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ऐम्नीओट

सूची ऐम्नीओट

उल्बीय प्राणी या ऐम्नीओट (Amniotes) ऐसे कशेरुकी (रीढ़-वाले) चौपाये प्राणियों का क्लेड (समूह) है जो या तो अपने अंडे धरती पर देते हैं या जन्म तक अपने शिशु का आरम्भिक पोषण मादा के गर्भ के अंदर ही करते हैं। सरीसृप (रेप्टाइल), स्तनधारी (मैमल) और पक्षी तीनों ऐम्नीओटों की श्रेणी में आते हैं। इसके विपरीत उभयचर (ऐम्फ़िबियन) और मछलियाँ ग़ैर-ऐम्नीओट या अनैम्निओट (anamniotes) होते हैं जो अधिकतर अपने अंडे जल में देते हैं। ऐम्नीओट चौपाये होते हैं (चार-पाँव और रीढ़ वाले प्राणियों के वंशज) और इनके अंडों में उल्ब (amniotic fluid, द्रव) भरा होता है - चाहे वे किसी छिलके में मादा से बाहर हो या फिर मादा के गर्भ के भीतर पनप रहें हो। इस उल्ब के कारण ऐम्नीओटों को बच्चे जनने के लिये किसी भी समुद्री या अन्य जलीय स्थान जाने की कोई आवश्यकता नहीं। इसके विपरीत ग़ैर-ऐम्नीओटों को अपने अंडे किसी जल-युक्त स्थान पर या सीधा समुद्र में ही देने की ज़रूरत होती है। यह अंतर क्रम-विकास (इवोल्यूशन) में एक बड़ा पड़ाव था जिस कारण से चौपाये समुद्र से निकलकर पृथ्वी के ज़मीनी क्षेत्रों पर फैल पाये। .

17 संबंधों: चौपाये, डायनासोर, पक्षी, प्राणी, रज्जुकी, सरीसृप, स्तनधारी, स्थलीय कछुआ, जीवाश्म, विलुप्ति, कशेरुकी प्राणी, क्रम-विकास, क्लेड, कोशिकीय श्वसन, अण्डा, उभयचर, छिपकली

चौपाये

चौपाये (Tetrapod) या चतुरपाद उन प्राणियों का महावर्ग है जो पृथ्वी पर चार पैरों पर चलने वाले सर्वप्रथम कशेरुकी (यानि रीढ़-वाले) प्राणियों के वंशज हैं। इसमें सारे वर्तमान और विलुप्त उभयचर (ऐम्फ़िबियन), सरीसृप (रेप्टाइल), स्तनधारी (मैमल), पक्षी और कुछ विलुप्त मछलियाँ शामिल हैं। यह सभी आज से लगभग ३९ करोड़ वर्ष पूर्व पृथ्वी के डिवोनी कल्प में उत्पन्न हुई कुछ समुद्री लोब-फ़िन मछलियों से क्रम-विकसित हुए थे। चौपाये सब से पहले कब समुद्र से निकल कर ज़मीन पर फैलने लगे, इस बात को लेकर अनुसंधान व बहस जीवाश्मशास्त्रियों में जारी है। हालांकि वर्तमान में अधिकतर चौपाई जातियाँ धरती पर रहती हैं, पृथ्वी की पहली चौपाई जातियाँ सभी समुद्री थीं। उभयचर अभी-भी अर्ध-जलीय जीवन व्यतीत करते हैं और उनका आरम्भ पूर्णतः जल में रहने वाले मछली-रूपी बच्चें से होता है। लगभग ३४ करोड़ वर्ष पूर्व ऐम्नीओट (Amniotes) उत्पन्न हुये, जिनके शिशुओं का पोषण अंडों में या मादा के गर्भ में होता है। इन ऐम्नीओटों के वंशजों ने पानी में अंडे छोड़ने-वाले उभयचरों की अधिकतर जातियों को विलुप्त कर दिया हालांकि कुछ वर्तमान में भी अस्तित्व में हैं। आगे चलकर यह ऐम्नीओट भी दो मुख्य शाखाओं में बंट गये। एक शाखा में छिपकलियाँ, डायनासोर, पक्षी और उनके सम्बन्धी उत्पन्न हुए, जबकि दूसरी शाखा में स्तनधारी और उनके अब-विलुप्त सम्बन्धी विकसित हुए। जहाँ मछलियों में क्रम-विकास से चार-पाऊँ बनकर चौपाये बने थे, वहीं सर्प जैसे कुछ चौपायों में क्रम-विकास से ही यह पाऊँ ग़ायब हो गये। कुछ ऐसे भी चौपाये थे जो वापस समुद्री जीवन में चले गये, जिनमें ह्वेल शामिल है। फिर-भी जीववैज्ञानिक दृष्टि से चौपायों के सभी वंशज चौपाये ही समझे जाते हैं, चाहें उनके पाँव हो या नहीं और चाहे वे समुद्र में रहें या धरती पर। .

