हम Google Play स्टोर पर Unionpedia ऐप को पुनर्स्थापित करने के लिए काम कर रहे हैं
निवर्तमानआने वाली
🌟हमने बेहतर नेविगेशन के लिए अपने डिज़ाइन को सरल बनाया!
Instagram Facebook X LinkedIn

सहजीवन

सूची सहजीवन

क्लाउनफिश रीढीविहीन जंतुओं पर निर्भर रहती है सहजीवन (Symbiosis) को 'सहोपकारिता' (Mutualism) भी कहते हैं। यह दो प्राणियों में पारस्परिक, लाभजनक, आंतरिक साझेदारी है। यह सहभागिता के (partnership) दो पौधों या दो जंतुओं के बीच, या पौधे और जंतु के पारस्परिक संबंध में हो सकती है। यह संभव है कि कुछ सहजीवियों (symbionts) ने अपना जीवन परजीवी (parasite) के रूप में शुरू किया हो और कुछ प्राणी जो अभी परजीवी हैं, वे पहले सहजीवी रहे हों। सहजीवन का एक अच्छा उदाहरण लाइकेन (lichen) है, जिसमें शैवाल (algae) और कवक के (fungus) के बीच पारस्परिक कल्याणकारक सहजीविता होती है। बहुत से कवक बांज (oaks), चीड़ इत्यादि पेड़ों की जड़ों के साथ सहजीवी होकर रहते हैं। बैसिलस रैडिसिकोला के (Bacillus radicicola) और शिंबी के (leguminous) पौधों की जड़ों के बीच का अंतरंग संबंध भी सहजीविता का उदाहरण है। ये जीवाणु शिंबी पौधों को जड़ों में पाए जाते हैं, जहाँ वे गुलिकाएँ (tubercles) बनाते हैं और वायुमंडलीय नाइट्रोजन का यौगिकीकरण करते हैं। सहजीविता का दूसरा रूप हाइड्रा विरिडिस (Hydra viridis) और एक हरे शैवाल का पारस्परिक संबंध है। हाइड्रा (Hydra) जूक्लोरेली (Zoochlorellae) शैवाल को आश्रय देता है। हाइड्रा की श्वसन क्रिया में जो कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकलता है, वह जूक्लोरेली के प्रकाश संश्लेषण में प्रयुक्त होता है और जूक्लोरेली द्वारा उच्छ्‌वसित ऑक्सीजन हाइड्रा की श्वसन क्रिया में काम आती है। जूक्लोरेली द्वारा बनाए गए कार्बनिक यौगिक का भी उपयोग हाइड्रा करता है। कुछ हाइड्रा तो बहुत समय तक, बिना बाहर का भोजन किए, केवल जूक्लोरेली द्वारा बनाए गए कार्बनिक यौगिक के सहारे ही, जीवन व्यतीत कर सकते हैं। सहजीविता का एक और अत्यंत रोचक उदाहरण कंबोल्यूटा रोजिओफेंसिस (Convoluta roseoffensis) नामक एक टर्बेलेरिया क्रिमि (Turbellaria) और क्लैमिडोमॉनाडेसिई (Chlamydomonadaceae) वर्ग के शैवाल के बीच का पारस्परिक संयोग है। कंबोल्यूटा के जीवनचक्र में चार अध्याय होते हैं। अपने जीवन के प्राथमिक भाग में कंबोल्यूटा स्वतंत्र रूप से बाहर का भोजन करता है। कुछ दिनों बाद शैवाल से संयोग होता है और फिर इस कृमि का पोषण, इसके शरीर में रहने वाले शैवाल द्वारा बनाए गए कार्बनिक यौगिक और बाहर के भोजन दोनों से होता है। तीसरी अवस्था में कंबोल्यूटा बाहर का भोजन ग्रहण करना बंद कर देता है और अपने पोषण के लिए केवल शैवाल के प्रकाश संश्लेषण द्वारा बनाए गए कार्बनिक यौगिक पर ही निर्भर रहता है। अंत में कृमि अपने सहजीवी शैवाल को ही पचा लेता है और स्वयं मर जाता है। बहुत से सहजीची जीवाणु और अंतरकोशिक यीस्ट (yeast) आहार नली की कोशिकाओं में रहते हैं और पाचन क्रिया में सहायता करते हैं। दीमक की आहार नली में बहुत से इंफ्यूसोरिया (Infusoria) होते हैं, जिनका काम काष्ठ का पाचन करना होता है और इनके बिना दीमक जीवित नहीं रह सकती। .

