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अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय

सूची अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय

विश्वविद्यालय का विक्टोरिया गेट अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (The Aligarh Muslim University) भारत के प्रमुख केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में से एक है जो उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में स्थित है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय एक आवासीय शैक्षणिक संस्थान है। इसकी स्थापना 1875 में सर सैयद अहमद खान द्वारा की गई थी और 1920 में भारतीय संसद के एक अधिनियम के माध्यम से केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की तर्ज पर ब्रिटिश राज के समय बनाया गया पहला उच्च शिक्षण संस्थान था। मूलतः यह मुस्लिम एंग्लो ओरिएंटल कालेज था, जिसे महान मुस्लिम समाज सुधारक सर सैयद अहमद खान द्वारा स्थापित किया गया था। कई प्रमुख मुस्लिम नेताओं, उर्दू लेखकों और उपमहाद्वीप के विद्वानों ने विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में शिक्षा के पारंपरिक और आधुनिक शाखा में 250 से अधिक पाठ्यक्रम पढ़ाए जाते हैं। अपने समय के महान समाज सुधारक सर सैयद अहमद खानने आधुनिक शिक्षा की आवश्यकता को महसूस किया और 1875 में एक स्कूल शुरू किया, जो बाद में मुस्लिम एंग्लो ओरिएंटल कालेज और अंततः 1920 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बना। कई विभागों और स्थापित संस्थानों के साथ यह प्रमुख केन्द्रीय विश्वविद्यालय दुनिया के सभी कोनों से, विशेष रूप से अफ्रीका, पश्चिमी एशिया और दक्षिणी पूर्व एशिया के छात्रों को आकर्षित करता है। कुछ पाठ्यक्रमों में सार्क और राष्ट्रमंडल देशों के छात्रों के लिए सीटें आरक्षित हैं। विश्वविद्यालय सभी जाति, पंथ, धर्म या लिंग के छात्रों के लिए खुला है। अलीगढ़ दिल्ली के दक्षिण पूर्वी में 130 किमी दूरी पर दिल्ली-कोलकाता रेलवे और ग्रांड ट्रंक रूट की स्थित है। .

52 संबंधों: ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम, दरभंगा राज, द्विराष्ट्र सिद्धांत, नरेन्द्र मोदी, नसीरुद्दीन शाह, पि. के. अब्दुल अज़ीज़, पुस्तकालय का इतिहास, पुकाडील जॉन, फ़ज़ल इल्लाही चौधरी, ब्रिटिश राज, भारत में विश्वविद्यालयों की सूची, भारत में इस्लाम, भारत का राजनीतिक एकीकरण, भारत के राष्ट्रपतियों की सूची, भारत के वित्त मंत्री, मसूद हुसैन ख़ान, मुफ़्ती मोहम्मद सईद, मुहम्मद अली जौहर, मौलाना आजाद पुस्तकालय, मेहदी ख्वाजा पीरी, मोहम्मद मंसूर अली, मोहम्मद हामिद अंसारी, यासर शाह, राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क, राही मासूम रज़ा, लियाक़त अली ख़ान, शाद खान, सय्यद अहमद क़ाद्री, सलमा ज़ैदी, साहिब सिंह वर्मा, सैयद अमीरमाह बहराइची, सैयद अहमद ख़ान, हबीब तनवीर, हकीम सय्यद ज़िल्लुर रहमान, ज़मीर उद्दीन शाह, ज़ाकिर हुसैन (राजनीतिज्ञ), जावेद उस्मानी, जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज (अलीगढ़), खान हबीबुल्लाह खान, कर्ण सिंह, कुँवरपाल सिंह, के के मुहम्मद, केन्द्रीय विश्‍वविद्यालय, अनुभव सिन्हा, अयूब ख़ान (पाकिस्तानी शासक), अरशद इस्लाम, अलीगढ़, अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान 'शहरयार', अंजुमन ए तरक्क़ी ए उर्दू, अकबर ख़ान, ..., १९२०, ९ सितम्बर सूचकांक विस्तार (2 अधिक) »

ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम

अबुल पकिर जैनुलाअबदीन अब्दुल कलाम अथवा ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम (A P J Abdul Kalam), (15 अक्टूबर 1931 - 27 जुलाई 2015) जिन्हें मिसाइल मैन और जनता के राष्ट्रपति के नाम से जाना जाता है, भारतीय गणतंत्र के ग्यारहवें निर्वाचित राष्ट्रपति थे। वे भारत के पूर्व राष्ट्रपति, जानेमाने वैज्ञानिक और अभियंता (इंजीनियर) के रूप में विख्यात थे। इन्होंने मुख्य रूप से एक वैज्ञानिक और विज्ञान के व्यवस्थापक के रूप में चार दशकों तक रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) संभाला व भारत के नागरिक अंतरिक्ष कार्यक्रम और सैन्य मिसाइल के विकास के प्रयासों में भी शामिल रहे। इन्हें बैलेस्टिक मिसाइल और प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी के विकास के कार्यों के लिए भारत में मिसाइल मैन के रूप में जाना जाने लगा। इन्होंने 1974 में भारत द्वारा पहले मूल परमाणु परीक्षण के बाद से दूसरी बार 1998 में भारत के पोखरान-द्वितीय परमाणु परीक्षण में एक निर्णायक, संगठनात्मक, तकनीकी और राजनैतिक भूमिका निभाई। कलाम सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी व विपक्षी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस दोनों के समर्थन के साथ 2002 में भारत के राष्ट्रपति चुने गए। पांच वर्ष की अवधि की सेवा के बाद, वह शिक्षा, लेखन और सार्वजनिक सेवा के अपने नागरिक जीवन में लौट आए। इन्होंने भारत रत्न, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त किये। .

