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आग्नेय शैल

सूची आग्नेय शैल

ग्रेनाइट (एक आग्नेय चट्टान) चेन्नई मे, भारत. आग्नेय चट्टान (जर्मन: Magmatisches Gestein) की रचना धरातल के नीचे स्थित तप्त एवं तरल चट्टानी पदार्थ, अर्थात् मैग्मा, के सतह के ऊपर आकार लावा प्रवाह के रूप में निकल कर अथवा ऊपर उठने के क्रम में बाहर निकल पाने से पहले ही, सतह के नीचे ही ठंढे होकर इन पिघले पदार्थों के ठोस रूप में जम जाने से होती है। अतः आग्नेय चट्टानें पिघले हुए चट्टानी पदार्थ के ठंढे होकर जम जाने से बनती हैं। ये रवेदार भी हो सकती है और बिना कणों या रवे के भी। ये चट्टानें पृथ्वी पर पायी जाने वाली अन्य दो प्रमुख चट्टानों, अवसादी और रूपांतरित के साथ मिलकर पृथ्वी पर पायी जाने वाली चट्टानों के तीन प्रमुख प्रकार बनाती हैं। पृथ्वी के धरातल की उत्पत्ति में सर्वप्रथम इनका निर्माण होने के कारण इन्हें 'प्राथमिक शैल' भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए भी कहा जाता है कि यही वे पहली चट्टानें हैं जो पिघले हुए चट्टानी पदार्थ से बनती हैंजबकि अवसादी या रूपांतरित चट्टानें इन आग्नेय चट्टानों के टूटने या ताप और दाब के प्रभाव आकार में बदलने से से बनती हैं। इनके दो मुख्य प्रकार हैं। ज्वालामुखी उदगार के समय भूगर्भ से निकालने वाला लावा जब धरातल पर जमकर ठंडा हो जाने के पश्चात आग्नेय चट्टानों में परिवर्तित हो जाता है तो इसे बहिर्भेदी या ज्वालामुखीय चट्टान कहा जाता है। इसके विपरीत जब ऊपर उठता हुआ मैग्मा धरातल की सतह पर आकर बाहर निकलने से पहले ही ज़मीन के अन्दर ही ठंडा होकर जम जाता है तो इस प्रकार अंतर्भेदी चट्टान कहते हैं। चूँकि, ज़मीनी सतह से नीचे बनने वाली आग्नेय चट्टानें धीरे-धीरे ठंडी होकर जमती है, ये रवेदार होती हैं, क्योंकि मैग्माई पदार्थ के अणुओं के एक दूसरे के साथ संयोजित होकर क्रिस्टल या रवे बनाने हेतु काफ़ी समय मिल जाता है। इसके ठीक उलट, जब मैग्मा लावा के रूप में ज्वालामुखी उदगार के समय बाहर निकल कर ठंढा होकर जमता है तो रवे बनने के लिये पर्याप्त समय नहीं मिलता और इस प्रकार बहिर्भेदी आग्नेय चट्टानें काँचीय या गैर-रवेदार (glassy) होती हैं। आग्नेय चट्टानों में परतों और जीवाश्मों का पूर्णतः अभाव पाया जाता है। अप्रवेश्यता अधिक होने के कारण इन पर रासायनिक अपक्षय का बहुत कम प्रभाव पड़ता है, लेकिन यांत्रिक एवं भौतिक अपक्षय के कारण इनका विघटन व वियोजन प्रारम्भ हो जाता है। ग्रेनाइट, बेसाल्ट, गैब्रो, ऑब्सीडियन, डायोराईट, डोलोराईट, एन्डेसाईट, पेरिड़ोटाईट, फेलसाईट, पिचस्टोन, प्युमाइस इत्यादि आग्नेय चट्टानों के प्रमुख उदाहरण है। .

25 संबंधों: एंडेसाइट, डायोराइट, डाइक, तापमान, दाब, पेरिडोटाइट, फैकोलिथ, बहिर्भेदी शैल, बैथोलिथ, बेसाल्ट, भूपर्पटी, मैग्मा, रवेदार आग्नेय चट्टान, लावा, लैकोलिथ, लोपोलिथ, सिल, जर्मन भाषा, ज्वालामुखी, ज्वालामुखीय चट्टान, ज्वालाकाच, जीवाश्म, ग्रेनाइट, गैब्रो, अंतर्भेदी आग्नेय चट्टान

एंडेसाइट

एंडेसाइट एक बहिर्भेदी आग्नेय चट्टान है। श्रेणी:शैलविज्ञान श्रेणी:शैलें श्रेणी:आग्नेय शैलें श्रेणी:आग्नेय शैलविज्ञान.

