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गयासुद्दीन तुग़लक़

सूची गयासुद्दीन तुग़लक़

गयासुद्दीन तुग़लक़ दिल्ली सल्तनत में तुग़लक़ वंश का शासक था। ग़ाज़ी मलिक या तुग़लक़ ग़ाज़ी, ग़यासुद्दीन तुग़लक़ (1320-1325 ई॰) के नाम से 8 सितम्बर 1320 को दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। इसे तुग़लक़ वंश का संस्थापक भी माना जाता है। इसने कुल 29 बार मंगोल आक्रमण को विफल किया। सुल्तान बनने से पहले वह क़ुतुबुद्दीन मुबारक़ ख़िलजी के शासन काल में उत्तर-पश्चिमी सीमान्त प्रान्त का शक्तिशाली गर्वनर नियुक्त हुआ था। वह दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान था, जिसने अपने नाम के साथ 'ग़ाज़ी' शब्द जोड़ा था। गयासुद्दीन का पिता करौना तुर्क ग़ुलाम था व उसकी माता हिन्दू थी। .

20 संबंधों: तुर्की, तुग़लक़ राजवंश, तुग़लक़ाबाद, दिल्ली सल्तनत, भक्कर, मदुरई, मंगोल, मकबरा, मुल्तान, मुहम्मद बिन तुग़लक़, सिंध, सुन्नी इस्लाम, सुल्तान, हज़रत निज़ामुद्दीन, वरंगल, गयासुद्दीन बलबन, इब्न-बतूता, इस्लाम, क़ुतुबुद्दीन मुबारक़ ख़िलजी, अलाउद्दीन खिलजी

तुर्की

तुर्की (तुर्क भाषा: Türkiye उच्चारण: तुर्किया) यूरेशिया में स्थित एक देश है। इसकी राजधानी अंकारा है। इसकी मुख्य- और राजभाषा तुर्की भाषा है। ये दुनिया का अकेला मुस्लिम बहुमत वाला देश है जो कि धर्मनिर्पेक्ष है। ये एक लोकतान्त्रिक गणराज्य है। इसके एशियाई हिस्से को अनातोलिया और यूरोपीय हिस्से को थ्रेस कहते हैं। स्थिति: 39 डिग्री उत्तरी अक्षांश तथा 36 डिग्री पूर्वी देशान्तर। इसका कुछ भाग यूरोप में तथा अधिकांश भाग एशिया में पड़ता है अत: इसे यूरोप एवं एशिया के बीच का 'पुल' कहा जाता है। इजीयन सागर (Aegean sea) के पतले जलखंड के बीच में आ जाने से इस पुल के दो भाग हो जाते हैं, जिन्हें साधारणतया यूरोपीय टर्की तथा एशियाई टर्की कहते हैं। टर्की के ये दोनों भाग बॉसपोरस के जलडमरूमध्य, मारमारा सागर तथा डारडनेल्ज द्वारा एक दूसरे से अलग होते हैं। टर्की गणतंत्र का कुल क्षेत्रफल 2,96,185 वर्ग मील है जिसमें यूरोपीय टर्की (पूर्वी थ्रैस) का क्षेत्रफल 9,068 वर्ग मील तथा एशियाई टर्की (ऐनाटोलिआ) का क्षेत्रफल 2,87,117 वर्ग मील है। इसके अंतर्गत 451 दलदली स्थल तथा 3,256 खारे पानी की झीलें हैं। पूर्व में रूस और ईरान, दक्षिण की ओर इराक, सीरिया तथा भूमध्यसागर, पश्चिम में ग्रीस और बुल्गारिया और उत्तर में कालासागर इसकी राजनीतिक सीमा निर्धारित करते हैं। यूरोपीय टर्की - त्रिभुजाकर प्रायद्वीपी प्रदेश है जिसका शीर्षक पूर्व में बॉसपोरस के मुहाने पर है। उसके उत्तर तथा दक्षिण दोनों ओर पर्वतश्रेणियाँ फैली हुई हैं। मध्य में निचला मैदान मिलता है जिसमें होकर मारीत्सा और इरजिन नदियाँ बहती हैं। इसी भाग से होकर इस्तैस्म्यूल का संबंध पश्चिमी देशों से है। एशियाई टर्की - इसको हम तीन प्राकृतिक भागों में विभाजित कर सकते हैं: 1.

