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सुहेलदेव

सूची सुहेलदेव

सुहेलदेव श्रावस्ती से अर्ध-पौराणिक भारतीय राजा हैं, जिन्होंने 11वीं शताब्दी की शुरुआत में बहराइच में ग़ज़नवी सेनापति सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी को पराजित कर और मार डाला था। 17वीं शताब्दी के फारसी भाषा के ऐतिहासिक कल्पित कथा मिरात-ए-मसूदी में उनका उल्लेख है। 20वीं शताब्दी के बाद से, विभिन्न हिंदू राष्ट्रवादी समूहों ने उन्हें एक हिंदू राजा के रूप में चिह्नित किया है जिसने एक मुस्लिम आक्रमणकारियों को हरा दिया। .

9 संबंधों: बल्लरी देवी, बिहारीमल, राष्ट्रवीर, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, सुहेलदेव सुपरफास्ट एक्सप्रेस, सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी, सीतापुर जिला, जयलक्ष्मी, अंबे देवी

बल्लरी देवी

बल्लरी देवी वीरांगना महारानी बल्लरी देवी पासी 11 वीं सदी के नायक वीर सारोमणि सम्राट महाराजा सुहेलदेव राजपसी की राजमहिषि का नाम बल्लरी देवी थी। महारानी बल्लरी देवी के जीवन वृतान्त के विषय में इतिहासविदो ने अपनी लेखनी मौन रखी है। लेखक श्री यदूनाथप्रसाद श्रीवास्त्व एडवोकेट की पुस्तक “भाले सुल्तान ” ही एकमात्र ऐसा अभिलेख प्राप्त हुआ है जो उनके जीवन परिचय पर कम,उनके अदम्य साहस और शौर्य पर ज्यादा प्रकाश डालती है। पुस्तक “भाले सुल्तान” का सारांश आपके सामने प्रस्तुत है। 11 वीं सदी में जब महमुद गजनवी एक विशाल सेना के साथ भारत पर आक्रमण किया तो उस समय भारत के तमाम राजा आपसी वैमनस्य के कारण आपस में लड़ते भिड़ते कमजोर हो चुके थे। अतः महमूद गजनवी के आक्रमण से कुछ राजा हारे और हार कर अपनेराज्य से बेदखल हुए तो वही कुछ राजा सत्ता की लालच मे अधीनता स्विकार किया या मुस्लिम धर्म स्वीकार करके अपनी जान बचाई। उसी समय अवध क्षेत्र में एक क्षत्रिय राजा का छोटा सा राज्य था । महमूद गजवनी ने उनके राज्य पर आक्रमण किया।क्षत्रिय राजा बड़ी बहादुरी के साथ अपनी छोटी सेना सहित मुकाबला किया, परन्तु गजनवी की विशाल सेना के सामने राजा की सेना टिक न सकी और राजा को भागकर जंगल की शरण लेनी पड़ी । जब महमुद गजनवी ने सोमनाथ मन्दिर पर आकम्रण की ओर अपना कदम बढ़ाया तो देवों के देव महादेव मन्दिर की रक्षार्थ भारत भर के हिन्दू राजाओ को युद्व में भाग हेतु आमंत्रित किया गया।यह क्षत्रिय राजा अपनी हार का बदला महमूद गजनवी से चुकाना चाहते थे। अतः उन्होने अपनी छोटी सी सेना साथ को लेकर सोमनाथ की तरफ प्रस्थान किये। सोमनाथ पस्थान के पहले राजा ने अपनी एक मात्र 5 वर्षीय राजकुमारी बल्लरी को अपने धार्मिक गुरु आयोध्या के ऋषि महेष्वरानन्द को सौंप गये। जाते समय ऋषि महेष्वरानन्द को कह गये, पता नही हम युद्ध से आये या न आये, यह बच्ची अब आप की बच्ची है।इसकी देखभाल और शादी का दायित्व मैं आप पर छोड़ता हूँ। वह बच्ची अयोध्या में ऋषि महेष्वरानन्द के आश्रम में रहने लगी। वह क्षत्रिय राजा सोमनाथ मन्दिर की रक्षा में लड़ते हुए मारे गये। समय बीतता गया,धीरे-धीरे राजकुमारी की उम्र 16 वर्ष की हो गयी।महर्षि महेष्वरानन्द अपने आश्रम में ही राजकुमारी को बौद्विक,धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ अस्त्र-शस्त्र चलाने की भी शिक्षा दिये। ऋषि मेहष्वरानन्द के कुशल मार्ग दर्शन में राजकुमारी तीर, धनुष चलाने, भाला फेंकने, घुड़सवारी तथा अन्य अस्त्र-शस्त्र चलाने में प्रवीण हो गयी। महेष्वरानन्द जी श्रावस्ती सम्राट सुहेलदेव पासी के भी धार्मिक गुरु थे।.

