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रक्षाबन्धन

सूची रक्षाबन्धन

रक्षाबन्धन एक हिन्दू व जैन त्योहार है जो प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। श्रावण (सावन) में मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी (सावनी) या सलूनो भी कहते हैं। रक्षाबन्धन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्त्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चाँदी जैसी मँहगी वस्तु तक की हो सकती है। राखी सामान्यतः बहनें भाई को ही बाँधती हैं परन्तु ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित सम्बंधियों (जैसे पुत्री द्वारा पिता को) भी बाँधी जाती है। कभी-कभी सार्वजनिक रूप से किसी नेता या प्रतिष्ठित व्यक्ति को भी राखी बाँधी जाती है। अब तो प्रकृति संरक्षण हेतु वृक्षों को राखी बाँधने की परम्परा भी प्रारम्भ हो गयी है। हिन्दुस्तान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुरुष सदस्य परस्पर भाईचारे के लिये एक दूसरे को भगवा रंग की राखी बाँधते हैं। हिन्दू धर्म के सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षासूत्र बाँधते समय कर्मकाण्डी पण्डित या आचार्य संस्कृत में एक श्लोक का उच्चारण करते हैं, जिसमें रक्षाबन्धन का सम्बन्ध राजा बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। भविष्यपुराण के अनुसार इन्द्राणी द्वारा निर्मित रक्षासूत्र को देवगुरु बृहस्पति ने इन्द्र के हाथों बांधते हुए निम्नलिखित स्वस्तिवाचन किया (यह श्लोक रक्षाबन्धन का अभीष्ट मन्त्र है)- इस श्लोक का हिन्दी भावार्थ है- "जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे (राखी)! तुम अडिग रहना (तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।)" .

118 संबंधों: चावल, टीका, तमिल नाडु, तर्पण, दारा सिंह, दाहिना, दक्षिण, दक्षिणा, दुर्गा, द्रौपदी, देवता, दोपहर, दीपक, धन, धर्म, नदी, नारियल, नेपाल, पाण्डव, पितृॠण, पुराण, पुरूवास, प्रसाद, पैसा, पूर्णिमा, पूजा, पूजा की थाली, फ़िल्म, बलि, बहादुरशाह, बाङ्ला भाषा, बंग-भंग, बंगाल, ब्राह्मण, बृहस्पति, भस्मी, भारत, भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन, भविष्य पुराण, भोजली देवी, महाभारत, महाराष्ट्र, मिठाई, मुम्बई, मुसलमान, मृदा, मेवाड़, यम द्वितीया, यजुर्वेद, यज्ञोपवीत, ..., यज्ञोपवीतधारी, युधिष्ठिर, रबीन्द्रनाथ ठाकुर, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, राजपूत, राजस्थान, राखी, रक्षाबन्धन, रक्षासूत्र, रेशम, रोली, शची, शिशुपाल, श्रावण, श्लोक, सप्तर्षि, समाज, साहित्य, सागर, सिकंदर, सुदर्शन चक्र, स्नातक, स्वस्तिक मन्त्र, हयग्रीव, हरिकृष्ण प्रेमी, हल्दी, हिन्दू, हिन्दू धर्म, हिमानी शिवलिंग, हवन, हुमायूँ, जैन त्योहार, जोधपुर जिला, घेवर, वन्दे मातरम्, वरुण (देव), व्रत और उपवास, गणेश, गुरुकुल, गुरू-पूर्णिमा, गोभिला, ओडिशा, आचार्य, आरती, आशीर्वाद, इतिहास, इन्द्र, इंद्राणी, कलाई, कुन्ती, कृष्ण, केरल, अभिमन्यु, अमरनाथ, अरुंधती, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, उपहार, १३ अगस्त, १६ अगस्त, १७ अगस्त, १९०५, २ अगस्त, २००७, २३ अगस्त, २४ जुलाई, २४ अगस्त, २५ जुलाई सूचकांक विस्तार (68 अधिक) »

चावल

मिश्रित चावल: सफेद चावल, भूरा चावल, लाल चावल और जंगली चावल चावल विभिन्न आकार, रंग, रूप में आते हैं। धान से लेकर सफेद चावल बनाने की प्रक्रिया धान के बीज को चावल कहते हैं। यह धान से ऊपर का छिलका हटाने से प्राप्त होता है। चावल सम्पूर्ण पूर्वी जगत में प्रमुख रूप से खाए जाने वाला अनाज है। भारत में भात, खिचड़ी सहित काफी सारे पक्वान्न बनते हैं। चावल का चलन दक्षिण भारत और पूर्वी-दक्षिणी भारत में उत्तर भारत से अधिक है। इसे संस्कृत में 'तण्डुल' कहा जाता है और तमिल में 'अरिसि' कहा जाता है। इसे कभी-कभार 'षड्रस' भी कहा जाता है, क्योंकि में स्वाद के छहों प्रमुख रस मौजूद हैं। सांस्कृतिक हिंदी में पके हुए चावल को भात कहा जाता है, किन्तु अधिकतर हिन्दी भाषी 'भात' शब्द का प्रयोग कम ही करते हैं। चावल की फ़सल को धान कहते हैं। बासमती चावल भारत का प्रसिद्ध चावल जो विदेशों को निर्यात भी किया जाता है। .

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टीका

टीका का हिन्दी में दो अर्थों में प्रयोग किया जाता है- १) भाष्य (commentary) २) टीकाकरण (vaccination) श्रेणी:बहुविकल्पी शब्द.

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तमिल नाडु

तमिल नाडु (तमिल:, तमिऴ् नाडु) भारत का एक दक्षिणी राज्य है। तमिल नाडु की राजधानी चेन्नई (चेऩ्ऩै) है। तमिल नाडु के अन्य महत्त्वपूर्ण नगर मदुरै, त्रिचि (तिरुच्चि), कोयम्बतूर (कोऽयम्बुत्तूर), सेलम (सेऽलम), तिरूनेलवेली (तिरुनेल्वेऽली) हैं। इसके पड़ोसी राज्य आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल हैं। तमिल नाडु में बोली जाने वाली प्रमुख भाषा तमिल है। तमिल नाडु के वर्तमान मुख्यमन्त्री एडाप्पडी  पलानिस्वामी  और राज्यपाल विद्यासागर राव हैं। .

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तर्पण

यह एक अनेकार्थक शब्द है-.

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दारा सिंह

दारा सिंह (पूरा नाम: दारा सिंह रन्धावा, अंग्रेजी: Dara Singh, जन्म: 19 नवम्बर, 1928 पंजाब, मृत्यु: 12 जुलाई 2012 मुम्बई) अपने जमाने के विश्व प्रसिद्ध फ्रीस्टाइल पहलवान रहे हैं। उन्होंने 1959 में पूर्व विश्व चैम्पियन जार्ज गारडियान्का को पराजित करके कामनवेल्थ की विश्व चैम्पियनशिप जीती थी। 1968 में वे अमरीका के विश्व चैम्पियन लाऊ थेज को पराजित कर फ्रीस्टाइल कुश्ती के विश्व चैम्पियन बन गये। उन्होंने पचपन वर्ष की आयु तक पहलवानी की और पाँच सौ मुकाबलों में किसी एक में भी पराजय का मुँह नहीं देखा। 1983 में उन्होंने अपने जीवन का अन्तिम मुकाबला जीतने के पश्चात कुश्ती से सम्मानपूर्वक संन्यास ले लिया। उन्नीस सौ साठ के दशक में पूरे भारत में उनकी फ्री स्टाइल कुश्तियों का बोलबाला रहा। बाद में उन्होंने अपने समय की मशहूर अदाकारा मुमताज के साथ हिन्दी की स्टंट फ़िल्मों में प्रवेश किया। दारा सिंह ने कई फ़िल्मों में अभिनय के अतिरिक्त निर्देशन व लेखन भी किया। उन्हें टी० वी० धारावाहिक रामायण में हनुमान के अभिनय से अपार लोकप्रियता मिली। उन्होंने अपनी आत्मकथा मूलत: पंजाबी में लिखी थी जो 1993 में हिन्दी में भी प्रकाशित हुई। उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने राज्य सभा का सदस्य मनोनीत किया। वे अगस्त 2003 से अगस्त 2009 तक पूरे छ: वर्ष राज्य सभा के सांसद रहे। 7 जुलाई 2012 को दिल का दौरा पड़ने के बाद उन्हें कोकिलाबेन धीरूभाई अम्बानी अस्पताल मुम्बई में भर्ती कराया गया किन्तु पाँच दिनों तक कोई लाभ न होता देख उन्हें उनके मुम्बई स्थित निवास पर वापस ले आया गया जहाँ उन्होंने 12 जुलाई 2012 को सुबह साढ़े सात बजे दम तोड़ दिया। .

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दाहिना

4 प्रमुख दिशाएँ होती हैं पूरब, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण। अगर हम पूरब की ओर मुँह कर का खड़े हों तो पीठ की ओर पीछे पश्चिम दाहिने हाथ की ओर दक्षिण और बाएँ हाथ की ओर उत्तर दिशा होती है। ये भौगोलिक दिशाएँ हैं। सामान्य रूप से दैनिक जीवन में हम 6 दिशाओं का प्रयोग करते हैं। ये दिशाएँ हैं आगे, पीछे, ऊपर, नीचे, दाएँ और बाएँ। हमारे मुंह की ओर सामने, पीठ की ओर पीछे, सिर की ओर ऊपर पैर की ओर नीचे उत्तर की ओर बाईँ और दक्षिण की ओर दाहिनी दिशा होती है। दाहिना शब्द की उत्पत्ति भी दक्षिण से ही हुई है। श्रेणी:दिशाएँ.