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तुग़लक़ राजवंश

तुग़लक़ वंश (سلسلہ تغلق) दिल्ली सल्तनत का एक राजवंश था जिसने सन् 1320 से लेकर सन् 1414 तक दिल्ली की सत्ता पर राज किया। ग़यासुद्दीन ने एक नये वंश अर्थात तुग़लक़ वंश की स्थापना की, जिसने 1412 तक राज किया। इस वंश में तीन योग्य शासक हुए। ग़यासुद्दीन, उसका पुत्र मुहम्मद बिन तुग़लक़ (1324-51) और उसका उत्तराधिकारी फ़िरोज शाह तुग़लक़ (1351-87)। इनमें से पहले दो शासकों का अधिकार क़रीब-क़रीब पूरे देश पर था। फ़िरोज का साम्राज्य उनसे छोटा अवश्य था, पर फिर भी अलाउद्दीन ख़िलजी के साम्राज्य से छोटा नहीं था। फ़िरोज की मृत्यु के बाद दिल्ली सल्तनत का विघटन हो गया और उत्तर भारत छोटे-छोटे राज्यों में बंट गया। यद्यपि तुग़लक़ 1412 तक शासन करत रहे, तथापि 1399 में तैमूर द्वारा दिल्ली पर आक्रमण के साथ ही तुग़लक़ साम्राज्य का अंत माना जाना चाहिए। .

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तुग़लक़ाबाद

तुगलकाबाद शहर की स्थापना गयासुद्दीन तुगलक ने की.

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दिल्ली सल्तनत

सन् 1210 से 1526 तक भारत पर शासन करने वाले पाँच वंश के सुल्तानों के शासनकाल को दिल्ली सल्तनत (دلی سلطنت) या सल्तनत-ए-हिन्द/सल्तनत-ए-दिल्ली कहा जाता है। ये पाँच वंश ये थे- गुलाम वंश (1206 - 1290), ख़िलजी वंश (1290- 1320), तुग़लक़ वंश (1320 - 1414), सैयद वंश (1414 - 1451), तथा लोधी वंश (1451 - 1526)। इनमें से चार वंश मूलतः तुर्क थे जबकि अंतिम वंश अफगान था। मोहम्मद ग़ौरी का गुलाम कुतुब-उद-दीन ऐबक, गुलाम वंश का पहला सुल्तान था। ऐबक का साम्राज्य पूरे उत्तर भारत तक फैला था। इसके बाद ख़िलजी वंश ने मध्य भारत पर कब्ज़ा किया परन्तु भारतीय उपमहाद्वीप को संगठित करने में असफल रहा। इस सल्तनत ने न केवल बहुत से दक्षिण एशिया के मंदिरों का विनाश किया साथ ही अपवित्र भी किया,रिचर्ड ईटन (2000),, Journal of Islamic Studies, 11(3), pp 283-319 पर इसने भारतीय-इस्लामिक वास्तुकला के उदय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दिल्ली सल्तनत मुस्लिम इतिहास के कुछ कालखंडों में है जहां किसी महिला ने सत्ता संभाली। १५२६ में मुगल सल्तनत द्वारा इस इस साम्राज्य का अंत हुआ। .

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भक्कर

पंजाब, पाकिस्तान, का एक नगर। श्रेणी:पाकिस्तान के शहर.

