सामग्री की तालिका
6 संबंधों: पादप, लाइकेन, शैवाल, जीवाणु, आद्योद्भिद, क्रिप्टोगैम।
पादप
पादप या उद्भिद (plant) जीवजगत का एक बड़ी श्रेणी है जिसके अधिकांश सदस्य प्रकाश संश्लेषण द्वारा शर्कराजातीय खाद्य बनाने में समर्थ होते हैं। ये गमनागम (locomotion) नहीं कर सकते। वृक्ष, फर्न (Fern), मॉस (mosses) आदि पादप हैं। हरा शैवाल (green algae) भी पादप है जबकि लाल/भूरे सीवीड (seaweeds), कवक (fungi) और जीवाणु (bacteria) पादप के अन्तर्गत नहीं आते। पादपों के सभी प्रजातियों की कुल संख्या की गणना करना कठिन है किन्तु प्रायः माना जाता है कि सन् २०१० में ३ लाख से अधिक प्रजाति के पादप ज्ञात हैं जिनमें से 2.7 लाख से अधिक बीज वाले पादप हैं। पादप जगत में विविध प्रकार के रंग बिरंगे पौधे हैं। कुछ एक को छोड़कर प्रायः सभी पौधे अपना भोजन स्वयं बना लेते हैं। इनके भोजन बनाने की क्रिया को प्रकाश-संश्लेषण कहते हैं। पादपों में सुकेन्द्रिक प्रकार की कोशिका पाई जाती है। पादप जगत इतना विविध है कि इसमें एक कोशिकीय शैवाल से लेकर विशाल बरगद के वृक्ष शामिल हैं। ध्यातव्य है कि जो जीव अपना भोजन खुद बनाते हैं वे पौधे होते हैं, यह जरूरी नहीं है कि उनकी जड़ें हों ही। इसी कारण कुछ बैक्टीरिया भी, जो कि अपना भोजन खुद बनाते हैं, पौधे की श्रेणी में आते हैं। पौधों को स्वपोषित या प्राथमिक उत्पादक भी कहा जाता है। 'पादपों में भी प्राण है' यह सबसे पहले जगदीश चन्द्र बसु ने कहा था। पादपों का वैज्ञानिक अध्ययन वनस्पति विज्ञान कहलाता है। .
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लाइकेन
लाइकेन से आच्छादित वृक्ष लाइकेन (Lichen) निम्न श्रेणी की ऐसी छोटी वनस्पतियों का एक समूह है, जो विभिन्न प्रकार के आधारों पर उगे हुए पाए जाते हैं। इन आधारों में वृक्षों की पत्तियाँ एवं छाल, प्राचीन दीवारें, भूतल, चट्टान और शिलाएँ मुख्य हैं। यद्यपि ये अधिकतर धवल रंग के होते हैं, तथापि लाल, नारंगी, बैंगनी, नीले एवं भूरे तथा अन्य चित्ताकर्षक रंगों के लाइकेन भी पाए जाते हैं। इनकी वृद्धि की गति मंद होती है एंव इनके आकार और बनावट में भी पर्याप्त भिन्नता रहती है। .
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शैवाल
एक शैवाल लौरेंशिया शैवाल (Algae /एल्गी/एल्जी; एकवचन:एल्गै) सरल सजीव हैं। अधिकांश शैवाल पौधों के समान सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वंय बनाते हैं अर्थात् स्वपोषी होते हैं। ये एक कोशिकीय से लेकर बहु-कोशिकीय अनेक रूपों में हो सकते हैं, परन्तु पौधों के समान इसमें जड़, पत्तियां इत्यादि रचनाएं नहीं पाई जाती हैं। ये नम भूमि, अलवणीय एवं लवणीय जल, वृक्षों की छाल, नम दीवारों पर हरी, भूरी या कुछ काली परतों के रूप में मिलते हैं। .
