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समान्तर अक्ष का प्रमेय

सूची समान्तर अक्ष का प्रमेय

thumb गति विज्ञान में समान्तर अक्ष का प्रमेय (parallel axis theorem) या स्टीनर का प्रमेय (Steiner's theorem) जड़त्वाघूर्ण से सम्बन्धित एक प्रमेय है। यदि किसी पिण्ड के द्रव्यमान केन्द्र से जाने वाली किसी अक्ष के सापेक्ष उस पिण्ड का जड़त्वाघूर्ण ज्ञात हो तो इस प्रमेय की सहायता से इस अक्ष के समान्तर किसी भी अक्ष के सापेक्ष उस पिण्ड का जड़त्वाघूर्ण निकाला जा सकता है। माना कि: Icm पिण्ड के द्रव्यमान केन्द्र से जाने वाली किसी अक्ष के सापेक्ष जड़त्वाघूर्ण है, M पिण्ड का द्रव्यमान है तथा d नये एवं पुराने (दिये हुए) अक्षों के बीच की लम्बवत दूरी है तो नये अक्ष z के परित: पिण्ड का जड़त्वाघूर्ण निम्नलिखित समीकरण की सहायता से पाया जा सकता है-: इस समीकरण का उपयोग स्ट्रेच नियम (stretch rule) तथा लम्बवत अक्ष का प्रमेय (perpendicular axis theorem) के साथ करके अनेकानेक स्थितियों में जड़त्वाघूर्ण की गणना की जा सकती है। क्षेत्राघूर्ण (area moment of inertia) के परिकलन के लिये समान्तर अक्षों के प्रमेय का उपयोग समान्तर अक्ष के प्रमेय का प्रयोग किसी समतल क्षेत्र D का क्षेत्राघूर्ण निकालने के लिये भी किया जा सकता है।: .

6 संबंधों: द्रव्यमान, प्रमेय, लम्बवत अक्ष का प्रमेय, संहति-केन्द्र, जड़त्वाघूर्ण, गति विज्ञान

द्रव्यमान

द्रव्यमान किसी पदार्थ का वह मूल गुण है, जो उस पदार्थ के त्वरण का विरोध करता है। सरल भाषा में द्रव्यमान से हमें किसी वस्तु का वज़न और गुरुत्वाकर्षण के प्रति उसके आकर्षण या शक्ति का पता चलता है। श्रेणी:भौतिकी श्रेणी:भौतिक शब्दावली *.

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प्रमेय

पाइथागोरस का प्रमेय; इसे प्राचीन भारतीय गणितज्ञ बौधायन ने सबसे पहले प्रस्तुत किया था। प्रमेय (Theorem) का शाब्दिक अर्थ है - ऐसा कथन जिसे प्रमाण द्वारा सिद्ध किया जा सके। इसे साध्य भी कहते हैं। गणित में (और विशेषकर रेखागणित में) बहुत से प्रमेय हैं। प्रमेयों की विशेषता है कि उन्हें स्वयंसिद्धों (axioms) एवं सामान्य तर्क (deductive logic) से सिद्ध किया जा सकता है। .

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लम्बवत अक्ष का प्रमेय

यांत्रिकी में लम्बवत अक्ष का प्रमेय (perpendicular axis theorem) जड़त्वाघूर्ण निकालने का एक समीकरण है। यदि किसी पिण्ड का सम्पूर्ण द्रव्यमान केवल किसी एक समतल में स्थित हो तथा इस समतल में स्थित किन्ही दो परस्पर लम्बवत अक्षों के परित: उस पिण्ड का जड़त्वाघूर्ण ज्ञात हो तो इस प्रमेय का उपयोग करके इस समतल के लम्बवत किसी अक्ष के परित: उस पिण्ड का जड़त्वाघूर्ण निकाला जा सकता है। ये तीनों अक्ष उस तल में एकबिन्दुगामी भी होने चाहिये। thumb माना कि X, Y, एवं Z तीन परस्पर लम्बवत अक्ष हैं और बिन्दु O पर मिलते हैं; तथा-.