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दक्षिण

कुतुबनुमा-दक्षिण को इंगित करता दिशाकमल दक्षिण कुतुबनुमा द्वारा दिखायी जाने वाली चार दिशाओं में से एक दिशा है। दक्षिण दिशा उत्तर दिशा के विपरीत (दूसरी तरफ) होती है और पूर्व एवं पश्चिम दिशाओं से ९० डिग्री (अंश) पर होती है। (उत्तर दक्षिण एक दूसरे के आमने सामने हैं और पूर्व पश्चिम भी एक दुसरे के आमने सामने हैं।) यदि आप सूर्य की तरफ मुख कर के खड़े होंगे तो आपका मुख पूर्व की ओर होगा, दक्षिण दिशा आपके दाएँ हाथ की तरफ होगी, बाएँ हाथ की तरफ उत्तर होगा और पश्चिम आपकी पीठ की ओर होगी। नक्शों में दक्षिण दिशा अधिकतर पन्ने के नीचे की तरफ दिखायी जाती है और उत्तर दिशा पन्ने के ऊपर की ओर। श्रेणी:दिशाएँ भारत उपमहाद्वीप के दक्षिण में समुद्र है.

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दक्षिणा

दक्षिणा, गुरु को सम्मानस्वरूप दी जानेवाली भेंट अथवा यज्ञ, श्राद्ध और धार्मिक कृत्यों के संबंध में दिए जानेवाले धन का बोधक है। .

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दुर्गा

दुर्गा हिन्दुओं की प्रमुख देवी हैं जिन्हें केवल देवी और शक्ति भी कहते हैं। शाक्त सम्प्रदाय की वह मुख्य देवी हैं जिनकी तुलना परम ब्रह्म से की जाती है। दुर्गा को आदि शक्ति, प्रधान प्रकृति, गुणवती माया, बुद्धितत्व की जननी तथा विकार रहित बताया गया है। वह अंधकार व अज्ञानता रुपी राक्षसों से रक्षा करने वाली तथा कल्याणकारी हैं। उनके बारे में मान्यता है कि वे शान्ति, समृद्धि तथा धर्म पर आघात करने वाली राक्षसी शक्तियों का विनाश करतीं हैं। देवी दुर्गा का निरूपण सिंह पर सवार एक निर्भय स्त्री के रूप में की जाती है। दुर्गा देवी आठ भुजाओं से युक्त हैं जिन सभी में कोई न कोई शस्त्रास्त्र होते है। उन्होने महिषासुर नामक असुर का वध किया। महिषासुर (.

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द्रौपदी

द्रौपदी महाभारत के सबसे प्रसिद्ध पात्रों में से एक है। इस महाकाव्य के अनुसार द्रौपदी पांचाल देश के राजा द्रुपद की पुत्री है जो बाद में पांचों पाण्डवों की पत्नी बनी। द्रौपदी पंच-कन्याओं में से एक हैं जिन्हें चिर-कुमारी कहा जाता है। ये कृष्णा, यज्ञसेनी, महाभारती, सैरंध्री आदि अन्य नामो से भी विख्यात है। द्रौपदी का विवाह पाँचों पाण्डव भाईयों से हुआ था। पांडवों द्वारा इनसे जन्मे पांच पुत्र (क्रमशः प्रतिविंध्य, सुतसोम, श्रुतकीर्ती, शतानीक व श्रुतकर्मा) उप-पांडव नाम से विख्यात थे। .

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देवता

अंकोरवाट के मन्दिर में चित्रित समुद्र मन्थन का दृश्य, जिसमें देवता और दैत्य बासुकी नाग को रस्सी बनाकर मन्दराचल की मथनी से समुद्र मथ रहे हैं। देवता, दिव् धातु, जिसका अर्थ प्रकाशमान होना है, से निकलता है। अर्थ है कोई भी परालौकिक शक्ति का पात्र, जो अमर और पराप्राकृतिक है और इसलिये पूजनीय है। देवता अथवा देव इस तरह के पुरुषों के लिये प्रयुक्त होता है और देवी इस तरह की स्त्रियों के लिये। हिन्दू धर्म में देवताओं को या तो परमेश्वर (ब्रह्म) का लौकिक रूप माना जाता है, या तो उन्हें ईश्वर का सगुण रूप माना जाता है। बृहदारण्य उपनिषद में एक बहुत सुन्दर संवाद है जिसमें यह प्रश्न है कि कितने देव हैं। उत्तर यह है कि वास्तव में केवल एक है जिसके कई रूप हैं। पहला उत्तर है ३३ करोड़; और पूछने पर ३३३९; और पूछने पर ३३; और पूछने पर ३ और अन्त में डेढ और फिर केवल एक। वेद मन्त्रों के विभिन्न देवता है। प्रत्येक मन्त्र का ऋषि, कीलक और देवता होता है। .

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दोपहर

दिन का दूसरा प्रहर या मध्याह्न, जब सूरज सिर पर आ जाता है। एक दिन में आठ प्रहर या पहर होते हैं यानी एक पहर तीन घंटे का होता है। सूर्योदय के समय दिन का पहला प्रहर प्रारंभ होता है। जब दूसरा पहर का समाप्त और तीसरे पहर का प्रारंभ दोपहर होता है। यह समय लगभग दिन के बीच लगभग 12 बजे का होता है। .

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दीपक

मिट्टी का पारंपरिक दीयादीप, दीपक, दीवा या दीया वह पात्र है जिसमें सूत की बाती और तेल या घी रख कर ज्योति प्रज्वलित की जाती है। पारंपरिक दीया मिट्टी का होता है लेकिन धातु के दीये भी प्रचलन में हैं। प्राचीनकाल में इसका प्रयोग प्रकाश के लिए किया जाता था पर बिजली के आविष्कार के बाद अब यह सजावट की वस्तु के रूप में अधिक प्रयोग होता है। हाँ धार्मिक व सामाजिक अनुष्ठानों में इसका महत्व अभी भी बना हुआ है। यह पंचतत्वों में से एक अग्नि का प्रतीक माना जाता है। दीपक जलाने का एक मंत्र भी है जिसका उच्चारण सभी शुभ अवसरों पर किया जाता है। इसमें कहा गया है कि सुन्दर और कल्याणकारी, आरोग्य और संपदा को देने वाले हे दीप, शत्रु की बुद्धि के विनाश के लिए हम तुम्हें नमस्कार करते हैं। विशिष्ट अवसरों पर जब दीपों को पंक्ति में रख कर जलाया जाता है तब इसे दीपमाला कहते हैं। ऐसा विशेष रूप से दीपावली के दिन किया जाता हैं। अन्य खुशी के अवसरों जैसे विवाह आदि पर भी दीपमाला की जाती है। .

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धन

धन कोई भी वस्तु या सत्यापन का रिकॉर्ड है जिसे सामान्यतः माल और सेवाओं के भुगतान के रूप में स्वीकार किया जाता है। साथ ही उससे किसी विशेष देश या सामाजिक-आर्थिक संदर्भ में ऋण का पुनर्भुगतान किया जा सकता है। धन का मुख्य कार्य है: विनिमय माध्यम, लेखा इकाई और मूल्य का संचय। इन कार्यों को पूरा करने वाली किसी भी वस्तु या प्रमाणित रिकॉर्ड को धन के रूप में माना जा सकता है। लगभग सभी समकालीन मुद्रा प्रणालियां अधिदिष्‍ट मुद्रा पर आधारित हैं। श्रेणी:मौद्रिक अर्थशास्त्र श्रेणी:आर्थिक मानवशास्त्र श्रेणी:धन.

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धर्म

धर्मचक्र (गुमेत संग्रहालय, पेरिस) धर्म का अर्थ होता है, धारण, अर्थात जिसे धारण किया जा सके, धर्म,कर्म प्रधान है। गुणों को जो प्रदर्शित करे वह धर्म है। धर्म को गुण भी कह सकते हैं। यहाँ उल्लेखनीय है कि धर्म शब्द में गुण अर्थ केवल मानव से संबंधित नहीं। पदार्थ के लिए भी धर्म शब्द प्रयुक्त होता है यथा पानी का धर्म है बहना, अग्नि का धर्म है प्रकाश, उष्मा देना और संपर्क में आने वाली वस्तु को जलाना। व्यापकता के दृष्टिकोण से धर्म को गुण कहना सजीव, निर्जीव दोनों के अर्थ में नितांत ही उपयुक्त है। धर्म सार्वभौमिक होता है। पदार्थ हो या मानव पूरी पृथ्वी के किसी भी कोने में बैठे मानव या पदार्थ का धर्म एक ही होता है। उसके देश, रंग रूप की कोई बाधा नहीं है। धर्म सार्वकालिक होता है यानी कि प्रत्येक काल में युग में धर्म का स्वरूप वही रहता है। धर्म कभी बदलता नहीं है। उदाहरण के लिए पानी, अग्नि आदि पदार्थ का धर्म सृष्टि निर्माण से आज पर्यन्त समान है। धर्म और सम्प्रदाय में मूलभूत अंतर है। धर्म का अर्थ जब गुण और जीवन में धारण करने योग्य होता है तो वह प्रत्येक मानव के लिए समान होना चाहिए। जब पदार्थ का धर्म सार्वभौमिक है तो मानव जाति के लिए भी तो इसकी सार्वभौमिकता होनी चाहिए। अतः मानव के सन्दर्भ में धर्म की बात करें तो वह केवल मानव धर्म है। हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, जैन या बौद्ध आदि धर्म न होकर सम्प्रदाय या समुदाय मात्र हैं। “सम्प्रदाय” एक परम्परा के मानने वालों का समूह है। (पालि: धम्म) भारतीय संस्कृति और दर्शन की प्रमुख संकल्पना है। 'धर्म' शब्द का पश्चिमी भाषाओं में कोई तुल्य शब्द पाना बहुत कठिन है। साधारण शब्दों में धर्म के बहुत से अर्थ हैं जिनमें से कुछ ये हैं- कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण, सद्-गुण आदि। .

