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क्रिस्टलकी

सूची क्रिस्टलकी

क्रिस्टलकी (Crystallography) या मणिविज्ञान एक प्रायोगिक विज्ञान है जिसमें ठोसों में परमाणों के विन्यास (arrangement) का अध्ययन किया जाता है। पहले क्रिस्टलिकी से तात्पर्य उस विज्ञान से था जिसमें क्रिस्टलों का अध्ययन किया जाता है। एक्स-किरण के डिफ्रैक्सन द्वारा क्रिस्टलोंके अध्ययनके पहले क्रिस्टलोंका अध्ययन केवल उनकी ज्यामिति (आकार-प्रकार) देखकर की जाती थी। किन्तु आजकल विविध-प्रकार के किरण-पुंजों (एक्स-किरण, एलेक्ट्रान, न्यूट्रान, सिन्क्रोट्रान आदि) के डिफ्रैक्सन से किया जाता है। .

22 संबंधों: एक्स-किरण क्रिस्टलिकी, ठोस, डेनमार्क, द्विअपवर्तन, परमाणु, पृथ्वी का वायुमण्डल, भिन्न, भौतिक गुण, मैग्मा, यूनानी भाषा, श्यानता, साधारण नमक, स्फटिक, सूक्ष्मदर्शी, ज्वालामुखी, वाष्प, खनिज, गंधक, आग्नेय शैल, क्रिस्टल, क्रिस्टलन, कैल्साइट

एक्स-किरण क्रिस्टलिकी

एक्स-किरण क्रिस्टलिकी द्वारा किसी अणु की संरचना ज्ञात करने की प्रक्रिया एक्स-किरण क्रिस्टलिकी (X-ray crystallography) क्रिस्टल की परमाणविक एवं आणविक संरचना जानने का एक औजार है। इस विधि में क्रिस्टलीय परमाणु आपतित एक्स-किरण को विभिन्न दिशाओं में विवर्तित कर देते हैं। इन विवर्तित एक्स-किर्णों की दिशा और उनकी तीव्रता क्रिस्टल की संरचना से सम्बन्धित है। अतः विवर्तित किरणों की दिशा और तीव्रता के ज्ञान से इन क्रिस्टलों की त्रिबीमीय छबि बनायी जा सकती है। .

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ठोस

ठोस (solid) पदार्थ की एक अवस्था है, जिसकी पहचान पदार्थ की संरचनात्मक दृढ़ता और विकृति (आकार, आयतन और स्वरूप में परिवर्तन) के प्रति प्रत्यक्ष अवरोध के गुण के आधार पर की जाती है। ठोस पदार्थों में उच्च यंग मापांक और अपरूपता मापांक होते है। इसके विपरीत, ज्यादातर तरल पदार्थ निम्न अपरूपता मापांक वाले होते हैं और श्यानता का प्रदर्शन करते हैं। भौतिक विज्ञान की जिस शाखा में ठोस का अध्ययन करते हैं, उसे ठोस-अवस्था भौतिकी कहते हैं। पदार्थ विज्ञान में ठोस पदार्थों के भौतिक और रासायनिक गुणों और उनके अनुप्रयोग का अध्ययन करते हैं। ठोस-अवस्था रसायन में पदार्थों के संश्लेषण, उनकी पहचान और रासायनिक संघटन का अध्ययन किया जाता है। .

