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राजकोष

सूची राजकोष

किसी राज्य के पास मौजूद सम्पूर्ण आर्थिक संसाधन ही राजकोश (Treasury / ट्रेजरी) कहलाता है। अधिकांश देशों में जो विभाग इन संसाधनों का प्रबन्धन करता है, उसे भी ट्र्जरी कहा जाता है। यह प्रायः वित्त मंत्रालय से जुड़ा होता है। .

सामग्री की तालिका

  1. 4 संबंधों: राज्य, वित्त मन्त्रालय, वेदान्त दर्शन, कोष

  2. सरकारी संस्थाएँ

राज्य

विश्व के वर्तमान राज्य (विश्व राजनीतिक) पूँजीवादी राज्य व्यवस्था का पिरामिड राज्य उस संगठित इकाई को कहते हैं जो एक शासन (सरकार) के अधीन हो। राज्य संप्रभुतासम्पन्न हो सकते हैं। इसके अलावा किसी शासकीय इकाई या उसके किसी प्रभाग को भी 'राज्य' कहते हैं, जैसे भारत के प्रदेशों को भी 'राज्य' कहते हैं। राज्य आधुनिक विश्व की अनिवार्य सच्चाई है। दुनिया के अधिकांश लोग किसी-न-किसी राज्य के नागरिक हैं। जो लोग किसी राज्य के नागरिक नहीं हैं, उनके लिए वर्तमान विश्व व्यवस्था में अपना अस्तित्व बचाये रखना काफ़ी कठिन है। वास्तव में, 'राज्य' शब्द का उपयोग तीन अलग-अलग तरीके से किया जा सकता है। पहला, इसे एक ऐतिहासिक सत्ता माना जा सकता है; दूसरा इसे एक दार्शनिक विचार अर्थात् मानवीय समाज के स्थाई रूप के तौर पर देखा जा सकता है; और तीसरा, इसे एक आधुनिक परिघटना के रूप में देखा जा सकता है। यह आवश्यक नहीं है कि इन सभी अर्थों का एक-दूसरे से टकराव ही हो। असल में, इनके बीच का अंतर सावधानी से समझने की आवश्यकता है। वैचारिक स्तर पर राज्य को मार्क्सवाद, नारीवाद और अराजकतावाद आदि से चुनौती मिली है। लेकिन अभी राज्य से परे किसी अन्य मज़बूत इकाई की खोज नहीं हो पायी है। राज्य अभी भी प्रासंगिक है और दिनों-दिन मज़बूत होता जा रहा है। यूरोपीय चिंतन में राज्य के चार अंग बताये जाते हैं - निश्चित भूभाग, जनसँख्या, सरकार और संप्रभुता। भारतीय राजनीतिक चिन्तन में 'राज्य' के सात अंग गिनाये जाते हैं- राजा या स्वामी, मंत्री या अमात्य, सुहृद, देश, कोष, दुर्ग और सेना। (राज्य की भारतीय अवधारण देखें।) कौटिल्य ने राज्य के सात अंग बताये हैं और ये उनका "सप्तांग सिद्धांत " कहलाता है - राजा, आमात्य या मंत्री, पुर या दुर्ग, कोष, दण्ड, मित्र । .

देखें राजकोष और राज्य

वित्त मन्त्रालय

वित्त मंत्रालय सरकार के वित्तीय प्रशासन के लिए जिम्मेदार है। यह देश को प्रभावित करने वाले सभी आर्थिक और वित्तीय मामलों से संबद्ध है। वित्त मंत्रालय के सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में नियामक और बजट निर्माण है। मंत्रालय की कुछ प्रमुख जिम्मेदारियों में नियम बनाना, भुगतान करना, उपलब्धियां और सरकारी कर्मचारियों की अन्य सेवा शर्तों का विनियमन शामिल है। यह स्थानीय निधि लेखा परीक्षा, राष्ट्रीय बचत, लॉटरी, बीमा और कोषागार निदेशालय पर प्रशासनिक नियंत्रण रखता है। मंत्रालय विभिन्न राज्यों के लिए संसाधनों के स्थानांतरण सहित सरकार के व्यय को नियंत्रित करता है। यह देश के सभी वित्तीय लेनदेन की निगरानी के लिए नोडल केंद्र है। इसके अलावा इसका सबसे महत्वपूर्ण कार्य बजट तैयार करना, वर्ष के दौरान प्राप्तियों और व्यय पर नजर रखना है। विभाग का एक अन्य महत्वपूर्ण कार्य धन के पुनः विनियोग की निगरानी है। वित्तीय मामलों से संबंधित नियमों की तैयारी और विभागों द्वारा मांग से संबंधित व्याख्या एक और महत्वपूर्ण कार्य है। इस मंत्रालय के चार विभाग हैं.

