सामग्री की तालिका
8 संबंधों: द्वितीय विश्वयुद्ध, राजनीति, राजनीतिक समाजशास्त्र, समाजशास्त्र, सामाजिक स्तरीकरण, सामाजिक विज्ञान, संभ्रांतवाद, अभिजाततंत्र।
- अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक सम्बन्ध
- तुलनात्मक राजनीति
- राजनीति विज्ञान
- राजनीति विज्ञान के सिद्धान्त
- समाजशास्त्रीय सिद्धान्त
द्वितीय विश्वयुद्ध
द्वितीय विश्वयुद्ध १९३९ से १९४५ तक चलने वाला विश्व-स्तरीय युद्ध था। लगभग ७० देशों की थल-जल-वायु सेनाएँ इस युद्ध में सम्मलित थीं। इस युद्ध में विश्व दो भागों मे बँटा हुआ था - मित्र राष्ट्र और धुरी राष्ट्र। इस युद्ध के दौरान पूर्ण युद्ध का मनोभाव प्रचलन में आया क्योंकि इस युद्ध में लिप्त सारी महाशक्तियों ने अपनी आर्थिक, औद्योगिक तथा वैज्ञानिक क्षमता इस युद्ध में झोंक दी थी। इस युद्ध में विभिन्न राष्ट्रों के लगभग १० करोड़ सैनिकों ने हिस्सा लिया, तथा यह मानव इतिहास का सबसे ज़्यादा घातक युद्ध साबित हुआ। इस महायुद्ध में ५ से ७ करोड़ व्यक्तियों की जानें गईं क्योंकि इसके महत्वपूर्ण घटनाक्रम में असैनिक नागरिकों का नरसंहार- जिसमें होलोकॉस्ट भी शामिल है- तथा परमाणु हथियारों का एकमात्र इस्तेमाल शामिल है (जिसकी वजह से युद्ध के अंत मे मित्र राष्ट्रों की जीत हुई)। इसी कारण यह मानव इतिहास का सबसे भयंकर युद्ध था। हालांकि जापान चीन से सन् १९३७ ई.
देखें अभिजात सिद्धान्त और द्वितीय विश्वयुद्ध
राजनीति
नागरिक स्तर पर या व्यक्तिगत स्तर पर कोई विशेष प्रकार का सिद्धान्त एवं व्यवहार राजनीति (पॉलिटिक्स) कहलाती है। अधिक संकीर्ण रूप से कहें तो शासन में पद प्राप्त करना तथा सरकारी पद का उपयोग करना राजनीति है। राजनीति में बहुत से रास्ते अपनाये जाते हैं जैसे- राजनीतिक विचारों को आगे बढ़ाना, कानून बनाना, विरोधियों के विरुद्ध युद्ध आदि शक्तियों का प्रयोग करना। राजनीति बहुत से स्तरों पर हो सकती है- गाँव की परम्परागत राजनीति से लेकर, स्थानीय सरकार, सम्प्रभुत्वपूर्ण राज्य या अन्तराष्ट्रीय स्तर पर। .
देखें अभिजात सिद्धान्त और राजनीति
राजनीतिक समाजशास्त्र
19वीं शताब्दी में राज्य और समाज के आपसी सम्बन्ध पर वाद-विवाद शुरू हुआ तथा 20वीं शताब्दी में, द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सामाजिक विज्ञानों में विभिन्नीकरण और विशिष्टीकरण की उदित प्रवृत्ति तथा राजनीति विज्ञान में व्यवहारवादी क्रान्ति और अन्तः अनुशासनात्मक उपागम के बढ़े हुए महत्व के परिणामस्वरूप जर्मन और अमरीकी विद्वानों में राजनीतिक विज्ञान के समाजोन्मुख अध्ययन की एक नूतन प्रवृत्ति शुरू हुई। इस प्रवृत्ति के परिणामस्वरूप राजनीतिक समस्याओं की समाजशास्त्रीय खोज एवं जांच की जाने लगी। ये खोजें एवं जांच न तो पूर्ण रूप से समाजशास्त्रीय थीं और न ही पूर्णतः राजनीतिक। अतः ऐसे अध्ययनों को ‘राजनीतिक समाजशास्त्र’ के नाम से पुकारा जाने लगा। .
देखें अभिजात सिद्धान्त और राजनीतिक समाजशास्त्र
समाजशास्त्र
समाजशास्त्र मानव समाज का अध्ययन है। यह सामाजिक विज्ञान की एक शाखा है, जो मानवीय सामाजिक संरचना और गतिविधियों से संबंधित जानकारी को परिष्कृत करने और उनका विकास करने के लिए, अनुभवजन्य विवेचनगिडेंस, एंथोनी, डनेर, मिशेल, एप्पल बाम, रिचर्ड.
देखें अभिजात सिद्धान्त और समाजशास्त्र
सामाजिक स्तरीकरण
सामाजिक स्तरीकरण (social stratification) वह प्रक्रिया है जिसमे व्यक्तियों के समूहों को उनकी प्रतिष्ठा, संपत्ति और शक्ति की मात्रा के सापेक्ष पदानुक्रम में विभिन्न श्रेणियों में उच्च से निम्न रूप में स्तरीकृत किया जाता है। वर्ग स्तरीकरण विश्वव्यापी है और उसके उत्पन्न होने के अनेक कारण हैं जैसे पूंजीपति और श्रमिक वर्ग औद्योगीकरण की देन हैं; धन की विभिन्न अवस्था धनी, मध्यम और र्निधन वर्ग को जन्म देती है। .
