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सपेरा

सूची सपेरा

जयपुर में एक सपेरा बीन बजाते हुए भारत विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं का देश है। प्राचीन संस्कृति के इन्हीं रंगों को देश के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में बिखेरने में सपेरा जाति की अहम भूमिका रही है। देश के सभी हिस्सों में सपेरा जाति के लोग रहते हैं। सपेरों के नाम से पहचाने जाने वाले इस वर्ग में अनेक जातियां शामिल हैं। भुवनेश्वर के समीपवर्ती गांव पद्मकेश्वरपुर एशिया का सबसे बड़ा सपेरों का गांव माना जाता है। इस गांव में सपेरों के करीब साढ़े पांच सौ परिवार रहते हैं और हर परिवार के पास कम से कम दस सांप तो होते ही हैं। सपेरों ने लोक संस्कृति को न केवल पूरे देश में फैलाया, बल्कि विदेशों में भी इनकी मधुर धुनों के आगे लोगों को नाचने के लिए मजबूर कर दिया। सपेरों द्वारा बजाई जाने वाली मधुर तान किसी को भी अपने मोहपाश में बांधने की क्षमता रखती है। डफली, तुंबा और बीन जैसे पारंगत वाद्य यंत्रों के जरिये ये किसी को भी सम्मोहित कर देते हैं। प्राचीन कथनानुसार भारतवर्ष के उत्तरी भाग पर नागवंश के राजा वासुकी का शासन था। उसके शत्रु राजा जन्मेजय ने उसे मिटाने का प्रण ले रखा था। दोनों राजाओं के बीच युध्द शुरू हुआ, लेकिन ऋषि आस्तिक की सूझबूझ पूर्ण नीति से दोनों के बीच समझौता हो गया और नागवंशज भारत छोड़कर भागवती (वर्तमान में दक्षिण अमेरिका) जाने पर राजी हो गए। गौरतलब है कि यहां आज भी पुरातन नागवंशजों के मंदिरों के दुर्लभ प्रमाण मौजूद हैं। स्पेरा परिवार की कस्तूरी कहती हैं कि इनके बच्चे बचपन से ही सांप और बीन से खेलकर निडर हो जाते हैं। आम बच्चों की तरह इनके बच्चों को खिलौने तो नहीं मिल पाते, इसलिए उनके प्रिय खिलौने सांप और बीन ही होते हैं। बचपन से ही सांपों के सानिंध्य में रहने वाले इन बच्चों के लिए सांप से खेलना और उन्हें काबू कर लेना खास शगल बन जाता है। सिर पर पगड़ी, देह पर भगवा कुर्ता, साथ में गोल तहमद, कानों में मोटे कुंडल, पैरों में लंबी नुकीली जूतियां और गले में ढेरों मनकों की माला व ताबीज पहने ये लोग कंधे पर दुर्लभ सांप व तुंबे को डाल कर्णप्रिय धुन के साथ गली-कूचों में घूमते रहते हैं। ये नागपंचमी, होली, दशहरा और दिवाली के मौकों पर अपने घरों को लौटते हैं। इन दिनों इनके अपने मेले आयोजित होते हैं। मंगतराव कहते हैं कि सभी सपेरे इकट्ठे होकर सामूहिक भोज ‘रोटड़ा’ का आयोजन करते हैं। ये आपसी झगड़ों का निपटारा कचहरी में न करके अपनी पंचायत में करते हैं, जो सर्वमान्य होता है। सपेरे नेपाल, असम, कश्मीर, मणिपुर, नागालैंड व महाराष्ट्र के दुर्गम इलाकों से बिछुड़िया, कटैल, धामन, डोमनी, दूधनाग, तक्षकए पदम, दो मुंहा, घोड़ा पछाड़, चित्तकोडिया, जलेबिया, किंग कोबरा और अजगर जैसे भयानक विषधरों को अपनी जान की बाजी लगाकर पकड़ते हैं। बरसात के दिन सांप पकड़ने के लिए सबसे अच्छे माने जाते हैं, क्योंकि इस मौसम में सांप बिलों से बाहर कम ही निकलते हैं। हरदेव सिंह बताते हैं कि भारत में महज 15 से 20 फीसदी सांप ही विषैले होते हैं। कई सांपों की लंबाई 10 से 30 फीट तक होती है। सांप पूर्णतया मांसाहारी जीव है। इसका दूध से कुछ लेना-देना नहीं है, लेकिन नागपंचमी पर कुछ सपेरे सांप को दूध पिलाने के नाम पर लोगों को धोखा देकर दूध बटोरते हैं। सांप रोजाना भोजन नहीं करता। अगर वह एक मेंढक निगल जाए तो चार-पांच महीने तक उसे भोजन की जरूरत नहीं होती। इससे एकत्रित चर्बी से उसका काम चल जाता है। सांप निहायत ही संवेदनशील और डरपोक प्राणी है। वह खुद कभी नहीं काटता। वह अपनी सुरक्षा और बचाव की प्रवृत्ति की वजह से फन उठाकर फुंफारता और डराता है। किसी के पांव से अनायास दब जाने पर काट भी लेता है, लेकिन बिना कारण वह ऐसा नहीं करता। सांप को लेकर समाज में बहुत से भ्रम हैं, मसलन सांप के जोड़े द्वारा बदला लेना, इच्छाधारी सांप का होना, दुग्धपान करना, धन संपत्ति की पहरेदारी करना, मणि निकालकर उसकी रौशनी में नाचना, यह सब असत्य और काल्पनिक हैं। सांप की उम्र के बारे में सपेरों का कहना है कि उनके पास बहुत से सांप ऐसे हैं जो उनके पिता, दादा और पड़दादा के जमाने के हैं। कई सांप तो ढाई सौ से तीन सौ साल तक भी जिन्दा रहते हैं। पौ फटते ही सपेरे अपने सिर पर सांप की पिटारियां लादकर दूर-दराज के इलाकों में निकल पड़ते हैं। ये सांपों के करतब दिखाने के साथ-साथ कुछ जड़ी-बूटियों व रत्न भी बेचते हैं। अतिरिक्त आमदनी के लिए सांप का विष मेडिकल इंस्टीटयूट को बेच देते हैं। किंग कोबरा व कौंज के विष के दो सौ से पांच सौ रुपये तक मिल जाते हैं, जबकि आम सांप का विष 25 से 30 रुपये में बिकता है। आधुनिक चकाचौंध में इनकी प्राचीन कला लुप्त होती जा रही है। बच्चे भी सांप का तमाशा देखने की बजाय टीवी देख या वीडियो गेम खेलना पसंद करते हैं। ऐसे में इनको दो जून की रोटी जुगाड़ कर पानी मुश्किल हो रहा है। मेहर सिंह व सुरजा ठाकुर को सरकार व प्रशासन से शिकायत है कि इन्होंने कभी भी सपेरों की सुध नहीं ली। काम की तलाश में इन्हें दर-ब-दर भटकना पड़ता है। इनकी आर्थिक स्थिति दयनीय है। बच्चों को शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाएं सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। सरकार की किसी भी योजना का इन्हें कोई लाभ नहीं मिल सका, जबकि कबीले के मुखिया केशव इसके लिए सपेरा समाज में फैली अज्ञानता को जिम्मेदार ठहराते हैं। वे कहते हैं कि सरकार की योजनाओं का लाभ वही लोग उठा पाते हैं, जो पढ़े-लिखे हैं और जिन्हें इनके बारे में जानकारी है। मगर निरक्षर लोगों को इनकी जानकारी नहीं होती, इसलिए वे पीछे रह जाते हैं। वह चाहते हैं कि बेशक वह नहीं पढ़ पाए, लेकिन उनकी भावी पीढ़ी को शिक्षा मिले। वह बताते हैं कि उनके परिवारों के कई बच्चों ने स्कूल जाना शुरू किया है। निहाल सिंह बताते हैं कि सपेरा जाति के अनेक लोगों ने यह काम छोड़ दिया है। वे अब मजदूरी या कोई और काम करने लगे हैं। इस काम में उन्हें दिन में पचास रुपये कमाना पहाड़ से दूध की नदी निकालने से कम नहीं है, लेकिन अपने पुश्तैनी पेशे से लगाव होने की वजह से वह आज तक सांपों को लेकर घूमते हैं। स्त्रोत: स्टार न्यूज़ एजेंसी .