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डायनासोर

डायनासोर जिसका अर्थ यूनानी भाषा में बड़ी छिपकली होता है लगभग 16 करोड़ वर्ष तक पृथ्वी के सबसे प्रमुख स्थलीय कशेरुकी जीव थे। यह ट्राइएसिक काल के अंत (लगभग 23 करोड़ वर्ष पहले) से लेकर क्रीटेशियस काल (लगभग 6.5 करोड़ वर्ष पहले), के अंत तक अस्तित्व में रहे, इसके बाद इनमें से ज्यादातर क्रीटेशियस -तृतीयक विलुप्ति घटना के फलस्वरूप विलुप्त हो गये। जीवाश्म अभिलेख इंगित करते हैं कि पक्षियों का प्रादुर्भाव जुरासिक काल के दौरान थेरोपोड डायनासोर से हुआ था और अधिकतर जीवाश्म विज्ञानी पक्षियों को डायनासोरों के आज तक जीवित वंशज मानते हैं। हिन्दी में डायनासोर शब्द का अनुवाद भीमसरट है जिस का संस्कृत में अर्थ भयानक छिपकली है। डायनासोर पशुओं के विविध समूह थे। जीवाश्म विज्ञानियों ने डायनासोर के अब तक 500 विभिन्न वंशों और 1000 से अधिक प्रजातियों की पहचान की है और इनके अवशेष पृथ्वी के हर महाद्वीप पर पाये जाते हैं। कुछ डायनासोर शाकाहारी तो कुछ मांसाहारी थे। कुछ द्विपाद तथा कुछ चौपाये थे, जबकि कुछ आवश्यकता अनुसार द्विपाद या चतुर्पाद के रूप में अपने शरीर की मुद्रा को परिवर्तित कर सकते थे। कई प्रजातियां की कंकालीय संरचना विभिन्न संशोधनों के साथ विकसित हुई थी, जिनमे अस्थीय कवच, सींग या कलगी शामिल हैं। हालांकि डायनासोरों को आम तौर पर उनके बड़े आकार के लिए जाना जाता है, लेकिन कुछ डायनासोर प्रजातियों का आकार मानव के बराबर तो कुछ मानव से छोटे थे। डायनासोर के कुछ सबसे प्रमुख समूह अंडे देने के लिए घोंसले का निर्माण करते थे और आधुनिक पक्षियों के समान अण्डज थे। "डायनासोर" शब्द को 1842 में सर रिचर्ड ओवेन ने गढ़ा था और इसके लिए उन्होंने ग्रीक शब्द δεινός (डीनोस) "भयानक, शक्तिशाली, चमत्कारिक" + σαῦρος (सॉरॉस) "छिपकली" को प्रयोग किया था। बीसवीं सदी के मध्य तक, वैज्ञानिक समुदाय डायनासोर को एक आलसी, नासमझ और शीत रक्त वाला प्राणी मानते थे, लेकिन 1970 के दशक के बाद हुये अधिकांश अनुसंधान ने इस बात का समर्थन किया है कि यह ऊँची उपापचय दर वाले सक्रिय प्राणी थे। उन्नीसवीं सदी में पहला डायनासोर जीवाश्म मिलने के बाद से डायनासोर के टंगे कंकाल दुनिया भर के संग्रहालयों में प्रमुख आकर्षण बन गए हैं। डायनासोर दुनियाभर में संस्कृति का एक हिस्सा बन गये हैं और लगातार इनकी लोकप्रियता बढ़ रही है। दुनिया की कुछ सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबें डायनासोर पर आधारित हैं, साथ ही जुरासिक पार्क जैसी फिल्मों ने इन्हें पूरे विश्व में लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनसे जुड़ी नई खोजों को नियमित रूप से मीडिया द्वारा कवर किया जाता है। .

