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सूरा

सूची सूरा

सूरा (यदा कदा सूरह भी कहा जाता है سورة, سور) एक अरबी शब्द है। इसका अक्षरशः अर्थ है "कोई वस्तु, जो किसी दीवार या बाडः से घिरी है"। यह शब्द कुरान के अध्याय के लिए प्रयोग होता है, जो कि परंपरा अनुसार कम होती लम्बाई के क्रम से लिखे हैं। प्रत्येक सूरा का नाम एक शब्द पर है, जो उस सूरा के अयाह (भाग) में उल्लेखित है। कुछ सूरा मुस्लिमों के लिए अपने रहस्योद्घाटन काल में विस्मयकारी थे। उदाहरणतः ईशू मसीह की माँ - मरियम का अति उच्च स्तर, जो कि इसाइयत (ईशू) की माँ थीं - जैसा सूरा 19 में उल्लेखित है। .

120 संबंधों: ता हा, तारामंडल, नूह (सूरा), फातिर, फुस्सीलत, मदीनन सूरा, मरयम (सूरा), मक्कन सूरा, मुहम्मद, मुहम्मद (सूरा), या सिन, यूनुस (सूरा), यूसुफ़ (सूरा), लुकमान (सूरा), सबा (सूरा), साद (सूरा), हूद (सूरा), ग़ाफिर, इब्राहिम (सूरा), क़ुरआन, काफ (सूरा), कुरैश (सूरा), अ-ब-स, अत-तलाक, अत-तहरीम, अत-तारिक, अत-तिन, अत-तगाबुन, अत-तकाथुर, अत-तकविर, अत-तौबा, अत-तूर, अद-दुखान, अद-धुहा, अध-धारियात, अन-नबा, अन-नम्ल, अन-नस्र, अन-नह्ल, अन-नाजीयत, अन-निसा, अन-नज्म, अन-नूर, अब्राहम, अर-रहमान, अर-रअद, अर-रुम, अरबी भाषा, अल-ए-इमरान, अल-नास, ..., अल-फतह, अल-फलक, अल-फ़ातिहा, अल-फुरकान, अल-फील, अल-बय्यिना, अल-बलद, अल-बक़रा, अल-बुरूज, अल-मसद्द, अल-माइदा, अल-माउन, अल-मआरिज, अल-मुतफ्फिफिन, अल-मुद्दस्सिर, अल-मुनाफिकून, अल-मुम्तहिना, अल-मुर्सलात, अल-मुल्क, अल-मुजादिला, अल-मुज्जम्मिल, अल-मोमिनून, अल-लैल, अल-हदीद, अल-हश्र, अल-हाक्का, अल-हिज्र, अल-हज़, अल-हु-म-जह, अल-हुजुरात, अल-जासिया, अल-जिन्न, अल-जुमुआ, अल-वाकिया, अल-गाशियह, अल-आदियात, अल-आराफ़, अल-आला, अल-इन्फितार, अल-इन्शिराह, अल-इस्र, अल-इखलास, अल-इंशिकाक, अल-इंसान, अल-कद्र, अल-कमर, अल-कलम, अल-कहफ़, अल-क़सस, अल-काफ़िरुन, अल-कारियह, अल-कियामह, अल-कौथर, अल-अनफाल, अल-अनआम, अल-अनकबूत, अल-अलक़, अल-अश्र, अल-अहजाब, अल-अहकाफ, अल-अंबिया, अश-शम्स, अश-शुआरा, अश-शूरा, अस-सफ्फ, अस-साफ्फात, अस-सजदा, अज-ज़ुख़रुफ़, अज़-जलजला, अज़-जु़मार सूचकांक विस्तार (70 अधिक) »

ता हा

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तारामंडल

मृगशीर्ष या ओरायन (शिकारी तारामंडल) एक जाना-माना तारामंडल है - पीली धारी के अन्दर के क्षेत्र को ओरायन क्षेत्र बोलते हैं और उसके अंदर वाली हरी आकृति ओरायन की आकृति है खगोलशास्त्र में तारामंडल आकाश में दिखने वाले तारों के किसी समूह को कहते हैं। इतिहास में विभिन्न सभ्यताओं नें आकाश में तारों के बीच में कल्पित रेखाएँ खींचकर कुछ आकृतियाँ प्रतीत की हैं जिन्हें उन्होंने नाम दे दिए। मसलन प्राचीन भारत में एक मृगशीर्ष नाम का तारामंडल बताया गया है, जिसे यूनानी सभ्यता में ओरायन कहते हैं, जिसका अर्थ "शिकारी" है। प्राचीन भारत में तारामंडलों को नक्षत्र कहा जाता था। आधुनिक काल के खगोलशास्त्र में तारामंडल उन्ही तारों के समूहों को कहा जाता है जिन समूहों पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ में सहमति हो। आधुनिक युग में किसी तारों के तारामंडल के इर्द-गिर्द के क्षेत्र को भी उसी तारामंडल का नाम दे दिया जाता है। इस प्रकार पूरे खगोलीय गोले को अलग-अलग तारामंडलों में विभाजित कर दिया गया है। अगर यह बताना हो कि कोई खगोलीय वस्तु रात्री में आकाश में कहाँ मिलेगी तो यह बताया जाता है कि वह किस तारामंडल में स्थित है।, Neil F. Comins, pp.

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नूह (सूरा)

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फातिर

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फुस्सीलत

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मदीनन सूरा

मदीनन सूरतें क़ुरआन की सब से बाद की वो 24 सूरतें हैं जो ईस्लामी परंपरा के अनुसार, मदीना में मुहम्मद(सल्ल) और उनके साथियों के मक्का से हिजरत (देश त्याग) के बाद में प्रकट (प्रकाशित) हुई थीं। ये सूरतें ईश्वर (अल्लाह) नें अवतरित की, जब मुस्लिम समुदाय मक्का में पहले वाली अल्पसंख्यक स्थिति की तुलना में तादाद में ज़्यादा और अधिक विकसित था। श्रेणी:क़ुरआन.

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मरयम (सूरा)

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मक्कन सूरा

मक्कन सूरा ज़मानि तौर पर क़ुरआन की वो सूरतें हैं जो ईस्लामी परंपरा के अनुसार, मुहम्मद(सल्ल) और उनके साथियों के मक्का से मदिना हिजरत (देश त्याग) से पहले प्रकट (प्रकाशित) हुई थीं। श्रेणी:क़ुरआन.

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मुहम्मद

हज़रत मुहम्मद (محمد صلی اللہ علیہ و آلہ و سلم) - "मुहम्मद इब्न अब्दुल्लाह इब्न अब्दुल मुत्तलिब" का जन्म सन ५७० ईसवी में हुआ था। इन्होंने इस्लाम धर्म का प्रवर्तन किया। ये इस्लाम के सबसे महान नबी और आख़िरी सन्देशवाहक (अरबी: नबी या रसूल, फ़ारसी: पैग़म्बर) माने जाते हैं जिन को अल्लाह ने फ़रिश्ते जिब्रईल द्वारा क़ुरआन का सन्देश' दिया था। मुसलमान इनके लिये परम आदर भाव रखते हैं। .

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मुहम्मद (सूरा)

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या सिन

सूरा या-सीन (سورة يس) कुरान का 36वां अध्याय है। इसमें 83 आयतें हैं, एवं इसे मक्का में प्रकट किया गया था। इसे कुरान का हृदय माना जाता है। यह सूरा मुसलमानों द्वारा किसी की मृत्यु के समय पढा़ जाता है। .

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यूनुस (सूरा)

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यूसुफ़ (सूरा)

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लुकमान (सूरा)

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सबा (सूरा)

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साद (सूरा)

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हूद (सूरा)

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ग़ाफिर

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इब्राहिम (सूरा)

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क़ुरआन

'''क़ुरान''' का आवरण पृष्ठ क़ुरआन, क़ुरान या कोरआन (अरबी: القرآن, अल-क़ुर्'आन) इस्लाम की पवित्रतम किताब है और इसकी नींव है। मुसलमान मानते हैं कि इसे अल्लाह ने फ़रिश्ते जिब्रील द्वारा हज़रत मुहम्मद को सुनाया था। मुसलमान मानते हैं कि क़ुरआन ही अल्लाह की भेजी अन्तिम और सर्वोच्च किताब है। यह ग्रन्थ लगभग 1400 साल पहले अवतरण हुई है। इस्लाम की मान्यताओं के मुताबिक़ क़ुरआन अल्लाह के फ़रिश्ते जिब्रील (दूत) द्वारा हज़रत मुहम्मद को सन् 610 से सन् 632 में उनकी मौत तक ख़ुलासा किया गया था। हालांकि आरंभ में इसका प्रसार मौखिक रूप से हुआ पर पैग़म्बर मुहम्मद की मौत के बाद सन् 633 में इसे पहली बार लिखा गया था और सन् 653 में इसे मानकीकृत कर इसकी प्रतियाँ इस्लामी साम्राज्य में वितरित की गईं थी। मुसलमानों का मानना है कि ईश्वर द्वारा भेजे गए पवित्र संदेशों के सबसे आख़िरी संदेश क़ुरआन में लिखे गए हैं। इन संदेशों की शुरुआत आदम से हुई थी। हज़रत आदम इस्लामी (और यहूदी तथा ईसाई) मान्यताओं में सबसे पहला नबी (पैग़म्बर या पयम्बर) था और इसकी तुलना हिन्दू धर्म के मनु से एक हद तक की जा सकती है। जिस तरह से हिन्दू धर्म में मनु की संतानों को मानव कहा गया है वैसे ही इस्लाम में आदम की संतानों को आदमी कहा जाता है। तौहीद, धार्मिक आदेश, जन्नत, जहन्नम, सब्र, धर्म परायणता (तक्वा) के विषय ऐसे हैं जो बारम्बार दोहराए गए। क़ुरआन ने अपने समय में एक सीधे साधे, नेक व्यापारी इंसान को, जो अपने ‎परिवार में एक भरपूर जीवन गुज़ार रहा था। विश्व की दो महान शक्तियों ‎‎(रोमन तथा ईरानी) के समक्ष खड़ा कर दिया। केवल यही नहीं ‎उसने रेगिस्तान के अनपढ़ लोगों को ऐसा सभ्य बना दिया कि पूरे विश्व पर ‎इस सभ्यता की छाप से सैकड़ों वर्षों बाद भी इसके निशान पक्के मिलते हैं। ‎क़ुरआन ने युध्द, शांति, राज्य संचालन इबादत, परिवार के वे आदर्श प्रस्तुत ‎किए जिसका मानव समाज में आज प्रभाव है। मुसलमानों के अनुसार कुरआन में दिए गए ज्ञान से ये साबित होता है कि हज़रत मुहम्मद एक नबी है | .

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काफ (सूरा)

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कुरैश (सूरा)

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अ-ब-स

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अत-तलाक

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अत-तहरीम

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अत-तारिक

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अत-तिन

अंजीर का फलित वृक्ष जॉर्डन का जैतून वृक्ष सूरा अत-तिन (التين, अंजीर, अंजीर वृक्ष) कुरान का 95वां सूरा है। इसमें 8 आयतें हैं। .

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अत-तगाबुन

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अत-तकाथुर

R9Ye5GvBLUI (2) http://en.wikipedia.org/wiki/At-Takathur श्रेणी:सूरा श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अत-तकविर

सूरा अत-तकविर (अरबी: سورة التكوير) (पदच्युत) कुरान का 81वां सूरा है। इसमें 29 आयतें हैं। इस सूरा की आयत 8,9 में लड़कियों की भ्रूण हत्या पर प्रतिबन्ध प्रकट किया गया है। "और स्त्री शिशु को जिंदा जलाना, जैसा कि अरबों की पगान जाति में होता था), का हिसाब लिया जायेगा, कि उसने क्या पाप किया था, जो उसे मारा गया? (9)" .

