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राजस्थानी व्यंजन

सूची राजस्थानी व्यंजन

राजस्थानी खाना विशेष रूप से शाकाहारी भोजन होता है और यह अपने स्वाद के कारण सारे विश्व में प्रसिद्ध हो गया है। अपनी भौगोलिक परिस्थितियों के कारण पारंपरिक राजस्थानी खाने में बेसन, दाल, मठा, दही, सूखे मसाले, सूखे मेवे, घी, दूध का अधिकाधिक प्रयोग होता है। हरी सब्जियों की तात्कालिक अनुपलब्धता के कारण पारंपरिक राजस्थानी खाने में इनका प्रयोग कम ही रहा है। मुख्यत: निम्न राजस्थानी खाने अधिक प्रचलित हैं।.

सामग्री की तालिका

  1. 10 संबंधों: चूरमा, झाजरिया, दाल बाटी चूरमा, दाल की पूरी, पिटौर की सब्जी, बालूशाही, भुजिया, घेवर, खेजड़ी, गट्टे की सब्जी

  2. राजस्थानी खाना
  3. राज्यानुसार भारत की पाकशैलियाँ

चूरमा

चूरमा जिसे चूरमा के लडडू भी कहा जाता है, राजस्थान की सर्वाधिक लोकप्रिय मिठाई है। सामान्यतः इसे दाल बाटी के साथ परोसा जाताहै। चूरमा राजस्थान के हर त्यौहार्, शादी ब्याह, या सामूहिक भोज में परोसा जाता है। सामान्यतः इसे मोटे आटे से बनी, बिना नमक की बाटी से बनाया जाता है। चूरमा के लडडू बनाने के लिये बाटी को कंडे की आग या भूनने के बजाय, तल कर भी बनाया जाता है। बनी हुई बाटी को फोड़ कर बारीक चूरा बना दिया जाता है और इसमें घी, गुड या चीनी एवं सूखे मेवे मिला कर बड़े साइज के लडडू बना लिये जाते हैं। .

देखें राजस्थानी व्यंजन और चूरमा

झाजरिया

झाजरिया एक प्रसिद्ध राजस्थानी व्यंजन है। श्रेणी:पकवान.

देखें राजस्थानी व्यंजन और झाजरिया

दाल बाटी चूरमा

दाल बाटी चूरमा एक राजस्थानी व्यंजन है। बाटी मोटे गेहू के आटे से बनाई जाती है। चूरमा मीठे आटे का मिश्रण होता है। यह एक धार्मिक अवसरों, गोठ, विवाह समारोहों और राजस्थान में जन्मदिन पार्टियों में भी बनाई जाती है। दाल बाटी चूरमा आमतौर पर दोपहर के भोजने के समय या खाने के समय के दौरान या तो सेवा है। अधिक घी का स्वाद इसे और भी बेहतर स्वाद बना देता है। जोधपुर,जयपुर और जैसलमेर के शहर इस राजस्थानी पकवान के लिए प्रसिद्ध हैं। दाल, बाटी, चूरमा उत्तम राजस्थान विशेषता के रूप में जाना जाता है एक राजस्थानी खाना है। या अधिक मसाला राजस्थानी खाने की विशेषता है। चूरमा में एक अंतहीन विविधता है रंग जो सामग्री पर निर्भर करता है और एक आश्चर्यजनक विविधता है जिनमें से कई एक साथ परोसा जा सकता है, रोटी के साथ जो इसे फिर से गेहूं या मक्का या बाजरा से मिलकर बनाया जाता है।। .

देखें राजस्थानी व्यंजन और दाल बाटी चूरमा

दाल की पूरी

दाल की पूरी को राजस्थान में छीलड़ा भी कहा जाता है। उड़द की दाल को आटे में गूँथ कर बनाई गयी यह पूरी कचौड़ी का स्वाद देती है। यह पूरियाँ बहुत जल्दी बन जाती हैं, और स्वादिष्ट होती हैं। .

देखें राजस्थानी व्यंजन और दाल की पूरी

पिटौर की सब्जी

thumb राजस्थानी पिटौर की राजस्थान की पारंपरिक सब्जी है। इसमें दही और सब्जी बेसन को ढोकला की तरह भाप में पका लिया जाता है। पके हुये बेसन को परात में जमा कर इसके छोटे छोटे टुकडे कात लिये जाते हैं। इन भाप में पकी, कटी हुई बेसन दही की कतलियों को छोंक कर खदका कर तरीदार सब्जी बना ली जाती है। .

देखें राजस्थानी व्यंजन और पिटौर की सब्जी

बालूशाही

बालूशाही (उर्दू: بالوشاھی) एक प्रकार का पकवान है जो मैदा तथा चीनी से बनाया जाता है। बालूशाही मैदा आटे से बनती है और गहरे घी में तली जाती है। तत्पश्चात् उसे चीनी के सिरप में डुबाया जाता है। श्रेणी:भारतीय मिठाइयाँ.

देखें राजस्थानी व्यंजन और बालूशाही

भुजिया

भुजिया भारत का एक प्रसिद्ध नमकीन है। यह राजस्थान के बीकानेर के नाम से जुड़ी हुई है। यह एक बेसन के बारीक सेव या जवे जैसे बनाकर खाद्य तेल में तले जाने पर बनती है। इसमें बेसन के अलावा मूंग, मोठ मटर आदि के आटे भी मिलाए जाते हैं। साथ ही कई मसाले भी डाले जाते हैं। .

