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सुहेलदेव

सूची सुहेलदेव

सुहेलदेव श्रावस्ती से अर्ध-पौराणिक भारतीय राजा हैं, जिन्होंने 11वीं शताब्दी की शुरुआत में बहराइच में ग़ज़नवी सेनापति सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी को पराजित कर और मार डाला था। 17वीं शताब्दी के फारसी भाषा के ऐतिहासिक कल्पित कथा मिरात-ए-मसूदी में उनका उल्लेख है। 20वीं शताब्दी के बाद से, विभिन्न हिंदू राष्ट्रवादी समूहों ने उन्हें एक हिंदू राजा के रूप में चिह्नित किया है जिसने एक मुस्लिम आक्रमणकारियों को हरा दिया। .

34 संबंधों: थारू, द क्विंट, दरगाह, दिल्ली, पासी, फ़ारसी भाषा, फ़िरोज़ शाह तुग़लक़, बहराइच, बहुजन समाज पार्टी, बीघा, भर, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, महमूद ग़ज़नवी, मुल्तान, मेरठ, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, राजपूत, श्रावस्ती, सिन्धु नदी, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, सुहेलदेव सुपरफास्ट एक्सप्रेस, सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी, सैयद सालार साहू गाजी, हिन्दू राष्ट्रवाद, जहाँगीर, जैन धर्म, विश्व हिंदू परिषद, वोटबैंक, ग़ज़नवी साम्राज्य, आर्य समाज, आश्रम, अखिल भारतीय राम राज्य परिषद, अखिल भारतीय हिन्दू महासभा

थारू

परम्परागत वस्त्रों में थारू स्त्रियाँ थारू पुरुष मछली पकड़ने के लिये जातीं थारू स्त्रियाँ थारू, नेपाल और भारत के सीमावर्ती तराई क्षेत्र में पायी जाने वाली एक जनजाति है। नेपाल की सकल जनसंख्या का लगभग 6.6% लोग थारू हैं। भारत में बिहार के चम्पारन जिले में और उत्तराखण्ड के नैनीताल और ऊधम सिंह नगर में थारू पाये जाते हैं। थारुओं का मुख्य निवास स्थान जलोढ़ मिट्टी वाला हिमालय का संपूर्ण उपपर्वतीय भाग तथा उत्तर प्रदेश के उत्तरी जिले वाला तराई प्रदेश है। ये हिन्दू धर्म मानते हैं तथा हिन्दुओं के सभी त्योहार मनाते हैं। .

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द क्विंट

द क्विंट (The Quint) एक भारतीय समाचार वेबसाइट है। यह वेबसाइट कुलभूषण जाधव मामले से संबंधित रिपोर्ट प्रकाशित करने के कारण जनवरी, 2018 में काफी चर्चित रही। .

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दरगाह

मुंबई की हाजी अली दरगाह दरगाह (फ़ारसी: درگاه या درگه: दरगाह) एक सूफी-इस्लामी पुण्यस्थान (मंदिर) होता है जिसे अक्सर किसी प्रतिष्ठित सूफी संत या दरवेश की कब्र पर बनाया जाता है। स्थानीय मुस्लिम, तीर्थयात्रा के उद्देश्य से किसी दरगाह की यात्रा करते हैं और इस यात्रा को ज़ियारत कहा जाता है। किसी दरगाह के साथ अक्सर सूफी बैठकें और विश्राम गृह बने होते हैं जिन्हें खानक़ाह कहा जाता है। इसके अतिरिक्त आमतौर पर एक मस्जिद, बैठक (कमरे), इस्लामी धार्मिक विद्यालय (मदरसा), शिक्षकों और कर्मचारियों के लिए घर, अस्पताल, सामुदायिक भवन आदि भी किसी दरगाह परिसर का हिस्सा होते हैं। .

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दिल्ली

दिल्ली (IPA), आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (अंग्रेज़ी: National Capital Territory of Delhi) भारत का एक केंद्र-शासित प्रदेश और महानगर है। इसमें नई दिल्ली सम्मिलित है जो भारत की राजधानी है। दिल्ली राजधानी होने के नाते केंद्र सरकार की तीनों इकाइयों - कार्यपालिका, संसद और न्यायपालिका के मुख्यालय नई दिल्ली और दिल्ली में स्थापित हैं १४८३ वर्ग किलोमीटर में फैला दिल्ली जनसंख्या के तौर पर भारत का दूसरा सबसे बड़ा महानगर है। यहाँ की जनसंख्या लगभग १ करोड़ ७० लाख है। यहाँ बोली जाने वाली मुख्य भाषाएँ हैं: हिन्दी, पंजाबी, उर्दू और अंग्रेज़ी। भारत में दिल्ली का ऐतिहासिक महत्त्व है। इसके दक्षिण पश्चिम में अरावली पहाड़ियां और पूर्व में यमुना नदी है, जिसके किनारे यह बसा है। यह प्राचीन समय में गंगा के मैदान से होकर जाने वाले वाणिज्य पथों के रास्ते में पड़ने वाला मुख्य पड़ाव था। यमुना नदी के किनारे स्थित इस नगर का गौरवशाली पौराणिक इतिहास है। यह भारत का अति प्राचीन नगर है। इसके इतिहास का प्रारम्भ सिन्धु घाटी सभ्यता से जुड़ा हुआ है। हरियाणा के आसपास के क्षेत्रों में हुई खुदाई से इस बात के प्रमाण मिले हैं। महाभारत काल में इसका नाम इन्द्रप्रस्थ था। दिल्ली सल्तनत के उत्थान के साथ ही दिल्ली एक प्रमुख राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं वाणिज्यिक शहर के रूप में उभरी। यहाँ कई प्राचीन एवं मध्यकालीन इमारतों तथा उनके अवशेषों को देखा जा सकता हैं। १६३९ में मुगल बादशाह शाहजहाँ ने दिल्ली में ही एक चारदीवारी से घिरे शहर का निर्माण करवाया जो १६७९ से १८५७ तक मुगल साम्राज्य की राजधानी रही। १८वीं एवं १९वीं शताब्दी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने लगभग पूरे भारत को अपने कब्जे में ले लिया। इन लोगों ने कोलकाता को अपनी राजधानी बनाया। १९११ में अंग्रेजी सरकार ने फैसला किया कि राजधानी को वापस दिल्ली लाया जाए। इसके लिए पुरानी दिल्ली के दक्षिण में एक नए नगर नई दिल्ली का निर्माण प्रारम्भ हुआ। अंग्रेजों से १९४७ में स्वतंत्रता प्राप्त कर नई दिल्ली को भारत की राजधानी घोषित किया गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् दिल्ली में विभिन्न क्षेत्रों से लोगों का प्रवासन हुआ, इससे दिल्ली के स्वरूप में आमूल परिवर्तन हुआ। विभिन्न प्रान्तो, धर्मों एवं जातियों के लोगों के दिल्ली में बसने के कारण दिल्ली का शहरीकरण तो हुआ ही साथ ही यहाँ एक मिश्रित संस्कृति ने भी जन्म लिया। आज दिल्ली भारत का एक प्रमुख राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं वाणिज्यिक केन्द्र है। .