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बिहारीमल

राजा बिहारीमल राजभर यह सुहेलदेव राजभर के पिता थे! इनके पत्नी का नाम जयलक्ष्मी राजभर था ! .

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राष्ट्रवीर

ऐसा व्यक्ति जो अपने देश या मातृभूमि के लिए अपने प्राणों के साथ सब कुछ गवाने का जज्बा रखता हो और राष्ट्र को एकत्र कर राष्ट्र की रक्षा कर सकने वाला राष्ट्रवीर कहलाता है। उदाहरण स्वरूप महाराजा सुहलदेव, महाराणा प्रताप सिंह, महाराजा रणजीत सिंह जैसे बहुत से परमवीर थे।.

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सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी भारत में यह एक राजनीतिक दल है। एसबीएसपी को 2002 में स्थापित किया गया था। पार्टी का नेतृत्व बहुजन समाज पार्टी के पूर्व नेता ओम प्रकाश राजभर करते हैं। पार्टी का मुख्यालय वाराणसी जिले के फतेहपुर गांव में है। पार्टी का पीला ध्वज, और छड़ी चुनाव चिन्ह है। .

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सुहेलदेव सुपरफास्ट एक्सप्रेस

सुहेलदेव सुपरफास्ट एक्सप्रेस सुहेलदेव सुपरफ़ास्ट एक्सप्रेस आनंद विहार टर्मिनल रेलवे स्टेशन से गाज़ीपुर सिटी उत्तरी रेलवे से जुड़ी एक सुपरफास्ट ट्रेन है जो कि भारत में गाजीपुर शहर और आनंद विहार टर्मिनल के बीच चलती है। यह वर्तमान में 22419/22420 ट्रेन नंबरों के साथ सप्ताह के आधार पर चार दिनों के साथ संचालित किया जा रहा है। ट्रेन का नाम श्रावस्ती के एक काल्पनिक राजा सुहेलदेव के नाम पर रखा गया है। श्रेणी:उत्तर प्रदेश में यातायात.

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सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी

सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी (जन्म 22 जनवरी ؁ 1015 में अजमीर में) महमूद गजनवी के भांजे थे। इनके पिता का नाम सैयद सालार साहू गाजी था। सैयद सालार साहू गाजी मोहम्मद बिन हनफ़िया हज़रत अली के वंशज थे। सालार मसूद इस्लाम के प्रचार के लिए दक्षिण एशिया के लिए 11 खोें सदी की शुरुआत में अपने चाचा सालार सैयद दीन और शिक्षक सैयद इब्राहीम मशहद बारह हजार (सुल्तान महमूद गजनवी के सालार मंत्री) के साथ आये थे। महमूद गजनवी की मृत्य केपश्चात् पिता सैयद सालार साहू गाजी के साथ एक बड़ी जेहादी सेना लेकर सैयद सालार मसूद गाजीभारत की ओर बढ़ा। उसने दिल्ली पर आक्रमण किया। एक माह तक चले इस युद्व ने सालार मसूद केमनोबल को तोड़कर रख दिया वह हारने ही वाला था कि गजनी से बख्तियार साहू, सालारसैफुद्ीन, अमीर सैयद एजाजुद्वीन, मलिक दौलत मिया, रजव सालार और अमीर सैयद नसरूल्लाहआदि एक बड़ी धुड़सवार सेना के साथ मसूद की सहायता को आ गए। पुनः भयंकर युद्व प्रारंभ हो गयाजिसमें दोनों ही पक्षों के अनेक योद्धा हताहत हुए। इस लड़ाई के दौरान राय महीपाल व रायहरगोपाल ने अपने धोड़े दौड़ाकर मसूद पर गदे से प्रहार किया जिससे उसकी आंख पर गंभीर चोटआई तथा उसके दो दाँत टूट गए। हालांकि ये दोनों ही वीर इस युद्ध में लड़ते हुए शहीद हो गए लेकिनउनकी वीरता व असीम साहस अद्वितीय थी। मेरठ का राजा हरिदत्त मुसलमान हो गया तथा उसनेमसूद से संधि कर ली यही स्थिति बुलंदशहर व बदायूं के शासकों की भी हुई। कन्नौज का शासक भीमसूद का साथी बन गया। अतः सालार मसूद ने कन्नौज को अपना केंद्र बनाकर हिंदुओं के तीर्थ स्थलोंको नष्ट करने हेतु अपनी सेनाएं भेजना प्रारंभ किया। इसी क्रम में मलिक फैसल को वाराणसी भेजागया तथा स्वयं सालार मसूद सप्तॠषि (सतरिख) की ओर बढ़ा। मिरआते मसूदी के विवरण के अनुसारसतरिख (बाराबंकी) हिंदुओं का एक बहुत बड़ा तीर्थ स्थल था। एक किवदंती के अनुसार इस स्थान पर भगवान राम व लक्ष्मण ने शिक्षा प्राप्त की थी। यह सात ॠषियों का स्थान था, इसीलिएइस स्थान का सप्तऋर्षि पड़ा था, जो धीरे-धीरे सतरिख हो गया। सालार मसूद विलग्राम, मल्लावा, हरदोई, संडीला, मलिहाबाद, अमेठी व लखनऊ होते हुए सतरिख पहुंचा। उसने अपने गुरू सैयदइब्राहीम बारा हजारी को धुंधगढ़ भेजा क्योंकि धुंधगढ क़े किले में उसके मित्र दोस्त मोहम्मद सरदारको राजा रायदीन दयाल व अजय पाल ने घेर रखा था। इब्राहिम बाराहजारी जिधर से गुजरते गैरमुसलमानों का बचना मुश्किल था। बचता वही था जो इस्लाम स्वीकार कर लेता था। आइनये मसूदीके अनुसार – निशान सतरिख से लहराता हुआ बाराहजारी का। चला है धुंधगढ़ को काकिलाबाराहजारी का मिला जो राह में मुनकिर उसे दे उसे दोजख में पहुचाया। बचा वह जिसने कलमा पढ़लिया बारा हजारी का। इस लड़ाई में राजा दीनदयाल व तेजसिंह बड़ी ही बीरता से लड़े लेकिनवीरगति को प्राप्त हुए। परंतु दीनदयाल के भाई राय करनपाल के हाथों इब्राहीम बाराहजारी मारागया। कडे क़े राजा देव नारायन और मानिकपुर के राजा भोजपात्र ने एक नाई को सैयद सालार मसूदके पास भेजा कि वह विष से बुझी नहन्नी से उसके नाखून काटे, ताकि सैयद सालार मसूद की इहलीला समाप्त हो जायें लेकिन इलाज से वह बच गया। इस सदमें से उसकी माँ खुतुर मुअल्ला चल बसी। इस प्रयास के असफल होने के बाद कडे मानिकपुर के राजाओं ने बहराइच के राजाओंको संदेश भेजा कि हम अपनी ओर से इस्लामी सेना पर आक्रमण करें और तुम अपनी ओर से। इसप्रकार हम इस्लामी सेना का सफाया कर देगें। परंतु संदेशवाहक सैयद सालार के गुप्तचरों द्वारा बंदीबना लिए गए। इन संदेशवाहकों में दो ब्राह्मण और एक नाई थे। ब्राह्मणों को तो छोड़ दिया गयालेकिन नाई को फांसी दे दी गई इस भेद के खुल जाने पर मसूद के पिता सालार साहु ने एक बडीसेना के साथ कड़े मानिकपुर पर धावा बोल दिया। दोनों