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अत-तौबा

कोई विवरण नहीं।

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अत-तूर

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अद-दुखान

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अद-धुहा

rightसूरा अद-धुहा (الضحى, प्रातः समय, प्रातः प्रकाश) कुरान का 93वां सुर है। इसमें 11 आयतें हैं। कुछ ज्ञाताओं में मतभेद है, फिर भी यह सूरा मुहम्मद को प्रकट किया हुआ द्वितीय सूरा माना जाता है। प्रथम सूरा अल-अलक के प्राप्त होने के उपरांत एक शांत अंतराल था, जिसमें कोई वार्तालाप नहीं हुआ। इससे नये बने पैगम्बर को संदेह हुआ कि कहीं उन्होंने ईश्वर को नाराज़ तो नहीं कर दिया, कि वे इतनी देर से कोई भी सन्देश नहीं दे रहे हैं। इस सूरा ने उस शांति को भंग करते हुए, मुहम्मद को विश्वास दिलाया कि समय के साथ - साथ सब कुछ समझ में आता जायेगा। प्रातः काल का चित्र (अध-धुहा) इस सूरा का प्रथम शब्द है और इसे मुहम्मद के ईश्वर के पैगम्बर होने के "प्रथम दिवस" को चिह्नित करता है। साथ ही साथ जीवन के नये ढंग की शुरुआत का संकेत करता है, जो कि इस्लाम बनेगा। इस सूरा के बाद, मुहम्मद की मृत्यु पर्यंत जिब्राइल का प्रकटन, कुरान के शब्दों के साथ, नियमित रूप से होता रहा। विषय वस्तु, लम्बाई, शैली एवं कुरान में अपने नियोजन के कारण; यह सूरा प्रायः सूरा अल-इनशिराह के साथ युगल में आता है। इनको समकालीन प्रकटित माना जाता है। .

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अध-धारियात

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अन-नबा

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अन-नम्ल

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अन-नस्र

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अन-नह्ल

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अन-नाजीयत

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अन-निसा

क़ुरान का अध्याय (सूरा)। .

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अन-नज्म

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अन-नूर

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अब्राहम

हज़रत इब्राहम(लगभग 1800 ई.पू.) ईश्वर के आदेश से मेसोपोतेमिया के ऊपर तथा हारान नामक शहरों को छोड़कर कनान और मिस्र चले गए। बाइबिल में इब्राहम का जो वृत्तांत मिलता है (उत्पत्ति ग्रंथ, अध्याय 11-25), उसकी रचना लगभग 900 ई.पू.

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अर-रहमान

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अर-रअद

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अर-रुम

क़ुरान का अध्याय (सूरा)। श्रेणी:सुरः श्रेणी:चित्र जोड़ें fa:روم.

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अरबी भाषा

अरबी भाषा सामी भाषा परिवार की एक भाषा है। ये हिन्द यूरोपीय परिवार की भाषाओं से मुख़्तलिफ़ है, यहाँ तक कि फ़ारसी से भी। ये इब्रानी भाषा से सम्बन्धित है। अरबी इस्लाम धर्म की धर्मभाषा है, जिसमें क़ुरान-ए-शरीफ़ लिखी गयी है। .

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अल-ए-इमरान

क़ुरान का अध्याय (सूरा)। .

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अल-नास

क़ुरान का अध्याय (सूरा)। الناس بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ قُلْ أَعُوذُ بِرَبِّ النَّاسِ (ऐ रसूल) तुम कह दो मैं लोगों के परवरदिगार مَلِكِ النَّاسِ लोगों के बादशाह إِلَٰهِ النَّاسِ लोगों के माबूद की (शैतानी) مِن شَرِّ الْوَسْوَاسِ الْخَنَّاسِ वसवसे की बुराई से पनाह माँगता हूँ الَّذِي يُوَسْوِسُ فِي صُدُورِ النَّاسِ जो (ख़ुदा के नाम से) पीछे हट जाता है जो लोगों के दिलों में वसवसे डाला करता है مِنَ الْجِنَّةِ وَالنَّاسِ जिन्नात में से ख्वाह आदमियों में से अल-नास श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अल-फतह

सूरा अल-फतह (अरबी: سورة الفتح) (विजय, जीत) कुरान का 48वां सूरा है। इसमें 29 आयतें हैं। यह मदीनी सूरा है। .

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अल-फलक

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अल-फ़ातिहा

सूरा अल-फातिहा (الفاتحة), "आरम्भ्," इस्लाम की पवित्र ग्रन्थ कुरआन का पहला सूरा, या अध्याय है। इसमें 7 आयतें हैं। इसमें ईश्वर के निर्देश एवं दया हेतु प्रार्थना की गई है। इस अध्याय का खास महत्व है, दैनिक प्रार्थना के आरम्भ में बोला जाने वाला सूरा है। .

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अल-फुरकान

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अल-फील

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अल-बय्यिना

सूरा अल-बय्यिना (अरबी: سورة البينة) (स्पष्ट साक्ष्य) कुरान का 98वां सूरा है। इसमें 8 आयतें हैं। .

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अल-बलद

क़ुरान का अध्याय (सूरा)। अल-बलद श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अल-बक़रा

अल-बक़रा क़ुरान का एक अध्याय (सूरा) है। .