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दरभंगा राज

दरभंगा राज बिहार के मिथिला क्षेत्र में लगभग 6,200 किलोमीटर के दायरे में था। इसका मुख्यालय दरभंगा शहर था। इस राज की स्थापना मैथिल ब्राह्मण जमींदारों ने 16वीं सदी की शुरुआत में की थी। ब्रिटिश राज के दौरान तत्कालीन बंगाल के 18 सर्किल के 4,495 गांव दरभंगा नरेश के शासन में थे। राज के शासन-प्रशासन को देखने के लिए लगभग 7,500 अधिकारी बहाल थे। भारत के रजवाड़ों में दरभंगा राज का अपना खास ही स्थान रहा है। दरभंगा-महाराज खण्डवाल कुल के थे जिसके शासन-संस्थापक महेश ठाकुर थे। उनकी अपनी विद्वता, उनके शिष्य रघुनन्दन की विद्वता तथा महाराजा मानसिंह के सहयोग से अकबर द्वारा उन्हें राज्य की प्राप्ति हुई थी। दरभंगा दुर्ग का प्रवेश-द्वार 1.महेश ठाकुर - 1556-1569 ई. तक। इनकी राजधानी वर्तमान मधुबनी जिले के भउर (भौर) ग्राम में थी, जो मधुबनी से करीब 10 मील पूरब लोहट चीनी मिल के पास है। 2.गोपाल ठाकुर - 1569-1581 तक। इनके काशी-वास ले लेने के कारण इनके अनुज परमानन्द ठाकुर गद्दी पर बैठे। 3.परमानन्द ठाकुर - (इनके पश्चात इनके सौतेले भाई शुभंकर ठाकुर सिंहासन पर बैठे।) 4.शुभंकर ठाकुर - (इन्होंने अपने नाम पर दरभंगा के निकट शुभंकरपुर नामक ग्राम बसाया।) इन्होंने अपनी राजधानी को मधुबनी के निकट भउआरा (भौआरा) में स्थानान्तरित किया। 5.पुरुषोत्तम ठाकुर - (शुभंकर ठाकुर के पुत्र) - 1617-1641 तक। 6.सुन्दर ठाकुर (शुभंकर ठाकुर के सातवें पुत्र) - 1641-1668 तक। 7.महिनाथ ठाकुर - 1668-1690 तक। ये पराक्रमी योद्धा थे। इन्होंने मिथिला की प्राचीन राजधानी सिमराओं परगने के अधीश्वर सुगाओं-नरेश गजसिंह पर आक्रमण कर हराया था। 8.नरपति ठाकुर (महिनाथ ठाकुर के भाई) - 1690-1700 तक। 9.राजा राघव सिंह - 1700-1739 तक। (इन्होंने 'सिंह' की उपाधि धारण की।) इन्होंने अपने प्रिय खवास वीरू कुर्मी को कोशी अंचल की व्यवस्था सौंप दी थी। शासन-मद में उसने अपने इस महाराज के प्रति ही विद्रोह कर दिया। महाराज ने वीरतापूर्वक विद्रोह का शमन किया तथा नेपाल तराई के पँचमहाल परगने के उपद्रवी राजा भूपसिंह को भी रण में मार डाला। इनके ही कुल के एक कुमार एकनाथ ठाकुर के द्वेषवश उभाड़ने से बंगाल-बिहार के नवाब अलीवर्दी खाँ इन्हें सपरिवार बन्दी बनाकर पटना ले गया तथा बाद में भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को कर निर्धारित कर मुक्त कर दिया। माना गया है कि इसी कारण मिथिला में यह तिथि पर्व-तिथि बन गयी और इस तिथि को कलंकित होने के बावजूद चन्द्रमा की पूजा होने लगी। मिथिला के अतिरिक्त भारत में अन्यत्र कहीं चौठ-चन्द्र नहीं मनाया जाता है। यदि कहीं है तो मिथिलावासी ही वहाँ रहने के कारण मनाते हैं। 10.राजा विसुन(विष्णु) सिंह - 1739-1743 तक। 11.राजा नरेन्द्र सिंह (राघव सिंह के द्वितीय पुत्र) - 1743-1770 तक। इनके द्वारा निश्चित समय पर राजस्व नहीं चुकाने के कारण अलीवर्दी खाँ ने पहले पटना के सूबेदार रामनारायण से आक्रमण करवाया। यह युद्ध रामपट्टी से चलकर गंगदुआर घाट होते हुए झंझारपुर के पास कंदर्पी घाट के पास हुआ था। बाद में नवाब की सेना ने भी आक्रमण किया। तब नरहण राज्य के द्रोणवार ब्राह्मण-वंशज राजा अजित नारायण ने महाराजा का साथ दिया था तथा लोमहर्षक युद्ध किया था। इन युद्धों में महाराज विजयी हुए पर आक्रमण फिर हुए। 12.रानी पद्मावती - 1770-1778 तक। 13.राजा प्रताप सिंह (नरेन्द्र सिंह का दत्तक पुत्र) - 1778-1785 तक। इन्होंने अपनी राजधानी को भौआरा से झंझारपुर में स्थानान्तरित किया। 14.राजा माधव सिंह (प्रताप सिंह का विमाता-पुत्र) - 1785-1807 तक। इन्होंने अपनी राजधानी झंझारपुर से हटाकर दरभंगा में स्थापित की। लार्ड कार्नवालिस ने इनके शासनकाल में जमीन की दमामी बन्दोबस्ती करवायी थी। 15.महाराजा छत्र सिंह - 1807-1839 तक। इन्होंने 1814-15 के नेपाल-युद्ध में अंग्रेजों की सहायता की थी। हेस्टिंग्स ने इन्हें 'महाराजा' की उपाधि दी थी। 16.महाराजा रुद्र सिंह - 1839-1850 तक। 17.महाराजा महेश्वर सिंह - 1850-1860 तक। इनकी मृत्यु के पश्चात् कुमार लक्ष्मीश्वर सिंह के अवयस्क होने के कारण दरभंगा राज को कोर्ट ऑफ वार्ड्स के तहत ले लिया गया। जब कुमार लक्ष्मीश्वर सिंह बालिग हुए तब अपने पैतृक सिंहासन पर आसीन हुए। कोलकाता के डलहौजी चौक पर '''लक्ष्मीश्वर सिंह''' की प्रतिमा 18.महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह - 1880-1898 तक। ये काफी उदार, लोक-हितैषी, विद्या एवं कलाओं के प्रेमी एवं प्रश्रय दाता थे। रमेश्वर सिंह इनके अनुज थे। 19.महाराजाधिराज रमेश्वर सिंह - 1898-1929 तक। इन्हें ब्रिटिश सरकार की ओर से 'महाराजाधिराज' का विरुद दिया गया तथा और भी अनेक उपाधियाँ मिलीं। अपने अग्रज की भाँति ये भी विद्वानों के संरक्षक, कलाओं के पोषक एवं निर्माण-प्रिय अति उदार नरेन्द्र थे। इन्होंने भारत के अनेक नगरों में अपने भवन बनवाये तथा अनेक मन्दिरों का निर्माण करवाया। वर्तमान मधुबनी जिले के राजनगर में इन्होंने विशाल एवं भव्य राजप्रासाद तथा अनेक मन्दिरों का निर्माण करवाया था। यहाँ का सबसे भव्य भवन (नौलखा) 1926 ई. में बनकर तैयार हुआ था, जिसके आर्चिटेक डाॅ.

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द्विराष्ट्र सिद्धांत

द्विराष्ट्र सिद्धांत या दो क़ौमी नज़रिया भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमानों के हिन्दुओं से अलग पहचान का सिद्धांत है। .

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नरेन्द्र मोदी

नरेन्द्र दामोदरदास मोदी (નરેંદ્ર દામોદરદાસ મોદી Narendra Damodardas Modi; जन्म: 17 सितम्बर 1950) भारत के वर्तमान प्रधानमन्त्री हैं। भारत के राष्‍ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने उन्हें 26 मई 2014 को भारत के प्रधानमन्त्री पद की शपथ दिलायी। वे स्वतन्त्र भारत के 15वें प्रधानमन्त्री हैं तथा इस पद पर आसीन होने वाले स्वतंत्र भारत में जन्मे प्रथम व्यक्ति हैं। वडनगर के एक गुजराती परिवार में पैदा हुए, मोदी ने अपने बचपन में चाय बेचने में अपने पिता की मदद की, और बाद में अपना खुद का स्टाल चलाया। आठ साल की उम्र में वे आरएसएस से  जुड़े, जिसके साथ एक लंबे समय तक सम्बंधित रहे । स्नातक होने के बाद उन्होंने अपने घर छोड़ दिया। मोदी ने दो साल तक भारत भर में यात्रा की, और कई धार्मिक केंद्रों का दौरा किया। गुजरात लौटने के बाद और 1969 या 1970 में अहमदाबाद चले गए। 1971 में वह आरएसएस के लिए पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए। 1975  में देश भर में आपातकाल की स्थिति के दौरान उन्हें कुछ समय के लिए छिपना पड़ा। 1985 में वे बीजेपी से जुड़े और 2001 तक पार्टी पदानुक्रम के भीतर कई पदों पर कार्य किया, जहाँ से वे धीरे धीरे वे सचिव के पद पर पहुंचे।   गुजरात भूकंप २००१, (भुज में भूकंप) के बाद गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल के असफल स्वास्थ्य और ख़राब सार्वजनिक छवि के कारण नरेंद्र मोदी को 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया। मोदी जल्द ही विधायी विधानसभा के लिए चुने गए। 2002 के गुजरात दंगों में उनके प्रशासन को कठोर माना गया है, की आलोचना भी हुई।  हालांकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल (एसआईटी) को अभियोजन पक्ष की कार्यवाही शुरू करने के लिए कोई है। मुख्यमंत्री के तौर पर उनकी नीतियों को आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए । उनके नेतृत्व में भारत की प्रमुख विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी ने 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा और 282 सीटें जीतकर अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की। एक सांसद के रूप में उन्होंने उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक नगरी वाराणसी एवं अपने गृहराज्य गुजरात के वडोदरा संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा और दोनों जगह से जीत दर्ज़ की। इससे पूर्व वे गुजरात राज्य के 14वें मुख्यमन्त्री रहे। उन्हें उनके काम के कारण गुजरात की जनता ने लगातार 4 बार (2001 से 2014 तक) मुख्यमन्त्री चुना। गुजरात विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त नरेन्द्र मोदी विकास पुरुष के नाम से जाने जाते हैं और वर्तमान समय में देश के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से हैं।। माइक्रो-ब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर भी वे सबसे ज्यादा फॉलोअर वाले भारतीय नेता हैं। उन्हें 'नमो' नाम से भी जाना जाता है। टाइम पत्रिका ने मोदी को पर्सन ऑफ़ द ईयर 2013 के 42 उम्मीदवारों की सूची में शामिल किया है। अटल बिहारी वाजपेयी की तरह नरेन्द्र मोदी एक राजनेता और कवि हैं। वे गुजराती भाषा के अलावा हिन्दी में भी देशप्रेम से ओतप्रोत कविताएँ लिखते हैं। .