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जीवाणु
जीवाणु जीवाणु एक एककोशिकीय जीव है। इसका आकार कुछ मिलिमीटर तक ही होता है। इनकी आकृति गोल या मुक्त-चक्राकार से लेकर छड़, आदि आकार की हो सकती है। ये अकेन्द्रिक, कोशिका भित्तियुक्त, एककोशकीय सरल जीव हैं जो प्रायः सर्वत्र पाये जाते हैं। ये पृथ्वी पर मिट्टी में, अम्लीय गर्म जल-धाराओं में, नाभिकीय पदार्थों में, जल में, भू-पपड़ी में, यहां तक की कार्बनिक पदार्थों में तथा पौधौं एवं जन्तुओं के शरीर के भीतर भी पाये जाते हैं। साधारणतः एक ग्राम मिट्टी में ४ करोड़ जीवाणु कोष तथा १ मिलीलीटर जल में १० लाख जीवाणु पाए जाते हैं। संपूर्ण पृथ्वी पर अनुमानतः लगभग ५X१०३० जीवाणु पाए जाते हैं। जो संसार के बायोमास का एक बहुत बड़ा भाग है। ये कई तत्वों के चक्र में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, जैसे कि वायुमंडलीय नाइट्रोजन के स्थरीकरण में। हलाकि बहुत सारे वंश के जीवाणुओं का श्रेणी विभाजन भी नहीं हुआ है तथापि लगभग आधी प्रजातियों को किसी न किसी प्रयोगशाला में उगाया जा चुका है। जीवाणुओं का अध्ययन बैक्टिरियोलोजी के अन्तर्गत किया जाता है जो कि सूक्ष्म जैविकी की ही एक शाखा है। मानव शरीर में जितनी भी मानव कोशिकाएं है, उसकी लगभग १० गुणा संख्या तो जीवाणु कोष की ही है। इनमें से अधिकांश जीवाणु त्वचा तथा अहार-नाल में पाए जाते हैं। हानिकारक जीवाणु इम्यून तंत्र के रक्षक प्रभाव के कारण शरीर को नुकसान नहीं पहुंचा पाते। कुछ जीवाणु लाभदायक भी होते हैं। अनेक प्रकार के परजीवी जीवाणु कई रोग उत्पन्न करते हैं, जैसे - हैजा, मियादी बुखार, निमोनिया, तपेदिक या क्षयरोग, प्लेग इत्यादि.
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आद्योद्भिद
आद्योद्भिद (प्रोटोफ़ाइटा) ऐसे एककोशिकीय या बहुकोशीय जीव हैं जो पौधों की तरह अपना भोजन तरल रूप में ही ग्रहण करते हैं। इनको देखने से अनुमान किया जा सकता है कि वानस्पतिक सृष्टि का आदि रूप कैसा रहा होगा। कुछ सामान्य शैवाल (ऐल्गी) भी इसी वर्ग में आते हैं। शैवाल और एककोशिकी प्रजीव (प्रोटोज़ोआ) दोनों एक साथ एक-कोशजीव (प्रोटिस्टा) वर्ग में रखे जाते हैं। ये संपूर्ण जीवनसृष्टि के आदिरूप माने जाते हें। एक कोशिनों के कई वर्ग हैं, कुछ ऐसे हैं जो तरल रूप से भोजन लेते हैं, कुछ ऐसे हैं जो प्राणियों की तरह ठोस रूप में तथा कुछ ऐसे भी होते हैं जो दोनों प्रकार से भोजन प्राप्त कर सकते हैं। अंतिम रूपवाले जीव विचारक के सुविधानुसार पौधों या जंतुओं दोनों में से किसी भी श्रेणी में रखे जा सकते हैं। अभी तक इनकी कोई भी परिदृढ परिभाषा संभव नहीं हो पाई है। आद्याद्भिद वर्ग में प्रकाश संश्लेषण (फ़ोटोसिंथेसिस) क्रिया होती है। यह क्रिया इन पौधों में पर्णहरिम ओर कभी कभी अन्य रंगों की सहायता से होती है। इस क्रिया में कार्बन डाइ-आक्साइड और पानी से धूप की उपस्थिति में जटिल कारबनिक यौगिक (जैसे स्टार्च, वसा इत्यादि) बनते हैं। आद्योद्भिद के वर्ग