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पक्षी

pages.

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प्राणी

प्राणी या जंतु या जानवर 'ऐनिमेलिया' (Animalia) या मेटाज़ोआ (Metazoa) जगत के बहुकोशिकीय और सुकेंद्रिक जीवों का एक मुख्य समूह है। पैदा होने के बाद जैसे-जैसे कोई प्राणी बड़ा होता है उसकी शारीरिक योजना निर्धारित रूप से विकसित होती जाती है, हालांकि कुछ प्राणी जीवन में आगे जाकर कायान्तरण (metamorphosis) की प्रकिया से गुज़रते हैं। अधिकांश जंतु गतिशील होते हैं, अर्थात अपने आप और स्वतंत्र रूप से गति कर सकते हैं। ज्यादातर जंतु परपोषी भी होते हैं, अर्थात वे जीने के लिए दूसरे जंतु पर निर्भर रहते हैं। अधिकतम ज्ञात जंतु संघ 542 करोड़ साल पहले कैम्ब्रियन विस्फोट के दौरान जीवाश्म रिकॉर्ड में समुद्री प्रजातियों के रूप में प्रकट हुए। .

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रज्जुकी

रज्जुकी (संघ कॉर्डेटा) जीवों का एक समूह है जिसमें कशेरुकी (वर्टिब्रेट) और कई निकट रूप से संबंधित अकशेरुकी (इनवर्टिब्रेट) शामिल हैं। इनका इस संघ मे शामित होना इस आधार पर सिद्ध होता है कि यह जीवन चक्र मे कभी न कभी निम्न संरचनाओं को धारण करते हैं जो हैं, एक पृष्ठ‍रज्जु (नोटोकॉर्ड), एक खोखला पृष्ठीय तंत्रिका कॉर्ड, फैरेंजियल स्लिट एक एंडोस्टाइल और एक पोस्ट-एनल पूंछ। संघ कॉर्डेटा तीन उपसंघों मे विभाजित है: यूरोकॉर्डेटा, जिसका प्रतिनिधित्व ट्युनिकेट्स द्वारा किया जाता है; सेफालोकॉर्डेटा, जिसका प्रतिनिधित्व लैंसलेट्स द्वारा किया जाता है और क्रेनिएटा, जिसमे वर्टिब्रेटा शामिल हैं। हेमीकॉर्डेटा को चौथे उपसंघ के रूप मे प्रस्तुत किया जाता है पर अब इसे आम तौर पर एक अलग संघ के रूप में जाना जाता है। यूरोकॉर्डेट के लार्वा में एक नोटॉकॉर्ड और एक तंत्रिका कॉर्ड पायी जाती है पर वयस्क होने पर यह लुप्त हो जातीं हैं। सेफालोकॉर्डेट एक नोटॉकॉर्ड और एक तंत्रिका कॉर्ड पायी जाती है लेकिन कोई मस्तिष्क या विशेष संवेदना अंग नहीं होता और इनका एक बहुत ही सरल परिसंचरण तंत्र होता है। क्रेनिएट ही वह उपसंघ है जिसके सदस्यों में खोपड़ी मिलती है। इनमे वास्तविक देहगुहा पाई जाती है। इनमे जनन स्तर सदैव त्री स्तरीय पाया जाता है। सामान्यत लैंगिक जनन पाया जाता है। सामान्यत प्रत्यक्ष विकास होता है। इनमे RBC उपस्थित होती है। इनमे द्वीपार्शविय सममिती पाई जाती है। इसके जंतु अधिक विकसित होते है। श्रेणी:जीव विज्ञान *.

