सामग्री की तालिका
26 संबंधों: द्विपद गुणांक, प्रायिकता, प्रायिकता सिद्धांत, बीजगणित, भारत, भास्कराचार्य, महावीर (गणितज्ञ), मेरु प्रस्तार, लीलावती, शुद्ध गणित, सांयोगिकी का इतिहास, सांख्यिकीय भौतिकी, संचय (गणित), संचयिक विश्लेषण, संस्थितिविज्ञान, संगोष्ठी, सुश्रुत, सुश्रुत संहिता, ज्यामिति, विवर्त, गणित, गणितसारसंग्रह, ग्राफ़ सिद्धान्त, इष्टतमकरण, कम्प्यूटर विज्ञान, क्रमचय।
द्विपद गुणांक
द्विपद गुणांकों को मेरुप्रस्तार या पास्कल त्रिकोण के रूप में व्यवस्थित किया जा सकता है। गणित में, द्विपद प्रमेय के प्रसार में जो धनात्मक पूर्णांक आते हैं, उन्हें द्विपद गुणांक (binomial coefficient) कहते हैं। उदाहरण के लिये, 2 ≤ n ≤ 5 के लिये द्विपद प्रमेय का स्वरूप इस प्रकार है: अतः .
देखें क्रमचय-संचय और द्विपद गुणांक
प्रायिकता
किसी घटना के होने की सम्भावना (likelihood or chance) को प्रायिकता या संभाव्यता (Probability) कहते हैं। सांख्यिकी, गणित, विज्ञान, दर्शनशास्त्र आदि क्षेत्रों में इसका बहुतायत से प्रयोग होता है। .
देखें क्रमचय-संचय और प्रायिकता
प्रायिकता सिद्धांत
प्रायिकता सिद्धांत (Probability theory) गणित की शाखा है जो यादृच्छ (रैंडम) परिघटनाओं के विश्लेषण से संबन्धित है। .
देखें क्रमचय-संचय और प्रायिकता सिद्धांत
बीजगणित
बीजगणित (संस्कृत ग्रन्थ) भी देखें। ---- आर्यभट बीजगणित (algebra) गणित की वह शाखा जिसमें संख्याओं के स्थान पर चिन्हों का प्रयोग किया जाता है। बीजगणित चर तथा अचर राशियों के समीकरण को हल करने तथा चर राशियों के मान निकालने पर आधारित है। बीजगणित के विकास के फलस्वरूप निर्देशांक ज्यामिति व कैलकुलस का विकास हुआ जिससे गणित की उपयोगिता बहुत बढ़ गयी। इससे विज्ञान और तकनीकी के विकास को गति मिली। महान गणितज्ञ भास्कराचार्य द्वितीय ने कहा है - अर्थात् मंदबुद्धि के लोग व्यक्ति गणित (अंकगणित) की सहायता से जो प्रश्न हल नहीं कर पाते हैं, वे प्रश्न अव्यक्त गणित (बीजगणित) की सहायता से हल कर सकते हैं। दूसरे शब्दों में, बीजगणित से अंकगणित की कठिन समस्याओं का हल सरल हो जाता है। बीजगणित से साधारणतः तात्पर्य उस विज्ञान से होता है, जिसमें संख्याओं को अक्षरों द्वारा निरूपित किया जाता है। परंतु संक्रिया चिह्न वही रहते हैं, जिनका प्रयोग अंकगणित में होता है। मान लें कि हमें लिखना है कि किसी आयत का क्षेत्रफल उसकी लंबाई तथा चौड़ाई के गुणनफल के समान होता है तो हम इस तथ्य को निमन प्रकार निरूपित करेंगे— बीजगणिति के आधुनिक संकेतवाद का विकास कुछ शताब्दी पूर्व ही प्रारंभ हुआ है; परंतु समीकरणों के साधन की समस्या बहुत पुरानी है। ईसा से 2000 वर्ष पूर्व लोग अटकल लगाकर समीकरणों को हल करते थे। ईसा से 300 वर्ष पूर्व तक हमारे पूर्वज समीकरणों को शब्दों में लिखने लगे थे और ज्यामिति विधि द्वारा उनके हल ज्ञात कर लेते थे। .
