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राजनीतिक दल

सूची राजनीतिक दल

राजनीतिक दल अथवा राजनैतिक दल एक राजनीतिक संस्था (Political organisation) है जो शासन में राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने एवं उसे बनाये रखने का प्रयत्न करता है। इसके लिये प्राय: वह चुनाव की प्रक्रिया में भाग लेता है। राजनीतिक दलों का अपना एक सिद्धान्त या लक्ष्य (विज़न) होता है जो प्राय: लिखित दस्तावेज के रूप में होता है। विभिन्न देशों में राजनीतिक दलों की अलग-अलग स्थिति व व्यवस्था है। कुछ देशों में कोई भी राजनीतिक दल नहीं होता। कहीं एक ही दल सर्वेसर्वा (डॉमिनैन्ट) होता है। कहीं मुख्यतः दो दल होते हैं। किन्तु बहुत से देशों में दो से अधिक दल होते हैं। लोकतान्त्रिक राजनैतिक व्यवस्था में राजनैतिक दलों का स्थान केन्द्रीय अवधारणा के रूप में अत्यन्त महत्वपूर्ण है। राजनैतिक दल किसी समाज व्यवस्था में शक्ति के वितरण और सत्ता के आकांक्षी व्यक्तियों एवं समूहों का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे परस्पर विरोधी हितों के सारणीकरण, अनुशासन और सामंजस्य का प्रमुख साधन रहे हैं। इस तरह से राजनैतिक दल समाज व्यवस्था के लक्ष्यों, सामाजिक गतिशीलता, सामाजिक परिवर्तनों, परिवर्तनों के अवरोधों और सामाजिक आन्दोलनों से भी सम्बन्धित होते हैं। राजनैतिक दलों का अध्ययन समाजशास्त्री और राजनीतिशास्त्री दोनों करते हैं, लेकिन दोनों के दृष्टिकोणों में पर्याप्त अन्तर है। समाजशास्त्री राजनैतिक दल को सामाजिक समूह मानते हैं जबकि राजनीतिज्ञ राजनीतिक दलों को आधुनिक राज्य में सरकार बनाने की एक प्रमुख संस्था के रूप में देखते हैं। .

11 संबंधों: चुनाव, भारत, भारत के राजनीतिक दलों की सूची, माओवाद, लेनिनवाद, लोकतंत्र, शासन, समाजवाद, जाति, विचारधारा, कार्ल मार्क्स

चुनाव

चुनाव पेटी चुनाव या निर्वाचन (election), लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जिसके द्वारा जनता (लोग) अपने प्रतिनिधियों को चुनती है। चुनाव के द्वारा ही आधुनिक लोकतंत्रों के लोग विधायिका (और कभी-कभी न्यायपालिका एवं कार्यपालिका) के विभिन्न पदों पर आसीन होने के लिये व्यक्तियों को चुनते हैं। चुनाव के द्वारा ही क्षेत्रीय एवं स्थानीय निकायों के लिये भी व्यक्तिओं का चुनाव होता है। वस्तुतः चुनाव का प्रयोग व्यापक स्तर पर होने लगा है और यह निजी संस्थानों, क्लबों, विश्वविद्यालयों, धार्मिक संस्थानों आदि में भी प्रयुक्त होता है। .

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भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

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भारत के राजनीतिक दलों की सूची

भारत में बहुदलीय प्रणाली बहु-दलीय पार्टी व्यवस्था है जिसमें छोटे क्षेत्रीय दल अधिक प्रबल हैं। राष्ट्रीय पार्टियां वे हैं जो चार या अधिक राज्यों में मान्यता प्राप्त हैं। उन्हें यह अधिकार भारत के चुनाव आयोग द्वारा दिया जाता है, जो विभिन्न राज्यों में समय समय पर चुनाव परिणामों की समीक्षा करता है। इस मान्यता की सहायता से राजनीतिक दल कुछ पहचानों पर अपनी स्थिति की अगली समीक्षा तक विशिष्ट स्वामित्व का दावा कर सकते हैं जैसे की पार्टी चिन्ह.

