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मण्डप

सूची मण्डप

हम्पी के पट्टाभिराम मंदिर का मण्डप थाइलैण्ड के नान स्थित वाट फ्रा थाट छे का मण्डप भारतीय स्थापत्यकला के सन्दर्भ में, स्तम्भों पर खड़े बाहरी हाल को मण्डप कहते हैं जिसमें लोग विभिन्न प्रकार के क्रियाकर्म करते हैं। .

4 संबंधों: भारतीय स्थापत्यकला, हिन्दू मंदिर स्थापत्य, कृष्णदेवराय, अन्तराल (वास्तुशास्त्र)

भारतीय स्थापत्यकला

सांची का स्तूप अजन्ता गुफा २६ का चैत्य भारत के स्थापत्य की जड़ें यहाँ के इतिहास, दर्शन एवं संस्कृति में निहित हैं। भारत की वास्तुकला यहाँ की परम्परागत एवं बाहरी प्रभावों का मिश्रण है। भारतीय वास्तु की विशेषता यहाँ की दीवारों के उत्कृष्ट और प्रचुर अलंकरण में है। भित्तिचित्रों और मूर्तियों की योजना, जिसमें अलंकरण के अतिरिक्त अपने विषय के गंभीर भाव भी व्यक्त होते हैं, भवन को बाहर से कभी कभी पूर्णतया लपेट लेती है। इनमें वास्तु का जीवन से संबंध क्या, वास्तव में आध्यात्मिक जीवन ही अंकित है। न्यूनाधिक उभार में उत्कीर्ण अपने अलौकिक कृत्यों में लगे हुए देश भर के देवी देवता, तथा युगों पुराना पौराणिक गाथाएँ, मूर्तिकला को प्रतीक बनाकर दर्शकों के सम्मुख अत्यंत रोचक कथाओं और मनोहर चित्रों की एक पुस्तक सी खोल देती हैं। 'वास्तु' शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत के 'वस्' धातु से हुई है जिसका अर्थ 'बसना' होता है। चूंकि बसने के लिये भवन की आवश्यकता होती है अतः 'वास्तु' का अर्थ 'रहने हेतु भवन' है। 'वस्' धातु से ही वास, आवास, निवास, बसति, बस्ती आदि शब्द बने हैं। .

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हिन्दू मंदिर स्थापत्य

अंकोरवाट मंदिर (कम्बोडिया) भारतीय स्थापत्य में हिन्दू मन्दिर का विशेष स्थान है। हिन्दू मंदिर में अन्दर एक गर्भगृह होता है जिसमें मुख्य देवता की मूर्ति स्थापित होती है। गर्भगृह के ऊपर टॉवर-नुमा रचना होती है जिसे शिखर (या, विमान) कहते हैं। मन्दिर के गर्भगृह के चारों ओर परिक्रमा के लिये स्थान होता है। इसके अलावा मंदिर में सभा के लिये कक्ष हो सकता है। .

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कृष्णदेवराय

कृष्णदेवराय की कांस्य प्रतिमा संगीतमय स्तम्भों से युक्त हम्पी स्थित विट्ठल मन्दिर; इसके होयसला शैली के बहुभुजाकार आधार पर ध्यान दीजिए। कृष्णदेवराय (1509-1529 ई.; राज्यकाल 1509-1529 ई) विजयनगर के सर्वाधिक कीर्तिवान राजा थे। वे स्वयं कवि और कवियों के संरक्षक थे। तेलुगु भाषा में उनका काव्य अमुक्तमाल्यद साहित्य का एक रत्न है। इनकी भारत के प्राचीन इतिहास पर आधारित पुस्तक वंशचरितावली तेलुगू  के साथ—साथ संस्कृत में भी मिलती है। संभवत तेलुगू का अनुवाद ही संस्कृत में हुआ है। प्रख्यात इतिहासकार तेजपाल सिंह धामा ने हिन्दी में इनके जीवन पर प्रामाणिक उपन्यास आंध्रभोज लिखा है। तेलुगु भाषा के आठ प्रसिद्ध कवि इनके दरबार में थे जो अष्टदिग्गज के नाम से प्रसिद्ध थे। स्वयं कृष्णदेवराय भी आंध्रभोज के नाम से विख्यात थे। .

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अन्तराल (वास्तुशास्त्र)

अन्तराल, पारंपरिक शास्त्रीय वास्तुशास्त्र व अगमशास्त्र में, मंदिर निर्माण में गर्भगृह एवं मण्डप के बीच के स्थान को कहा जाता है। भारतीय शास्त्रीय वास्तुकला में, अधिकांशतः उत्तर भारतीय नागर शैली के मंदिरों में मण्डप और गर्भगृह के बीच अन्तराल देखने को मिलते हैं। इसे कोरिमण्डप भी कहा जाता है। उत्तर भारत में खजुराहो के कन्दारिया महादेव मन्दिर, जो पञ्चयातन वास्तुशैली में निर्मित है, तथा दक्षिण भारत के चालुक्य वास्तुकला में निर्मित मंदिरों में मण्डप और गर्भगृह के बीच अन्तराल देखा जा सकता है। इस तरह की वास्तुकला के उक्त दो मंदिर उत्तम उदाहरण हैं। .

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