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भुवनेश्वर

सूची भुवनेश्वर

भुवनेश्वर (भुबनेस्वर भी) ओडिशा की राजधानी है। यंहा के निकट कोणार्क में विश्व प्रसिद्ध सूर्य मंदिर स्थित है। भुवनेश्‍वर भारत के पूर्व में स्थित ओडिशा राज्‍य की राजधानी है। यह बहुत ही खूबसूरत और हरा-भरा प्रदेश है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता देखते ही बनती है। यह जगह इतिहास में भी अपना महत्‍वपूर्ण स्‍थान रखता है। तीसरी शताब्‍दी ईसा पूर्व में यहीं प्रसिद्ध कलिंग युद्ध हुआ था। इसी युद्ध के परिणामस्‍वरुप अशोक एक लड़ाकू योद्धा से प्रसिद्ध बौद्ध अनुयायी के रूप में परिणत हो गया था। भुवनेश्‍वर को पूर्व का काशी भी कहा जाता है। लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि यह एक प्रसिद्ध बौद्ध स्‍थल भी रहा है। प्राचीन काल में 1000 वर्षों तक बौद्ध धर्म यहां फलता-फूलता रहा है। बौद्ध धर्म की तरह जैनों के लिए भी यह जगह काफी महत्‍वपूर्ण है। प्रथम शताब्‍दी में यहां चेदी वंश का एक प्रसिद्ध जैन राजा खारवेल' हुए थे। इसी तरह सातवीं शताब्‍दी में यहां प्रसिद्ध हिंदू मंदिरों का निर्माण हुआ था। इस प्रकार भुवनेश्‍वर वर्तमान में एक बहुसांस्‍कृतिक शहर है। ओडिशा की इस वर्तमान राजधानी का निमार्ण इंजीनियरों और वास्‍तुविदों ने उपयोगितावादी सिद्धांत के आधार पर किया है। इस कारण नया भुवनेश्‍वर प्राचीन भुवनेश्‍वर के समान बहुत सुंदर तथा भव्‍य नहीं है। यहां आश्‍चर्यजनक मंदिरों तथा गुफाओं के अलावा कोई अन्‍य सांस्‍कृतिक स्‍थान देखने योग्‍य नहीं है। .

8 संबंधों: देवता और देव, महापौर, शिव, सांसद, हिन्दू देवी देवताओं की सूची, ईश्वर, ओड़िया भाषा, ओडिशा