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माओवाद

माओवाद (1960-70 के दशक के दौरान) चरमपंथी अतिवादी माने जा रहे बुद्धिजीवी वर्ग का या उत्तेजित जनसमूह की सहज प्रतिक्रियावादी सिद्धांत है। माओवादी राजनैतिक रूप से सचेत सक्रिय और योजनाबद्ध काम करने वाले दल के रूप में काम करते है। उनका तथा मुख्यधारा के राजनैतिक दलों में यह प्रमुख भेद है कि जहाँ मुख्य धारा के दल वर्तमान व्यवस्था के भीतर ही काम करना चाहते है वही माओवादी समूचे तंत्र को हिंसक तरीके से उखाड़ के अपनी विचारधारा के अनुरूप नयी व्यवस्था को स्थापित करना चाहते हैं। वे माओ के इन दो प्रसिद्द सूत्रों पे काम करते हैं: 1.

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लेनिनवाद

लेनिनवाद साम्राज्यवाद और सर्वहारा क्रांति के युग का मार्क्सवाद है। विचारधारा के स्तर पर यह सर्वहारा क्रांति की और विशेषकर सर्वहारा की तानाशाही का सिद्धांत और कार्यनीति है। लेनिन ने उत्पादन की पूँजीवादी विधि के उस विश्लेषण को जारी रखा जिसे मार्क्स ने पूंजी में किया था और साम्राज्यवाद की परिस्थितियों में आर्थिक तथा राजनीतिक विकास के नियमों को उजागर किया। लेनिनवाद की सृजनशील आत्मा समाजवादी क्रांति के उनके सिद्धांत में व्यक्त हुई है। लेनिन ने प्रतिपादित किया कि नयी अवस्थाओं में समाजवाद पहले एक या कुछ देशों में विजयी हो सकता है। उन्होंने नेतृत्वकारी तथा संगठनकारी शक्ति के रूप में सर्वहारा वर्ग की दल विषयक मत को प्रतिपादन किया जिसके बिना सर्वहारा अधिनायकत्व की उपलब्धि तथा साम्यवादी समाज का निर्माण असम्भव है। वस्तुतः लेनिनवाद एक लेनिन के बाद की वैचारिक परिघटना है। लेनिन का देहांत 1924 में हुआ। अपने जीवन में उन्होंने ख़ुद न तो 'लेनिनवाद' शब्द का प्रयोग किया, और न ही उसके प्रयोग को प्रोत्साहित किया। वे अपने विचारों को मार्क्सवादी, समाजवादी और कम्युनिस्ट श्रेणियों में रख कर व्यक्त करते थे। लेनिन के इस रवैये के विपरीत उनके जीवन के अंतिम दौर में (1920 से 1924 के बीच) सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष कम्युनिस्ट नेताओं और सिद्धांतकारों ने लेनिन के प्रमुख सिद्धांतों, रणनीतियों और कार्यनीतियों के इर्द-गिर्द विभिन्न राजनीतिक और रणनीतिक परिप्रेक्ष्य विकसित किये जिनके आधार पर आगे चल कर लेनिनवाद का विन्यास तैयार हुआ। इन नेताओं में निकोलाई बुखारिन, लियोन ट्रॉट्स्की, जोसेफ़ स्तालिन, ग्रेगरी ज़िनोवीव और लेव कामेनेव प्रमुख थे। उत्तर-लेनिन अवधि में हुए सत्ता-संघर्ष में स्तालिन की जीत हुई जिसके परिणामस्वरूप बाकी नेताओं को जान से हाथ धोना पड़ा। अतः आज लेनिनवाद का जो रूप हमारे सामने है, उस पर प्रमुख तौर पर स्तालिन की व्याख्याओं की छाप है। स्तालिन ने 1934 में दो पुस्तकें लिखीं: "फ़ाउंडेशंस ऑफ़ लेनिनिज्म" और "प्रॉब्लम्स ऑफ़ लेनिनिज्म" जो लेनिनवाद की अधिकारिक समझ का प्रतिनिधित्व करती हैं। अगर स्तालिन द्वारा दी गयी परिभाषा मानें तो लेनिनवाद साम्राज्यवाद और सर्वहारा क्रांति के युग का मार्क्सवाद होने के साथ-साथ सर्वहारा की तानाशाही की सैद्धांतिकी और कार्यनीति है। स्पष्ट है कि स्तालिन इस परिभाषा के द्वारा लेनिनवाद को एक सार्वभौम सिद्धान्त की तरह पेश करना चाहते थे। उन्हें अपने इस लक्ष्य में जो सफलता मिली, उसके पीछे लेनिन द्वारा सोवियत क्रांति के बाद 1919 में स्थापित कोमिंटर्न (कम्युनिस्ट इंटरनेशनल) की भूमिका को अनदेखा नहीं किया जा सकता। स्तालिन की सफलता का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि दुनिया के अधिकतर मार्क्सवादी कार्यकर्त्ता और नेता मार्क्सवाद को लेनिनवाद के बिना अपूर्ण समझते हैं। दरअसल, लेनिनवाद क्लासिकल मार्क्सवाद में कुछ नयी बातें जोड़ता है। पहली बात तो यह है कि वह केवल क्रांतिकारी सर्वहारा पर निर्भर रहने के बजाय क्रांतिकारी मेहनतकशों यानी मज़दूरों और किसानों के गठजोड़ की मुख्य क्रांतिकारी शक्ति के रूप में शिनाख्त करता है। अपने इस योगदान के कारण लेनिनवाद, मार्क्सवाद को विकसित औद्योगिक पूँँजीवाद की सीमाओं से निकाल कर अल्पविकसित और अर्ध-औपनिवेशिक देशों के राष्ट्रीय मुक्ति संग्रामों के लिए उपयोगी विचारधारा बना देता है। लेनिनवाद ऐसे सभी देशों के कम्युनिस्टों और अन्य रैडिकल तत्त्वों के लिए क्रांति करने की व्यावहारिक विधि का प्रावधान बन कर उभरा है। लेनिनवाद के इस आयाम के महत्त्व का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि मजदूरों और किसानों के क्रांतिकारी मोर्चे की अवधारणा चीन, वियतनाम, कोरिया और लातीनी अमेरिका में कम्युनिस्ट क्रांति को अग्रगति देने में सफल रही है। जिन देशों में कम्युनिस्ट क्रांतियाँ नहीं भी हो पायीं (जैसे भारत), वहाँ के कम्युनिस्ट भी लेनिनवाद की इसी केंद्रीय थीसिस पर अमल करते हैं। .