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संहति-केन्द्र

अलग-अलग द्रव्यमान वाली चार गेंदों के निकाय का '''संहति-केन्द्र भौतिकी में, संहतियों के किसी वितरण का संहति-केंद्र (center of mass) वह बिन्दु है जिस पर वह सारी संहतियाँ केन्द्रीभूत मानी जा सकती हैं। संहति केन्द्र के कुछ विशेष गुण हैं, उदाहरण के लिये यदि किसी वस्तु पर कोई बल लगाया जाय जिसकी क्रियारेखा उस वस्तु के संहति-केन्द्र से होकर जाती हो तो उस वस्तु में केवल स्थानातरण गति होगी (घूर्णी गति नहीं)। संहति-केन्द्र के सापेक्ष उस वस्तु में निहित सभी संहतियों के आघूर्णों (मोमेण्ट) का योग शून्य होता है। दूसरे शब्दों में, संहति-केन्द्र के सापेक्ष, सभी संहतियों की स्थिति का भारित औसत (वेटेड एवरेज) शून्य होता है। कणों के किसी निकाय का संहति केन्द्र वह बिन्दु है जहाँ, अधिकांश उद्देश्यों के लिए, निकाय ऐसे गति करता है जैसे निकाय का सब द्रव्यमान उस बिन्दु पर संकेंद्रित हो। संहति केन्द्र, केवल निकाय के कणों के स्थिति-सदिश और द्रव्यमान पर निर्भर होता है। संहति केन्द्र पर वास्तविक पदार्थ होना अनिवार्य नहीं है (जैसे, एक खोखले गोले का संहति-केन्द्र उस गोले के केन्द्र पर होता है जहाँ कोई द्रव्यमान ही नहीं है)। गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के एकसमान होने की स्थिति में कभी-कभी इसे गलती से गुरुत्वाकर्षण केन्द्र भी कहा जाता है। किसी वस्तु का रेखागणितीय केन्द्र, द्रव्यमान केन्द्र तथा गुरुत्व केन्द्र अलग-अलग हो सकते हैं। संवेग-केन्द्रीय निर्देश तंत्र वह निर्देश तंत्र है जिसमें निकाय का द्रव्यमान केन्द्र स्थिर है। यह एक जड़त्वीय फ्रेम है। एक द्रव्यमान-केन्द्रीय निर्देश तंत्र वह तंत्र है जहाँ द्रव्यमान केन्द्र न केवल स्थिर है बल्कि निर्देशांक निकाय के मूल बिन्दु पर स्थित है। .

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जड़त्वाघूर्ण

रस्सी पर करतब दिखाने वाला नट रस्सी पर संतुलन बनाये रखने के लिए एक लम्बी लाठी (रॉड) का प्रयोग करता है। इसके कारण लाठी सहित उसका जडत्वाघूर्ण बहुत अधिक हो जाता है और चलते समय उत्पन्न थोड़े-थोड़े असंतुलित बलों को आसानी से संतुलित कर लेता है। किसी पिण्ड की घूर्णन की दर के परिवर्तन के प्रति प्रतिरोध की माप उस पिण्ड का जड़त्वाघूर्ण (Moment of inertia) कहलाता है। किसी पिण्ड का जड़त्वाघूर्ण उसके आकार-प्रकार एवं उसके अन्दर द्रव्यमान के वितरण की प्रकृति पर निर्भर करता है। स्थानान्तरण गति में जो कार्य द्रव्यमान का है वही कार्य घूर्णन गति में जड़त्वाघूर्ण का होता है। जड़त्वाघूर्ण के प्रतीक के लिये I या कभी-कभी J का प्रयोग किया जाता है। जड़त्वाघूर्ण की अवधारणा का उल्लेख सबसे पहले यूलर (Euler) ने सन् १७३० में अपनी पुस्तक ' Theoria motus corporum solidorum seu rigidorum ' में किया था। .

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गति विज्ञान

गति विज्ञान (Dynamics) अनुप्रयुक्त गणित की यह शाखा पिंडों की गति से तथा इन गतियों को नियमित करनेवाले बलों से संबद्ध है। गतिविज्ञान को दो भागों में अंतिर्विभक्त किया जा सकता है। पहला शुद्धगतिकी (Kinematics), जिसमें माप तथा यथातथ्य चित्रण की दृष्टि से गति का अध्ययन किया जाता है, तथा दूसरा बलगतिकी (Kinetics) अथवा वास्तविक गति विज्ञान, जो कारणों अथवा गतिनियमों से संबद्ध है। व्यापक दृष्टि से दोनों दृष्टिकोण संभव हैं। पहला गतिविज्ञान को ऐसे विज्ञान के रूप में प्रस्तुत करता है जिसका निर्माण परीक्षण की प्रक्रियाओं (प्रयोगों) के आधार पर तथ्योपस्थापन (आगम, अनुमान) द्वारा हुआ है। तदनुसार गति विज्ञान में गतिनियम यूक्लिड के स्वयंसिद्धों का स्थान ग्रहण करते हैं। दावा यह है कि प्रयोगों द्वारा इन नियमों की परीक्षा की जा सकती है, परंतु यह भी निश्चित है कि व्यावहारिक कठिनाइयों के कारण कोई सैद्धांतिक नियम यथातथ्य रूप में प्रकाशित नहीं हो पाता है। इन नियमों को प्रमाणित कर सकने में व्यावहारिक कठिनाइयों के अतिरिक्त कुछ तर्कविषयक बाधाएँ भी हैं, जो इस स्थिति को दूषित अथवा त्रुटिपूर्ण बना देती हैं। इन कठिनाइयों का परिहार किया जा सकता है, यदि हम दूसरा दृष्टिकोण अपनाएँ। उक्त दृष्टिकोण के अनुसार गतिविज्ञान शुद्ध अमूर्त विज्ञान (abstract science) है, जिसके समस्त नियम कुछ आधारभूत कल्पनाओं से निकाल जा सकते हैं। .

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