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सरीसृप

सरीसृप (Reptiles) प्राणी-जगत का एक समूह है जो कि पृथ्वी पर सरक कर चलते हैं। इसके अन्तर्गत साँप, छिपकली,मेंढक, मगरमच्छ आदि आते हैं। .

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स्तनधारी

यह प्राणी जगत का एक समूह है, जो अपने नवजात को दूध पिलाते हैं जो इनकी (मादाओं के) स्तन ग्रंथियों से निकलता है। यह कशेरुकी होते हैं और इनकी विशेषताओं में इनके शरीर में बाल, कान के मध्य भाग में तीन हड्डियाँ तथा यह नियततापी प्राणी हैं। स्तनधारियों का आकार २९-३३ से.मी.

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स्थलीय कछुआ

स्थलीय कछुआ स्थलीय कछुए (Tortoises) उन कछुओं को कहा जाता है जो मुख्य रूप से स्थलीय वातावरणों में अपना जीवन बसर करते हैं। अन्य कछुओं की तरह, स्थलीय कछुए का भी पूरा शरीर कड़े कवच से ढ़का रहता है। इसके शरीर के कवच का ऊपरी भाग कारापेश तथा निचला भाग प्लास्ट्रन कहलाता है। इसके चार पैर होते हैं और प्रत्येक पैरों में पाँच-पाँच नाखून तथा जाल-युक्त ऊँगलियाँ पायी जाती हैं। मादा कछुआ मिट्टी खोदकर उसमें अंडे देती है। अंडो की संख्या १ से लेकर ३० तक हो सकती है। साधारणतः अंडे देने का कार्य रात में होता है। मादा अंडे देने के बाद गड्ढे एवं अंडे को मिट्टी तथा बालू इत्यादि से ढ़क देती है। विभिन्न प्रजातियों के अंडो से बच्चों के निकलने का समय भिन्न-भिन्न होता है। अंडो से बच्चे निकलने में ६० से १२० दिनों तक का समय लगता है। .

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जीवाश्म

एक जीवाश्म मछली पृथ्वी पर किसी समय जीवित रहने वाले अति प्राचीन सजीवों के परिरक्षित अवशेषों या उनके द्वारा चट्टानों में छोड़ी गई छापों को जो पृथ्वी की सतहों या चट्टानों की परतों में सुरक्षित पाये जाते हैं उन्हें जीवाश्म (जीव + अश्म .

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विलुप्ति

मॉरीशस का डोडो पक्षी मानव शिकार के कारण विलुप्त हो गया जीव विज्ञान में विलुप्ति (extinction) उस घटना को कहते हैं जब किसी जीव जाति का अंतिम सदस्य मर जाता है और फिर विश्व में उस जाति का कोई भी जीवित जीव अस्तित्व में नहीं होता। अक्सर ऐसा इसलिए होता है क्योंकि किसी जीव का प्राकृतिक वातावरण बदल जाता है और उसमें इन बदली परिस्थितियों में पनपने और जीवित रहने की क्षमता नहीं होती। अंतिम सदस्य की मृत्यु के साथ ही उस जाति में प्रजनन द्वारा वंश वृद्धि की संभावनाएँ समाप्त हो जाती हैं। पारिस्थितिकी में कभी कभी विलुप्ति शब्द का प्रयोग क्षेत्रीय स्तर पर किसी जीव प्रजाति की विलुप्ति से भी लिया जाता है। अध्ययन से पता चला है कि अपनी उत्पत्ति के औसतन १ करोड़ वर्ष बाद जाति विलुप्त हो जाती है, हालांकि कुछ जातियाँ दसियों करोड़ों वर्षों तक जारी रहती हैं। पृथ्वी पर मानव के विकसित होने से पहले विलुप्तियाँ प्राकृतिक वजहों से हुआ करती थीं। माना जाता है कि पूरे इतिहास में जितनी भी जातियाँ पृथ्वी पर उत्पन्न हुई हैं उनमें से लगभग ९९.९% विलुप्त हो चुकी हैं।, Denise Walker, Evans Brothers, 2006, ISBN 978-0-237-53010-5,...