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डायोराइट

डायोराइट एक मध्यवर्ती आग्नेय चट्टान है जो मुख्यतः प्लाजियोक्लेज फेल्सपर द्वारा निर्मित एक अंतर्भेदी चट्टान है। .

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डाइक

जब मैग्मा किसी लम्बवत दरार में जमता है तो डाइक (Dyke) कहलाता है। झारखण्ड के सिंहभूम जिले में अनेक डाइक दिखाई देते हैं। श्रेणी:शैलें.

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तापमान

आदर्श गैस के तापमान का सैद्धान्तिक आधार अणुगति सिद्धान्त से मिलता है। तापमान किसी वस्तु की उष्णता की माप है। अर्थात्, तापमान से यह पता चलता है कि कोई वस्तु ठंढी है या गर्म। उदाहरणार्थ, यदि किसी एक वस्तु का तापमान 20 डिग्री है और एक दूसरी वस्तु का 40 डिग्री, तो यह कहा जा सकता है कि दूसरी वस्तु प्रथम वस्तु की अपेक्षा गर्म है। एक अन्य उदाहरण - यदि बंगलौर में, 4 अगस्त 2006 का औसत तापमान 29 डिग्री था और 5 अगस्त का तापमान 32 डिग्री; तो बंगलौर, 5 अगस्त 2006 को, 4 अगस्त 2006 की अपेक्षा अधिक गर्म था। गैसों के अणुगति सिद्धान्त के विकास के आधार पर यह माना जाता है कि किसी वस्तु का ताप उसके सूक्ष्म कणों (इलेक्ट्रॉन, परमाणु तथा अणु) के यादृच्छ गति (रैण्डम मोशन) में निहित औसत गतिज ऊर्जा के समानुपाती होता है। तापमान अत्यन्त महत्वपूर्ण भौतिक राशि है। प्राकृतिक विज्ञान के सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों (भौतिकी, रसायन, चिकित्सा, जीवविज्ञान, भूविज्ञान आदि) में इसका महत्व दृष्टिगोचर होता है। इसके अलावा दैनिक जीवन के सभी पहलुओं पर तापमान का महत्व है। .

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दाब

दाब का मान प्रदर्शित करने के लिये पारा स्तंभ किसी सतह के इकाई क्षेत्रफल पर लगने वाले अभिलम्ब बल को दाब (Pressure) कहते हैं। इसकी इकाई 'न्यूटन प्रति वर्ग मीटर' होती है। दाब की और भी कई प्रचलित इकाइयाँ हैं। p .

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पेरिडोटाइट

पेरिडोटाइट (Peridotite) एक घनी, मोटे दाने वाली, आग्नेय शैल है जिसमें मुख्यतः आलीवीन (olivine) तथा पाइराक्सीन (pyroxene) खनिज होते हैं। श्रेणी:शैल.

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फैकोलिथ

फेकोलिथ लहरदार आग्नेय चट्टान होती है।.

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बहिर्भेदी शैल

बहिर्भेदी आग्नेय चट्टानें वे चट्टानें हैं जो मैग्मा के पृथ्वी कि सतह के ऊपर निकल कर लावा के रूप में आकर ठंढे होकर जमने से बनती हैं। चूँकि इस प्रकार के उद्भेदन को ज्वालामुखी उद्भेदन कहा जाता है, अतः ऐसी चट्टानों को ज्वालामुखीय चट्टानें भी कहते हैं। .

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बैथोलिथ

बैथोलिथ सबसे बड़ा आग्नेय चट्टानी पिण्ड है, जो अन्तर्वेधी चट्टानों से बनता है | वास्तव में यह एक पातालीय पिण्ड है | यह एक बड़े गुम्बद के आकार का होता है जिसके किनारे खड़े होते हैं | इसका ऊपरी तल विषम होता है | यह मूलता ग्रेनाइट से बनता है |जो मेग्मा भण्डारो के जमे हुए भाग है.

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बेसाल्ट

बेसाल्ट चट्टान का एक नमूना बेसाल्ट या बसाल्ट (अंग्रेज़ी: Basalt) एक प्रकार की बहिर्भेदी (ज्वालामुखीय) आग्नेय चट्टान है। इसका निर्माण बेसाल्टी लावा के धरातल पर आकार तेजी से जमने की वजह से होता है और इसी कारण यह कणविहीन या गैर-रवेदार रूप में पायी जाती है। .