राजा देवनारायण व भोजपत्र बडी वीरतासे लड़ें लेकिन परास्त हुए। इन राजाओं को बंदी बनाकर सतरिख भेज दिया गया। वहॉ से सैयदसालार मसूद के आदेश पर इन राजाओं को सालार सैफुद्दीन के पास बहराइच भेज दिया गया। जबबहराइज के राजाओं को इस बात का पता चला तो उन लोगो ने सैफुद्दीन को धेर लिया। इस परसालार मसूद उसकी सहायता हेतु बहराइच की ओर आगें बढे। इसी बीच अनके पिता सालार साहूका निधन हो गया। बहराइच के राजवंशी (नागवंशी क्षत्रिय) शासक भगवान सूर्य एवं भगवान शिव के उपासक थे। बहराइच में सूर्यकुंड पर स्थित भगवान सूर्य केमूर्ति की वे पूजा करते थे। उस स्थान पर प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास मे प्रथम रविवार को, जोबृहस्पतिवार के बाद पड़ता था एक बड़ा मेला लगता था यह मेला सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण तथा प्रत्येकरविवार को भी लगता था। वहां यह परंपरा काफी प्राचीन थी। यहाँ बालार्क मन्दिर था, बालार्क अर्थ "सूर्योदय" जो भगवान सूर्य को समर्पित था। भगवान सूर्य के प्रतापसे इस कुंड मे स्नान करने वाले कुष्ठ रोग से मुक्त हो जाया करते थे। बहराइच को पहले ब्रह्माइच केनाम से जाना जाता था। सालार मसूद के बहराइच आने के समाचार पाते ही बहराइच के राजा गण– राजा रायब, राजा सायब, अर्जुन भीखन गंग, शंकर, करन, बीरबर, जयपाल, श्रीपाल, हरपाल,हरख्, जोधारी व नरसिंह महाराजा सुहेलदेव राजपासी के नेतृत्व में लामबंद हो गये। ये राजा गण बहराइचशहर के उत्तर की ओर लगभग आठ मील की दूरी पर भकला नदी के किनारे अपनी सेना सहितउपस्थित हुए। अभी ये युद्व की तैयारी कर ही रहे थे कि सालार मसूद ने उन पर रात्रि आक्रमण (शबखून) कर दिया। मगरिब की नमाज के बाद अपनी विशाल सेना के साथ वह भकला नदीकी ओर बढ़ा और उसने सोती हुई हिंदु सेना पर आक्रमण कर दिया। इस अप्रत्याशित आक्रमण मेंदोनों ओर के अनेक सैनिक मारे गए लेकिन बहराइच की इस पहली लड़ाई मे सालार मसूद बिजयीरहा। पहली लड़ार्ऌ मे परास्त होने के पश्चात पुनः अगली लडार्ऌ हेतु हिंदू सेना संगठित होने लगीउन्होने रात्रि आक्रमण की संभावना पर ध्यान नही दिया। उन्होने राजा सुहेलदेव राजपासी के परामर्श पर आक्रमण के मार्ग में हजारो विषबुझी कीले अवश्य धरती में छिपा कर गाड़ दी। ऐसा रातों रात किया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि जब मसूद की धुडसवार सेना ने पुनः रात्रि आक्रमण कियातो वे इनकी चपेट मे आ गए। हालाकि हिंदू सेना इस युद्व मे भी परास्त हो गई लेकिन इस्लामी सेना केएक तिहायी सैनिक इस युक्ति प्रधान युद्व मे मारे गए। भारतीय इतिहास मे इस प्रकार युक्तिपूर्वक लड़ी गई यह एक अनूठी लड़ाई थी। दो बार धोखे का शिकार होने के बाद हिंदू सेना सचेत हो गईतथा महाराजा सुहेलदेव राजपासी के नेतृत्व में निर्णायक लड़ाई हेतु तैयार हो गई। कहते है इस युद्ध में प्रत्येक हिंदू परिवार से युवा हिंदू इस लड़ाई मे सम्मिलित हुए। महाराजा सुहेलदेव राजपासी के शामिलहोने से हिंदूओं का मनोबल बढ़ा हुआ था। लड़ाई का क्षेत्र चिंतौरा झील से हठीला और अनारकलीझील तक फैला हुआ था। जुन, 1034 ई. को हुई इस लड़ाई में सालार मसूद ने दाहिने पार्श्व(मैमना) की कमान मीरनसरूल्ला को तथा बाये पार्श्व (मैसरा) की कमान सालार रज्जब को सौपातथा स्वयं केंद्र (कल्ब) की कमान संभाली तथा भारतीय सेना पर आक्रमण करने का आदेश दिया।इससे पहले इस्लामी सेना के सामने हजारो गायों व बैलो को छोड़ा गया ताकि हिंदू सेना प्रभावीआक्रमण न कर सके लेकिन महाराजा सुहेलदेव राजपासी की सेना पर इसका कोई भी प्रभाव न पड़ा। वे भूखे सिंहों की भाति इस्लामी सेना पर टूट पडे मीर नसरूल्लाह बहराइच के उत्तर बारह मील की दूरीपर स्थित ग्राम दिकोली के पास मारे गए। सैयर सालार समूद के भांजे सालार मिया रज्जब बहराइचके पूर्व तीन कि.