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नदी

भागीरथी नदी, गंगोत्री में नदी भूतल पर प्रवाहित एक जलधारा है जिसका स्रोत प्रायः कोई झील, हिमनद, झरना या बारिश का पानी होता है तथा किसी सागर अथवा झील में गिरती है। नदी शब्द संस्कृत के नद्यः से आया है। संस्कृत में ही इसे सरिता भी कहते हैं। नदी दो प्रकार की होती है- सदानीरा या बरसाती। सदानीरा नदियों का स्रोत झील, झरना अथवा हिमनद होता है और वर्ष भर जलपूर्ण रहती हैं, जबकि बरसाती नदियाँ बरसात के पानी पर निर्भर करती हैं। गंगा, यमुना, कावेरी, ब्रह्मपुत्र, अमेज़न, नील आदि सदानीरा नदियाँ हैं। नदी के साथ मनुष्य का गहरा सम्बंध है। नदियों से केवल फसल ही नहीं उपजाई जाती है बल्कि वे सभ्यता को जन्म देती हैं अपितु उसका लालन-पालन भी करती हैं। इसलिए मनुष्य हमेशा नदी को देवी के रूप में देखता आया है। .

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नारियल

नारियल के पेड़ नारियल (Cocos nucifera, कोकोस् नूकीफ़ेरा) एक बहुवर्षी एवं एकबीजपत्री पौधा है। इसका तना लम्बा तथा शाखा रहित होता है। मुख्य तने के ऊपरी सिरे पर लम्बी पत्तियों का मुकुट होता है। ये वृक्ष समुद्र के किनारे या नमकीन जगह पर पाये जाते हैं। इसके फल हिन्दुओं के धार्मिक अनुष्ठानों में प्रयुक्त होता है। बांग्ला में इसे नारिकेल कहते हैं। नारियल के वृक्ष भारत में प्रमुख रूप से केरल, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में खूब उगते हैं। महाराष्ट्र में मुंबई तथा तटीय क्षेत्रों व गोआ में भी इसकी उपज होती है। नारियल एक बेहद उपयोगी फल है। नारियल देर से पचने वाला, मूत्राशय शोधक, ग्राही, पुष्टिकारक, बलवर्धक, रक्तविकार नाशक, दाहशामक तथा वात-पित्त नाशक है। .

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नेपाल

नेपाल, (आधिकारिक रूप में, संघीय लोकतान्त्रिक गणराज्य नेपाल) भारतीय उपमहाद्वीप में स्थित एक दक्षिण एशियाई स्थलरुद्ध हिमालयी राष्ट्र है। नेपाल के उत्तर मे चीन का स्वायत्तशासी प्रदेश तिब्बत है और दक्षिण, पूर्व व पश्चिम में भारत अवस्थित है। नेपाल के ८१ प्रतिशत नागरिक हिन्दू धर्मावलम्बी हैं। नेपाल विश्व का प्रतिशत आधार पर सबसे बड़ा हिन्दू धर्मावलम्बी राष्ट्र है। नेपाल की राजभाषा नेपाली है और नेपाल के लोगों को भी नेपाली कहा जाता है। एक छोटे से क्षेत्र के लिए नेपाल की भौगोलिक विविधता बहुत उल्लेखनीय है। यहाँ तराई के उष्ण फाँट से लेकर ठण्डे हिमालय की श्रृंखलाएं अवस्थित हैं। संसार का सबसे ऊँची १४ हिम श्रृंखलाओं में से आठ नेपाल में हैं जिसमें संसार का सर्वोच्च शिखर सागरमाथा एवरेस्ट (नेपाल और चीन की सीमा पर) भी एक है। नेपाल की राजधानी और सबसे बड़ा नगर काठमांडू है। काठमांडू उपत्यका के अन्दर ललीतपुर (पाटन), भक्तपुर, मध्यपुर और किर्तीपुर नाम के नगर भी हैं अन्य प्रमुख नगरों में पोखरा, विराटनगर, धरान, भरतपुर, वीरगंज, महेन्द्रनगर, बुटवल, हेटौडा, भैरहवा, जनकपुर, नेपालगंज, वीरेन्द्रनगर, त्रिभुवननगर आदि है। वर्तमान नेपाली भूभाग अठारहवीं सदी में गोरखा के शाह वंशीय राजा पृथ्वी नारायण शाह द्वारा संगठित नेपाल राज्य का एक अंश है। अंग्रेज़ों के साथ हुई संधियों में नेपाल को उस समय (१८१४ में) एक तिहाई नेपाली क्षेत्र ब्रिटिश इंडिया को देने पड़े, जो आज भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड तथा पश्चिम बंगाल में विलय हो गये हैं। बींसवीं सदी में प्रारंभ हुए जनतांत्रिक आन्दोलनों में कई बार विराम आया जब राजशाही ने जनता और उनके प्रतिनिधियों को अधिकाधिक अधिकार दिए। अंततः २००८ में जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि माओवादी नेता प्रचण्ड के प्रधानमंत्री बनने से यह आन्दोलन समाप्त हुआ। लेकिन सेना अध्यक्ष के निष्कासन को लेकर राष्ट्रपति से हुए मतभेद और टीवी पर सेना में माओवादियों की नियुक्ति को लेकर वीडियो फुटेज के प्रसारण के बाद सरकार से सहयोगी दलों द्वारा समर्थन वापस लेने के बाद प्रचण्ड को इस्तीफा देना पड़ा। गौरतलब है कि माओवादियों के सत्ता में आने से पहले सन् २००६ में राजा के अधिकारों को अत्यंत सीमित कर दिया गया था। दक्षिण एशिया में नेपाल की सेना पांचवीं सबसे बड़ी सेना है और विशेषकर विश्व युद्धों के दौरान, अपने गोरखा इतिहास के लिए उल्लेखनीय रहे हैं और संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों के लिए महत्वपूर्ण योगदानकर्ता रही है। .

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पाण्डव

पाण्डव महाभारत के मुख्य पात्र हैं। पाण्डव पाँच भाई थे - युधिष्ठिर, भीमसेन, अर्जुन, नकुल तथा सहदेव। .

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पितृॠण

एक प्रकार का शास्त्रोक्त ऋण जिससे मनुष्य पुत्र उत्पन्न करने पर मुक्त होता है। श्रेणी:संस्कृति.

