स्थलीय कछुआ स्थलीय कछुए (Tortoises) उन कछुओं को कहा जाता है जो मुख्य रूप से स्थलीय वातावरणों में अपना जीवन बसर करते हैं। अन्य कछुओं की तरह, स्थलीय कछुए का भी पूरा शरीर कड़े कवच से ढ़का रहता है। इसके शरीर के कवच का ऊपरी भाग कारापेश तथा निचला भाग प्लास्ट्रन कहलाता है। इसके चार पैर होते हैं और प्रत्येक पैरों में पाँच-पाँच नाखून तथा जाल-युक्त ऊँगलियाँ पायी जाती हैं। मादा कछुआ मिट्टी खोदकर उसमें अंडे देती है। अंडो की संख्या १ से लेकर ३० तक हो सकती है। साधारणतः अंडे देने का कार्य रात में होता है। मादा अंडे देने के बाद गड्ढे एवं अंडे को मिट्टी तथा बालू इत्यादि से ढ़क देती है। विभिन्न प्रजातियों के अंडो से बच्चों के निकलने का समय भिन्न-भिन्न होता है। अंडो से बच्चे निकलने में ६० से १२० दिनों तक का समय लगता है। .
कछुए (Turtles) या कर्म टेस्टूडनीज़ नामक सरीसृपों के जीववैज्ञानिक गण के सदस्य होते हैं जो उनके शरीरों के मुख्य भाग को उनकी पसलियों से विकसित हुए ढाल-जैसे कवच से पहचाने जाते हैं। विश्व में स्थलीय कछुओं और जलीय कछुओं दोनों की कई जातियाँ हैं। कछुओं की सबसे पहली जातियाँ आज से १५.७ करोड़ वर्ष पहले उत्पन्न हुई थीं, जो की सर्वप्रथम सर्पों व मगरमच्छों से भी पहले था। इसलिये वैज्ञानिक उन्हें प्राचीनतम सरीसृपों में से एक मानते हैं। कछुओं की कई जातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं लेकिन ३२७ आज भी अस्तित्व में हैं। इनमें से कई जातियाँ ख़तरे में हैं और उनका संरक्षण करना एक चिंता का विषय है। इसकी उम्र 300 साल से अधिक होती है .