रों मे विभाजित होना चाहिए जिनमे पहला है एक कानूनी रूप से सुरक्षित प्रमुख क्षेत्र, दूसरा एक बफर क्षेत्र जहां गैर संरक्षण गतिविधियाँ निषिद्ध हों और तीसरा एक संक्रमण क्षेत्र जहां स्वीकृत प्रथाओं की सीमित अनुमति दी गयी हो। यह स्थानीय समुदायों के लाभों को ध्यान मे रख कर किया जाता है ताकि यह समुदाय प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग स्थाई रूप से (एक लंबे समय तक) कर सकें। इस प्रयास के लिए प्रासंगिक अनुसंधान, निगरानी, शिक्षा और प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। उपरोक्त सुझाई सभी बातों पर अमल कर जैव विविधता समझौते की कार्यसूची 21 (एजेंडा 21) को लागू किया जाता है। 2007 में संरक्षित जैवमंडलों का विश्व नेटवर्क को दर्शाता मानचित्र। .

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हिमालय की पारिस्थितिकी

जैवविविधता के लिये प्रसिद्द फूलों की घाटी का एक दृश्य हिमालय की पारिस्थितिकी अथवा हिमालयी पारितंत्र जो एक पर्वतीय पारिस्थितिक तंत्र का उदाहरण है, भारत और विश्व के कुछ विशिष्ट पारितंत्रों में से एक है। हिमालय पर्वत तंत्र विश्व के सर्वाधिक नवीन और विशाल पर्वतों में से एक है। ध्रुवीय प्रदेशों के आलावा यह विश्व का तीसरा सबसे बड़ा हिम-भण्डार है और यहाँ करीब 1500 हिमनद पाए जाते हैं जो हिमालय के लगभग 17% भाग को ढंके हुए हैं। हिमालय पर्वत पर यहाँ की विशिष्ट जलवायवीय और भूआकृतिक विशेषताओं की वजह से कुछ विशिष्ट पारिस्थिक क्षेत्र पाए जाते हैं जो अपने में अद्वितीय हैं। उदाहरण के लिये फूलों की घाटी एक ऐसा ही जैवविविधता का केन्द्र है। पूर्वी हिमालय में वर्षा की अधिकता और अपेक्षा कृत नम जलवायु ने एक अलग ही प्रकार का पारितंत्र विकसित किया है। अपने विविध जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की जैवविविधता और इसके भौगोलिक प्रतिरूप के कारण हिमालयी पारितंत्र एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। नवीन वलित पर्वत होने के कारण अभी भी हिमालय क्षेत्र में भूअकृतिक स्थिरता नहीं आयी है और यह भूकम्पीय रूप से संवेदन शील तथा भूस्खलन से प्रभावित क्षेत्र में आता है। जलवायवीय रूप से भी यहाँ के हिमनदों के निवर्तन कि पुष्टि की गई है जो कि मानव द्वारा परिवर्धित जलवायु परिवर्तन का परिणाम माना जाता है। उपरोक्त कारणों से हिमालयी पारिस्थितकी अपने परिवर्तनशील होने के कारण भी महत्वपूर्ण है। इस विशिष्ट प्राकृतिक पर्यावरण में मनुष्य की क्रियाओं द्वारा एक अनन्य प्रकार का मानव पारितंत्र भी विकसित हुआ है। हिमालय की मानव पारिस्थितिकी में हुए अध्ययन यह साबित करते हैं की यहाँ मनुष्य और प्रकृति के बीच की अन्योन्याश्रयता ने एक विशिष्ट मानव पारिस्थितिकी निर्मित की है और हिमालय के परिवर्तनशील स्थितियों के कारण इस पर निर्भर मानव जनसंख्या भी बदलावों के प्रति संवेदनशील है। एक रिपोर्ट के मुताबिक हिमालयी पारितंत्र एशिया के 1.3 बिलियन लोगों की आजीविका पर प्रभाव डालता है। .