सामग्री की तालिका

  1. 9 संबंधों: चीड़, दीमक, परजीवी, मानव का पोषण नाल, लाइकेन, लकड़ी, शैवाल, जीवाणु, खमीर

  2. पारिस्थितिकी

चीड़

चीड़ (अंग्रेजी:Pine), एक सपुष्पक किन्तु अनावृतबीजी पौधा है। यह पौधा सीधा पृथ्वी पर खड़ा रहता है। इसमें शाखाएँ तथा प्रशाखाएँ निकलकर शंक्वाकार शरीर की रचना करती हैं। इसकी ११५ प्रजातियाँ हैं। ये ३ से ८० मीटर तक लम्बे हो सकते हैं। चीड़ के वृक्ष पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में पाए जाते हैं। इनकी 90 जातियाँ उत्तर में वृक्ष रेखा से लेकर दक्षिण में शीतोष्ण कटिबंध तथा उष्ण कटिबंध के ठंडे पहाड़ों पर फैली हुई हैं। इनके विस्तार के मुख्य स्थान उत्तरी यूरोप, उत्तरी अमेरिका, उत्तरी अफ्रीका के शीतोष्ण भाग तथा एशिया में भारत, बर्मा, जावा, सुमात्रा, बोर्नियो और फिलीपींस द्वीपसमूह हैं। .

देखें सहजीवन और चीड़

दीमक

समूह में रहने वाले कीट: '''दीमक''' दीमक छोटे कीट हैं। जो लकडी और लकडी की बनी चीज़ेँ जैसे फर्निचर आदि कुतरकर खा जाते हैँ। दीमक ईसाइजल कीड़े हैं जिन्हें इन्फ्रास्ट्रक्चर आइसोपेटरा के टैक्सोनॉमिक रैंक में वर्गीकृत किया गया है, या तिलचट्टा के क्रम में ब्लैकोडेडा के एपिफैमिली टर्मिटॉइड के रूप में वर्गीकृत किया गया है। दीमक को एक बार अलग-अलग तिलचट्टे से वर्गीकृत किया गया था, लेकिन हाल के फिलाजेनेटिक अध्ययनों से संकेत मिलता है कि वे जुरासिक या ट्रायासिक के दौरान तिलचट्टे के करीब पूर्वजों से विकसित हुए थे। हालांकि, पहले दीमक संभवतः परमियन या कार्बोनिफ़ेरस के दौरान उभरा। लगभग 3,106 प्रजातियों के बारे में बताया गया है, जिसमें कुछ 'सौ' शेष वर्णित हैं। हालांकि इन कीड़ों को अक्सर "सफेद चींटियों" कहा जाता है, परंतु ये चींटियाँ नहीं होती। दीमक आमतौर पर मृत पौधों की सामग्री और सेलूलोज़ पर भोजन करते हैं, आमतौर पर लकड़ी के रूप में, पत्ती कूड़े, मिट्टी या जानवरों के गोबर। दीमक, मुख्य रूप से उप-उष्णकटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में प्रमुख अवरोधक होते हैं, और लकड़ी और पौधे पदार्थों का पुन: उपयोग करना काफी पारिस्थितिक महत्व का होता है। .

देखें सहजीवन और दीमक

परजीवी

परजीवी का मतलब होता है दूसरे जीवो पर आश्रित जीव.

देखें सहजीवन और परजीवी

मानव का पोषण नाल

मानव का पाचक तंत्र मानव का पाचक नाल या आहार नाल (Digestive or Alimentary Canal) 25 से 30 फुट लंबी नाल है जो मुँह से लेकर मलाशय या गुदा के अंत तक विस्तृत है। यह एक संतत लंबी नली है, जिसमें आहार मुँह में प्रविष्ट होने के पश्चात्‌ ग्रासनाल, आमाशय, ग्रहणी, क्षुद्रांत्र, बृहदांत्र, मलाशय और गुदा नामक अवयवों में होता हुआ गुदाद्वार से मल के रूप में बाहर निकल जाता है। .

देखें सहजीवन और मानव का पोषण नाल

लाइकेन

लाइकेन से आच्छादित वृक्ष लाइकेन (Lichen) निम्न श्रेणी की ऐसी छोटी वनस्पतियों का एक समूह है, जो विभिन्न प्रकार के आधारों पर उगे हुए पाए जाते हैं। इन आधारों में वृक्षों की पत्तियाँ एवं छाल, प्राचीन दीवारें, भूतल, चट्टान और शिलाएँ मुख्य हैं। यद्यपि ये अधिकतर धवल रंग के होते हैं, तथापि लाल, नारंगी, बैंगनी, नीले एवं भूरे तथा अन्य चित्ताकर्षक रंगों के लाइकेन भी पाए जाते हैं। इनकी वृद्धि की गति मंद होती है एंव इनके आकार और बनावट में भी पर्याप्त भिन्नता रहती है। .

