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रज्जुकी

सूची रज्जुकी

रज्जुकी (संघ कॉर्डेटा) जीवों का एक समूह है जिसमें कशेरुकी (वर्टिब्रेट) और कई निकट रूप से संबंधित अकशेरुकी (इनवर्टिब्रेट) शामिल हैं। इनका इस संघ मे शामित होना इस आधार पर सिद्ध होता है कि यह जीवन चक्र मे कभी न कभी निम्न संरचनाओं को धारण करते हैं जो हैं, एक पृष्ठ‍रज्जु (नोटोकॉर्ड), एक खोखला पृष्ठीय तंत्रिका कॉर्ड, फैरेंजियल स्लिट एक एंडोस्टाइल और एक पोस्ट-एनल पूंछ। संघ कॉर्डेटा तीन उपसंघों मे विभाजित है: यूरोकॉर्डेटा, जिसका प्रतिनिधित्व ट्युनिकेट्स द्वारा किया जाता है; सेफालोकॉर्डेटा, जिसका प्रतिनिधित्व लैंसलेट्स द्वारा किया जाता है और क्रेनिएटा, जिसमे वर्टिब्रेटा शामिल हैं। हेमीकॉर्डेटा को चौथे उपसंघ के रूप मे प्रस्तुत किया जाता है पर अब इसे आम तौर पर एक अलग संघ के रूप में जाना जाता है। यूरोकॉर्डेट के लार्वा में एक नोटॉकॉर्ड और एक तंत्रिका कॉर्ड पायी जाती है पर वयस्क होने पर यह लुप्त हो जातीं हैं। सेफालोकॉर्डेट एक नोटॉकॉर्ड और एक तंत्रिका कॉर्ड पायी जाती है लेकिन कोई मस्तिष्क या विशेष संवेदना अंग नहीं होता और इनका एक बहुत ही सरल परिसंचरण तंत्र होता है। क्रेनिएट ही वह उपसंघ है जिसके सदस्यों में खोपड़ी मिलती है। इनमे वास्तविक देहगुहा पाई जाती है। इनमे जनन स्तर सदैव त्री स्तरीय पाया जाता है। सामान्यत लैंगिक जनन पाया जाता है। सामान्यत प्रत्यक्ष विकास होता है। इनमे RBC उपस्थित होती है। इनमे द्वीपार्शविय सममिती पाई जाती है। इसके जंतु अधिक विकसित होते है। श्रेणी:जीव विज्ञान *.

8 संबंधों: परिसंचरण तंत्र, प्राणी, मस्तिष्क, लैंगिक जनन, संघ (जीवविज्ञान), विकास, खोपड़ी, कशेरुकी प्राणी

परिसंचरण तंत्र

परिसंचरण तंत्र की खोज 1628 ईसवी में विलियम हार्वे ने किया था। मानव का परिसंचरण तंत्र; यहाँ लाल रंग आक्सीजनयुक्त रक्त का सूचक है तथा नीला रंग आक्सीजनरहित रक्त का सूचक है। परिसंचरण तंत्र या वाहिकातंत्र (circulatory system) अंगों का वह समुच्चय है जो शरीर की कोशिकाओं के बीच पोषक तत्वों का यातायात करता है। इससे रोगों से शरीर की रक्षा होती है तथा शरीर का ताप एवं pH स्थिर बना रहता है। अमिनो अम्ल, विद्युत अपघट्य, गैसें, हार्मोन, रक्त कोशिकाएँ तथा नाइट्रोजन के अपशिष्ट उत्पाद आदि परिसंचरण तंत्र द्वारा यातायात किये जाते हैं। केवल रक्त-वितरण नेटवर्क को ही कुछ लोग वाहिका तंत्र मानते हैं जबकि अन्य लोग लसीका तंत्र को भी इसी में सम्मिलित करते हैं। मानव एवं अन्य कशेरुक प्राणियों के परिसंचरण तंत्र, 'बन्द परिसंचरण तंत्र' हैं (इसका मतलब है कि रक्त कभी भी धमनियों, शिराओं, एवं केशिकाओं के जाल से बाहर नहीं जाता)। अकशेरुकों के परिसंचरण तंत्र, 'खुले परिसंचरण तंत्र' हैं। बहुत से तुच्छ (primitive animal) में परिसंचरन तंत्र होता ही नहीं। किन्तु सभी प्राणियों का लसीका तंत्र एक खुला तंत्र होता है। वाहिकातंत्र हृदय, धमनियों तथा शिराओं के समूह का नाम है। धमनियों और शिराओं के बीच केशिकाओं का विस्तृत समूह भी इसी तंत्र का भाग है। इस तंत्र का काम शरीर के प्रत्येक भाग में रुधिर को पहुँचाना है, जिससे उसे पोषण और ऑक्सीजन प्राप्त हो सकें। इस तंत्र का केंद्र हृदय है, जो रुधिर को निरंतर पंप करता रहता है और धमनियाँ वे वाहिकाएँ हैं जिनमें होकर रुधिर अंगों में पहुँचता है तथा केशिकाओं द्वारा वितरित होता है। केशिकाओं के रुधिर से पोषण और ऑक्सीजन ऊतकों में चले जाते हैं और इस पोषण और ऑक्सीजन से विहीन रुधिर को वे शिरा में लौटाकर हृदय में लाती हैं जो उसको फुप्फुस में ऑक्सीजन लेने के लिए भेज देता है। आंत्र से अवशोषित होकर पोषक अवयव भी इस रुधिर में मिल जाते हैं और फिर से इस रुधिर को अंगों में ऑक्सीजन तथा पोषण पहुँचाने के लिए धमनियों द्वारा भेज दिया जाता है। .

