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भारत के लोक नृत्य

सूची भारत के लोक नृत्य

भारत के लोक नृत्य .

10 संबंधों: चरी नृत्य, पांडव नृत्य, बिहु नृत्य, राउत नाच, शास्त्रीय नृत्य, सत्रिया नृत्य, हरियाणवी सांग, घूमर, गरबा, करमा

चरी नृत्य

चरी नृत्य चरी नृत्य भारत में राजस्थान का आकर्षक व बहुत प्रसिद्ध लोक नृत्य है। यह महिलाओं द्वारा किया जाने वाला सामूहिक लोक नृत्य है। यह राजस्थान के अजमेर और किशनगढ़ में अति प्रचलित है। चरी नृत्य राजस्थान में किशनगढ़ और अजमेर के गुर्जर और सैनी समुदाय की महिलाओं का एक सुंदर नृत्य है। चेरी नृत्य राजस्थान में कई बड़े समारोहों, त्योहारों, लडके के जन्म पर, शादी के अवसरों के समय किया जाता है। फलकू बाई इसकी प्रसिद्ध नृत्यांगना हैं .

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पांडव नृत्य

पांडव नृत्य उत्तराखंड राज्य का एक प्रमुख लोकनृत्य के रूप में जाना जाता है।यह नृत्य महाभारत में पांच पांडवो के जीवन से सम्बंधित है।पांडव नृत्य के बारे में हर वो व्यक्ति जानता है जिसने अपना जीवन उत्तराखंड की सुंदर वादियों, अनेको रीति रिवाजों,सुंदर परम्पराओं के बीच बिताया हो।पांडव नृत्य के माध्यम से पांच पांडवो व द्रोपदी की पूजा अर्चना करने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है।उत्तराखंड को पांडवो की धरा भी कहा जाता है। पांडव नृत्य का आयोजन हर साल नवंबर से फरवरी तक केदारघाटी में किया जाता है।इसमें लोग वाद्य यंत्रों की थाप और धुनों पर नृत्य करते हैं। मुख्यतः जिन स्थानों पर पांडव अस्त्र छोड़ गए थे वहां पांडव नृत्य का आयोजन होता है।.

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बिहु नृत्य

एक मोहोर ख़िंगोर पेपा (सींग) के साथ बिहु नर्तक बिहु नृत्य (বিহু নৃত্য, बिहू नृत्य) भारत के असम राज्य का लोक नृत्य है जो बिहु त्योहार से संबंधित है। यह खुशी का नृत्य युवा पुरुषों और महिलाओं दोनों द्वारा किया जाता है और इसकी विशेषता फुर्तीली नृत्य मुद्राएँ तथा हाथों की तीव्र गति है। नर्तक पारंपरिक रंगीन असमिया परिधान पहनते हैं। हालाँकि बिहु नृत्य का मूल अज्ञात है, लेकिन इसका पहला आधिकारिक सबूत तब मिलता है जब अहोम राजा रूद्र सिंह ने 1694 के आसपास रोंगाली बिहु के अवसर पर बिहु नर्तकों को रणघर क्षेत्रों में इसका प्रदर्शन करने के लिए आमंत्रित किया था। .

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राउत नाच

राउत नाच या राउत-नृत्य, यादव समुदाय का दीपावली पर किया जाने वाला पारंपरिक नृत्य है। इस नृत्य में राउत लोग विशेष वेशभूषा पहनकर, हाथ में सजी हुई लाठी लेकर टोली में गाते और नाचते हुए निकलते हैं। गांव में प्रत्येक गृहस्वामी के घर में नृत्य के प्रदर्शन के पश्चात् उनकी समृद्धि की कामना युक्त पदावली गाकर आशीर्वाद देते हैं। टिमकी, मोहरी, दफड़ा, ढोलक, सिंगबाजा आदि इस नृत्य के मुख्य वाद्य हैं। नृत्य के बीच में दोहे गाये जाते हैं। ये दोहे भक्ति, नीति, हास्य तथा पौराणिक संदर्भों से युक्त होते हैं। राउत-नृत्य में प्रमुख रूप से पुरुष सम्मिलित होते हैं तथा उत्सुकतावश बालक भी इनका अनुसरण करते हैं। .