देखें सहजीवन और लाइकेन

लकड़ी

कई विशेषताएं दर्शाती हुई लकड़ी की सतह काष्ठ या लकड़ी एक कार्बनिक पदार्थ है, जिसका उत्पादन वृक्षों(और अन्य काष्ठजन्य पादपों) के तने में परवर्धी जाइलम के रूप में होता है। एक जीवित वृक्ष में यह पत्तियों और अन्य बढ़ते ऊतकों तक पोषक तत्वों और जल की आपूर्ति करती है, साथ ही यह वृक्ष को सहारा देता है ताकि वृक्ष खुद खड़ा रह कर यथासंभव ऊँचाई और आकार ग्रहण कर सके। लकड़ी उन सभी वानस्पतिक सामग्रियों को भी कहा जाता है, जिनके गुण काष्ठ के समान होते हैं, साथ ही इससे तैयार की जाने वाली सामग्रियाँ जैसे कि तंतु और पतले टुकड़े भी काष्ठ ही कहलाते हैं। सभ्यता के आरंभ से ही मानव लकड़ी का उपयोग कई प्रयोजनों जैसे कि ईंधन (जलावन) और निर्माण सामग्री के तौर पर कर रहा है। निर्माण सामग्री के रूप में इसका उपयोग मुख्य रूप भवन, औजार, हथियार, फर्नीचर, पैकेजिंग, कलाकृतियां और कागज आदि बनाने में किया जाता है। लकड़ी का काल निर्धारण कार्बन डेटिंग और कुछ प्रजातियों में वृक्षवलय कालक्रम के द्वारा किया जाता है। वृक्ष वलयों की चौड़ाई में साल दर साल होने वाले परिवर्तन और समस्थानिक प्रचुरता उस समय प्रचलित जलवायु का सुराग देते हैं। विभिन्न प्रकार के काष्ठ .

देखें सहजीवन और लकड़ी

शैवाल

एक शैवाल लौरेंशिया शैवाल (Algae /एल्गी/एल्जी; एकवचन:एल्गै) सरल सजीव हैं। अधिकांश शैवाल पौधों के समान सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वंय बनाते हैं अर्थात् स्वपोषी होते हैं। ये एक कोशिकीय से लेकर बहु-कोशिकीय अनेक रूपों में हो सकते हैं, परन्तु पौधों के समान इसमें जड़, पत्तियां इत्यादि रचनाएं नहीं पाई जाती हैं। ये नम भूमि, अलवणीय एवं लवणीय जल, वृक्षों की छाल, नम दीवारों पर हरी, भूरी या कुछ काली परतों के रूप में मिलते हैं। .

देखें सहजीवन और शैवाल

जीवाणु

जीवाणु जीवाणु एक एककोशिकीय जीव है। इसका आकार कुछ मिलिमीटर तक ही होता है। इनकी आकृति गोल या मुक्त-चक्राकार से लेकर छड़, आदि आकार की हो सकती है। ये अकेन्द्रिक, कोशिका भित्तियुक्त, एककोशकीय सरल जीव हैं जो प्रायः सर्वत्र पाये जाते हैं। ये पृथ्वी पर मिट्टी में, अम्लीय गर्म जल-धाराओं में, नाभिकीय पदार्थों में, जल में, भू-पपड़ी में, यहां तक की कार्बनिक पदार्थों में तथा पौधौं एवं जन्तुओं के शरीर के भीतर भी पाये जाते हैं। साधारणतः एक ग्राम मिट्टी में ४ करोड़ जीवाणु कोष तथा १ मिलीलीटर जल में १० लाख जीवाणु पाए जाते हैं। संपूर्ण पृथ्वी पर अनुमानतः लगभग ५X१०३० जीवाणु पाए जाते हैं। जो संसार के बायोमास का एक बहुत बड़ा भाग है। ये कई तत्वों के चक्र में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, जैसे कि वायुमंडलीय नाइट्रोजन के स्थरीकरण में। हलाकि बहुत सारे वंश के जीवाणुओं का श्रेणी विभाजन भी नहीं हुआ है तथापि लगभग आधी प्रजातियों को किसी न किसी प्रयोगशाला में उगाया जा चुका है। जीवाणुओं का अध्ययन बैक्टिरियोलोजी के अन्तर्गत किया जाता है जो कि सूक्ष्म जैविकी की ही एक शाखा है। मानव शरीर में जितनी भी मानव कोशिकाएं है, उसकी लगभग १० गुणा संख्या तो जीवाणु कोष की ही है। इनमें से अधिकांश जीवाणु त्वचा तथा अहार-नाल में पाए जाते हैं। हानिकारक जीवाणु इम्यून तंत्र के रक्षक प्रभाव के कारण शरीर को नुकसान नहीं पहुंचा पाते। कुछ जीवाणु लाभदायक भी होते हैं। अनेक प्रकार के परजीवी जीवाणु कई रोग उत्पन्न करते हैं, जैसे - हैजा, मियादी बुखार, निमोनिया, तपेदिक या क्षयरोग, प्लेग इत्यादि.

देखें सहजीवन और जीवाणु

खमीर

खमीर खमीर एक कवक है। यह शर्करायुक्त कार्बनिक पदार्थ में बहुतायत से पाये जाने वाला विशेष प्रकार का कवक है। यह फूल विहीन पौधा है। शरीर मूल, तना एवं पत्ति में विभक्त नहीं होता है। इसकी लगभग १५०० जातियाँ हैं।Kurtzman, C.P., Fell, J.W.

देखें सहजीवन और खमीर

यह भी देखें

पारिस्थितिकी

सहजीवनीय के रूप में भी जाना जाता है।