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लोकतंत्र

लोकतंत्र (शाब्दिक अर्थ "लोगों का शासन", संस्कृत में लोक, "जनता" तथा तंत्र, "शासन") या प्रजातंत्र एक ऐसी शासन व्यवस्था है जिसमें जनता अपना शासक खुद चुनती है। यह शब्द लोकतांत्रिक व्यवस्था और लोकतांत्रिक राज्य दोनों के लिये प्रयुक्त होता है। यद्यपि लोकतंत्र शब्द का प्रयोग राजनीतिक सन्दर्भ में किया जाता है, किंतु लोकतंत्र का सिद्धांत दूसरे समूहों और संगठनों के लिये भी संगत है। मूलतः लोकतंत्र भिन्न भिन्न सिद्धांतों के मिश्रण से बनते हैं, पर मतदान को लोकतंत्र के अधिकांश प्रकारों का चरित्रगत लक्षण माना जाता है। .

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शासन

शासन संचालन की गतिविधि को शासन कहते हैं, या दूसरे शब्दों में कहें तो, राज करने या राज चलाने को शासन कहा जाता है। इसका संबंध उन निर्णयों से है जो उम्मीदों को परिभाषित करते हैं, शक्ति देते हैं, या प्रदर्शन को प्रमाणित करते हैं। यह एक अलग प्रक्रिया भी हो सकती है या प्रबंधन अथवा नेतृत्व प्रक्रिया का एक खास हिस्सा भी हो सकती है। कभी कभी लोग इन प्रक्रियाओं और व्यवस्थाओं के संचालन के लिए सरकार की स्थापना करते हैं। किसी कारोबार अथवा गैर-लाभकारी संगठन के सन्दर्भ में, शासन का तात्पर्य अविरुद्ध प्रबंधन, एकीकृत नीतियों, मार्गदर्शन, प्रक्रियाओं और किसी दिए गए क्षेत्र के निर्णायक-अधिकारों से संबंधित है। उदाहरण के लिए, कॉर्पोरेट स्तर पर प्रबंधन के लिए गोपनीयता, आंतरिक निवेश, तथा आंकड़ों के प्रयोग संबंधी नीतियाँ बनाना शामिल हो सकता है। अगर सरकार और शासन शब्दों में अंतर किया जाए, तो जो निकलकर सामने आएगा वो यह है कि एक सरकार जो करती है वही शासन है। यह कोई भी भू-राजनीतिक सरकार (राष्ट्र-राज्य), कॉर्पोरेट सरकार (कारोबारी संस्था), सामाजिक-राजनीतिक सरकार (जाति, परिवार इत्यादि) या किसी भी अन्य प्रकार की सरकार हो सकती है। लेकिन शासन शक्ति और नीति के प्रबंधन की गतिज प्रक्रिया है, जबकि सरकार वह माध्यम (आमतौर पर सामूहिक) है जो इस प्रक्रिया को अंजाम देती है। वैसे सरकार शब्द का इस्तेमाल शासन के पर्यायवाची शब्द के तौर पर भी किया जाता है, जैसा कि कनाडाई नारे के तहत "शांति, व्यवस्था और अच्छी सरकार " है। 1947 ई. में जाकर अंग्रेजों का भारत पर शासन समाप्त हुआ। .

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समाजवाद