देखें क्रमचय-संचय और बीजगणित
भारत
भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .
देखें क्रमचय-संचय और भारत
भास्कराचार्य
---- भास्कराचार्य या भाष्कर द्वितीय (1114 – 1185) प्राचीन भारत के एक प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं ज्योतिषी थे। इनके द्वारा रचित मुख्य ग्रन्थ सिद्धान्त शिरोमणि है जिसमें लीलावती, बीजगणित, ग्रहगणित तथा गोलाध्याय नामक चार भाग हैं। ये चार भाग क्रमशः अंकगणित, बीजगणित, ग्रहों की गति से सम्बन्धित गणित तथा गोले से सम्बन्धित हैं। आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्य ने उजागर कर दिया था। भास्कराचार्य ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस कारण आकाशीय पिण्ड पृथ्वी पर गिरते हैं’। उन्होने करणकौतूहल नामक एक दूसरे ग्रन्थ की भी रचना की थी। ये अपने समय के सुप्रसिद्ध गणितज्ञ थे। कथित रूप से यह उज्जैन की वेधशाला के अध्यक्ष भी थे। उन्हें मध्यकालीन भारत का सर्वश्रेष्ठ गणितज्ञ माना जाता है। भास्कराचार्य के जीवन के बारे में विस्तृत जानकारी नहीं मिलती है। कुछ–कुछ जानकारी उनके श्लोकों से मिलती हैं। निम्नलिखित श्लोक के अनुसार भास्कराचार्य का जन्म विज्जडविड नामक गाँव में हुआ था जो सहयाद्रि पहाड़ियों में स्थित है। इस श्लोक के अनुसार भास्कराचार्य शांडिल्य गोत्र के थे और सह्याद्रि क्षेत्र के विज्जलविड नामक स्थान के निवासी थे। लेकिन विद्वान इस विज्जलविड ग्राम की भौगोलिक स्थिति का प्रामाणिक निर्धारण नहीं कर पाए हैं। डॉ.
देखें क्रमचय-संचय और भास्कराचार्य
महावीर (गणितज्ञ)
महावीर (या महावीराचार्य) नौवीं शती के भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। वे गुलबर्ग के निवासी थे। वे जैन धर्म के अनुयायी थे। उन्होने क्रमचय-संचय (कम्बिनेटोरिक्स) पर बहुत उल्लेखनीय कार्य किये तथा विश्व में सबसे पहले क्रमचयों एवं संचयों (कंबिनेशन्स) की संख्या निकालने का सामान्यीकृत सूत्र प्रस्तुत किया। वे अमोघवर्ष प्रथम नामक महान राष्ट्रकूट राजा के आश्रय में रहे। उन्होने गणितसारसंग्रह नामक गणित ग्रन्थ की रचना की जिसमें बीजगणित एवं ज्यामिति के बहुत से विषयों (टॉपिक्स) की चर्चा है। उनके इस ग्रंथ का पावुलूरि मल्लन ने तेलुगू में 'सारसंग्रह गणितम्' नाम से अनुवाद किया। महावीर ने गणित के महत्व के बारे में कितनी महान बात कही है- .