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डेनमार्क

डेनमार्क या डेनमार्क राजशाही (डैनिश: Danmark या Kongeriget Danmark) स्कैंडिनेविया, उत्तरी यूरोप में स्थित एक देश है। इसकी भूसीमा केवल जर्मनी से मिलती है, जबकी उत्तरी सागर और बाल्टिक सागर इसे स्वीडन से अलग करते हैं। यह देश जूटलैंड प्रायद्वीप पर हज़ारों द्वीपों में फैला हुआ है। डेनमार्क ने लंबे समय तक बाल्टिक सागर को जाने वाले मार्गों को नियंत्रित किया है और इस जलराशी को डैनिश खाड़ी के नाम से जाना जाता है। इसके छोटे आकार के विपरीत इसकी समुद्री सीमा बहुत लम्बी है लगभग ७,३१४ किमी। डेनमार्क अधिकांशतः एक समतल देश है और समुद्र तल से अधिकतम ऊँचाई वाला स्थान केवल १७० मीटर ऊँचा है। फ़रो द्वीप समूह और ग्रीनलैंड डेनमार्क के अधीनस्थ है। २००८ के वैश्विक शांति सूचकांक के अनुसार डेनमार्क, आइसलैंड के बाद विश्व का सबसे शांत देश है। २००८ के ही भ्रष्टाचार दृष्टिकोण सूचकांक के अनुसार यह विश्व के सबसे कम भ्रष्ट देशों में से है और न्यूज़ीलैंड और स्वीडन के साथ पहले स्थान पर है। मोनोक्ल पत्रिका के २००८ के एक सर्वेक्षण के अनुसार इसकी राजधानी कॉपनहेगन रहने योग्य सर्वाधिक उपयुक्त नगर है। वर्ष २००९ में देश की अनुमानित जनसंख्या ५५,१९,२५९ है। .

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द्विअपवर्तन

ग्राफ कागज पर रखे कैल्साइट क्रिस्टल से होकर देखने पर ग्राफ की नीली रेखाएँ दो-दो बार दिख रहीं हैं। द्विअपवर्तन (birefringence) पदार्थ का वह प्रकाशीय गुण है जिसमें उसका अपवर्तनांक प्रकाश के ध्रुवण तथा प्रकाश के दिशा के अनुसार अलग-अलग होता है। श्रेणी:प्रकाशिकी.

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परमाणु

एक परमाणु किसी भी साधारण से पदार्थ की सबसे छोटी घटक इकाई है जिसमे एक रासायनिक तत्व के गुण होते हैं। हर ठोस, तरल, गैस, और प्लाज्मा तटस्थ या आयनन परमाणुओं से बना है। परमाणुओं बहुत छोटे हैं; विशिष्ट आकार लगभग 100 pm (एक मीटर का एक दस अरबवें) हैं। हालांकि, परमाणुओं में अच्छी तरह परिभाषित सीमा नहीं होते है, और उनके आकार को परिभाषित करने के लिए अलग अलग तरीके होते हैं जोकि अलग लेकिन काफी करीब मूल्य देते हैं। परमाणुओं इतने छोटे है कि शास्त्रीय भौतिकी इसका काफ़ी गलत परिणाम देते हैं। हर परमाणु नाभिक से बना है और नाभिक एक या एक से अधिक इलेक्ट्रॉन्स से सीमित है। नाभिक आम तौर पर एक या एक से अधिक न्यूट्रॉन और प्रोटॉन की एक समान संख्या से बना है। प्रोटान और न्यूट्रान न्यूक्लिऑन कहलाता है। परमाणु के द्रव्यमान का 99.94% से अधिक भाग नाभिक में होता है। प्रोटॉन पर सकारात्मक विद्युत आवेश होता है, इलेक्ट्रॉन्स पर नकारात्मक विद्युत आवेश होता है और न्यूट्रान पर कोई भी विद्युत आवेश नहीं होता है। एक परमाणु के इलेक्ट्रॉन्स इस विद्युत चुम्बकीय बल द्वारा एक परमाणु के नाभिक में प्रोटॉन की ओर आकर्षित होता है। नाभिक में प्रोटॉन और न्यूट्रॉन एक अलग बल, यानि परमाणु बल के द्वारा एक दूसरे को आकर्षित करते है, जोकि विद्युत चुम्बकीय बल जिसमे सकारात्मक आवेशित प्रोटॉन एक दूसरे से पीछे हट रहे हैं, की तुलना में आम तौर पर शक्तिशाली है। परमाणु के केन्द्र में नाभिक (न्यूक्लिअस) होता है जिसका घनत्व बहुत अधिक होता है। नाभिक के चारो ओर ऋणात्मक आवेश वाले एलेक्ट्रान चक्कर लगाते रहते हैं जिसको एलेक्ट्रान घन (एलेक्ट्रान क्लाउड) कहते हैं। नाभिक, धनात्मक आवेश वाले प्रोटानों एवं अनावेशित (न्यूट्रल) न्यूट्रानों से बना होता है। जब किसी परमाणु में एलेक्ट्रानों की संख्या उसके नाभिक में स्थित प्रोटानों की संख्या के समान होती है तब परमाणु वैद्युकीय दृष्टि से अनावेशित होता है; अन्यथा परमाणु धनावेशित या ऋणावेशित ऑयन के रूप में होता है। आधुनिक रसायनशास्त्र में शताधिक मूल भूत माने गए हैं, जिनमें से कुछ तो धातुएँ हैं जैसे ताँबा, सोना, लोहा, सीसा, चाँदी, राँगा, जस्ता; कुछ और खनिज हैं, जैसे, गंधक, फासफरस, पोटासियम, अंजन, पारा, हड़ताल, तथा कुछ गैस हैं, जैसे, आक्सीजन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन आदि। इन्हीं मूल भूतों के अनुसार परमाणु आधुनिक रसायन में माने जाते हैं। पहले समझा जाता था कि ये अविभाज्य हैं। अब इनके भी टुकड़े कर दिए गए हैं। नाभिक में प्रोटॉन की संख्या किसी रासायनिक तत्व को परिभाषित करता है: जैसे सभी तांबा के परमाणु में 29 प्रोटॉन होते हैं। न्यूट्रॉन की संख्या तत्व के समस्थानिक को परिभाषित करता है। इलेक्ट्रॉनों की संख्या एक परमाणु के चुंबकीय गुण को प्रभावित करता है। परमाणु अणु के रूप में रासायनिक यौगिक बनाने के लिए रासायनिक आबंध द्वारा एक या अधिक अन्य परमाणुओं को संलग्न कर सकते हैं। परमाणु की संघटित और असंघटित करने की क्षमता प्रकृति में हुए बहुत से भौतिक परिवर्तन के लिए जिम्मेदार है, और रसायन शास्त्र के अनुशासन का विषय है। .