समाजवाद (Socialism) एक आर्थिक-सामाजिक दर्शन है। समाजवादी व्यवस्था में धन-सम्पत्ति का स्वामित्व और वितरण समाज के नियन्त्रण के अधीन रहते हैं। आर्थिक, सामाजिक और वैचारिक प्रत्यय के तौर पर समाजवाद निजी सम्पत्ति पर आधारित अधिकारों का विरोध करता है। उसकी एक बुनियादी प्रतिज्ञा यह भी है कि सम्पदा का उत्पादन और वितरण समाज या राज्य के हाथों में होना चाहिए। राजनीति के आधुनिक अर्थों में समाजवाद को पूँजीवाद या मुक्त बाजार के सिद्धांत के विपरीत देखा जाता है। एक राजनीतिक विचारधारा के रूप में समाजवाद युरोप में अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी में उभरे उद्योगीकरण की अन्योन्यक्रिया में विकसित हुआ है। ब्रिटिश राजनीतिक विज्ञानी हैरॉल्ड लॉस्की ने कभी समाजवाद को एक ऐसी टोपी कहा था जिसे कोई भी अपने अनुसार पहन लेता है। समाजवाद की विभिन्न किस्में लॉस्की के इस चित्रण को काफी सीमा तक रूपायित करती है। समाजवाद की एक किस्म विघटित हो चुके सोवियत संघ के सर्वसत्तावादी नियंत्रण में चरितार्थ होती है जिसमें मानवीय जीवन के हर सम्भव पहलू को राज्य के नियंत्रण में लाने का आग्रह किया गया था। उसकी दूसरी किस्म राज्य को अर्थव्यवस्था के नियमन द्वारा कल्याणकारी भूमिका निभाने का मंत्र देती है। भारत में समाजवाद की एक अलग किस्म के सूत्रीकरण की कोशिश की गयी है। राममनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण और नरेन्द्र देव के राजनीतिक चिंतन और व्यवहार से निकलने वाले प्रत्यय को 'गाँधीवादी समाजवाद' की संज्ञा दी जाती है। समाजवाद अंग्रेजी और फ्रांसीसी शब्द 'सोशलिज्म' का हिंदी रूपांतर है। 19वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में इस शब्द का प्रयोग व्यक्तिवाद के विरोध में और उन विचारों के समर्थन में किया जाता था जिनका लक्ष्य समाज के आर्थिक और नैतिक आधार को बदलना था और जो जीवन में व्यक्तिगत नियंत्रण की जगह सामाजिक नियंत्रण स्थापित करना चाहते थे। समाजवाद शब्द का प्रयोग अनेक और कभी कभी परस्पर विरोधी प्रसंगों में किया जाता है; जैसे समूहवाद अराजकतावाद, आदिकालीन कबायली साम्यवाद, सैन्य साम्यवाद, ईसाई समाजवाद, सहकारितावाद, आदि - यहाँ तक कि नात्सी दल का भी पूरा नाम 'राष्ट्रीय समाजवादी दल' था। समाजवाद की परिभाषा करना कठिन है। यह सिद्धांत तथा आंदोलन, दोनों ही है और यह विभिन्न ऐतिहासिक और स्थानीय परिस्थितियों में विभिन्न रूप धारण करता है। मूलत: यह वह आंदोलन है जो उत्पादन के मुख्य साधनों के समाजीकरण पर आधारित वर्गविहीन समाज स्थापित करने के लिए प्रयत्नशील है और जो मजदूर वर्ग को इसका मुख्य आधार बनाता है, क्योंकि वह इस वर्ग को शोषित वर्ग मानता है जिसका ऐतिहासिक कार्य वर्गव्यवस्था का अंत करना है। .