देखें क्रमचय-संचय और महावीर (गणितज्ञ)
मेरु प्रस्तार
pascal triangleगणित में, मेरुप्रस्तार या हलायुध त्रिकोण या पास्कल त्रिकोण (Pascal's triangle) द्विपद गुणांकों को त्रिभुज के रूप में प्रस्तुत करने से बनता है। पश्चिमी जगत में इसका नाम फ्रांसीसी गणितज्ञ ब्लेज़ पास्कल के नाम पर रखा गया है। किन्तु पास्कल से पहले अनेक गणितज्ञों ने इसका अध्ययन किया है, उदाहरण के लिये भारत के पिंगलाचार्य, परसिया, चीन, जर्मनी आदि के गतिज्ञ। मेरु प्रस्तार की छः पंक्तियां मेरु प्रस्तार का सबसे पहला वर्णन पिंगल के छन्दशास्त्र में है। जनश्रुति के अनुसार पिंगल पाणिनि के अनुज थे। इनका काल ४०० ईपू से २०० ईपू॰ अनुमानित है। छन्दों के विभेद को वर्णित करने वाला 'मेरुप्रस्तार' (मेरु पर्वत की सीढ़ी) पास्कल (Blaise Pascal 1623-1662) के त्रिभुज से तुलनीय बनता है। पिंगल द्वारा दिये गये मेरुप्रस्तार (Pyramidal expansion) नियम की व्याख्या हलायुध ने अपने मृतसंंजीवनी में इस प्रकार की है- मेरु प्रस्तार (पास्कल त्रिकोण) की निर्माण विधि .
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लीलावती
लीलावती, भारतीय गणितज्ञ भास्कर द्वितीय द्वारा सन ११५० ईस्वी में संस्कृत में रचित, गणित और खगोल शास्त्र का एक प्राचीन ग्रन्थ है, साथ ही यह सिद्धान्त शिरोमणि का एक अंग भी है। लीलावती में अंकगणित का विवेचन किया गया है। 'लीलावती', भास्कराचार्य की पुत्री का नाम था। इस ग्रन्थ में पाटीगणित (अंकगणित), बीजगणित और ज्यामिति के प्रश्न एवं उनके उत्तर हैं। प्रश्न प्रायः लीलावती को सम्बोधित करके पूछे गये हैं। किसी गणितीय विषय (प्रकरण) की चर्चा करने के बाद लीलावती से एक प्रश्न पूछते हैं। उदाहरण के लिये निम्नलिखित श्लोक देखिये- .
देखें क्रमचय-संचय और लीलावती
शुद्ध गणित
मोटे तौर पर, जो गणित अनुप्रयोग की चिन्ता किये बिना विकसित किया गया हो उसे शुद्ध गणित (pure mathematics) कहते हैं। विश्लेषणात्मक जटिलता (गहराई) और अमूर्तीकरण (abstraction) की सुन्दरता इसकी प्रमुख विशेषता है। अट्ठारहवीं शती से इस क्षेत्र में काफी काम हुए हैं। .
देखें क्रमचय-संचय और शुद्ध गणित
सांयोगिकी का इतिहास
सांयोजिकी (combinatorics) पर सबसे पुराना चिन्तन भारतीय मनीषियों द्वारा किया गया। भगवती सूत्र नामक जैन ग्रंथ में सांयोजिकी पर एक प्रश्न है। इसके उपरान्त पिंगल ने छंदशास्त्र में सांयोजिकी का सुन्दर प्रयोग किया है। महान गणितज्ञ महावीर और ब्रह्मगुप्त ने भी इस विषय पर बहुत काम किया है। यूरोप में चौदहवीं शताब्दी में इस क्षेत्र में काम आरम्भ हुआ जिसमें फिबोनाकी (Leonardo Fibonacci) आदि ने अग्रणी भूमिका निभाई। .
देखें क्रमचय-संचय और सांयोगिकी का इतिहास
सांख्यिकीय भौतिकी
सांख्यिकीय भौतिकी, भौतिकी की वह शाखा है जिसमें भौतिक समस्याओं के समाधान के लिये प्रायिकता सिद्धांत एवं सांख्यिकी का उपयोगकिया जाता है। इसके द्वारा अनेकानेक क्षेत्रों का वर्णन किया जा सकता है जो मूलतः स्टॉकैस्टिक (stochastic) प्रकृति के होते हैं। श्रेणी:सांख्यिकीय यांत्रिकी.
