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कृमिरोग

सूची कृमिरोग

कृमिरोग मनुष्य अथवा अन्य जानवरों के उदर में अथवा पेट में केंचुए जिसे कृमि भी कहते है से उत्पन्न रोग है। सामान्य हिन्दीभाषी लोग पेट में कीड़ी भी बोलते हैं। यह रोग मुख्यतः गंदगी से फैलता है गन्दी मृदा के संपर्क मे आने से भी यह रोग फैलता है। .

सामग्री की तालिका

  1. 4 संबंधों: फीता कृमि, बद्धान्त्र, कृमिरोग (आयुर्वेद), अंकुश कृमि

  2. उष्णकटिबंधीय रोग
  3. खाद्यवाहित रोग
  4. संक्रामक आँत-सम्बन्धी रोग
  5. स्वच्छता

फीता कृमि

फीता कृमि का अग्र भाग फीता कृमि एक अमेरूदण्डी परजीवी है। यह रीढ़धारी प्राणियों जैसे मानव के शरीर में अंतःपरजीवी के रूप में निवास करता है। इसकी कुछ प्रजातियाँ १०० फिट (३० मीटर) तक बढ़ सकती हैं। इसका शरीर फीता की तरह लम्बा और अनेक खण्डों में बँटा होता है। शरीर के प्रत्येक खण्ड को प्रोग्लोटिड कहते हैं। प्रत्येक प्रोग्लोटिड में नर एवं मादा अंग होता है। श्रेणी:परजीवी.

देखें कृमिरोग और फीता कृमि

बद्धान्त्र

पेट के एक्स-रे में बद्धान्त्र स्पष्ट दिखायी पड़ रहा है। अन्नमार्ग लगभग 25 फुट लंबी एक नली है जिसका कार्य खाद्यपदार्थ को इकट्ठा करना, पचाना, सूक्ष्म रूपों में विभाजित कर रक्त तक पहुँचा देना एवं निरर्थक अंश को निष्कासित करना है। बद्धांत्र (Intestinal obstructions) वह दशा है जब किसी कारणवश आंत्रमार्ग में रुकावट आ जाती है। इससे उदर शूल, वमन तथा कब्ज आदि लक्षण प्रकट होते हैं। उचित चिकित्सा के अभाव में यह रोग घातक सिद्ध हो सकता है। .

देखें कृमिरोग और बद्धान्त्र

कृमिरोग (आयुर्वेद)

आयुर्वेद में परजीवियों को 'कृमि' कहते हैं। आयुर्वेद में इनके तीन प्रकार कहे गये हैं-.

देखें कृमिरोग और कृमिरोग (आयुर्वेद)

अंकुश कृमि

अंकुश कृमि या हुकवर्म (Hookworm) बेलनाकार छोटे-छोटे भूरे रंग के कृमि होते हैं। ये अधिकतर मनुष्य के क्षुद्र अंत्र (स्माल इंस्टेस्टाइन) के पहले भाग में रहते हैं। इनके मुँह के पास एक कॅटिया सा अवयव होता है; इसी कारण ये अंकुश कृमि कहलाते हैं। .

देखें कृमिरोग और अंकुश कृमि

यह भी देखें

उष्णकटिबंधीय रोग

खाद्यवाहित रोग

संक्रामक आँत-सम्बन्धी रोग

स्वच्छता