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पृथ्वी का वायुमण्डल

अंतरिक्ष से पृथ्वी का दृश्य: वायुमंडल नीला दिख रहा है। पृथ्वी को घेरती हुई जितने स्थान में वायु रहती है उसे वायुमंडल कहते हैं। वायुमंडल के अतिरिक्त पृथ्वी का स्थलमंडल ठोस पदार्थों से बना और जलमंडल जल से बने हैं। वायुमंडल कितनी दूर तक फैला हुआ है, इसका ठीक ठीक पता हमें नहीं है, पर यह निश्चित है कि पृथ्वी के चतुर्दिक् कई सौ मीलों तक यह फैला हुआ है। वायुमंडल के निचले भाग को (जो प्राय: चार से आठ मील तक फैला हुआ है) क्षोभमंडल, उसके ऊपर के भाग को समतापमंडल और उसके और ऊपर के भाग को मध्य मण्डलऔर उसके ऊपर के भाग को आयनमंडल कहते हैं। क्षोभमंडल और समतापमंडल के बीच के बीच के भाग को "शांतमंडल" और समतापमंडल और आयनमंडल के बीच को स्ट्रैटोपॉज़ कहते हैं। साधारणतया ऊपर के तल बिलकुल शांत रहते हैं। प्राणियों और पादपों के जीवनपोषण के लिए वायु अत्यावश्यक है। पृथ्वीतल के अपक्षय पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। नाना प्रकार की भौतिक और रासायनिक क्रियाएँ वायुमंडल की वायु के कारण ही संपन्न होती हैं। वायुमंडल के अनेक दृश्य, जैसे इंद्रधनुष, बिजली का चमकना और कड़कना, उत्तर ध्रुवीय ज्योति, दक्षिण ध्रुवीय ज्योति, प्रभामंडल, किरीट, मरीचिका इत्यादि प्रकाश या विद्युत के कारण उत्पन्न होते हैं। वायुमंडल का घनत्व एक सा नहीं रहता। समुद्रतल पर वायु का दबाव 760 मिलीमीटर पारे के स्तंभ के दाब के बराबर होता है। ऊपर उठने से दबाव में कमी होती जाती है। ताप या स्थान के परिवर्तन से भी दबाव में अंतर आ जाता है। सूर्य की लघुतरंग विकिरण ऊर्जा से पृथ्वी गरम होती है। पृथ्वी से दीर्घतरंग भौमिक ऊर्जा का विकिरण वायुमंडल में अवशोषित होता है। इससे वायुमंडल का ताप - 68 डिग्री सेल्सियस से 55 डिग्री सेल्सियस के बीच ही रहता है। 100 किमी के ऊपर पराबैंगनी प्रकाश से आक्सीजन अणु आयनों में परिणत हो जाते हैं और परमाणु इलेक्ट्रॉनों में। इसी से इस मंडल को आयनमंडल कहते हैं। रात्रि में ये आयन या इलेक्ट्रॉन फिर परस्पर मिलकर अणु या परमाणु में परिणत हो जाते हैं जिससे रात्रि के प्रकाश के वर्णपट में हरी और लाल रेखाएँ दिखाई पड़ती हैं। .