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भूपर्पटी

भूपर्पटी या क्रस्ट (अंग्रेज़ी: crust) भूविज्ञान में किसी पथरीले ग्रह या प्राकृतिक उपग्रह की सबसे ऊपर की ठोस परत को कहते हैं। यह जिस सामग्री का बना होता है वह इसके नीचे की भूप्रावार (मैन्टल) कहलाई जाने वाली परत से रसायनिक तौर पर भिन्न होती है। हमारे सौरमंडल में पृथ्वी, शुक्र, बुध, मंगल, चन्द्रमा, आयो और कुछ अन्य खगोलीय पिण्डों के भूपटल ज़्यादातर ज्वालामुखीय प्रक्रियाओं में बने हैं (यानि अंदर से उगले गये हैं)।, pp.

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मैग्मा

मैग्मा चट्टानों का पिघला हुआ रूप है जिसकी रचना ठोस, आधी पिघली अथवा पूरी तरह पिघली चट्टानों के द्वारा होती है और जो पृथ्वी के सतह के नीचे निर्मित होता है। मैग्मा के बाहर निकलने वाले रूप को लावा कहते हैं। मैग्मा के शीतलन द्वारा आग्नेय चट्टानों का निर्माण होता है। जब मैग्मा ज़मीनी सतह के ऊपर आकर लावा के रूप में ठंडा होकर जमता है तो बहिर्भेदी और जब सतह के नीचे ही जम जाता है तो अंतर्भेदी आग्नेय चट्टानों का निर्माण होता है। सामान्यतः ज्वालामुखी विस्फोट में मैग्मा का लावा के रूप में निकलना एक प्रमुख भूवैज्ञानिक क्रिया के रूप में चिह्नित किया जाता है। .

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रवेदार आग्नेय चट्टान

रवेदार चट्टान वे चट्टान है जिनकी सतह पर रवा अर्थात् छोटे कड़ो का एक सामूहिक आवरड़ पाया जाता है.

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लावा

लावा पिघली हुई चट्टान आर्थात मैग्मा का धरातल पर प्रकट होकर बहने वाला भाग है। यह ज्वालामुखी उद्गार द्वारा बाहर निकलता है और आग्नेय चट्टानों की रचना करता है। श्रेणी:भूविज्ञान श्रेणी:ज्वालामुखी श्रेणी:भू-आकृति विज्ञान श्रेणी:ज्वालामुखीयता.

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लैकोलिथ

लैकोलिथ अन्तर्वेधी आग्नेय शैलों द्वारा निर्मित संरचना है जो मैग्मा के ऊपर उठ कर दो क्षैतिज चट्टानी संस्तरों के बीच गुंबदाकार आकृति में जमा होने से निर्मित होती है। पृथ्वी के भीतरी हिस्से से ऊपर उठता मैग्मा जब दो चट्टानी संस्तरों (परतों) के बीच क्षैतिज रूप से फैलता है, अर्थात ऊपर वाली परत को भेद कर बाहर आने की स्थिति में नहीं होता बल्कि अंदर-अंदर परतों के बीच फैलने लगता है तो इस तरह की संरचनाओं का जन्म होता है जिन्हें अंतर्वेधी आग्नेय शैल संरचना कहा जाता है। लैकोलिथ इसी का एक प्रकार है, यह तब निर्मित होता है जब ऊपरी परत निचली की तुलना में कम मजबूत हो और दोनों परतों के बीच में जमा हो रहा मैग्मा ऊपर की परत को ऊपर की ओर उठा दे तथा एक गुंबद की आकृति में जमा हो। इसके विपरीत सिल नामक संरचना में मैग्मा दोनों परतों के बीच अपने पूरे विस्तार लगभग एक समान मोटाई की एक नई परत के रूप में जमा होता है। लैकोलिथ से ठीक विपरीत संरचना लोपोलिथ की होती है जिसमें निचली परत कमज़ोर होने के कारण मैग्मा की परत एक तश्तरीनुमा आकृति बनाते हुए जमा होता है। कुछ दशाओं में लैकोलिथ, बैथोलिथ का ही छोटा रूप हो सकता है और कभी-कभी एक बड़े बैथोलिथ के ऊपरी भाग में छोटे लैकोलिथ पाए जा सकते हैं। .

