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लोक नृत्य

सूची लोक नृत्य

लोकनृत्य (Folk dance) उन नृत्यों को कहते हैं जिनमें प्राय: निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं-.

5 संबंधों: नवाचार, पेटेण्ट, भारत के लोक नृत्य, लोकनृत्यों की सूची, लोककला

नवाचार

नवाचार अर्थशास्त्र, व्यापार, तकनीकी एवं समाज शास्त्र में बहुत महत्व का विषय है। नवाचार (नव+आचार) का अर्थ किसी उत्पाद, प्रक्रिया या सेवा में थोडा या बहुत बडा परिवर्तन लाने से है। नवाचार के अन्तर्गत कुछ नया और उपयोगी तरीका अपनाया जाता है, जैसे- नयी विधि, नयी तकनीक, नयी कार्य-पद्धति, नयी सेवा, नया उत्पाद आदि। नवाचार को अर्थतंत्र का सारथी माना जाता है। किसी संस्था के संदर्भ में नवाचार के द्वारा दक्षता, उत्पादकता, गुणवता, बाजार में पकड आदि के सुधार सम्मिलित हैं। अस्पताल, विश्वविद्यालय, ग्राम-पंचायतें आदि सभी संस्थायें नवाचारी हो सकती हैं। जो संस्थायें नवाचार नहीं कर पातीं वे नाश को प्राप्त होती हैं। उनका स्थान नवाचार में सफल हुई संस्थायें ले लेतीं हैं। नवाचार में सबसे महत्वपूर्ण चुनौती प्रक्रिया-नवाचार तथा उत्पाद-नवाचार में सामंजस्य बैठाना होता है। .

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पेटेण्ट

पेटेण्ट या एकस्व किसी देश द्वारा किसी अन्वेषणकर्ता को या उसके द्वारा नामित व्यक्ति को उसके अनुसन्धान को सार्वजनिक करने के बदले दिए जाने वाले अनन्य अधिकारों का समूह को कहते है। यह एक निश्चित अवधि के लिये दिया जाता है। पेटेण्ट प्रदान करने की प्रक्रिया, पेटेण्टार्थी द्वारा पूरा की जाने वाली शर्तें तथा उक्त अधिकारों का प्रभावक्षेत्र एक देश से दूसरे देश में अलग होते हैं। पेटेण्ट कानून के अन्तर्गत, पेटेन्ट-धारक को निश्चित एक मात्र अधिकार उत्पादन, विक्रय एवं प्रयोग के सम्बन्ध में कुछ निर्धारित वर्षों के लिए प्राप्त होता है: वैधानिक रूप से, एक पेटेण्ट-प्राप्ति यह अधिकार प्रदान नहीं करती कि किसी खोज का प्रयोग अथवा विक्रय किया जाए, परन्तु यह दूसरे को ऐसा करने से रोकती है। एक व्यक्ति अथवा कम्पनी पेटेण्ट भंग के लिये दोषी होंगे यदि वे इसका प्रयोग करते हैं, यदि वह इसे अपने प्रयोग हेतु चिन्हित करता है; यदि वह एक भाग क्रय करता है तथा दूसरे में मिश्रित कर लेता है जिससे यह भंग होती है। .

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भारत के लोक नृत्य

भारत के लोक नृत्य .

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लोकनृत्यों की सूची

अनेकता में एकता को संजोये हुए भारत उस गुलदस्ते की तरह है जिसमें भिन्न-भिन्न रंगों के फूलों एवं पत्तियों को इस तरह रखा जाता है कि उनकी शोभा द्विगुणित हो जाती है। इसी तरह हमारे देश की सीमा के विभिन्न राज्यों एवं क्षेत्रों की अपनी अलग अलग भाषा एवं संस्कृति के साथ साथ इन क्षेत्रों की अपनी अलग ही लोक गीतों व लोक नृत्यों की समृद्ध विरासत भी हैः जो आज इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की चकाचौंध में कहीं न कहीं लुप्त होती जा रही है। जो मनुष्य सगीत साहित्य कला से विहीन है वे साक्षात् पशु के समान है, यद्यपि उनके सींग और पूँछ नहीं होते फिर भी वे पशु समान है, विद्वानों का मानना है कि जो जनजातियां नाचती गाती नहीं - उनकी संस्कृति मर जाती है, समाप्त हो जाती है। ऐसे में आवश्यकता इस बात की है कि हम विलुप्त हो रही इन लोक नृत्यों एवं लोक गायनों के धरोहर को संजो कर नहीं रख पाये तो आने वाली पीढ़ी के लिए इसकी जानकारी भी शेष नहीं रह जायेगी। साधरणतयःदेखने को यही मिलता है कि लोग गीतों की धुन पर झूमते लहरते और नृत्य करते पाये जाते हैं और जो लज्जालु किस्म के लोग होते हैं वे गीतों का आनंद तो लेते ही हैं मन ही मन गुनगुनाते जरूर हैं और कुछ लोग चार दीवारों के बीच छिप कर नाचने गाने वाले भी हैं या कुछ लोग मधुर गीत भुलाये नहीं भूलते, मन ही मन याद कर के, आतंरिक व मानसिक नृत्य चलता ही है, नहीं तो सुन कर आनंदित जरूर होते हैं, इस बात का ध्योतक है कि गीत से नृत्य का सम्बन्ध है दूसरी ओर यदि नृत्य करने का मन हो या नृत्य का आयोजन करना हो तो गीत और संगीत की आवश्यकता तो होती ही है जिसके द्वारा शारीरिक व मानसिक हाव भाव के माध्यम से गीत के बोलों के अर्थ अभिव्यक्त कर दर्शकों व श्रोताओं का मनोरंजन कर आनंदित व आकर्षित कर सके। इस तरह नृत्य का गीत व संगीत से एक गहरा सम्बन्ध है एवं वे एक दूसरे के पूरक भी हैं। .

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लोककला

भारत की अनेक जातियों व जनजातियों में पीढी दर पीढी चली आ रही पारंपरिक कलाओं को लोककला कहते हैं। इनमें से कुछ आधुनिक काल में भी बहुत लोकप्रिय हैं जैसे मधुबनी और कुछ लगभग मृतप्राय जैसे जादोपटिया। कलमकारी, कांगड़ा, गोंड, चित्तर, तंजावुर, थंगक, पातचित्र, पिछवई, पिथोरा चित्रकला, फड़, बाटिक, मधुबनी, यमुनाघाट तथा वरली आदि भारत की प्रमुख लोक कलाएँ हैं। .

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