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पुराण

पुराण, हिंदुओं के धर्म संबंधी आख्यान ग्रंथ हैं। जिनमें सृष्टि, लय, प्राचीन ऋषियों, मुनियों और राजाओं के वृत्तात आदि हैं। ये वैदिक काल के बहुत्का बाद के ग्रन्थ हैं, जो स्मृति विभाग में आते हैं। भारतीय जीवन-धारा में जिन ग्रन्थों का महत्वपूर्ण स्थान है उनमें पुराण भक्ति-ग्रंथों के रूप में बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। अठारह पुराणों में अलग-अलग देवी-देवताओं को केन्द्र मानकर पाप और पुण्य, धर्म और अधर्म, कर्म और अकर्म की गाथाएँ कही गई हैं। कुछ पुराणों में सृष्टि के आरम्भ से अन्त तक का विवरण किया गया है। 'पुराण' का शाब्दिक अर्थ है, 'प्राचीन' या 'पुराना'।Merriam-Webster's Encyclopedia of Literature (1995 Edition), Article on Puranas,, page 915 पुराणों की रचना मुख्यतः संस्कृत में हुई है किन्तु कुछ पुराण क्षेत्रीय भाषाओं में भी रचे गए हैं।Gregory Bailey (2003), The Study of Hinduism (Editor: Arvind Sharma), The University of South Carolina Press,, page 139 हिन्दू और जैन दोनों ही धर्मों के वाङ्मय में पुराण मिलते हैं। John Cort (1993), Purana Perennis: Reciprocity and Transformation in Hindu and Jaina Texts (Editor: Wendy Doniger), State University of New York Press,, pages 185-204 पुराणों में वर्णित विषयों की कोई सीमा नहीं है। इसमें ब्रह्माण्डविद्या, देवी-देवताओं, राजाओं, नायकों, ऋषि-मुनियों की वंशावली, लोककथाएं, तीर्थयात्रा, मन्दिर, चिकित्सा, खगोल शास्त्र, व्याकरण, खनिज विज्ञान, हास्य, प्रेमकथाओं के साथ-साथ धर्मशास्त्र और दर्शन का भी वर्णन है। विभिन्न पुराणों की विषय-वस्तु में बहुत अधिक असमानता है। इतना ही नहीं, एक ही पुराण के कई-कई पाण्डुलिपियाँ प्राप्त हुई हैं जो परस्पर भिन्न-भिन्न हैं। हिन्दू पुराणों के रचनाकार अज्ञात हैं और ऐसा लगता है कि कई रचनाकारों ने कई शताब्दियों में इनकी रचना की है। इसके विपरीत जैन पुराण जैन पुराणों का रचनाकाल और रचनाकारों के नाम बताए जा सकते हैं। कर्मकांड (वेद) से ज्ञान (उपनिषद्) की ओर आते हुए भारतीय मानस में पुराणों के माध्यम से भक्ति की अविरल धारा प्रवाहित हुई है। विकास की इसी प्रक्रिया में बहुदेववाद और निर्गुण ब्रह्म की स्वरूपात्मक व्याख्या से धीरे-धीरे मानस अवतारवाद या सगुण भक्ति की ओर प्रेरित हुआ। पुराणों में वैदिक काल से चले आते हुए सृष्टि आदि संबंधी विचारों, प्राचीन राजाओं और ऋषियों के परंपरागत वृत्तांतों तथा कहानियों आदि के संग्रह के साथ साथ कल्पित कथाओं की विचित्रता और रोचक वर्णनों द्वारा सांप्रदायिक या साधारण उपदेश भी मिलते हैं। पुराण उस प्रकार प्रमाण ग्रंथ नहीं हैं जिस प्रकार श्रुति, स्मृति आदि हैं। पुराणों में विष्णु, वायु, मत्स्य और भागवत में ऐतिहासिक वृत्त— राजाओं की वंशावली आदि के रूप में बहुत कुछ मिलते हैं। ये वंशावलियाँ यद्यपि बहुत संक्षिप्त हैं और इनमें परस्पर कहीं कहीं विरोध भी हैं पर हैं बडे़ काम की। पुराणों की ओर ऐतिहासिकों ने इधर विशेष रूप से ध्यान दिया है और वे इन वंशावलियों की छानबीन में लगे हैं। .

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पुरूवास

राजा पुरुवास या राजा पोरस का राज्य पंजाब में झेलम से लेकर चेनाब नदी तक फैला हुआ था। वर्तमान लाहौर के आस-पास इसकी राजधानी थी। राजा पोरस (राजा पुरू भी) पोरवा राजवंश के वशंज थे, जिनका साम्राज्य पंजाब में झेलम और चिनाब नदियों तक (ग्रीक में ह्यिदस्प्स और असिस्नस) और उपनिवेश ह्यीपसिस तक फैला हुआ था। पोरस राजा बमनी और रानी अनुसूईया का बेटा था। लाची पोरस की पत्नी थी। मालायकेतु पोरस का बड़ा बेटा था। सिधारत पोरस का छोटा बेटा था। राजा अरुनायक पोरस का ससुर और रानी महाननदनी पोरस की सास थी। सुमेरा लाची का बड़ा भाई था। तक्षशिला का राजा आमभिराज (आमभि) पोरस का मामा था। आमभि पोरस की माता अनुसूईया का बड़ा भाई था। रानी आलका पोरस की मामी थी। आमभिकुमार आमभि का बेटा था। बमनी की दूसरी पत्नी कदिका थी। कनिषक कदिका का बेटा था। कनिषक का वध पोरस ने किया था कयोकि कनिषक ने बमनी को मारना चाहा था। शिवदत बमनी का बड़ा भाई था जो हमेशा छल करता रहता था। अनुसूईया ने शिवदत का वध किया था कयोकि शिवदत ने कनिषक के साथ बमनी को मारने की कोशिश की थी .

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प्रसाद

केले के पत्तों पर प्रसाद प्रसाद, पूजा के बाद वितरित करने वाले पदार्थ को कहते हैं। सामान्यतः यह कोई खाद्य पदार्थ होता है किंतु कभी कभी कपड़े इत्यादि को भी प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। हिन्दुओं का ऐसा मानना है कि पूजा के समय जब कोई खाद्य सामग्री देवी-देवताओं के समक्ष प्रस्तुत की जाती है तो देवी-देवता उसे खाते हैं। अगर खाने की वस्तु नहीं है जैसे कपड़े इत्यादि तो वे उसे पहिनते हैं, इस्तेमाल करते हैं। अपने इष्टदेव के जूठन को खाना या इस्तेमाल करना हिन्दू अपना परम सौभाग्य समझते हैं, अतः भगवान, देवी-देवताओं के जूठन को प्रसाद कहा जाता है। श्रेणी:हिन्दू धर्म.

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पैसा

पैसा भारत की राष्ट्रीय मुद्रा रुपया का सौवा हिस्सा है। यह नाम बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल में भी है। यह बांग्लादेश के अलावा सभी देशों में रुपये के भाग होता है। जबकि यह बांग्लादेश में टका इसके भाग का होता है। .

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पूर्णिमा

पूर्णिमा पंचांग के अनुसार मास की 15वीं और शुक्लपक्ष की अंतिम तिथि है जिस दिन चंद्रमा आकाश में पूरा होता है। इस दिन का भारतीय जनजीवन में अत्यधिक महत्व हैं। हर माह की पूर्णिमा को कोई न कोई पर्व अथवा व्रत अवश्य मनाया जाता हैं। .

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पूजा

पूजा अथवा पूजन (Worshipping) किसी भगवान को प्रसन्न करने हेतु हमारे द्वारा उनका अभिवादन होता है। पूजा दैनिक जीवन का शांतिपूर्ण तथा महत्वपूर्ण कार्य है। यहाँ भगवान को पुष्प आदि समर्पित किये जाते हैं जिनके लिये कई पुराणों से छाँटे गए श्लोकों का उपयोग किया जाता है। वैदिक श्लोकों का उपयोग किसी बड़े कार्य जैसे यज्ञ आदि की पूजा में ब्राह्मण द्वारा होता है। सर्वप्रथम प्रथमपूज्यनीय गणेश की पूजा की जाती है। .

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पूजा की थाली

पूजा की थाली वह बड़ी तश्तरी या ट्रे होती है जिसमें पूजा की सामग्री रखी जाती है। भारतीय पर्वों, उत्सवों, परंपराओं और संस्कारों में पूजा की थाली का विशेष महत्व है। पूजा की थाली कोई सामान्य थाली भी हो सकती है, कोई कलात्मक थाली भी और कोई हीरे मोती की थाली भी। थाली कितनी सजी और कितनी मँहगी हो यह उत्सव के आयोजन की भव्यता और आयोजक की आर्थिक परिस्थिति पर निर्भर करता है लेकिन इसमें रखी गई वस्तुएँ जिन्हें पूजा सामग्री कहते हैं, लगभग एक सी होती हैं। .

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फ़िल्म

फ़िल्म, चलचित्र अथवा सिनेमा में चित्रों को इस तरह एक के बाद एक प्रदर्शित किया जाता है जिससे गति का आभास होता है। फ़िल्में अकसर विडियो कैमरे से रिकार्ड करके बनाई जाती हैं, या फ़िर एनिमेशन विधियों या स्पैशल इफैक्ट्स का प्रयोग करके। आज ये मनोरंजन का महत्त्वपूर्ण साधन हैं लेकिन इनका प्रयोग कला-अभिव्यक्ति और शिक्षा के लिए भी होता है। भारत विश्व में सबसे अधिक फ़िल्में बनाता है। फ़िल्म उद्योग का मुख्य केन्द्र मुंबई है, जिसे अमरीका के फ़िल्मोत्पादन केन्द्र हॉलीवुड के नाम पर बॉलीवुड कहा जाता है। भारतीय फिल्मे विदेशो में भी देखी जाती है .