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जटिल तंत्र

जटिल तंत्र (complex system) ऐसा तंत्र (सिस्टम) होता है जो कई अंगों या भागो का बना हुआ हो जो अपनी गतिविधियों में एक-दूसरे को प्रभावित करते हों। ऐसे तंत्रों में पृथ्वी की वैश्विक जलवायु, मानव मस्तिष्क, सामाजिक और आर्थिक संगठन (जैसे कि नगर और देश), किसी स्थान का पारिस्थितिक तंत्र, जीवों की कोशिकाएँ और पूरा ब्रह्माण्ड शामिल हैं। जटिल तंत्रों को वैज्ञानिक रूप से समझना कठिन रहा है क्योंकि इन तंत्रों के विभिन्न भाग आपस में उलझी हुई गतिविधियाँ करते हैं। जटिल तंत्रों में कुछ विशेष गुण और लक्षण दिखते हैं, जैसे कि अरेखीयता (nonlinearity), उदगमन (emergence), स्वप्रसूत व्यवस्था (spontaneous order), पुनर्भरण (feedback loops)। .

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जल चक्र

जल चक्र पृथ्वी पर उपलब्ध जल के एक रूप से दूसरे में परिवर्तित होने और एक भण्डार से दूसरे भण्डार या एक स्थान से दूसरे स्थान को गति करने की चक्रीय प्रक्रिया है जिसमें कुल जल की मात्रा का क्षय नहीं होता बस रूप परिवर्तन और स्थान परिवर्तन होता है। अतः यह प्रकृति में जल संरक्षण के सिद्धांत की व्याख्या है। इसके मुख्य चक्र में सर्वाधिक उपयोग में लाए जाने वाला जल रूप - पानी (द्रव) है जो वाष्प बनकर वायुमण्डल में जाता है फिर संघनित होकर बादल बनता है और फिर बादल बनकर ठोस (हिमपात) या द्रव रूप में वर्षा के रूप में बरसता है। हिम पिघलकर पुनः द्रव में परिवर्तित हो जाता है। इस तरह जल की कुल मात्रा स्थिर रहती है। यह पृथ्वी के सम्पूर्ण पर्यावरण रुपी पारिस्थितिक तंत्र में एक भूजैवरसायन चक्र (Geobiochemical cycle) का उदाहरण है।उन सभी घटनाओं का एक पूर्ण चक्र जिसमें होकर पानी, वायुमंडलीय जलवाष्प के रूप में आरंभ होकर द्रव्य या ठोस रूप में बरसता है और उसके पष्चात् वह भू-पृष्ठ के ऊपर या उसके भीतर बहने लगता है एवं अन्ततः वाष्पन तथा वाष्पोत्सर्जन द्वारा पुनः वायुमंडलीय जल-वाष्प के रूप में बल जाता है। जल के समुद्र से वायुमण्डल में तथा फिर भूमि पर बहुत सी अवस्थाओं जैसे अवक्षेपण अंतरोधन अपवाह, अन्त: स्यन्दन अन्त: स्त्रवण भौमजल संचयन वाष्पन तथा वाष्पोत्सर्जन इत्यादि प्रक्रियाओं के बाद पुन: समुद्र में वापिस जाने का घटना चक्र। जलीय परिसंचरण (circulation) द्वारा निर्मित एक चक्र जिसके अंतर्गत जल महासागर से वायुमंडल में, वायुमंडल से भूमि (भूतल) पर और भूमि से पुनः महासागर में पहुँच जाता है। महासागर से वाष्पीकरण द्वारा जलवाष्प के रूप में जल वायुमंडल में ऊपर उठता है जहाँ जलवाष्प के संघनन से बादल बनते हैं तथा वर्षण (precipitation) द्वारा जलवर्षा अथवा हिमवर्षा के रूप में जल नीचे भूतल पर आता है और नदियों से होता हुआ पुनः महासागर में पहुँच जाता है। इस प्रकार एक जल-चक्र पूरा हो जाता है। सागर से वायुमंडल तथा थल पर से होता हुआ वापस सागर तक जाने वाला जल का परिसंचरण चक्र। जल वापस सागर तक थल पर से बहता हुआ अथवा भूमिगत मार्गों से पहुंचता है। इस निरंतर चलते रहने वाले चक्र में जल अस्थायी रूप से जीवों में तथा ताजे पानी बर्फिली जमावटों अथवा भूमिगत भंडारों के रूप में जमा होता रहता है। .