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भिन्न

एक केक के चार भाग दर्शाए गये हैं। उसमें से एक भाग को निकाल दिया गया है। इसी को दूसरे शब्दों में कहेंगे कि केक का \tfrac14भाग काटकर निकाल दिया गया है और \tfrac34 भाग बचा है। भिन्न (Fraction) एक संख्या है जो पूर्ण के किसी भाग को दर्शाती है। भिन्न दो पूर्ण संख्याओं का भागफल है। भिन्न का एक उदाहरण है \tfrac जिसमें 3 अंश कहलाता है और 5 हर कहलाता है। .

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भौतिक गुण

किसी भौतिक प्रणाली के किसी भी मापने योग्य गुण को भौतिक गुण (physical property) कहते हैं जो उस प्रणाली की बहुतिक अवस्था का सूचक है। इसके विपरीत वे गुण जो यह बताते हैं कि कोई वस्तु किसी रासायनिक अभिक्रिया में कैसा व्यवहार करती है, उसका रासायनिक गुण कहलाती है। .

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मैग्मा

मैग्मा चट्टानों का पिघला हुआ रूप है जिसकी रचना ठोस, आधी पिघली अथवा पूरी तरह पिघली चट्टानों के द्वारा होती है और जो पृथ्वी के सतह के नीचे निर्मित होता है। मैग्मा के बाहर निकलने वाले रूप को लावा कहते हैं। मैग्मा के शीतलन द्वारा आग्नेय चट्टानों का निर्माण होता है। जब मैग्मा ज़मीनी सतह के ऊपर आकर लावा के रूप में ठंडा होकर जमता है तो बहिर्भेदी और जब सतह के नीचे ही जम जाता है तो अंतर्भेदी आग्नेय चट्टानों का निर्माण होता है। सामान्यतः ज्वालामुखी विस्फोट में मैग्मा का लावा के रूप में निकलना एक प्रमुख भूवैज्ञानिक क्रिया के रूप में चिह्नित किया जाता है। .

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यूनानी भाषा

यूनानी या ग्रीक (Ελληνικά या Ελληνική γλώσσα), हिन्द-यूरोपीय (भारोपीय) भाषा परिवार की स्वतंत्र शाखा है, जो ग्रीक (यूनानी) लोगों द्वारा बोली जाती है। दक्षिण बाल्कन से निकली इस भाषा का अन्य भारोपीय भाषा की तुलना में सबसे लंबा इतिहास है, जो लेखन इतिहास के 34 शताब्दियों में फैला हुआ है। अपने प्राचीन रूप में यह प्राचीन यूनानी साहित्य और ईसाईयों के बाइबल के न्यू टेस्टामेंट की भाषा है। आधुनिक स्वरूप में यह यूनान और साइप्रस की आधिकारिक भाषा है और करीबन 2 करोड़ लोगों द्वारा बोली जाती है। लेखन में यूनानी अक्षरों का उपयोग किया जाता है। यूनानी भाषा के दो ख़ास मतलब हो सकते हैं.

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श्यानता

उपर के द्रव की श्यानता नीचे के द्रव की श्यानता से बहुत कम है। श्यानता (Viscosity) किसी तरल का वह गुण है जिसके कारण वह किसी बाहरी प्रतिबल (स्ट्रेस) या अपरूपक प्रतिबल (शीयर स्ट्रेस) के कारण अपने को विकृत (deform) करने का विरोध करता है। सामान्य शब्दों में, यह उस तरल के गाढे़पन या उसके बहने का प्रतिरोध करने की क्षमता का परिचायक है। उदाहरण के लिये, पानी पतला होता है एवं उसकी श्यानता वनस्पति तेल की अपेक्षा कम होती है जो कि गाढा़ होता है। .