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मदुरई

मदुरै या मदुरई (மதுரை एवं), दक्षिण भारत के तमिल नाडु राज्य के मदुरई जिले का मुख्यालय नगर है। यह भारतीय प्रायद्वीप के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक है।फ्रॉमर्स इण्डिया, द्वारा: पिप्पा देब्र्यून, कीथ बैन, नीलोफर वेंकटरमन, शोनार जोशी इस शहर को अपने प्राचीन मंदिरों के लिये जाना जाता है। इस शहर को कई अन्य नामों से बुलाते हैं, जैसे कूडल मानगर, तुंगानगर (कभी ना सोने वाली नगरी), मल्लिगई मानगर (मोगरे की नगरी) था पूर्व का एथेंस। यह वैगई नदी के किनारे स्थित है। लगभग २५०० वर्ष पुराना यह स्थान तमिल नाडु राज्य का एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और व्यावसायिक केंद्र है। यहां का मुख्य आकर्षण मीनाक्षी मंदिर है जिसके ऊंचे गोपुरम और दुर्लभ मूर्तिशिल्प श्रद्धालुओं और सैलानियों को आकर्षित करते हैं। इस कारणं इसे मंदिरों का शहर भी कहते हैं। मदुरै एक समय में तमिल शिक्षा का मुख्य केंद्र था और आज भी यहां शुद्ध तमिल बोली जाती है। यहाँ शिक्षा का प्रबंध उत्तम है। यह नगर जिले का व्यापारिक, औद्योगिक तथा धार्मिक केंद्र है। उद्योगों में सूत कातने, रँगने, मलमल बुनने, लकड़ी पर खुदाई का काम तथा पीतल का काम होता है। यहाँ की जनसंख्या ११ लाख ८ हजार ७५५ (२००४ अनुमानित) है। आधुनिक युग में यह प्रगति के पथ पर अग्रसर है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पाने में प्रयासरत है, किंतु अपनी समृद्ध परंपरा और संस्कृति को भी संरक्षित किए हुए है। इस शहर के प्राचीन यूनान एवं रोम की सभ्यताओं से ५५० ई.पू.

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मंगोल

चंगेज़ ख़ान एक पारम्परिक मंगोल घर, जिसे यर्त कहते हैं मंगोल मध्य एशिया और पूर्वी एशिया में रहने वाली एक जाति है, जिसका विश्व इतिहास पर गहरा प्रभाव रहा है। भारतीय उपमहाद्वीप में इस जाति को मुग़ल के नाम से जाना जाता था, जिस से मुग़ल राजवंश का नाम भी पड़ा। आधुनिक युग में मंगोल लोग मंगोलिया, चीन और रूस में वास करते हैं। विश्व भर में लगभग १ करोड़ मंगोल लोग हैं। शुरु-शुरु में यह जाति अर्गुन नदी के पूर्व के इलाकों में रहा करती थी, बाद में वह वाह्य ख़िन्गन पर्वत शृंखला और अल्ताई पर्वत शृंखला के बीच स्थित मंगोलिया पठार के आर-पार फैल गई। मंगोल जाति के लोग ख़ानाबदोशों का जीवन व्यतीत करते थे और शिकार, तीरंदाजी व घुड़सवारी में बहुत कुशल थे। १२वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में इसके मुखिया तेमूचीन ने तमाम मंगोल कबीलों को एक किया। .

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मकबरा

मकबरा अकबर द्वितीय और शाह आलम के मकबरे यह इमारत किसी को दफनाने के बाद उसके ऊपर बनाई जाती है। यह स्मारक स्वरूप होती है। ऐसी प्रथा मुस्लिम एवं ईसाइयों में होती है। अधिकतर मुस्लिम बादशाहों के स्मारक मकबरे बने हैं। .

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मुल्तान

मुल्तान में एक मक़बरा मुल्तान पाकिस्तान के पंजाब सूबे में एक शहर है। यह पाकिस्तान का छठा सबसे बड़ा शहर है। इसकी जनसंख्या 38 लाख है। यहाँ बहुत से बाज़ार, मस्जिदें और मक़बरे हैं। .