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अल-बुरूज

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अल-मसद्द

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अल-माइदा

क़ुरान का अध्याय (सूरा)। --HINDI TRANSLATION-- सूरए अल माएदह (ख़वान) मदीना में नाज़िल हुआ और इसकी एक सौ बीस आयते हैं (मैं) उस ख़ुदा के नाम से (षुरू करता हॅू) जो बड़ा मेहरबान रहम वाला है ऐ ईमानदारों (अपने) इक़रारों को पूरा करो (देखो) तुम्हारे वास्ते चैपाए जानवर हलाल कर दिये गये उन के सिवा जो तुमको पढ़ कर सुनाए जाएॅगे हलाल कर दिए गए मगर जब तुम हालते एहराम में हो तो षिकार को हलाल न समझना बेषक ख़ुदा जो चाहता है हुक्म देता है (1) ऐ ईमानदारों (देखो) न ख़ुदा की निषानियों की बेतौक़ीरी करो और न हुरमत वाले महिने की और न क़ुरबानी की और न पट्टे वाले जानवरों की (जो नज़रे ख़ुदा के लिए निषान देकर मिना में ले जाते हैं) और न ख़ानाए काबा की तवाफ़ (व ज़ियारत) का क़स्द करने वालों की जो अपने परवरदिगार की ख़ुषनूदी और फ़ज़ल (व करम) के जोयाँ हैं और जब तुम (एहराम) खोल दो तो षिकार कर सकते हो और किसी क़बीले की यह अदावत कि तुम्हें उन लोगों ने ख़ानाए काबा (में जाने) से रोका था इस जुर्म में न फॅसवा दे कि तुम उनपर ज़्यादती करने लगो और (तुम्हारा तो फ़र्ज यह है कि) नेकी और परहेज़गारी में एक दूसरे की मदद किया करो और गुनाह और ज़्यादती में बाहम किसी की मदद न करो और ख़ुदा से डरते रहो (क्योंकि) ख़ुदा तो यक़ीनन बड़ा सख़्त अज़ाब वाला है (2) (लोगों) मरा हुआ जानवर और ख़ून और सुअर का गोश्त और जिस (जानवर) पर (ज़िबाह) के वक़्त ख़ुदा के सिवा किसी दूसरे का नाम लिया जाए और गर्दन मरोड़ा हुआ और चोट खाकर मरा हुआ और जो कुएॅ (वगै़रह) में गिरकर मर जाए और जो सींग से मार डाला गया हो और जिसको दरिन्दे ने फाड़ खाया हो मगर जिसे तुमने मरने के क़ब्ल ज़िबाह कर लो और (जो जानवर) बुतों (के थान) पर चढ़ा कर ज़िबाह किया जाए और जिसे तुम (पाँसे) के तीरों से बाहम हिस्सा बाॅटो (ग़रज़ यह सब चीज़ें) तुम पर हराम की गयी हैं ये गुनाह की बात है (मुसलमानों) अब तो कुफ़्फ़ार तुम्हारे दीन से (फिर जाने से) मायूस हो गए तो तुम उनसे तो डरो ही नहीं बल्कि सिर्फ मुझी से डरो आज मैंने तुम्हारे दीन को कामिल कर दिया और तुमपर अपनी नेअमत पूरी कर दी और तुम्हारे (इस) दीने इस्लाम को पसन्द किया पस जो शख़्स भूख़ में मजबूर हो जाए और गुनाह की तरफ़ माएल भी न हो (और कोई चीज़ खा ले) तो ख़ुदा बेषक बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है (3) (ऐ रसूल) तुमसे लोग पूॅछते हैं कि कौन (कौन) चीज़ उनके लिए हलाल की गयी है तुम (उनसे) कह दो कि तुम्हारे लिए पाकीज़ा चीजें़ हलाल की गयीं और शिकारी जानवर जो तुमने शिकार के लिए सधा रखें है और जो (तरीके़) ख़ुदा ने तुम्हें बतायेे हैं उनमें के कुछ तुमने उन जानवरों को भी सिखाया हो तो ये शिकारी जानवर जिस शिकार को तुम्हारे लिए पकड़ रखें उसको (बेताम्मुल) खाओ और (जानवर को छोंड़ते वक़्त) ख़ुदा का नाम ले लिया करो और ख़ुदा से डरते रहो (क्योंकि) इसमें तो शक ही नहीं कि ख़ुदा बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है (4) आज तमाम पाकीज़ा चीजें़ तुम्हारे लिए हलाल कर दी गयी हैं और एहले किताब की ख़ुश्क चीजे़ं गेहूॅ (वगैरह) तुम्हारे लिए हलाल हैं और तुम्हारी ख़ुश्क चीजें़ गेहॅू (वगैरह) उनके लिए हलाल हैं और आज़ाद पाक दामन औरतें और उन लोगों में की आज़ाद पाक दामन औरतें जिनको तुमसे पहले किताब दी जा चुकी है जब तुम उनको उनके मेहर दे दो (और) पाक दामिनी का इरादा करो न तो खुल्लम खुल्ला ज़िनाकारी का और न चोरी छिपे से आशनाई का और जिस शख़्स ने ईमान से इन्कार किया तो उसका सब किया (धरा) अकारत हो गया और (तुल्फ़ तो ये है कि) आख़ेरत में भी वही घाटे में रहेगा (5) ऐ इमानदारों जब तुम नमाज़ के लिये आमादा हो तो अपने मुॅह और कोहनियों तक हाथ धो लिया करो और अपने सरों का और टखनों तक पाॅवों का मसाह कर लिया करो और अगर तुम हालते जनाबत में हो तो तुम तहारत (ग़ुस्ल) कर लो (हाॅ) और अगर तुम बीमार हो या सफ़र में हो या तुममें से किसी को पैख़ाना निकल आए या औरतों से हमबिस्तरी की हो और तुमको पानी न मिल सके तो पाक ख़ाक से तैमूम कर लो यानि (दोनों हाथ मारकर) उससे अपने मुॅह और अपने हाथों का मसा कर लो (देखो तो ख़ुदा ने कैसी आसानी कर दी) ख़ुदा तो ये चाहता ही नहीं कि तुम पर किसी तरह की तंगी करे बल्कि वो ये चाहता है कि पाक व पाकीज़ा कर दे और तुमपर अपनी नेअमते पूरी कर दे ताकि तुम शुक्रगुज़ार बन जाओ (6) और जो एहसानात ख़ुदा ने तुमपर किए हैं उनको और उस (एहद व पैमान) को याद करो जिसका तुमसे पक्का इक़रार ले चुका है जब तुमने कहा था कि हमने (एहकामे ख़ुदा को) सुना और दिल से मान लिया और ख़ुदा से डरते रहो क्योंकि इसमें ज़रा भी शक नहीं कि ख़ुदा दिलों के राज़ से भी बाख़बर है (7) ऐ ईमानदारों ख़ुदा (की ख़ुशनूदी) के लिए इन्साफ़ के साथ गवाही देने के लिए तैयार रहो और तुम्हें किसी क़बीले की अदावत इस जुर्म में न फॅसवा दे कि तुम नाइन्साफी करने लगो (ख़बरदार बल्कि) तुम (हर हाल में) इन्साफ़ करो यही परहेज़गारी से बहुत क़रीब है और ख़ुदा से डरो क्योंकि जो कुछ तुम करते हो (अच्छा या बुरा) ख़ुदा उसे ज़रूर जानता है (8) और जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए ख़ुदा ने वायदा किया है कि उनके लिए (आख़िरत में) मग़फे़रत और बड़ा सवाब है (9) और जिन लोगों ने कुफ्ऱ इख़्तेयार किया और हमारी आयतों को झुठलाया वह जहन्नुमी हैं (10) ऐ इमानदारों ख़ुदा ने जो एहसानात तुमपर किए हैं उनको याद करो और ख़ूसूसन जब एक क़बीले ने तुम पर दस्त दराज़ी का इरादा किया था तो ख़ुदा ने उनके हाथों को तुम तक पहुॅचने से रोक दिया और ख़ुदा से डरते रहो और मोमिनीन को ख़ुदा ही पर भरोसा रखना चाहिए (11) और इसमें भी शक नहीं कि ख़ुदा ने बनी इसराईल से (भी ईमान का) एहद व पैमान ले लिया था और हम (ख़ुदा) ने इनमें के बारह सरदार उनपर मुक़र्रर किए और ख़ुदा ने बनी इसराईल से फ़रमाया था कि मैं तो यक़ीनन तुम्हारे साथ हॅू अगर तुम भी पाबन्दी से नमाज़ पढ़ते और ज़कात देते रहो और हमारे पैग़म्बरों पर ईमान लाओ और उनकी मदद करते रहो और ख़ुदा (की ख़ुशनूदी के वास्ते लोगों को) क़र्जे हसना देते रहो तो मैं भी तुम्हारे गुनाह तुमसे ज़रूर दूर करूंगा और तुमको बेहिश्त के उन (हरे भरे) बाग़ों में जा पहुॅचाऊॅगा जिनके (दरख़्तों के) नीचे नहरें जारी हैं फिर तुममें से जो शख़्स इसके बाद भी इन्कार करे तो यक़ीनन वह राहे रास्त से भटक गया (12) पस हमने उनकीे एहद शिकनी की वजह से उनपर लानत की और उनके दिलों को (गोया) हमने ख़ुद सख़्त बना दिया कि (हमारे) कलमात को उनके असली मायनों से बदल कर दूसरे मायनो में इस्तेमाल करते हैं और जिन जिन बातों की उन्हें नसीहत की गयी थी उनमें से एक बड़ा हिस्सा भुला बैठे और (ऐ रसूल) अब तो उनमें से चन्द आदमियों के सिवा एक न एक की ख़्यानत पर बराबर मुत्तेला होते रहते हो तो तुम उन (के क़सूर) को माफ़ कर दो और (उनसे) दरगुज़र करो (क्योंकि) ख़ुदा एहसान करने वालों को ज़रूर दोस्त रखता है (13) और जो लोग कहते हैं कि हम नसरानी हैं उनसे (भी) हमने इमान का एहद (व पैमान) लिया था मगर जब जिन जिन बातों की उन्हें नसीहत की गयी थी उनमें से एक बड़ा हिस्सा (रिसालत) भुला बैठे तो हमने भी (उसकी सज़ा में) क़यामत तक उनमें बाहम अदावत व दुशमनी की बुनियाद डाल दी और ख़ुदा उन्हें बहुत जल्द (क़यामत के दिन) बता देगा कि वह क्या क्या करते थे (14) ऐ एहले किताब तुम्हारे पास हमारा पैगम्बर (मोहम्मद स0) आ चुका जो किताबे ख़ुदा की उन बातों में से जिन्हें तुम छुपाया करते थे बहुतेरी तो साफ़ साफ़ बयान कर देगा और बहुतेरी से (अमदन) दरगुज़र करेगा तुम्हरे पास तो ख़ुदा की तरफ़ से एक (चमकता हुआ) नूर और साफ़ साफ़ बयान करने वाली किताब (कु़रान) आ चुकी है (15) जो लोग ख़ुदा की ख़ुशनूदी के पाबन्द हैं उनको तो उसके ज़रिए से राहे निजात की हिदायत करता है और अपने हुक्म से (कुफ्ऱ की) तारीकी से निकालकर (ईमान की) रौशनी में लाता है और राहे रास्त पर पहुॅचा देता है (16) जो लोग उसके क़ायल हैं कि मरियम के बेटे मसीह बस ख़ुदा हैं वह ज़रूर काफ़िर हो गए (ऐ रसूल) उनसे पूॅछो तो कि भला अगर ख़ुदा मरियम के बेटे मसीह और उनकी माॅ को और जितने लोग ज़मीन में हैं सबको मार डालना चाहे तो कौन ऐसा है जिसका ख़ुदा से भी ज़ोर चले (और रोक दे) और सारे आसमान और ज़मीन में और जो कुछ भी उनके दरम्यिान में है सब ख़ुदा ही की सल्तनत है जो चाहता है पैदा करता है और ख़ुदा तो हर चीज़ पर क़ादिर है (17) और नसरानी और यहूदी तो कहते हैं कि हम ही ख़ुदा के बेटे और उसके चहेते हैं (ऐ रसूल) उनसे तुम कह दो (कि अगर ऐसा है) तो फिर तुम्हें तुम्हारे गुनाहों की सज़ा क्यों देता है (तुम्हारा ख़्याल लग़ो है) बल्कि तुम भी उसकी मख़लूक़ात से एक बशर हो ख़ुदा जिसे चाहेगा बख़ देगा और जिसको चाहेगा सज़ा देगा आसमान और ज़मीन और जो कुछ उन दोनों के दरम्यिान में है सब ख़ुदा ही का मुल्क है और सबको उसी की तरफ़ लौट कर जाना है (18) ऐ एहले किताब जब पैग़म्बरों की आमद में बहुत रूकावट हुयी तो हमारा रसूल तुम्हारे पास आया जो एहकामे ख़ुदा को साफ़ साफ़ बयान करता है ताकि तुम कहीं ये न कह बैठो कि हमारे पास तो न कोई ख़ुशख़बरी देने वाला (पैग़म्बर) आया न (अज़ाब से) डराने वाला अब तो (ये नहीं कह सकते क्योंकि) यक़ीनन तुम्हारे पास ख़ुशख़बरी देने वाला और डराने वाला पैग़म्बर आ गया और ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है (19) ऐ रसूल उनको वह वक़्त याद (दिलाओ) जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा था कि ऐ मेरी क़ौम जो नेअमते ख़ुदा ने तुमको दी है उसको याद करो इसलिए कि उसने तुम्हीं लोगों से बहुतेरे पैग़म्बर बनाए और तुम ही लोगों को बादशाह (भी) बनाया और तुम्हें वह नेअमतें दी हैं जो सारी ख़ुदायी में किसी एक को न दीं (20) ऐ मेरी क़ौम (शाम) की उस मुक़द्दस ज़मीन में जाओ जहाॅ ख़ुदा ने तुम्हारी तक़दीर में (हुकूमत) लिख दी है और दुशमन के मुक़ाबले पीठ न फेरो (क्योंकि) इसमें तो तुम ख़ुद उलटा घाटा उठाओगे (21) वह लोग कहने लगे कि ऐ मूसा इस मुल्क मेें तो बड़े ज़बरदस्त (सरकश) लोग रहते हैं और जब तक वह लोग इसमें से निकल न जाएॅ हम तो उसमें कभी पाॅव भी न रखेंगे हाॅ अगर वह लोग ख़ुद इसमें से निकल जाएॅ तो अलबत्ता हम ज़रूर जाएॅगे (22) (मगर) वह आदमी (यूशा कालिब) जो ख़ुदा का ख़ौफ़ रखते थे और जिनपर ख़ुदा ने ख़ास अपना फ़ज़ल (करम) किया था बेधड़क बोल उठे कि (अरे) उनपर हमला करके (बैतुल मुक़दस के फाटक में तो घुस पड़ो फिर देखो तो यह ऐसे बोदे हैं कि) इधर तुम फाटक में घुसे और (ये सब भाग खड़े हुए और) तुम्हारी जीत हो गयी और अगर सच्चे ईमानदार हो तो ख़ुदा ही पर भरोसा रखो (23) वह कहने लगे एक मूसा (चाहे जो कुछ हो) जब तक वह लोग इसमें हैं हम तो उसमें हरगिज़ (लाख बरस) पाॅव न रखंेगे हाॅ तुम जाओ और तुम्हारा ख़ुदा जाए ओर दोनों (जाकर) लड़ो हम तो यहीं जमे बैठे हैं (24) तब मूसा ने अर्ज़ की ख़ुदावन्दा तू ख़ूब वाक़िफ़ है कि अपनी ज़ाते ख़ास और अपने भाई के सिवा किसी पर मेरा क़ाबू नहीं बस अब हमारे और उन नाफ़रमान लोगों के दरमियान जुदाई डाल दे (25) हमारा उनका साथ नहीं हो सकता (ख़ुदा ने फ़रमाया) (अच्छा) तो उनकी सज़ा यह है कि उनको चालीस बरस तक की हुकूमत नसीब न होगा (और उस मुद्दते दराज़ तक) यह लोग (मिस्र के) जंगल में सरगरदाॅ रहेंगे तो फिर तुम इन बदचलन बन्दों पर अफ़सोस न करना (26) (ऐ रसूल) तुम इन लोगों से आदम के दो बेटों (हाबील, क़ाबील) का सच्चा क़स्द बयान कर दो कि जब उन दोनों ने ख़ुदा की दरगाह में नियाज़ें चढ़ाई तो (उनमें से) एक (हाबील) की (नज़र तो) क़ुबूल हुयी और दूसरे (क़ाबील) की नज़र न क़ुबूल हुयी तो (मारे हसद के) हाबील से कहने लगा मैं तो तुझे ज़रूर मार डालूंगा उसने जवाब दिया कि (भाई इसमें अपना क्या बस है) ख़ुदा तो सिर्फ परहेज़गारों की नज़र कु़बूल करता है (27) अगर तुम मेरे क़त्ल के इरादे से मेरी तरफ़ अपना हाथ बढ़ाओगे (तो ख़ैर बढ़ाओ) (मगर) मैं तो तुम्हारे क़त्ल के ख़्याल से अपना हाथ बढ़ाने वाला नहीं (क्योंकि) मैं तो उस ख़ुदा से जो सारे जहाॅन का पालने वाला है ज़रूर डरता हॅू (28) मैं तो ज़रूर ये चाहता हॅू कि मेरे गुनाह और तेरे गुनाह दोनों तेरे सर हो जाॅए तो तू (अच्छा ख़ासा) जहन्नुमी बन जाए और ज़ालिमों की तो यही सज़ा है (29) फिर तो उसके नफ़्स ने अपने भाई के क़त्ल पर उसे भड़का ही दिया आखि़र उस (कम्बख़्त ने) उसको मार ही डाला तो घाटा उठाने वालों में से हो गया (30) (तब उसे फ़िक्र हुयी कि लाश को क्या करे) तो ख़ुदा ने एक कौवे को भेजा कि वह ज़मीन को कुरेदने लगा ताकि उसे (क़ाबील) को दिखा दे कि उसे अपने भाई की लाश क्योंकर छुपानी चाहिए (ये देखकर) वह कहने लगा हाए अफ़सोस क्या मैं उस से भी आजिज़ हॅू कि उस कौवे की बराबरी कर सकॅू कि (बला से यह भी होता) तो अपने भाई की लाश छुपा देता अलगरज़ वह (अपनी हरकत से) बहुत पछताया (31) इसी सबब से तो हमने बनी इसराईल पर वाजिब कर दिया था कि जो श्शख़्स किसी को न जान के बदले में और न मुल्क में फ़साद फैलाने की सज़ा में (बल्कि नाहक़) क़त्ल कर डालेगा तो गोया उसने सब लोगों को क़त्ल कर डाला और जिसने एक आदमी को जिला दिया तो गोया उसने सब लोगों को जिला लिया और उन (बनी इसराईल) के पास तो हमारे पैग़म्बर (कैसे कैसे) रौशन मौजिज़े लेकर आ चुके हैं (मगर) फिर उसके बाद भी यक़ीनन उसमें से बहुतेरे ज़मीन पर ज़्यादतियाॅ करते रहे (32) जो लोग ख़ुदा और उसके रसूल से लड़ते भिड़ते हैं (और एहकाम को नहीं मानते) और फ़साद फैलाने की ग़रज़ से मुल्को (मुल्को) दौड़ते फिरते हैं उनकी सज़ा बस यही है कि (चुन चुनकर) या तो मार डाले जाएॅ या उन्हें सूली दे दी जाए या उनके हाथ पाॅव हेर फेर कर एक तरफ़ का हाथ दूसरी तरफ़ का पाॅव काट डाले जाएॅ या उन्हें (अपने वतन की) सरज़मीन से शहर बदर कर दिया जाए यह रूसवाई तो उनकी दुनिया में हुयी और फिर आख़ेरत में तो उनके लिए बहुत बड़ा अज़ाब ही है (33) मगर (हाॅ) जिन लोगों ने इससे पहले कि तुम इनपर क़ाबू पाओ तौबा कर लीे तो उनका गुनाह बख़्श दिया जाएगा क्योंकि समझ लो कि ख़ुदा बेशक बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (34) ऐ ईमानदारों ख़ुदा से डरते रहो और उसके (तक़र्रब के) ज़रिये की जुस्तजू में रहो और उसकी राह में जेहाद करो ताकि तुम कामयाब हो जाओ (35) इसमें शक नहीं कि जिन लोगों ने कुफ्ऱ इख़्तेयार किया अगर उनके पास ज़मीन में जो कुछ (माल ख़ज़ाना) है (वह) सब बल्कि उतना और भी उसके साथ हो कि रोज़े क़यामत के अज़ाब का मुआवेज़ा दे दे (और ख़ुद बच जाए) तब भी (उसका ये मुआवेज़ा) कु़बूल न किया जाएगा और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है (36) वह लोग तो चाहेंगे कि किसी तरह जहन्नुम की आग से निकल भागे मगर वहाॅ से तो वह निकल ही नहीं सकते और उनके लिए तो दाएमी अज़ाब है (37) और चोर ख़्वाह मर्द हो या औरत तुम उनके करतूत की सज़ा में उनका (दाहिना) हाथ काट डालो ये (उनकी सज़ा) ख़ुदा की तरफ़ से है और ख़ुदा (तो) बड़ा ज़बरदस्त हिकमत वाला है (38) हाॅ जो अपने गुनाह के बाद तौबा कर ले और अपने चाल चलन दुरूस्त कर लें तो बेशक ख़ुदा भी तौबा कु़बूल कर लेता है क्योंकि ख़ुदा तो बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (39) ऐ शख़्स क्या तू नहीं जानता कि सारे आसमान व ज़मीन (ग़रज़ दुनिया जहान) में ख़ास ख़ुदा की हुकूमत है जिसे चाहे अज़ाब करे और जिसे चाहे माफ़ कर दे और ख़ुदा तो हर चीज़ पर क़ादिर है (40) ऐ रसूल जो लोग कुफ्ऱ की तरफ़ लपक के चले जाते हैं तुम उनका ग़म न खाओ उनमें बाज़ तो ऐसे हैं कि अपने मुॅह से बे तकल्लुफ़ कह देते हैं कि हम ईमान लाए हालाॅकि उनके दिल बेईमान हैं और बाज़ यहूदी ऐसे हैं कि (जासूसी की ग़रज़ से) झूठी बातें बहुत (शौक से) सुनते हैं ताकि कुफ़्फ़ार के दूसरे गिरोह को जो (अभी तक) तुम्हारे पास नहीं आए हैं सुनाएॅ ये लोग (तौरैत के) अल्फ़ाज़ की उनके असली मायने (मालूम होने) के बाद भी तहरीफ़ करते हैं (और लोगों से) कहते हैं कि (ये तौरैत क