सामग्री की तालिका

  1. 2 संबंधों: भारत, भुवनेश्वर

  2. अल्जीरियाई संस्कृति
  3. तूनिसीयाई संस्कृति
  4. पशु प्रशिक्षण
  5. पाकिस्तानी संस्कृति
  6. बांग्लादेश की संस्कृति
  7. भारतीय संस्कृति
  8. मलेशियाई संस्कृति
  9. मिस्री संस्कृति

भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

देखें सपेरा और भारत

भुवनेश्वर

भुवनेश्वर (भुबनेस्वर भी) ओडिशा की राजधानी है। यंहा के निकट कोणार्क में विश्व प्रसिद्ध सूर्य मंदिर स्थित है। भुवनेश्‍वर भारत के पूर्व में स्थित ओडिशा राज्‍य की राजधानी है। यह बहुत ही खूबसूरत और हरा-भरा प्रदेश है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता देखते ही बनती है। यह जगह इतिहास में भी अपना महत्‍वपूर्ण स्‍थान रखता है। तीसरी शताब्‍दी ईसा पूर्व में यहीं प्रसिद्ध कलिंग युद्ध हुआ था। इसी युद्ध के परिणामस्‍वरुप अशोक एक लड़ाकू योद्धा से प्रसिद्ध बौद्ध अनुयायी के रूप में परिणत हो गया था। भुवनेश्‍वर को पूर्व का काशी भी कहा जाता है। लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि यह एक प्रसिद्ध बौद्ध स्‍थल भी रहा है। प्राचीन काल में 1000 वर्षों तक बौद्ध धर्म यहां फलता-फूलता रहा है। बौद्ध धर्म की तरह जैनों के लिए भी यह जगह काफी महत्‍वपूर्ण है। प्रथम शताब्‍दी में यहां चेदी वंश का एक प्रसिद्ध जैन राजा खारवेल' हुए थे। इसी तरह सातवीं शताब्‍दी में यहां प्रसिद्ध हिंदू मंदिरों का निर्माण हुआ था। इस प्रकार भुवनेश्‍वर वर्तमान में एक बहुसांस्‍कृतिक शहर है। ओडिशा की इस वर्तमान राजधानी का निमार्ण इंजीनियरों और वास्‍तुविदों ने उपयोगितावादी सिद्धांत के आधार पर किया है। इस कारण नया भुवनेश्‍वर प्राचीन भुवनेश्‍वर के समान बहुत सुंदर तथा भव्‍य नहीं है। यहां आश्‍चर्यजनक मंदिरों तथा गुफाओं के अलावा कोई अन्‍य सांस्‍कृतिक स्‍थान देखने योग्‍य नहीं है। .

देखें सपेरा और भुवनेश्वर

यह भी देखें

अल्जीरियाई संस्कृति

तूनिसीयाई संस्कृति

पशु प्रशिक्षण

पाकिस्तानी संस्कृति

बांग्लादेश की संस्कृति

भारतीय संस्कृति

मलेशियाई संस्कृति

मिस्री संस्कृति