देखें क्रमचय-संचय और सांख्यिकीय भौतिकी
संचय (गणित)
गणित में किसी समुच्चय (समूह) से कुछ वस्तुओं का चयन करने के तरीकों का अध्ययन एवं उनकी की संख्या संचय या कंबिनेशन कहलाती है। संचय में चयन की गयी वस्तुओं के क्रम का महत्व नहीं होता अथवा चयनित वस्तुओं के क्रमपरिवर्तन से बनी नयी 'चीज' कार्यात्मक रूप से बिल्कुल वही होती है जो क्रमपरिवर्तन के पहले थी। दूसरे शब्दों में, यदि कुछ वस्तुएं दी गई हैं तो उन वस्तुओ में से कुछ या सभी वस्तुओ को एक साथ लेकर बनाए जाने वाले विभिन्न समूहों को संचय कहते हैं। छोटी संख्याओं से संबन्धित संचयों की संख्या की गिनती करना संभव है। उदाहरण के लिये तीन फल - आम, पपीता और केला दिये हो तो इनसे कोई दो फल चुनने के तीन तरीके हैं (आम और पपीता; पपीता और केला; आम और केला) किन्तु बड़ी संख्याओं के होने की स्थिति में निम्नलिखित सूत्र प्रयोग किया जाता है-.
देखें क्रमचय-संचय और संचय (गणित)
संचयिक विश्लेषण
यदि ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाए, तो संचयिक विश्लेषण (Combinatinal Analysis) के अंतर्गत बहुत से विषय आते हैं, जैसे सारणिक (Determinants), प्रायिकता (Probability), स्थलाकृति विज्ञान (Topology) आदि किंतु अब इनमें से प्रत्येक विषय ने अपने लिए पृथक् स्थान बना लिया है। अब तो संचयिक विश्लेषण के अंतर्गत केवल वे ही प्रकरण आते हैं जिनमें किसी न किसी स्थल पर इस बात का विचार किया जाए कि किसी समस्या के हल करने की कितनी विधियाँ हैं, अथवा कोई काम कितने प्रकार से हो सकता है। उदाहरण 1.
देखें क्रमचय-संचय और संचयिक विश्लेषण
संस्थितिविज्ञान
मोबियस स्ट्रिप (Möbius strip) एक ऐसी वस्तु है जिसमें केवल एक तल एवं एक ही कोर (one surface and one edge) है। ऐसे आकारों का अध्ययन 'टोपोलॉजी' के अन्तर्गत किया जाता है। एक कप से बदललते हुए टोरस का सृजन संस्थितिविज्ञान या टोपोलॉजी गणित का बड़ा क्षेत्र है। इसे ज्यामिति के विस्तार के रूप में देखा जाता है। इसमें उन गुणों का अध्ययन किया जाता है जो वस्तुओं को सतत रूप से विकृत करने पर उनमें बने रहे हैं। उदाहरण के लिये किसी चीज को बिना फाड़े या साटे हुए तानने पर आने वाली विकृतियाँ। संस्थिति का विकास ज्यामिति तथा समुच्चय सिद्धान्त से हुआ है। 'टोपोलॉजी' शब्द से दो चीजों का बोध होता है: संस्थितिविज्ञान एक विस्तृत क्षेत्र वाला विषय है। इसके कई उपक्षेत्र हैं। इसके कुछ प्रमुख क्षेत्र निम्नांकित हैं.
देखें क्रमचय-संचय और संस्थितिविज्ञान
संगोष्ठी
संगोष्ठी (conference) लोगों का सम्मिलन (meeting) है जिसमें किसी विषय पर विचार-विमर्श एवं विचार विनिमय किया जाता है।.