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बलि

बलि (sacrifice) के दो रूप हैं। वैदिक पंचमहायज्ञ के अंतर्गत जो भूतयज्ञ हैं, वे धर्मशास्त्र में बलि या बलिहरण या भूतबलि शब्द से अभिहित होते हैं। दूसरा पशु आदि का बलिदान है। विश्वदेव कर्म करने के समय जो अन्नभाग अलग रख लिया जाता है, वह प्रथमोक्त बलि है। यह अन्न भाग देवयज्ञ के लक्ष्यभूत देव के प्रति एवं जल, वृक्ष, गृहपशु तथा इंद्र आदि देवताओं के प्रति उत्सृष्ट (समर्पित) होता है। गृह्यसूत्रों में इस कर्म का सविस्तार प्रतिपादन है। बलि रूप अन्नभाग अग्नि में छोड़ा नहीं जाता, बल्कि भूमि में फेंक दिया जाता है। इस प्रक्षेप क्रिया के विषय में मतभेद है। स्मार्त पूजा में पूजोपकरण (जिससे देवता की पूजा की जाती है) भी बलि कहलाता है (बलि पूजोपहार: स्यात्‌)। यह बलि भी देव के पति उत्सृष्ट होती है। देवता के उद्देश्य में छाग आदि पशुओं का जो हनन किया जाता है वह बलिदान कहलाता है (बलिउएतादृश उत्सर्ग योग्य पशु)। तंत्र आदि में महिष, छाग, गोधिका, शूकर, कृष्णसार, शरभ, हरि (वानर) आदि अनेक पशुओं को बलि के रूप में माना गया है। इक्षु, कूष्मांड आदि नानाविध उद्भिद् और फल भी बलिदान माने गए हैं। बलि के विषय में अनेक विधिनिषेध हैं। बलि को बलिदानकाल में पूर्वाभिमुख रखना चाहिए और खंडधारी बलिदानकारी उत्तराभिमुख रहेगा - यह प्रसिद्ध नियम है। बलि योग्य पशु के भी अनेक स्वरूप लक्षण कहे गए हैं। पंचमहायज्ञ के अंतर्गत बलि के कई अवांतर भेद कहे गए हैं - आवश्यक बलि, काम्यबलि आदि इस प्रसंग में ज्ञातव्य हैं। कई आचार्यों ने छागादि पशुओं के हनन को तामसपक्षीय कर्म माना है, यद्यपि तंत्र में ऐसे वचन भी हैं जिनसे पशु बलिदान को सात्विक भी माना गया है। कुछ ऐसी पूजाएँ हैं जिनमें पशु बलिदान अवश्य अनुष्ठेय होता है। वीरतंत्र, भावचूड़ामणि, यामल, तंत्रचूड़ामणि, प्राणतोषणी, महानिर्वाणतंत्र, मातृकाभेदतंत्र, वैष्णवीतंत्र, कृत्यमहार्णव, वृहन्नीलतंत्र, आदि ग्रंथों में बलिदान (विशेषकर पशुबलिदान) संबंधी चर्चा है। .

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बहादुरशाह

* बहादुर शाह ज़फ़र.

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बाङ्ला भाषा

बाङ्ला भाषा अथवा बंगाली भाषा (बाङ्ला लिपि में: বাংলা ভাষা / बाङ्ला), बांग्लादेश और भारत के पश्चिम बंगाल और उत्तर-पूर्वी भारत के त्रिपुरा तथा असम राज्यों के कुछ प्रान्तों में बोली जानेवाली एक प्रमुख भाषा है। भाषाई परिवार की दृष्टि से यह हिन्द यूरोपीय भाषा परिवार का सदस्य है। इस परिवार की अन्य प्रमुख भाषाओं में हिन्दी, नेपाली, पंजाबी, गुजराती, असमिया, ओड़िया, मैथिली इत्यादी भाषाएँ हैं। बंगाली बोलने वालों की सँख्या लगभग २३ करोड़ है और यह विश्व की छठी सबसे बड़ी भाषा है। इसके बोलने वाले बांग्लादेश और भारत के अलावा विश्व के बहुत से अन्य देशों में भी फ़ैले हैं। .

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बंग-भंग

सन् १९०५ में लार्ड कर्जन ने मुस्लिम बहुल वाले प्रान्त का सृजन करने के उद्देश्य से भारत के बंगाल को दो भागों में बाँट दिया। इतिहास में इसे बंगभंग के नाम से जाना जाता है। यह अंग्रेजों की "फूट डालो - राज करो" वाली नीति का ही एक अंग था। अत: इसके विरोध में १९०८ ई. में सम्पूर्ण देश में `बंग-भंग' आन्दोलन शुरु हो गया। .

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बंगाल

बंगाल (बांग्ला: বঙ্গ बॉंगो, বাংলা बांला, বঙ্গদেশ बॉंगोदेश या বাংলাদেশ बांलादेश, संस्कृत: अंग, वंग) उत्तरपूर्वी दक्षिण एशिया में एक क्षेत्र है। आज बंगाल एक स्वाधीन राष्ट्र, बांग्लादेश (पूर्वी बंगाल) और भारतीय संघीय प्रजातन्त्र का अंगभूत राज्य पश्चिम बंगाल के बीच में सहभाजी है, यद्यपि पहले बंगाली राज्य (स्थानीय राज्य का ढंग और ब्रिटिश के समय में) के कुछ क्षेत्र अब पड़ोसी भारतीय राज्य बिहार, त्रिपुरा और उड़ीसा में है। बंगाल में बहुमत में बंगाली लोग रहते हैं। इनकी मातृभाषा बांग्ला है। .

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ब्राह्मण

ब्राह्मण का शब्द दो शब्दों से बना है। ब्रह्म+रमण। इसके दो अर्थ होते हैं, ब्रह्मा देश अर्थात वर्तमान वर्मा देशवासी,द्वितीय ब्रह्म में रमण करने वाला।यदि ऋग्वेद के अनुसार ब्रह्म अर्थात ईश्वर को रमण करने वाला ब्राहमण होता है। । स्कन्दपुराण में षोडशोपचार पूजन के अंतर्गत अष्टम उपचार में ब्रह्मा द्वारा नारद को द्विज की उत्त्पत्ति बताई गई है जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् द्विज उच्यते। शापानुग्रहसामर्थ्यं तथा क्रोधः प्रसन्नता। ब्राह्मण (आचार्य, विप्र, द्विज, द्विजोत्तम) यह वर्ण व्‍यवस्‍था का वर्ण है। एेतिहासिक रूप हिन्दु वर्ण व्‍यवस्‍था में चार वर्ण होते हैं। ब्राह्मण (ज्ञानी ओर आध्यात्मिकता के लिए उत्तरदायी), क्षत्रिय (धर्म रक्षक), वैश्य (व्यापारी) तथा शूद्र (सेवक, श्रमिक समाज)। यस्क मुनि की निरुक्त के अनुसार - ब्रह्म जानाति ब्राह्मण: -- ब्राह्मण वह है जो ब्रह्म (अंतिम सत्य, ईश्वर या परम ज्ञान) को जानता है। अतः ब्राह्मण का अर्थ है - "ईश्वर का ज्ञाता"। सन:' शब्द के भी तप, वेद विद्या अदि अर्थ है | निरंतारार्थक अनन्य में भी 'सना' शब्द का पाठ है | 'आढ्य' का अर्थ होता है धनी | फलतः जो तप, वेद, और विद्या के द्वारा निरंतर पूर्ण है, उसे ही "सनाढ्य" कहते है - 'सनेन तपसा वेदेन च सना निरंतरमाढ्य: पूर्ण सनाढ्य:' उपर्युक्त रीति से 'सनाढ्य' शब्द में ब्राह्मणत्व के सभी प्रकार अनुगत होने पर जो सनाढ्य है वे ब्राह्मण है और जो ब्राह्मण है वे सनाढ्य है | यह निर्विवाद सिद्ध है | अर्थात ऐसा कौन ब्राह्मण होगा, जो 'सनाढ्य' नहीं होना चाहेगा | भारतीय संस्कृति की महान धाराओं के निर्माण में सनाढ्यो का अप्रतिभ योगदान रहा है | वे अपने सुखो की उपेक्षा कर दीपबत्ती की तरह तिलतिल कर जल कर समाज के लिए मिटते रहे है | .

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बृहस्पति

कोई विवरण नहीं।

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भस्मी

यज्ञ में हवन के पश्चात हविष्य की बची बुझी हुई भस्म सर्वकार्य सिद्धि का साधन मानी गई है। इसको पूरे शरीर में लगाकर नहाने से स्वास्थ्य मिलता है तथा त्वचा के रोगों से मुक्ति होती है। ऐसा भी कहा गया है कि यह असाध्य रोगादि दुर्घटनाओं से पीडतजनों को अकाल मृत्यु का भय नहीं होने देती। इस भस्म को भस्मी भी कहा जाता है। मनुस्मृति में यज्ञ के सात प्रकार बताए गए हैं। इनमें से एक स्नान भस्म से भी किया जाता है। .

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भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

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भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन

* भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय आह्वानों, उत्तेजनाओं एवं प्रयत्नों से प्रेरित, भारतीय राजनैतिक संगठनों द्वारा संचालित अहिंसावादी और सैन्यवादी आन्दोलन था, जिनका एक समान उद्देश्य, अंग्रेजी शासन को भारतीय उपमहाद्वीप से जड़ से उखाड़ फेंकना था। इस आन्दोलन की शुरुआत १८५७ में हुए सिपाही विद्रोह को माना जाता है। स्वाधीनता के लिए हजारों लोगों ने अपने प्राणों की बलि दी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने १९३० कांग्रेस अधिवेशन में अंग्रेजो से पूर्ण स्वराज की मांग की थी। .