देवता और देव

आजकल हिंदी में 'देवता' शब्द का देव शब्द के समान पुल्लिंग में व्यवहार होता है। स्त्रीलिंग में दोनों का रूप देवी है। इंद्र, रुद्र, गणेश आदि देवता; शची, दुर्गा, लक्ष्मी आदि देवियाँ हैं। सूक्ष्म शरीरधारी और भूलोक से ऊपर के लोकों में निवास करनेवालों के गंधर्व, अप्सरा, यक्ष, पितृ और देव जैसे कई वर्ग हैं। इनमें देववर्ग सबसे ऊँचा है और उसका निवास स्वर्गलोक में माना जाता है। देव का पर्याय सुर भी है। आर्यसमाज के विद्वान्‌ ऐसा नहीं मानते। उनका विश्वास है कि देव शब्द वैदिक वाङ्मय में विद्वानों और तपस्वियों, सामान्यत: पूज्य जनों, के लिए व्यवहृत हुआ है। संभव है ऐसा ही हो, परंतु साधारण: हिंदुओं के विश्वासों के अनुसार ऐसा नहीं है। देव शब्द को सामने उपस्थित विद्वानों का वाचक मानने पर कई मंत्रों का अर्थ नहीं लगता, जैसे: देवों ने यज्ञपुरुष की यज्ञ के द्वारा पूजा की, उन धर्मों के द्वारा जो इस विश्व के संचालक आदि धर्म हैं। जो लोग इस प्रकार आचरण करते हैं, यह नाक में (नाकउ नअ अअ कउ नहींअ नहींअ सुखउ जहाँ असुख नहीं हैउ जहाँ सुख हैउ स्वर्लोक में) महिमा को प्राप्त होते है जहाँ पूर्वकालीन साध्य देव निवास करते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है। देवता और देव एक प्रकार से एक दूसरे के समानार्थक हो गए हैं, फिर भी व्यवहार में कुछ अंतर है। 'एक देवता' कहा जा सकता है परंतु एक देव बोलने का चलन नहीं है। देवलोक, देवगण आदि बोला जा सकता है। देव, देवता, देवी के विरोधी असुर, दैत्य, दानव जैसे नामों से पुकारे जाते हैं। संस्कृत में देव और देवता समानार्थक नहीं हैं। पहिली बात जो अपनी ओर ध्यान आकृष्ट करती है वह यह है कि देवता शब्द स्त्रीलिंग है और दूसरी यह कि उसका प्रयोग मंत्रों के ही संबंध में होता है। यदि किसी संस्कृत पुस्तक में देवता को देव के अर्थ में लिख दिया गया है तो इसे मेरी समझ में लेखक का प्रमाद जानना चाहिए, यद्यपि कई कोशकार दोनों शब्दों को समानार्थक भी मानते हैं। कई प्रतिष्ठित पुस्तकों में भी ऐसा प्रयोग आता है पर इन सब की रचना वेदकाल से पीछे की है। प्रत्येक वेदमंत्र के साथ उसके द्रष्टा ऋषि तथा छंद और उसके विनियोग का उल्लेख होता है और साथ ही एक देवता का नाम भी लिया जाता है। देवता का नाम प्राय: पुल्लिंग में होता है, जैसे: विष्णु चले, उन्होंने तीन बार पाँव रखे, सारा विश्व उनके पाँव की धूलि से भर गया। इस मंत्र के साथ देवता का उल्लेख मिलता है। परंतु देवता शब्द के स्त्रीलिंग होने से यों कहना हागा कि 'इस मंत्र की देवता विष्णु है। इसी प्रकार किसी मंत्र की देवता, इंद्र, किसी की रुद्र आदि हैं। यह विलक्षण बात प्रतीत हाती है। यही परंपरा तंत्रग्रंथों में चली आई है। उनमें भी बहुत से मंत्र होते हैं। कोई मंत्र एक अक्षर का होता है, कोई अनेकाक्षर, जैसे ्ह्रीं या क्लीं, ऊं वं वज्राय स्वाहा या एं ्ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे स्वाहा। प्रत्येक मंत्र के साथ उसकी देवता का उल्लेख है। यह विचारणीय है कि मंत्र के साथ पुरुष देव के लिए स्त्रीलिंग देवता शब्द क्यों प्रयुक्त होता है। इस रहस्य के पीछे गंभीर आध्यात्मिक विचार है। विश्व का आधार तो शुद्ध ब्रह्म है। वह सत्वरूप, चिन्मय है। जगत्‌ के आरंभ में वहीं पदार्थ परमात्मा रूप से स्थित होता है। परमात्मा पराशक्तियुक्त है। परमशिव के दो चेहरे सामने आते हैं: प्रकाश और विमर्श, शिव और शक्ति। दोनों एक हैं, अभिन्न हैं। नासदीय सूक्त कहता है: 'आनीदवातं स्वधया तदेकं, तस्माद्धान्यन्नहि किंचनाए' - वह अपनी स्वधा के साथ बिना हवा के साँस ले रहा था, उसके सिवाय और कुछ नहीं था। इसीलिए इस तत्व का प्रतीक अर्धनारीश्वर विग्रह है। ज्यों ज्यों जगत्‌ स्थूल से स्थूलतर होता जाता है, पराशक्ति के असंख्य रूप होते जाते हैं। इनमें से प्रत्येक को देवता कहते हैं। विज्ञान ऊर्जा के जितने भेदों का अध्ययन करता है वह सब देवताएँ हैं। देवताएँ तो अनंत हैं, हम उनमें से कुछ को नाम देते हैं। ऐसा माना जाता है कि यदि मंत्र विशेष का यथाविधि जप किया जाए तो उच्चारण से उत्पन्न स्वरलहरियाँ शक्ति के अनंतसागर को विशेष प्रकार से क्षुब्ध करती हैं। फलत: साधक में विशेष प्रकार की शक्ति का उदय होता है। यदि ऐसा कहा जाता है कि अमुक मंत्र की देवता रुद्र है तो तात्पर्य यह है कि उस मंत्र के विधिपूर्वक जप से साधक में रौद्री शक्ति- संहारक शक्ति का उदय, उद्बोध होगा। यह साधक की निष्ठा और तप की उग्रता पर निर्भर करता है कि वह शक्ति सागर को कहाँ तक विलोड़ित कर सकेगा। इसी प्रकार विष्णु, प्रजापति, इंद्र आदि नाम वैष्णवी, ब्राह्मी, ऐंद्री शक्तियों के प्रतीक के रूप में मंत्रों के साथ प्रयुक्त होते हैं। सब देवताओं को महाशक्ति से तादात्म्य दुर्गासप्तशती में इस प्रकार दिखलाया गया है। शुंभ से लड़ने में महासरस्वती की सहायता के लिए आई हुई लक्ष्मी, ब्रह्माणी आदि को देखकर उससे आपत्ति करने पर देवी कहती हैं कि यह सब तो मेरी विभूतियाँ हैं, 'द्वितीया का ममापरा- मेरे सिवाय दूसरी कौन है? और तत्काल सब देवताएँ उनमें समा गईं। देवगण कौन हैं? यह लोग पुराकाल के योगी हैं जिन्होंने अपने उग्र तप के बल पर विश्व में ऊँचा स्थान पाया है। जिसने जिस शक्ति का विशेष उद्बोध किया है उसको उसके नाम से पुकारा जाता है। यह लोग दीर्घ काल तक इतर जीवों के कल्याणार्थ अपनी विभूतियों का उपयोग करते रहते हैं। इससे यह स्पष्ट है कि देव और देवता का एक ही अर्थ नहीं है। यह कह सकते हैं कि देवतायुक्त व्यक्ति देव है। प्रसंगवशात्‌ यह भी विचार कर लेना चाहिए कि अर्थविक्रिया हुई क्यों और देव शब्द का चलन क्यों कम हो गया। जब तक वैदिक यज्ञ याग होते रहे वेद का अध्ययन अध्यापन भी होता रहा। बौद्धकाल के बाद यज्ञों का चलन बहुत कम हो गया, वेदपाठ निष्प्रयोजन सा प्रतीत होने लगा। फलत: मंत्रों के अर्थ की ओर से ध्यान हट गया, देवता शब्द का लक्ष्य विस्मृतप्राय हो गया। देवताओं के प्रतीक के रूप में इंद्रादि नाम पहले से ही दिए हुए थे। देवता शब्द के स्त्रीलिंग होने की ओर से भी ध्यान दूर हो गया। प्रतीक मूल बन गया। इंद्रदेव, विष्णुदेव, वरुणदेव, इंद्रदेवता, विष्णुदेवता, वरुणदेवता बन गए। इतिहासवेत्ताओं का कहना है कि किसी समय आर्य लोगों में किन्हीं धार्मिक प्रश्नों को लेकर संघर्ष हुआ। यह आज से सहस्त्रों वर्ष पहले की बात है। हम उन सब प्रश्नों का नहीं जानते जिनपर विवाद उठा परंतु इतना तो निश्चित प्रतीत होता है कि एक प्रश्न इंद्र के संबध में था। कुछ लोग इंद्र को देवराज मानते थे। शेष इसके लिए तेयार नहीं थे। झगड़ा इतना बढ़ा कि इंद्र को न माननेवाले देश का छोड़कर चले गए। कई जगहों में घूमते घूमते अंत में वह लोग ईरान में बस गए। उन्हीं के वंशज आज पारसियों के नाम से हमारे देश में रहते हैं। वेदों में इंद्र को न