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सीतापुर जिला

सीतापुर भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक जिला है। जिले का मुख्यालय सीतापुर है। यह जिला नैमिषारण्य तीर्थ के कारण प्रसिद्ध है। प्रारंभिक मुस्लिम काल के लक्षण केवल भग्न हिंदू मंदिरों और मूर्तियों के रूप में ही उपलब्ध हैं। इस युग के ऐतिहासिक प्रमाण शेरशाह द्वारा निर्मित कुओं और सड़कों के रूप में दिखाई देते हैं। उस युग की मुख्य घटनाओं में से एक तो खैराबाद के निकट हुमायूँ और शेरशाह के बीच और दूसरी श्रावस्ती नरेस सुहेलदेव राजभर और सैयद सालार के बीच बिसवाँ और तंबौर के युद्ध हैं।जिले के ब्लॉक गोंदलामऊ में चित्रांशों का प्राकृतिक छठा बिखेरता खूबसूरत व ऐतिहासिक गांव असुवामऊ है।इस धार्मिक गांव में शारदीय नवरात्रि के मौके पर सप्तमी की रात भद्रकाली की पूजा पूरी आस्था से मनाई जाती है। .

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जयलक्ष्मी

रानी जयलक्ष्मी राजभर इनके पति का नाम बिहारीमल राजभर था ! .

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अंबे देवी

अंबे देवी' अंबे देवी राजपासी सुहेलदेव राजपासी राजा बिहारीमल राजपासी के पुत्र थे ! इनकी माता का नाम जयलक्ष्मी राजपासी था ! सुहलदेव राजपासी के तिन भाई और एक बहन थी बिहारीमल के संतानों का विवरण इस प्रकार है ! १. सुहलदेव २. रुद्र्मल ३. बागमल ४. सहारमल या भूराय्देव तथा पुत्री अंबे देवी ! ऐसा मान जाता है की सैयद सलार ने राजकुमारी अंबे देवी का अपहरण ४२३ हिजरी (१०३४ ई.) मे कर लिया था ! जिसके कारण सैयद सलार तथा राजा सुहलदेव के बिच घमासान युद्ध हुआ था ! इन बातो का उल्लेख मौला मुहम्मद गजनवी की किताब "तवारी ख ई - महमूदी" तथा अब्दुर्रहमान चिस्ती की किताब " मिरात- ई- मसौदी" मे मिल जाति है ! अगर आप बलदेव प्रसाद गोरखा की पुस्तक "मंथनगीता" पड़ेंगे तो उसमे इस घटना का बहुत ही अच्छे से वर्णन किया है !.

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महाराजा सुहलदेव

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