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कशेरुकी प्राणी

कशेरुकी जन्तु कशेरुकी या कशेरुकदंडी (वर्टेब्रेट, Vertebrate) प्राणिसाम्राज्य के कॉरडेटा (Chordata) समुदाय का सबसे बड़ा उपसमुदाय है। जिसके सदस्यों में रीढ़ की हड्डियाँ (backbones) या पृष्ठवंश (spinal comumns) विद्यमान रहते हैं। इस समुदाय में इस समय लगभग 58,000 प्रजातियाँ वर्णित हैं। इसमें बिना जबड़े वाली मछलियां, शार्क, रे, उभयचर, सरीसृप, स्तनपोषी तथा चिड़ियाँ शामिल हैं। ज्ञात जन्तुओं में लगभग 5% कशेरूकी हैं और शेष अकेशेरूकी। .

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क्रम-विकास

आनुवांशिकता का आधार डीएनए, जिसमें परिवर्तन होने पर नई जातियाँ उत्पन्न होती हैं। क्रम-विकास या इवोलुशन (English: Evolution) जैविक आबादी के आनुवंशिक लक्षणों के पीढ़ी दर पीढ़ी परिवर्तन को कहते हैं। क्रम-विकास की प्रक्रियायों के फलस्वरूप जैविक संगठन के हर स्तर (जाति, सजीव या कोशिका) पर विविधता बढ़ती है। पृथ्वी के सभी जीवों का एक साझा पूर्वज है, जो ३.५–३.८ अरब वर्ष पूर्व रहता था। इसे अंतिम सार्वजानिक पूर्वज कहते हैं। जीवन के क्रम-विकासिक इतिहास में बार-बार नयी जातियों का बनना (प्रजातिकरण), जातियों के अंतर्गत परिवर्तन (अनागेनेसिस), और जातियों का विलुप्त होना (विलुप्ति) साझे रूपात्मक और जैव रासायनिक लक्षणों (जिसमें डीएनए भी शामिल है) से साबित होता है। जिन जातियों का हाल ही में कोई साझा पूर्वज था, उन जातियों में ये साझे लक्षण ज्यादा समान हैं। मौजूदा जातियों और जीवाश्मों के इन लक्षणों के बीच क्रम-विकासिक रिश्ते (वर्गानुवंशिकी) देख कर हम जीवन का वंश वृक्ष बना सकते हैं। सबसे पुराने बने जीवाश्म जैविक प्रक्रियाओं से बने ग्रेफाइट के हैं, उसके बाद बने जीवाश्म सूक्ष्मजीवी चटाई के हैं, जबकि बहुकोशिकीय जीवों के जीवाश्म बहुत ताजा हैं। इस से हमें पता चलता है कि जीवन सरल से जटिल की तरफ विकसित हुआ है। आज की जैव विविधता को प्रजातिकरण और विलुप्ति, दोनों द्वारा आकार दिया गया है। पृथ्वी पर रही ९९ प्रतिशत से अधिक जातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं। पृथ्वी पर जातियों की संख्या १ से १.४ करोड़ अनुमानित है। इन में से १२ लाख प्रलेखित हैं। १९ वीं सदी के मध्य में चार्ल्स डार्विन ने प्राकृतिक वरण द्वारा क्रम-विकास का वैज्ञानिक सिद्धांत दिया। उन्होंने इसे अपनी किताब जीवजाति का उद्भव (१८५९) में प्रकाशित किया। प्राकृतिक चयन द्वारा क्रम-विकास की प्रक्रिया को निम्नलिखित अवलोकनों से साबित किया जा सकता है: १) जितनी संतानें संभवतः जीवित रह सकती हैं, उस से अधिक पैदा होती हैं, २) आबादी में रूपात्मक, शारीरिक और व्यवहारिक लक्षणों में विविधता होती है, ३) अलग-अलग लक्षण उत्तर-जीवन और प्रजनन की अलग-अलग संभावना प्रदान करते हैं, और ४) लक्षण एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी को दिए जाते हैं। इस प्रकार, पीढ़ी दर पीढ़ी आबादी उन शख़्सों की संतानों द्वारा प्रतिस्थापित हो जाती है जो उस बाईओफीसिकल परिवेश (जिसमें प्राकृतिक चयन हुआ था) के बेहतर अनुकूलित हों। प्राकृतिक वरण की प्रक्रिया इस आभासी उद्देश्यपूर्णता से उन लक्षणों को बनती और बरकरार रखती है जो अपनी कार्यात्मक भूमिका के अनुकूल हों। अनुकूलन का प्राकृतिक वरण ही एक ज्ञात कारण है, लेकिन क्रम-विकास के और भी ज्ञात कारण हैं। माइक्रो-क्रम-विकास के अन्य गैर-अनुकूली कारण उत्परिवर्तन और जैनेटिक ड्रिफ्ट हैं। .