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भविष्य पुराण

भविष्य पुराण १८ प्रमुख पुराणों में से एक है। इसकी विषय-वस्तु एवं वर्णन-शैलीकी दृष्टि से अत्यन्त उच्च कोटि का है। इसमें धर्म, सदाचार, नीति, उपदेश, अनेकों आख्यान, व्रत, तीर्थ, दान, ज्योतिष एवं आयुर्वेद के विषयों का अद्भुत संग्रह है। वेताल-विक्रम-संवाद के रूप में कथा-प्रबन्ध इसमें अत्यन्त रमणीय है। इसके अतिरिक्त इसमें नित्यकर्म, संस्कार, सामुद्रिक लक्षण, शान्ति तथा पौष्टिक कर्म आराधना और अनेक व्रतोंका भी विस्तृत वर्णन है। भविष्य पुराण में भविष्य में होने वाली घटनाओं का वर्णन है। इससे पता चलता है ईसा और मुहम्मद साहब के जन्म से बहुत पहले ही भविष्य पुराण में महर्षि वेद व्यास ने पुराण ग्रंथ लिखते समय मुस्लिम धर्म के उद्भव और विकास तथा ईसा मसीह तथा उनके द्वारा प्रारंभ किए गए ईसाई धर्म के विषय में लिख दिया था। यह पुराण भारतवर्ष के वर्तमान समस्त आधुनिक इतिहास का आधार है। इसके प्रतिसर्गपर्व के तृतीय तथा चतुर्थ खण्ड में इतिहासकी महत्त्वपूर्ण सामग्री विद्यमान है। इतिहास लेखकों ने प्रायः इसी का आधार लिया है। इसमें मध्यकालीन हर्षवर्धन आदि हिन्दू राजाओं और अलाउद्दीन, मुहम्मद तुगलक, तैमूरलंग, बाबर तथा अकबर आदि का प्रामाणिक इतिहास निरूपित है। इसके मध्यमपर्व में समस्त कर्मकाण्ड का निरूपण है। इसमें वर्णित व्रत और दान से सम्बद्ध विषय भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। इतने विस्तार से व्रतों का वर्णन न किसी पुराण, धर्मशास्त्र में मिलता है और न किसी स्वतन्त्र व्रत-संग्रह के ग्रन्थ में। हेमाद्रि, व्रतकल्पद्रुम, व्रतरत्नाकर, व्रतराज आदि परवर्ती व्रत-साहित्य में मुख्यरूप से भविष्यपुराण का ही आश्रय लिया गया है। भविष्य पुराण के अनुसार, इसके श्लोकों की संख्या पचास हजार के लगभग होनी चाहिए, परन्तु वर्तमान में कुल १४,००० श्लोक ही उपलब्ध हैं। विषय-वस्तु, वर्णनशैली तथा काव्य-रचना की द्रष्टि से भविष्यपुराण उच्चकोटि का ग्रन्थ है। इसकी कथाएँ रोचक तथा प्रभावोत्कपादक हैं। भविष्य पुराण में भगवान सूर्य नारायण की महिमा, उनके स्वरूप, पूजा उपासना विधि का विस्तार से उल्लेख किया गया है। इसीलिए इसे ‘सौर-पुराण’ या ‘सौर ग्रन्थ’ भी कहा गया है। .

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भोजली देवी

भुजरियाँ भारत के अनेक प्रांतों में सावन महीने की सप्तमी को छोटी॑-छोटी टोकरियों में मिट्टी डालकर उनमें अन्न के दाने बोए जाते हैं। ये दाने धान, गेहूँ, जौ के हो सकते हैं। ब्रज और उसके निकटवर्ती प्रान्तों में इसे 'भुजरियाँ` कहते हैं। इन्हें अलग-अलग प्रदेशों में इन्हें 'फुलरिया`, 'धुधिया`, 'धैंगा` और 'जवारा`(मालवा) या भोजली भी कहते हैं। तीज या रक्षाबंधन के अवसर पर फसल की प्राण प्रतिष्ठा के रूप में इन्हें छोटी टोकरी या गमले में उगाया जाता हैं। जिस टोकरी या गमले में ये दाने बोए जाते हैं उसे घर के किसी पवित्र स्‍थान में छायादार जगह में स्‍थापित किया जाता है। उनमें रोज़ पानी दिया जाता है और देखभाल की जाती है। दाने धीरे-धीरे पौधे बनकर बढ़ते हैं, महिलायें उसकी पूजा करती हैं एवं जिस प्रकार देवी के सम्‍मान में देवी-गीतों को गाकर जवांरा– जस – सेवा गीत गाया जाता है वैसे ही भोजली दाई (देवी) के सम्‍मान में भोजली सेवा गीत गाये जाते हैं। सामूहिक स्‍वर में गाये जाने वाले भोजली गीत छत्‍तीसगढ की शान हैं। खेतों में इस समय धान की बुआई व प्रारंभिक निराई गुडाई का काम समापन की ओर होता है। किसानों की लड़कियाँ अच्‍छी वर्षा एवं भरपूर भंडार देने वाली फसल की कामना करते हुए फसल के प्रतीकात्‍मक रूप से भोजली का आयोजन करती हैं। सावन की पूर्णिमा तक इनमें ४ से ६ इंच तक के पौधे निकल आते हैं। रक्षाबंधन की पूजा में इसको भी पूजा जाता है और धान के कुछ हरे पौधे भाई को दिए जाते हैं या उसके कान में लगाए जाते हैं। भोजली नई फ़सल की प्रतीक होती है। और इसे रक्षाबंधन के दूसरे दिन विसर्जित कर दिया जाता है। नदी, तालाब और सागर में भोजली को विसर्जित करते हुए अच्छी फ़सल की कामना की जाती है। .

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महाभारत

महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति वर्ग में आता है। कभी कभी केवल "भारत" कहा जाने वाला यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं। विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य, हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। इस ग्रन्थ को हिन्दू धर्म में पंचम वेद माना जाता है। यद्यपि इसे साहित्य की सबसे अनुपम कृतियों में से एक माना जाता है, किन्तु आज भी यह ग्रंथ प्रत्येक भारतीय के लिये एक अनुकरणीय स्रोत है। यह कृति प्राचीन भारत के इतिहास की एक गाथा है। इसी में हिन्दू धर्म का पवित्रतम ग्रंथ भगवद्गीता सन्निहित है। पूरे महाभारत में लगभग १,१०,००० श्लोक हैं, जो यूनानी काव्यों इलियड और ओडिसी से परिमाण में दस गुणा अधिक हैं। हिन्दू मान्यताओं, पौराणिक संदर्भो एवं स्वयं महाभारत के अनुसार इस काव्य का रचनाकार वेदव्यास जी को माना जाता है। इस काव्य के रचयिता वेदव्यास जी ने अपने इस अनुपम काव्य में वेदों, वेदांगों और उपनिषदों के गुह्यतम रहस्यों का निरुपण किया हैं। इसके अतिरिक्त इस काव्य में न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, ज्योतिष, युद्धनीति, योगशास्त्र, अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, कामशास्त्र, खगोलविद्या तथा धर्मशास्त्र का भी विस्तार से वर्णन किया गया हैं। .

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महाराष्ट्र

महाराष्ट्र भारत का एक राज्य है जो भारत के दक्षिण मध्य में स्थित है। इसकी गिनती भारत के सबसे धनी राज्यों में की जाती है। इसकी राजधानी मुंबई है जो भारत का सबसे बड़ा शहर और देश की आर्थिक राजधानी के रूप में भी जानी जाती है। और यहाँ का पुणे शहर भी भारत के बड़े महानगरों में गिना जाता है। यहाँ का पुणे शहर भारत का छठवाँ सबसे बड़ा शहर है। महाराष्ट्र की जनसंख्या सन २०११ में ११,२३,७२,९७२ थी, विश्व में सिर्फ़ ग्यारह ऐसे देश हैं जिनकी जनसंख्या महाराष्ट्र से ज़्यादा है। इस राज्य का निर्माण १ मई, १९६० को मराठी भाषी लोगों की माँग पर की गयी थी। यहां मराठी ज्यादा बोली जाती है। मुबई अहमदनगर पुणे, औरंगाबाद, कोल्हापूर, नाशिक नागपुर ठाणे शिर्डी-अहमदनगर आैर महाराष्ट्र के अन्य मुख्य शहर हैं। .

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मिठाई

मिठाइयाँ केरल में पुंसावनम के समय परोसी जाने वाले मिठाइयाँ भारतीय मिठाइयाँ या मिष्ठान्न शक्कर, अन्न और दूध के अलग अलग प्रकार से पकाने और मिलाने से बनती हैं। खीर और हलवा सबसे सामान्य मिठाइयाँ हैं जो प्रायः सभी के घर में बनती हैं। ज्यादातर मिठाइयाँ बाज़ार से खरीदी जाती हैं। मिठाई बनाने वाले पेशेवर बावर्चियों को हलवाई कहते हैं। भारत की संस्कृति के ही अनुसार यहां हर प्रदेश की मिठाई में भी विभिन्नता है। उदाहरण के लिए बंगाली मिठाइयों में छेने की प्रमुखता है तो पंजाबी मिठाइयों में खोये की। उत्तर भारत की मिठाइयों में दूध की प्रमुखता है तो दक्षिण भारत की मिठाइयों में अन्न की। त्योहारों व पारिवारिक अनुष्ठानों में मिठाई का बहुत महत्व होता है। दैनिक जीवन में मिठाई खाने के बाद खाई जाती है। कुछ मिठाइयों को खाने का समय निर्धारित होता है जैसे जलेबी सुबह के समय खाई जाती है, तो कुछ मिठाइयाँ पर्वों से संबंधित होती हैं, जैसे गुझिया उत्तर भारत में होली पर और दक्षिण भारत में दिवाली पर बनाने की परंपरा है। भारत में मिठाइयों की भरमार है। उनमें से कुछ निम्नलिखित है -.