देखें राजस्थानी व्यंजन और भुजिया

घेवर

घेवर छप्पन भोग के अन्तर्गत प्रसिद्ध व्यंजन हॅ। यह मैदे से बना, मधुमक्खी के छत्ते की तरह दिखाई देने वाला एक ख़स्ता और मीठा पकवान है। सावन माह की बात हो और उसमें घेवर का नाम ना आए तो कुछ अटपटा लगेगा। घेवर, सावन का विशेष मिष्ठान माना जाता है। हालाँकि अब घेवर की माँग अन्य मिठाइयों के सामने कुछ कम हुई है लेकिन फिर भी आज कुछ लोग घेवर को ही महत्व देते हैं। सावन में तीज के अवसर पर बहन-बेटियों को सिंदारा देने की परंपरा काफी पुरानी है, इसमें चाहे कितना ही अन्य मिष्ठान रख दिया जाए लेकिन घेवर होना अवश्यक होता है। इसलिए साल के विशेष समय पर बनने वाली इस पारंपरिक मिठाई घेवर का वर्चस्व टूटना संभव नहीं है, भले ही आधुनिक मिठाइयों के सामने इसकी लोकप्रियता में कुछ कमी दिखाई देती हो। सावन में इस मिष्ठान की माँग को पूरा करने के लिए छोटे हलवाई से लेकर प्रतिष्ठित हलवाई महिनों पहले काम शुरु कर देते हैं। घेवर बनाने का काम प्रत्येक गली मौहल्ले में जोर-शोर से शुरू हो जाता है। पुराने लोग बताते हैं कि बगैर घेवर के न रक्षाबंधन का सगन पूरा माना जाता है और न ही तीज का। घेवर वैश्वीकरण के दौर में आज घेवर का रूप भी बदलने लगा है, ४० से लेकर २०० रूपये प्रति किलो का घेवर बाजार में उपलब्ध है, जो जैसा दाम लगाता है उसे उसी प्रकार का माल मिल जाता है, सादा घेवर सस्ता है जबकि पिस्ता, बादाम और मावे वाला घेवर मँहगा। पिस्ता बादाम और मावे वाला घेवर ज्यादा प्रचलित हैं, हालाँकि लोगों का कहना है कि जितना आनंद सादा घेवर के सेवन में आता है उतना मेवा-घेवर में कतई नहीं। फिर भी लोग मावा-घेवर को ही खरीदना पसंद करते हैं। कुल मिला कर सावन के महीने में घेवर की खुशबू पूरे बाजार को महका देती है और तीज व रक्षाबंधन के अवसर पर घेवर की दुकानों पर भीड़ देखते ही बनती है। घेवर दो तरह को होता है, फीका और मीठा। ताज़ा घेवर नर्म और ख़स्ता होता है पर यह रखा रखा थोड़ा सख़्त होने लगता है। इस समय फीके घेवर को बेसन में लपेटकर, तलकर मज़ेदार पकौड़े बनाए जाते हैं। मीठे घेवर की पुडिंग बढ़िया बनती है। .

देखें राजस्थानी व्यंजन और घेवर

खेजड़ी

खेजड़ी या शमी एक वृक्ष है जो थार के मरुस्थल एवं अन्य स्थानों में पाया जाता है। यह वहां के लोगों के लिए बहुत उपयोगी है। इसके अन्य नामों में घफ़ (संयुक्त अरब अमीरात), खेजड़ी, जांट/जांटी, सांगरी (राजस्थान), जंड (पंजाबी), कांडी (सिंध), वण्णि (तमिल), शमी, सुमरी (गुजराती) आते हैं। इसका व्यापारिक नाम कांडी है। यह वृक्ष विभिन्न देशों में पाया जाता है जहाँ इसके अलग अलग नाम हैं। अंग्रेजी में यह प्रोसोपिस सिनेरेरिया नाम से जाना जाता है। खेजड़ी का वृक्ष जेठ के महीने में भी हरा रहता है। ऐसी गर्मी में जब रेगिस्तान में जानवरों के लिए धूप से बचने का कोई सहारा नहीं होता तब यह पेड़ छाया देता है। जब खाने को कुछ नहीं होता है तब यह चारा देता है, जो लूंग कहलाता है। इसका फूल मींझर कहलाता है। इसका फल सांगरी कहलाता है, जिसकी सब्जी बनाई जाती है। यह फल सूखने पर खोखा कहलाता है जो सूखा मेवा है। इसकी लकड़ी मजबूत होती है जो किसान के लिए जलाने और फर्नीचर बनाने के काम आती है। इसकी जड़ से हल बनता है। अकाल के समय रेगिस्तान के आदमी और जानवरों का यही एक मात्र सहारा है। सन १८९९ में दुर्भिक्ष अकाल पड़ा था जिसको छपनिया अकाल कहते हैं, उस समय रेगिस्तान के लोग इस पेड़ के तनों के छिलके खाकर जिन्दा रहे थे। इस पेड़ के नीचे अनाज की पैदावार ज्यादा होती है। .

देखें राजस्थानी व्यंजन और खेजड़ी

गट्टे की सब्जी

गट्टे की सब्जी एक राजस्थानी व्यंजन है। .

देखें राजस्थानी व्यंजन और गट्टे की सब्जी

यह भी देखें

राजस्थानी खाना

राज्यानुसार भारत की पाकशैलियाँ

राजस्थानी भोजन के रूप में भी जाना जाता है।