देखें क्रमचय-संचय और संगोष्ठी
सुश्रुत
सुश्रुत प्राचीन भारत के महान चिकित्साशास्त्री एवं शल्यचिकित्सक थे। उनको शल्य चिकित्सा का जनक कहा जाता है। .
देखें क्रमचय-संचय और सुश्रुत
सुश्रुत संहिता
सुश्रुतसंहिता आयुर्वेद एवं शल्यचिकित्सा का प्राचीन संस्कृत ग्रन्थ है। सुश्रुतसंहिता आयुर्वेद के तीन मूलभूत ग्रन्थों में से एक है। आठवीं शताब्दी में इस ग्रन्थ का अरबी भाषा में 'किताब-ए-सुस्रुद' नाम से अनुवाद हुआ था। सुश्रुतसंहिता में १८४ अध्याय हैं जिनमें ११२० रोगों, ७०० औषधीय पौधों, खनिज-स्रोतों पर आधारित ६४ प्रक्रियाओं, जन्तु-स्रोतों पर आधारित ५७ प्रक्रियाओं, तथा आठ प्रकार की शल्य क्रियाओं का उल्लेख है। इसके रचयिता सुश्रुत हैं जो छठी शताब्दी ईसापूर्व काशी में जन्मे थे। सुश्रुतसंहिता बृहद्त्रयी का एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। यह संहिता आयुर्वेद साहित्य में शल्यतन्त्र की वृहद साहित्य मानी जाती है। सुश्रुतसंहिता के उपदेशक काशिराज धन्वन्तरि हैं, एवं श्रोता रूप में उनके शिष्य आचार्य सुश्रुत सम्पूर्ण संहिता की रचना की है। इस सम्पूर्ण ग्रंथ में रोगों की शल्यचिकित्सा एवं शालाक्य चिकित्सा ही मुख्य उद्देश्य है। शल्यशास्त्र को आचार्य धन्वन्तरि पृथ्वी पर लाने वाले पहले व्यक्ति थे। बाद में आचार्य सुश्रुत ने गुरू उपदेश को तंत्र रूप में लिपिबद्ध किया, एवं वृहद ग्रन्थ लिखा जो सुश्रुत संहिता के नाम से वर्तमान जगत में रवि की तरह प्रकाशमान है। आचार्य सुश्रुत त्वचा रोपण तन्त्र (Plastic-Surgery) में भी पारंगत थे। आंखों के मोतियाबिन्दु निकालने की सरल कला के विशेषज्ञ थे। सुश्रुत संहिता शल्यतंत्र का आदि ग्रंथ है। .
देखें क्रमचय-संचय और सुश्रुत संहिता
ज्यामिति
ब्रह्मगुप्त ब्रह्मगुप्त का प्रमेय, इसके अनुसार ''AF'' .
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विवर्त
जैनेंद्र की छठीं औपन्यासिक कृति 'विवर्त' का प्रकाशन सन 1953 में हुआ। प्रारंभ में यह उपन्यास 'साप्ताहिक हिंदुस्तान' में धारावाहिक रूप से प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास के कथानक का केंद्र जितेन का चरित्र है। उसकी सामान्य पारिवारिक स्थिति से कथा का व्यावहारिक आरंभ होता है। उसकी असाधारण प्रसिद्धि आदि बताकर लेखक कथा-विकास का भावी मार्ग खोलता है। भुवनमोहिनी के कथानक में प्रवेश से उसमें गति आती है परंतु जब भुवनमोहिनी जितेन से विवाह न करके नरेशचंद्र की पत्नी बन जाती है तब कथा की समस्या का अंत हो जाता है। उसका असफल प्रेम उसे क्रांतिकारी दल में सम्मिलित हो जाने की प्रेरणा देता है। चार वर्ष के बाद जितेन का आना, शरण पाना, भुवनमोहिनी के गहने चुरा कर भागना, उसके दलवालों का भुवनमोहिनी को पकड़ ले जाना, जितेन का पुलिस को समर्पण आदि नाटकीयतापूर्ण घटनाएँ क्रमशः घटित होने लगती हैं। उसका अंत भी इन्हीं के जाल में बँधकर आकस्मिक रूप से होता है और पाठक के ह्रदय पर कोई प्रभाव नहीं डाल पाता। श्रेणी:जैनेंद्र कुमार.