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नसीरुद्दीन शाह

नसीरुद्दीन शाह हिन्दी फ़िल्मों के एक प्रसिद्ध अभिनेता हैं। नसीरुद्दीन शाह, जिन्हें हिंदी फ़िल्म उद्योग में अदाकारी का एक पैमाना कहा जाए तो शायद ही किसी को एतराज हो। नसीर की काबिलियत का सबसे बड़ा सुबूत है, सिनेमा की दोनों धाराओं में उनकी कामयाबी। नसीर का नाम अगर पैरेलल सिनेमा के सबसे बेहतरीन अभिनेताओं की सूची में शामिल हुआ तो बॉलीवुड की मुख्य धारा या व्यापारिक फ़िल्मों में भी उन्होंने बड़ी कामयाबी हासिल की है। नसीर अपने शानदार अंदाज से मुख्य धारा के चहेते सितारे बन गए, ऐसा सितारा जिसने हर तरह के किरदार को बेहतरीन अभिनय से जिंदा कर दिया। ये सितार जब भी स्क्रीन पर आया देखने वाले के दिल पर उस किरदार की यादगार छाप छोड़ गया। उसकी कॉमेडी ने पब्लिक को खूब गुदगुदाया तो एक्शन में भी उसका अलग ही अंदाज नजर आया। मुख्य धारा सिनेमा में नसीरुद्दीन शाह के सफर की शुरुआत 1980 में आई फ़िल्म 'हम पांच' से हुई। फ़िल्म भले ही व्यापारिक थी, लेकिन इसमें नसीर के अभिनय की गहराई समानांतर सिनेमा वाली फ़िल्मों से कम नहीं थी। गुलामी को अपनी तकदीर मान चुके एक गांव में विद्रोह की आवाज बुलंद करते नौजवान के किरदार में नसीर ने जान फूंक दी। हालांकि फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर कामयाब नहीं रही और एक व्यापारिक एक्टर के तौर पर सफलता साबित करने के लिए नसीर को टिकट खिड़की पर भी बिकाऊ बनने की जरूरत थी। और उनके लिए ये काम किया 'जाने भी दो यारों' ने। बॉलीवुड की ऑल टाइम बेस्ट कॉमेडी फ़िल्मों में शुमार 'जाने भी दो यारों' में रवि वासवानी और नसीर की जोड़ी ने बेजोड़ कॉमिक टाइमिंग दिखाई और फ़िल्म बेहद कामयाब रही। लेकिन कमर्शियल सिनेमा में नसीर की सबसे बड़ी कामयाबी बनी 'मासूम'। बाप और बेटे के रिश्तों को उकेरती 'मासूम' में नसीर ने कमाल की अदाकारी से ना केवल खूब वाहवाही बटोरी बल्कि फ़िल्म भी सुपरहिट हुई और नसीर को एक स्टार का दर्जा मिल गया। नसीर के इस स्टार स्टेटस को और मजबूत किया 1986 में आई सुभाष घई की मल्टीस्टारर मेगाबजट फ़िल्म 'कर्मा' ने। फ़िल्म में नसीर के लिए अपनी छाप छोड़ना आसान नहीं था क्योंकि वहां अभिनय सम्राट "दिलीप कुमार भी थे। और उस दौर के नए नवेले सितारे जैकी श्रॉफ और अनिल कपूर भी थे। 1987 में गुलजार की 'इजाजत' नसीर के लिए कामयाबी का एक और जरिया बन कर आई। एक जज्बाती कहानी, बेहतरीन निर्देशन, शानदार अभिनय और यादगार संगीत। 'इजाजत' ने बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त कामयाबी हासिल की और बतौर व्यापारिक एक्टर नसीर का रुतबा और बढ़ गया। 'त्रिदेव' जैसी सुपरहिट फ़िल्म देकर, 90 का दशक आते-आते नसीर ने व्यापारिक फ़िल्मों में भी अपनी अलग पहचान बना ली थी। 2003 में आई हॉलीवुड फ़िल्म 'द लीग ऑफ एक्सट्रा ऑर्डिनरी जेंटलमेन' में नसीरुद्दीन ने कैप्टन नीमो का किरदार निभाया तो दूसरी तरफ पाकिस्तानी फ़िल्म 'खुदा के लिए' में भी उन्होंने शानदार काम किया। देश से लेकर परदेस तक, नसीरुद्दीन शाह ने अपनी अदाकारी का लोहा सारी दुनिया में मनवाया है। लेकिन नसीर अपनी काबिलियत को खुशकिस्मती का नाम देते हैं। वो कहते हैं, 'मैं खुद को खुशकिस्मत मानता हूं कि मुझे इतने मौके मिले, लेकिन मैं व्यापारिक फ़िल्मों से अभी संतुष्ट नहीं हूँ।' 2008 में आई 'अ वेडनेसडे' ने नसीर की कमाल की अदाकारी का एक और नजराना पेश किया तो 'इश्किया', 'राजनीति', 'सात खून माफ' और 'डर्टी पिक्चर' जैसी फ़िल्मों के जरिए नसीरुद्दीन ने बार-बार ये साबित किया कि एक सच्चे कलाकार को उम्र बांध नहीं सकती। हाल ही में रिलीज हुई फ़िल्म 'मैक्सिमम' में भी नसीर की जोरदार एक्टिंग ने दर्शकों का खूब मनोरंजन किया है। आज के नसीरुद्दीन शाह की बात करें तो शायद ही ऐसा कोई रोल है जो उनपर फिट नहीं बैठे। आखिर वो एक्टर ही ऐसे हैं कि हर रोल के मुताबिक खुद को ढाल लेते हैं। लेकिन एक समय था जब नसीर को दो रोल करने की इच्छा थी जो उस समय उन्हें नहीं मिले। लेकिन बाद 'मिर्जा गालिब', दूरदर्शन धारावाहिक में उन्हें दो रोल मिले जिसमें उन्होंने ग़ालिब का वास्तविक चित्र उभारने की कोशिश की। लेकिन आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि गालिब बनने की नसीर की तमन्ना उनके दिल में एक अधूरे ख्वाब की तरह अटकी हुई थी। 1988 में सीरियल बनाने से सालों पहले गुलजार साहब गालिब पर एक फ़िल्म बनाना चाहते थे और उस फ़िल्म में गालिब के तौर पर उनकी दिली इच्छा संजीव कुमार को लेने की थी। नसीर साहब ने इस बारे में बताते हुए कहा, 'मैंने गुलजार भाई को चिठ्ठी लिखी और अपनी फोटोग्राफ्स भेजी, मैंने लिखा कि ये क्या कर रहे हैं, इस फ़िल्म में आपको मुझे लेना चाहिए।' लेकिन संजीव कुमार को दिल का दौरा पड़ गया था और सेहत उनका साथ नहीं दे रही थी। फिर उसके बाद गुलजार साहब के दिल में उस रोल के लिए अमिताभ के नाम का खयाल आया। लेकिन वहां भी बात नहीं बनी और आखिरकार गालिब पर फ़िल्म बनाने का प्लान ही ठंडे बस्ते में पड़ गया। शायद उस वक्त गुलजार को भी नहीं मालूम होगा कि इस किरदार पर तो तकदीर ने किसी और का नाम लिख दिया है। कई साल बाद गुलजार साहब ने एक दिन नसीर को फोन लगाया। नसीर ने बताया, 'एक दिन मुझे गुलजार भाई का फोन आया कि सीरियल में काम करोगे। मैंने पूछा कौन सा सीरियल तो उन्होंने बताया गालिब पर है। मैंने बिना कुछ सोचे फौरन हां कह दिया।' साल 1982 में 'गांधी' के रिलीज होने के अट्ठारह साल बाद कमल हासन ने 'हे राम' बनाई, जिसने नसीर साहब की गांधी बनने की तमन्ना को भी पूरा कर दिया। सधी हुई अदाकरी और बेजोड़ अंदाज से उन्होंने ना केवल गांधी के किरदार में जान डाल दी। बेजोड़ एक्टिंग और गजब की क्षमता से हर तरह के किरदार निभाने वाले नसीर ने अपनी छाप नकारात्मक भूमिकाओं में भी छोड़ी। समानांतर सिनेमा का ये हीरो कमर्शियल फ़िल्मों में एक ख़तरनाक विलेन के तौर पर भी हमेशा याद किया जाता रहेगा। हिन्दी सिनेमा में विलेन का ये नया चेहरा था, खूंखार और अजीबोगरीब शक्ल वाला कोई गुंडा नहीं बल्कि सोफेस्टिकेटेड इंसान जिसके दिमाग में सिर्फ जहर ही जहर था। विलेन का ये किरदार जितना संजीदा था उससे भी ज्यादा संजीदगी से उसे निभाया था नसीरुद्दीन शाह ने। वैसे खलनायक के तौर पर उनकी एक दो फ़िल्में नहीं थीं। 'मोहरा' में उन्होंने दिखाया विलेन का वो चेहरा जो किसी के भी दिल में खौफ पैदा कर सकता है। अंधा होने का नाटक करने वाला एक शिकारी, लेकिन ये नसीर की असली पहचान नहीं थी। नसीर की असली पहचान समानांतर सिनेमा था। सिनेमा की वो धारा जिसमें एक स्टार के लिए कम और एक्टर के लिए गुंजाइश ज्यादा होती है। और ये बात किसी से छुपी नहीं कि नसीर एक एक्टर पहले और स्टार बाद में हैं। समानांतर सिनेमा के इस सितारे ने स्मिता पाटिल, शबाना आजमी, अमरीश पुरी और ओम पुरी जैसे माहिर कलाकारों के साथ मिलकर आर्ट फ़िल्मों को एक नई पहचान दी। 'निशान्त' जैसी सेंसेटिव फ़िल्म से अभिनय का सफर शुरू करने वाले नसीर ने 'आक्रोश', 'स्पर्श', 'मिर्च मसाला', 'भवनी भवाई', 'अर्धसत्य', 'मंडी' और 'चक्र' जैसी फ़िल्मों में अभिनय की नई मिसाल पेश कर दी। .