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प्राणी

प्राणी या जंतु या जानवर 'ऐनिमेलिया' (Animalia) या मेटाज़ोआ (Metazoa) जगत के बहुकोशिकीय और सुकेंद्रिक जीवों का एक मुख्य समूह है। पैदा होने के बाद जैसे-जैसे कोई प्राणी बड़ा होता है उसकी शारीरिक योजना निर्धारित रूप से विकसित होती जाती है, हालांकि कुछ प्राणी जीवन में आगे जाकर कायान्तरण (metamorphosis) की प्रकिया से गुज़रते हैं। अधिकांश जंतु गतिशील होते हैं, अर्थात अपने आप और स्वतंत्र रूप से गति कर सकते हैं। ज्यादातर जंतु परपोषी भी होते हैं, अर्थात वे जीने के लिए दूसरे जंतु पर निर्भर रहते हैं। अधिकतम ज्ञात जंतु संघ 542 करोड़ साल पहले कैम्ब्रियन विस्फोट के दौरान जीवाश्म रिकॉर्ड में समुद्री प्रजातियों के रूप में प्रकट हुए। .

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मस्तिष्क

मानव मस्तिष्क मस्तिष्क जन्तुओं के केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का नियंत्रण केन्द्र है। यह उनके आचरणों का नियमन एंव नियंत्रण करता है। स्तनधारी प्राणियों में मस्तिष्क सिर में स्थित होता है तथा खोपड़ी द्वारा सुरक्षित रहता है। यह मुख्य ज्ञानेन्द्रियों, आँख, नाक, जीभ और कान से जुड़ा हुआ, उनके करीब ही स्थित होता है। मस्तिष्क सभी रीढ़धारी प्राणियों में होता है परंतु अमेरूदण्डी प्राणियों में यह केन्द्रीय मस्तिष्क या स्वतंत्र गैंगलिया के रूप में होता है। कुछ जीवों जैसे निडारिया एंव तारा मछली में यह केन्द्रीभूत न होकर शरीर में यत्र तत्र फैला रहता है, जबकि कुछ प्राणियों जैसे स्पंज में तो मस्तिष्क होता ही नही है। उच्च श्रेणी के प्राणियों जैसे मानव में मस्तिष्क अत्यंत जटिल होते हैं। मानव मस्तिष्क में लगभग १ अरब (१,००,००,००,०००) तंत्रिका कोशिकाएं होती है, जिनमें से प्रत्येक अन्य तंत्रिका कोशिकाओं से १० हजार (१०,०००) से भी अधिक संयोग स्थापित करती हैं। मस्तिष्क सबसे जटिल अंग है। मस्तिष्क के द्वारा शरीर के विभिन्न अंगो के कार्यों का नियंत्रण एवं नियमन होता है। अतः मस्तिष्क को शरीर का मालिक अंग कहते हैं। इसका मुख्य कार्य ज्ञान, बुद्धि, तर्कशक्ति, स्मरण, विचार निर्णय, व्यक्तित्व आदि का नियंत्रण एवं नियमन करना है। तंत्रिका विज्ञान का क्षेत्र पूरे विश्व में बहुत तेजी से विकसित हो रहा है। बडे-बड़े तंत्रिकीय रोगों से निपटने के लिए आण्विक, कोशिकीय, आनुवंशिक एवं व्यवहारिक स्तरों पर मस्तिष्क की क्रिया के संदर्भ में समग्र क्षेत्र पर विचार करने की आवश्यकता को पूरी तरह महसूस किया गया है। एक नये अध्ययन में निष्कर्ष निकाला गया है कि मस्तिष्क के आकार से व्यक्तित्व की झलक मिल सकती है। वास्तव में बच्चों का जन्म एक अलग व्यक्तित्व के रूप में होता है और जैसे जैसे उनके मस्तिष्क का विकास होता है उसके अनुरुप उनका व्यक्तित्व भी तैयार होता है। मस्तिष्क (Brain), खोपड़ी (Skull) में स्थित है। यह चेतना (consciousness) और स्मृति (memory) का स्थान है। सभी ज्ञानेंद्रियों - नेत्र, कर्ण, नासा, जिह्रा तथा त्वचा - से आवेग यहीं पर आते हैं, जिनको समझना अर्थात् ज्ञान प्राप्त करना मस्तिष्क का काम्र है। पेशियों के संकुचन से गति करवाने के लिये आवेगों को तंत्रिकासूत्रों द्वारा भेजने तथा उन क्रियाओं का नियमन करने के मुख्य केंद्र मस्तिष्क में हैं, यद्यपि ये क्रियाएँ मेरूरज्जु में स्थित भिन्न केन्द्रो से होती रहती हैं। अनुभव से प्राप्त हुए ज्ञान को सग्रह करने, विचारने तथा विचार करके निष्कर्ष निकालने का काम भी इसी अंग का है। .