माननेवालों, अनिंद्रों, की बहुत भर्त्सना की गई है। धार्मिक कटुता का परिणाम यहाँ तक पहुँचा कि धर्म संबंधी कुछ महत्वपूर्ण शब्दों तक का बंटवारा हो गया। इनमें से दो शब्द देव और असुर थे। देव शब्द दिव्‌ धातु से निकला है, जिसका अर्थ है चमकना। जो प्रकाशमान्‌, तेजस्वी, हो वह देव है। असुर की व्युत्पत्ति सायण के अनुसार इस प्रकार है: अस्यति क्षिपति सर्वान्‌ - जो सबको फेंक देता है। इसका अर्थ उन्होंने प्रबेल: प्रबल, बताया है। प्रारंभ में इन दोनों शब्दों का वाच्यार्थ एक ही था। देवगण तेजस्वी भी थे और प्रबल भी, अत: वह असुर भी थे। इस प्राचीन प्रयोग की स्मृतियाँ स्वयं वेद में सुरक्षित हैं। कई जगहों में देवों को असुर कहा गया है। ऋग्वेद के तृतीय मंडल के 55वें सूक्त में 22 मंत्र हैं। सबमें देवों के असुरत्व की चर्चा है। प्रत्येक मंत्र के अंत में कहा गया है: महद्देवानामसुरत्वमेकं देवों का असुरत्व महान्‌ है अर्थात्‌ वह बड़े प्रबल हैं। उदाहरण के लिए सुक्त का 10वां मंत्र लीजिए: - रक्षक विष्णु परम पथ से जाते हैं, प्रिय अमृत धामों को धारण करते हुए। अग्नि उन सब धामों को जानते हैं, देवों का एक असुरत्व महान्‌ है।। धार्मिक खटपट में ये दोनों शब्द बँट गए। ईरानी आर्यों ने असुर शब्द को अपनाया और भारतीयों ने देव शब्द को। ईरान में परमात्मा अहुरमज्द- असुर महत्‌- बड़ा असुर- कहलाया तो भारत में उसे महादेव की उपाधि मिली। फलत: ईरानी समुदाय में देव निंदास्पद बन गया और भारतीयों में यही दुर्गति असुर शब्द की हुई। लोगों के मुसलमान हो जाने पर भी देव शब्द ईरानी भाषा, फारसी में ऊपर न उठ सका, उसी भूत प्रेत, निकृष्ट और दुष्ट परंतु शक्तिशाली, जीवविशेष के अर्थ में प्रयोग होता रहा। पठान आक्रामकों के साथ भारत आया। अब एक तो यहाँ पुराना देव शब्द था, दूसरा यह नया देव शब्द पहुंचा। आक्रामक के सामने स्वदेशी शब्द को पीछे हटना पड़ा। धीरे धीरे उसका व्यवहार कम होता गया। अर्थव्यभिचार को बचाने के लिए विद्वानों ने स्यात्‌ जानबूझ कर ऐसा किया होगा। उसके पास देवता शब्द था ही जिसका अब प्राय: कोई पृथक्‌ प्रयोजन नहीं रह गया था। देव की जगह धीरे धीरे देवता ने ले ली और अपने बुरे अर्थ के लिए देव शब्द सामान्य लोगों की बोली में उतर आया। कालादेव, लालदेव आदि की कहानियाँ लोक में प्रचलित हो गईं, अमुक मनुष्य का देव जैसा शरीर हे, ऐसे वाक्य सुने जाने लगे। अप्सरा, गंधर्व आदि तो थे ही, हमने मुस्लिम शासनकाल में जिन, परी और देवों के नए वर्गों की भी सृष्टि होते देखी। सौ वर्ष पुराने नाटक अमानतकृत इंदर सभा में इनमें से कइयों के दर्शन होते हैं। वहाँ राजा इंदर के दरबार में अप्सराओं की जगह परियाँ और अग्नि, वरुण, विष्णु आदि की जगह भाँति भाँति के रंगीन देव ही मंच पर आते हैं। प्रसंगवशात्‌ 'सुर' शब्द का भी ऊपर चर्चा किया गया है। इसका इतिहास भी रोचक प्रतीत होता है। वैदिक वाङ्मय में इसका पता नहीं चला। ऐसा प्रतीत होता है कि पीछे से असुर शब्द की व्युत्पत्ति भूलकर लोगों ने ऐसा सोचा होगा कि अ और सुर मिलने से यह शब्द बना है। ऐसी अवस्था में इसका अर्थ होगा सुर नहीं। जो सुर न हो वह असुर हुआ। असुरों के विरोधी देव थे ही, अत: सुर सहज ही देव का पर्याय बन गया। इसके लिए व्युत्पत्ति भी ढूंढ निकाली गई: सुष्ठु राति अभीष्टानजा अच्छी तरह अभीष्टों को देता है, पूरा करता है। नया होते हुए भी यह शब्द सैकड़ों वर्षों से प्रचलित है। .