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पि. के. अब्दुल अज़ीज़

पी.के.

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पुस्तकालय का इतिहास

आधुनिक भारत में पुस्तकालयों का विकास बड़ी धीमी गति से हुआ है। हमारा देश परतंत्र था और विदेशी शासन के कारण शिक्षा एवं पुस्तकालयों की ओर कोई ध्यान ही नहीं दिया गया। इसी से पुस्तकालय आंदोलन का स्वरूप राष्ट्रीय नहीं था और न इस आंदोलन को कोई कानूनी सहायता ही प्राप्त थीं। बड़ौदा राज्य का योगदान इस दिशा में प्रशंसनीय रहा है। यहाँ पर 1910 ई. में पुस्तकालय आंदोलन प्रारंभ किया गया। राज्य में एक पुस्तकालय विभाग खोला गया और पुस्तकालयों चार श्रेणियों में विभक्त किया गया- जिला पुस्तकालय, तहसील पुस्तकालय, नगर पुस्तकालय, एवं ग्राम पुस्तकालय आदि। पूरे राज्य में इनका जाल बिछा दिया गया था। भारत में सर्वप्रथम चल पुस्तकालय की स्थापना भी बड़ौदा राज्य में ही हुई। श्री डब्ल्यू.

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पुकाडील जॉन

पुकाडील जॉन (Pucadyil Ittoop John) एक प्रमुख भारतीय प्लाजा भौतिक विज्ञानी है। वह प्लाज्मा रिसर्च इंस्टीट्यूट में प्लाजामा साइंस एंड टेक्नोलॉजी में मेघनाद साहा चेयर पर हैं। अपना पीएचडी अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पूरा करने के बाद, जॉन भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला में शामिल हुए, जहां उन्होंने 1972 में एक प्रयोगात्मक प्लाज्मा भौतिकी कार्यक्रम की स्थापना की। वह 1982 तक भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला में प्लाजमा भौतिक विज्ञानी ग्रुप के अध्यक्ष थे। 2010 में, प्रोफेसर जॉन को भारत सरकार से प्रतिष्ठित पद्म श्री पुरस्कार मिला। जॉन कविता भी लिखते हैं। .

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फ़ज़ल इल्लाही चौधरी

फ़ज़ल इल्लाही एक पाकिस्तानी राजनेता और पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति थे। वे 1973 के संविधान के परवर्तन के बाद, पूर्व राष्ट्रपति ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो के उत्तराधिकारी के रूप में बतौर राष्ट्रपति नियुक्त हुए थे, औए 1078 में, मुहम्मद ज़िया-उल-हक़ के सैन्य तख्तापलट तक, इस पद पर विराजमान रहे। इसके अलावा वे पाकिस्तान की क़ौमी असेम्बली के सदस्य थे। और उन्हें 15 अगस्त 1972 - 7 अगस्त 1973, के बीच पाकिस्तान की क़ौमी असेम्बली के अध्यक्ष के पद पर नियुक्त किया गया था। पाकिस्तान की क़ौमी असेंबली के अध्यक्ष का पद, पाकिस्तान की संविधान द्वारा स्थापित एक संवैधानिक पद है, जोकी पाकिस्तान की क़ौमी असेम्बली के सभापति एवं अधिष्ठाता होते हैं। .

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ब्रिटिश राज

ब्रिटिश राज 1858 और 1947 के बीच भारतीय उपमहाद्वीप पर ब्रिटिश द्वारा शासन था। क्षेत्र जो सीधे ब्रिटेन के नियंत्रण में था जिसे आम तौर पर समकालीन उपयोग में "इंडिया" कहा जाता था‌- उसमें वो क्षेत्र शामिल थे जिन पर ब्रिटेन का सीधा प्रशासन था (समकालीन, "ब्रिटिश इंडिया") और वो रियासतें जिन पर व्यक्तिगत शासक राज करते थे पर उन पर ब्रिटिश क्राउन की सर्वोपरिता थी। .

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भारत में विश्वविद्यालयों की सूची

यहाँ भारत में विश्वविद्यालयों की सूची दी गई है। भारत में सार्वजनिक और निजी, दोनों विश्वविद्यालय हैं जिनमें से कई भारत सरकार और राज्य सरकार द्वारा समर्थित हैं। इनके अलावा निजी विश्वविद्यालय भी मौजूद हैं, जो विभिन्न निकायों और समितियों द्वारा समर्थित हैं। शीर्ष दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालयों के तहत सूचीबद्ध विश्वविद्यालयों में से अधिकांश भारत में स्थित हैं। .

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भारत में इस्लाम

भारतीय गणतंत्र में हिन्दू धर्म के बाद इस्लाम दूसरा सर्वाधिक प्रचलित धर्म है, जो देश की जनसंख्या का 14.2% है (2011 की जनगणना के अनुसार 17.2 करोड़)। भारत में इस्लाम का आगमन करीब 7वीं शताब्दी में अरब के व्यापारियों के आने से हुआ था (629 ईसवी सन्‌) और तब से यह भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का एक अभिन्न अंग बन गया है। वर्षों से, सम्पूर्ण भारत में हिन्दू और मुस्लिम संस्कृतियों का एक अद्भुत मिलन होता आया है और भारत के आर्थिक उदय और सांस्कृतिक प्रभुत्व में मुसलमानों ने महती भूमिका निभाई है। हालांकि कुछ इतिहासकार ये दावा करते हैं कि मुसलमानों के शासनकाल में हिंदुओं पर क्रूरता किए गए। मंदिरों को तोड़ा गया। जबरन धर्मपरिवर्तन करा कर मुसलमान बनाया गया। ऐसा भी कहा जाता है कि एक मुसलमान शासक टीपू शुल्तान खुद ये दावा करता था कि उसने चार लाख हिंदुओं का धर्म परिवर्तन करवाया था। न्यूयॉर्क टाइम्स, प्रकाशित: 11 दिसम्बर 1992 विश्व में भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां सरकार हज यात्रा के लिए विमान के किराया में सब्सिडी देती थी और २००७ के अनुसार प्रति यात्री 47454 खर्च करती थी। हालांकि 2018 से रियायत हटा ली गयी है। .

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भारत का राजनीतिक एकीकरण

१९४७ में स्वतन्त्रता के तुरन्त बाद भारत की राजनीतिक स्थिति १९०९ में 'ब्रितानी भारत' तथा देसी रियासतें स्वतंत्रता के समय 'भारत' के अन्तर्गत तीन तरह के क्षेत्र थे-.

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भारत के राष्ट्रपतियों की सूची

भारत का राष्ट्रपति देश का मुखिया और भारत का प्रथम नागरिक है। राष्ट्रपति के पास भारतीय सशस्त्र सेना की भी सर्वोच्च कमान है। भारत का राष्ट्रपति लोक सभा, राज्यसभा और विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा चुना जाता है। भारत के राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है। भारत की स्वतंत्रता से अबतक 13 राष्ट्रपति हो चुके है। भारत के राष्ट्रपति पद की स्थापना भारतीय संविधान के द्वारा की गयी है। इन 13 राष्ट्रपतियों के अलावा 3 कार्यवाहक राष्ट्रपति भी हुए हैं जो पदस्थ राष्ट्रपति की मृत्यु के बाद बनाये गए है। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद थे। 7 राष्ट्रपति निर्वाचित होने से पूर्व राजनीतिक पार्टी के सदस्य रह चुके है। इनमे से 6 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और 1 जनता पार्टी के सदस्य शामिल है, जो बाद राष्ट्रपति बने। दो राष्ट्रपति, ज़ाकिर हुसैन और फ़ख़रुद्दीन अली अहमद, जिनकी पदस्थ रहते हुए मृत्यु हुई। भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी है जो 25 जुलाई 2012 को भारत के 13 वें राष्ट्रपति के तौर पर निर्वाचित हुए राष्ट्रपति रहने से पूर्व वे भारत सरकार में वित्त मंत्री, विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री और योजना आयोग के उपाध्यक्ष रह चुके है। वे मूल रूप से पश्चिम बंगाल के निवासी है इसलिए वे इस राज्य से पहले राष्ट्रपति हैं। इससे पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल भारत की पहली महिला राष्ट्रपति है। वर्तमान में 25 जुलाई 2017 को राष्ट्रपति का पद रामनाथ कोविंद को प्राप्त हुआ है। .

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भारत के वित्त मंत्री

भारत का वित्त मंत्री भारत सरकार में एक कैबिनेट मंत्री का दर्जा होता है। उसका काम देश का आम बजट तैयार करना होता है एवं वह देश की अर्थव्यवस्था का मुख्य संचालक होता है। .

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मसूद हुसैन ख़ान

मसूद हुसैन ख़ान (28 जनवरी 1919 - 16 अक्टूबर 2010) एक प्रख्यात भारतीय शिक्षाविद, भाषाविद् और साहित्यकार थे। वे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में सामाजिक विज्ञान के पहले प्रोफेसर एमेरिटस थे और नई दिल्ली स्थित केन्द्रीय विश्वविद्यालय जामिया मिलिया इस्लामिया के पांचवें कुलपति थे। वर्ष-१९८४ में उनकी साहित्यिक आलोचना की पुस्तक इक़बाल की नज़री–ओ–अमली शेरियात के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया था। .