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पासी

पासी, भारत की एक जाति है, जिसे भारतीय संविधान में 'अनुसूचित जाति' का दर्जा प्राप्त है। .

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फ़ारसी भाषा

फ़ारसी, एक भाषा है जो ईरान, ताजिकिस्तान, अफ़गानिस्तान और उज़बेकिस्तान में बोली जाती है। यह ईरान, अफ़ग़ानिस्तान, ताजिकिस्तान की राजभाषा है और इसे ७.५ करोड़ लोग बोलते हैं। भाषाई परिवार के लिहाज़ से यह हिन्द यूरोपीय परिवार की हिन्द ईरानी (इंडो ईरानियन) शाखा की ईरानी उपशाखा का सदस्य है और हिन्दी की तरह इसमें क्रिया वाक्य के अंत में आती है। फ़ारसी संस्कृत से क़ाफ़ी मिलती-जुलती है और उर्दू (और हिन्दी) में इसके कई शब्द प्रयुक्त होते हैं। ये अरबी-फ़ारसी लिपि में लिखी जाती है। अंग्रेज़ों के आगमन से पहले भारतीय उपमहाद्वीप में फ़ारसी भाषा का प्रयोग दरबारी कामों तथा लेखन की भाषा के रूप में होता है। दरबार में प्रयुक्त होने के कारण ही अफ़गानिस्तान में इस दारी कहा जाता है। .

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फ़िरोज़ शाह तुग़लक़

फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ दिल्ली सल्तनत में तुग़लक़ वंश का शासक था। फ़िरोजशाह तुग़लक़ का जन्म १३०९ को हुआ। वो भारत पर अन्तिम मुसलिम शासक था। उसकी हूकूमत १३५१ से १३८८ तक रही। वो, दिपालपुर की हिदूं राजकुमारी का पुत्र था।उसने अपनी हूकूमत के दौरान कई हिन्दूयों को मुसलिम धर्म अपनाने पर मजबूर किया। उसने अपने शासनकाल में ही चांदी के सिक्के चलाये| फ़िरोज़शाह तुग़लक़ (१३५१-१३८८ ई.), मुहम्मद तुग़लक़ का चचेरा भाई एवं सिपहसलार 'रजब' का पुत्र था। उसकी माँ ‘बीबी जैजैला' ('भड़ी' रजामल की पुत्री) राजपूत सरदार रजामल की पुत्री थी। मुहम्मद तुग़लक़ की मुत्यु के बाद 20 मार्च 1351 को फ़िरोज़ तुग़लक़ का राज्याभिषक थट्टा के निकट हुआ। पुनः फ़िरोज़ का राज्याभिषेक दिल्ली में अगस्त, 1351 में हुआ। सुल्तान बनने के बाद फ़िरोज़शाह तुग़लक़ ने सभी क़र्ज़े माफ कर दिए, जिसमें 'सोंधर ऋण' भी शामिल था, जो मुहम्मद तुग़लक़ के समय किसानों को दिया गया था। .

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बहराइच

बहराइच नगर और ज़िला उत्तरी भारत के पूर्व-मध्य उत्तर प्रदेश राज्य और नेपाल के नेपालगंज व लखनऊ के बीच रेलमार्ग पर स्थित है। .

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बहुजन समाज पार्टी

बहुजन समाज पार्टी (अंग्रेजी: Bahujan Samaj Party) सार्वभौमिक न्याय, स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के सर्वोच्च सिद्धांतों की सोच वाला, भारत का एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल है। इसका गठन मुख्यत: एक क्रांतिकारी सामाजिक और आर्थिक आंदोलन के रूप में काम करने के लिए किया गया है जो भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतन्त्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समानता दिलाने, उनमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढाने के लिए कार्य करती है जैसा भारतीय संविधान की प्रस्तावना में वर्णित है। इसका गठन मुख्यत: भारतीय जाति व्यवस्था के अन्तर्गत सबसे नीचे माने जाने वाले बहुजन, जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यक शामिल हैं, ऐसे समाज का प्रतिनिधित्व करने के लिए किया गया था, जिनकी जनसंख्या भारत देश में 85% है। दल का दर्शन बाबा साहेब अम्बेडकर के मानवतावादी बौद्ध दर्शन से प्रेरित है। .

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बीघा

बीघा भारत के कुछ हिस्सों तथा नेपाल एवं बांग्लादेश में जमीन की माप करने का पारम्परिक पैमाना है जिसका प्रयोग अब भी किया जाता है। भारतीय राज्य बंगाल, बिहार, गुजरात, असम इत्यादि में इसका प्रयोग होता है। बीघा हिन्दू लम्बाई गणना में क्षेत्रफ़ल मापने की इकाई है। एक बीघा १५०० से २५ऊ वर्ग मीटर तक होता है,.

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भर

भर भारत का एक जाति समुदाय है, जिसे नाविक या मल्लाहों की एक उपजाति के रूप में भी संदर्भित किया जाता है। इन्हे राजभर भी कहते हैं। .

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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, अधिकतर कांग्रेस के नाम से प्रख्यात, भारत के दो प्रमुख राजनैतिक दलों में से एक हैं, जिन में अन्य भारतीय जनता पार्टी हैं। कांग्रेस की स्थापना ब्रिटिश राज में २८ दिसंबर १८८५ में हुई थी; इसके संस्थापकों में ए ओ ह्यूम (थियिसोफिकल सोसाइटी के प्रमुख सदस्य), दादा भाई नौरोजी और दिनशा वाचा शामिल थे। १९वी सदी के आखिर में और शुरूआती से लेकर मध्य २०वी सदी में, कांग्रेस भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में, अपने १.५ करोड़ से अधिक सदस्यों और ७ करोड़ से अधिक प्रतिभागियों के साथ, ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विरोध में एक केन्द्रीय भागीदार बनी। १९४७ में आजादी के बाद, कांग्रेस भारत की प्रमुख राजनीतिक पार्टी बन गई। आज़ादी से लेकर २०१६ तक, १६ आम चुनावों में से, कांग्रेस ने ६ में पूर्ण बहुमत जीता हैं और ४ में सत्तारूढ़ गठबंधन का नेतृत्व किया; अतः, कुल ४९ वर्षों तक वह केन्द्र सरकार का हिस्सा रही। भारत में, कांग्रेस के सात प्रधानमंत्री रह चुके हैं; पहले जवाहरलाल नेहरू (१९४७-१९६५) थे और हाल ही में मनमोहन सिंह (२००४-२०१४) थे। २०१४ के आम चुनाव में, कांग्रेस ने आज़ादी से अब तक का सबसे ख़राब आम चुनावी प्रदर्शन किया और ५४३ सदस्यीय लोक सभा में केवल ४४ सीट जीती। तब से लेकर अब तक कोंग्रेस कई विवादों में घिरी हुई है, कोंग्रेस द्वारा भारतीय आर्मी का मनोबल गिराने का देश में विरोध किया जा रहा है । http://www.allianceofdemocrats.org/index.php?option.