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महापौर

महापौर किसी नगर के प्रशासक को कहते हैं। कई बार महापौर का चुनाव उस नगर में रहने वाले लोगों द्वारा किया जाता है और अन्य कई बार, एक केंद्रीय सरकारी समिति यह निर्णय लेती है की किसी नगर का महापौर कौन होगा। बहुत से संघीय देशों जैसे जर्मनी और संयुक्त राज्य अमेरिका में महापौर नगर-राज्य की सरकार का प्रमुख भी होता है। In श्रेणी:समाजशास्त्र.

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शिव

शिव या महादेव हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक है। वह त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव भी कहते हैं। इन्हें भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ,गंगाधार के नाम से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हे भैरव के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से हैं। वेद में इनका नाम रुद्र है। यह व्यक्ति की चेतना के अन्तर्यामी हैं। इनकी अर्धांगिनी (शक्ति) का नाम पार्वती है। इनके पुत्र कार्तिकेय और गणेश हैं, तथा पुत्री अशोक सुंदरी हैं। शिव अधिक्तर चित्रों में योगी के रूप में देखे जाते हैं और उनकी पूजा शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है। शिव के गले में नाग देवता विराजित हैं और हाथों में डमरू और त्रिशूल लिए हुए हैं। कैलाश में उनका वास है। यह शैव मत के आधार है। इस मत में शिव के साथ शक्ति सर्व रूप में पूजित है। भगवान शिव को संहार का देवता कहा जाता है। भगवान शिव सौम्य आकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। अन्य देवों से शिव को भिन्न माना गया है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं। शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदिस्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं। राम, रावण, शनि, कश्यप ऋषि आदि इनके भक्त हुए है। शिव सभी को समान दृष्टि से देखते है इसलिये उन्हें महादेव कहा जाता है। .

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सांसद

सांसद, संसद में मतदाताओं का प्रतिनिधि होता है। अनेक देशों में इस शब्द का प्रयोग विशेष रूप से निम्न सदन के सदस्यों के लिए किया जाता है। क्योंकि अक्सर उच्च सदन के लिए एक अलग उपाधि जैसे कि सीनेट एवं इसके सदस्यों के लिये सीनेटर का प्रयोग किया जाता है सांसद अपनी राजनीतिक पार्टी के सदस्यों के साथ मिलकर संसदीय दल का गठन करते हैं। रोजमर्रा के व्यवहार में अक्सरसांसद शब्द के स्थान पर मीडिया में इसके लघु रूप "MP"का प्रयोग किया जाता है। .

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हिन्दू देवी देवताओं की सूची

यह हिन्दू देवी देवताओं की सूची है। हिन्दू लेखों के अनुसार, धर्म में तैंतीस कोटि (कोटि के अर्थ-प्रकार और करोड़) देवी-देवता बताये गये हैं। इनमें स्थानीय व क्षेत्रीय देवी-देवता भी शामिल हैं)। वे सभी तो यहां सम्मिलित नहीं किये जा सकते हैं। फिर भी इस सूची में तीन सौ से अधिक संख्या सम्मिलित है। .

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ईश्वर

यह लेख पारलौकिक शक्ति ईश्वर के विषय में है। ईश्वर फ़िल्म के लिए ईश्वर (1989 फ़िल्म) देखें। यह लेख देवताओं के बारे में नहीं है। ---- परमेश्वर वह सर्वोच्च परालौकिक शक्ति है जिसे इस संसार का स्रष्टा और शासक माना जाता है। हिन्दी में परमेश्वर को भगवान, परमात्मा या परमेश्वर भी कहते हैं। अधिकतर धर्मों में परमेश्वर की परिकल्पना ब्रह्माण्ड की संरचना से जुडी हुई है। संस्कृत की ईश् धातु का अर्थ है- नियंत्रित करना और इस पर वरच् प्रत्यय लगाकर यह शब्द बना है। इस प्रकार मूल रूप में यह शब्द नियंता के रूप में प्रयुक्त हुआ है। इसी धातु से समानार्थी शब्द ईश व ईशिता बने हैं। .

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ओड़िया भाषा

ओड़िआ, उड़िया या ओडिया (ଓଡ଼ିଆ, ओड़िआ) भारत के ओड़िशा प्रान्त में बोली जाने वाली भाषा है। यह यहाँ के राज्य सरकार की राजभाषा भी है। भाषाई परिवार के तौर पर ओड़िआ एक आर्य भाषा है और नेपाली, बांग्ला, असमिया और मैथिली से इसका निकट संबंध है। ओड़िसा की भाषा और जाति दोनों ही अर्थो में उड़िया शब्द का प्रयोग होता है, किंतु वास्तव में ठीक रूप "ओड़िया" होना चाहिए। इसकी व्युत्पत्ति का विकासक्रम कुछ विद्वान् इस प्रकार मानते हैं: ओड्रविषय, ओड्रविष, ओडिष, आड़िषा या ओड़िशा। सबसे पहले भरत के नाट्यशास्त्र में उड्रविभाषा का उल्लेख मिलता है: "शबराभीरचांडाल सचलद्राविडोड्रजा:। हीना वनेचराणां च विभाषा नाटके स्मृता:।" भाषातात्विक दृष्टि से उड़िया भाषा में आर्य, द्राविड़ और मुंडारी भाषाओं के संमिश्रित रूपों का पता चलता है, किंतु आज की उड़िया भाषा का मुख्य आधार भारतीय आर्यभाषा है। साथ ही साथ इसमें संथाली, मुंडारी, शबरी, आदि मुंडारी वर्ग की भाषाओं के और औराँव, कुई (कंधी) तेलुगु आदि द्राविड़ वर्ग की भाषाओं के लक्षण भी पाए जाते हैं। .

