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रोमन संख्यांक

सूची रोमन संख्यांक

रोमन संख्यांक द्वारा दर्शायी गयी संख्यांक पद्धत्ति का प्राचीन रोम में उद्गम हुआ और भली भांति उत्तर मध्य युग में पूर्ण यूरोप में संख्याओं को लिखना का सामान्य तरीका बना रहा। ऑस्ट्रिया के लोफ़र नामक शहर में एक गिरजे के ऊपर उसके निर्माण की तिथि रोमन अंकों में तराशी हुई है - MDCLXXVIII का अर्थ सन् १६७८ है रोमन अंक प्राचीन रोम की संख्या प्रणाली है, जिसमें लातिनी भाषा के अक्षरों को जोड़कर संख्याएँ लिखी जाती थीं। पहले दस रोमन अंक इस प्रकार हैं - .

सामग्री की तालिका

  1. 9 संबंधों: भारतीय अंक प्रणाली, मध्य पूर्व, यूरोप, रोमन साम्राज्य, लातिन भाषा, शुद्ध और अनुप्रयोगिक रसायन का अंतरराष्ट्रीय संघ, शून्य, स्थानिक मान, आवर्त सारणी

  2. संख्या पद्धति
  3. संख्यांक

भारतीय अंक प्रणाली

भारतीय अंक प्रणाली को पश्चिम के देशों में हिंदू-अरबी अंक प्रणाली के नाम से जाना जाता है क्योंकि यूरोपीय देशों को इस अंक प्रणाली का ज्ञान अरब देश से प्राप्त हुआ था। जबकि अरबों को यह ज्ञान भारत से मिला था। भारतीय अंक प्रणाली में 0 को मिला कर कुल 10 अंक होते हैं। संसार के अधिकतम 10 अंकों वाली अंक प्रणाली भारतीय अंक प्रणाली पर ही आधारित हैं। फ्रांस के प्रसिद्ध गणितज्ञ पियरे साइमन लाप्लास के अनुसार, .

देखें रोमन संख्यांक और भारतीय अंक प्रणाली

मध्य पूर्व

मध्य पूर्व का राजनीतिक नक्शा मध्य पूर्व (या पूर्व में ज्यादा प्रचलित पूर्व के करीब (Near East)) दक्षिण पश्चिम एशिया, दक्षिण पूर्वी यूरोप और उत्तरी पूर्वी अफ़्रीका में विस्तारित क्षेत्र है। इसकी कोई स्पष्ट सीमा रेखा नहीं है, अक्सर इस शब्द का प्रयोग पूर्व के पास (Near East) के एक पर्याय के रूप में प्रयोग किया जाता, ठीक सुदूर पूर्व (Far East) के विपरित। मध्य पूर्व शब्द का प्रचलन १९०० के आसपास के यूनाइटेड किंगडम में शुरू हुआ। .

देखें रोमन संख्यांक और मध्य पूर्व

यूरोप

यूरोप पृथ्वी पर स्थित सात महाद्वीपों में से एक महाद्वीप है। यूरोप, एशिया से पूरी तरह जुड़ा हुआ है। यूरोप और एशिया वस्तुतः यूरेशिया के खण्ड हैं और यूरोप यूरेशिया का सबसे पश्चिमी प्रायद्वीपीय खंड है। एशिया से यूरोप का विभाजन इसके पूर्व में स्थित यूराल पर्वत के जल विभाजक जैसे यूराल नदी, कैस्पियन सागर, कॉकस पर्वत शृंखला और दक्षिण पश्चिम में स्थित काले सागर के द्वारा होता है। यूरोप के उत्तर में आर्कटिक महासागर और अन्य जल निकाय, पश्चिम में अटलांटिक महासागर, दक्षिण में भूमध्य सागर और दक्षिण पश्चिम में काला सागर और इससे जुड़े जलमार्ग स्थित हैं। इस सबके बावजूद यूरोप की सीमायें बहुत हद तक काल्पनिक हैं और इसे एक महाद्वीप की संज्ञा देना भौगोलिक आधार पर कम, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक आधार पर अधिक है। ब्रिटेन, आयरलैंड और आइसलैंड जैसे देश एक द्वीप होते हुए भी यूरोप का हिस्सा हैं, पर ग्रीनलैंड उत्तरी अमरीका का हिस्सा है। रूस सांस्कृतिक दृष्टिकोण से यूरोप में ही माना जाता है, हालाँकि इसका सारा साइबेरियाई इलाका एशिया का हिस्सा है। आज ज़्यादातर यूरोपीय देशों के लोग दुनिया के सबसे ऊँचे जीवनस्तर का आनन्द लेते हैं। यूरोप पृष्ठ क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का दूसरा सबसे छोटा महाद्वीप है, इसका क्षेत्रफल के १०,१८०,००० वर्ग किलोमीटर (३,९३०,००० वर्ग मील) है जो पृथ्वी की सतह का २% और इसके भूमि क्षेत्र का लगभग ६.८% है। यूरोप के ५० देशों में, रूस क्षेत्रफल और आबादी दोनों में ही सबसे बड़ा है, जबकि वैटिकन नगर सबसे छोटा देश है। जनसंख्या के हिसाब से यूरोप एशिया और अफ्रीका के बाद तीसरा सबसे अधिक आबादी वाला महाद्वीप है, ७३.१ करोड़ की जनसंख्या के साथ यह विश्व की जनसंख्या में लगभग ११% का योगदान करता है, तथापि, संयुक्त राष्ट्र के अनुसार (मध्यम अनुमान), २०५० तक विश्व जनसंख्या में यूरोप का योगदान घटकर ७% पर आ सकता है। १९०० में, विश्व की जनसंख्या में यूरोप का हिस्सा लगभग 25% था। पुरातन काल में यूरोप, विशेष रूप से यूनान पश्चिमी संस्कृति का जन्मस्थान है। मध्य काल में इसी ने ईसाईयत का पोषण किया है। यूरोप ने १६ वीं सदी के बाद से वैश्विक मामलों में एक प्रमुख भूमिका अदा की है, विशेष रूप से उपनिवेशवाद की शुरुआत के बाद.