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जाति

भारतीय समाज जातीय सामाजिक इकाइयों से गठित और विभक्त है। श्रमविभाजनगत आनुवंशिक समूह भारतीय ग्राम की कृषिकेंद्रित व्यवस्था की विशेषता रही है। यहाँ की सामाजिक व्यवस्था में श्रमविभाजन संबंधी विशेषीकरण जीवन के सभी अंगों में अनुस्यूत है और आर्थिक कार्यों का ताना बाना इन्हीं आनुवंशिक समूहों से बनता है। यह जातीय समूह एक ओर तो अपने आंतरिक संगठन से संचालित तथा नियमित है और दूसरी ओर उत्पादन सेवाओं के आदान प्रदान और वस्तुओं के विनिमय द्वारा परस्पर संबद्ध हैं। समान पंमरागत पेशा या पेशे, समान धार्मिक विश्वास, प्रतीक सामाजिक और धार्मिक प्रथाएँ एवं व्यवहार, खानपान के नियम, जातीय अनुशासन और सजातीय विवाह इन जातीय समूहों की आंतरिक एकता को स्थिर तथा दृढ़ करते हैं। इसके अतिरिक्त पूरे समाज की दृष्टि में प्रत्येक जाति का सोपानवत्‌ सामाजिक संगठन में एक विशिष्ट स्थान तथा मर्यादा है जो इस सर्वमान्य धार्मिक विश्वास से पुष्ट है कि प्रत्येक मनुष्य की जाति तथा जातिगत धंधे दैवी विधान से निर्दिष्ट हैं और व्यापक सृष्टि के अन्य नियमों की भाँति प्रकृत तथा अटल हैं एक गाँव में स्थित परिवारों का ऐसा समूह वास्तव में अपनी बड़ी जातीय इकाई का अंग होता है जिसका संगठन तथा क्रियात्मक संबंधों की दृष्टि से एक सीमित क्षेत्र होता है, जिसकी परिधि सामान्यत: 20-25 मील होती है। उस क्षेत्र में जातिविशेष की एक विशिष्ट आर्थिक तथा सामाजिक मर्यादा होती है जो उसके सदस्यों को, जो जन्मना होते हैं, परंपरा से प्राप्त होती है। यह जातीय मर्यादा जीवन पर्यंत बनी रहती है और जातीय धंधा छोड़कर दूसरा धंधा अपनाने से तथा आमदनी के उतार चढ़ाव से उसपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यह मर्यादा जातीय-पेशा, आर्थिक स्थिति, धार्मिक संस्कार, सांस्कृतिक परिष्कार और राजनीतिक सत्ता से निर्धारित होती है और निर्धारकों में परिवर्तन आने से इसमें परिवर्तन भी संभव है। किंतु एक जाति स्वयं अनेक उपजातियों तथा समूहों में विभक्त रहती है। इस विभाजन का आधार बहुधा एक ही पेशे के अंदर विशेषीकरण के भेद प्रभेद होते हैं। किंतु भौगोलिक स्थानांतरण ने भी एक ही परंपरागत धंधा करनेवाली एकाधिक जातियों को साथ साथ रहने का अवसर दिया है। कभी कभी जब किसी जाति का एक अंग अपने परंपरागत पेशे के स्थान पर दूसरा पेशा अपना लेता है तो कालक्रम में वह एक पृथक्‌ जाति बन जाता है। उच्च हिंदू जातियों में गोत्रीय विभाजन भी विद्यमान हैं। गोत्रों की उपायोगिता मात्र इतनी ही है कि वे किसी जाति के बहिविवाही समूह बनाते हैं। और एक गोत्र के व्यक्ति एक ही पूर्वज के वंशज समझे जाते हैं। यह उपजातियाँ भी अपने में स्वतंत्र तथा पृथक्‌ अंतविवाही इकाइयाँ होती हैं और कभी कभी तो बृहत्तर जाति से उनका संबंध नाम मात्र का होता है (दे. गोत्रीय तथा अन्यगोत्रीय)। इन उपजातियों में भी ऊँच नीच का एक मर्यादाक्रम रहता है। उपजातियाँ भी अनेक शाखाओं में विभक्त रहती है और इनमें भी उच्चता तथा निम्नता का एक क्रम होता है जो विशेष रूप से विवाह संबंधों में व्यक्त होता है। विवाह में ऊँची पंक्तिवाले नीची पंक्तिवालों की लड़की ले सकते हैं किंतु अपनी लड़की उन्हें नहीं देते। .