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ओडिशा

ओड़िशा, (ओड़िआ: ଓଡ଼ିଶା) जिसे पहले उड़ीसा के नाम से जाना जाता था, भारत के पूर्वी तट पर स्थित एक राज्य है। ओड़िशा उत्तर में झारखंड, उत्तर पूर्व में पश्चिम बंगाल दक्षिण में आंध्र प्रदेश और पश्चिम में छत्तीसगढ से घिरा है तथा पूर्व में बंगाल की खाड़ी है। यह उसी प्राचीन राष्ट्र कलिंग का आधुनिक नाम है जिसपर 261 ईसा पूर्व में मौर्य सम्राट अशोक ने आक्रमण किया था और युद्ध में हुये भयानक रक्तपात से व्यथित हो अंतत: बौद्ध धर्म अंगीकार किया था। आधुनिक ओड़िशा राज्य की स्थापना 1 अप्रैल 1936 को कटक के कनिका पैलेस में भारत के एक राज्य के रूप में हुई थी और इस नये राज्य के अधिकांश नागरिक ओड़िआ भाषी थे। राज्य में 1 अप्रैल को उत्कल दिवस (ओड़िशा दिवस) के रूप में मनाया जाता है। क्षेत्रफल के अनुसार ओड़िशा भारत का नौवां और जनसंख्या के हिसाब से ग्यारहवां सबसे बड़ा राज्य है। ओड़िआ भाषा राज्य की अधिकारिक और सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। भाषाई सर्वेक्षण के अनुसार ओड़िशा की 93.33% जनसंख्या ओड़िआ भाषी है। पाराद्वीप को छोड़कर राज्य की अपेक्षाकृत सपाट तटरेखा (लगभग 480 किमी लंबी) के कारण अच्छे बंदरगाहों का अभाव है। संकीर्ण और अपेक्षाकृत समतल तटीय पट्टी जिसमें महानदी का डेल्टा क्षेत्र शामिल है, राज्य की अधिकांश जनसंख्या का घर है। भौगोलिक लिहाज से इसके उत्तर में छोटानागपुर का पठार है जो अपेक्षाकृत कम उपजाऊ है लेकिन दक्षिण में महानदी, ब्राह्मणी, सालंदी और बैतरणी नदियों का उपजाऊ मैदान है। यह पूरा क्षेत्र मुख्य रूप से चावल उत्पादक क्षेत्र है। राज्य के आंतरिक भाग और कम आबादी वाले पहाड़ी क्षेत्र हैं। 1672 मीटर ऊँचा देवमाली, राज्य का सबसे ऊँचा स्थान है। ओड़िशा में तीव्र चक्रवात आते रहते हैं और सबसे तीव्र चक्रवात उष्णकटिबंधीय चक्रवात 05बी, 1 अक्टूबर 1999 को आया था, जिसके कारण जानमाल का गंभीर नुकसान हुआ और लगभग 10000 लोग मृत्यु का शिकार बन गये। ओड़िशा के संबलपुर के पास स्थित हीराकुंड बांध विश्व का सबसे लंबा मिट्टी का बांध है। ओड़िशा में कई लोकप्रिय पर्यटक स्थल स्थित हैं जिनमें, पुरी, कोणार्क और भुवनेश्वर सबसे प्रमुख हैं और जिन्हें पूर्वी भारत का सुनहरा त्रिकोण पुकारा जाता है। पुरी के जगन्नाथ मंदिर जिसकी रथयात्रा विश्व प्रसिद्ध है और कोणार्क के सूर्य मंदिर को देखने प्रतिवर्ष लाखों पर्यटक आते हैं। ब्रह्मपुर के पास जौगदा में स्थित अशोक का प्रसिद्ध शिलालेख और कटक का बारबाटी किला भारत के पुरातात्विक इतिहास में महत्वपूर्ण हैं। .

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