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मुम्बई

भारत के पश्चिमी तट पर स्थित मुंंबई (पूर्व नाम बम्बई), भारतीय राज्य महाराष्ट्र की राजधानी है। इसकी अनुमानित जनसंख्या ३ करोड़ २९ लाख है जो देश की पहली सर्वाधिक आबादी वाली नगरी है। इसका गठन लावा निर्मित सात छोटे-छोटे द्वीपों द्वारा हुआ है एवं यह पुल द्वारा प्रमुख भू-खंड के साथ जुड़ा हुआ है। मुम्बई बन्दरगाह भारतवर्ष का सर्वश्रेष्ठ सामुद्रिक बन्दरगाह है। मुम्बई का तट कटा-फटा है जिसके कारण इसका पोताश्रय प्राकृतिक एवं सुरक्षित है। यूरोप, अमेरिका, अफ़्रीका आदि पश्चिमी देशों से जलमार्ग या वायुमार्ग से आनेवाले जहाज यात्री एवं पर्यटक सर्वप्रथम मुम्बई ही आते हैं इसलिए मुम्बई को भारत का प्रवेशद्वार कहा जाता है। मुम्बई भारत का सर्ववृहत्तम वाणिज्यिक केन्द्र है। जिसकी भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 5% की भागीदारी है। यह सम्पूर्ण भारत के औद्योगिक उत्पाद का 25%, नौवहन व्यापार का 40%, एवं भारतीय अर्थ व्यवस्था के पूंजी लेनदेन का 70% भागीदार है। मुंबई विश्व के सर्वोच्च दस वाणिज्यिक केन्द्रों में से एक है। भारत के अधिकांश बैंक एवं सौदागरी कार्यालयों के प्रमुख कार्यालय एवं कई महत्वपूर्ण आर्थिक संस्थान जैसे भारतीय रिज़र्व बैंक, बम्बई स्टॉक एक्स्चेंज, नेशनल स्टऑक एक्स्चेंज एवं अनेक भारतीय कम्पनियों के निगमित मुख्यालय तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियां मुम्बई में अवस्थित हैं। इसलिए इसे भारत की आर्थिक राजधानी भी कहते हैं। नगर में भारत का हिन्दी चलचित्र एवं दूरदर्शन उद्योग भी है, जो बॉलीवुड नाम से प्रसिद्ध है। मुंबई की व्यवसायिक अपॊर्ट्युनिटी, व उच्च जीवन स्तर पूरे भारतवर्ष भर के लोगों को आकर्षित करती है, जिसके कारण यह नगर विभिन्न समाजों व संस्कृतियों का मिश्रण बन गया है। मुंबई पत्तन भारत के लगभग आधे समुद्री माल की आवाजाही करता है। .

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मुसलमान

मिसरी (ईजिप्ट) मुस्लिमान नमाज़ पढ रहे हैं, एक तस्वीर। मुसलमान (अरबी: مسلم، مسلمة फ़ारसी: مسلمان،, अंग्रेजी: Muslim) का मतलब वह व्यक्ति है जो इस्लाम में विश्वास रखता हो। हालाँकि मुसलमानों के आस्था के अनुसार इस्लाम ईश्वर का धर्म है और धर्म हज़रत मुहम्मद से पहले मौजूद था और जो लोग अल्लाह के धर्म का पालन करते रहे वह मुसलमान हैं। जैसे कुरान के अनुसार हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम भी मुसलमान थे। मगर आजकल मुसलमान का मतलब उसे लिया जाता है जो हज़रत मुहम्मद लाए हुए दीन का पालन करता हो और विश्वास रखता हो। मध्यकालीन मुस्लिम इतिहासकारों ने भारत को हिन्द अथवा हिन्दुस्तान कहा है । .

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मृदा

पृथ्वी ऊपरी सतह पर मोटे, मध्यम और बारीक कार्बनिक तथा अकार्बनिक मिश्रित कणों को मृदा (मिट्टी / soil) कहते हैं। ऊपरी सतह पर से मिट्टी हटाने पर प्राय: चट्टान (शैल) पाई जाती है। कभी कभी थोड़ी गहराई पर ही चट्टान मिल जाती है। 'मृदा विज्ञान' (Pedology) भौतिक भूगोल की एक प्रमुख शाखा है जिसमें मृदा के निर्माण, उसकी विशेषताओं एवं धरातल पर उसके वितरण का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता हैं। पृथऽवी की ऊपरी सतह के कणों को ही (छोटे या बडे) soil कहा जाता है .

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मेवाड़

राजस्थान के अन्तर्गत मेवाड़ की स्थिति मेवाड़ राजस्थान के दक्षिण-मध्य में एक रियासत थी। इसे 'उदयपुर राज्य' के नाम से भी जाना जाता था। इसमें आधुनिक भारत के उदयपुर, भीलवाड़ा, राजसमंद, तथा चित्तौडगढ़ जिले थे। सैकड़ों सालों तक यहाँ रापपूतों का शासन रहा और इस पर गहलौत तथा सिसोदिया राजाओं ने १२०० साल तक राज किया। बाद में यह अंग्रेज़ों द्वारा शासित राज बना। १५५० के आसपास मेवाड़ की राजधानी थी चित्तौड़। राणा प्रताप सिंह यहीं का राजा था। अकबर की भारत विजय में केवल मेवाड़ का राणा प्रताप बाधक बना रहा। अकबर ने सन् 1576 से 1586 तक पूरी शक्ति के साथ मेवाड़ पर कई आक्रमण किए, पर उसका राणा प्रताप को अधीन करने का मनोरथ सिद्ध नहीं हुआ स्वयं अकबर, प्रताप की देश-भक्ति और दिलेरी से इतना प्रभावित हुआ कि प्रताप के मरने पर उसकी आँखों में आंसू भर आये। उसने स्वीकार किया कि विजय निश्चय ही राणा की हुई। यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में प्रताप जैसे महान देशप्रेमियों के जीवन से ही प्रेरणा प्राप्त कर अनेक देशभक्त हँसते-हँसते बलिवेदी पर चढ़ गए। महाराणा प्रताप की मृत्यु पर उसके उत्तराधिकारी अमर सिंह ने मुगल सम्राट जहांगीर से संधि कर ली। उसने अपने पाटवी पुत्र को मुगल दरबार में भेजना स्वीकार कर लिया। इस प्रकार १०० वर्ष बाद मेवाड़ की स्वतंत्रता का भी अन्त हुआ। .

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यम द्वितीया

भ्रातृ द्वितीया (भाई दूज) कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाने वाला हिन्दू धर्म का पर्व है जिसे यम द्वितीया भी कहते हैं। भाई दूज दीपावली के दो दिन बाद आने वाला ऐसा पर्व है, जो भाई के प्रति बहन के स्नेह को अभिव्यक्त करता है एवं बहनें अपने भाई की खुशहाली के लिए कामना करती हैं। .

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यजुर्वेद

यजुर्वेद हिन्दू धर्म का एक महत्त्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ और चार वेदों में से एक है। इसमें यज्ञ की असल प्रक्रिया के लिये गद्य और पद्य मन्त्र हैं। ये हिन्दू धर्म के चार पवित्रतम प्रमुख ग्रन्थों में से एक है और अक्सर ऋग्वेद के बाद दूसरा वेद माना जाता है - इसमें ऋग्वेद के ६६३ मंत्र पाए जाते हैं। फिर भी इसे ऋग्वेद से अलग माना जाता है क्योंकि यजुर्वेद मुख्य रूप से एक गद्यात्मक ग्रन्थ है। यज्ञ में कहे जाने वाले गद्यात्मक मन्त्रों को ‘'यजुस’' कहा जाता है। यजुर्वेद के पद्यात्मक मन्त्र ॠग्वेद या अथर्ववेद से लिये गये है।। भारत कोष पर देखें इनमें स्वतन्त्र पद्यात्मक मन्त्र बहुत कम हैं। यजुर्वेद में दो शाखा हैं: दक्षिण भारत में प्रचलित कृष्ण यजुर्वेद और उत्तर भारत में प्रचलित शुक्ल यजुर्वेद शाखा। जहां ॠग्वेद की रचना सप्त-सिन्धु क्षेत्र में हुई थी वहीं यजुर्वेद की रचना कुरुक्षेत्र के प्रदेश में हुई।। ब्रज डिस्कवरी कुछ लोगों के मतानुसार इसका रचनाकाल १४०० से १००० ई.पू.

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यज्ञोपवीत

यज्ञोपवीत यज्ञोपवीत (संस्कृत संधि विच्छेद.

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यज्ञोपवीतधारी

जो व्यक्ति यज्ञोपवीत धारण करता है उसे यज्ञोपवीतधारी कहते हैं। श्रेणी:संस्कृति.

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युधिष्ठिर

प्राचीन भारत के महाकाव्य महाभारत के अनुसार युधिष्ठिर पांच पाण्डवों में सबसे बड़े भाई थे। वह पांडु और कुंती के पहले पुत्र थे। युधिष्ठिर को धर्मराज (यमराज) पुत्र भी कहा जाता है। वो भाला चलाने में निपुण थे और वे कभी झूठ नहीं बोलते थे। महाभारत के अंतिम दिन उसने अपने मामा शलय का वध किया जो कौरवों की तरफ था। .

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रबीन्द्रनाथ ठाकुर

रवीन्द्रनाथ ठाकुर (बंगाली: রবীন্দ্রনাথ ঠাকুর रोबिन्द्रोनाथ ठाकुर) (७ मई, १८६१ – ७ अगस्त, १९४१) को गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। वे विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के एकमात्र नोबल पुरस्कार विजेता हैं। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान जन गण मन और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान आमार सोनार बाँग्ला गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं। .