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विचारधारा

विचारधारा, सामाजिक राजनीतिक दर्शन में राजनीतिक, कानूनी, नैतिक, सौंदर्यात्मक, धार्मिक तथा दार्शनिक विचार चिंतन और सिद्धांत प्रतिपादन की व्यवस्थित प्राविधिक प्रक्रिया है। विचारधारा का सामान्य आशय राजनीतिक सिद्धांत रूप में किसी समाज या समूह में प्रचलित उन विचारों का समुच्चय है जिनके आधार पर वह किसी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संगठन विशेष को उचित या अनुचित ठहराता है। विचारधारा के आलोचक बहुधा इसे एक ऐसे विश्वास के विषय के रूप में व्यवहृत करते हैं जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता। तर्क दिया जाता है कि किसी विचारधारा विशेष के अनुयायी उसे अपने आप में सत्य मानकर उसका अनुसरण करते हैं, उसके सत्यापन की आवश्यकता नहीं समझी जाती। वस्तुतः प्रत्येक विचारधारा के समर्थक उसकी पुष्टि के लिए किंचित सिद्धांत और तर्क अवश्य प्रस्तुत करते हैं और दूसरे के मन में उसके प्रति आस्था और विश्वास पैदा करने का प्रयत्न करते हैं। .

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कार्ल मार्क्स

कार्ल हेनरिख मार्क्स (1818 - 1883) जर्मन दार्शनिक, अर्थशास्त्री और वैज्ञानिक समाजवाद का प्रणेता थे। इनका जन्म 5 मई 1818 को त्रेवेस (प्रशा) के एक यहूदी परिवार में हुआ। 1824 में इनके परिवार ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया। 17 वर्ष की अवस्था में मार्क्स ने कानून का अध्ययन करने के लिए बॉन विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। तत्पश्चात्‌ उन्होंने बर्लिन और जेना विश्वविद्यालयों में साहित्य, इतिहास और दर्शन का अध्ययन किया। इसी काल में वह हीगेल के दर्शन से बहुत प्रभावित हुए। 1839-41 में उन्होंने दिमॉक्रितस और एपीक्यूरस के प्राकृतिक दर्शन पर शोध-प्रबंध लिखकर डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। शिक्षा समाप्त करने के पश्चात्‌ 1842 में मार्क्स उसी वर्ष कोलोन से प्रकाशित 'राइनिशे जीतुंग' पत्र में पहले लेखक और तत्पश्चात्‌ संपादक के रूप में सम्मिलित हुआ किंतु सर्वहारा क्रांति के विचारों के प्रतिपादन और प्रसार करने के कारण 15 महीने बाद ही 1843 में उस पत्र का प्रकाशन बंद करवा दिया गया। मार्क्स पेरिस चला गया, वहाँ उसने 'द्यूस फ्रांजोसिश' जारबूशर पत्र में हीगेल के नैतिक दर्शन पर अनेक लेख लिखे। 1845 में वह फ्रांस से निष्कासित होकर ब्रूसेल्स चला गया और वहीं उसने जर्मनी के मजदूर सगंठन और 'कम्युनिस्ट लीग' के निर्माण में सक्रिय योग दिया। 