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साधारण नमक

नमक (Common Salt) से साधारणतया भोजन में प्रयुक्त होने वाले नमक का बोध होता है। रासायनिक दृष्टि से यह सोडियम क्लोराइड (NaCl) है जिसका क्रिस्टल पारदर्शक एवं घनाकार होता है। शुद्ध नमक रंगहीन होता है, किंतु लोहमय अपद्रव्यों के कारण इसका रंग पीला या लाल हो जाता है। समुद्र के खारापन के लिये उसमें मुख्यत: सोडियम क्लोराइड की उपस्थिति कारण होती है। भौमिकी में लवण को हैलाइट (Halite) कहते हैं। .

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स्फटिक

एक शैल क्वार्ट्ज क्रिसटल स्फटिक या क्वार्ट्ज (Quartz) एक खनिज है। यह रेत एवं ग्रेनाइट का मुख्य घटक है। पृथ्वी के महाद्वीपीय भू-पर्पटी (क्रस्ट) पर क्वार्ट्ज दूसरा सर्वाधिक पाया जाने वाला खनिज है (पहला, फेल्सपार है)। यह SiO4 के सिलिकन-आक्सीजन चतुष्फलकी से बना होता है जिसमें प्रत्येक आक्सीजन दो चतुष्फलकियों में साझा होता है। इस प्रकार इसका प्रभावी अणुसूत्र SiO2 है। क्वार्टज अनेकों प्रकार के होते हैं। इनमें से कई अर्ध-मूल्यवान (semi-precious) रत्न हैं। विशेषतः यूरोप और मध्यपूर्व में तरह-तरह के क्वार्ट्ज अतिप्राचीन काल से आभूषण बनाने के काम में लिए जाते रहे हैं। क्वार्ट्ज शब्द ('quartz') जर्मन शब्द 'Quarz' से निकला है जिसका अर्थ 'कठोर' होता है। .

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सूक्ष्मदर्शी

सूक्ष्मदर्शी या सूक्ष्मबीन (माइक्रोस्कोप) वह यंत्र है जिसकी सहायता से आँख से न दिखने योग्य सूक्ष्म वस्तुओं को भी देखा जा सकता है। सूक्ष्मदर्शी की सहायता से चीजों का अवलोकन व जांच किया जाता है वह सूक्ष्मदर्शन कहलाता है। सूक्ष्मदर्शी का इतिहास लगभग ४०० वर्ष पुराना है। सबसे पहले नीदरलैण्ड में सन १६०० के आस-पास किसी काम के योग्य सूक्ष्मदर्शी का विकास हुआ। .

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ज्वालामुखी

तवुर्वुर का एक सक्रिय ज्वालामुखी फटते हुए, राबाउल, पापुआ न्यू गिनिया ज्वालामुखी पृथ्वी की सतह पर उपस्थित ऐसी दरार या मुख होता है जिससे पृथ्वी के भीतर का गर्म लावा, गैस, राख आदि बाहर आते हैं। वस्तुतः यह पृथ्वी की ऊपरी परत में एक विभंग (rupture) होता है जिसके द्वारा अन्दर के पदार्थ बाहर निकलते हैं। ज्वालामुखी द्वारा निःसृत इन पदार्थों के जमा हो जाने से निर्मित शंक्वाकार स्थलरूप को ज्वालामुखी पर्वत कहा जाता है। ज्वालामुखी का सम्बंध प्लेट विवर्तनिकी से है क्योंकि यह पाया गया है कि बहुधा ये प्लेटों की सीमाओं के सहारे पाए जाते हैं क्योंकि प्लेट सीमाएँ पृथ्वी की ऊपरी परत में विभंग उत्पन्न होने हेतु कमजोर स्थल उपलब्ध करा देती हैं। इसके अलावा कुछ अन्य स्थलों पर भी ज्वालामुखी पाए जाते हैं जिनकी उत्पत्ति मैंटल प्लूम से मानी जाती है और ऐसे स्थलों को हॉटस्पॉट की संज्ञा दी जाती है। भू-आकृति विज्ञान में ज्वालामुखी को आकस्मिक घटना के रूप में देखा जाता है और पृथ्वी की सतह पर परिवर्तन लाने वाले बलों में इसे रचनात्मक बल के रूप में वर्गीकृत किया जाता है क्योंकि इनसे कई स्थलरूपों का निर्माण होता है। वहीं, दूसरी ओर पर्यावरण भूगोल इनका अध्ययन एक प्राकृतिक आपदा के रूप में करता है क्योंकि इससे पारितंत्र और जान-माल का नुकसान होता है। .