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अल-माउन

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अल-मआरिज

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अल-मुतफ्फिफिन

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अल-मुद्दस्सिर

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अल-मुनाफिकून

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अल-मुम्तहिना

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अल-मुर्सलात

सूरा अल-मुरसलात (سورة المرسلات.) (भेजी गईं हवाएं) कुरान का 77वां सूरा है। इसमें 50 आयतें हैं। .

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अल-मुल्क

सूरा उल-मुल्क (سورة الملك) (सार्वभौमिकता, नियंत्रण; शाब्दिक 'राज्य) कुरान का 67वां सूरा है। इसमें 30 आयतें हैं। इस सूरा का नाम मलिक अल मुल्क (مالك الملك) का हवाला देता है। पूर्ण सार्वभौमिकता का शासक्, शाब्दिक तौर पर "कायनात का बादशाह", यह अल्लाह के 99 नामों में से एक है। यह सूरा कहता है अल्लाह की असीम शक्तियों के बारे में और कहता है, कि जो भी अल्लाह की चेतावनी को नज़रन्दाज़ करेंगे, वे दहकती अग्नि के साथी बनेंगे, यानि उन्हें नर्क भोइगना पडे़गा। ऐसा हदीथ में बताया गया है, कि मुहम्मद ने कहा है, कि यदि हर रात सूरत उल-मुल्क बोला जाये, तो बोलने वाला कब्र की यातनाओं से बच जायेगा। .

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अल-मुजादिला

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अल-मुज्जम्मिल

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अल-मोमिनून

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अल-लैल

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अल-हदीद

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अल-हश्र

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अल-हाक्का

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अल-हिज्र

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अल-हज़

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अल-हु-म-जह

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अल-हुजुरात

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अल-जासिया

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अल-जिन्न

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अल-जुमुआ

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अल-वाकिया

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अल-गाशियह

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अल-आदियात

सुरः अल क़ारिया सुरः अल क़ारिया मक्का में नाज़िल हुई। यह क़ुरान की 101 नंबर की सुर: हे, लेकिन नाज़िल होने के हिसाब से इसका नंबर 30 हे। अल क़ारिया का मतलब "आपदा" या "क़यामत" है (1)। क़ारिया शब्द क़ार से बना हे जिसका मतलब हे "प्रहार" या "मारना" यानि क़ारिया मतलब एक के बाद एक प्रहार से आने वाली आवाज़, जिसे इस सुर: में खड़खड़ाने वाली आवाज़ कहा गया हे (2)। इस सुरः में लोगों को बहुत बड़ी आपदा यानि क़यामत के दिन के बारे में बताया गया है। साथ ही इस बात के बारे में भी आगाह किया गया हे कि इस दिन सिर्फ नेक अमल करने वाले लोग ही इस आपदा से बच पायेंगे। सुरः अल क़ारिया का अर्थ (1, 3) शुरू करता हू अल्लाह के नाम से जो बहुत ज्यादा मेहरबान और निहायत रहम करने वाला हे 101:1 खड़खड़ाने वाली 101:2 खड़खड़ाने वाली क्या हे? 101:3 और तूने क्या जाना खड़खड़ाने वाली क्या हे? 101:4 (वो क़यामत हे) जिस दिन लोग ऐसे होंगे, जैसे बिखरे हुए पतंगे (यानि जैसे कि बारिश के बाद आने वाली रात में पतंगे मर कर बिखरे पड़े होते हैं, उसी तरह लोग भी पड़े होंगे) 101:5 और पहाड़ ऐसे हो जायेंगे जैसे कि धुनी हुई रंग बिरंगी ऊन (यानि जैसे कि रुई को जब धुना जाता हे तो उसके बारीक़ क़तरे ऊपर उड़ते हैं ऐसे ही अलग अलग रंग के पहाड़ उड़ रहे होंगे) 101:6 तो जिसके आमाल (अच्छे कर्म) के वज़न भारी निकलेंगे 101:7 वो दिल पसंद ऐश में (यानि मज़े में) होगा 101:8 और जिस के वज़न (आमाल के) हल्के निकलेंगे 101:9 उसका ठिकाना तो हाविया हे 101:10 और तुम क्या समझते हो कि यह हाविया क्या हे 101:11 ये दहकती हुई आग हे References (1) http://www.youtube.com/watch?v.