1847 में एजेंल्स के साथ 'अंतराष्ट्रीय समाजवाद' का प्रथम घोषणापत्र (कम्युनिस्ट मॉनिफेस्टो) प्रकाशित किया 1848 में मार्क्स ने पुन: कोलोन में 'नेवे राइनिशे जीतुंग' का संपादन प्रारंभ किया और उसके माध्यम से जर्मनी को समाजवादी क्रांति का संदेश देना आरंभ किया। 1849 में इसी अपराघ में वह प्रशा से निष्कासित हुआ। वह पेरिस होते हुए लंदन चला गया जीवन पर्यंत वहीं रहा। लंदन में सबसे पहले उसने 'कम्युनिस्ट लीग' की स्थापना का प्रयास किया, किंतु उसमें फूट पड़ गई। अंत में मार्क्स को उसे भंग कर देना पड़ा। उसका 'नेवे राइनिश जीतुंग' भी केवल छह अंको में निकल कर बंद हो गया। कोलकाता, भारत 1859 में मार्क्स ने अपने अर्थशास्त्रीय अध्ययन के निष्कर्ष 'जुर क्रिटिक दर पोलिटिशेन एकानामी' नामक पुस्तक में प्रकाशित किये। यह पुस्तक मार्क्स की उस बृहत्तर योजना का एक भाग थी, जो उसने संपुर्ण राजनीतिक अर्थशास्त्र पर लिखने के लिए बनाई थी। किंतु कुछ ही दिनो में उसे लगा कि उपलब्ध साम्रगी उसकी योजना में पूर्ण रूपेण सहायक नहीं हो सकती। अत: उसने अपनी योजना में परिवर्तन करके नए सिरे से लिखना आंरभ किया और उसका प्रथम भाग 1867 में दास कैपिटल (द कैपिटल, हिंदी में पूंजी शीर्षक से प्रगति प्रकाशन मास्‍को से चार भागों में) के नाम से प्रकाशित किया। 'द कैपिटल' के शेष भाग मार्क्स की मृत्यु के बाद एंजेल्स ने संपादित करके प्रकाशित किए। 'वर्गसंघर्ष' का सिद्धांत मार्क्स के 'वैज्ञानिक समाजवाद' का मेरूदंड है। इसका विस्तार करते हुए उसने इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या और बेशी मूल्य (सरप्लस वैल्यू) के सिद्धांत की स्थापनाएँ कीं। मार्क्स के सारे आर्थिक और राजनीतिक निष्कर्ष इन्हीं स्थापनाओं पर आधारित हैं। 1864 में लंदन में 'अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ' की स्थापना में मार्क्स ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संघ की सभी घोषणाएँ, नीतिश् और कार्यक्रम मार्क्स द्वारा ही तैयार किये जाते थे। कोई एक वर्ष तक संघ का कार्य सुचारू रूप से चलता रहा, किंतु बाकुनिन के अराजकतावादी आंदोलन, फ्रांसीसी जर्मन युद्ध और पेरिस कम्यूनों के चलते 'अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ' भंग हो गया। किंतु उसकी प्रवृति और चेतना अनेक देशों में समाजवादी और श्रमिक पार्टियों के अस्तित्व के कारण कायम रही। 'अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ' भंग हो जाने पर मार्क्स ने पुन: लेखनी उठाई। किंतु निरंतर अस्वस्थता के कारण उसके शोधकार्य में अनेक बाधाएँ आईं। मार्च 14, 1883 को मार्क्स के तूफानी जीवन की कहानी समाप्त हो गई। मार्क्स का प्राय: सारा जीवन भयानक आर्थिक संकटों के बीच व्यतीत हुआ। उसकी छह संतानो में तीन कन्याएँ ही जीवित रहीं। .

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