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क्लेड

जातियों के इस चित्रण में लाल समूह एक क्लेड है (क्योंकि उसके सभी सदस्य एक जाति और उसकी सभी वंशज जातियाँ हैं) जबकि हरा समूह क्लेड नहीं है (क्योंकि नीला समूह में हरे समूह की एक सदस्य जाति के वंशज हैं लेकिन वह हरे समूह से बाहर हैं) क्लेड (clade) या जीवशाखा जीव जातियों का ऐसा समूह होता है जिसमें कोई जाति और उससे विकसित हुई सभी जातियाँ शामिल होती हैं। जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में क्लेड जीवन वृक्ष की एक शाखा होती है। 'क्लेड' शब्द बहुत नया है और १९५८ में ब्रिटिश जीववैज्ञानिक जूलियन हक्सली ने गढ़ा था। क्लेडिकी के विज्ञान में सभी जीवों को उनके क्लेडों के आधार पर वर्गीकृत करके उनका अध्ययन किया जाता है।, Claude Dupuis, Annual Review of Ecology and Systematics 15: 1–24, 1984, ISSN 0066-4162 .

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कोशिकीय श्वसन

सजीव कोशिकाओं में भोजन के आक्सीकरण के फलस्वरूप ऊर्जा उत्पन्न होने की क्रिया को कोशिकीय श्वसन कहते हैं। यह एक केटाबोलिक क्रिया है जो आक्सीजन की उपस्थिति या अनुपस्थिति दोनों ही अवस्थाओं में सम्पन्न हो सकती है। इस क्रिया के दौरान मुक्त होने वाली ऊर्जा को एटीपी नामक जैव अणु में संग्रहित करके रख लिया जाता है जिसका उपयोग सजीव अपनी विभिन्न जैविक क्रियाओं में करते हैं। यह जैव-रासायनिक क्रिया पौधों एवं जन्तुओं दोनों की ही कोशिकाओं में दिन-रात हर समय होती रहती है। कोशिकाएँ भोज्य पदार्थ के रूप में ग्लूकोज, अमीनो अम्ल तथा वसीय अम्ल का प्रयोग करती हैं जिनको आक्सीकृत करने के लिए आक्सीजन का परमाणु इलेक्ट्रान ग्रहण करने का कार्य करता है। कोशिकीय श्वसन एवं श्वास क्रिया में अभिन्न सम्बंध है एवं ये दोनों क्रियाएँ एक-दूसरे की पूरक हैं। श्वांस क्रिया सजीव के श्वसन अंगों एवं उनके वातावरण के बीच होती है। इसके दौरान सजीव एवं उनके वातावरण के बीच आक्सीजन एवं कार्बन डाईऑक्साइड गैस का आदान-प्रदान होता है तथा इस क्रिया द्वारा आक्सीजन गैस वातावरण से सजीवों के श्वसन अंगों में पहुँचती है। आक्सीजन गैस श्वसन अंगों से विसरण द्वारा रक्त में प्रवेश कर जाती है। रक्त परिवहन का माध्यम है जो इस आक्सीजन को शरीर के विभिन्न भागों की कोशिकाओं में पहुँचा देता है। वहाँ इसका उपयोग कोशिकाएँ अपने कोशिकीय श्वसन में करती हैं। श्वसन की क्रिया प्रत्येक जीवित कोशिका के कोशिका द्रव्य (साइटोप्लाज्म) एवं माइटोकाण्ड्रिया में सम्पन्न होती है। श्वसन सम्बन्धित प्रारम्भिक क्रियाएँ साइटोप्लाज्म में होती है तथा शेष क्रियाएँ माइटोकाण्ड्रियाओं में होती हैं। चूँकि क्रिया के अंतिम चरण में ही अधिकांश ऊर्जा उत्पन्न होती हैं। इसलिए माइटोकाण्ड्रिया को कोशिका का श्वसनांग या शक्ति-गृह (पावर हाउस) कहा जाता है। .