देखें राजकोष और वित्त मन्त्रालय

वेदान्त दर्शन

वेदान्त ज्ञानयोग की एक शाखा है जो व्यक्ति को ज्ञान प्राप्ति की दिशा में उत्प्रेरित करता है। इसका मुख्य स्रोत उपनिषद है जो वेद ग्रंथो और अरण्यक ग्रंथों का सार समझे जाते हैं। उपनिषद् वैदिक साहित्य का अंतिम भाग है, इसीलिए इसको वेदान्त कहते हैं। कर्मकांड और उपासना का मुख्यत: वर्णन मंत्र और ब्राह्मणों में है, ज्ञान का विवेचन उपनिषदों में। 'वेदान्त' का शाब्दिक अर्थ है - 'वेदों का अंत' (अथवा सार)। वेदान्त की तीन शाखाएँ जो सबसे ज्यादा जानी जाती हैं वे हैं: अद्वैत वेदान्त, विशिष्ट अद्वैत और द्वैत। आदि शंकराचार्य, रामानुज और श्री मध्वाचार्य जिनको क्रमश: इन तीनो शाखाओं का प्रवर्तक माना जाता है, इनके अलावा भी ज्ञानयोग की अन्य शाखाएँ हैं। ये शाखाएँ अपने प्रवर्तकों के नाम से जानी जाती हैं जिनमें भास्कर, वल्लभ, चैतन्य, निम्बारक, वाचस्पति मिश्र, सुरेश्वर और विज्ञान भिक्षु। आधुनिक काल में जो प्रमुख वेदान्ती हुये हैं उनमें रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, अरविंद घोष, स्वामी शिवानंद राजा राममोहन रॉय और रमण महर्षि उल्लेखनीय हैं। ये आधुनिक विचारक अद्वैत वेदान्त शाखा का प्रतिनिधित्व करते हैं। दूसरे वेदान्तो के प्रवर्तकों ने भी अपने विचारों को भारत में भलिभाँति प्रचारित किया है परन्तु भारत के बाहर उन्हें बहुत कम जाना जाता है। .

देखें राजकोष और वेदान्त दर्शन

कोष

कोष, वेदान्त का एक पारिभाषिक शब्द जिसका तात्पर्य है - 'आच्छादन'। वेदांत में पाँच प्रकार के कोष कहे गए हैं- ये कोष आत्मा का आच्छादन करनेवाले हैं। आत्मा इनसे भिन्न है। अन्न से उत्पन्न और अन्न के आधार पर रहने के कारण शरीर को अन्नमय कोष कहा गया है। पंच कर्मेंद्रियों सहित प्राण, अपान आदि पंचप्राणों को, जिनके साथ मिलकर शरीर सारी क्रियाएँ करता हैं, प्राणमय कोष कहते हैं। श्रोत्र, चक्षु आदि पाँच ज्ञानेंद्रियों सहित मन को मनोमय कोष कहते हैं। यह मनोमय कोष अविद्या का रूप है। इसी से सांसारिक विषयों की प्रतीति होती हैं। पंच कर्मेंद्रियों सहित बुद्धि को विज्ञानमय कोष कहते हैं। यह विज्ञानकोष कतृव्य भोतृत्व, सुखदुःख आदि अंहकार विशिष्ट पुरुष के संसार को कारण है। सत्वगुण विशिष्ट परमात्मा के आवरक का नाम आनंदमय कोष है। ज्ञान की सुषुप्ति अवस्था को भी आनंदमय कोष कहा गया है। सुषुप्ति अवस्था में मनुष्य में निद्रासुख के अतिरिक्त अन्य पदार्थों का कोई अस्तित्व नहीं रहता। कहते सुना जाता है-मैं तो सुख से सोया मुझे कुछ ज्ञान नहीं रहा। जिस प्रकार निद्रा के कारण ज्ञान का लोप होता है उसी प्रकार जिन कारणों से शरीर में अविद्या निवास करे, (जो गुप्त और तमोगुण के संयोग से मलिन हो तथा इष्ट वस्तुओं का लाभ और प्रिय वस्तुओं की प्राप्ति हो) और सुख की अनुभूति हो, उसे आनंदमय कोष कहते हैं। .

देखें राजकोष और कोष

यह भी देखें

सरकारी संस्थाएँ