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लोपोलिथ

जब मैग्मा जमकर तश्तरीनुमा आकर ग्रहण कर लेता है तो, उसे लापोलिथ (Lopolith) कहते है। लापोलिथ, दक्षिण अफ्रीका में मिलते हैं। श्रेणी:आग्नेय शैलविज्ञान.

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सिल

जब मैग्मा भू पृष्ठ के समानांतर परतों में फैलकर जमता है,तो उसे सिल कहते हैं|इसकी मोटाई एक मीटर से लेकर सैकड़ों मीटर तक होती है|छत्तीसगढ़ तथा झारखंड में सिल पाए जाते हैं|एक मीटर से कम मोटाई वाले सिल को शीट कहते हैं|.

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जर्मन भाषा

विश्व के जर्मन भाषी क्षेत्र जर्मन भाषा (डॉयट्श) संख्या के अनुसार यूरोप की सब से अधिक बोली जाने वाली भाषा है। ये जर्मनी, स्विट्ज़रलैंड और ऑस्ट्रिया की मुख्य- और राजभाषा है। ये रोमन लिपि में लिखी जाती है (अतिरिक्त चिन्हों के साथ)। ये हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार में जर्मनिक शाखा में आती है। अंग्रेज़ी से इसका करीबी रिश्ता है। लेकिन रोमन लिपि के अक्षरों का इसकी ध्वनियों के साथ मेल अंग्रेज़ी के मुक़ाबले कहीं बेहतर है। आधुनिक मानकीकृत जर्मन को उच्च जर्मन कहते हैं। जर्मन भाषा भारोपीय परिवार के जर्मेनिक वर्ग की भाषा, सामान्यत: उच्च जर्मन का वह रूप है जो जर्मनी में सरकारी, शिक्षा, प्रेस आदि का माध्यम है। यह आस्ट्रिया में भी बोली जाती है। इसका उच्चारण १८९८ ई. के एक कमीशन द्वारा निश्चित है। लिपि, फ्रेंच और अंग्रेजी से मिलती-जुलती है। वर्तमान जर्मन के शब्दादि में अघात होने पर काकल्यस्पर्श है। तान (टोन) अंग्रेजी जैसी है। उच्चारण अधिक सशक्त एवं शब्दक्रम अधिक निश्चित है। दार्शनिक एवं वैज्ञानिक शब्दावली से परिपूर्ण है। शब्दराशि अनेक स्रोतों से ली गई हैं। उच्च जर्मन, केंद्र, उत्तर एवं दक्षिण में बोली जानेवाली अपनी पश्चिमी शाखा (लो जर्मन-फ्रिजियन, अंग्रेजी) से लगभग छठी शताब्दी में अलग होने लगी थी। भाषा की दृष्टि से "प्राचीन हाई जर्मन" (७५०-१०५०), "मध्य हाई जर्मन" (१३५० ई. तक), "आधुनि हाई जर्मन" (१२०० ई. के आसपास से अब तक) तीन विकास चरण हैं। उच्च जर्मन की प्रमुख बोलियों में यिडिश, श्विज्टुन्श, आधुनिक प्रशन स्विस या उच्च अलेमैनिक, फ्रंकोनियन (पूर्वी और दक्षिणी), टिपृअरियन तथा साइलेसियन आदि हैं। .

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ज्वालामुखी

तवुर्वुर का एक सक्रिय ज्वालामुखी फटते हुए, राबाउल, पापुआ न्यू गिनिया ज्वालामुखी पृथ्वी की सतह पर उपस्थित ऐसी दरार या मुख होता है जिससे पृथ्वी के भीतर का गर्म लावा, गैस, राख आदि बाहर आते हैं। वस्तुतः यह पृथ्वी की ऊपरी परत में एक विभंग (rupture) होता है जिसके द्वारा अन्दर के पदार्थ बाहर निकलते हैं। ज्वालामुखी द्वारा निःसृत इन पदार्थों के जमा हो जाने से निर्मित शंक्वाकार स्थलरूप को ज्वालामुखी पर्वत कहा जाता है। ज्वालामुखी का सम्बंध प्लेट विवर्तनिकी से है क्योंकि यह पाया गया है कि बहुधा ये प्लेटों की सीमाओं के सहारे पाए जाते हैं क्योंकि प्लेट सीमाएँ पृथ्वी की ऊपरी परत में विभंग उत्पन्न होने हेतु कमजोर स्थल उपलब्ध करा देती हैं। इसके अलावा कुछ अन्य स्थलों पर भी ज्वालामुखी पाए जाते हैं जिनकी उत्पत्ति मैंटल प्लूम से मानी जाती है और ऐसे स्थलों को हॉटस्पॉट की संज्ञा दी जाती है। भू-आकृति विज्ञान में ज्वालामुखी को आकस्मिक घटना के रूप में देखा जाता है और पृथ्वी की सतह पर परिवर्तन लाने वाले बलों में इसे रचनात्मक बल के रूप में वर्गीकृत किया जाता है क्योंकि इनसे कई स्थलरूपों का निर्माण होता है। वहीं, दूसरी ओर पर्यावरण भूगोल इनका अध्ययन एक प्राकृतिक आपदा के रूप में करता है क्योंकि इससे पारितंत्र और जान-माल का नुकसान होता है। .

