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कोष

सूची कोष

कोष, वेदान्त का एक पारिभाषिक शब्द जिसका तात्पर्य है - 'आच्छादन'। वेदांत में पाँच प्रकार के कोष कहे गए हैं- ये कोष आत्मा का आच्छादन करनेवाले हैं। आत्मा इनसे भिन्न है। अन्न से उत्पन्न और अन्न के आधार पर रहने के कारण शरीर को अन्नमय कोष कहा गया है। पंच कर्मेंद्रियों सहित प्राण, अपान आदि पंचप्राणों को, जिनके साथ मिलकर शरीर सारी क्रियाएँ करता हैं, प्राणमय कोष कहते हैं। श्रोत्र, चक्षु आदि पाँच ज्ञानेंद्रियों सहित मन को मनोमय कोष कहते हैं। यह मनोमय कोष अविद्या का रूप है। इसी से सांसारिक विषयों की प्रतीति होती हैं। पंच कर्मेंद्रियों सहित बुद्धि को विज्ञानमय कोष कहते हैं। यह विज्ञानकोष कतृव्य भोतृत्व, सुखदुःख आदि अंहकार विशिष्ट पुरुष के संसार को कारण है। सत्वगुण विशिष्ट परमात्मा के आवरक का नाम आनंदमय कोष है। ज्ञान की सुषुप्ति अवस्था को भी आनंदमय कोष कहा गया है। सुषुप्ति अवस्था में मनुष्य में निद्रासुख के अतिरिक्त अन्य पदार्थों का कोई अस्तित्व नहीं रहता। कहते सुना जाता है-मैं तो सुख से सोया मुझे कुछ ज्ञान नहीं रहा। जिस प्रकार निद्रा के कारण ज्ञान का लोप होता है उसी प्रकार जिन कारणों से शरीर में अविद्या निवास करे, (जो गुप्त और तमोगुण के संयोग से मलिन हो तथा इष्ट वस्तुओं का लाभ और प्रिय वस्तुओं की प्राप्ति हो) और सुख की अनुभूति हो, उसे आनंदमय कोष कहते हैं। .

4 संबंधों: पंचकोश, राजकोष, वेदान्त दर्शन, कोश

पंचकोश

योग की धारणा के अनुसार मानव का अस्तित्व पाँच भागों में बंटा है जिन्हें पंचकोश कहते हैं। ये कोश एक साथ विद्यमान अस्तित्व के विभिन्न तल समान होते हैं। विभिन्न कोशों में चेतन, अवचेतन तथा अचेतन मन की अनुभूति होती है। प्रत्येक कोश का एक दूसरे से घनिष्ठ संबंध होता है। वे एक दूसरे को प्रभावित करती और होती हैं। ये पाँच कोश हैं -.

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राजकोष

किसी राज्य के पास मौजूद सम्पूर्ण आर्थिक संसाधन ही राजकोश (Treasury / ट्रेजरी) कहलाता है। अधिकांश देशों में जो विभाग इन संसाधनों का प्रबन्धन करता है, उसे भी ट्र्जरी कहा जाता है। यह प्रायः वित्त मंत्रालय से जुड़ा होता है। .

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वेदान्त दर्शन

वेदान्त ज्ञानयोग की एक शाखा है जो व्यक्ति को ज्ञान प्राप्ति की दिशा में उत्प्रेरित करता है। इसका मुख्य स्रोत उपनिषद है जो वेद ग्रंथो और अरण्यक ग्रंथों का सार समझे जाते हैं। उपनिषद् वैदिक साहित्य का अंतिम भाग है, इसीलिए इसको वेदान्त कहते हैं। कर्मकांड और उपासना का मुख्यत: वर्णन मंत्र और ब्राह्मणों में है, ज्ञान का विवेचन उपनिषदों में। 'वेदान्त' का शाब्दिक अर्थ है - 'वेदों का अंत' (अथवा सार)। वेदान्त की तीन शाखाएँ जो सबसे ज्यादा जानी जाती हैं वे हैं: अद्वैत वेदान्त, विशिष्ट अद्वैत और द्वैत। आदि शंकराचार्य, रामानुज और श्री मध्वाचार्य जिनको क्रमश: इन तीनो शाखाओं का प्रवर्तक माना जाता है, इनके अलावा भी ज्ञानयोग की अन्य शाखाएँ हैं। ये शाखाएँ अपने प्रवर्तकों के नाम से जानी जाती हैं जिनमें भास्कर, वल्लभ, चैतन्य, निम्बारक, वाचस्पति मिश्र, सुरेश्वर और विज्ञान भिक्षु। आधुनिक काल में जो प्रमुख वेदान्ती हुये हैं उनमें रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, अरविंद घोष, स्वामी शिवानंद राजा राममोहन रॉय और रमण महर्षि उल्लेखनीय हैं। ये आधुनिक विचारक अद्वैत वेदान्त शाखा का प्रतिनिधित्व करते हैं। दूसरे वेदान्तो के प्रवर्तकों ने भी अपने विचारों को भारत में भलिभाँति प्रचारित किया है परन्तु भारत के बाहर उन्हें बहुत कम जाना जाता है। .

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कोश

कोश एक ऐसा शब्द है जिसका व्यवहार अनेक क्षेत्रों में होता है और प्रत्येक क्षेत्र में उसका अपना अर्थ और भाव है। यों इस शब्द का व्यापक प्रचार वाङ्मय के क्षेत्र में ही विशेष है और वहाँ इसका मूल अर्थ 'शब्दसंग्रह' (lexicon) है। किंतु वस्तुत: इसका प्रयोग प्रत्येक भाषा में अक्षरानुक्रम अथवा किसी अन्य क्रम से उस भाषा अथवा किसी अन्य भाषा में शब्दों की व्याख्या उपस्थित करनेवाले ग्रंथ के अर्थ में होता है। .

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