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व्यतिकरणमिति

सूची व्यतिकरणमिति

न्यू मेक्सिको के 'वेरी लार्ज अर्रे' के परिसर में व्यतिकरणमिति व्यतिकरणमिति (Interferometry) के अन्तर्गत कई तकनीके हैं जिनमें विद्युतचुम्बकीय तरंगों का व्यतिकरण कराया जाता है ताकि इससे उन तरंगों के बारे में जानकारी निकाली जा सके। तरंगों का व्यतिकरण कराने के लिये जिस उपकरण (इंस्टूमेंट) का उपयोग किया जाता है उसे व्यतिकरणमापी (interferometer) कहते हैं। खगोलविज्ञान, फाइबर प्रकाशिकी, इंजीनियरिंग मापन, प्रकाशीय मापन, भूकंप विज्ञान, समुद्रविज्ञान, क्वांटम यांत्रिकी, नाभिकीय एवं कण भौतिकी, प्लाज्मा भौतिकी, सुदूर संवेदन, बायोमालिक्युलर इंटरैक्शन्स आदि में व्यतिकरणमिति एक महत्वपूर्ण परीक्षण तकनीक है। .

8 संबंधों: तरंगदैर्घ्य, परावर्ती सोपानक व्यतिकरणमापी, प्रकाश का वेग, फाब्री तथा पेरो व्यतिकरणमापी, माइकेल्सन व्यतिकरणमापी, विद्युतचुंबकीय विकिरण, व्यतिकरण (तरंगों का), अध्यारोपण प्रमेय

तरंगदैर्घ्य

साइन-आकारीय अनुप्रस्थ तरंग का तरंगदैर्घ्य, '''λ''' भौतिकी में, कोई साइन-आकार की तरंग, जितनी दूरी के बाद अपने आप को पुनरावृत (repeat) करती है, उस दूरी को उस तरंग का तरंगदैर्घ्य (wavelength) कहते हैं। 'दीर्घ' (.

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परावर्ती सोपानक व्यतिकरणमापी

परावर्ती सोपानक व्यतिकरणमापी (Reflecting Echelon Interferometer) का विकास सन् 1926 ई. में विलियम ने किया। यह एक मात्र उपकरण है, जो परिशुद्ध तरंगदैर्घ्य बताने में तथा निर्वात क्षेत्र, अर्थात्‌ सुदूर पराबैगनी (ultraviolet) क्षेत्र की अतिसूक्ष्म संरचनाओं (hyperfine structurcs) को व्यक्त करने में समर्थ है। श्रेणी:व्यतिकरणमापी.

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प्रकाश का वेग

प्रकाश की चाल (speed of light) (जिसे प्राय: c से निरूपित किया जाता है) एक भौतिक नियतांक है। निर्वात में इसका सटीक मान 299,792,458 मीटर प्रति सेकेण्ड है जिसे प्राय: 3 लाख किमी/से.

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फाब्री तथा पेरो व्यतिकरणमापी

फार्बी-पेरो का व्यतिकरणमापी: इस व्यतिकरनमापी (etalon) में प्रकाश के प्रवेश करने के बाद बहु-आन्तरिक परावर्तन होता है। फाब्री तथा पेरो व्यतिकरणमापी व्यतिकरणमापी में केवल दो व्यतिकारी किरणपुंजों का उपयोग किया गया है। 1893 ई. में बुलूच (Boulouch) ने सर्वप्रथम बताया कि अनेक व्यतिकारी किरणपुंजों के उपयोग से अधिक सुग्राहिता प्राप्त की जा सकती है। इस सिद्धांत का विकास 1897 ई. में फाब्री तथा पेरो द्वारा किया गया। इनके उपकरण में दो समतल समांतर कांचपट्ट रहते हैं, जिनपरश् पतला रजतश् फिल्म रहता है। जब विस्तृत प्रकाशस्त्रोत से ये पट्ट प्रदीप्त किए जाते हैं, तब इन पट्टों केश् मध्य से व्यतिकरण के कारण फ्रंज बनते हैं। ये फ्रंज अनंत परवलय होते हैं और ये समान झुकाव के फ्रंज कहलाते है। ये फ्रंज हाइडिंगर (Haidinger) फ्रंज के समान होते हैं, पर ये वह किरणपुंज के कारण तीव्र और चमकीले होते हैं। इन बहुकिरणपुंजों के फ्रंजों के अनेकानेक उपयोग हैं। धन डेसिमीटर जल की संहति इस व्यतिकरण से मापी गई है और यह संहति एक किलोग्राम से 27 मिलिग्राम कम है। गैसीय अपवर्तनांक ज्ञात करने के लिए, यह व्यतिकरणमापी मानक साधन है। 1943 ई. में टोलैसकी (Tolansky) ने क्रिस्टल पृष्ठ की रूपरेखा ज्ञात करने में इस व्यतिकरणमापी का उपयोग किया। इससे इतनी परिशुद्धता थी कि क्रिस्टल जालक (crystal lattice) अंतराल को भी प्रकाशतरंगों द्वारा मापा जा सकता था। इस व्यतिकरणमापी से क्रिस्टल के आकृतिक लक्षण से लेकर आण्विक विमाएँ तक उद्घटित हो गई हैं। एकवर्णी तथा श्वेत दोनों प्रकार का प्रकाश इस व्यतिकरण में प्रयुक्त होता है। .