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मुहम्मद बिन तुग़लक़

मुहम्मद बिन तुग़लक़ दिल्ली सल्तनत में तुग़लक़ वंश का शासक था। ग़यासुद्दीन तुग़लक़ की मृत्यु के बाद उसका पुत्र 'जूना ख़ाँ', मुहम्मद बिन तुग़लक़ (1325-1351 ई.) के नाम से दिल्ली की गद्दी पर बैठा। इसका मूल नाम 'उलूग ख़ाँ' था। राजामुंदरी के एक अभिलेख में मुहम्मद तुग़लक़ (जौना या जूना ख़ाँ) को दुनिया का ख़ान कहा गया है। सम्भवतः मध्यकालीन सभी सुल्तानों में मुहम्मद तुग़लक़ सर्वाधिक शिक्षित, विद्वान एवं योग्य व्यक्ति था। अपनी सनक भरी योजनाओं, क्रूर-कृत्यों एवं दूसरे के सुख-दुख के प्रति उपेक्षा का भाव रखने के कारण इसे 'स्वप्नशील', 'पागल' एवं 'रक्त-पिपासु' कहा गया है। बरनी, सरहिन्दी, निज़ामुद्दीन, बदायूंनी एवं फ़रिश्ता जैसे इतिहासकारों ने सुल्तान को अधर्मी घोषित किया गया है। .

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सिंध

सिंध सिंध पाकिस्तान के चार प्रान्तों में से एक है। यह देश के दक्षिण-पूर्व में बसा हुआ है जिसके दक्षिण में अरब की खाड़ी है। सिन्ध का सबसे बड़ा शहर कराँची है और यहाँ देश की 15 प्रतिशत जनता वास करती है। यह सिन्धियों का मूल स्थान है साथ ही यहाँ विभाजन के दौरान आकर बसे मोहाज़िरों की भी बहुतायात है। .

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सुन्नी इस्लाम

सुन्नी मुस्लिम इस्लाम के सबसे बड़े सम्प्रदाय सुन्नी इस्लाम को मानने वाले मुस्लिम हैं। सुन्नी इस्लाम को अहले सुन्नत व'ल जमाअत (अरबी: أهل السنة والجماعة‎ "(मुहम्म्द के) आदर्श लोग और समुदाय") या संक्षिप्त में अहल अस- सुन्नाह (अरबी: أهل السنة‎) भी कहते हैं। सुन्नी शब्द अरबी के सुन्नाह (अरबी: سنة) से आया है, जिसका अर्थ (पैगम्बर मोहम्मद) की बातें और कर्म या उनके आदर्श है। सामान्य अर्थों में सुन्नी -पवित्र ईशसन्देश्टा मुहम्मद स० के निधन के पश्चात जिन लोगों ने मुहम्मद स० द्वारा बताये गये नियमों का पालन किया सुन्नी कहलाऐ। सुन्नी दुनिया में 80% हैं ये आंकड़ा 5 गिरोह को मिलाकर बनता हैं।.

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सुल्तान

भारत में.

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हज़रत निज़ामुद्दीन

हजरत निज़ामुद्दीन (حضرت خواجة نظام الدّین اولیا) (1325-1236) चिश्ती घराने के चौथे संत थे। इस सूफी संत ने वैराग्य और सहनशीलता की मिसाल पेश की, कहा जाता है कि 1303 में इनके कहने पर मुगल सेना ने हमला रोक दिया था, इस प्रकार ये सभी धर्मों के लोगों में लोकप्रिय बन गए। हजरत साहब ने 92 वर्ष की आयु में प्राण त्यागे और उसी वर्ष उनके मकबरे का निर्माण आरंभ हो गया, किंतु इसका नवीनीकरण 1562 तक होता रहा। दक्षिणी दिल्ली में स्थित हजरत निज़ामुद्दीन औलिया का मकबरा सूफी काल की एक पवित्र दरगाह है। .

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वरंगल

वरंगल, उत्तरी तेलंगाना का प्रमुख नगर है। यह चेन्नई–काज़िपेट्ट–दिल्ली राजमार्ग पर स्थित है। वरंगल 12वीं सदी में उत्कर्ष पर रहे आन्ध्र प्रदेश के काकतीयों की प्राचीन राजधानी था। वर्तमान शहर के दक्षिण–पूर्व में स्थित वरंगल दुर्ग कभी दो दीवारों से घिरा हुआ था जिनमें भीतरी दीवार के पत्थर के द्वार (संचार) और बाहरी दीवार के अवशेष मौजूद हैं। 1162 में निर्मित 1000 स्तम्भों वाला मन्दिर शहर के भीतर ही स्थित है। .

