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विकृतीकरण (जैवरसायन)

सूची विकृतीकरण (जैवरसायन)

विकृतीकरण (Denaturation) एक प्रक्रिया है जिसमें प्रोटीन या न्युक्लिक अम्ल अपनी मूल अवस्था में उपस्थित चतुष्क संरचना (quaternary structure), तृतीयक संरचना एवं द्वितीयक संरचना को छोड़कर एक नयी संरचना प्राप्त करता है। विकृतिकरण के लिये कोई वाह्य स्ट्रेस या वाह्य यौगिक (जैसे सान्द्र अम्ल या क्षार, सान्द्र अकार्बनिक लवण, कार्बनिक विलायक (अल्कोहॉल या क्लोरोफॉर्म) या विकिरण या ऊष्मा का उपयोग किया जाता है। श्रेणी:न्युक्लिक अम्ल श्रेणी:प्रोटीन.

सामग्री की तालिका

  1. 4 संबंधों: ऊष्मा, नाभिकीय अम्ल, प्रोटीन, विकिरण

  2. न्यूक्लिक अम्ल
  3. प्रोटीन संरचना

ऊष्मा

इस उपशाखा में ऊष्मा ताप और उनके प्रभाव का वर्णन किया जाता है। प्राय: सभी द्रव्यों का आयतन तापवृद्धि से बढ़ जाता है। इसी गुण का उपयोग करते हुए तापमापी बनाए जाते हैं। ऊष्मा या ऊष्मीय ऊर्जा ऊर्जा का एक रूप है जो ताप के कारण होता है। ऊर्जा के अन्य रूपों की तरह ऊष्मा का भी प्रवाह होता है। किसी पदार्थ के गर्म या ठंढे होने के कारण उसमें जो ऊर्जा होती है उसे उसकी ऊष्मीय ऊर्जा कहते हैं। अन्य ऊर्जा की तरह इसका मात्रक भी जूल (Joule) होता है पर इसे कैलोरी (Calorie) में भी व्यक्त करते हैं। .

देखें विकृतीकरण (जैवरसायन) और ऊष्मा

नाभिकीय अम्ल

'''आरएनए''' तथा '''डीएनए''' की तुलना नाभिकीय अम्ल (Nucleic acid) बहुलक मैक्रोअणु (अर्थात् विशाल जैव-अणु) होता है, जो एकलकिक न्यूक्लियोटाइड्स की शृंखलाओं से बनता है। जैवरासायनिकी के परिप्रेक्ष्य में, ये अणु आनुवांशिक सूचना पहुँचाने का काम करते हैं, साथ ही ये कोशिकाओं का ढाँचा भी बनाते हैं। सामान्यतः प्रयोग होने वाले नाभिकीय अम्ल हैं डी एन ए या डीऑक्सी राइबो नाभिकीय अम्ल एवं आर एन ए या राइबो नाभिकीय अम्ल। नाभिकीय अम्ल प्राणियों में सदा ही उपस्थित होता है, क्योंकि यह सभी कोशिकाओं और यहाँ तक की विषाणुओं में भी होता है। नाभिकीय अम्ल की खोज फ्रेडरिक मिशर ने की थी। कृत्रिम नाभिकीय अम्लों में आते हैं.

देखें विकृतीकरण (जैवरसायन) और नाभिकीय अम्ल

प्रोटीन

रुधिरवर्णिका(हीमोग्लोबिन) की संरचना- प्रोटीन की दोनो उपइकाईयों को लाल एंव नीले रंग से तथा लौह भाग को हरे रंग से दिखाया गया है। प्रोटीन या प्रोभूजिन एक जटिल भूयाति युक्त कार्बनिक पदार्थ है जिसका गठन कार्बन, हाइड्रोजन, आक्सीजन एवं नाइट्रोजन तत्वों के अणुओं से मिलकर होता है। कुछ प्रोटीन में इन तत्वों के अतिरिक्त आंशिक रूप से गंधक, जस्ता, ताँबा तथा फास्फोरस भी उपस्थित होता है। ये जीवद्रव्य (प्रोटोप्लाज्म) के मुख्य अवयव हैं एवं शारीरिक वृद्धि तथा विभिन्न जैविक क्रियाओं के लिए आवश्यक हैं। रासायनिक गठन के अनुसार प्रोटीन को सरल प्रोटीन, संयुक्त प्रोटीन तथा व्युत्पन्न प्रोटीन नामक तीन श्रेणियों में बांटा गया है। सरल प्रोटीन का गठन केवल अमीनो अम्ल द्वारा होता है एवं संयुक्त प्रोटीन के गठन में अमीनो अम्ल के साथ कुछ अन्य पदार्थों के अणु भी संयुक्त रहते हैं। व्युत्पन्न प्रोटीन वे प्रोटीन हैं जो सरल या संयुक्त प्रोटीन के विघटन से प्राप्त होते हैं। अमीनो अम्ल के पॉलीमराईजेशन से बनने वाले इस पदार्थ की अणु मात्रा १०,००० से अधिक होती है। प्राथमिक स्वरूप, द्वितीयक स्वरूप, तृतीयक स्वरूप और चतुष्क स्वरूप प्रोटीन के चार प्रमुख स्वरुप है। प्रोटीन त्वचा, रक्त, मांसपेशियों तथा हड्डियों की कोशिकाओं के विकास के लिए आवश्यक होते हैं। जन्तुओं के शरीर के लिए कुछ आवश्यक प्रोटीन एन्जाइम, हार्मोन, ढोने वाला प्रोटीन, सिकुड़ने वाला प्रोटीन, संरचनात्मक प्रोटीन एवं सुरक्षात्मक प्रोटीन हैं। प्रोटीन का मुख्य कार्य शरीर की आधारभूत संरचना की स्थापना एवं इन्जाइम के रूप में शरीर की जैवरसायनिक क्रियाओं का संचालन करना है। आवश्यकतानुसार इससे ऊर्जा भी मिलती है। एक ग्राम प्रोटीन के प्रजारण से शरीर को ४.१ कैलीरी ऊष्मा प्राप्त होती है। प्रोटीन द्वारा ही प्रतिजैविक (एन्टीबॉडीज़) का निर्माण होता है जिससे शरीर प्रतिरक्षा होती है। जे.

देखें विकृतीकरण (जैवरसायन) और प्रोटीन

विकिरण

भौतिकी में प्रयुक्त विकिरण ऊर्जा का एक रूप है जो तरंगों या किसी परमाणु या अन्य निकाय द्वारा उत्सर्जित गतिशील उपपरमाणुविक कणों के रूप में उच्च से निम्न ऊर्जा अवस्था की ओर चलती है। विकिरण को परमाणु पदार्थ पर उसके प्रभाव के आधार पर या विआयनीकारक के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। विकिरण जो अणु या परमाणु का आयनीकरण करने मे सक्षम होता है उसमे उर्जा का स्तर विआयनीकारक विकिरण से अधिक होता है। रेडियोधर्मी पदार्थ वो भौतिक पदार्थ है जो कि आयनीकारक विकिरण उत्सर्जित करती है। तीन भिन्न प्रकार के विकिरण और उनका भेदन .

देखें विकृतीकरण (जैवरसायन) और विकिरण

यह भी देखें

न्यूक्लिक अम्ल

प्रोटीन संरचना