देखें रोमन संख्यांक और यूरोप

रोमन साम्राज्य

अपने महत्तम विस्तार पर 117 इस्वी में '''रोमन साम्राज्य''' रोमन साम्राज्य का उत्थान एवं पतन रोमन साम्राज्य (27 ई.पू.

देखें रोमन संख्यांक और रोमन साम्राज्य

लातिन भाषा

लातीना (Latina लातीना) प्राचीन रोमन साम्राज्य और प्राचीन रोमन धर्म की राजभाषा थी। आज ये एक मृत भाषा है, लेकिन फिर भी रोमन कैथोलिक चर्च की धर्मभाषा और वैटिकन सिटी शहर की राजभाषा है। ये एक शास्त्रीय भाषा है, संस्कृत की ही तरह, जिससे ये बहुत ज़्यादा मेल खाती है। लातीना हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की रोमांस शाखा में आती है। इसी से फ़्रांसिसी, इतालवी, स्पैनिश, रोमानियाई और पुर्तगाली भाषाओं का उद्गम हुआ है (पर अंग्रेज़ी का नहीं)। यूरोप में ईसाई धर्म के प्रभुत्व की वजह से लातीना मध्ययुगीन और पूर्व-आधुनिक कालों में लगभग सारे यूरोप की अंतर्राष्ट्रीय भाषा थी, जिसमें समस्त धर्म, विज्ञान, उच्च साहित्य, दर्शन और गणित की किताबें लिखी जाती थीं। .

देखें रोमन संख्यांक और लातिन भाषा

शुद्ध और अनुप्रयोगिक रसायन का अंतरराष्ट्रीय संघ

IUPAC प्रतीक चिन्ह शुद्ध और अनुप्रयोगिक रसायन का अन्तरराष्ट्रीय संघ ((IUPAC: इंटरनैशनल यूनियन फॉर प्योर एंड एप्लाइड केमिस्ट्री) उच्चारणः आइ-यू-पैक)) एक गैर सरकारी संगठन है जिसकी स्थापना 1919 में रसायन शास्त्र की उन्नति के लिए की गयी थी। इसके सदस्य राष्ट्रीय रसायन समितियाँ हैं। यह संगठन रासायनिक तत्वों और उनके यौगिकों के नामकरण के लिए मानक विकसित करने के लिए अधिकृत है, जो यह इसकी नाम और चिह्न की अन्तर्विभागीय समिति (आइ यू पी ए सी नॉमेनक्लॅचर) के माध्यम से करता है। यह अन्तरराष्ट्रीय विज्ञान परिषद (आई सी एस यू) का भी एक सदस्य है। .

देखें रोमन संख्यांक और शुद्ध और अनुप्रयोगिक रसायन का अंतरराष्ट्रीय संघ

शून्य

शून्य (0) एक अंक है जो संख्याओं के निरूपण के लिये प्रयुक्त आजकी सभी स्थानीय मान पद्धतियों का अपरिहार्य प्रतीक है। इसके अलावा यह एक संख्या भी है। दोनों रूपों में गणित में इसकी अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका है। पूर्णांकों तथा वास्तविक संख्याओं के लिये यह योग का तत्समक अवयव (additive identity) है। .