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माइकेल्सन व्यतिकरणमापी

प्रकाशीय मेज पर व्यवस्थित एक माइकेल्सन व्यतिकरणमापी माइकेल्सन व्यतिकरणमापी में प्रकाश का पथ प्रोफेसर ए. ए. माइकेल्सन के प्रारंभिक व्यतिकरणमापी मे दाहिनी ओर से एक प्रकाशकिरण दर्पण M पर आती है। M दर्पण का आधा भाग रजतित (silvered) होता है। जिससे केवल आधा प्रकाश परावर्तित होकर दर्पण M1 पर जाता है और शेष आधा प्रकाश अरजतित भाग से पारगमित होकर सीधा दर्पण M2 पर आपतित होता है तथा अपने पथ पर परावर्तित हो जाता है। दर्पण M1 तथा M2 एक दूसरे पर लंब होते हैं। दर्पण M1 तथा M2 से परावर्तित होनेवाली प्रकाश की किरणपुंजें पुन: दर्पण M पर आपतित होती है और प्रेक्षक इन दोनों किरणों के द्वारा बनी व्यतिकरण फ्रंजों को देखता है। माइकेल्सन ने अपने व्यतिकरणमापी की सहायता से प्रकाश का वेग तथा प्रकाश की तरंग लंबाई मापी तथा सर्वप्रथम तारों का कोणीय व्यास ज्ञात किया। बीटेलजूज़ (Betelguese) प्रथम तारा है, जिसका कोणीय व्यास (0.049) ज्ञात किया गया था। दूरदर्शक से युक्त माइकेल्सन व्यतिकरणमापी से अत्यधिक दूर स्थित तारों तथा मंद तारों की मापें ज्ञात करना संभव हो गया है। तारों से प्राप्त होनेवाली प्रकाशतरंगों से व्यतिकरण द्वारा तारों की दिशा, दूरी तथा विस्तार का निर्धारण किया जाता है। .

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विद्युतचुंबकीय विकिरण

विद्युतचुंबकीय तरंगों का दृष्यात्मक निरूपण विद्युत चुंबकीय विकिरण शून्य (स्पेस) एवं अन्य माध्यमों से स्वयं-प्रसारित तरंग होती है। इसे प्रकाश भी कहा जाता है किन्तु वास्तव में प्रकाश, विद्युतचुंबकीय विकिरण का एक छोटा सा भाग है। दृष्य प्रकाश, एक्स-किरण, गामा-किरण, रेडियो तरंगे आदि सभी विद्युतचुंबकीय तरंगे हैं। .

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व्यतिकरण (तरंगों का)

दो वृत्तीय तरंगों का व्यतिकरण व्यतिकरण (Interference) से किसी भी प्रकार की तरंगों की एक दूसरे पर पारस्परिक प्रक्रिया की अभिव्यक्ति होती है, जिसके परिणामस्वरूप कुछ विशेष स्थितियों में कंपनों और उनके प्रभावों में वृद्धि, कमी या उदासीनता आ जाती है। व्यतिकरण का विस्तृत अध्ययन विशाल विभेदन शक्ति वाले सभी यंत्रों के मूल में काम करता है। भौतिक प्रकाशिकी में इस धारण का समावेश टॉमस यंग (Thomas Young) ने किया। उनके बाद व्यतिकरण का व्यवहार किसी भी तरह की तरंगों या कंपनों के समवेत या तज्जन्य प्रभावों को व्यक्त करने के लिए किया जाता रहा है। संक्षेप में किसी भी तरह की (जल, प्रकाश, ध्वनि, ताप या विद्युत् से उद्भूत) तरंगगति के कारण लहरों के टकराव से उत्पन्न स्थिति को व्यतिकरण की संज्ञा दी जाती है। जब कभी जल या अन्य किसी द्रव की सतह पर दो भिन्न तरंगसमूह एक साथ मिलें तो व्यतिकरण की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। जहाँ एक तरंगसमूह से संबंद्ध लहरों के तरंगश्रृंगों का दूसरी शृंखला से संबद्धलहरों के तंरगश्रृंगों से सम्मिलिन होता है, वहाँ द्रव की सतह का उन्नयन उस स्थान पर लहरों के स्वतंत्र और एकांत अस्तित्व के संभव उन्नयनों के योग के बराबर होता है। जब तरंगों में से एक के तरंगश्रृंग का दूसरे के तरंगगर्त पर समापातन होता है, तब द्रव की सतह पर तरंगों का उद्वेलन कम हो जाता है और प्रतिफलित उन्नयन (या अवनयन) एक तरंग अवयव (component) के उन्नयन और दूसरे के अवनयन के अंतर के बराबर होता है। ध्वनि में उत्पन्न विस्पंद (beats) इसी व्यतिकरण का एक साधारण रूप है, जहाँ दो या दो से अधिक तरंगसमूह, जिनके तरंगदैर्ध्य में मामूली सा अंतर होता है, करीब एक ही दिशा में अग्रसर होते हुए मिलते हैं। .

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अध्यारोपण प्रमेय

अध्यारोपण प्रमेय (superposition theorem) सभी रेखीय तन्त्रों पर लागू होता है। विद्युत परिपथों के लिये अध्यारोपण के सिद्धान्त के अनुसार किसी रेखीय परिपथ के किसी शाखा में कुल धारा का मान प्रत्येक स्रोत द्वारा, अकेले कार्य करते हुए, उस शाखा में प्रवाहित धाराओं के बीजगणितीय योग के बराबर होती है। किसी एक स्रोत का योगदान निकालने के लिये अन्य स्रोतों को निष्क्रिय करना आवश्यक है। इसके लिये -.

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