अपने-अपने रंगों के आधार पर पहचाने जा सकते हैं। एककोशिक आद्योद्भिद चर (गतिशील, मोटिल) होते हैं तथा इनके पक्ष्म होते हैं। पक्ष्मों की संख्या ओर उनका विन्यास प्रत्येक वर्ग के लिए निश्चित होता है। प्राय: प्रत्येक वर्ग में अचर रूप भी होते हैं जो एक या बहुकोशिकीय होते हैं। आद्योद्भिद में प्रजनन अत्यंत साधारण रीति से होता है। बहुधा एककोशिका के, चाहे वह चर अवस्था में ही क्यों न हों, दो भाग हो जाते हैं। स्थायी रूपों में प्रजनन चर बीजाणु (जूस्पोर्स) से भी होता है। मिक्सोफ़ापइसी वर्ग में लैंगिक भेद नहीं होता, परंतु अधिकतर वर्गो के प्राय: अधिक विकसित रूपों में लैंगिक भेद होता है। क्लोरोफ़िसिई में विषम लैंगिक प्रजनन होता है। आद्योद्भिद की बहुत सी प्रजातियाँ, जो क्लोरोफ़िसिई, मिक्सीफ़िसिई आदि में शामिल हैं, स्थायी होती हैं ओर इन्हें सामान्य रूप से शैवाल ही कहा जाता है। इसके विपरीत, शैवालों में कुछ ऐसे भी आकार हैं जो आद्योद्भिद रूप से अधिक विकसित हैं ओर इनके प्राचीन रूपों का पता भी नहीं मिलता। आद्योद्भिद के ऐसे रूप जो स्वचालित होते हैं तथा जिनमें कोशिकाभित्ति नहीं होती, शैवालों से पृथक् वर्ग में रखे जाते हैं। इस वर्ग को कशांग वर्ग (फ़्लैजेलेटा) कहते हैं (कश .
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क्रिप्टोगैम
क्रिप्टोगैम (cryptogam; वैज्ञानिक नाम: Cryptogamae) उन पादपों (व्यापक अर्थ में, साधारण अर्थ में नहीं) को कहते हैं जिनमें प्रजनन बीजाणुओं (spores) की सहायता से होता है। ग्रीक भाषा में 'क्रिप्टोज' का अर्थ 'गुप्त' तथा 'गैमीन' का अर्थ 'विवाह करना' है। अर्थात् क्रिप्टोगैम पादपों में बीज उत्पन्न नहीं होता। क्रिप्टोगैम को कभी-कभी 'थैलोफाइटा', 'निम्न पादम' (lower plants), तथा 'बीजाणु पादप' (spore plants) आदि अन्य नामों से भी जाना जाता है। क्रिप्टोगैम समूह पुष्पोद्भिद (Phanerogamae या Spermatophyta) समूह के 'विलोम समूह' है। क्रिप्टोगैम में शैवाल (algae), लाइकेन (lichens), मॉस (mosses) और फर्न (ferns) आते हैं। एक समय क्रिप्टोगैम को पादप जगत में एक समूह के रूप में मान्यता थी। कार्ल लिनियस ने पादपों के अपने वर्गीकरण में सम्पूर्ण पादप जगत को २४ वर्गों में बाँटा था जिसमें से एक 'क्रिप्टोगैमिया' था जिसको पुनः चार गणों में विभाजित किया गया था - शैवाल, मस्सी (Musci) या ब्रायोफाइट, फिलिसेस या फर्न तथा कवक। आधुनिक वर्गिकी ने क्रिप्टोगैम को पादप जगत में स्थान नहीं दिया है क्योंकि समझा गया कि क्रिप्टोगैम कई असंगत समूहो का जमघट मात्र है। वर्तमान वर्गिकी के अनुसार क्रिप्टोगैम में आने वाले केवल कुछ पादपों को ही पादप जगत में स्थान दिया गया है, सभी को नहीं। विशेषतः कवक (फंजाई) को एक अलग जगत के रूप में स्वीकार किया गया है और उन्हें पादपों के बजाय जन्तुओं का निकट सम्बन्धी माना जाता है। इसी प्रकार कुछ शैवालों को अब जीवाणुओं का सम्बन्धी मान लिया गया है। .
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