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भारतीय जनता पार्टी

भारतीय जनता पार्टी (संक्षेप में, भाजपा) भारत के दो प्रमुख राजनीतिक दलों में से एक हैं, जिसमें दूसरा दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस है। यह राष्ट्रीय संसद और राज्य विधानसभाओं में प्रतिनिधित्व के मामले में देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है और प्राथमिक सदस्यता के मामले में यह दुनिया का सबसे बड़ा दल है।.

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महमूद ग़ज़नवी

महमूद ग़ज़नवी (971-1030) मध्य अफ़ग़ानिस्तान में केन्द्रित गज़नवी वंश का एक महत्वपूर्ण शासक था जो पूर्वी ईरान भूमि में साम्राज्य विस्तार के लिए जाना जाता है। वह तुर्क मूल का था और अपने समकालीन (और बाद के) सल्जूक़ तुर्कों की तरह पूर्व में एक सुन्नी इस्लामी साम्राज्य बनाने में सफल हुआ। उसके द्वारा जीते गए प्रदेशों में आज का पूर्वी ईरान, अफगानिस्तान और संलग्न मध्य-एशिया (सम्मिलिलित रूप से ख़ोरासान), पाकिस्तान और उत्तर-पश्चिम भारत शामिल थे। उनके युद्धों में फ़ातिमी सुल्तानों (शिया), काबुल शाहिया राजाओं (हिन्दू) और कश्मीर का नाम प्रमुखता से आता है। भारत में इस्लामी शासन लाने और आक्रमण के दौरान लूटपाट मचाने के कारण भारतीय हिन्दू समाज में उनको एक आक्रामक शासक के रूप में जाना जाता है। वह पिता के वंश से तुर्क था पर उसने फ़ारसी भाषा के पुनर्जागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हाँलांकि उसके दरबारी कवि फ़िरदौसी ने शाहनामे की रचना की पर वो हमेशा कवि का समर्थक नहीं रहा था। ग़ज़नी, जो मध्य अफ़गानिस्तान में स्थित एक छोटा शहर था, को उन्होंने साम्राज्य के धनी और प्रांतीय शहर के रूप में बदल गया। बग़दाद के इस्लामी (अब्बासी) ख़लीफ़ा ने उनको सुल्तान की पदवी दी। .

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मुल्तान

मुल्तान में एक मक़बरा मुल्तान पाकिस्तान के पंजाब सूबे में एक शहर है। यह पाकिस्तान का छठा सबसे बड़ा शहर है। इसकी जनसंख्या 38 लाख है। यहाँ बहुत से बाज़ार, मस्जिदें और मक़बरे हैं। .

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मेरठ

मेरठ भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक शहर है। यहाँ नगर निगम कार्यरत है। यह प्राचीन नगर दिल्ली से ७२ कि॰मी॰ (४४ मील) उत्तर पूर्व में स्थित है। मेरठ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (ऍन.सी.आर) का हिस्सा है। यहाँ भारतीय सेना की एक छावनी भी है। यह उत्तर प्रदेश के सबसे तेजी से विकसित और शिक्षित होते जिलों में से एक है। मेरठ जिले में 12 ब्लॉक,34 जिला पंचायत सदस्य,80 नगर निगम पार्षद है। मेरठ जिले में 4 लोक सभा क्षेत्र सम्मिलित हैं, सरधना विधानसभा, मुजफ्फरनगर लोकसभा में हस्तिनापुर विधानसभा, बिजनौर लोकसभा में,सिवाल खास बागपत लोकसभा क्षेत्र में और मेरठ कैंट,मेरठ दक्षिण,मेरठ शहर,किठौर मेरठ लोकसभा क्षेत्र में है .

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

यह लेख भारत के एक सांस्कृतिक संगठन आर एस एस के बारे में है। अन्य प्रयोग हेतु आर एस एस देखें। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत का एक दक्षिणपंथी, हिन्दू राष्ट्रवादी, अर्धसैनिक, स्वयंसेवक संगठन हैं, जो व्यापक रूप से भारत के सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी का पैतृक संगठन माना जाता हैं। यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अपेक्षा संघ या आर.एस.एस. के नाम से अधिक प्रसिद्ध है। बीबीसी के अनुसार संघ विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संस्थान है। .

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राजपूत

राजपूत उत्तर भारत का एक क्षत्रिय कुल माना जाता है।जो कि राजपुत्र का अपभ्रंश है। राजस्थान को ब्रिटिशकाल मे राजपूताना भी कहा गया है। पुराने समय में आर्य जाति में केवल चार वर्णों की व्यवस्था थी। राजपूत काल में प्राचीन वर्ण व्यवस्था समाप्त हो गयी थी तथा वर्ण के स्थान पर कई जातियाँ व उप जातियाँ बन गईं थीं। कवि चंदबरदाई के कथनानुसार राजपूतों की 36 जातियाँ थी। उस समय में क्षत्रिय वर्ण के अंतर्गत सूर्यवंश और चंद्रवंश के राजघरानों का बहुत विस्तार हुआ। .

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श्रावस्ती

भारतवर्ष के उत्तर प्रदेश प्रांत के गोंडा-बहराइच जिलों की सीमा पर यह प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थ स्थान है। गोंडा-बलरामपुर से १२ मील पश्चिम में आज का सहेत-महेत गाँव ही श्रावस्ती है। प्राचीन काल में यह कौशल देश की दूसरी राजधानी थी। भगवान राम के पुत्र लव ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। श्रावस्ती बौद्ध व जैन दोनों का तीर्थ स्थान है। तथागत दीर्घ काल तक श्रावस्ती में रहे थे। यहाँ के श्रेष्ठी अनाथपिण्डिक असंख्य स्वर्ण मुद्राएँ व्यय करके भगवान बुद्ध के लिए जेतवन बिहार बनवाया था। अब यहाँ बौद्ध धर्मशाला, मठ और मन्दिर हैं। .

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सिन्धु नदी

पाकिस्तान में बहती सिन्घु सिन्धु नदी (Indus River) एशिया की सबसे लंबी नदियों में से एक है। यह पाकिस्तान, भारत (जम्मू और कश्मीर) और चीन (पश्चिमी तिब्बत) के माध्यम से बहती है। सिन्धु नदी का उद्गम स्थल, तिब्बत के मानसरोवर के निकट सिन-का-बाब नामक जलधारा माना जाता है। इस नदी की लंबाई प्रायः 2880 किलोमीटर है। यहां से यह नदी तिब्बत और कश्मीर के बीच बहती है। नंगा पर्वत के उत्तरी भाग से घूम कर यह दक्षिण पश्चिम में पाकिस्तान के बीच से गुजरती है और फिर जाकर अरब सागर में मिलती है। इस नदी का ज्यादातर अंश पाकिस्तान में प्रवाहित होता है। यह पाकिस्तान की सबसे लंबी नदी और राष्ट्रीय नदी है। सिंधु की पांच उपनदियां हैं। इनके नाम हैं: वितस्ता, चन्द्रभागा, ईरावती, विपासा एंव शतद्रु.