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वाष्प

किसी पदार्थ के क्रांतिक बिन्दु से कम ताप पर उस पदार्थ के गैस प्रावस्था को उस पदार्थ का वाष्प (vapor) कहते हैं। इसका अर्थ है कि वाष्प का दाब बढ़ाकर, बिना ताप कम किये ही, उसे द्रव या ठोस में बदला जा सकता है। उदाहरण के लिये, पानी का क्रांतिक ताप 374 °C (647 K) है। इसका मतलब है कि इससे अधिक ताप पर किसी भी दशा में पानी द्रव अवस्था में नहीं रह सकता। अतः वायुमण्डल में, सामान्य तापों पर पानी की वाष्प द्रव में बदल जायेगी यदि इसका आंशिक दाब पर्याप्त बढ़ा दिया जाय। वाष्प और द्रव (या ठोस) का सह-अस्तित्व सम्भव है। .

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खनिज

विभिन्न प्रकार के खनिज खनिज ऐसे भौतिक पदार्थ हैं जो खान से खोद कर निकाले जाते हैं। कुछ उपयोगी खनिज पदार्थों के नाम हैं - लोहा, अभ्रक, कोयला, बॉक्साइट (जिससे अलुमिनियम बनता है), नमक (पाकिस्तान व भारत के अनेक क्षेत्रों में खान से नमक निकाला जाता है!), जस्ता, चूना पत्थर इत्यादि। .

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गंधक

हल्के पीले रंग के गंधक के क्रिस्टल गंधक (Sulfur) एक रासायनिक अधातुक तत्त्व है। .

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आग्नेय शैल

ग्रेनाइट (एक आग्नेय चट्टान) चेन्नई मे, भारत. आग्नेय चट्टान (जर्मन: Magmatisches Gestein) की रचना धरातल के नीचे स्थित तप्त एवं तरल चट्टानी पदार्थ, अर्थात् मैग्मा, के सतह के ऊपर आकार लावा प्रवाह के रूप में निकल कर अथवा ऊपर उठने के क्रम में बाहर निकल पाने से पहले ही, सतह के नीचे ही ठंढे होकर इन पिघले पदार्थों के ठोस रूप में जम जाने से होती है। अतः आग्नेय चट्टानें पिघले हुए चट्टानी पदार्थ के ठंढे होकर जम जाने से बनती हैं। ये रवेदार भी हो सकती है और बिना कणों या रवे के भी। ये चट्टानें पृथ्वी पर पायी जाने वाली अन्य दो प्रमुख चट्टानों, अवसादी और रूपांतरित के साथ मिलकर पृथ्वी पर पायी जाने वाली चट्टानों के तीन प्रमुख प्रकार बनाती हैं। पृथ्वी के धरातल की उत्पत्ति में सर्वप्रथम इनका निर्माण होने के कारण इन्हें 'प्राथमिक शैल' भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए भी कहा जाता है कि यही वे पहली चट्टानें हैं जो पिघले हुए चट्टानी पदार्थ से बनती हैंजबकि अवसादी या रूपांतरित चट्टानें इन आग्नेय चट्टानों के टूटने या ताप और दाब के प्रभाव आकार में बदलने से से बनती हैं। इनके दो मुख्य प्रकार हैं। ज्वालामुखी उदगार के समय भूगर्भ से निकालने वाला लावा जब धरातल पर जमकर ठंडा हो जाने के पश्चात आग्नेय चट्टानों में परिवर्तित हो जाता है तो इसे बहिर्भेदी या ज्वालामुखीय चट्टान कहा जाता है। इसके विपरीत जब ऊपर उठता हुआ मैग्मा धरातल की सतह पर आकर बाहर निकलने से पहले ही ज़मीन के अन्दर ही ठंडा होकर जम जाता है तो इस प्रकार अंतर्भेदी चट्टान कहते हैं। चूँकि, ज़मीनी सतह से नीचे बनने वाली आग्नेय चट्टानें धीरे-धीरे ठंडी होकर जमती है, ये रवेदार होती हैं, क्योंकि मैग्माई पदार्थ के अणुओं के एक दूसरे के साथ संयोजित होकर क्रिस्टल या रवे बनाने हेतु काफ़ी समय मिल जाता है। इसके ठीक उलट, जब मैग्मा लावा के रूप में ज्वालामुखी उदगार के समय बाहर निकल कर ठंढा होकर जमता है तो रवे बनने के लिये पर्याप्त समय नहीं मिलता और इस प्रकार बहिर्भेदी आग्नेय चट्टानें काँचीय या गैर-रवेदार (glassy) होती हैं। आग्नेय चट्टानों में परतों और जीवाश्मों का पूर्णतः अभाव पाया जाता है। अप्रवेश्यता अधिक होने के कारण इन पर रासायनिक अपक्षय का बहुत कम प्रभाव पड़ता है, लेकिन यांत्रिक एवं भौतिक अपक्षय के कारण इनका विघटन व वियोजन प्रारम्भ हो जाता है। ग्रेनाइट, बेसाल्ट, गैब्रो, ऑब्सीडियन, डायोराईट, डोलोराईट, एन्डेसाईट, पेरिड़ोटाईट, फेलसाईट, पिचस्टोन, प्युमाइस इत्यादि आग्नेय चट्टानों के प्रमुख उदाहरण है। .

