सामग्री की तालिका
7 संबंधों: त्वरण, दालाँवेयर, समुदाय, समीकरण, हैमिल्टन का सिद्धान्त, आभासी कार्य, अवकलज।
- गतिकीय तंत्र
- चिरसम्मत यांत्रिकी
- जड़सूत्र
त्वरण
विभिन्न प्रकार के त्वरण के अन्तर्गत गति में वस्तु की समान समयान्तराल बाद स्थितियाँ दोलन करता हुआ लोलक: इसका वेग एवं त्वरण तीर द्वारा दर्शाया गया है। वेग एवं त्वरण दोनों का परिमाण एवं दिशा हर क्षण बदल रही है। किसी वस्तु के वेग परिवर्तन की दर को त्वरण (Acceleration) कहते हैं। इसका मात्रक मीटर प्रति सेकेण्ड2 होता है तथा यह एक सदिश राशि हैं। या, उदाहरण: माना समय t.
देखें दालाँवेयर का सिद्धान्त और त्वरण
दालाँवेयर
फ्रांसीसी गणितज्ञ दालाँवेयर दालाँवेयर (Jean-Baptiste le Rond d'Alembert; फ्रांसीसी उच्चारण:; १७१७-१७८३ ई.) फ्रांसीसी गणितज्ञ थे। इनका जन्म पेरिस में हुआ। २४ वर्षं की आयु में ही इनको पैरिस की विज्ञान अकादमी में प्रवेश मिला गया और १७५४ ई.
देखें दालाँवेयर का सिद्धान्त और दालाँवेयर
समुदाय
एक निश्चित भूभाग में निवास करने वाले सामाजिक/आर्थिक/सांस्कृतिक अथवा धार्मिक समूह जो सभी सदस्यो के सहयोग से अपने उद्देश्यो की पूर्ति के लिए कार्य करते हैं, समुदाय कहलाता है। समुदाय के लोग एक निश्चित स्थान पर निवास करते हैं । *.
देखें दालाँवेयर का सिद्धान्त और समुदाय
समीकरण
---- समीकरण (equation) प्रतीकों की सहायता से व्यक्त किया गया एक गणितीय कथन है जो दो वस्तुओं को समान अथवा तुल्य बताता है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आधुनिक गणित में समीकरण सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय है। आधुनिक विज्ञान एवं तकनीकी में विभिन्न घटनाओं (फेनामेना) एवं प्रक्रियाओं का गणितीय मॉडल बनाने में समीकरण ही आधारका काम करने हैं। समीकरण लिखने में समता चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। यथा- समीकरण प्राय: दो या दो से अधिक व्यंजकों (expressions) की समानता को दर्शाने के लिये प्रयुक्त होते हैं। किसी समीकरण में एक या एक से अधिक चर राशि (यां) (variables) होती हैं। चर राशि के जिस मान के लिये समीकरण के दोनो पक्ष बराबर हो जाते हैं, वह/वे मान समीकरण का हल या समीकरण का मूल (roots of the equation) कहलाता/कहलाते है। ऐसा समीकरण जो चर राशि के सभी मानों के लिये संतुष्ट होता है, उसे सर्वसमिका (identity) कहते हैं। जैसे - एक सर्वसमिका है। जबकि एक समीकरण है जिसका मूल हैं x.
देखें दालाँवेयर का सिद्धान्त और समीकरण
हैमिल्टन का सिद्धान्त
भौतिकी में, हैमिल्टन सिद्धान्त (Hamilton's principle) के अनुसार, किसी भौतिक निकाय की गतिकी, केवल एक फलन के परिवर्तन की समस्या (variational problem) द्वारा ही निर्धारित होता है। इस फलन को लाग्रेंजियन (Lagrangian) कहते हैं। यह सिद्धान्त विलियम रोवन हैमिल्टन (William Rowan Hamilton) ने प्रतिपादित किया था। .