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अल-आराफ़

क़ुरान का अध्याय (सूरा)। -QURAN HINDI TRANSLATION- सूरए आराफ़ मक्का में नाज़िल हुआ और इसमें 206 आयतें हैं (मैं) उस ख़ुदा के नाम से (षुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान है निहायत रहम वाला है अलिफ़ लाम मीम स्वाद (1) (ऐ रसूल) ये किताब ख़ुदा (क़ुरान) तुम पर इस ग़रज़ से नाज़िल की गई है ताकि तुम उसके ज़रिये से लोगों को अज़ाबे ख़ुदा से डराओ और ईमानदारों के लिए नसीहत का बायस हो (2) तुम्हारे दिल में उसकी वजह से कोई न तंगी पैदा हो (लोगों) जो तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से तुम पर नाज़िल किया गया है उसकी पैरवी करो और उसके सिवा दूसरे (फर्ज़ी) बुतों (माबुदों) की पैरवी न करो (3) तुम लोग बहुत ही कम नसीहत क़ुबूल करते हो और क्या (तुम्हें) ख़बर नहीं कि ऐसी बहुत सी बस्तियाँ हैं जिन्हें हमने हलाक कर डाला तो हमारा अज़ाब (ऐसे वक्त) आ पहुचा (4) कि वह लोग या तो रात की नींद सो रहे थे या दिन को क़लीला (खाने के बाद का लेटना) कर रहे थे तब हमारा अज़ाब उन पर आ पड़ा तो उनसे सिवाए इसके और कुछ न कहते बन पड़ा कि हम बेषक ज़ालिम थे (5) फिर हमने तो ज़रूर उन लोगों से जिनकी तरफ पैग़म्बर भेजे गये थे (हर चीज़ का) सवाल करेगें और ख़ुद पैग़म्बरों से भी ज़रूर पूछेगें (6) फिर हम उनसे हक़ीक़त हाल ख़ूब समझ बूझ के (ज़रा ज़रा) दोहराएगें (7) और हम कुछ ग़ायब तो थे नहीं और उस दिन (आमाल का) तौला जाना बिल्कुल ठीक है फिर तो जिनके (नेक अमाल के) पल्ले भारी होगें तो वही लोग फायज़ुलहराम (नजात पाये हुए) होगें (8) (और जिनके नेक अमाल के) पल्ले हलके होगें तो उन्हीं लोगों ने हमारी आयत से नाफरमानी करने की वजह से यक़ीनन अपना आप नुक़सान किया (9) और (ऐ बनीआदम) हमने तो यक़ीनन तुमको ज़मीन में क़ुदरत व इख़तेदार दिया और उसमें तुम्हारे लिए असबाब ज़िन्दगी मुहय्या किए (मगर) तुम बहुत ही कम षुक्र करते हो (10) हालाकि इसमें तो षक ही नहीं कि हमने तुम्हारे बाप आदम को पैदा किया फिर तुम्हारी सूरते बनायीं फिर हमनें फ़रिष्तों से कहा कि तुम सब के सब आदम को सजदा करो तो सब के सब झुक पड़े मगर षैतान कि वह सजदा करने वालों में षामिल न हुआ। (11) ख़ुदा ने (षैतान से) फरमाया जब मैनें तुझे हुक्म दिया कि तू फिर तुझे सजदा करने से किसी ने रोका कहने लगा मैं उससे अफ़ज़ल हूँ (क्योंकि) तूने मुझे आग (ऐसे लतीफ अनसर) से पैदा किया (12) और उसको मिटट्ी (ऐसी कषीफ़ अनसर) से पैदा किया ख़ुदा ने फरमाया (तुझको ये ग़ुरूर है) तो बेहष्त से नीचे उतर जाओ क्योंकि तेरी ये मजाल नहीं कि तू यहाँ रहकर ग़ुरूर करे तो यहाँ से (बाहर) निकल बेषक तू ज़लील लोगों से है (13) कहने लगा तो (ख़ैर) हमें उस दिन तक की (मौत से) मोहलत दे (14) जिस दिन सारी ख़ुदाई के लोग दुबारा जलाकर उठा खड़े किये जाएगें (15) फ़रमाया (अच्छा मंजूर) तुझे ज़रूर मोहलत दी गयी कहने लगा चूँकि तूने मेरी राह मारी तो मैं भी तेरी सीधी राह पर बनी आदम को (गुमराह करने के लिए) ताक में बैठूं तो सही (16) फिर उन लोगों से और उनके पीछे से और उनके दाहिने से और उनके बाएं से (गरज़ हर तरफ से) उन पर आ पडॅ़ूगां और (उनको बहकाऊॅगां) और तू उन में से बहुतरों की षुक्रग़ुज़ार नहीं पायेगा (17) ख़ुदा ने फरमाया यहाँ से बुरे हाल में (राइन्दा होकर निकल) (दूर) जा उन लोेगों से जो तेरा कहा मानेगा तो मैं यक़ीनन तुम (और उन) सबको जहन्नुम में भर दूंगा (18) और (आदम से कहा) ऐ आदम तुम और तुम्हारी बीबी (दोनों) बेहष्त में रहा सहा करो और जहाँ से चाहो खाओ (पियो) मगर (ख़बरदार) उस दरख़्त के करीब न जाना वरना तुम अपना आप नुक़सान करोगे (19) फिर षैतान ने उन दोनों को वसवसा (षक) दिलाया ताकि (नाफरमानी की वजह से) उनके अस्तर की चीज़े जो उनकी नज़र से बेहष्ती लिबास की वजह से पोषीदा थी खोल डाले कहने लगा कि तुम्हारे परवरदिगार ने दोनों को दरख़्त (के फल खाने) से सिर्फ इसलिए मना किया है (कि मुबादा) तुम दोनों फरिष्ते बन जाओ या हमेषा (ज़िन्दा) रह जाओ (20) और उन दोनों के सामने क़समें खायीं कि मैं यक़ीनन तुम्हारा ख़ैर ख़्वाह हूँ (21) ग़रज़ धोखे से उन दोनों को उस (के खाने) की तरफ ले गया ग़रज़ जो ही उन दोनों ने इस दरख़्त (के फल) को चखा कि (बेहष्ती लिबास गिर गया और समझ पैदा हुयी) उन पर उनकी षर्मगाहें ज़ाहिर हो गयीं और बेहष्त के पत्ते (तोड़ जोड़ कर) अपने ऊपर ढापने लगे तब उनको परवरदिगार ने उनको आवाज़ दी कि क्यों मैंने तुम दोनों को इस दरख़्त के पास (जाने) से मना नहीं किया था और (क्या) ये न जता दिया था कि षैतान तुम्हारा यक़ीनन खुला हुआ दुष्मन है (22) ये दोनों अर्ज़ करने लगे ऐ हमारे पालने वाले हमने अपना आप नुकसान किया और अगर तू हमें माफ न फरमाएगा और हम पर रहम न करेगा तो हम बिल्कुल घाटे में ही रहेगें (23) हुक्म हुआ तुम (मियां बीबी षैतान) सब के सब बेहषत से नीचे उतरो तुममें से एक का एक दुष्मन है और (एक ख़ास) वक़्त तक तुम्हारा ज़मीन में ठहराव (ठिकाना) और ज़िन्दगी का सामना है (24) ख़ुदा ने (ये भी) फरमाया कि तुम ज़मीन ही में जिन्दगी बसर करोगे और इसी में मरोगे (25) और उसी में से (और) उसी में से फिर दोबारा तुम ज़िन्दा करके निकाले जाओगे ऐ आदम की औलाद हमने तुम्हारे लिए पोषाक नाज़िल की जो तुम्हारे शर्मगाहों को छिपाती है और ज़ीनत के लिए कपड़े और इसके अलावा परहेज़गारी का लिबास है और ये सब (लिबासों) से बेहतर है ये (लिबास) भी ख़़ुदा (की कुदरत) की निषानियों से है (26) ताकि लोग नसीहत व इबरत हासिल करें ऐ औलादे आदम (होषियार रहो) कहीं तुम्हें षैतान बहका न दे जिस तरह उसने तुम्हारे बाप माँ आदम व हव्वा को बेहष्त से निकलवा छोड़ा उसी ने उन दोनों से (बेहष्ती) पोषाक उतरवाई ताकि उन दोनों को उनकी षर्मगाहें दिखा दे वह और उसका क़ुनबा ज़रूर तुम्हें इस तरह देखता रहता है कि तुम उन्हे नहीं देखने पाते हमने षैतानों को उन्हीं लोगों का रफीक़ क़रार दिया है (27) जो ईमान नही रखते और वह लोग जब कोई बुरा काम करते हैं कि हमने उस तरीके पर अपने बाप दादाओं को पाया और ख़ुदा ने (भी) यही हुक्म दिया है (ऐ रसूल) तुम साफ कह दो कि ख़ुदा ने (भी) यही हुक्म दिया है (ऐ रसूल) तुम (साफ) कह दो कि ख़ुदा हरगिज़ बुरे काम का हुक्म नहीं देता क्या तुम लोग ख़ुदा पर (इफ्तिरा करके) वह बातें कहते हो जो तुम नहीं जानते (28) (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मेरे परवरदिगार ने तो इन्साफ का हुक्म दिया है और (ये भी क़रार दिया है कि) हर नमाज़ के वक्त अपने अपने मुँह (क़िबले की तरफ़) सीधे कर लिया करो और इसके लिए निरी खरी इबादत करके उससे दुआ मांगो जिस तरह उसने तुम्हें षुरू षुरू पैदा किया था (29) उसी तरह फिर (दोबारा) ज़िन्दा किये जाओगे उसी ने एक फरीक़ की हिदायत की और एक गिरोह (के सर) पर गुमराही सवार हो गई उन लोगों ने ख़ुदा को छोड़कर षैतानों को अपना सरपरस्त बना लिया और बावजूद उसके गुमराह करते हैं कि वह राह रास्ते पर है (30) ऐ औलाद आदम हर नमाज़ के वक़्त बन सवर के निखर जाया करो और खाओ और पियो और फिज़ूल ख़र्ची मत करो (क्योंकि) ख़ुदा फिज़ूल ख़र्च करने वालों को दोस्त नहीं रखता (31) (ऐ रसूल से) पूछो तो कि जो ज़ीनत (के साज़ों सामान) और खाने की साफ सुथरी चीज़ें ख़ुदा ने अपने बन्दो के वास्ते पैदा की हैं किसने हराम कर दी तुम ख़ुद कह दो कि सब पाक़ीज़ा चीज़े क़यामत के दिन उन लोगों के लिए ख़ास हैं जो दुनिया की (ज़रा सी) ज़िन्दगी में ईमान लाते थे हम यूँ अपनी आयतें समझदार लोगों के वास्ते तफसीलदार बयान करतें हैं (32) (ऐ रसूल) तुम साफ कह दो कि हमारे परवरदिगार ने तो तमाम बदकारियों को ख़्वाह (चाहे) ज़ाहिरी हो या बातिनी और गुनाह और नाहक़ ज़्यादती करने को हराम किया है और इस बात को कि तुम किसी को ख़ुदा का षरीक बनाओ जिनकी उनसे कोई दलील न ही नाज़िल फरमाई और ये भी कि बे समझे बूझे ख़़ुदा पर बोहतान बाॅधों (33) और हर गिरोह (के न पैदा होने) का एक ख़ास वक़्त है फिर जब उनका वक्त आ पहुंचता है तो न एक घड़ी पीछे रह सकते हैं और न आगे बढ़ सकते हैं (34) ऐ औलादे आदम जब तुम में के (हमारे) पैग़म्बर तुम्हारे पास आए और तुमसे हमारे एहकाम बयान करे तो (उनकी इताअत करना क्योंकि जो षख़्स परहेज़गारी और नेक काम करेगा तो ऐसे लोगों पर न तो (क़यामत में) कोई ख़ौफ़ होगा और न वह आर्ज़दा ख़ातिर (परेशान) होंगें (35) और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया और उनसे सरताबी कर बैठे वह लोग जहन्नुमी हैं कि वह उसमें हमेषा रहेगें (36) तो जो षख़्स ख़ुदा पर झूठ बोहतान बाॅधे या उसकी आयतों को झुठलाए उससे बढ़कर ज़ालिम और कौन होगा फिर तो वह लोग हैं जिन्हें उनकी (तक़दीर) का लिखा हिस्सा (रिज़क) वग़ैरह मिलता रहेगा यहाँ तक कि जब हमारे भेजे हुए (फरिष्ते) उनके पास आकर उनकी रूह कब्ज़ करेगें तो (उनसे) पूछेगें कि जिन्हें तुम ख़ुदा को छोड़कर पुकारा करते थे अब वह (कहाँ हैं तो वह कुफ्फार) जवाब देगें कि वह सब तो हमें छोड़ कर चल चंपत हुए और अपने खिलाफ आप गवाही देगें कि वह बेषक काफ़िर थे (37) (तब ख़ुदा उनसे) फरमाएगा कि जो लोग जिन व इन्स के तुम से पहले बसे हैं उन्हीं में मिलजुल कर तुम भी जहन्नुम वासिल हो जाओ (और) एहले जहन्नुम का ये हाल होगा कि जब उसमें एक गिरोह दाख़िल होगा तो अपने साथी दूसरे गिरोह पर लानत करेगा यहाँ तक कि जब सब के सब पहंुच जाएगें तो उनमें की पिछली जमात अपने से पहली जमाअत के वास्ते बदद्आ करेगी कि परवरदिगार उन्हीं लोगों ने हमें गुमराह किया था तो उन पर जहन्नुम का दोगुना अज़ाब फरमा (इस पर) ख़ुदा फरमाएगा कि हर एक के वास्ते दो गुना अज़ाब है लेकिन (तुम पर) तुफ़ है तुम जानते नहीं (38) और उनमें से पहली जमाअत पिछली जमाअत की तरफ मुख़ातिब होकर कहेगी कि अब तो तुमको हमपर कोई फज़ीलत न रही पस (हमारी तरह) तुम भी अपने करतूत की बदौलत अज़ाब (के मज़े) चखो बेषक जिन लोगों ने हमारे आयात को झुठलाया (39) और उनसे सरताबी की न उनके लिए आसमान के दरवाज़े खोले जाएंगें और वह बेहष्त ही में दाखिल होने पाएगें यहाँ तक कि ऊँट सूई के नाके में होकर निकल जाए (यानि जिस तरह ये मुहाल है) उसी तरह उनका बेहष्त में दाखिल होना मुहाल है और हम मुजरिमों को ऐसी ही सज़ा दिया करते हैं उनके लिए जहन्नुम (की आग) का बिछौना होगा (40) और उनके ऊपर से (आग ही का) ओढ़ना भी और हम ज़ालिमों को ऐसी ही सज़ा देते हैं और जिन लोगों ने ईमान कुबुल किया (41) और अच्छे अच्छे काम किये और हम तो किसी षख़्स को उसकी ताकत से ज़्यादा तकलीफ देते ही नहीं यहीं लोग जन्नती हैं कि वह हमेषा जन्नत ही में रहा (सहा) करेगें (42) और उन लोगों के दिल में जो कुछ (बुग़ज़ व कीना) होगा वह सब हम निकाल (बाहर कर) देगेें उनके महलों के नीचे नहरें जारी होगीं और कहते होगें षुक्र है उस ख़़ुदा का जिसने हमें इस (मंज़िले मक़सूद) तक पहुंचाया और अगर ख़़ुदा हमें यहाँ न पहुंचाता तो हम किसी तरह यहाँ न पहुंच सकते बेषक हमारे परवरदिगार के पैग़म्बर दीने हक़ लेकर आये थे और उन लोगों से पुकार कर कह दिया जाएगा कि वह बेहिष्त हैं जिसके तुम अपनी कारग़ुज़ारियों की जज़ा में वारिस व मालिक बनाए गये हों (43) और जन्नती लोग जहन्नुमी वालों से पुकार कर कहेगें हमने तो बेषक जो हमारे परवरदिगार ने हमसे वायदा किया था ठीक ठीक पा लिया तो क्या तुमने भी जो तुमसे तम्हारे परवरदिगार ने वायदा किया था ठीक पाया (या नहीं) अहले जहन्नुम कहेगें हाँ (पाया) एक मुनादी उनके दरमियान निदा करेगा कि ज़ालिमों पर ख़ुदा की लानत है (44) जो ख़ुदा की राह से लोगों को रोकते थे और उसमें (ख़्वामख़्वाह) कज़ी (टेढ़ा पन) करना चाहते थे और वह रोज़े आख़ेरत से इन्कार करते थे (45) और बेहष्त व दोज़ख के दरमियान एक हद फ़ासिल है और कुछ लोग आराफ़ पर होगें जो हर षख़्स को (बेहिष्ती हो या जहन्नुमी) उनकी पेषानी से पहचान लेगें और वह जन्नत वालों को आवाज़ देगें कि तुम पर सलाम हो या (आराफ़ वाले) लोग अभी दाख़िले जन्नत नहीं हुए हैं मगर वह तमन्ना ज़रूर रखते हैं (46) और जब उनकी निगाहें पलटकर जहन्नुमी लोगों की तरफ जा पड़ेगीं (तो उनकी ख़राब हालत देखकर ख़ुदा से अर्ज़ करेगें) ऐ हमारे परवरदिगार हमें ज़ालिम लोगों का साथी न बनाना (47) और आराफ वाले कुछ (जहन्नुमी) लोगों को जिन्हें उनका चेहरा देखकर पहचान लेगें आवाज़ देगें और और कहेगें अब न तो तुम्हारा जत्था ही तुम्हारे काम आया और न तुम्हारी षेखी बाज़ी ही (सूद मन्द हुयी) (48) जो तुम दुनिया में किया करते थे यही लोग वह हैं जिनकी निस्बत तुम कसमें खाया करते थे कि उन पर ख़ुदा (अपनी) रहमत न करेगा (देखो आज वही लोग हैं जिनसे कहा गया कि बेतकल्लुफ) बेहष्त में चलो जाओ न तुम पर कोई खौफ है और न तुम किसी तरह आर्ज़ुदा ख़ातिर परेशानी होगी (49) और दोज़ख वाले अहले बेहिष्त को (लजाजत से) आवाज़ देगें कि हम पर थोड़ा सा पानी ही उंडेल दो या जो (नेअमतों) खुदा ने तुम्हें दी है उसमें से कुछ (दे डालो दो तो अहले बेहिष्त जवाब में) कहेंगें कि ख़ुदा ने तो जन्नत का खाना पानी काफिरों पर कतई हराम कर दिया है (50) जिन लोगों ने अपने दीन को खेल तमाषा बना लिया था और दुनिया की (चन्द रोज़ा) ज़िन्दगी ने उनको फरेब दिया था तो हम भी आज (क़यामत में) उन्हें (क़सदन) भूल जाएगें (51) जिस तरह यह लोग (हमारी) आज की हुज़ूरी को भूलें बैठे थे और हमारी आयतों से इन्कार करते थे हालांकि हमने उनके पास (रसूल की मारफत किताब भी भेज दी है) (52) जिसे हर तरह समझ बूझ के तफसीलदार बयान कर दिया है (और वह) ईमानदार लोगों के लिए हिदायत और रहमत है क्या ये लोग बस सिर्फ अन्जाम (क़यामत ही) के मुन्तज़िर है (हालांकि) जिस दिन उसके अन्जाम का (वक़्त) आ जाएगा तो जो लोग उसके पहले भूले बैठे थे (बेसाख़्ता) बोल उठेगें कि बेषक हमारे परवरदिगार के सब रसूल हक़ लेकर आये थे तो क्या उस वक़्त हमारी भी सिफरिष करने वाले हैं जो हमारी सिफारिष करंे या हम फिर (दुनिया में) लौटाएं जाएं तो जो जो काम हम करते थे उसको छोड़कर दूसरें काम करें (53) बेषक उन लोगों ने अपना सख़्त घाटा किया और जो इफ़तेरा परदाज़िया किया करते थे वह सब गायब़ (ग़ल्ला) हो गयीं बेषक तुम्हारा परवरदिगार ख़ुदा ही है जिसके (सिर्फ) 6 दिनों में आसमान और ज़मीन को पैदा किया फिर अर्ष के बनाने पर आमादा हुआ वही रात को दिन का लिबास पहनाता है तो (गोया) रात दिन को पीछे पीछे तेज़ी से ढूंढती फिरती है और उसी ने आफ़ताब और माहताब और सितारों को पैदा किया कि ये सब के सब उसी के हुक्म के ताबेदार हैं (54) देखो हुकूमत और पैदा करना बस ख़ास उसी के लिए है वह ख़ुदा जो सारे जहाँन का परवरदिगार बरक़त वाला है (55) (लोगों) अपने परवरदिगार से गिड़गिड़ाकर और चुपके - चुपके दुआ करो, वह हद से तजाविज़ करने वालों को हरगिज़ दोस्त नहीं रखता और ज़मीन में असलाह के बाद फसाद न करते फिरो और (अज़ाब) के ख़ौफ से और (रहमत) की आस लगा के ख़ुदा से दुआ मांगो (56) (क्योंकि) नेकी करने वालों से ख़ुदा की रहमत यक़ीनन क़रीब है और वही तो (वह) ख़ुदा है जो अपनी रहमत (अब्र) से पहले खुषखबरी देने वाली हवाओ को भेजता है यहाँ तक कि जब हवाएं (पानी से भरे) बोझल बादलों के ले उड़े तो हम उनको किसी षहर की की तरफ (जो पानी का नायाबी (कमी) से गोया) मर चुका था हॅका दिया फिर हमने उससे पानी बरसाया, फिर हमने उससे हर तरह के फल ज़मीन से निकाले (57) हम यूॅ ही (क़यामत के दिन ज़मीन से) मुर्दों को निकालेंगें ताकि तुम लोग नसीहत व इबरत हासिल करो और उम्दा ज़मीन उसके परवरदिगार के हुक्म से उस सब्ज़ा (अच्छा ही) है और जो ज़मीन बड़ी है उसकी पैदावार ख़राब ही होती है (58) हम यू अपनी आयतों को उलेटफेर कर षुक्रग़ुजार लोगों के वास्ते बयान करते हैं बेषक हमने नूह को उनकी क़ौम के पास (रसूल बनाकर) भेजा तो उन्होनें (लोगों से) कहाकि ऐ मेरी क़ौम ख़ुदा की ही इबादत करो उसके सिवा तुम्हारा कोई माबूद नहीं है और मैं तुम्हारी निस्बत (क़यामत जैसे) बड़े ख़ौफनाक दिन के अज़ाब से डरता हूँ (59) तो उनकी क़ौम के चन्द सरदारों ने