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गयासुद्दीन बलबन

गयासुद्दीन बलबन इसका वास्तविक नाम बहाउदीन था।(1266 – 1286) दिल्ली सल्तनत में ग़ुलाम वंश का एक शासक था। उसने सन् 1266 से 1286 तक राज्य किया। गयासुद्दीन बलबन, जाति से इलबारी तुर्क था। उसकी जन्मतिथि का पता नहीं। उसका पिता उच्च श्रेणी का सरदार था। बाल्यकाल में ही मंगोलों ने उसे पकड़कर बगदाद के बाजार में दास के रूप में बेच दिया। भाग्यचक्र उसको भारतवर्ष लाया। सुलतान इलतुत्मिश ने उस पर दया करके उसे मोल ले लिया। स्वामिभक्ति और सेवाभाव के फलस्वरूप वह निरंतर उन्नति करता गया, यहाँ तक कि सुलतान ने उसे चेहलगन के दल में सम्मिलित कर लिया। रज़िया के राज्यकाल में उसकी नियुक्ति अमीरे शिकार के पद पर हुई। बहराम ने उसको रेवाड़ी तथा हांसी के क्षेत्र प्रदान किए। सं.

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इब्न-बतूता

model मध्यकालीन मुसलमान अन्वेषी इब्न बत्तूता अरब यात्री, विद्धान् तथा लेखक। उत्तर अफ्रीका के मोरक्को प्रदेश के प्रसिद्ध नगर तांजियर में १४ रजब, ७०३ हि.

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इस्लाम

इस्लाम (अरबी: الإسلام) एक एकेश्वरवादी धर्म है, जो इसके अनुयायियों के अनुसार, अल्लाह के अंतिम रसूल और नबी, मुहम्मद द्वारा मनुष्यों तक पहुंचाई गई अंतिम ईश्वरीय पुस्तक क़ुरआन की शिक्षा पर आधारित है। कुरान अरबी भाषा में रची गई और इसी भाषा में विश्व की कुल जनसंख्या के 25% हिस्से, यानी लगभग 1.6 से 1.8 अरब लोगों, द्वारा पढ़ी जाती है; इनमें से (स्रोतों के अनुसार) लगभग 20 से 30 करोड़ लोगों की यह मातृभाषा है। हजरत मुहम्मद साहब के मुँह से कथित होकर लिखी जाने वाली पुस्तक और पुस्तक का पालन करने के निर्देश प्रदान करने वाली शरीयत ही दो ऐसे संसाधन हैं जो इस्लाम की जानकारी स्रोत को सही करार दिये जाते हैं। .