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क्रिस्टल

क्रिस्टलीय, बहुक्रिस्टलीय तथा अक्रिस्टलीय पदार्थों की सूक्ष्म संरचना स्फटिक, इस बहुमणिभीय खनिज की पर्तें स्पष्ट पारदर्शी होतीं हैं बिस्मथ का क्रिस्टल इन्सुलिन का क्रिस्टल गैलियम, जिसकी वृहत एकपर्त होती हैं रसायन शास्त्र, खनिज शास्त्र एवं पदार्थ विज्ञान में क्रिस्टल उन ठोसों को कहते हैं जिनके अणु, परमाणु या आयन, एक व्यवस्थित क्रम में लगे होते हैं तथा यही क्रम सभी तरफ दोहराया जाता है। प्रतिदिन के प्रयोग के अधिकतर पदार्थ बहुक्रिस्टलीय (पॉलीक्रिटलाइन) होते हैं। क्रिस्टलों तथा क्रिस्टल निर्माण के वैज्ञानिक अध्ययन को क्रिस्टलकी (crystallography) कहते हैं। क्रिस्टल बनने की प्रक्रिया को क्रिस्टलन या क्रिस्टलीकरण (crystallization या solidification) कहते हैं। .

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क्रिस्टलन

हिम का क्रिस्टलन प्राकृतिक या कृत्रिम विधि से ठोस क्रिस्टल बनने/बनाने की क्रिया को क्रिस्टलन या क्रिस्टलीकरण (Crystallization) कहते हैं। क्रिस्टलन के लिये विलयन या गलित (मेल्ट) का प्रयोग किया जाता है या कभी-कभी (बहुत कम) सीधे गैस से ही क्रिस्टल जमा लिये जाते हैं। क्रिस्टलन एक रासायनिक ठोस-द्रव विलगीकरण तकनीक है जिसमें विलेय, द्रव विलयन से स्थानान्तरित होकर शुद्ध ठोस पर चला जाता है। रासायनिक इंजीनियरी में क्रिस्टलन के लिये क्रिस्टलकारी (crystallizer) का प्रयोग किया जाता है। श्रेणी:क्रिस्टलीकरण.

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कैल्साइट

कैल्साइट पृथ्वी पर सबसे अधिक परिमाण में पाया जाने वाला खनिज है। रासायनिक या जैव-रासायनिक कैल्सियम कार्बोनेट को कैल्साइट कहते हैं। इसका रासायनिक सूत्र CaCO3 है। कैलसाइट विभिन्न रंगों में पाया जाता है। यह खनिज अपने विदलन सतहों, काचोपम चमक, अल्प कठोरता (.

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