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असमताओं की सूची

सूची असमताओं की सूची

इस पृष्ठ पर ऐसी गणितीय असमिकाओं की सूची दी गयी है जिन पर विकिपीडिया पर लेख हैं। .

10 संबंधों: प्रायिकता, माध्य, रैखिक बीजगणित, संस्थितिविज्ञान, संख्या सिद्धान्त, ज्यामिति, गणितीय विश्लेषण, क्रमचय-संचय, असमिका, अवकल समीकरण

प्रायिकता

किसी घटना के होने की सम्भावना (likelihood or chance) को प्रायिकता या संभाव्यता (Probability) कहते हैं। सांख्यिकी, गणित, विज्ञान, दर्शनशास्त्र आदि क्षेत्रों में इसका बहुतायत से प्रयोग होता है। .

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माध्य

गणित में माध्य (mean) के अनेक परिभाषायें है, जो सन्दर्भ पर निर्भर करतीं हैं। .

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रैखिक बीजगणित

रैखिक बीजगणित (Linear algebra) गणित की एक शाखा है जो सदिश आकाश (वेक्टर स्पेस) तथा उन आकाशों के बीच रैखिक प्रतिचित्रण से सम्बन्धित है। रैखिक बीजगणित का आरम्भ अनेकों अज्ञात राशियों वाले युगपत समीकरणों के हल से हुआ। ऐसे समीकरण प्रायः मैट्रिक्स और सदिशों का उपयोग करके निरूपित किए जाते हैं। शुद्ध गणित और अनुप्रयुक्त गणित- दोनों में ही रैखिक बीजगणित की केन्द्रीय भूमिका है। कैलकुलस और रैखिक गणित के सम्मिलित प्रयोग से रैखिक अवकल समीकरण हल किए जाते हैं। रैखिक बीजगणित की तकनीकें (विधियाँ) वैश्लेषिक ज्यामिति, इंजीनियरी, भौतिकी, प्राकृतिक विज्ञान, संगणक विज्ञान, कम्प्यूतर एनिमेशन और सामाजिक विज्ञान (मुखयतः अर्थशास्त्र) में प्रयुक्त होती हैं। रैखिक बीजगणित के सिद्धान्त और विधियाँ अत्यन्त विकसित हैं। इसी लिए अरैखिक गणितीय मॉडलों को भी कभी-कभी सन्निकट रैखिक मॉडलों से निरूपित कर दिया जाता है जिससे उन्हें हल करने में सुविधा हो जाती है। श्रेणी:रैखिक बीजगणित.

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संस्थितिविज्ञान

मोबियस स्ट्रिप (Möbius strip) एक ऐसी वस्तु है जिसमें केवल एक तल एवं एक ही कोर (one surface and one edge) है। ऐसे आकारों का अध्ययन 'टोपोलॉजी' के अन्तर्गत किया जाता है। एक कप से बदललते हुए टोरस का सृजन संस्थितिविज्ञान या टोपोलॉजी गणित का बड़ा क्षेत्र है। इसे ज्यामिति के विस्तार के रूप में देखा जाता है। इसमें उन गुणों का अध्ययन किया जाता है जो वस्तुओं को सतत रूप से विकृत करने पर उनमें बने रहे हैं। उदाहरण के लिये किसी चीज को बिना फाड़े या साटे हुए तानने पर आने वाली विकृतियाँ। संस्थिति का विकास ज्यामिति तथा समुच्चय सिद्धान्त से हुआ है। 'टोपोलॉजी' शब्द से दो चीजों का बोध होता है: संस्थितिविज्ञान एक विस्तृत क्षेत्र वाला विषय है। इसके कई उपक्षेत्र हैं। इसके कुछ प्रमुख क्षेत्र निम्नांकित हैं.

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संख्या सिद्धान्त

यह लेख संख्या पद्धति (number system) के बारे में नहीं है। ---- लेमर चलनी (A Lehmer sieve), जो 'आदिम कम्प्यूटर' कही जा सकती है। किसी समय इसी का उपयोग करके अभाज्य संख्याएँ प्राप्त की जातीं थीं तथा सरल डायोफैण्टीय समीकरण हल किए जाते थे। संख्या सिद्धांत (Number theory) सामान्यत: सभी प्रकार की संख्याओं के गुणधर्म का अध्ययन करता है किन्तु विशेषत: यह प्राकृतिक संख्याओं 1, 2, 3....के गुणधर्मों का अध्ययन करता है। पूर्णता के विचार से इन संख्याओं में हम ऋण संख्याओं तथा शून्य को भी सम्मिलित कर लेते हैं। जब तक निश्चित रूप से न कहा जाए, तब तक संख्या से कोई प्राकृतिक संख्या, धन, या ऋण पूर्ण संख्या या शून्य समझना चाहिए। संख्यासिद्धांत को गाउस (Gauss) 'गणित की रानी' कहता था। संख्या सिद्धान्त, शुद्ध गणित की शाखा है। 'संख्या सिद्धान्त' के लिये "अंकगणित" या "उच्च अंकगणित" शब्दों का भी प्रयोग किया जता है। ये शब्द अपेक्षाकृत पुराने हैं और अब बहुत कम प्रयोग किये जाते हैं। .

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ज्यामिति

ब्रह्मगुप्त ब्रह्मगुप्त का प्रमेय, इसके अनुसार ''AF'' .