देखें अभिजात सिद्धान्त और सामाजिक स्तरीकरण
सामाजिक विज्ञान
सामाजिक विज्ञान (Social science) मानव समाज का अध्ययन करने वाली शैक्षिक विधा है। प्राकृतिक विज्ञानों के अतिरिक्त अन्य विषयों का एक सामूहिक नाम है 'सामाजिक विज्ञान'। इसमें नृविज्ञान, पुरातत्व, अर्थशास्त्र, भूगोल, इतिहास, विधि, भाषाविज्ञान, राजनीति शास्त्र, समाजशास्त्र, अंतरराष्ट्रीय अध्ययन और संचार आदि विषय सम्मिलित हैं। कभी-कभी मनोविज्ञान को भी इसमें शामिल कर लिया जाता है। .
देखें अभिजात सिद्धान्त और सामाजिक विज्ञान
संभ्रांतवाद
संभ्रांतवाद (अंग्रेज़ी: elitism, इलीटिज़्म) यह विश्वास या सोच होती है कि अपनी जाति, शिक्षा, धन-सम्पन्नता, बुद्धि, अनुभव या किसी अन्य गुण के कारण किसी संभ्रांत वर्ग (इलीट, या विशिष्ट वर्ग) की सदस्यता रखने वाले कुछ व्यक्तियों के मतों का महत्व अधिक है, या उनके करे कार्य समाज के लिए अधिक लाभदायक हैं, या वे शासन करने या निर्देश देने की विशेष क्षमता रखते हैं।, Charles Herman Pritchett, Public Affairs Conference Center, Rand McNally, 1968,...
देखें अभिजात सिद्धान्त और संभ्रांतवाद
अभिजाततंत्र
अभिजाततंत्र (अरिस्टॉक्रैसी) वह शासनतंत्र है जिसमें राजनीतिक सत्ता अभिजन के हाथ में हो। इस संदर्भ में "अभिजन" का अर्थ है कुलीन, विद्वान, सद्गुणी, उत्कृष्ट। पश्चिम में "अरिस्टॉक्रैसी" का अर्थ भी लगभग यही है। अफ़लातून (प्लेटो) और उसके शिष्य अरस्तू ने अपनी पुस्तकों में अरिस्टाक्रैसी को बुद्धिमान, सद्गुणी व्यक्तियों का शासनतंत्र माना है। .
देखें अभिजात सिद्धान्त और अभिजाततंत्र
यह भी देखें
अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक सम्बन्ध
- अभिजात सिद्धान्त
- अल्पसंख्यक
- नेतृत्व
- पहचान की राजनीति
- प्रबन्धन
- भारत में आरक्षण
- लोकप्रियता कुतर्क
- संभ्रांत वर्ग
- सकारात्मक विभेद
- सत्ता
- सशक्तिकरण
- सांस्कृतिक प्रसार
- सांस्कृतिक भेद
- सामाजिक प्रभाव
- सामाजीकरण
तुलनात्मक राजनीति
- अभिजात सिद्धान्त
- आधुनिकता के सिद्धान्त
- कल्याणकारी राज्य
- क्रान्ति
- चुनाव
- तुलनात्मक राजनीति
- निर्भरता का सिद्धान्त
- निर्वाचन प्रणालियाँ
- राजनीतिक दल
- लोकलुभावनवाद
- व्यवहारवाद (राजनीति विज्ञान)
- संरचनात्मक प्रकार्यवाद
- संविधानवाद
- सामाजिक आन्दोलन
- सामाजिक पूँजी
राजनीति विज्ञान
- अफसरशाही
- अभिजात सिद्धान्त
- जनता
- तुलनात्मक राजनीति
- राजनीति विज्ञान
- लोकनीति
- वर्ग संघर्ष
- वैश्विक प्रणाली
- संभ्रांतवाद
- सांस्कृतिक साम्राज्यवाद
- सामाजिक प्रगति
राजनीति विज्ञान के सिद्धान्त
- अभिजात सिद्धान्त
- प्रभावक्षेत्र
- विद्रोह
- वैश्विक प्रणाली
- सभ्यताओं का संघर्ष
समाजशास्त्रीय सिद्धान्त
- अभिजात सिद्धान्त
- अवव्याख्यावाद
- आधुनिकता के सिद्धान्त
- ऐक्टर-नेटवर्क सिद्धान्त
- औद्योगिक समाज
- तथ्यवाद
- मानव जाति विज्ञान
- मार्क्सवाद
- लिंग
- वैश्विक प्रणाली
- संरचनात्मक प्रकार्यवाद
- संरचनावाद
- समाजशास्त्रीय सिद्धान्त
- सामाजिक चक्र
- सामाजिक जालक्रम
- सामाजिक डार्विनवाद
- सामाजिक संघटन
संभ्रान्त सिद्धान्त के रूप में भी जाना जाता है।