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शास्त्रीय नृत्य

भारत में नृत्‍य की जड़ें प्राचीन परंपराओं में है। इस विशाल उपमहाद्वीप में नृत्‍यों की विभिन्‍न विधाओं ने जन्‍म लिया है। प्रत्‍येक विधा ने विशिष्‍ट समय व वातावरण के प्रभाव से आकार लिया है। राष्‍ट्र शास्‍त्रीय नृत्‍य की कई विधाओं को पेश करता है, जिनमें से प्रत्‍येक का संबंध देश के विभिन्‍न भागों से है। प्रत्‍येक विधा किसी विशिष्‍ट क्षेत्र अथवा व्‍यक्तियों के समूह के लोकाचार का प्रतिनिधित्‍व करती है। भारत के कुछ प्रसिद्ध शास्‍त्रीय नृत्‍य हैं - .

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सत्रिया नृत्य

सत्रिया नृत्य असम का लोक नृत्य है। श्रेणी:नृत्य.

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हरियाणवी सांग

सांग हरियाणवी संस्कृति की पहचान है। पौराणिक व ऐतिहासिक कहानियां गीत व नाटक के माध्यम से सुनाई जाती है।.

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घूमर

घूमर राजस्थान का एक परंपरागत लोकनृत्य है। इसका विकास भील कबीले ने किया था और बाद में बाकी राजस्थानी बिरादरियों ने इसे अपना लिया। यह नाच ज्यादातर औरतें घूंघट लगाकर और एक घुमेरदार पोशाक जिसे "घाघरा" कहते हैं, पहन कर करती हैं। घूमर आम तौर पर ख़ास मौकों, जैसे विवाह, होली, त्योहारों और धार्मिक आयोजनों में किया जाता है। घूमर के गाने राजसी और शाही किंवदंतियों या उनकी परम्पराओं पर केंद्रित हो सकते हैं। यह राजस्थान का राज्य नृत्य हैं.

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गरबा

गरबा गुजरात का प्रसिद्ध लोकनृत्य है। यह नाम संस्कृत के गर्भ-द्वीप से है। .

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करमा

करमा झारखण्ड के आदिवासियों का एक प्रमुख त्यौहार है। मुख्य रूप से यह त्यौहार भादो (लगभग सितम्बर) मास की एकादशी के दिन और कुछेक स्थानों पर उसी के आसपास मनाया जाता है। इस मौके पर आदिवासी प्रकृति की पूजा कर अच्छे फसल की कामना करते हैं, साथ ही बहनें अपने भाइयों की सलामती के लिए प्रार्थना करती हैं। करमा पर झारखंड के आदिवासी ढोल और मांदर की थाप पर झूमते-गाते हैं। यह दिन इनके लिए प्रकृति की पूजा का है। ऐसे में ये सभी उल्लास से भरे होते हैं। परम्परा के मुताबिक, खेतों में बोई गई फसलें बर्बाद न हों, इसलिए प्रकृति की पूजा की जाती है। इस मौके पर एक बर्तन में बालू भरकर उसे बहुत ही कलात्मक तरीके से सजाया जाता है। पर्व शुरू होने के कुछ दिनों पहले उसमें जौ डाल दिए जाते हैं, इसे 'जावा' कहा जाता है। यही जावा आदिवासी बहनें अपने बालों में गूंथकर झूमती-नाचती हैं। आदिवासी बहनें अपने भाइयों की सलामती के लिए इस दिन व्रत रखती हैं। इनके भाई 'करम' वृक्ष की डाल लेकर घर के आंगन या खेतों में गाड़ते हैं। इसे वे प्रकृति के आराध्य देव मानकर पूजा करते हैं। पूजा समाप्त होने के बाद वे इस डाल को पूरे धार्मिक रीति‍ से तालाब, पोखर, नदी आदि में विसर्जित कर देते हैं। .

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