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गणितीय विश्लेषण

गणितीय विश्लेषण (Mathematical analysis) शुद्ध गणित की एक शाखा है। इसके अन्तर्गत अवकलन, समाकलन, सीमा, अनन्त श्रेणी तथा वैश्लेषिक फलनों (analytic functions) के सिद्धान्त आदि आते हैं। ये सिद्धान्त प्रायः वास्तविक संख्याओं, समिश्र संख्याओं तथा वास्तविक एवं समिश्र फलनों के सन्दर्भ में अध्ययन किए जाते हैं। विश्लेषण को परम्परागत रूप से ज्यामिति से अलग गणित की श्रेणी में रखा जाता रहा है। .

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क्रमचय-संचय

दोहराव के साथ क्रमपरिवर्तन। क्रमचय-संचय (Combinatorics) गणित की शाखा है जिसमें गिनने योग्य विवर्त (discrete) संरचनाओं (structures) का अध्ययन किया जाता है। शुद्ध गणित, बीजगणित, प्रायिकता सिद्धांत, टोपोलोजी तथा ज्यामिति आदि गणित के विभिन्न क्षेत्रों में क्रमचय-संचय से संबन्धित समस्याये पैदा होतीं हैं। इसके अलावा क्रमचय-संचय का उपयोग इष्टतमीकरण (आप्टिमाइजेशन), संगणक विज्ञान, एर्गोडिक सिद्धांत (ergodic theory) तथा सांख्यिकीय भौतिकी में भी होता है। ग्राफ सिद्धांत, क्रमचय-संचय के सबसे पुराने एवं सर्वाधिक प्रयुक्त भागों में से है। ऐतिहासिक रूप से क्रमचय-संचय के बहुत से प्रश्न विलगित रूप में उठते रहे थे और उनके तदर्थ हल प्रस्तुत किये जाते रहे। किन्तु बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में शक्तिशाली एवं सामान्य सैद्धांतिक विधियाँ विकसित हुईं और क्रमचय-संचय गणित की स्वतंत्र शाखा बनकर उभरा। .

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असमिका

रैखिक प्रोग्रामन (linear programming) में सम्भावित क्षेत्र (feasible region) असमिकाओं के एक समूह द्वारा व्यक्त किया जाता है। गणित में असमिका या असमता (Inequality) ऐसे कथन को कहते हैं जो दो वस्तुओं का आपेक्षिक आकार व्यक्त करता है। जैसे ७ > ५.

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अवकल समीकरण

अवकल समीकरण (डिफरेंशियल ईक्वेशंस) उन संबंधों को कहते हैं जिनमें स्वतंत्र चर तथा अज्ञात परतंत्र चर के साथ-साथ उस परतंत्र चर के एक या अधिक अवकल गुणांक (डिफ़रेंशियल कोइफ़िशेंट्स) हों। यदि इसमें एक परतंत्र चर तथा एक ही स्वतंत्र चर भी हो तो संबंध को साधारण (ऑर्डिनरी) अवकल समीकरण कहते हैं। जब परतंत्र चल तो एक परंतु स्वतंत्र चर अनेक हों तो परतंत्र चर के खंडावकल गुणक (partial differentials) होते हैं। जब ये उपस्थित रहते हैं तब संबंध को आंशिक (पार्शियल) अवकल समीकरण कहते हैं। परतंत्र चर को स्वतंत्र चर के पर्दो में व्यंजित करने को अवकल समीकरण का हल करना कहा जाता है। यदि अवकल समीकरण में nवीं कक्षा (ऑर्डर) का अवकल गुणक हो और अधिक का नहीं, तो अवकल समीकरण nवीं कक्षा का कहलाता है। उच्चतम कक्षा के अवकल गुणक का घात (पॉवर) ही अवकल समीकरण का घात कहलाता है। घात ज्ञात करने के पहले समीकरण को भिन्न तथा करणी चिंहों से इस प्रकार मुक्त कर लेना चाहिए कि उसमें अवकल गुणकों पर कोई भिन्नात्मक घात न हो। अवकल समीकरण का अनुकलन सरल नहीं है। अभी तक प्रथम कक्षा के वे अवकल समीकरण भी पूर्ण रूप से हल नहीं हो पाए हैं। कुछ अवस्थाओं में अनुकलन संभव हैं, जिनका ज्ञान इस विषय की भिन्न-भिन्न पुस्तकों से प्राप्त हो सकता है। अनुकलन करने की विधियाँ सांकेतिक रूप में यहाँ दी जाती हैं। प्रयुक्त गणित, भौतिक विज्ञान तथा विज्ञान की अन्य शाखाओं में भौतिक राशियों को समय, स्थान, ताप इत्यादि स्वतंत्र चलों के फलनों में तुरंत प्रकट करना प्राय: कठिन हो जाता है। परंतु हम उनकी वृद्धि की दर तथा उसके अवकल गुणकों में कोई संबंध बहुधा बड़ी सुगमता से पा सकते हैं। इस प्रकार ऐसे अवकल समीकरण प्राप्त होते हैं जिन्हें पूर्वोक्त राशियाँ संतुष्ट करती हैं। इन्हें हल करना उन राशियों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए आवश्यक होता है। इसलिए विज्ञान की उन्नति बहुत अंश तक अवकल समीकरण की प्रगति पर निर्भर है। .

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