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गणित
पुणे में आर्यभट की मूर्ति ४७६-५५० गणित ऐसी विद्याओं का समूह है जो संख्याओं, मात्राओं, परिमाणों, रूपों और उनके आपसी रिश्तों, गुण, स्वभाव इत्यादि का अध्ययन करती हैं। गणित एक अमूर्त या निराकार (abstract) और निगमनात्मक प्रणाली है। गणित की कई शाखाएँ हैं: अंकगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति, सांख्यिकी, बीजगणित, कलन, इत्यादि। गणित में अभ्यस्त व्यक्ति या खोज करने वाले वैज्ञानिक को गणितज्ञ कहते हैं। बीसवीं शताब्दी के प्रख्यात ब्रिटिश गणितज्ञ और दार्शनिक बर्टेंड रसेल के अनुसार ‘‘गणित को एक ऐसे विषय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें हम जानते ही नहीं कि हम क्या कह रहे हैं, न ही हमें यह पता होता है कि जो हम कह रहे हैं वह सत्य भी है या नहीं।’’ गणित कुछ अमूर्त धारणाओं एवं नियमों का संकलन मात्र ही नहीं है, बल्कि दैनंदिन जीवन का मूलाधार है। .
देखें क्रमचय-संचय और गणित
गणितसारसंग्रह
गणितसारसंग्रहः भारतीय गणितज्ञ महावीराचार्य द्वारा संस्कृत भाषा में रचित एक गणित ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में गणित के जो प्रश्न पूछे गये हैं वे कई अर्थों में गणित के पूर्ववर्ती ग्रन्थों में पूछे गये प्रश्नों से भिन्न हैं। .
देखें क्रमचय-संचय और गणितसारसंग्रह
ग्राफ़ सिद्धान्त
एक ग्राफ जिसमें छः नोड और सात कोर हैं। गणित तथा संगणक विज्ञान में ग्राफ सिद्धांत (graph theory) में वस्तुओं से जुड़ी वस्तुओं और उनकी आपसी दूरी का अध्ययन किया जाता है। इस संदर्भ में ग्राफ उन गणितीय संरचनाओं को कहते हैं जो वस्तुओं के बीच जुड़े या युग्मित संबन्धों (pairwise relations) को मॉडल करने के काम आती हैं। इसकी तुलना किसी मानचित्र में शहरों के बीच बने सड़कों के जाल से कर सकते हैं। दो शहरों के बीच की दूरी उनके बीच बनी सड़क की लंबाई बताती है। यदि उन शहरों से बीच सीधी सड़क न हो, तो किसी अन्य शहर द्वारा वहाँ तक पहुँचने की दूरी निकाली जा सकती है। इसके आरेखों और चित्रों में दर्शाने के लिए वस्तुओं को बिन्दु या गोले (node, vertex) से दर्शाया जाता है। इनके बीच के जुड़ाव को एक रेख द्वारा जिसे कोर (edges) कहते हैं। अतः ग्राफ शीर्षों (vertices or nodes) तथा उनको जोड़ने वाली कोरों (edges) का समुच्चय है। विविक्त गणित (discrete mathematics) में ग्राफ का अध्ययन एक महत्वपूर्ण विषय है। ध्यान रहे कि 'ग्राफ सिद्धान्त' का 'ग्राफ', फलनों के आलेख (ग्राफ) यानि वक्र रेखा द्वारा किसी संबंध को दिखाने से बिलकुल भिन्न चीज है। ग्राफ़ सिद्धांत का प्रयोग वस्तुओं के विशाल समूह में एक दूसरे से दूरी (या अन्तर) निकालने के लिए किया जाता है। ग्राफ़ सिद्धांत के अनुसार, इसी प्रकार आकड़ों के पुंजीकरण, वस्तुओं की समरूपता इत्यादि जैसे कार्यों का हल निकाला जा सकता है। सामान्यतया ग्राफ़ को G.