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अल-आला

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अल-इन्फितार

सूरा अल-इफ़्तियार (अरबी: سورة الانفطار) (टूट कर बिखर जाना) कुरान का 82वां सूरा है। इसमें 19 आयतें हैं। इस सूरा का अनुवाद ने अंग्रेजी में किया है: अल-इफ़्तियार ईश्वर के नाम पर, जो दयावान है:- जब जन्नत टुकडो में टूट जाता है; (1) जब तारे गिर कर बिखर जाते हैं; (2) और जब सागर आगे से फट जाते हैं; (3) और जब कब्रें उलटी होकर्, अन्दर वाले बाहर आ जाते हैं; (4) तब एक व्यक्ति को पता चलता है, कि उसके साथ क्या भेजा गया है और क्या पीछे छूट गया है (अच्छे और बुरे कर्मों में से) (5) हे मानव! वह क्या है, जिसने तुझे अपने उस उदार ईश्वर के प्रति लापरवाह बना दिया है? (6) किसने तुझे सजित किया, यह परिपूर्ण आकृति दी और तेरा अधिकृत अंश तुझे दिया; (7) In whatever form He willed, He put you together.

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अल-इन्शिराह

मक्का का नक्शा, सिरका, circa 1790. सूरा अल-इन्शिराह को मक्का में प्रकट किया गया 611 C.E के लगभग.सूरा अल-इन्शिराह (الإنشراح, सान्त्वना या आराम) कुरान का 94वां सूरा है। इसमें 8 आयतें हैं, तथा इसे मक्का में प्रकट किया गया था। .

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अल-इस्र

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अल-इखलास

अल-इख़लास (अरबी: سورة الإخلاص) (ईमानदारी), आका अत-तौहीद (سورة التوحيد) (मोनोथीइज़म या अद्वैतवाद)। यह इख़लास श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अल-इंशिकाक

सूरा अल-इंशिकाक (अरबी: سورة الانشقاق) (अलग करना, विभाजित कर अलग कर देना) कुरान का 84वां सूरा है। इसमें 25 आयतें हैं। .

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अल-इंसान

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अल-कद्र

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अल-कमर

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अल-कलम

अल-क़लम: क़ुरान का ६८ वां अध्याय (सूरा)। इस को सूरा नून भी कहते हैं। यह सूरा मक्का में अवतरण हुआ, इस लिये इसे मक्की सूरा भी कहते हैं। .

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अल-कहफ़

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अल-क़सस

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अल-काफ़िरुन

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अल-कारियह

सुरः अल क़ारिया सुरः अल क़ारिया मक्का में नाज़िल हुई। यह क़ुरान की 101 नंबर की सुर: हे, लेकिन नाज़िल होने के हिसाब से इसका नंबर 30 हे। अल क़ारिया का मतलब "आपदा" या "क़यामत" है (1)। क़ारिया शब्द क़ार से बना हे जिसका मतलब हे "प्रहार" या "मारना" यानि क़ारिया मतलब एक के बाद एक प्रहार से आने वाली आवाज़, जिसे इस सुर: में खड़खड़ाने वाली आवाज़ कहा गया हे (2)। इस सुरः में लोगों को बहुत बड़ी आपदा यानि क़यामत के दिन के बारे में बताया गया है। साथ ही इस बात के बारे में भी आगाह किया गया हे कि इस दिन सिर्फ नेक अमल करने वाले लोग ही इस आपदा से बच पायेंगे। सुरः अल क़ारिया का अर्थ (1, 3) .