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मुफ़्ती मोहम्मद सईद

मुफ़्ती मोहम्मद सईद (12 जनवरी 1936 - 7 जनवरी 2016) भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य के मुख्यमंत्री थे। वे जम्मू और कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष थे। वे भारत के गृह मंत्री भी रहे। इस पद पर आसीन होने वाले वे पहले मुस्लिम भारतीय थे। ०७ जनवरी २०१६ को दिल्ली में उनका निधन हुआ। २०१४ के चुनावों में वे अनंतनाग विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार हिलाल अहमद शाह को 6028 वोटों के अंतर से हराकर विधायक निर्वाचित हुए। साल १९८९ में इनकी बेटी रूबैया सईद का अपहरण कर लिया गया था। रुबैया के बदले में आतंकवादियों ने अपने पांच साथियों को मुक्त करवा दिया था। इस घटना का विरोध जम्मू कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने किया था। भारत के गृहमंत्री रहते हुए भी २४ दिसम्बर १९९९ को इन्डियन एयरलाइंस का विमान अपहृत कर लिया गया, परिणाम स्वरूप अजहर मसूद एवं अन्य दो आतंकियों को रिहा करना पड़ा। .

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मुहम्मद अली जौहर

मुहम्मद अली जौहर: (10 दिसंबर 1878 - 4 जनवरी 1931), जिन्हें मौलाना मोहम्मद अली जौहर (अरबी: مولانا محمد علی جوہر) के नाम से भी जाना जाता है, एक भारतीय मुस्लिम नेता, कार्यकर्ता, विद्वान, पत्रकार और कवि थे। वर्तमान में मुहम्मद अली के सम्मान में रामपुर जिले में मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय समर्पित है। .

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मौलाना आजाद पुस्तकालय

मौलाना आजाद लाइब्रेरी (हिन्दी: मौलाना आज़ाद किताब ख़ाना, उर्दू: مولانا آزاد کِتاب خانہ Maulānā Azād Kitāb Kh āna) अलीगढ़, भारत में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का पुस्तकालय है। इस  केंद्रीय पुस्तकालय मे 80 से अधिक महाविद्यालय और विभागीय पुस्तकालय हैं। इन पुस्तकालयों को स्नातकोत्तर और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के छात्रों  की जरूरत है। यह  एशिया का दूसरा सबसे बड़ा पुस्तकालय भी है। .

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मेहदी ख्वाजा पीरी

मेहदी ख्वाजा पीरी (फ़ारसी), नूर अंतर्राष्ट्रीय माइक्रोफिल्म केन्द्र, नई दिल्ली के संस्थापक है। इनका जन्म (1955) में तेहरान में स्थित याहिया मज़ार (इमाम जादा) के पास एक धार्मिक परिवार में हुआ। मरम्मत, पेस्टिंग और एक ही पाण्डुलिपि (हस्तलिपि) की दूसरी प्रतिलिपियों के प्रिंट के नए तरीको का अविष्कार किया जो प्राचीन ग्रंथो के संरक्षण में एक अभिनव कदम है। उन्होंने भारत में पुस्तको के पुनरुद्धार (पुनर्जीवन) में अपने जीवन के 35 वर्ष बिताये। इस अवधि के दौरान वह भारत की विविध संस्कृतियों से परिचित हुए। और इसके अलावा हिंदी, अंग्रेजी, और अरबी में भी महारत हासिल की। .

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मोहम्मद मंसूर अली

मुहम्मद मंसूर अली, (बंगाली: মোঃ মনসুর আলী; 1919 – नवंबर 3, 1975) एक बांग्लादेशी राजनेता व स्वतंत्रता सेनानी थे। वे शेख मुजीबुर्रहमान के करीब विश्वासपात्रों में शामिल थे, और 60-70 के दशकों के अवामी लीग के वरिष्ठ नेता थे। वे 25 जनवरी 1975 से 15 अगस्त 1975 तक बांग्लादेश के प्रधानमंत्री थे। 15 अगस्त 1975 को शेख मुजीब की हत्या कर, सैन्य तख्तापलट किया गया। 22 अगस्त को मंसूर को, अन्य अनेक राजनीतिज्ञों के साथ, जेल में बंद कर दिया गया, और 3 नवंबर 1975 की, जेल हत्या दिवस के नाम से कुख्यात, रात को उन्हें और उनके तीन साथियों समेत सेना द्वारा, बिना-मुकदमा, जेल में ही मार दिया गया। .

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मोहम्मद हामिद अंसारी

मोहम्मद हामिद अंसारी (जन्म १ अप्रैल १९३४), भारत के उपराष्ट्रपति थे। वे भारतीय अल्पसंख्यक आयोग के भूतपूर्व अध्यक्ष भी हैं। वे एक शिक्षाविद, तथा प्रमुख राजनेता हैं, एवं अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी रह चुके हैं। वे 10 अगस्त 2007 को भारत के 13वें उपराष्ट्रपति चुने गये। .

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यासर शाह

यासर शाह,भारत के उत्तर प्रदेश की सोलहवीं विधानसभा सभा में विधायक रहे। 2012 उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश की मटेरा विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र (निर्वाचन संख्या-284)से चुनाव जीता। .

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राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क

राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) भारत में उच्च शिक्षा के सभी संस्थानों को रैंक करने के लिए, मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी), भारत सरकार द्वारा अपनाई गई एक पद्धति है। फ्रेमवर्क को मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा अनुमोदित किया गया और मानव संसाधन विकास मंत्री ने 2 9 सितंबर, 2015 को लॉन्च किया। विश्वविद्यालयों और कॉलेजों, इंजीनियरिंग संस्थानों, प्रबंधन संस्थानों, फार्मेसी संस्थानों और वास्तुकला संस्थानों जैसे ऑपरेशन के अपने क्षेत्रों के आधार पर विभिन्न प्रकार के संस्थानों के लिए अलग रैंकिंग है। फ्रेमवर्क संसाधनों, अनुसंधान और हितधारक की धारणा जैसे रैंकिंग उद्देश्यों के लिए कई मापदंडों का उपयोग करता है। इन मापदंडों को पांच समूहों में समूहीकृत किया गया है और इन समूहों को विशिष्ट भार निर्दिष्ट किया गया है। भार संस्था के प्रकार पर निर्भर करता है। लगभग 3500 संस्थानों ने रैंकिंग के पहले दौर में स्वेच्छा से भाग लिया। 4 अप्रैल 2016 को एमएचआरडी द्वारा रैंक वाली सूची जारी की गई। .

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राही मासूम रज़ा

राही मासूम रज़ा (१ सितंबर, १९२५-१५ मार्च १९९२) का जन्म गाजीपुर जिले के गंगौली गांव में हुआ था और प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा गंगा किनारे गाजीपुर शहर के एक मुहल्ले में हुई थी। बचपन में पैर में पोलियो हो जाने के कारण उनकी पढ़ाई कुछ सालों के लिए छूट गयी, लेकिन इंटरमीडियट करने के बाद वह अलीगढ़ आ गये और यहीं से एमए करने के बाद उर्दू में `तिलिस्म-ए-होशरुबा' पर पीएच.डी.

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लियाक़त अली ख़ान

नवबजादा लियाक़त अली ख़ान पाकिस्तान के प्रथम प्रधानमंत्री थे जिन्होंने पाकिस्तान आंदोलन के दौरान मुहम्मद अली जिन्ना के साथ कई दौरे किये। भारत के प्रथम वाणिज्य मंत्री भी थे (अंग्रेज़ो के अधीन भारत)। इनका परिवार अंग्रेजों से अच्छे संबंध रखता था। सन् १९५१ में रावलपिण्डी में इनका क़त्ल हो गया - जिसकी गुत्थी अभी तक नहीं सुलझी है। साद अकबर बाबरक नामक हत्यारा एक अफ़ग़ान था। यह पाकिस्तान के प्रथम रक्षा मंत्री भी रहे और पाकिस्तान के प्रथम विदेश मंत्री भी रहे | पाकिस्तान के प्रधान मन्त्री श्रेणी:पाकिस्तान के प्रधान मन्त्री श्रेणी:पाकिस्तानी राजनीतिज्ञ.

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शाद खान

शाद खान (जन्म: 30 मई, 1976) एक अभिनेता हैं। .

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सय्यद अहमद क़ाद्री

सय्यद अहमद क़ाद्री (उर्दू: سيد احمد قادري) हैदराबाद के निजाम सरकार और बाद में भारत सरकार और यूएनओ में एक प्रशासक, शिक्षाविद और वरिष्ठ अधिकारी थे। .

