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अमूर्त और ठोस

सूची अमूर्त और ठोस

अमूर्त और ठोस वर्गीकरण है जो यह दर्शाते हैं कि क्या कोई शब्द बिना किसी भौतिक संदर्भक वाले वस्तु को वर्णित करता है या भौतिक संदर्भक वाले वस्तु को। आम तौर पर ये दर्शन और अर्थविज्ञान में प्रयुक्त होते हैं। .

सामग्री की तालिका

  1. 7 संबंधों: दर्शनशास्त्र, अमूर्त संरचना, अमूर्त वस्तु सिद्धांत, अमूर्त विशिष्ट, अमूर्तन, अर्थविज्ञान, अवधारणीय ढांचा

  2. अमूर्तन
  3. चेतना
  4. तत्वमीमांसा के सिद्धान्त
  5. मन की तत्वमीमांसा
  6. मन के सिद्धांत
  7. संज्ञान

दर्शनशास्त्र

दर्शनशास्त्र वह ज्ञान है जो परम् सत्य और प्रकृति के सिद्धांतों और उनके कारणों की विवेचना करता है। दर्शन यथार्थ की परख के लिये एक दृष्टिकोण है। दार्शनिक चिन्तन मूलतः जीवन की अर्थवत्ता की खोज का पर्याय है। वस्तुतः दर्शनशास्त्र स्वत्व, अर्थात प्रकृति तथा समाज और मानव चिंतन तथा संज्ञान की प्रक्रिया के सामान्य नियमों का विज्ञान है। दर्शनशास्त्र सामाजिक चेतना के रूपों में से एक है। दर्शन उस विद्या का नाम है जो सत्य एवं ज्ञान की खोज करता है। व्यापक अर्थ में दर्शन, तर्कपूर्ण, विधिपूर्वक एवं क्रमबद्ध विचार की कला है। इसका जन्म अनुभव एवं परिस्थिति के अनुसार होता है। यही कारण है कि संसार के भिन्न-भिन्न व्यक्तियों ने समय-समय पर अपने-अपने अनुभवों एवं परिस्थितियों के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार के जीवन-दर्शन को अपनाया। भारतीय दर्शन का इतिहास अत्यन्त पुराना है किन्तु फिलॉसफ़ी (Philosophy) के अर्थों में दर्शनशास्त्र पद का प्रयोग सर्वप्रथम पाइथागोरस ने किया था। विशिष्ट अनुशासन और विज्ञान के रूप में दर्शन को प्लेटो ने विकसित किया था। उसकी उत्पत्ति दास-स्वामी समाज में एक ऐसे विज्ञान के रूप में हुई जिसने वस्तुगत जगत तथा स्वयं अपने विषय में मनुष्य के ज्ञान के सकल योग को ऐक्यबद्ध किया था। यह मानव इतिहास के आरंभिक सोपानों में ज्ञान के विकास के निम्न स्तर के कारण सर्वथा स्वाभाविक था। सामाजिक उत्पादन के विकास और वैज्ञानिक ज्ञान के संचय की प्रक्रिया में भिन्न भिन्न विज्ञान दर्शनशास्त्र से पृथक होते गये और दर्शनशास्त्र एक स्वतंत्र विज्ञान के रूप में विकसित होने लगा। जगत के विषय में सामान्य दृष्टिकोण का विस्तार करने तथा सामान्य आधारों व नियमों का करने, यथार्थ के विषय में चिंतन की तर्कबुद्धिपरक, तर्क तथा संज्ञान के सिद्धांत विकसित करने की आवश्यकता से दर्शनशास्त्र का एक विशिष्ट अनुशासन के रूप में जन्म हुआ। पृथक विज्ञान के रूप में दर्शन का आधारभूत प्रश्न स्वत्व के साथ चिंतन के, भूतद्रव्य के साथ चेतना के संबंध की समस्या है। .

देखें अमूर्त और ठोस और दर्शनशास्त्र

अमूर्त संरचना

अमूर्त संरचना एक औपचारिक वस्तु है जो क़ानूनों, गुणों और संबंधों के किसी समुच्चय से इस प्रकार परिभाषित हैं कि वह तार्किक रूप से (यदि सदैव ऐतिहासिक रूप से नहीं तो) आकस्मिक अनुभवों से, उदाहरणार्थ जिसमें भौतिक वस्तु शामिल हो, स्वतंत्र हैं। .

देखें अमूर्त और ठोस और अमूर्त संरचना

अमूर्त वस्तु सिद्धांत

अमूर्त वस्तु सिद्धांत तत्त्वमीमांसा की एक शाखा है जिसका संबंध अमूर्त वस्तुओं से हैं।.

देखें अमूर्त और ठोस और अमूर्त वस्तु सिद्धांत

अमूर्त विशिष्ट

अमूर्त विशिष्ट तत्त्वमीमांसिक सत्त्व होते हैं जो अमूर्त वस्तु और विशिष्ट दोनों होते हैं।.

देखें अमूर्त और ठोस और अमूर्त विशिष्ट

अमूर्तन

अमूर्तन (abstraction) अवधारणाओं की वह प्रक्रिया होती है इसमें कुछ उदाहरणों के प्रयोग और श्रेणीकरण, प्राथमिक ज्ञान के व्याख्यान और अन्य प्रणालियों से कोई सामान्य नियम या अवधारणा की परिभाषा हो। अमूर्तन के बाद, सभी उदाहरण उस अमूर्त नियम या अवधारणा द्वारा स्थापित करी गई परिभाषा के अधीन आते हैं। मसलन बैलगाड़ी, बस, साइकिल और मोटर-गाड़ी एक-दूसरे से बहुत भिन्न हैं, लेकिन इनसे एक "वाहन" नामक अमूर्त अवधारणा निकाली जा सकती है और फिर यह सभी वाहन के अलग-अलग उदाहरण समझे जा सकते हैं। इसी तरह चींटी, मच्छर और झींगुर तीन बहुत भिन्न प्राणी हैं लेकिन अपने आकार, टांगो की संख्या और अन्य सामानताओं के आधार पर यह सभी "कीट" नामक अमूर्त श्रेणी में डाले जा सकते हैं। एक अन्य मिसाल चोरी, हत्या और अपहरण की है - यह तीन बहुत भिन्न चीज़ें हैं लेकिन न्याय-व्यवस्था में अमूर्तन द्वारा इन्हें "अपराध" नामक अवधारणा में डाला जाता है।Suzanne K.

देखें अमूर्त और ठोस और अमूर्तन

अर्थविज्ञान

भाषाविज्ञान के अन्तर्गत अर्थविज्ञान या 'शब्दार्थविज्ञान' (Semantics) शब्दों के अर्थ से सम्बन्धित विधा है। .

देखें अमूर्त और ठोस और अर्थविज्ञान

अवधारणीय ढांचा

अवधारणीय ढांचा कई भिन्नताओं और प्रसंगों के साथ एक विश्लेषणात्मक उपकरण है।.

देखें अमूर्त और ठोस और अवधारणीय ढांचा

यह भी देखें

अमूर्तन

चेतना

तत्वमीमांसा के सिद्धान्त

मन की तत्वमीमांसा

मन के सिद्धांत

संज्ञान

अमूर्त वस्तु के रूप में भी जाना जाता है।