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अल-कियामह

सूरा अल-कियामह क़ुरान का पचहत्तरवां अध्याय (सूरा) है। अल-कियामह श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अल-कौथर

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अल-अनफाल

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अल-अनआम

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अल-अनकबूत

क़ुरान का अध्याय (सूरा)। अल-अनकबूत इस्लाम धर्म के पवित्र ग्रंथ क़ुरआन का 29वाँ सूरा (अध्याय) है जिसमें 69 आयतें होती हैं। 29:1- अलिफ़ लाम मीम। 29:2- क्या लोगों ने ये समझ लिया है कि (सिर्फ) इतना कह देने से कि हम ईमान लाए छोड़ दिए जाएँगे और उनका इम्तेहान न लिया जाएगा। 29:3- और हमने तो उन लोगों का भी इम्तिहान लिया जो उनसे पहले गुज़र गए ग़रज़ ख़ुदा उन लोगों को जो सच्चे (दिल से ईमान लाए) हैं यक़ीनन अलहाएदा देखेगा और झूठों को भी (अलहाएदा) ज़रुर देखेगा। 29:4- क्या जो लोग बुरे बुरे काम करते हैं उन्होंने ये समझ लिया है कि वह हमसे (बचकर) निकल जाएँगे (अगर ऐसा है तो) ये लोग क्या ही बुरे हुक्म लगाते हैं। 29:5- जो शख्स ख़ुदा से मिलने (क़यामत के आने) की उम्मीद रखता है तो (समझ रखे कि) ख़ुदा की (मुक़र्रर की हुई) मीयाद ज़रुर आने वाली है और वह (सबकी) सुनता (और) जानता है। 29-:6- और जो शख्स (इबादत में) कोशिश करता है तो बस अपने ही वास्ते कोशिश करता है (क्योंकि) इसमें तो शक ही नहीं कि ख़ुदा सारे जहाँन (की इबादत) से बेनियाज़ है। 29:7- और जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए हम यक़ीनन उनके गुनाहों की तरफ से कफ्फारा क़रार देगें और ये (दुनिया में) जो आमाल करते थे हम उनके आमाल की उन्हें अच्छी से अच्छी जज़ा अता करेंगे। 29:8- और हमने इन्सान को अपने माँ बाप से अच्छा बरताव करने का हुक्म दिया है और (ये भी कि) अगर तुझे तेरे माँ बाप इस बात पर मजबूर करें कि ऐसी चीज़ को मेरा शरीक बना जिन (के शरीक होने) का मुझे इल्म तक नहीं तो उनका कहना न मानना तुम सबको (आख़िर एक दिन) मेरी तरफ लौट कर आना है मैं जो कुछ तुम लोग (दुनिया में) करते थे बता दूँगा। 29:9- और जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए हम उन्हें (क़यामत के दिन) ज़रुर नेको कारों में दाख़िल करेंगे। 29:10- और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो (ज़बान से तो) कह देते हैं कि हम ख़ुदा पर ईमान लाए फिर जब उनको ख़ुदा के बारे में कुछ तकलीफ़ पहुँची तो वह लोगों की तकलीफ़ देही को अज़ाब के बराबर ठहराते हैं। और (ऐ रसूल) अगर तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की मदद आ पहुँची और तुम्हें फतेह हुई तो यही लोग कहने लगते हैं कि हम भी तो तुम्हारे साथ ही साथ थे भला जो कुछ सारे जहाँन के दिलों में है क्या ख़ुदा बख़ूबी वाक़िफ नहीं (ज़रुर है)। 29:11- और जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया ख़ुदा उनको यक़ीनन जानता है और मुनाफेक़ीन को भी ज़रुर जानता है। 29:12- और कुफ्फार ईमान वालों से कहने लगे कि हमारे तरीक़े पर चलो और (क़यामत में) तुम्हारे गुनाहों (के बोझ) को हम (अपने सर) ले लेंगे हालॉकि ये लोग ज़रा भी तो उनके गुनाह उठाने वाले नहीं ये लोग यक़ीनी झूठे हैं। 29:13- और (हाँ) ये लोग अपने (गुनाह के) बोझे तो यक़ीनी उठाएँगें ही और अपने बोझो के साथ जिन्हें गुमराह किया उनके बोझे भी उठाएँगे और जो इफ़ितेरा परदाज़िया ये लोग करते रहे हैं क़यामत के दिन उन से ज़रुर उसकी बाज़पुर्स होगी। 29:14- और हमने नूह को उनकी क़ौम के पास (पैग़म्बर बनाकर) भेजा तो वह उनमें पचास कम हज़ार बरस रहे (और हिदायत किया किए और जब न माना) तो आख़िर तूफान ने उन्हें ले डाला और वह उस वक्त भी सरकश ही थे। 29:15- फिर हमने नूह और कश्ती में रहने वालों को बचा लिया और हमने इस वाक़िये को सारी ख़ुदाई के वास्ते (अपनी क़ुदरत की) निशानी क़रार दी। 29:16- और इबराहीम को (याद करो) जब उन्होंने कहा कि (भाईयों) ख़ुदा की इबादत करो और उससे डरो अगर तुम समझते बूझते हो तो यही तुम्हारे हक़ में बेहतर है। 29:17- (मगर) तुम लोग तो ख़ुदा को छोड़कर सिर्फ बुतों की परसतिश करते हैं और झूठी बातें (अपने दिल से) गढ़ते हो इसमें तो शक ही नहीं कि ख़ुदा को छोड़कर जिन लोगों की तुम परसतिश करते हो वह तुम्हारी रोज़ी का एख्तेयार नही रखते-बस ख़ुदा ही से रोज़ी भी माँगों और उसकी इबादत भी करो उसका शुक्र करो (क्योंकि) तुम लोग (एक दिन) उसी की तरफ लौटाए जाओगे। 29:18- और (ऐ अहले मक्का) अगर तुमने (मेरे रसूल को) झुठलाया तो (कुछ परवाह नहीं) तुमसे पहले भी तो बहुतेरी उम्मते (अपने पैग़म्बरों को) झुठला चुकी हैं और रसूल के ज़िम्मे तो सिर्फ (एहक़ाम का) पहुँचा देना है। 29:19- बस क्या उन लोगों ने इस पर ग़ौर नहीं किया कि ख़ुदा किस तरह मख़लूकात को पहले पहल पैदा करता है और फिर उसको दोबारा पैदा करेगा ये तो ख़ुदा के नज़दीक बहुत आसान बात है। 29:20- (ऐ रसूल इन लोगों से) तुम कह दो कि ज़रा रुए ज़मीन पर चलफिर कर देखो तो कि ख़ुदा ने किस तरह पहले पहल मख़लूक को पैदा किया फिर (उसी तरह वही) ख़ुदा (क़यामत के दिन) आखिरी पैदाइश पैदा करेगा- बेशक ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है। 29:21- जिस पर चाहे अज़ाब करे और जिस पर चाहे रहम करे और तुम लोग (सब के सब) उसी की तरफ लौटाए जाओगे। 29:22- और न तो तुम ज़मीन ही में ख़ुदा को ज़ेर कर सकते हो और न आसमान में और ख़ुदा के सिवा न तो तुम्हारा कोई सरपरस्त है और न मददगार। 29:23- और जिन लोगों ने ख़ुदा की आयतों और (क़यामत के दिन) उसके सामने हाज़िर होने से इन्कार किया मेरी रहमत से मायूस हो गए हैं और उन्हीं लोगों के वास्ते दर्दनाक अज़ाब है। 29:24- ग़रज़ इबराहीम की क़ौम के पास (इन बातों का) इसके सिवा कोई जवाब न था कि बाहम कहने लगे इसको मार डालो या जला (कर ख़ाक) कर डालो (आख़िर वह कर गुज़रे) तो ख़ुदा ने उनको आग से बचा लिया इसमें शक नहीं कि दुनियादार लोगों के वास्ते इस वाकिये में (कुदरते ख़ुदा की) बहुत सी निशानियाँ हैं। 29:25- और इबराहीम ने (अपनी क़ौम से) कहा कि तुम लोगों ने ख़ुदा को छोड़कर बुतो को सिर्फ दुनिया की ज़िन्दगी में बाहम मोहब्त करने की वजह से (ख़ुदा) बना रखा है फिर क़यामत के दिन तुम में से एक का एक इनकार करेगा और एक दूसरे पर लानत करेगा और (आख़िर) तुम लोगों का ठिकाना जहन्नुम है और (उस वक्त तुम्हारा कोई भी मददगार न होगा)। 29:26- तब सिर्फ लूत इबराहीम पर ईमान लाए और इबराहीम ने कहा मैं तो देस को छोड़कर अपने परवरदिगार की तरफ (जहाँ उसको मंज़ूर हो) निकल जाऊँगा। 29:27- इसमे शक नहीं कि वह ग़ालिब (और) हिकमत वाला है और हमने इबराहीम को इसहाक़ (सा बेटा) और याक़ूब (सा पोता) अता किया और उनकी नस्ल में पैग़म्बरी और किताब क़रार दी और हम न इबराहीम को दुनिया में भी अच्छा बदला अता किया और वह तो आख़ेरत में भी यक़ीनी नेको कारों से हैं। 29:28- (और ऐ रसूल) लूत को (याद करो) जब उन्होंने अपनी क़ौम से कहा कि तुम लोग अजब बेहयाई का काम करते हो कि तुमसे पहले सारी खुदायी के लोगों में से किसी ने नहीं किया। 29:29- तुम लोग (औरतों को छोड़कर कज़ाए शहवत के लिए) मर्दों की तरफ गिरते हो और (मुसाफिरों की) रहजनी करते हो और तुम लोग अपनी महफिलों में बुरी बुरी हरकते करते हो तो (इन सब बातों का) लूत की क़ौम के पास इसके सिवा कोई जवाब न था कि वह लोग कहने लगे कि भला अगर तुम सच्चे हो तो हम पर ख़ुदा का अज़ाब तो ले आओ। 29:30- तब लूत ने दुआ की कि परवरदिगार इन मुफ़सिद लोगों के मुक़ाबले में मेरी मदद कर। 29:31- (उस वक्त अज़ाब की तैयारी हुई) और जब हमारे भेजे हुए फ़रिश्ते इबराहीम के पास (बुढ़ापे में बेटे की) खुशखबरी लेकर आए तो (इबराहीम से) बोले हम लोग अनक़रीब इस गाँव के रहने वालों को हलाक करने वाले हैं (क्योंकि) इस बस्ती के रहने वाले यक़ीनी (बड़े) सरकश है। 29:32- (ये सुन कर) इबराहीम ने कहा कि इस बस्ती में तो लूत भी है वह फरिश्ते बोले जो लोग इस बस्ती में हैं हम लोग उनसे खूब वाक़िफ़ हैं हम तो उनको और उनके लड़के बालों को यक़ीनी बचा लेंगे मगर उनकी बीबी को वह (अलबता) पीछे रह जाने वालों में होंगी। 29:33- और जब हमारे भेजे हुए फरिश्ते लूत के पास आए लूत उनके आने से ग़मग़ीन हुए और उन (की मेहमानी) से दिल तंग हुए (क्योंकि वह नौजवान खूबसूरत मर्दों की सरूत में आए थे) फरिश्तों ने कहा आप ख़ौफ न करें और कुढ़े नही हम आपको और आपके लड़के बालों को बचा लेगें मगर आपकी बीबी (क्योंकि वह पीछे रह जाने वालो से होगी)। 29:34- हम यक़ीनन इसी बस्ती के रहने वालों पर चूँकि ये लोग बदकारियाँ करते रहे एक आसमानी अज़ाब नाज़िल करने वाले हैं। 29:35- और हमने यक़ीनी उस (उलटी हुई बस्ती) में से समझदार लोगों के वास्ते (इबरत की) एक वाज़ेए व रौशन निशानी बाक़ी रखी है। 29:36- और (हमने) मदियन के रहने वालों के पास उनके भाई शुएब को पैग़म्बर बनाकर भेजा उन्होंने (अपनी क़ौम से) कहा ऐ मेरी क़ौम ख़ुदा की इबादत करो और रोज़े आखेरत की उम्मीद रखो और रुए ज़मीन में फ़साद न फैलाते फिरो। 