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जल संसाधन

जल संसाधन पानी के वह स्रोत हैं जो मानव के लिए उपयोगी हों या जिनके उपयोग की संभावना हो। पानी के उपयोगों में शामिल हैं कृषि, औद्योगिक, घरेलू, मनोरंजन हेतु और पर्यावरणीय गतिविधियों में। वस्तुतः इन सभी मानवीय उपयोगों में से ज्यादातर में ताजे जल की आवश्यकता होती है। पृथ्वी पर पानी की कुल उपलब्ध मात्रा अथवा भण्डार को जलमण्डल कहते हैं। पृथ्वी के इस जलमण्डल का ९७.५% भाग समुद्रों में खारे जल के रूप में है और केवल २.५% ही मीठा पानी है, उसका भी दो तिहाई हिस्सा हिमनद और ध्रुवीय क्षेत्रों में हिम चादरों और हिम टोपियों के रूप में जमा है। शेष पिघला हुआ मीठा पानी मुख्यतः जल के रूप में पाया जाता है, जिस का केवल एक छोटा सा भाग भूमि के ऊपर धरातलीय जल के रूप में या हवा में वायुमण्डलीय जल के रूप में है। मीठा पानी एक नवीकरणीय संसाधन है क्योंकि जल चक्र में प्राकृतिक रूप से इसका शुद्धीकरण होता रहता है, फिर भी विश्व के स्वच्छ पानी की पर्याप्तता लगातार गिर रही है दुनिया के कई हिस्सों में पानी की मांग पहले से ही आपूर्ति से अधिक है और जैसे-जैसे विश्व में जनसंख्या में अभूतपूर्व दर से वृद्धि हो रही हैं, निकट भविष्य मैं इस असंतुलन का अनुभव बढ़ने की उम्मीद है। पानी के प्रयोक्ताओं के लिए जल संसाधनों के आवंटन के लिए फ्रेमवर्क (जहाँ इस तरह की एक फ्रेमवर्क मौजूद है) जल अधिकार के रूप में जाना जाता है। आज जल संसाधन की कमी, इसके अवनयन और इससे संबंधित तनाव और संघर्ष विश्वराजनीति और राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। जल विवाद राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर महत्वपूर्ण विषय बन चुके हैं। .

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जलमण्डल

पृथ्वी पर पाए जाने वाले महासागर जलमण्डल से अर्थ जल की उस परत से है जो पृथ्वी की सतह पर महासागरों, झीलों, नदियों, तथा अन्य जलाशयों के रूप में फैली है। पृथ्वी की सतह के कुल क्षेत्रफल के लगभग ७१% भाग पर जल का विस्तार हैं, इसलिए पृथ्वी को जलीय ग्रह भी कहते हैं। समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पृथ्वी पर सबसे बड़ा पारितंत्र भी है। .

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ज्वालामुखी

तवुर्वुर का एक सक्रिय ज्वालामुखी फटते हुए, राबाउल, पापुआ न्यू गिनिया ज्वालामुखी पृथ्वी की सतह पर उपस्थित ऐसी दरार या मुख होता है जिससे पृथ्वी के भीतर का गर्म लावा, गैस, राख आदि बाहर आते हैं। वस्तुतः यह पृथ्वी की ऊपरी परत में एक विभंग (rupture) होता है जिसके द्वारा अन्दर के पदार्थ बाहर निकलते हैं। ज्वालामुखी द्वारा निःसृत इन पदार्थों के जमा हो जाने से निर्मित शंक्वाकार स्थलरूप को ज्वालामुखी पर्वत कहा जाता है। ज्वालामुखी का सम्बंध प्लेट विवर्तनिकी से है क्योंकि यह पाया गया है कि बहुधा ये प्लेटों की सीमाओं के सहारे पाए जाते हैं क्योंकि प्लेट सीमाएँ पृथ्वी की ऊपरी परत में विभंग उत्पन्न होने हेतु कमजोर स्थल उपलब्ध करा देती हैं। इसके अलावा कुछ अन्य स्थलों पर भी ज्वालामुखी पाए जाते हैं जिनकी उत्पत्ति मैंटल प्लूम से मानी जाती है और ऐसे स्थलों को हॉटस्पॉट की संज्ञा दी जाती है। भू-आकृति विज्ञान में ज्वालामुखी को आकस्मिक घटना के रूप में देखा जाता है और पृथ्वी की सतह पर परिवर्तन लाने वाले बलों में इसे रचनात्मक बल के रूप में वर्गीकृत किया जाता है क्योंकि इनसे कई स्थलरूपों का निर्माण होता है। वहीं, दूसरी ओर पर्यावरण भूगोल इनका अध्ययन एक प्राकृतिक आपदा के रूप में करता है क्योंकि इससे पारितंत्र और जान-माल का नुकसान होता है। .