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क़ुतुबुद्दीन मुबारक़ ख़िलजी

दिल्ली सल्तनत के खिलजी वंश का शासक। कुतुब शाह ने सन १३१६ से १३२० तक दिल्ली में शासन किया। खुसरो खान नामक इसके एक विश्वास-पात्र ने इसकी हत्या करके सिन्हासन पर कब्जा किया। क़ुतुबुद्दीन मुबारक़ ख़िलजी 19 अप्रैल 1316 ई. को दिल्ली के सिंहासन पर बैठा था। उसने 1316 ई. से 1320 ई. तक राज्य किया। गद्दी पर बैठने के बाद ही उसने देवगिरि के राजा हरपाल देव पर चढ़ाई की और युद्ध में उसे परास्त किया तथा बाद में उसे बंदी बनाकर उसकी खाल उधड़वा दी। अपने शासन काल में उसने गुजरात के विद्रोह का भी दमन किया था। अपनी इन विजयों के कारण ही उसका दिमाग फिर गया। वह अपना समय सुरा तथा सुन्दरियों में बिताने लगा। उसकी इन विजयों के अतिरिक्त अन्य किसी भी विजय का वर्णन नहीं मिलता है। क़ुतुबुद्दीन मुबारक़ ख़िलजी ने अपने सैनिकों को छः माह का अग्रिम वेतन दिया था। विद्धानों एवं महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों की छीनी गयी जागीरें उन्हें वापस कर दीं। अलाउद्दीन ख़िलजी की कठोर दण्ड व्यवस्था एवं बाज़ार नियंत्रण आदि व्यवस्था को उसने समाप्त कर दिया था। क़ुतुबुद्दीन मुबारक़ ख़िलजी को नग्न स्त्री-पुरुषों की संगत पसन्द थी। अपनी इसी संगत के कारण कभी-कभी वह राज्य दरबार में स्त्री का वस्त्र पहन कर आ जाता था। 'बरनी' के अनुसार मुबारक कभी-कभी नग्न होकर दरबारियों के बीच दौड़ा करता था। उसने ‘अल इमाम’, ‘उल इमाम’ एवं ‘ख़िलाफ़़त-उल्लाह’ की उपाधियाँ धारण की थीं। उसने ख़िलाफ़़त के प्रति भक्ति को हटाकर अपने को ‘इस्लाम धर्म का सर्वोच्च प्रधान’ और ‘स्वर्ण तथा पृथ्वी के अधिपति का 'ख़लीफ़ा घोषित किया था। साथ ही उसने ‘अलवसिक विल्लाह’ की धर्म की प्रधान उपाधि भी धारण धारण की थी। .

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अलाउद्दीन खिलजी

अलाउद्दीन खिलजी (वास्तविक नाम अली गुरशास्प 1296-1316) दिल्ली सल्तनत के खिलजी वंश का दूसरा शासक था। उसका साम्राज्य अफगानिस्तान से लेकर उत्तर-मध्य भारत तक फैला था। इसके बाद इतना बड़ा भारतीय साम्राज्य अगले तीन सौ सालों तक कोई भी शासक स्थापित नहीं कर पाया था। मेवाड़ चित्तौड़ का युद्धक अभियान इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है। ऐसा माना जाता है कि वो चित्तौड़ की रानी पद्मिनी की सुन्दरता पर मोहित था। इसका वर्णन मलिक मुहम्मद जायसी ने अपनी रचना पद्मावत में किया है। उसके समय में उत्तर पूर्व से मंगोल आक्रमण भी हुए। उसने उसका भी डटकर सामना किया। अलाउद्दीन ख़िलजी के बचपन का नाम अली 'गुरशास्प' था। जलालुद्दीन खिलजी के तख्त पर बैठने के बाद उसे 'अमीर-ए-तुजुक' का पद मिला। मलिक छज्जू के विद्रोह को दबाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के कारण जलालुद्दीन ने उसे कड़ा-मनिकपुर की सूबेदारी सौंप दी। भिलसा, चंदेरी एवं देवगिरि के सफल अभियानों से प्राप्त अपार धन ने उसकी स्थिति और मज़बूत कर दी। इस प्रकार उत्कर्ष पर पहुँचे अलाउद्दीन खिलजी ने अपने चाचा जलालुद्दीन की हत्या धोखे से 22 अक्टूबर 1296 को खुद से गले मिलते समय अपने दो सैनिकों (मुहम्मद सलीम तथा इख़्तियारुद्दीन हूद) द्वारा करवा दी। इस प्रकार उसने अपने सगे चाचा जो उसे अपने औलाद की भांति प्रेम करता था के साथ विश्वासघात कर खुद को सुल्तान घोषित कर दिया और दिल्ली में स्थित बलबन के लालमहल में अपना राज्याभिषेक 22 अक्टूबर 1296 को सम्पन्न करवाया। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

घियास उद दीन तुगलक, गयासुद्दीन तुगलक, गयासुद्दीन तुग़लक, ग़यासुद्दीन तुग़लक़, ग्यासुद्दीन तुगलक

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