देखें रोमन संख्यांक और शून्य

स्थानिक मान

स्थानिक मान पद्धति (place-value notation) या स्थिति-चिह्न (Positional notation) संख्याओं को निरूपित करने की वह प्रणाली जिसमें किसी संकेत (अंक) का मान इस बात पर निर्भर करता है कि संख्या में उस अंक का स्थान कहाँ है। उदाहरण के लिये ३२५ (तीन सौ पचीस) में ५ का स्थानीय मान पांच है किन्तु ५२३ में ५ का स्थानीय मान 'पाँच सौ' है। इस तरह संख्याओं के निरूपण की यह पद्धति रोमन अंक पद्धति आदि अन्य निरूपण पद्धतियों से भिन्न है। स्थानीय मान पर आधारित संख्या निरूपण से बहुत सी अंकगणितीय संक्रियाएँ बहुत सरलता से की जाने लगीं और इस कारण यह पद्धति शीघ्र ही पूरे संसार में अपना ली गयी। आजकल स्थानीय मान पर आधारित बहुत सी पद्धतियाँ प्रचलित हैं जिनमें दस आधार वाली हिन्दू अंक पद्धति सबसे पुरानी और सर्वाधिक प्रयुक्त पद्धति है। इसके अतिरिक्त द्विआधारी संख्या पद्धति (बाइनरी नम्बर सिस्टम), अष्टाधारी संख्या पद्धति (ऑक्टल नम्बर सिस्टम) तथा षोडशाधारी संख्या पद्धति (हेक्साडेसिमल नम्बर सिस्टम) भी प्रयुक्त होते हैं (मुख्यत: संगणकीय गणित में)। स्थानीय मान पद्धति में दशमलव बिन्दु का प्रयोग करके भिन्नात्मक संख्याओं (fractions) को भी निरूपित करने की क्षमता रखती है। अर्थात यह पद्धति सभी वास्तविक संख्याओं को निरूपित करने की क्षमता रखती है। .

देखें रोमन संख्यांक और स्थानिक मान

आवर्त सारणी

आवर्त सारणी (अथवा, तत्वों की आवर्त सारणी) रासायनिक तत्वों को उनकी संगत विशेषताओं के साथ एक सारणी के रूप में दर्शाने की एक व्यवस्था है। आवर्त सारणी में रासायनिक तत्त्व परमाणु क्रमांक के बढ़ते क्रम में सजाये गये हैं तथा आवर्त (पिरियड), प्राथमिक समूह, द्वितीयक समूह में वर्गीकृत किया गया है। वर्तमान आवर्त सारणी मैं ११८ ज्ञात तत्व सम्मिलित हैं। सबसे पहले रूसी रसायन-शास्त्री मेंडलीफ (सही उच्चारण- मेन्देलेयेव) ने सन १८६९ में आवर्त नियम प्रस्तुत किया और तत्वों को एक सारणी के रूप में प्रस्तुत किया। इसके कुछ महीनों बाद जर्मन वैज्ञानिक लोथर मेयर (1830-1895) ने भी स्वतन्त्र रूप से आवर्त सारणी का निर्माण किया। मेन्देलेयेव की सारणी से अल्फ्रेड वर्नर (Alfred Werner) ने आवर्त सारणी का वर्तमान स्वरूप निर्मित किया। सन १९५२ में कोस्टा रिका के वैज्ञानिक गिल चावेरी (scientist Gil Chaverri) ने आवर्त सारणी का एक नया रूप प्रस्तुत किया जो तत्वों के इलेक्ट्रानिक संरचना पर आधारित था। रसायन शास्त्रियों के लिये आवर्त सारणी अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं उपयोगी है। इसके कारण कम तत्वों के गुणधर्मों को ही याद रखने से काम चल जाता है क्योंकि आवर्त सारणी में किसी समूह (उर्ध्वाधर पंक्ति) या किसी आवर्त (क्षैतिज पंक्ति) में गुणधर्म एक निश्चित क्रम से एवं तर्कसम्मत तरीके से बदलते हैं। नीचे आवर्त सारणी का आधुनिक रूप दिखाया गया है जिसमें १८ वर्ग तथा ७ आवर्त हैं- .

देखें रोमन संख्यांक और आवर्त सारणी

यह भी देखें

संख्या पद्धति

संख्यांक

रोमन अंक, रोमन अंक पद्धति, रोमन अंक प्रणाली के रूप में भी जाना जाता है।