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सलमा ज़ैदी

सलमा ज़ैदी (15 नवंबर 1950-30 मार्च 2015) एक भारतीय महिला पत्रकार और अनुवादक थीं। वे बीबीसी से लंबे समय तक जुड़ी रहीं हैं और हिंदी भाषा में डिजिटल दुनिया में काम कर रही चंद महिलाओं में शुमार थीं। उन्होंने बीबीसी में अपनी पारी की शुरुआत बीबीसी हिंदी रेडियो से की थी। बाद में वे बीबीसी हिंदी ऑनलाइन की प्रमुख बनीं। बीबीसी में उन्होंने महिलाओं, अल्पसंख्यकों और बच्चों से जुड़े विषयों पर विशेष काम किया। .

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साहिब सिंह वर्मा

साहिब सिंह वर्मा (अंग्रेजी: Sahib Singh Verma, जन्म:15 मार्च 1943 - मृत्यु: 30 जून 2007) भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष व तेरहवीं लोक सभा के सांसद (1999–2004) थे। 2002 में उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी सरकार में श्रम मन्त्री नियुक्त किया। इससे पूर्व साहब सिंह 1996 से 1998 तक दिल्ली प्रदेश के मुख्यमन्त्री भी रहे। 30 जून्, 2007 को जयपुर-दिल्ली हाईवे पर एक कार-दुर्घटना में अचानक उनका देहान्त हो गया। उस समय वे सीकर जिला से नीम का थाना में एक विद्यालय की आधारशिला रखकर वापस अपने घर दिल्ली आ रहे थे। .

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सैयद अमीरमाह बहराइची

सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी मीर सय्यद अमीर माह बहराइची मुईन अहमद अलवी काकोरवी 1972ई प्रकाशित  के नाम के कारण कौन है जो बहराइच के नाम से परिचित नहीं। तारीख के हरदोर में बहराइच का उल्लेख मिलता है। बुद्ध के ज़माने के आसार गवाही आज भी जिले के कुछ खंडहर से मिलती है। भारत में मुसलमानों के आगमन और सुल्तान महमूद गज़नवी के हमलों के बाद बहराइच नाम इतिहास के पन्नों सजाना 250px बनता है। सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी अपनी सैन्य शक्ति के साथ उत्तर भारत की राजनीतिक शक्तियों से मोर्चा लेते बहराइच तक आकर घर जाते हैं। यहाँ के राजाओं ने एकजुट होकर उनसे युद्ध किया और 424 हिजरी अनुसार 1033 में 14 /माह रजब दिन रविवार आप यहाँ शहीद हो गए। आपकी मज़ार भी बाद में यहाँ बना और मेला भी लगता है। इसी काल से बहराइच की प्रतिष्ठा बराबर स्थापित है। मोहम्मद शाह तुग़लक़ और फ़िरोज़शाह तुग़लक़ दोनों अाप की मज़ार पर हाज़िरी देने आए। फ़िरोज़शाह तुग़लक़ के आगमन के अवसर पर सैयद अमीरमाह बहराइची नामक बुजुर्ग का नाम आता है, वह उन्हीं बुजुर्ग के साथ सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी की मज़ार पर हाज़िरी दी थी।वह सैयद अमीरमाह के आध्यात्मिक प्रभाव से प्रभावित हुआ था, और उसके जीवन में कुछ परिवर्तन हुआ था, फ़िरोज़शाह के आगमन और सैयद अमीरमाह साहब की बैठक के बारे में तारीख फिरोज शाही में है कि: अच्छी सोहबत का अच्छा नतीजा निकलता है " पुस्तकों के देखने से पता चलता है कि सैयद अमीरमाह के समय में आप को सबने श्रद्धांजलि दी है, उस दौर जितने भी सूफी संत हैं सबने किसी न किसी तरीके से आप का उल्लेख किया है, और उनके मलफ़ूज़ात में आप का नाम मौजूद है।अापका पूरा नाम सैयद अफ़जल दीन अबू ज़फ़र अमीरमाह बहराइची है, फ़िरोज़ शाही दौर 752 हिजरी 1351 ई- से 790 हिजरी 1388 ई के प्रसिद्ध बुजुर्ग हैं। तारीख़ फ़िरोज़ शाही में आपका उल्लेख है। हज़रत शेख़ शरफ़ुद्दीन यहया मुनीरी (मृतक 782 हिजरी) बिहार के प्रसिद्ध सूफी संत के मलफ़ूज़ात में भी अापके संक्षिप्त उल्लेख है।हज़रत सैयद अशरफ़ जहांगीर समनानी (मृतक 808 हिजरी) के मलफ़ूज़ात लताइयफ अशरफ़ी आदि में जो उनके मुरीदऔर ख़लीफ़ा शेख़ निजामुद्दीन गरीब यमनी ने एकत्र किया है, उसमे आप का उल्लेख इन शब्दों में: बहराइच के सादात में से सैयद अफ़जल दीन अबू ज़फ़र अमीरमाह को मैंने देखा है। हज़रत अमीर सैयद अली हमदानी (मृतक 787 हिजरी) कश्मीर पहले सूफी और लेेखक और सबसे प्रसिद्ध बुजुर्ग हैं। अपनी पुस्तक उम्दातुल मतालिब में भारत के इन बारह सही उलनसब परिवारों का हाल लिखा है जो विलायत से भारत आए, उनमें सैयद अमीर माह का नामक है। (5) तारीख़ फ़रिश्ता में फ़िरोज़शाह तुग़लक़ यात्रा बहराइच के उल्लेख में अमीरमााह का उल्लेख है, फ़िरोज़शाह तुग़लक़ इन्ही बुजुर्ग से प्रभावित होकर अमीरमााह ही के साथ सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी के मज़ार पर हाज़िरी हुआ था। रास्ते में सैयद साहब से हज़रत सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी की बुज़ुर्गी की करामात के बारे में पूछने लगा। आपने फ़रमाया कि यही करामत क्या कम है कि आप जैसा राजा और मेरे जैसा फ़कीर दोनों उनकी द्वारपाल कर रहे हैं इस जवाब पर राजा जिसके दिल में प्रेम की चाशनी थी बहुत मनोरंजन हुआ। (6) तिथि फिरोज शाही के संबंध में प्रोफेसर रिएक अहमद प्रणाली (अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय) अपनी पुस्तक किंग्स दिल्ली धार्मिक रुझान में लिखते हैं कहमीर सैयद अमीर महीने बहराइच प्रसिद्ध ोमिरोफ मशाईख तरीक़त थे। सैयद अलाउद्दीन उर्फ ​​ब अली जावरी से बैअत थी। ोहदत वजूद विभिन्न मुद्दों पर पत्रिका ालम्लोब प्रति ालिशक ालमहबोब लिखा था फिरोजशाह जब बहराइच गया था तो उन की सेवा में भी हाज़िर हुआ और पाली साहचर्य नेक दगरम निर्यात । फिरोजशाह मन में मंदिर (हज़रत सैयद सालार मसूद गाजी) से संबंधित कुछ संदेह भी थे, जिन्हें सैयद अमीर महीने ने रफा किया। अब्दुर्रहमान चिश्ती (लेखक मिरातुल असरार) का बयान है कि इस मुलाकात के बाद फिरोजशाह दिल दुनिया से ठंड पड़ गया था, और उसने बाकी उम्र याद इलाही में कटौती दी। या बयान अतिरंजित ज़रूर है, लेकिन गलत नहीं, बहराइच के यात्रा के बाद फिरोज धर्म कागलबह हो गया था। (7) लेखक दर्पण अवध ने हज़रत सैयद अहमद वालिद मौलाना सुास्थी उल्लेख के संबंध में हज़रत सैयद अली हमदानी की दूसरी किताब स्रोत ालांसाब यह पाठ नकल है कहहज़रत मीर सैयद मखदूम मौलाना सुास्थी साहब कि कब्र ओ दर कटरह विसर्जन पाली बुजुर्ग और साहब पूर्णता से खुल्फाए मीर सैयद अलाउद्दीन जयपुरी इंदु हज़रत अबू जफर अमीर महीने बहराइच ोहज़रत मख़दूम सूचीबद्ध हम ताश ख्वाजा बोदनद.ाें हर दो बुज़ुर्गों ोरिएफह सही हज़रत मीर सैयद अलाउद्दीन जयपुरी इंदु मीर सैयद अलाउद्दीन को लेखक प्रशांत ालांसाब हज़रत सैयद अली हमदानी ने इमाम आलम, आलम दीनदार ध्रुव ालसादात प्रति ोकतह, शिक्षक ालारादात और सैयद ालसादात एस शब्दों से याद किया है, आप श्रृंखला सहरोरदया प्रसिद्ध नेता हैं। लेखक मरأۃालासरार मौलवी अब्दुल रहमान चिश्ती ने जो हज़रत सैयद सालार मसूद गाजी की आत्मा फ़्तोह से लाभान्वित हुए थे और समय तक बहराइच में स्थित रहे थे इसी भक्ति में मरأۃ मसूदी लिखी है, मरأۃ कक्षीय भी अपनी लिखी है, मिरातुल असरार में मकतोबात हज़रत मखदूम अशरफ जहांगीर कछोछोी के हवाले से लिखते हैं: मीर सैयद अशरफ जहा नगीर समनानी अपने एक पत्र 32 में (जो सादात बहराइच का उल्लेख है) लिखते हैं सादात ख्हٔ बहराइच के वंश बहुत प्रसिद्ध है, सादात बहराइच में सैयद अबू जाफ़र अमीर महीने मैंने देखा है, घाटी असमानता में बेनजीर थे, सैयद शहीद मसूद गाजी के मजार उपस्थिति मोक अ पर और सैयद अबू जफर अमीर महीने और हज़रते ख़िज़्र अलैहिस्सलाम साथ थे उनकी मशीखत अक्सर स्थिति के लिए मैं हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम की आत्मा को भुनाया है, सैयद अमीर महीने का मज़ार तीर्थ स्थल सृष्टि है । मिरातुल असरार के बीसवें सेगमेंट में मीर सैयद अलाउद्दीन कनतवरी शर्तों के बाद हज़रत सैयद अमीर महीने रहमतुल्लाह अलैह के नाम िलीहद राजा शीर्षक स्थापित करके विस्तार परिस्थितियों लिखे हैं: आरिफ पेशवाये विश्वास, मकतदाए समय ' 'कामलान रोजगार' 'बुज़ुर्गों साहब रहस्य' के ालकाब से चर्चा .