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सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी भारत में यह एक राजनीतिक दल है। एसबीएसपी को 2002 में स्थापित किया गया था। पार्टी का नेतृत्व बहुजन समाज पार्टी के पूर्व नेता ओम प्रकाश राजभर करते हैं। पार्टी का मुख्यालय वाराणसी जिले के फतेहपुर गांव में है। पार्टी का पीला ध्वज, और छड़ी चुनाव चिन्ह है। .

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सुहेलदेव सुपरफास्ट एक्सप्रेस

सुहेलदेव सुपरफास्ट एक्सप्रेस सुहेलदेव सुपरफ़ास्ट एक्सप्रेस आनंद विहार टर्मिनल रेलवे स्टेशन से गाज़ीपुर सिटी उत्तरी रेलवे से जुड़ी एक सुपरफास्ट ट्रेन है जो कि भारत में गाजीपुर शहर और आनंद विहार टर्मिनल के बीच चलती है। यह वर्तमान में 22419/22420 ट्रेन नंबरों के साथ सप्ताह के आधार पर चार दिनों के साथ संचालित किया जा रहा है। ट्रेन का नाम श्रावस्ती के एक काल्पनिक राजा सुहेलदेव के नाम पर रखा गया है। श्रेणी:उत्तर प्रदेश में यातायात.

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सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी

सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी (जन्म 22 जनवरी ؁ 1015 में अजमीर में) महमूद गजनवी के भांजे थे। इनके पिता का नाम सैयद सालार साहू गाजी था। सैयद सालार साहू गाजी मोहम्मद बिन हनफ़िया हज़रत अली के वंशज थे। सालार मसूद इस्लाम के प्रचार के लिए दक्षिण एशिया के लिए 11 खोें सदी की शुरुआत में अपने चाचा सालार सैयद दीन और शिक्षक सैयद इब्राहीम मशहद बारह हजार (सुल्तान महमूद गजनवी के सालार मंत्री) के साथ आये थे। महमूद गजनवी की मृत्य केपश्चात् पिता सैयद सालार साहू गाजी के साथ एक बड़ी जेहादी सेना लेकर सैयद सालार मसूद गाजीभारत की ओर बढ़ा। उसने दिल्ली पर आक्रमण किया। एक माह तक चले इस युद्व ने सालार मसूद केमनोबल को तोड़कर रख दिया वह हारने ही वाला था कि गजनी से बख्तियार साहू, सालारसैफुद्ीन, अमीर सैयद एजाजुद्वीन, मलिक दौलत मिया, रजव सालार और अमीर सैयद नसरूल्लाहआदि एक बड़ी धुड़सवार सेना के साथ मसूद की सहायता को आ गए। पुनः भयंकर युद्व प्रारंभ हो गयाजिसमें दोनों ही पक्षों के अनेक योद्धा हताहत हुए। इस लड़ाई के दौरान राय महीपाल व रायहरगोपाल ने अपने धोड़े दौड़ाकर मसूद पर गदे से प्रहार किया जिससे उसकी आंख पर गंभीर चोटआई तथा उसके दो दाँत टूट गए। हालांकि ये दोनों ही वीर इस युद्ध में लड़ते हुए शहीद हो गए लेकिनउनकी वीरता व असीम साहस अद्वितीय थी। मेरठ का राजा हरिदत्त मुसलमान हो गया तथा उसनेमसूद से संधि कर ली यही स्थिति बुलंदशहर व बदायूं के शासकों की भी हुई। कन्नौज का शासक भीमसूद का साथी बन गया। अतः सालार मसूद ने कन्नौज को अपना केंद्र बनाकर हिंदुओं के तीर्थ स्थलोंको नष्ट करने हेतु अपनी सेनाएं भेजना प्रारंभ किया। इसी क्रम में मलिक फैसल को वाराणसी भेजागया तथा स्वयं सालार मसूद सप्तॠषि (सतरिख) की ओर बढ़ा। मिरआते मसूदी के विवरण के अनुसारसतरिख (बाराबंकी) हिंदुओं का एक बहुत बड़ा तीर्थ स्थल था। एक किवदंती के अनुसार इस स्थान पर भगवान राम व लक्ष्मण ने शिक्षा प्राप्त की थी। यह सात ॠषियों का स्थान था, इसीलिएइस स्थान का सप्तऋर्षि पड़ा था, जो धीरे-धीरे सतरिख हो गया। सालार मसूद विलग्राम, मल्लावा, हरदोई, संडीला, मलिहाबाद, अमेठी व लखनऊ होते हुए सतरिख पहुंचा। उसने अपने गुरू सैयदइब्राहीम बारा हजारी को धुंधगढ़ भेजा क्योंकि धुंधगढ क़े किले में उसके मित्र दोस्त मोहम्मद सरदारको राजा रायदीन दयाल व अजय पाल ने घेर रखा था। इब्राहिम बाराहजारी जिधर से गुजरते गैरमुसलमानों का बचना मुश्किल था। बचता वही था जो इस्लाम स्वीकार कर लेता था। आइनये मसूदीके अनुसार – निशान सतरिख से लहराता हुआ बाराहजारी का। चला है धुंधगढ़ को काकिलाबाराहजारी का मिला जो राह में मुनकिर उसे दे उसे दोजख में पहुचाया। बचा वह जिसने कलमा पढ़लिया बारा हजारी का। इस लड़ाई में राजा दीनदयाल व तेजसिंह बड़ी ही बीरता से लड़े लेकिनवीरगति को प्राप्त हुए। परंतु दीनदयाल के भाई राय करनपाल के हाथों इब्राहीम बाराहजारी मारागया। कडे क़े राजा देव नारायन और मानिकपुर के राजा भोजपात्र ने एक नाई को सैयद सालार मसूदके पास भेजा कि वह विष से बुझी नहन्नी से उसके नाखून काटे, ताकि सैयद सालार मसूद की इहलीला समाप्त हो जायें लेकिन इलाज से वह बच गया। इस सदमें से उसकी माँ खुतुर मुअल्ला चल बसी। इस प्रयास के असफल होने के बाद कडे मानिकपुर के राजाओं ने बहराइच के राजाओंको संदेश भेजा कि हम अपनी ओर से इस्लामी सेना पर आक्रमण करें और तुम अपनी ओर से। इसप्रकार हम इस्लामी सेना का सफाया कर देगें। परंतु संदेशवाहक सैयद सालार के गुप्तचरों द्वारा बंदीबना लिए गए। इन संदेशवाहकों में दो ब्राह्मण और एक नाई थे। ब्राह्मणों को तो छोड़ दिया गयालेकिन नाई को फांसी दे दी गई इस भेद के खुल जाने पर मसूद के पिता सालार साहु ने एक बडीसेना के साथ कड़े मानिकपुर पर धावा बोल दिया। दोनों राजा देवनारायण व भोजपत्र बडी वीरतासे लड़ें लेकिन परास्त हुए। इन राजाओं को बंदी बनाकर सतरिख भेज दिया गया। वहॉ से सैयदसालार मसूद के आदेश पर इन राजाओं को सालार सैफुद्दीन के पास बहराइच भेज दिया गया। जबबहराइज के राजाओं को इस बात का पता चला तो उन लोगो ने सैफुद्दीन को धेर लिया। इस परसालार मसूद उसकी सहायता हेतु बहराइच की ओर आगें बढे। इसी बीच अनके पिता सालार साहूका निधन हो गया। बहराइच के राजवंशी (नागवंशी क्षत्रिय) शासक भगवान सूर्य एवं भगवान शिव के उपासक थे। बहराइच में सूर्यकुंड पर स्थित भगवान सूर्य केमूर्ति की वे पूजा करते थे। उस स्थान पर प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास मे प्रथम रविवार को, जोबृहस्पतिवार के बाद पड़ता था एक बड़ा मेला लगता था यह मेला सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण तथा प्रत्येकरविवार को भी लगता था। वहां यह परंपरा काफी प्राचीन थी। यहाँ बालार्क मन्दिर था, बालार्क अर्थ "सूर्योदय" जो भगवान सूर्य को समर्पित था। भगवान सूर्य के प्रतापसे इस कुंड मे स्नान करने वाले कुष्ठ रोग से मुक्त हो जाया करते थे। बहराइच को पहले ब्रह्माइच केनाम से जाना जाता था। सालार मसूद के बहराइच आने के समाचार पाते ही बहराइच के राजा गण– राजा रायब, राजा सायब, अर्जुन भीखन गंग, शंकर, करन, बीरबर, जयपाल, श्रीपाल, हरपाल,हरख्, जोधारी व नरसिंह महाराजा सुहेलदेव राजपासी के नेतृत्व में लामबंद हो गये। ये राजा गण बहराइचशहर के उत्तर की ओर लगभग आठ मील की दूरी पर भकला नदी के किनारे अपनी सेना सहितउपस्थित हुए। अभी ये युद्व की तैयारी कर ही रहे थे कि सालार मसूद ने उन पर रात्रि आक्रमण (शबखून) कर दिया। मगरिब की नमाज के बाद अपनी विशाल सेना के साथ वह भकला नदीकी ओर बढ़ा और उसने सोती हुई हिंदु सेना पर आक्रमण कर दिया। इस अप्रत्याशित आक्रमण मेंदोनों ओर के अनेक सैनिक मारे गए लेकिन बहराइच की इस पहली लड़ाई मे सालार मसूद बिजयीरहा। पहली लड़ार्ऌ मे परास्त होने के पश्चात पुनः अगली लडार्ऌ हेतु हिंदू सेना संगठित होने लगीउन्होने रात्रि आक्रमण की संभावना पर ध्यान नही दिया। उन्होने राजा सुहेलदेव राजपासी के परामर्श पर आक्रमण के मार्ग में हजारो विषबुझी कीले अवश्य धरती में छिपा कर गाड़ दी। ऐसा रातों रात किया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि जब मसूद की धुडसवार सेना ने पुनः रात्रि आक्रमण कियातो वे इनकी चपेट मे आ गए। हालाकि हिंदू सेना इस युद्व मे भी परास्त हो गई लेकिन इस्लामी सेना केएक तिहायी सैनिक इस युक्ति प्रधान युद्व मे मारे गए। भारतीय इतिहास मे इस प्रकार युक्तिपूर्वक लड़ी गई यह एक अनूठी लड़ाई थी। दो बार धोखे का शिकार होने के बाद हिंदू सेना सचेत हो गईतथा महाराजा सुहेलदेव राजपासी के नेतृत्व में निर्णायक लड़ाई हेतु तैयार हो गई। कहते है इस युद्ध में प्रत्येक हिंदू परिवार से युवा हिंदू इस लड़ाई मे सम्मिलित हुए। महाराजा सुहेलदेव राजपासी के शामिलहोने से हिंदूओं का मनोबल बढ़ा हुआ था। लड़ाई का क्षेत्र चिंतौरा झील से हठीला और अनारकलीझील तक फैला हुआ था। जुन, 1034 ई. को हुई इस लड़ाई में सालार मसूद ने दाहिने पार्श्व(मैमना) की कमान मीरनसरूल्ला को तथा बाये पार्श्व (मैसरा) की कमान सालार रज्जब को सौपातथा स्वयं केंद्र (कल्ब) की कमान संभाली तथा भारतीय सेना पर आक्रमण करने का आदेश दिया।इससे पहले इस्लामी सेना के सामने हजारो गायों व बैलो को छोड़ा गया ताकि हिंदू सेना प्रभावीआक्रमण न कर सके लेकिन महाराजा सुहेलदेव राजपासी की सेना पर इसका कोई भी प्रभाव न पड़ा। वे भूखे सिंहों की भाति इस्लामी सेना पर टूट पडे मीर नसरूल्लाह बहराइच के उत्तर बारह मील की दूरीपर स्थित ग्राम दिकोली के पास मारे गए। सैयर सालार समूद के भांजे सालार मिया रज्जब बहराइचके पूर्व तीन कि.