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अण्डा

विभिन्न पक्षियों के अण्डे मुर्गी का अंडा (बायें) तथा बटेर का अण्डा (दायें) अण्डा गोल या अण्डाकार जीवित वस्तु है जो बहुत से प्राणियों के मादा द्वारा पैदा की जाती है। अधिकांश जानवरों के अंडों के ऊपर एक कठोर आवरण होता है जो अण्डे की सुरक्षा करता है। यद्यपि अण्डा जीवधारियों द्वारा अपनी संताने पैदा करने का मार्ग है, किन्तु अण्डा खाने के काम भी आता है। पोषक तत्वों की दृष्टि से इसमें प्रोटीन एवं चोलाइन भरपूर मात्रा में पाये जाते हैं। .

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उभयचर

उभयचर वर्ग (Amphibia / एंफ़िबिया) पृष्ठवंशीय प्राणियों का एक बहुत महत्वपूर्ण वर्ग है जो जीववैज्ञानिक वर्गीकरण के अनुसार मत्स्य और सरीसृप वर्गों के बीच की श्रेणी में आता है। इस वर्ग के कुछ जंतु सदा जल पर तथा कुछ जल और थल दोनों पर रहते हैं। ये अनियततापी जंतु हैं। इस वर्ग में ३००० जाति पाए जाते हैं। शरीर पर शल्क, बाल या पंख नहीं होते हैं, परंतु इनकी त्वचा अधिक ग्रंथिमय होने के कारण चिकनी होती है। मेंढक इस वर्ग का एक प्रमुख प्राणि है। यह पृष्ठवंशियों का प्रथम वर्ग है, जिसने जल के बाहर रहने का प्रयास किया था। फलस्वरूप नई परिस्थितियों के अनुकूल इनकी रचना में प्रधानतया तीन प्रकार के अंतर हुए- (१) इनका शारीरिक ढाँचा जल में तैरने के अतिरिक्त थल पर भी रहने के योग्य हुआ। (२) क्लोम दरारों के स्थान पर फेफड़ों का उत्पादन हुआ तथा रक्तपरिवहन में भी संबंधित परिवर्तन हुए। (३) ज्ञानेंद्रियों में यथायोग्य परिवर्तन हुए, जिससे ये प्राणी जल तथा थल दोनों परिस्थितियों का ज्ञान कर सकें। .

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छिपकली

Clockwise from top left: veiled chameleon(''Chamaeleo calyptratus''), rock monitor (''Varanus albigularis''), common blue-tongued skink (''Tiliqua scincoides''), Italian wall lizard (''Podarcis sicula''), giant leaf-tailed gecko (''Uroplatus fimbriatus''), and legless lizard (''Anelytropsis papillosus'') छिपकली स्क्वमाटा जीववैज्ञानिक गण के सरीसृप प्राणियों का एक उपगण है, जिसमें अंटार्कटिका के अलावा लगभग विश्व भर के हर बड़े भू-भाग में मिलने वाली लगभग ६००० ज्ञात जातियाँ शामिल हैं। ध्यान दें कि सर्प भी स्क्वमाटा गण के सदस्य होते हैं और छिपकली व सर्प दोनों एक ही पूर्वज के वंशज हैं लेकिन परिभाषिक रूप से सर्पों को छिपकली नहीं समझा जाता। .

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निवर्तमानआने वाली
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