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जैव संरक्षण

जैव संरक्षण, प्रजातियां, उनके प्राकृतिक वास और पारिस्थितिक तंत्र को विलोपन से बचाने के उद्देश्य से प्रकृति और पृथ्वी की जैव विविधता के स्तरों का वैज्ञानिक अध्ययन है। यह विज्ञान, अर्थशास्त्र और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के व्यवहार से आहरित अंतरनियंत्रित विषय है। शब्द कन्सर्वेशन बॉयोलोजी को जीव-विज्ञानी ब्रूस विलकॉक्स और माइकल सूले द्वारा 1978 में ला जोला, कैलिफ़ोर्निया स्थित कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय में आयोजित सम्मेलन में शीर्षक के तौर पर प्रवर्तित किया गया। बैठक वैज्ञानिकों के बीच उष्णकटिबंधीय वनों की कटाई, लुप्त होने वाली प्रजातियों और प्रजातियों के भीतर क्षतिग्रस्त आनुवंशिक विविधता पर चिंता से उभरी.

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वन्य जीव

गिलहरियाँ अक्सर वनों से बाहर शहरों में रहती हैं, लेकिन जंगली जीव ही समझी जाती हैं बाघ एक प्रमुख वन्य जीव है जंगली जीव हर उस वृक्ष, पौधे, जानवर और अन्य जीव को कहते हैं जिसे मानवों द्वारा पालतू न बनाया गया हो। जंगली जीव दुनिया के सभी परितंत्रों (ईकोसिस्टम​) में पाए जाते हैं, जिनमें रेगिस्तान, वन, घासभूमि, मैदान, पर्वत और शहरी क्षेत्र सभी शामिल हैं।, Dilys Roe, IIED, 2002, ISBN 978-1-84369-215-7,...

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वहन क्षमता

वहन क्षमता अथवा जनसंख्या वहन क्षमता (अंग्रेज़ी:Carrying capacity) किसी भौगोलिक क्षेत्र के पारितंत्र में किसी जीवधारी प्रजाति की उस अधिकतम जनसंख्या के रूप में परिभाषित की जाती है जिसे उस पारितंत्र के संसाधन पोषण प्रदान कर सकते हों। स्पष्ट है कि वहन क्षमता से अधिक जनसंख्या वृद्धि उस पारितंत्र पर दबाव डालेगी और अत्यधिक वृद्धि उस तंत्र के विफल होजाने का कारण भी बन सकती है। पारितंत्र की वहन क्षमता से अधिक जनसंख्या वृद्धि हो जाना जनसंख्या उत्क्षेप (Population overshoot) कहा जाता है। यह एक पारिस्थितिकीय संकल्पना है जिसका वर्तमान मानव जनाधिक्य को पृथ्वी के पर्यावरण रुपी पारितंत्र के संसाधनों और सेवाओं की सीमा से जोड़कर देखा जा रहा है। मानव जनाधिक्य एक ऐसी स्थिति है जब मानव जनसंख्या किसी क्षेत्र की पारिस्थितिकीय वहन क्षमता से अधिक हो जाए। यह शब्दावली पूरी मानव जाति की जनसंख्या और वैश्विक पर्यावरण (जो एक पारितंत्र भी है) की वहन क्षमता के बीच संबंधों को व्यक्त करने के लिये भी इस्तेमाल होती है। विद्वानों का मानना है कि मनुष्य जनसंख्या वृद्धि द्वारा पृथ्वी के पर्यावरण (वैश्विक पारितंत्र) पर दबाव डाल रहा है क्योंकि मानव जनसंख्या पहले ही अधिकतम वहन क्षमता का स्तर पार कर चुकी है। .

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केरल अनूपझीलें

केरल अनूपझीलें या केरल बैकवॉटर्स भारत के दक्षिण में स्थित केरल राज्य में अरब सागर से सामांतर कुछ दूरी पर स्थित खारी अनूप झीलों और झीलों की एक शृंखला है। इसमें प्राकृतिक और कृत्रिम नहरों द्वारा जुड़ी हुई पाँच बड़ी झीलें हैं जिनमें ३८ नदियाँ जल लाती हैं। यह केरल की उत्तर-दक्षिण लम्बाई के लगभग आधे भाग पर विस्तृत है। केरल अनूपझीलें पश्चिमी घाट से उतरती हुई नदियों के नदीमुखों के सामने समुद्री लहरों व ज्वार-भाटा के प्रभाव से बने बाधा द्वीपों के पीछे बन गई हैं। केरल अनूपझील क्षेत्र में नहरों, झीलों, नदियों और समुद्री क्षेत्रों पर विस्तृत ९०० किलोमीटर से अधिक जलमार्ग हैं। यहाँ जल के किनारे कई गाँव और नगर बसे हुए हैं जहाँ से पर्यटक इन अनूपझीलों का आनंद लेने आते हैं। भारत का राष्ट्रीय जलमार्ग ३ यहाँ कोल्लम से कोट्टापुरम तक २०५ किमी तय करता है और दक्षिणी केरल में तट के साथ-साथ समानांतर चलता है। यह माल-वहन और पर्यटन के लिये महत्वपूर्ण है।Ayub, Akber (ed), Kerala: Maps & More, Backwaters, 2006 edition 2007 reprint, pp.