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लैंगिक जनन

फूल, पौधों का जनन अंग प्रजनन की वह क्रिया जिसमें दो युग्मकों के मिलने से बनी रचना युग्मज (जाइगोट) द्वारा नये जीव की उत्पत्ति होती है, लैंगिक जनन (sexual reproduction) कहलाती है। यदि युग्मक समान आकृति वाले होते हैं तो उसे समयुग्मक कहते हैं। समयुग्मकों के संयोग को संयुग्मन कहते हैं। युग्मनज या तो सीधे पौधे को जन्म देता है या विरामी युग्मनज बन जाता है जिसे जाइगोस्पोर कहते हैं। इस प्रकार के लैंगिक जनन को 'समयुग्मी' कहते हैं। लैंगिक जनन की प्रक्रिया के दो मुख्य चरण हैं - अर्धसूत्री विभाजन तथा निषेचन (fertilization)। लैंगिक जनन की उत्पत्ति कैसे हुई, यह एक पहेली है। इस विषय में कई व्याख्याएँ प्रस्तुत की गईं हैं कि अलैंगिक जनन से लैंगिक जनन क्यों विकसित हुआ। .

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संघ (जीवविज्ञान)

वर्ग आते हैं संघ (अंग्रेज़ी: phylum, फ़ायलम) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में जीवों के वर्गीकरण की एक श्रेणी होती है। आधुनिक जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में यह श्रेणी वर्गों (क्लासों) से ऊपर और जगत (किंगडम) के नीचे आता है, यानि एक संघ में बहुत से वर्ग होते हैं और बहुत से संघों को एक जीववैज्ञानिक जगत में संगठित किया जाता है। ध्यान दें कि हर जीववैज्ञानिक संघ में बहुत सी भिन्न जीवों की जातियाँ-प्रजातियाँ सम्मिलित होती हैं।, David E. Fastovsky, David B. Weishampel, pp.

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विकास

विकास नाम से कई लेख हैं:-.

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खोपड़ी

मानव की खोपड़ी खोपड़ी कई जन्तुओं के सिर में पाए जानी वाली रचना है। इसके द्वारा मस्तिष्क की सुरक्षा होती है। श्रेणी:अंग श्रेणी:चपटी हड्डियाँ.

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कशेरुकी प्राणी

कशेरुकी जन्तु कशेरुकी या कशेरुकदंडी (वर्टेब्रेट, Vertebrate) प्राणिसाम्राज्य के कॉरडेटा (Chordata) समुदाय का सबसे बड़ा उपसमुदाय है। जिसके सदस्यों में रीढ़ की हड्डियाँ (backbones) या पृष्ठवंश (spinal comumns) विद्यमान रहते हैं। इस समुदाय में इस समय लगभग 58,000 प्रजातियाँ वर्णित हैं। इसमें बिना जबड़े वाली मछलियां, शार्क, रे, उभयचर, सरीसृप, स्तनपोषी तथा चिड़ियाँ शामिल हैं। ज्ञात जन्तुओं में लगभग 5% कशेरूकी हैं और शेष अकेशेरूकी। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

Chordate, मेरूदण्डी प्राणियों, कॉर्डेटा

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