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विरेचन

सूची विरेचन

विरेचन भारतीय चिकित्साशास्त्र (आयुर्वेद) का पारिभाषिक शब्द है। इसका अर्थ है- रोचक औषधि के द्वारा शारीरिक विकारों अर्थात् उदर के विकारों की शुद्धि। यह पंचकर्मों में से एक है। आयुर्वेद के अनुसार त्वचारोगों के उपचार के लिए विरेचन सर्वोत्तम चिकित्सा है। .

4 संबंधों: पंचकर्म, विरेचक, आयुर्वेद, अरस्तु का विरेचन सिद्धांत

पंचकर्म

'''शिरोधारा''' में सिर के ऊपर तेल की एक पतली धारा निरन्तर बहायी जाती है। पंचकर्म (अर्थात पाँच कर्म) आयुर्वेद की उत्‍कृष्‍ट चिकित्‍सा विधि है। पंचकर्म को आयुर्वेद की विशिष्‍ट चिकित्‍सा पद्धति कहते है। इस विधि से शरीर में होंनें वाले रोगों और रोग के कारणों को दूर करनें के लिये और तीनों दोषों (अर्थात त्रिदोष) वात, पित्‍त, कफ के असम रूप को समरूप में पुनः स्‍थापित करनें के लिये विभिन्‍न प्रकार की प्रक्रियायें प्रयोग मे लाई जाती हैं। लेकिन इन कई प्रक्रियायों में पांच कर्म मुख्‍य हैं, इसीलिये ‘’पंचकर्म’’ कहते हैं। ये पांच कर्मों की प्रक्रियायें इस प्रकार हैं-.

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विरेचक

विरेचक या आरेचक (Laxatives या purgatives या aperients) ऐसे खाद्यपदार्थ, यौगिक या दवाओं क कहा जाता है जिनके सेवन से मलत्याग में आसानी होती है। इनके उपयोग से मलाशय की सफाई करने में आसानी होती है।; कुछ प्रमुख विरेचक.

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आयुर्वेद

आयुर्वेद के देवता '''भगवान धन्वन्तरि''' आयुर्वेद (आयुः + वेद .

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अरस्तु का विरेचन सिद्धांत

विरेचन सिद्धांत (Catharsis / कैथार्सिस) द्वारा अरस्तु ने प्रतिपादित किया कि कला और साहित्य के द्वारा हमारे दूषित मनोविकारों का उचित रूप से विरेचन हो जाता है। सफल त्रासदी विरेचन द्वारा करुणा और त्रास के भावों को उद्बुद करती है, उनका सामंजन करती है और इस प्रकार आनंद की भूमिका प्रस्तुत करती है। विरेचन से भावात्मक विश्रांति ही नहीं होती, भावात्मक परिष्कार भी होता है। इस तरह अरस्तु ने कला और काव्य को प्रशंसनीय, ग्राह्य और सायास रक्षनीय सिद्ध किया है। अरस्तु ने इस सिद्धांत के द्वारा कला और काव्य की महत्ता को पुनर्प्रतिष्ठित करने का सफल प्रयास किया। अरस्तु के गुरु प्लेटो ने कवियों और कलाकारों को अपने आदर्श राज्य के बाहर रखने की सिफारिश की थी। उनका मानना था कि काव्य हमारी वासनाओं को पोषित करने और भड़काने में सहायक है इसलिए निंदनीय और त्याज्य है। धार्मिक और उच्च कोटि का नैतिक साहित्य इसका अपवाद है किंतु अधिकांश साहित्य इस आदर्श श्रेणी में नहीं आता है। विरेचन सिद्धान्त का महत्त्व बहुविध है। प्रथम तो यह है कि उसने प्लेटो द्वारा काव्य पर लगाए गए आक्षेप का निराकरण किया और दूसरा यह कि उसने गत कितने ही वर्षों के काव्यशास्त्रीय चिन्तन को किसी-न-किसी रूप में अवश्य ही प्रभावित किया। .

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