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सैयद अहमद ख़ान

सर सैयद अहमद ख़ान (उर्दू:, 17 अक्टूबर 1817 - 27 मार्च 1898) हिन्दुस्तानी शिक्षक और नेता थे जिन्होंने भारत के मुसलमानों के लिए आधुनिक शिक्षा की शुरुआत की। उन्होने मुहम्मदन एंग्लो-ओरिएण्टल कालेज की स्थापना की जो बाद में विकसित होकर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बना। उनके प्रयासों से अलीगढ़ क्रांति की शुरुआत हुई, जिसमें शामिल मुस्लिम बुद्धिजीवियों और नेताओं ने भारतीय मुसलमानों को हिन्दुओं से अलग करने का काम किया और पाकिस्तान की नींव डाली। सय्यद अहमद खान ईस्ट इण्डिया कम्पनी में काम करते हुए काफ़ी प्रसिद्ध हुए। सय्यद अहमद १८५७ के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय ब्रिटिश साम्राज्य के वफादार बने रहे और उन्होने बहुत से यूरोपियों की जान बचायी। बाद में उस संग्राम के विषय में उन्होने एक किताब लिखी: असबाब-ए-बग़ावत-ए-हिन्द, जिसमें उन्होने ब्रिटिश सरकार की नीतियों की आलोचना की। ये अपने समय के सबसे प्रभावशाली मुस्लिम नेता थे। उनका विचार था कि भारत के मुसलमानों को ब्रिटिश सरकार के प्रति वफ़ादार नहीं रहना चाहिये। उन्होने उर्दू को भारतीय मुसलमानों की सामूहिक भाषा बनाने पर ज़ोर दिया। .

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हबीब तनवीर

हबीब तनवीर चित्र में दाहिने हबीब तनवीर (जन्म: 1 सितंबर 1923) भारत के मशहूर पटकथा लेखक, नाट्य निर्देशक, कवि और अभिनेता थे। हबीब तनवीर का जन्म छत्तीसगढ़ के रायपुर में हुआ था, जबकि निधन 8 जून,2009 को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में हुआ। उनकी प्रमुख कृतियों में आगरा बाजार (1954) चरणदास चोर (1975) शामिल है। उन्होंने 1959 में दिल्ली में नया थियेटर कंपनी स्थापित किया था। .

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हकीम सय्यद ज़िल्लुर रहमान

हकीम सय्यद ज़िल्लुर रहमान (حکیم سید ظل ا لرحمن.) (হাকিম সৈয়দ জিল্লুর রহমান), एक मशहूर यूनानी चिकित्सा के अनुसंधानकर्ता हैं। उनका योगदान यूनानी वैद्य विधान के लिये काफ़ी महत्वपूर्ण माना जाता है। इन्हों ने २००० ई को इब्न सीना अकाडेमी आफ़ मेडिसिन अंड सैन्सेस की स्थापना की। यह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अजमल खान तिब्बिया कालेज के प्रोफ़ेसर और चैरमन रह चुके हैं। में चलीस साल की सेवा के बाद वह डीन और इतर सेवाओं के बाद रिटैर हुए। उन्होंने 45 ग्रन्थ एवम पुस्तक लिखे, जो यूनानी वैद्य विधान पर निर्भर हैं। इन के पास यूनानी पुस्तक भंडार भी मौजूद है। भारत की सरकार ने इनको यूनानी वैद्यविधान पर विशेश काम के लिये, पद्मश्री पुरस्कार से २००६ में सम्मानित किया। .

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ज़मीर उद्दीन शाह

लेफ्टिनेंट जनरल (सेवा निवृत्त) ज़मीर उद्दीन शाह का जन्म १५ अगस्त १९४८ को हुआ था। वह संत जोसफ स्कूल, नैनीताल के भूतपूर्व छात्र हैं। वह भारतीय सेना में डिप्टी चीफ ऑफ़ आर्मी स्टाफ के रूप में कार्य कर चुके हैं। वह वर्तमान में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति हैं। .

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ज़ाकिर हुसैन (राजनीतिज्ञ)

डाक्टर ज़ाकिर हुसैन (8 फरवरी, 1897 - 3 मई, 1969, indiapress.org पर भारत के पूर्व राष्ट्रपतियों की जीवनी) भारत के तीसरे राष्ट्रपति थे जिनका कार्यकाल 13 मई 1967 से 3 मई 1969 तक था। डा.

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जावेद उस्मानी

वह भारतीय प्रबंध संस्थान, अहमदाबाद के एक पुराने छात्र था IIM Ahmedabad.JPG जावेद उस्मानी (Jawed Usmani.; جاوید عثمانی) भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक अधिकारी हैं। वर्तमान में वे उत्तर प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त है। पूर्व में वे मार्च 2012 मई 2014 तक उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव रह चुके हैं। वे वर्ष 2003 से 2007 तक समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के प्रमुख सचिव रह चुके हैं। उन्हें कुछ ही दिन पहले योजना आयोग का सचिव बनाया गया था। .

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जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज (अलीगढ़)

जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज (जे.एन.एम.सी. या जे.एन.मेडिकल कॉलेज) अलीगढ़ उत्तर प्रदेश में स्थित एक मेडिकल कॉलेज है। यह मेडिकल कॉलेज अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय द्वारा मान्यता प्राप्त है। .

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खान हबीबुल्लाह खान

खान हबीबुल्लाह खान, एक पाकिस्तानी राजनेता थे। वे अय्यूब खान की सरकार के दौरान पाकिस्तान के गृह मंत्री थे, और बाद में उन्होंने जुल्फिकार अली भुट्टो के प्रशासन के दौरान उनहोंने पाकिस्तान की उच्चसदन के सभापति के रूप में सेवा की थी। सभापति के रूप में उनका कार्यकाल, अगस्त १९७३ से जुलाई १९७७ तक था। .