देखें क्रमचय-संचय और ग्राफ़ सिद्धान्त
इष्टतमकरण
परवलयज का अधिकतम बिन्दु गणित में अभीष्टीकरण या इष्टतमकरण (optimization) उन गणितीय समस्याओं के अध्ययन को कहते हैं जिनमें किसी वास्तविक फलन (real function) का मान अधिकतम या न्यूनतम करने की चेष्टा की जाती है। इसके लिये उचित विधियों का सहारा लेते हुए, उस फलन में निहित वास्तविक चरों या पूर्णांक चरों का मान इस प्रकार चुना जाता है कि उस फलन का मान अधिकतम या न्यूनतम (अभीष्टतम् / optimum) हो जाय। इसके साथ यह भी आवश्यक है कि ये चर एक दिये हुए डोमेन (या समुच्चय) में से हों; दूसरे शब्दों में, ये चर कुछ अन्य दी हुई शर्तों का पालन भी करना चाहिये (जैसे x particularly in automated reasoning)।.
देखें क्रमचय-संचय और इष्टतमकरण
कम्प्यूटर विज्ञान
कम्प्यूटर विज्ञान संगणन और उसके उपयोग की ओर वैज्ञानिक और व्यवहारिक दृष्टिकोण है। यह जानकारी के पहुँच, सम्प्रेषण, संचय, प्रसंस्करण, प्रतिनिधित्व और अर्जन हेतु उपयोग में लाये जाने वाले व्यवस्थित प्रक्रियाओं (या कलन विधियों) के मशीनीकरण, अभिव्यक्ति, संरचना, और साध्यता का व्यवस्थित अध्ययन है। संगणक विज्ञान एक वैकल्पिक, संक्षिप्त परिभाषा के अनुसार यह मापने योग्य स्वचालित कलन विधियों का अध्ययन है। संगणक वैज्ञानिक संगणन के सिद्धांत और गणना योग्य प्रणालियों की योजना में विशेषज्ञता प्राप्त करते हैं। कंप्यूटर विज्ञान (कम्प्यूटर विज्ञान) के अन्तर्गत सूचना तथा संगणन (computation) के सैद्धान्तिक आधारों अध्ययन किया जाता है और साथ में इन सिद्धान्तों को कंप्यूटर प्रणालियों में व्यवहार में लाने की विधियों का अध्ययन किया जाता है। कंप्यूटर विज्ञान को प्राय: कलन विधियों के विधिवत (systematic) अध्ययन के रूप में देखा जाता है और कंप्यूटर विज्ञान का मूल प्रश्न यही है - कौन सा काम (दक्षतापूर्वक) स्वत: किया जा सकता है? (What can be (efficiently) automated?) .
देखें क्रमचय-संचय और कम्प्यूटर विज्ञान
क्रमचय
गणित में, क्रमचय (परमुटेशन) की संकल्पना को सूक्ष्म रूप से विभिन्न अर्थों में प्रयोग किया जाता है, सभी अर्थ वस्तुओं या मूल्य के क्रमपरिवर्तन (क्रमबद्ध रूप से पुनर्व्यवस्थित करना) की कार्रवाई से संबंधित हैं। अनौपचारिक रूप से, कुछ मानों (values) के एक सेट को विशेष क्रम में व्यवस्थित करना क्रमचय है। इस प्रकार सेट (1, 2, 3) के छह क्रमचय हैं अर्थात्,,,, और.
देखें क्रमचय-संचय और क्रमचय
सांयोजिकी, क्रमचय और संचय, अंकपाश के रूप में भी जाना जाता है।