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सड़न

सूची सड़न

अंगूठाकार अंगूठाकार सड़न (en:Putrefaction) मृत्यु के बाद शरीर की पांचवीं अवस्था होती है। मरने के बाद सबसे पहले शरीर पीला पड़ना शुरू हो जाता है। उसके बाद अलगोर क्षण आता है। फिर शरीर कठोर होना शुरू हो जाता है। उसके बाद लिवोर (livor) क्षण आता है। और ये सभी प्रक्रिया पूरी होने के बाद अंत में शरीर सड़ना शुरू होता है। इस प्रक्रिया के दौरान मानव या जानवर का मृत शरीर नष्ट होना शुरू हो जाता है, अथवा सड़ना शुरू हो जाता है। विस्तार से देखें तो सडन का मतलब प्रोटीन का विघटन होना, ऊतकों के बीच सामंजस्य का टूटना तथा अंगों का द्रवीकरण हो जाना होता है। यह बैक्टीरिया या कवक पाचन द्वारा कार्बनिक पदार्थ के अपघटन के कारण होता है। जोकि शरीर में गैसों का उत्पादन करते हैं, जो उतकों और शारीरिक अंगो के क्षय का कारण बनती हैं। शरीर के सड़ने का सटीक समय कई विभिन्न कारणों पर निर्भर करता है। अंदरूनी कारक जो कि शरीर के सड़ने के समय को प्रभावित करते हैं, उनमे मुख्यता है, उम्र अर्थात किस उम्र में व्यक्ति कि मृत्यु हुई, मरने का कारण क्या था और कैसी चोट कि वजह से मृत्यु हुई। बाहरी कारक जो सडन कों प्रभावित करते हैं, उनमे जगह का तापमान, नमी, हवा का बहाव, कपड़े तथा रौशनी इत्यादि आते हैं। सड़न का पहला लक्षण त्वचा के बाहर पेट पर, जहा से बड़ी आंत शुरू होती है और साथ ही जिगर की सतह के नीचे एक हरे रंग का पदार्थ बनना शुरू हो जाता है। कुछ रसायन सडन की प्रक्रिया में विलम्ब करने के लिए भी इस्तेमाल किये जाते हैं। .

2 संबंधों: पीला, जीवाणु

पीला

पीला एक रंग है जो कि मानवीय चक्षु के शंकुओं में लम्बे एवं मध्यम, दोनों तरंग दैर्घ्य वालों को प्रभावित करता है। यह वह वर्ण है, जिसमें लाल एवं हरा वर्ण बाहुल्य में, एवं नीला वर्ण न्यून हो। इस का तरंग दैर्घ्य 570–580 nm है। .

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जीवाणु

जीवाणु जीवाणु एक एककोशिकीय जीव है। इसका आकार कुछ मिलिमीटर तक ही होता है। इनकी आकृति गोल या मुक्त-चक्राकार से लेकर छड़, आदि आकार की हो सकती है। ये अकेन्द्रिक, कोशिका भित्तियुक्त, एककोशकीय सरल जीव हैं जो प्रायः सर्वत्र पाये जाते हैं। ये पृथ्वी पर मिट्टी में, अम्लीय गर्म जल-धाराओं में, नाभिकीय पदार्थों में, जल में, भू-पपड़ी में, यहां तक की कार्बनिक पदार्थों में तथा पौधौं एवं जन्तुओं के शरीर के भीतर भी पाये जाते हैं। साधारणतः एक ग्राम मिट्टी में ४ करोड़ जीवाणु कोष तथा १ मिलीलीटर जल में १० लाख जीवाणु पाए जाते हैं। संपूर्ण पृथ्वी पर अनुमानतः लगभग ५X१०३० जीवाणु पाए जाते हैं। जो संसार के बायोमास का एक बहुत बड़ा भाग है। ये कई तत्वों के चक्र में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, जैसे कि वायुमंडलीय नाइट्रोजन के स्थरीकरण में। हलाकि बहुत सारे वंश के जीवाणुओं का श्रेणी विभाजन भी नहीं हुआ है तथापि लगभग आधी प्रजातियों को किसी न किसी प्रयोगशाला में उगाया जा चुका है। जीवाणुओं का अध्ययन बैक्टिरियोलोजी के अन्तर्गत किया जाता है जो कि सूक्ष्म जैविकी की ही एक शाखा है। मानव शरीर में जितनी भी मानव कोशिकाएं है, उसकी लगभग १० गुणा संख्या तो जीवाणु कोष की ही है। इनमें से अधिकांश जीवाणु त्वचा तथा अहार-नाल में पाए जाते हैं। हानिकारक जीवाणु इम्यून तंत्र के रक्षक प्रभाव के कारण शरीर को नुकसान नहीं पहुंचा पाते। कुछ जीवाणु लाभदायक भी होते हैं। अनेक प्रकार के परजीवी जीवाणु कई रोग उत्पन्न करते हैं, जैसे - हैजा, मियादी बुखार, निमोनिया, तपेदिक या क्षयरोग, प्लेग इत्यादि.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

सडन मृत्यु के बाद

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