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सैयद सालार साहू गाजी

सैयद सालार मसूद गाजी (जन्म 22 जनवरी ؁ 1015 में ाजमीरमें) महमूद गजनवी के भांजे थे। इनके पिता का नाम सैयद सालार साहू गाजी था। सैयद सालार साहू गाजी मोहम्मद बिन हनफ़िया हज़रत अली के वंशज थे। सालार मसूद इस्लाम के प्रचार के लिए दक्षिण एशिया के लिए 11 खोें सदी की शुरुआत में अपने चाचा सालार सैयद दीन और शिक्षक सैयद इब्राहीम मशहद बारह हजार (सुल्तान महमूद गजनवी के सालार मंत्री) के साथ आये थे। महमूद गजनवी की मृत्य केपश्चात् पिता सैयद सालार साहू गाजी के साथ एक बड़ी जेहादी सेना लेकर सैयद सालार मसूद गाजीभारत की ओर बढ़ा। उसने दिल्ली पर आक्रमण किया। एक माह तक चले इस युद्व ने सालार मसूद केमनोबल को तोड़कर रख दिया वह हारने ही वाला था कि गजनी से बख्तियार साहू, सालारसैफुद्ीन, अमीर सैयद एजाजुद्वीन, मलिक दौलत मिया, रजव सालार और अमीर सैयद नसरूल्लाहआदि एक बड़ी धुड़सवार सेना के साथ मसूद की सहायता को आ गए। पुनः भयंकर युद्व प्रारंभ हो गयाजिसमें दोनों ही पक्षों के अनेक योद्धा हताहत हुए। इस लड़ाई के दौरान राय महीपाल व रायहरगोपाल ने अपने धोड़े दौड़ाकर मसूद पर गदे से प्रहार किया जिससे उसकी आंख पर गंभीर चोटआई तथा उसके दो दाँत टूट गए। हालांकि ये दोनों ही वीर इस युद्ध में लड़ते हुए शहीद हो गए लेकिनउनकी वीरता व असीम साहस अद्वितीय थी। मेरठ का राजा हरिदत्त मुसलमान हो गया तथा उसनेमसूद से संधि कर ली यही स्थिति बुलंदशहर व बदायूं के शासकों की भी हुई। कन्नौज का शासक भीमसूद का साथी बन गया। अतः सालार मसूद ने कन्नौज को अपना केंद्र बनाकर हिंदुओं के तीर्थ स्थलोंको नष्ट करने हेतु अपनी सेनाएं भेजना प्रारंभ किया। इसी क्रम में मलिक फैसल को वाराणसी भेजागया तथा स्वयं सालार मसूद सप्तॠषि (सतरिख) की ओर बढ़ा। मिरआते मसूदी के विवरण के अनुसारसतरिख (बाराबंकी) हिंदुओं का एक बहुत बड़ा तीर्थ स्थल था । एक किवदंती के अनुसार इस स्थान पर भगवान राम व लक्ष्मण ने शिक्षा प्राप्त की थी। यह सात ॠषियों का स्थान था, इसीलिएइस स्थान का सप्तऋर्षि पड़ा था, जो धीरे-धीरे सतरिख हो गया। सालार मसूद विलग्राम, मल्लावा, हरदोई, संडीला, मलिहाबाद, अमेठी व लखनऊ होते हुए सतरिख पहुंचा। उसने अपने गुरू सैयदइब्राहीम बारा हजारी को धुंधगढ़ भेजा क्योंकि धुंधगढ क़े किले में उसके मित्र दोस्त मोहम्मद सरदारको राजा रायदीन दयाल व अजय पाल ने घेर रखा था। इब्राहिम बाराहजारी जिधर से गुजरते गैरमुसलमानों का बचना मुस्किल था। बचता वही था जो इस्लाम स्वीकार कर लेता था। आइनये मसूदीके अनुसार – निशान सतरिख से लहराता हुआ बाराहजारी का। चला है धुंधगढ़ को काकिलाबाराहजारी का मिला जो राह में मुनकिर उसे दे उसे दोजख में पहुचाया। बचा वह जिसने कलमा पढ़लिया बारा हजारी का। इस लड़ाई में राजा दीनदयाल व तेजसिंह बड़ी ही बीरता से लड़े लेकिनवीरगति को प्राप्त हुए। परंतु दीनदयाल के भाई राय करनपाल के हाथों इब्राहीम बाराहजारी मारागया। कडे क़े राजा देव नारायन और मानिकपुर के राजा भोजपात्र ने एक नाई को सैयद सालार मसूदके पास भेजा कि वह विष से बुझी नहन्नी से उसके नाखून काटे, ताकि सैयद सालार मसूद की इहलीला समाप्त हो जायें लेकिन इलाज से वह बच गया। इस सदमें से उसकी माँ खुतुर मुअल्ला चल बसी। इस प्रयास के असफल होने के बाद कडे मानिकपुर के राजाओं ने बहराइच के राजाओंको संदेश भेजा कि हम अपनी ओर से इस्लामी सेना पर आक्रमण करें और तुम अपनी ओर से । इसप्रकार हम इस्लामी सेना का सफाया कर देगें। परंतु संदेशवाहक सैयद सालार के गुप्तचरों द्वारा बंदीबना लिए गए। इन संदेशवाहकों में दो ब्राह्मण और एक नाई थे। ब्राह्मणों को तो छोड़ दिया गयालेकिन नाई को फांसी दे दी गई इस भेद के खुल जाने पर मसूद के पिता सालार साहु ने एक बडीसेना के साथ कड़े मानिकपुर पर धावा बोल दिया। दोनों राजा देवनारायण व भोजपत्र बडी वीरतासे लड़ें लेकिन परास्त हुए। इन राजाओं को बंदी बनाकर सतरिख भेज दिया गया। वहॉ से सैयदसालार मसूद के आदेश पर इन राजाओं को सालार सैफुद्दीन के पास बहराइच भेज दिया गया। जबबहराइज के राजाओं को इस बात का पता चला तो उन लोगो ने सैफुद्दीन को धेर लिया। इस परसालार मसूद उसकी सहायता हेतु बहराइच की ओर आगें बढे। इसी बीच अनके पिता सालार साहूका निधन हो गया। बहराइच के राजभर राजा भगवान सूर्य के उपासक थे। बहराइच में सूर्यकुंड पर स्थित भगवान सूर्य केमूर्ति की वे पूजा करते थे। उस स्थान पर प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास मे प्रथम रविवार को, जोबृहस्पतिवार के बाद पड़ता था एक बड़ा मेला लगता था यह मेला सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण तथा प्रत्येकरविवार को भी लगता था। वहां यह परंपरा काफी प्राचीन थी। बालार्क ऋषि व भगवान सूर्य के प्रतापसे इस कुंड मे स्नान करने वाले कुष्ठ रोग से मुक्त हो जाया करते थे। बहराइच को पहले ब्रह्माइच केनाम से जाना जाता था। सालार मसूद के बहराइच आने के समाचार पाते ही बहराइच के राजभर राजा गण– राजा रायब, राजा सायब, अर्जुन भीखन गंग, शंकर, करन, बीरबर, जयपाल, श्रीपाल, हरपाल,हरख्, जोधारी व नरसिंह महाराजा सुहेलदेव राजभर के नेतृत्व में लामबंद हो गये। ये राजा गण बहराइचशहर के उत्तर की ओर लगभग आठ मील की दूरी पर भकला नदी के किनारे अपनी सेना सहितउपस्थित हुए। अभी ये युद्व की तैयारी कर ही रहे थे कि सालार मसूद ने उन पर रात्रि आक्रमण (शबखून) कर दिया। मगरिब की नमाज के बाद अपनी विशाल सेना के साथ वह भकला नदीकी ओर बढ़ा और उसने सोती हुई हिंदु सेना पर आक्रमण कर दिया। इस अप्रत्याशित आक्रमण मेंदोनों ओर के अनेक सैनिक मारे गए लेकिन बहराइच की इस पहली लड़ाई मे सालार मसूद बिजयीरहा। पहली लड़ार्ऌ मे परास्त होने के पश्चात पुनः अगली लडार्ऌ हेतु हिंदू सेना संगठित होने लगीउन्होने रात्रि आक्रमण की संभावना पर ध्यान नही दिया । उन्होने राजा सुहेलदेव राजभर के परामर्श पर आक्रमण के मार्ग में हजारो विषबुझी कीले अवश्य धरती में छिपा कर गाड़ दी । ऐसा रातों रात किया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि जब मसूद की धुडसवार सेना ने पुनः रात्रि आक्रमण कियातो वे इनकी चपेट मे आ गए। हालाकि हिंदू सेना इस युद्व मे भी परास्त हो गई लेकिन इस्लामी सेना केएक तिहायी सैनिक इस युक्ति प्रधान युद्व मे मारे गए । भारतीय इतिहास मे इस प्रकार युक्तिपूर्वक लड़ी गई यह एक अनूठी लड़ाई थी। दो बार धोखे का शिकार होने के बाद हिंदू सेना सचेत हो गईतथा महाराजा सुहेलदेव राजभर के नेतृत्व में निर्णायक लड़ाई हेतु तैयार हो गई। कहते है इस युद्ध में प्रत्येक हिंदू परिवार से युवा हिंदू इस लड़ाई मे सम्मिलित हुए। महाराजा सुहेलदेव राजभर के शामिलहोने से हिंदूओं का मनोबल बढ़ा हुआ था। लड़ाई का क्षेत्र चिंतौरा झील से हठीला और अनारकलीझील तक फैला हुआ था। जुन, 1034 ई. को हुई इस लड़ाई में सालार मसूद ने दाहिने पार्श्व(मैमना) की कमान मीरनसरूल्ला को तथा बाये पार्श्व (मैसरा) की कमान सालार रज्जब को सौपातथा स्वयं केंद्र (कल्ब) की कमान संभाली तथा भारतीय सेना पर आक्रमण करने का आदेश दिया।इससे पहले इस्लामी सेना के सामने हजारो गायों व बैलो को छोड़ा गया ताकि हिंदू सेना प्रभावीआक्रमण न कर सके लेकिन महाराजा सुहेलदेव राजभर की सेना पर इसका कोई भी प्रभाव न पड़ा । वे भूखे सिंहों की भाति इस्लामी सेना पर टूट पडे मीर नसरूल्लाह बहराइच के उत्तर बारह मील की दूरीपर स्थित ग्राम दिकोली के पास मारे गए। सैयर सालार समूद के भांजे सालार मिया रज्जब बहराइचके पूर्व तीन कि.