29:37- तो उन लोगों ने शुऐब को झुठलाया पस ज़लज़ले (भूचाल) ने उन्हें ले डाला- तो वह लोग अपने घरों में औंधे ज़ानू के बल पड़े रह गए। 29:38- और क़ौम आद और समूद को (भी हलाक कर डाला) और (ऐ अहले मक्का) तुम को तो उनके (उजड़े हुए) घर भी (रास्ता आते जाते) मालूम हो चुके और शैतान ने उनकी नज़र में उनके कामों को अच्छा कर दिखाया था और उन्हें (सीधी) राह (चलने) से रोक दिया था हालॉकि वह बड़े होशियार थे। 29:39- और (हम ही ने) क़ारुन व फिरऔन व हामान को भी (हलाक कर डाला) हालॉकि उन लोगों के पास मूसा वाजेए व रौशन मौजिज़े लेकर आए फिर भी ये लोग रुए ज़मीन में सरकशी करते फिरे और हमसे (निकल कर) कहीं आगे न बढ़ सके। 29:40- तो हमने सबको उनके गुनाह की सज़ा में ले डाला चुनांन्चे उनमे से बाज़ तो वह थे जिन पर हमने पत्थर वाली ऑंधी भेजी और बाज़ उनमें से वह थे जिन को एक सख्त चिंघाड़ ने ले डाला और बाज़ उनमें से वह थे जिनको हमने ज़मीन मे धॅसा दिया और बाज़ उनमें से वह थे जिन्हें हमने डुबो मारा और ये बात नहीं कि ख़ुदा ने उन पर ज़ुल्म किया हो बल्कि (सच युं है कि) ये लोग ख़ुद (ख़ुदा की नाफ़रमानी करके) आप अपने ऊपर ज़ुल्म करते रहे। 29:41- जिन लोगों ने ख़ुदा के सिवा दूसरे कारसाज़ बना रखे हैं उनकी मसल उस मकड़ी की सी है जिसने (अपने ख्याल नाक़िस में) एक घर बनाया और उसमें तो शक ही नहीं कि तमाम घरों से बोदा घर मकड़ी का होता है मगर ये लोग (इतना भी) जानते हो। 29:42- ख़ुदा को छोड़कर ये लोग जिस चीज़ को पुकारते हैं उससे ख़ुदा यक़ीनी वाक़िफ है और वह तो (सब पर) ग़ालिब (और) हिकमत वाला है। 29:43- और हम ये मिसाले लोगों के (समझाने) के वास्ते बयान करते हैं और उन को तो बस उलमा ही समझते हैं। 29:44- ख़ुदा ने सारे आसमान और ज़मीन को बिल्कुल ठीक पैदा किया इसमें शक नहीं कि उसमें ईमानदारों के वास्ते (कुदरते ख़ुदा की) यक़ीनी बड़ी निशानी है। 29:45- (ऐ रसूल) जो किताब तुम्हारे पास नाज़िल की गयी है उसकी तिलावत करो और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ो बेशक नमाज़ बेहयाई और बुरे कामों से बाज़ रखती है और ख़ुदा की याद यक़ीनी बड़ा मरतबा रखती है और तुम लोग जो कुछ करते हो ख़ुदा उससे वाक़िफ है। 29:46- और (ऐ ईमानदारों) अहले किताब से मनाज़िरा न किया करो मगर उमदा और शाएस्ता अलफाज़ व उनवान से लेकिन उनमें से जिन लोगों ने तुम पर ज़ुल्म किया (उनके साथ रिआयत न करो) और साफ साफ कह दो कि जो किताब हम पर नाज़िल हुई और जो किताब तुम पर नाज़िल हुई है हम तो सब पर ईमान ला चुके और हमारा माबूद और तुम्हारा माबूद एक ही है और हम उसी के फरमाबरदार है 29:47- और (ऐ रसूल जिस तरह अगले पैग़म्बरों पर किताबें उतारी) उसी तरह हमने तुम्हारे पास किताब नाज़िल की तो जिन लोगों को हमने (पहले) किताब अता की है वह उस पर भी ईमान रखते हैं और (अरबो) में से बाज़ वह हैं जो उस पर ईमान रखते हैं और हमारी आयतों के तो बस पक्के कट्टर काफिर ही मुनकिर है। 29:48- और (ऐ रसूल) क़ुरान से पहले न तो तुम कोई किताब ही पढ़ते थे और न अपने हाथ से तुम लिखा करते थे ऐसा होता तो ये झूठे ज़रुर (तुम्हारी नबुवत में) शक करते। 29:49- मगर जिन लोगों को (ख़ुदा की तरफ से) इल्म अता हुआ है उनके दिल में ये (क़ुरान) वाजेए व रौशन आयतें हैं और सरकशी के सिवा हमारी आयतो से कोई इन्कार नहीं करता। 29:50- और (कुफ्फ़ार अरब) कहते हैं कि इस (रसूल) पर उसके परवरदिगार की तरफ से मौजिज़े क्यों नहीं नाज़िल होते (ऐ रसूल उनसे) कह दो कि मौजिज़े तो बस ख़ुदा ही के पास हैं और मैं तो सिर्फ साफ साफ (अज़ाबे ख़ुदा से) डराने वाला हूँ। 29:51- क्या उनके लिए ये काफी नहीं कि हमने तुम पर क़ुरान नाज़िल किया जो उनके सामने पढ़ा जाता है इसमें शक नहीं कि ईमानदार लोगों के लिए इसमें (ख़ुदा की बड़ी) मेहरबानी और (अच्छी ख़ासी) नसीहत है। 29:52- तुम कह दो कि मेरे और तुम्हारे दरमियान गवाही के वास्ते ख़ुदा ही काफी है जो सारे आसमान व ज़मीन की चीज़ों को जानता है- और जिन लोगों ने बातिल को माना और ख़ुदा से इन्कार किया वही लोग बड़े घाटे में रहेंगे। 29:53- और (ऐ रसूल) तुमसे लोग अज़ाब के नाज़िल होने की जल्दी करते हैं और अगर (अज़ाब का) वक्त मुअय्यन न होता तो यक़ीनन उनके पास अब तक अज़ाब आ जाता और (आख़िर एक दिन) उन पर अचानक ज़रुर आ पड़ेगा और उनको ख़बर भी न होगी। 29:54- ये लोग तुमसे अज़ाब की जल्दी करते हैं और ये यक़ीनी बात है कि दोज़ख़ काफिरों को (इस तरह) घेर कर रहेगी (कि रुक न सकेंगे)। 29:55- जिस दिन अज़ाब उनके सर के ऊपर से और उनके पॉव के नीचे से उनको ढॉके होगा और ख़ुदा (उनसे) फरमाएगा कि जो जो कारस्तानियॉ तुम (दुनिया में) करते थे अब उनका मज़ा चखो। 29:56- ऐ मेरे ईमानदार बन्दों मेरी ज़मीन तो यक़ीनन कुशादा है तो तुम मेरी ही इबादत करो। 29:57- हर शख्स (एक न एक दिन) मौत का मज़ा चखने वाला है फिर तुम सब आख़िर हमारी ही तरफ लौटए जाओगे। 29:58- और जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए उनको हम बेहश्त के झरोखों में जगह देगें जिनके नीचे नहरें जारी हैं जिनमें वह हमेशा रहेंगे (अच्छे चलन वालो की भी क्या ख़ूब ख़री मज़दूरी है)। 29:59- जिन्होंने (दुनिया में मुसिबतों पर) सब्र किया और अपने परवरदिगार पर भरोसा रखते हैं। 29:60- और ज़मीन पर चलने वालों में बहुतेरे ऐसे हैं जो अपनी रोज़ी अपने ऊपर लादे नहीं फिरते ख़ुदा ही उनको भी रोज़ी देता है और तुम को भी और वह बड़ा सुनने वाला वाक़िफकार है। 29:61- (ऐ रसूल) अगर तुम उनसे पूछो कि (भला) किसने सारे आसमान व ज़मीन को पैदा किया और चाँद और सूरज को काम में लगाया तो वह ज़रुर यही कहेंगे कि अल्लाह ने फिर वह कहाँ बहके चले जाते हैं 29:62- ख़ुदा ही अपने बन्दों में से जिसकी रोज़ी चाहता है कुशादा कर देता है और जिसके लिए चाहता है तंग कर देता है इसमें शक नहीं कि ख़ुदा ही हर चीज़ से वाक़िफ है। 29:63- और (ऐ रसूल) अगर तुम उससे पूछो कि किसने आसमान से पानी बरसाया फिर उसके ज़रिये से ज़मीन को इसके मरने (परती होने) के बाद ज़िन्दा (आबाद) किया तो वह ज़रुर यही कहेंगे कि अल्लाह ने (ऐ रसूल) तुम कह दो अल्हम दो लिल्लाह- मगर उनमे से बहुतेरे (इतना भी) नहीं समझते। 29:64- और ये दुनिया की ज़िन्दगी तो खेल तमाशे के सिवा कुछ नहीं और मगर ये लोग समझें बूझें तो इसमे शक नहीं कि अबदी ज़िन्दगी (की जगह) तो बस आख़ेरत का घर है (बाक़ी लग़ो)। 29:65- फिर जब ये लोग कश्ती में सवार होते हैं तो निहायत ख़ुलूस से उसकी इबादत करने वाले बन कर ख़ुदा से दुआ करते हैं फिर जब उन्हें ख़ुश्की में (पहुँचा कर) नजात देता है तो फौरन शिर्क करने लगते हैं 29:66- ताकि जो (नेअमतें) हमने उन्हें अता की हैं उनका इन्कार कर बैठें और ताकि (दुनिया में) ख़ूब चैन कर लें तो अनक़रीब ही (इसका नतीजा) उन्हें मालूम हो जाएगा। 29:67- क्या उन लोगों ने इस पर ग़ौर नहीं किया कि हमने हरम (मक्का) को अमन व इत्मेनान की जगह बनाया हालॉकि उनके गिर्द व नवाह से लोग उचक ले जाते हैं तो क्या ये लोग झूठे माबूदों पर ईमान लाते हैं और ख़ुदा की नेअमत की नाशुक्री करते हैं। 29:68- और जो शख्स ख़ुदा पर झूठ बोहतान बॉधे या जब उसके पास कोई सच्ची बात आए तो झुठला दे इससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा क्या (इन) काफिरों का ठिकाना जहन्नुम में नहीं है (ज़रुर है)। 29:69- और जिन लोगों ने हमारी राह में जिहाद किया उन्हें हम ज़रुर अपनी राह की हिदायत करेंगे और इसमें शक नही कि ख़ुदा नेकोकारों का साथी है। अल-अनकबूत श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अल-अलक़

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अल-अश्र

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अल-अहजाब

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अल-अहकाफ

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अल-अंबिया

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अश-शम्स

rightसुरा अस-सम्स (الشمس, सूर्य)। यह कुरान का 91वां सूरा है। इसमें 15 शम्स.

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अश-शुआरा

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अश-शूरा

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अस-सफ्फ

क़ुरान का अध्याय (सूरा)। अस-सफ्फ fi:Suura#Luettelo.

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अस-साफ्फात

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अस-सजदा

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अज-ज़ुख़रुफ़

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अज़-जलजला

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अज़-जु़मार

सूरा अज़-जुमर (अरबी: سورة الزمر) (भीड़, जमाव) कुरान का 39वां सूरा है। इसमें 75 आयतें हैं। .

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