देखें दालाँवेयर का सिद्धान्त और हैमिल्टन का सिद्धान्त
आभासी कार्य
किसी कण पर किसी बल द्वारा किसी आभासी विस्थापन की दिशा में किया गया कार्य 'आभासी कार्य अथवा कल्पित कार्य (virtual work) कहलाता है। आभासी कार्य के सिद्धान्त की सहायता से किसी यांत्रिक तन्त्र पर लगने वाले बलों एवं उनके कारण हुए विस्थापन का अध्ययन किया जाता है। आभासी कार्य का सिद्धान्त, अल्पतम क्रिया नियम (principle of least action) से व्युत्पन्न हुआ है। ऐतिहासिक रूप से आभासी कार्य तथा इससे सम्बन्धित विचरण कैलकुलस (calculus of variations) का विकास दृढ़ पिण्डों (rigid body) की गति के लिए किया गया था किन्तु इन सिद्धान्तों का प्रयोग विरूप्य पिंडों की यांत्रिकी (mechanics of deformable bodies) का अध्ययन करने के लिए भी किया जाता है। यदि किसी यांत्रिक तन्त्र के साम्य के सन्दर्भ में इस सिद्धान्त का प्रयोग करें तो कह सकते हैं कि किसी तन्त्र पर लगे सभी बलों द्वारा किए गये आभासी कार्यों का योग शून्य होता है। आभासी कार्य .
देखें दालाँवेयर का सिद्धान्त और आभासी कार्य
अवकलज
एक वक्र के विभिन्न बिन्दुओं पर प्रवणता (स्लोप) वास्तव में उस बिन्दु पर '''x''' के सापेक्ष '''y''' का मान बढ़ने की दर के बराबर होता है। किसी चर राशि के किसी अन्य चर राशि के सम्बन्ध में तात्कालिक बदलाव की दर की गणना को अवकलन (Differentiation) कहते हैं तथा इस क्रिया द्वारा प्राप्त दर को अवकलज (Derivative) कहते हैं। यह किसी फलन को किसी चर राशि के साथ बढ़ने की दर को मापता है। जैसे यदि कोई फलन y किसी चर राशि x पर निर्भर है और x का मान x1 से x2 करने पर y का मान y1 से y2 हो जाता है तो (y2-y1)/(x2-x1) को y का x के सन्दर्भ में अवकलज कहते हैं। इसे dy/dx से निरूपित किया जाता है। ध्यान रहे कि परिवर्तन (x2 - x1) सूक्ष्म से सूक्ष्मतम (tend to zero) होना चाहिये। इसीलिये सीमा (limit) का अवकलन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। किसी वक्र (curve) का किसी बिन्दु पर प्रवणता (slope) जानने के लिये उस बिन्दु पर अवकलज की गणना करनी पड़ती है।; परिभाषा फलन ƒ का बिन्दु a पर अवकलज निम्नलिखित सीमा के बराबर होता है (बशर्ते सीमा का अस्तित्व हो) - यदि सीमा का अस्तित्व है तो ƒ बिन्दु a पर अवकलनीय कहलाता है।; उदाहरण d/dx (ज्या(x)) .
देखें दालाँवेयर का सिद्धान्त और अवकलज
यह भी देखें
गतिकीय तंत्र
- अरेखीय तंत्र
- कल्पित कार्य
- गतिकीय तन्त्र
- तंत्र अभिनिर्धारण
- दालाँवेयर का सिद्धान्त
- दो-वस्तु समस्या
- द्विक लोलक
- पुनरावृत्त फलन
- प्रावस्था-समष्टि
- बहुपिण्ड तंत्र
- रैखिक निकाय
- रैखिकीकरण
- लाग्रांजीय यांत्रिकी
- लोलक (गणित)
- शैथिल्य
चिरसम्मत यांत्रिकी
- अवमन्दन
- आवेग (भौतिकी)
- केन्द्रीय बल
- कॉरिऑलिस प्रभाव
- खगोलीय यांत्रिकी
- गति के समीकरण
- गैसों का अणुगति सिद्धान्त
- घर्षण
- घूर्णन
- घूर्णी सन्दर्भ फ्रेम
- चिरसम्मत यांत्रिकी
- चिरसम्मत यांत्रिकी का इतिहास
- छद्म बल
- जड़त्व
- जड़त्वीय फ्रेम
- तात्कालिक घूर्णन केन्द्र
- दालाँवेयर का सिद्धान्त
- न्यूटन के गति नियम
- प्रत्यास्थ ऊर्जा
- बल (भौतिकी)
- बेल्लन घर्षण
- रैखिक गति
- लम्बवत अक्ष का प्रमेय
- वृत्तीय गति
- संघट्ट प्राचल
- संहति-केन्द्र
- सरल आवर्त गति
- सातत्यक यांत्रिकी
- सापेक्ष वेग
जड़सूत्र
- अनपेक्षित परिणाम
- अनिश्चितता सिद्धान्त
- जड़सूत्र
- दालाँवेयर का सिद्धान्त
- विज्ञान के नियम
- हठधर्म
- हैमिल्टन का सिद्धान्त