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हिन्दू राष्ट्रवाद

हिन्दू राष्ट्रवाद (Hindu nationalism) का सामूहिक रूप से सन्दर्भ, भारतीय उपमहाद्वीप की देशज आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परम्पराओं पर आधारित, सामाजिक और राजनीतिक अभिव्यक्तियों से हैं। कुछ अध्येताओं का यह वाद हैं कि हिन्दू राष्ट्रवाद एक सरलीकृत अनुवाद है, और इसका बेहतर वर्णन हिन्दू राज्य-व्यवस्था शब्द से होता हैं। भारतीय मूल संस्कृति के प्रति जागरूकता और उसका विचार भारतीय इतिहास में अत्यधिक प्रासंगिक बन गया जब उसकी वजह से भारतीय राजनीति को एक विशिष्ट पहचान मिली तथा उपनिवेशवाद के विरुद्ध प्रश्न उठाने में आधार प्रदान किया। मूल संस्कृति की भावना ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध स्वतंत्रता आंदोलनों को प्रेरित किया जिस में सशस्त्र संघर्ष, प्रतिरोधी राजनीति और गैर-हिंसक विरोध प्रदर्शन शामिल थे। इसने भारत में सामाजिक सुधार आंदोलनों और आर्थिक सोच को प्रभावित किया।Peter van der Veer, Hartmut Lehmann, Nation and religion: perspectives on Europe and Asia, प्रिंसटन युनिवर्सिटी प्रेस, 1999 .

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जहाँगीर

अकबर के तीन लड़के थे। सलीम, मुराद और दानियाल (मुग़ल परिवार)। मुराद और दानियाल पिता के जीवन में शराब पीने की वजह से मर चुके थे। सलीम अकबर की मृत्यु पर नुरुद्दीन मोहम्मद जहांगीर के उपनाम से तख्त नशीन हुआ। १६०५ ई. में कई उपयोगी सुधार लागू किए। कान और नाक और हाथ आदि काटने की सजा रद्द कीं। शराब और अन्य नशा हमलावर वस्तुओं का हकमा बंद। कई अवैध महसूलात हटा दिए। प्रमुख दिनों में जानवरों का ज़बीहह बंद.

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जैन धर्म

जैन ध्वज जैन धर्म भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। 'जैन धर्म' का अर्थ है - 'जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म'। जो 'जिन' के अनुयायी हों उन्हें 'जैन' कहते हैं। 'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' माने - जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया और विशिष्ट ज्ञान को पाकर सर्वज्ञ या पूर्णज्ञान प्राप्त किया उन आप्त पुरुष को जिनेश्वर या 'जिन' कहा जाता है'। जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान्‌ का धर्म। अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है। जैन दर्शन में सृष्टिकर्ता कण कण स्वतंत्र है इस सॄष्टि का या किसी जीव का कोई कर्ता धर्ता नही है।सभी जीव अपने अपने कर्मों का फल भोगते है।जैन धर्म के ईश्वर कर्ता नही भोगता नही वो तो जो है सो है।जैन धर्म मे ईश्वरसृष्टिकर्ता इश्वर को स्थान नहीं दिया गया है। जैन ग्रंथों के अनुसार इस काल के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव आदिनाथ द्वारा जैन धर्म का प्रादुर्भाव हुआ था। जैन धर्म की अत्यंत प्राचीनता करने वाले अनेक उल्लेख अ-जैन साहित्य और विशेषकर वैदिक साहित्य में प्रचुर मात्रा में हैं। .

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विश्व हिंदू परिषद

विश्व हिंदू परिषद एक हिंदू संगठन है, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी "आरएसएस"(अमेरिका की खुपिया एजेंसी सी आई ए द्वारा जारी वर्ल्ड फैक्ट बुक की रिपोर्ट में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को "राष्ट्रवादी संगठन"की श्रेणी में शामिल किया गया है) की एक अनुषांगिक शाखा है। इसे वीएचपी और विहिप के नाम से भी जाना जाता है। विहिप का चिन्ह बरगद का पेड़ है और इसका नारा, "धर्मो रक्षति रक्षित:" यानी जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है।अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने विश्व हिंदू परिषद (VHP) और बजरंग दल को धार्मिक उग्रवादी संगठन बताया है,जिसका कि सम्पूर्ण देश में तीव्र विरोध चल रहा है.

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वोटबैंक

वोटबैंक से सबंध समाज के उस वर्ग का है जो चुनाव में किसी भी राजनैतिक पार्टी को जिताने में एक बड़ा योगदान देता है। श्रेणी:राजनीतिक शब्दावली.