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ज्वालामुखीय चट्टान

ज्वालामुखीय चट्टानें (अंग्रेज़ी::en:Volcanic rocks वे चट्टानें है जो पृथ्वीतल पर ज्वालामुखी के उद्भेदन द्वारा निकले लावा के ठंढे होकर चट्टान के रूप में जम जाने से बनी हैं। इन्हें तकनीकी भाषा में बहिर्भेदी आग्नेय चट्टानें भी कहा जाता है। प्रमुख उदाहरण हैं बेसाल्ट और रायोलाइट। .

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ज्वालाकाच

ज्वालाकाच या ऑब्सिडियन (Obsidian), एक प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला ज्वालामुखीय काच है। यह रायोलाइट (Rhyolite) नामक ज्वालामुखी-शिला का अत्यन्त काचीय रूप है। अत: रासायनिक एवं खनिज संरचना में ज्वालाकाच रायोलाइट अथवा ग्रेनाइट के समतुल्य है, परन्तु भौतिक सरंचना एवं बाह्य रूप में दोनों में पर्याप्त भिन्नता है। ज्वालाकाच वस्तुत: 'प्राकृतिक काच' का दूसरा नाम है। नवीन परिभाषा के अनुसार ज्वालाकाच उस स्थूल, अपेक्षाकृत सघन परंतु प्राय: झावाँ की भाँति दिखनेवाले, गहरे भूरे या काले, साँवले, पीले या चितकबरे काच को कहते हैं, जो तोड़ने पर सूक्ष्म शंखाभ विभंग (conchoidal fracture) प्रदर्शित करता है। इस शिला का यह विशेष गुण है। प्राचीन काल में ज्वालाकाच का प्रयोग होता था और वर्तमान समय में भी अपने भौतिक गुणों एवं रासायनिक संरचना के कारण इसका प्रयोग हो रहा है। अभी हाल तक अमरीका की रेडइंडियन जाति अपने बाणों और भालों की नोक इसी शिला के तेज टुकड़ों से बनाती थी। प्लिनी के अनुसार ऑब्सिडियनस नामक व्यक्ति ने ईथियोपिया देश मे सर्वप्रथम इस शिला की खोज की। अतएव इसका नाम ऑब्सिडियन पड़ा। जॉनहिल (१७४६ ईo) के अनुसार एंटियंट जाति इस शिला पर पालिश चढ़ाकर दर्पण के रूप में इसका उपयोग करती थी। इनकी भाषा में ऑब्सिडियन का जो नाम था वह कालांतर में लैटिन भाषा में क्रमश: ऑपसियनस, ऑपसिडियनस तथा ऑवसिडियनस (obsiodianus) लिखा जाने लगा। शब्द की व्युत्पत्ति प्राय: पूर्णतया विस्मृत हो चुकी है, एवं भ्रमवश यह मान लिया गया है कि ऑब्सिडियन नाम उसके आविष्कर्ता ऑब्सिडियनस के नाम पर पड़ा। साधारणतया रायोलाइट के काचीय रूप को ही ऑब्सिडियन कहते हैं, परंतु ट्रेकाइट (trachyte) अथवा डेसाइट नामक ज्वाला-मुखी अम्लशैल (volcanic acid-rocks) भी अत्यंत तीव्र गति से शीतल होकर प्राकृतिक काच को जन्म देते हैं। पर ऐसे शैलों को ट्रेफाइट या डेसाइट ऑब्सिडियन कहते हैं। सूक्ष्मदर्शक यंत्र से देखने पर ज्ञात होता है कि ऑब्सिडियन शैल का अधिकांश भाग काँच से निर्मित है। इसके अंतरावेश में अणुमणिभस्फट (microlite) देखे जा सकते हैं। इन मणिभों के विशेष विन्यास से स्पष्ट आभास मिलेगा कि कभी शैलमूल या मैग्मा (magma) में प्रवाहशीलता थी। शिला का गहरा रंग इन्हीं सूक्ष्म स्फटों के बाहुल्य का प्रतिफल है। कभी कभी ऑब्सिडियन धब्बेदार या धारीदार भी होता है। 'स्फेरूलाइट' तो इस शैल का सामान्य लक्षण है। ज्वालाकांच का आपेक्षिक घनत्व २.३० से २.५८ तक होता है। ऑब्सिडियन सदृश्य काचीय शिलाओं की उत्पत्ति ऐसे शैलमूलों के दृढ़ीभवन के फलस्वरूप होती है जिनकी संरचना स्फटिक (quartz) एवं क्षारीय फैलस्पार (alkali felspar) के 'यूटेकटिक मिश्रणों के निकट हो। ('यूटेकटिक मिश्रण' दो खनिजों के अविरल समानुपात की वह स्थिति है, जब ताप की एक निश्चित अवस्था में दोनों घटकों का एक साथ क्रिस्टल बनने लगे। यूटेकटिक बिन्दुओं के निकट इस प्रकार के शैलमूल पर्याप्त श्यान (viscous) हो उठते हैं। फलस्वरूप या तो मणिभीकरण पूर्णत: अवरुद्ध हो जाता है, या अतिशय बाधापूर्ण अवस्था में संपन्न होता है। तीव्रगति से शीतल होने के कारण ऐसे शैलों का उद्भव होता है जो प्राय: पूर्णत: काचीय होते हैं। ऑब्सिडियन क्लिफ, यलोस्टोन पार्क, संयुक्त राज्य अमरीका, में ७५ इंच से १०० इंच मोटे लावास्तरोें के रूप में ऑब्सिडियन मिलता है। भारत में गिरनार, एवं पावागढ़ के लावास्तरों से ऑब्सिडियन की प्राप्ति प्रचुर मात्रा में होती है। .