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कर्ण सिंह

कर्ण सिंह कर्ण सिंह (जन्म 1931) भारतीय राजनेता, लेखक और कूटनीतिज्ञ हैं। जम्मू और कश्मीर के महाराजा हरि सिंह और महारानी तारा देवी के प्रत्यक्ष उत्तराधिकारी (युवराज) के रूप में जन्मे डॉ॰ कर्ण सिंह ने अठारह वर्ष की ही उम्र में राजनीतिक जीवन में प्रवेश कर लिया था और वर्ष १९४९ में प्रधानमन्त्री पं॰ जवाहरलाल नेहरू के हस्तक्षेप पर उनके पिता ने उन्हें राजप्रतिनिधि (रीजेंट) नियुक्त कर दिया। इसके पश्चात अगले अठारह वर्षों के दौरान वे राजप्रतिनिधि, निर्वाचित सदर-ए-रियासत और अन्तत: राज्यपाल के पदों पर रहे। १९६७ में डॉ॰ कर्ण सिंह प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किए गए। इसके तुरन्त बाद वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में जम्मू और कश्मीर के उधमपुर संसदीय क्षेत्र से भारी बहुमत से लोक सभा के सदस्य निर्वाचित हुए। इसी क्षेत्र से वे वर्ष १९७१, १९७७ और १९८० में पुन: चुने गए। डॉ॰ कर्ण सिंह को पहले पर्यटन और नगर विमानन मंत्रालय सौंपा गया। वे ६ वर्ष तक इस मंत्रालय में रहे, जहाँ उन्होंने अपनी सूक्ष्मदृष्टि और सक्रियता की अमिट छाप छोड़ी। १९७३ में वे स्वास्थ्य और परिवार नियोजन मंत्री बने। १९७६ में जब उन्होंने राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की घोषणा की तो परिवार नियोजन का विषय एक राष्ट्रीय प्रतिबद्धता के रूप में उभरा। १९७९ में वे शिक्षा और संस्कृति मंत्री बने। डॉ॰ कर्ण सिंह पूर्व रियासतों के अकेले ऐसे पूर्व शासक थे, जिन्होंने स्वेच्छा से निजी कोश(प्रिवी पर्स) का त्याग किया। उन्होंने अपनी सारी राशि अपने माता-पिता के नाम पर भारत में मानव सेवा के लिए स्थापित 'हरि-तारा धर्मार्थ न्यास' को दे दी। उन्होंने जम्मू के अपने अमर महल (राजभवन) को संग्रहालय एवं पुस्तकालय में परिवर्तित कर दिया। इसमें पहाड़ी लघुचित्रों और आधुनिक भारतीय कला का अमूल्य संग्रह तथा बीस हजार से अधिक पुस्तकों का निजी संग्रह है। डॉ॰ कर्ण सिंह धर्मार्थ न्यास के अन्तर्गत चल रहे सौ से अधिक हिन्दू तीर्थ-स्थलों तथा मंदिरों सहित जम्मू और कश्मीर में अन्य कई न्यासों का काम-काज भी देखते हैं। हाल ही में उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय विज्ञान, संस्कृति और चेतना केंद्र की स्थापना की है। यह केंद्र सृजनात्मक दृष्टिकोण के एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में उभर रहा है। कर्ण सिंह ने देहरादून स्थित दून स्कूल से सीनियर कैम्ब्रिज परीक्षा प्रथम श्रेणी के साथ उत्तीर्ण की और इसके बाद जम्मू और कश्मीर विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि प्राप्त की। वे इसी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी रह चुके हैं। वर्ष १९५७ में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीतिक विज्ञान में एम.ए. उपाधि हासिल की। उन्होंने श्री अरविन्द की राजनीतिक विचारधारा पर शोध प्रबन्ध लिख कर दिल्ली विश्वविद्यालय से डाक्टरेट उपाधि का अलंकरण प्राप्त किया। कर्ण सिंह कई वर्षों तक जम्मू और कश्मीर विश्वविद्यालय और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलाधिपति रहे हैं। वे केंद्रीय संस्कृत बोर्ड के अध्यक्ष, भारतीय लेखक संघ, भारतीय राष्ट्र मण्डल सोसायटी और दिल्ली संगीत सोसायटी के सभापति रहे हैं। वे जवाहरलाल नेहरू स्मारक निधि के उपाध्यक्ष, टेम्पल ऑफ अंडरस्टेंडिंग (एक प्रसिद्ध अन्तर्राष्ट्रीय अन्तर्विश्वास संगठन) के अध्यक्ष, भारत पर्यावरण और विकास जनायोग के अध्यक्ष, इंडिया इंटरनेशनल सेंटर और विराट हिन्दू समाज के सभापति हैं। उन्हें अनेक मानद उपाधियों और पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। इनमें - बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और सोका विश्वविद्यालय, तोक्यो से प्राप्त डाक्टरेट की मानद उपाधियां उल्लेखनीय हैं। वे कई वर्षों तक भारतीय वन्यजीव बोर्ड के अध्यक्ष और अत्यधिक सफल - प्रोजेक्ट टाइगर - के अध्यक्ष रहने के कारण उसके आजीवन संरक्षी हैं। डॉ॰ कर्ण सिंह ने राजनीति विज्ञान पर अनेक पुस्तकें, दार्शनिक निबन्ध, यात्रा-विवरण और कविताएं अंग्रेजी में लिखी हैं। उनके महत्वपूर्ण संग्रह "वन मैन्स वर्ल्ड" (एक आदमी की दुनिया) और हिन्दूवाद पर लिखे निबंधों की काफी सराहना हुई है। उन्होंने अपनी मातृभाषा डोगरी में कुछ भक्तिपूर्ण गीतों की रचना भी की है। भारतीय सांस्कृतिक परम्परा में अपनी गहन अन्तर्दृष्टि और पश्चिमी साहित्य और सभ्यता की विस्तृत जानकारी के कारण वे भारत और विदेशों में एक विशिष्ट विचारक और नेता के रूप में जाने जाते हैं। संयुक्त राज्य अमरीका में भारतीय राजदूत के रूप में उनका कार्यकाल हालांकि कम ही रहा है, लेकिन इस दौरान उन्हें दोनों ही देशों में व्यापक और अत्यधिक अनुकूल मीडिया कवरेज मिली। .

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कुँवरपाल सिंह

प्रो॰ कुँवरपाल सिंह (१९३८ - ८ नवंबर २००९) हिन्दी के जाने माने विद्वान, संपादक, लेखक और साहित्यकार हैं। उनका जन्म हाथरस जिले के कैलोरा ग्राम के एक किसान परिवार में हुआ। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से १९५९ में बी.ए., १९६१ में एम.ए. (हिंदी) तथा १९६९ में पी-एच.डी.

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के के मुहम्मद

"के के मुहम्मद" एक प्रसिद्ध भारतीय पुरातत्वविद् है। वे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के क्षेत्रीय निदेशक (उत्तर) थे, और वर्तमान में आगा खान संस्कृति ट्रस्ट में पुरातात्विक परियोजना निदेशक के रूप में सेवा दे रहे हैं। .

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केन्द्रीय विश्‍वविद्यालय

भारत मे ४5 केन्द्रीय विश्वविद्यालय हैं। इनमे से ४० केन्द्रीय विश्वविद्यालय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत आते हैं एवं कृषि मंत्रालय, जहाज़रानी मंत्रालय, विदेश मन्त्रालय के अंतर्गत एक-एक केंद्रीय विश्वविद्यालय आते हैं।जिसमें इलाहाबाद विश्वविद्यालय सबसे पुराना है। यह भारत की चौथा सबसे पुराना विश्वविद्यालय है। .

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अनुभव सिन्हा

अनुभव सिन्हा (जन्म:२२ जून १९६५) एक भारतीय फिल्म निर्देशक है। जिन्होंने तुम बिन और शाहरुख खान अभिनीत रा.वन जैसी फिल्मों का निर्देशन किया। .

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अयूब ख़ान (पाकिस्तानी शासक)

पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान की तस्वीर अयूब ख़ान पूरा नाम मोहम्मद अयूब खान (जन्म: १४ मई १९०७, मृत्यु: १९ अप्रैल १९७४) सन उन्नीस सौ साठ के दशक में पाकिस्तान के फील्ड मार्शल थे। वे १९५८ से १९६९ तक पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहे। वे पाकिस्तानी सेना के पहले कमाण्डर-इन-चीफ बने। अयूब खान पाकिस्तानी फौज में सबसे कम आयु के जनरल थे जो पाकिस्तान के सैन्य इतिहास में स्वयंभू फील्ड मार्शल बने। वे पाकिस्तान के इतिहास में पहले सैन्य कमाण्डर थे, जिन्होंने सरकार के विरुद्ध सैन्य विद्रोह कर सत्ता पर कब्जा किया। .

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अरशद इस्लाम

अरशद इस्लाम (१९५३ में बिन्डावल, आजमगढ में जन्मे) मलेशिया के अंतर्राष्ट्रीय इस्लामी विश्वविद्यालय में इतिहास शास्त्र के सह प्रोफेसर हैं। उन्होंने अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय से अपनी पीएचडी पूरी की। श्रेणी:मलेशिया श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अलीगढ़

अलीगढ़ उत्तर प्रदेश राज्य में अलीगढ़ जिले में शहर है। अलीगढ़ नगर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कारण विश्व प्रसिद्ध है और अपने तालों(Locks) के लिये भी.

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अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान 'शहरयार'

अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान (१६ जून १९३६ – १३ फ़रवरी २०१२), जिन्हें उनके तख़ल्लुस या उपनाम शहरयार से ही पहचाना जाना जाता है, एक भारतीय शिक्षाविद और भारत में उर्दू शायरी के दिग्गज थे। .

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अंजुमन ए तरक्क़ी ए उर्दू

अंजुमन ए तरक्क़ी ए उर्दू: (उर्दू: انجمن ترقئ اردو) भारत और पाकिस्तान में उर्दू भाषा, साहित्य और संस्कृति के प्रचार और प्रसार के लिए काम कर रहे एक प्रमुख संगठन है। "अंजुमन-ए ताराकी-उर्दू (अब से अंजुमन कहा जाता है) दक्षिण एशिया में सबसे बड़ा उर्दू विद्वानों के प्रचारक संघ है।" .

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अकबर ख़ान

अकबर ख़ान (अंग्रेज़ी: Akbar Khan), १९८९ में विकलांग व्यक्तियों के कल्याण के लिए भारत के राष्ट्रीय पुरस्कार के एक प्राप्तकर्ता हैं। .

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१९२०

कोई विवरण नहीं।

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९ सितम्बर

9 सितंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 252वॉ (लीप वर्ष मे 253 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 113 दिन बाकी है। .

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