सामग्री की तालिका
2 संबंधों: कला (तरंग), उच्चिष्ठ और निम्निष्ठ।
- तरंग यान्त्रिकी
- ध्वनि
कला (तरंग)
दो तरंगों के बीच कलान्तर किसी तरंग के सन्दर्भ में, कला (फेज) वह समयावधि या दूरी है जो उस तरंग के किसी सन्दर्भ बिन्दु के सापेक्ष अभिव्यक्त की गयी हो। किसी बिन्दु की कला से पता चलता है कि वह बिन्दु उस तरंग के ग्राफ में कहाँ स्थित होगी। प्रायः कला को उस तरंग के आवर्तकाल के अनुपात (अनुपात) के रूप में व्यक्त किया जाता है और प्रायः उस तरंग का वह बिन्दु सन्दर्भ के रूप में लिया जाता है जिस पर विस्थापन (या विद्युत क्षेत्र, या चुम्बकीय क्षेत्र या दाब) शून्य हो। तरंग के एक आवर्तकाल को ३६० डिग्री के तुल्य मानते हुए कला को प्रायः अंशों (डिग्री) में भी व्यक्त करते हैं। उदाहरण के लिये तरंग के किसी बिन्दु की कला ३० डिग्री होने का अर्थ है कि वह बिन्दु सन्दर्भ बिन्दु से ३०/३६० .
देखें आयाम और कला (तरंग)
उच्चिष्ठ और निम्निष्ठ
गणित में किसी फलन के सबसे अधिक और सबसे कम मान को उस फलन का उच्चिष्ट और निम्निष्ट (maximum and minimum; बहुवचन: maxima and minima) कहते हैं। उच्चिष्ट और निम्निष्ट को सम्मिलित रूप से चरम (extrema; एकवचन: extremum) कहते हैं। ये उच्चिष्ट और निम्निष्ट फलन के किसी सीमित क्षेत्र में हो सकते हैं अथवा उस फलन के सम्पूर्ण डोमेन में। फलन के किसी सीमित क्षेत्र में स्थित उच्चिष्ट और निम्निष्ट को 'स्थानीय चरम' (local or relative extremum) कहते हैं जबकि फलन के सम्पूर्ण डोमेन में फलन का जो सबसे अधिक/कम मान हो उसे 'ग्लोबल चरम' (global or absolute extremum) कहते हैं। पार्श्व चित्र में लोबल और लोकल चरम मान दिखाये गये हैं। इससे अधिक व्यापक रूप से कहें तो, किसी समुच्चय का उच्चिष्ट और निम्निष्ट, उस समुच्चय के सदस्यों में सबसे अधिक और सबसे कम मान वाले सदस्य होते हैं। फलनों के चरम मानों को निकालना ही इष्टतमकरण (optimization) का उद्देश्य है। .
देखें आयाम और उच्चिष्ठ और निम्निष्ठ
यह भी देखें
तरंग यान्त्रिकी
- अनुदैर्घ्य तरंग
- अनुप्रस्थ तरंग
- आयाम
- कला (तरंग)
- डॉप्लर प्रभाव
- दो झिरी प्रयोग
- व्यतिकरण (तरंगों का)
- श्रोडिंगर समीकरण
- हाइगेंस का सिद्धांत
ध्वनि
- अनुरणन
- अपश्रव्य
- आयाम
- डॉप्लर प्रभाव
- तंतु कम्पन
- तारत्व
- ध्वनि
- ध्वनि का वेग
- ध्वनिकी
- पराध्वनिक गति
- परावर्तन (भौतिकी)
- पराश्रव्य
- विस्पन्द
- संगीत
- सरल आवर्ती दोलक
- सिगनल-रव अनुपात
- स्वर-संगति
- स्वरित्र
आयामों के रूप में भी जाना जाता है।