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जीवाश्म

एक जीवाश्म मछली पृथ्वी पर किसी समय जीवित रहने वाले अति प्राचीन सजीवों के परिरक्षित अवशेषों या उनके द्वारा चट्टानों में छोड़ी गई छापों को जो पृथ्वी की सतहों या चट्टानों की परतों में सुरक्षित पाये जाते हैं उन्हें जीवाश्म (जीव + अश्म .

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ग्रेनाइट

ग्रेनाइट पाषाण का निकट दृश्य ग्रैनाइट (Granite, कणाशम) मणिभीय दानेदार शिला है, जिसके प्रमुख अवयव स्फटिक (quartz) और फेल्स्पार (feldspar) हैं। यह आग्नेय (इग्नेयस) पाषाण है। 'ग्रैनाइट' शब्द का सर्वप्रथम उपयोग प्राचीन इटालियन संग्रहकर्ताओं ने किया था। रोम के शिल्पकार फ्लेमिनियस वेका के एक वर्णन में इसका प्रथम सन्दर्भ मिलता है। ग्रैनाइट पृथ्वी के प्रत्येक में पाया जाता है। भारत में भी यह प्रचुरता से मिलता है। मैसूर, उत्तर आरकट, मद्रास, राजपूताना, सलेम, बुंदेलखंड और सिंहभूमि में पर्याप्त प्राप्त होता है। हिमालय प्रदेशों में भी ग्रैनाइट शिलाएँ विद्यमान हैं। तमिलनाडु के तंजावुर नगर में स्थित वृहदेश्वर मंदिर विश्व का पहला ऐसा मंदिर है जो ग्रेनाइट पत्थर से बनाया गया है। .

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गैब्रो

गैब्रो एक अंतर्भेदी आग्नेय चट्टान है जिसकी रासायनिक संगठन बेसाल्ट के समतुल्य होता है। यह एक रवेदार चट्टान है जो मैग्मा के ज़मीनी सतह के नीचे ही जम जाने से बनती है। .

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अंतर्भेदी आग्नेय चट्टान

अंतर्भेदी आग्नेय चट्टान ऐसी आग्नेय चट्टानें है जो मैग्मा के ऊपर उठ कर धरातलीय सतह से नीचे ही जम जाने से निर्मित होती हैं। इन्हें पातालीय शैलें भी कहा जाता है। ये धीरे-धीरे ठंडे होकर जमने के कारण बहुधा रवेदार संरचना वाली होती हैं। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

आग्नेय शैलें, आग्नेय चट्टान, आग्नेय चट्टानों के प्रकार

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