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ग़ज़नवी साम्राज्य

ग़ज़नवी राजवंश (फ़ारसी:, अंग्रेज़ी: Ghaznavids) एक तुर्क मुस्लिम राजवंश था जिसने ९७५ ईसवी से ११८६ ईसवी काल में अधिकाँश ईरान, आमू पार क्षेत्रों और उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप पर राज किया। इसकी स्थापना सबुक तिगिन ने तब की थी जब उसे अपने ससुर अल्प तिगिन की मृत्यु पर ग़ज़ना (आधुनिक ग़ज़नी प्रांत) का राज मिला था। अल्प तिगिन स्वयं कभी ख़ुरासान के सामानी साम्राज्य का सिपहसालार हुआ करता था जिसने अपनी अलग रियासत कायम कर ली थी।, Martijn Theodoor Houtsma, pp.

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आर्य समाज

आर्य समाज एक हिन्दू सुधार आंदोलन है जिसकी स्थापना स्वामी दयानन्द सरस्वती ने १८७५ में बंबई में मथुरा के स्वामी विरजानंद की प्रेरणा से की थी। यह आंदोलन पाश्चात्य प्रभावों की प्रतिक्रिया स्वरूप हिंदू धर्म में सुधार के लिए प्रारंभ हुआ था। आर्य समाज में शुद्ध वैदिक परम्परा में विश्वास करते थे तथा मूर्ति पूजा, अवतारवाद, बलि, झूठे कर्मकाण्ड व अंधविश्वासों को अस्वीकार करते थे। इसमें छुआछूत व जातिगत भेदभाव का विरोध किया तथा स्त्रियों व शूद्रों को भी यज्ञोपवीत धारण करने व वेद पढ़ने का अधिकार दिया था। स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा रचित सत्यार्थ प्रकाश नामक ग्रन्थ आर्य समाज का मूल ग्रन्थ है। आर्य समाज का आदर्श वाक्य है: कृण्वन्तो विश्वमार्यम्, जिसका अर्थ है - विश्व को आर्य बनाते चलो। प्रसिद्ध आर्य समाजी जनों में स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी श्रद्धानन्द, महात्मा हंसराज, लाला लाजपत राय, भाई परमानन्द, पंडित गुरुदत्त, स्वामी आनन्दबोध सरस्वती, स्वामी अछूतानन्द, चौधरी चरण सिंह, पंडित वन्देमातरम रामचन्द्र राव, बाबा रामदेव आदि आते हैं। .

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आश्रम

प्राचीन काल में सामाजिक व्यवस्था के दो स्तंभ थे - वर्ण और आश्रम। मनुष्य की प्रकृति-गुण, कर्म और स्वभाव-के आधार पर मानवमात्र का वर्गीकरण चार वर्णो में हुआ था। व्यक्तिगत संस्कार के लिए उसके जीवन का विभाजन चार आश्रमों में किया गया था। ये चार आश्रम थे- (१) ब्रह्मचर्य, (२) गार्हस्थ्य, (३) वानप्रस्थ और (४) संन्यास। अमरकोश (७.४) पर टीका करते हुए भानु जी दीक्षित ने 'आश्रम' शब्द की व्याख्या इस प्रकार की है: आश्राम्यन्त्यत्र। अनेन वा। श्रमु तपसि। घं्‌ा। यद्वा आ समंताछ्रमोऽत्र। स्वधर्मसाधनक्लेशात्‌। अर्थात्‌ जिसमें स्म्यक्‌ प्रकार से श्रम किया जाए वह आश्रम है अथवा आश्रम जीवन की वह स्थिति है जिसमें कर्तव्यपालन के लिए पूर्ण परिश्रम किया जाए। आश्रम का अर्थ 'अवस्थाविशेष' 'विश्राम का स्थान', 'ऋषिमुनियों के रहने का पवित्र स्थान' आदि भी किया गया है। आश्रमसंस्था का प्रादुर्भाव वैदिक युग में हो चुका था, किंतु उसके विकसित और दृढ़ होने में काफी समय लगा। वैदिक साहित्य में ब्रह्मचर्य और गार्हस्थ्य अथवा गार्हपत्य का स्वतंत्र विकास का उल्लेख नहीं मिलता। इन दोनों का संयुक्त अस्तित्व बहुत दिनों तक बना रहा और इनको वैखानस, पर्व्राािट्, यति, मुनि, श्रमण आदि से अभिहित किया जाता था। वैदिक काल में कर्म तथा कर्मकांड की प्रधानता होने के कारण निवृत्तिमार्ग अथवा संन्यास को विशेष प्रोत्साहन नहीं था। वैदिक साहित्य के अंतिम चरण उपनिषदों में निवृत्ति और संन्यास पर जोर दिया जाने लगा और यह स्वीकार कर लिया गया था कि जिस समय जीवन में उत्कट वैराग्य उत्पन्न हो उस समय से वैराग्य से प्रेरित होकर संन्यास ग्रहण किया जा सकता है। फिर भी संन्यास अथवा श्रमण धर्म के प्रति उपेक्षा और अनास्था का भाव था। सुत्रयुग में चार आश्रमों की परिगणना होने लगी थी, यद्यपि उनके नामक्रम में अब भी मतभेद था। आपस्तंब धर्मसूत्र (२.९.२१.१) के अनुसार गार्हस्थ्य, आचार्यकुल (.

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अखिल भारतीय राम राज्य परिषद

अखिल भारतीय राम राज्य परिषद भारत की एक सनातन हिन्दू वर्णाश्रम धर्मशासित राष्ट्र स्थापित करने वाले उद्देश्य वाली पार्टी है। इसकी स्थापना स्वामी करपात्री ने सन् १९४८ में की थी। इस दल ने सन् १९५२ के प्रथम लोकसभा चुनाव में ३ सीटें प्राप्त की थी। सन् १९५२, १९५७ एवं १९६२ के विधान सभा चुनावों में हिन्दी क्षेत्रों (मुख्यत: राजस्थान) में इस दल ने दर्जनों सीटें हासिल की थी। अन्य हिन्दूवादी दलों की भांति यह दल भी समान नागरिक संहिता का पक्षधर है। लोकसभा में 15 मई 1952 को पहली बार हिंदी में संबोधन सीकर के तत्कालीन सांसद एन.एल.

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अखिल भारतीय हिन्दू महासभा

अखिल भारतीय हिन्दू महासभा का ध्वज अखिल भारत हिन्दू महासभा भारत का एक राजनीतिक दल है। यह एक भारतीय राष्ट्रवादी संगठन है। इसकी स्थापना सन १९१५ में हुई थी। विनायक दामोदर सावरकर इसके अध्यक्ष रहे। केशव बलराम हेडगेवार इसके उपसभापति रहे तथा इसे छोड़कर सन १९२५ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। भारत के स्वतन्त्रता के उपरान्त जब महात्मा गांधी की हत्या हुई तब इसके बहुत से कार्यकर्ता इसे छोड़कर भारतीय जनसंघ में भर्ती हो गये। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

महाराजा सुहलदेव

निवर्तमानआने वाली
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