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सुदृढ़ नियंत्रण

सूची सुदृढ़ नियंत्रण

नियंत्रण सिद्धान्त में सुदृढ़ नियंत्रण (robust control) से तात्पर्य नियंत्रक डिजाइन की उस प्रणाली से है जिसमें प्रक्रम (या प्लान्ट) से सम्बन्धित अनिश्चितताओं का विशेष ध्यान रखा जाता है। दूसरे शब्दों में, सुदृढ़ नियंत्रण की विधियाँ ऐसे डिजाइन की गयीं हैं कि अनिश्चितताएँ या व्यवधान यदि एक दी गयी सीम में रहें तो नियन्त्रण प्रणाली ठीक से काम करेगी। आरम्भिक काल की बोडे तथा अन्य लोगों की नियन्त्रक डिजाइन की विधियाँ काफी सुदृढ़ थीं। किन्तु १९६० और १९७० के दशक में स्टेट-स्पेस विधियों से नियन्त्रक डिजाइन की शुरुवात हुई जो कभी-कभी सुदृढ नहीं होतीं हैं। इसलिए उनमें अनुसंधान की आवश्यकता अनुभव की गयी और इस प्रकार 'सुदृढ़ नियंत्रण' के सिद्धान्त का जन्म हुआ। सुदृढ़ नियन्त्रण का जन्म १९८० के दशक में हुआ और इसने १९९० के दशक में प्रौढ़ता हासिल की। आज भी यह एक सक्रिय विषय है। यदि सुदृढ़ नियन्त्रण की तुलना अनुकूली नियन्त्रण से करें तो हम देखते हैं कि सुदृढ़ नियन्त्रण एक 'स्थैतिक' नियन्त्रण है जबकि अनुकूली नियन्त्रण परिवर्तनों को मापकर उसके अनुसार अपने को बदल लेता है। सुदृढ़ नियन्त्रक यह मानकर डिजाइन किया जाता है कि कुछ चर अज्ञात ही रहेंगे किन्तु एक सीमा के अन्दर। श्रेणी:नियंत्रण सिद्धान्त.

3 संबंधों: नियंत्रण सिद्धान्त, नियंत्रक (नियंत्रण सिद्धान्त), अनुकूली नियंत्रण

नियंत्रण सिद्धान्त

किसी दी हुई प्रणाली को नियंत्रित करने के लिये ऋणात्मक फीडबैक का कांसेप्ट नियंत्रण सिद्धान्त (Control theory), इंजिनियरी और गणित का सम्मिलित (interdisciplinary) शाखा है जो गतिक तन्त्रों के व्यवहार को आवश्यकता के अनुरूप बदलने से सम्बध रखती है। वांछित ऑउटपुट को सन्दर्भ (रिफरेंस) कहते हैं। .

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नियंत्रक (नियंत्रण सिद्धान्त)

इस सरल फीडबैक लूप में '''C''' नियंत्रक है। नियंत्रण सिद्धान्त में यह एक यन्त्र होता है जो गतिकीय तन्त्र को नियन्त्रित करने और उसकी संचालन स्थिति में आवश्यकता अनुसार भौतिक परिवर्तन करता है। .

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अनुकूली नियंत्रण

मॉडल सन्दर्भ अनुकूली नियंत्रक (MRAC) का ब्लाक आरेख अनुकूली नियन्त्रण (Adaptive control), नियंत्रण की वह विधि है जिसमें नियंत्रक (controller) के प्राचल (पैरामीटरस) नियत नहीं होते बल्कि जिस तंत्र को नियंत्रित करना है, उसके बदलने पर बदलते रहते हैं ताकि अच्छा नियन्त्रण प्राप्त किया जा सकते। उदाहरण के लिये, उड़ने के बाद विमान का भार क्रमशः कम होता जाता है (ईंधन की खपत के कारण)। अतः इसके लिये यदि अनुकूली नियन्त्रक डिजाइन किया जाय तो वह अपने अन्दर ऐसा परिवर्तन करता जायेगा कि विमान के भार के कम होने से भी वांछित नियन्त्रण होता रहे। अनुकूली नियंतक, रोबस्ट नियंत्रक (robust controller) से भिन्न है। रोबस्ट नियन्त्रक अपने को बदलता नहीं है, फिर भी डिजाइन के समय उसके प्राचल इस प्रकार निर्धारित किये गये होते हैं कि नियन्त्रित की जाने वाली प्रणाली में एक पूर्वनिर्धारित सीमा तक परिवर्तन होने के बावजूद भी नियन्त्रण 'ठीक' रहता है। अनुकूली नियंत्रक में 'कन्ट्रोल का नियम' ही बदल दिया जाता है या बदलता रहता है। ऑटो-ट्यूनिंग कन्ट्रोलर या सेल्फ-ट्युनिंग कन्ट्रोलर एक प्रकार का अनुकूली नियंत्रक ही है। .

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