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अपघटन

अपघटन एक प्रकार की क्रिया है, जिसमें तत्व अलग अलग सूक्ष्म भागों में विभाजित हो जाते हैं। जीवों में यह क्रिया उनके मृत्यु के पश्चात शुरू हो जाती है। इसमें महत्वपूर्ण योगदान सूक्ष्म जीवों का होता है, जो किसी भी जीव के लाश को धीरे धीरे बहुत ही छोटे टुकड़ों में विभाजित कर उसे पारिस्थितिक तंत्र का हिस्सा बना लेते हैं। .

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अष्टमुडी झील

अष्टमुडी झील भारत के केरल राज्य के केरल अनूपझील क्षेत्र की एक अनूप झील है। इसका आकार आठ-भुजाओं वाला है, जिस से इसका नाम पड़ा है। यह पर्यटकों में लोकप्रिय है और केरल अनूझीलों में भ्रमण करने वालों के लिये एक आरम्भिक बिन्दु है।http://www.hotelskerala.com/ashtamudi/facilities.htm Back water Retreat Ashtamudihttp://www.wwfindia.org/about_wwf/what_we_do/freshwater_wetlands/our_work/ramsar_sites/ashtamudi_lake.cfm Ashtamudi Lakehttp://www.kerenvis.nic.in/water/Ramsar%20cites.pdf झील का पारिस्थितिक तंत्र अनूठा है और यह भारत के महत्वपूर्ण आर्द्रभूमि क्षेत्रों में से एक है और रामसर सम्मेलन की सूची में शामिल है। झील के दोनो तटों और उस से जुड़ी हुई नहरों के किनारों पर नारियल और ताड़ के वृक्ष उगे हुए हैं और स्थान-स्थान पर गाँव-कस्बे हैं। कोल्लम एक ऐतिहारिक बंदरगाही नगर है जो झील के दाएँ (पूर्वी) किनारे पर है। यहाँ से आलापुड़ा (आलेप्पी) तक एक नाव-सेवा चलती है। झील पर पर्यटकों के लिये हाउसबोट सेवा भी उपलब्ध है जो झीलों व नहरों से होती हुई कई गाँवो के समीप से निकलती है - यह ८ घंटों की यात्रा सैलानियों को स्थानीय सौन्दर्य से परिचित कराती है। जलमार्ग पर मछुआरों द्वारा लगाये गये चीनी-शैली के मछली पकड़ने के जाल दिखते हैं।http://www.kazhakuttom.com/kollam.htm Kollam at a Glance .

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ऋतु

ऋतु एक वर्ष से छोटा कालखंड है जिसमें मौसम की दशाएँ एक खास प्रकार की होती हैं। यह कालखण्ड एक वर्ष को कई भागों में विभाजित करता है जिनके दौरान पृथ्वी के सूर्य की परिक्रमा के परिणामस्वरूप दिन की अवधि, तापमान, वर्षा, आर्द्रता इत्यादि मौसमी दशाएँ एक चक्रीय रूप में बदलती हैं। मौसम की दशाओं में वर्ष के दौरान इस चक्रीय बदलाव का प्रभाव पारितंत्र पर पड़ता है और इस प्रकार पारितंत्रीय ऋतुएँ निर्मित होती हैं यथा पश्चिम बंगाल में जुलाई से सितम्बर तक वर्षा ऋतु होती है, यानि पश्चिम बंगाल में जुलाई से अक्टूबर तक, वर्ष के अन्य कालखंडो की अपेक्षा अधिक वर्षा होती है। इसी प्रकार यदि कहा जाय कि तमिलनाडु में मार्च से जुलाई तक ग्रीष्म ऋतु होती है, तो इसका अर्थ है कि तमिलनाडु में मार्च से जुलाई तक के महीने साल के अन्य समयों की अपेक्षा गर्म रहते हैं। एक ॠतु .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

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