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

यह लेख भारत के एक सांस्कृतिक संगठन आर एस एस के बारे में है। अन्य प्रयोग हेतु आर एस एस देखें। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत का एक दक्षिणपंथी, हिन्दू राष्ट्रवादी, अर्धसैनिक, स्वयंसेवक संगठन हैं, जो व्यापक रूप से भारत के सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी का पैतृक संगठन माना जाता हैं। यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अपेक्षा संघ या आर.एस.एस. के नाम से अधिक प्रसिद्ध है। बीबीसी के अनुसार संघ विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संस्थान है। .

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राजपूत

राजपूत उत्तर भारत का एक क्षत्रिय कुल माना जाता है।जो कि राजपुत्र का अपभ्रंश है। राजस्थान को ब्रिटिशकाल मे राजपूताना भी कहा गया है। पुराने समय में आर्य जाति में केवल चार वर्णों की व्यवस्था थी। राजपूत काल में प्राचीन वर्ण व्यवस्था समाप्त हो गयी थी तथा वर्ण के स्थान पर कई जातियाँ व उप जातियाँ बन गईं थीं। कवि चंदबरदाई के कथनानुसार राजपूतों की 36 जातियाँ थी। उस समय में क्षत्रिय वर्ण के अंतर्गत सूर्यवंश और चंद्रवंश के राजघरानों का बहुत विस्तार हुआ। .

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राजस्थान

राजस्थान भारत गणराज्य का क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़ा राज्य है। इसके पश्चिम में पाकिस्तान, दक्षिण-पश्चिम में गुजरात, दक्षिण-पूर्व में मध्यप्रदेश, उत्तर में पंजाब (भारत), उत्तर-पूर्व में उत्तरप्रदेश और हरियाणा है। राज्य का क्षेत्रफल 3,42,239 वर्ग कि॰मी॰ (132139 वर्ग मील) है। 2011 की गणना के अनुसार राजस्थान की साक्षरता दर 66.11% हैं। जयपुर राज्य की राजधानी है। भौगोलिक विशेषताओं में पश्चिम में थार मरुस्थल और घग्गर नदी का अंतिम छोर है। विश्व की पुरातन श्रेणियों में प्रमुख अरावली श्रेणी राजस्थान की एक मात्र पर्वत श्रेणी है, जो कि पर्यटन का केन्द्र है, माउंट आबू और विश्वविख्यात दिलवाड़ा मंदिर सम्मिलित करती है। पूर्वी राजस्थान में दो बाघ अभयारण्य, रणथम्भौर एवं सरिस्का हैं और भरतपुर के समीप केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान है, जो सुदूर साइबेरिया से आने वाले सारसों और बड़ी संख्या में स्थानीय प्रजाति के अनेकानेक पक्षियों के संरक्षित-आवास के रूप में विकसित किया गया है। .

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राखी

कोई विवरण नहीं।

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रक्षाबन्धन

रक्षाबन्धन एक हिन्दू व जैन त्योहार है जो प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। श्रावण (सावन) में मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी (सावनी) या सलूनो भी कहते हैं। रक्षाबन्धन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्त्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चाँदी जैसी मँहगी वस्तु तक की हो सकती है। राखी सामान्यतः बहनें भाई को ही बाँधती हैं परन्तु ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित सम्बंधियों (जैसे पुत्री द्वारा पिता को) भी बाँधी जाती है। कभी-कभी सार्वजनिक रूप से किसी नेता या प्रतिष्ठित व्यक्ति को भी राखी बाँधी जाती है। अब तो प्रकृति संरक्षण हेतु वृक्षों को राखी बाँधने की परम्परा भी प्रारम्भ हो गयी है। हिन्दुस्तान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुरुष सदस्य परस्पर भाईचारे के लिये एक दूसरे को भगवा रंग की राखी बाँधते हैं। हिन्दू धर्म के सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षासूत्र बाँधते समय कर्मकाण्डी पण्डित या आचार्य संस्कृत में एक श्लोक का उच्चारण करते हैं, जिसमें रक्षाबन्धन का सम्बन्ध राजा बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। भविष्यपुराण के अनुसार इन्द्राणी द्वारा निर्मित रक्षासूत्र को देवगुरु बृहस्पति ने इन्द्र के हाथों बांधते हुए निम्नलिखित स्वस्तिवाचन किया (यह श्लोक रक्षाबन्धन का अभीष्ट मन्त्र है)- इस श्लोक का हिन्दी भावार्थ है- "जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे (राखी)! तुम अडिग रहना (तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।)" .

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रक्षासूत्र

राखी की एक दूकान रक्षासूत्र या राखी को रक्षाबंधन के अवसर पर भाई की कलाई में बाँधा जाता है। इसे रेशमी धागे और कुछ सजावट की वस्तुओं को मिलाकर बनाया जाता है। इन राखियों का मूल्य भारतीय बाज़ार में ५ रु.

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रेशम

रेशम की बनी परम्परागत बनारसी साड़ी रेशम (Silk) प्राकृतिक प्रोटीन से बना रेशा है। रेशम के कुछ प्रकार के रेशों से वस्त्र बनाए जा सकते हैं। ये प्रोटीन रेशों में मुख्यतः फिब्रोइन (fibroin) होता है। ये रेशे कुछ कीड़ों के लार्वा द्वारा बनाया जाता है। सबसे उत्तम रेशम शहतूत के पत्तों पर पलने वाले कीड़ों के लार्वा द्वारा बनाया जाता है। .

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रोली

हल्दी और चूने की लाल बुकनी जिसका तिलक लगाते हैं। इसका एक और नाम कुंकुम भी है। प्रत्येक पूजा में इसे चावल के साथ माथे पर लगाते हैं। इसे शुभ समझा जाता है। सहित्य में भी इस शब्द का प्रयोग बहुतायत से मिलता है। .

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शची

ऐरावत पर सवार इन्द्र और शाची; जैन ग्रन्थ पंचकल्याणक (१६७०-८०) से) शची इन्द्र की पत्नी और पुलोमा की कन्या थीं। द्रौपदी इन्हीं के अंश से उत्पन्न हुई थीं और ये स्वयं प्रकृति की अन्यतम कला से जन्मी थीं। जयंत शची के ही पुत्र थे। शची को 'इन्द्राणी', 'ऐन्द्री', 'महेन्द्री', 'पुलोमजा', 'पौलोमी' आदि नामों से भी जाना जाता है। ब्रह्महत्या के भय से एक बार जब इन्द्र जलगर्भ में छिपे हुए थे तो देवताओं ने नहुष को इंद्रपद दे दिया। नहुष ने शची पर कुदृष्टि की तो बृहस्पति की आज्ञा से उन्होंने भुवनेश्वरी की आराधना की और उनसे अभय प्राप्त किया। फिर शची ने मानसरोवर जाकर छिपे हुए इंद्र से अपनी सारी कथा कही। इंद्र की सलाह से शची ने नहुष से कहलाया 'यदि सप्तर्षियों के कंधे पर रखी पालकी में बैठकर आवें तो मैं तुम्हारे साथ चलूँगी।' नहुष ने ऐसा ही किया। ऋषियों को धीरे धीरे चलते देखकर उसने आदेश दिया 'सर्प सर्प' (जल्दी चलो) अंततोगत्वा ऋषियों के शाप से नहुष को सर्प हो जाना पड़ा। अपने विवाह के पूर्व शची ने शंकर से सुंदर पति, स्वेच्छामत रूप तथा सुख एवं आयु का वरदान माँगा था। ऋग्वेद में शचीरचित कुछ सूक्त हैं जिनमें सपत्नी का नाश करने के लिए प्रार्थना की गई है (ऋचा, 10-159)। कुछ विद्वानों के मत से सूक्त बहुत बाद की रचनाएँ हैं। श्रेणी:पौराणिक पात्र श्रेणी:ऋषिकाएँ.

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शिशुपाल

ग़शिशुपाल महाभारत कालीन चेदि राज्य का स्वामी था। महाभारत में चेदि जनपद के निवासियों के लिए आदि पर्व के तिरसठवें अध्याय, छंद संख्या १०-१२ में लिखा है-"चेदि के जनपद धर्मशील, संतोषी ओर साधु हैं। यहाँ हास-परिहास में भी कोई झूठ नहीं बोलता, फिर अन्य अवसरों पर तो बोल ही कैसे सकता है। पुत्र सदा गुरुजनों के हित में लगे रहते हैं, पिता अपने जीते-जी उनका बँटवारा नहीं करते। यहाँ के लोग बैलों को भार ढोने में लगाते और दीनों एवं अनाथों का पोषण करते हैं। सब वर्णों के लोग सदा अपने-अपने धर्म में स्थित रहते हैं"। स्पष्ट है कि शिशुपाल की राज्य व्यवस्था अच्छी थी और चेदि जनपद के लोग सदाचार को महत्त्व देते थे। महाभारत में वर्णन है कि विदर्भराज के रुक्म, रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेस तथा रुक्ममाली नामक पाँच पुत्र और एक पुत्री रुक्मणी थी। रुक्मणी सर्वगुण सम्पन्न तथा अति सुन्दरी थी। उसके माता-पिता उसका विवाह कृष्ण के साथ करना चाहते थे किन्तु रुक्म (रुक्मणी का बड़ा भाई) चाहता था कि उसकी बहन का विवाह चेदिराज शिशुपाल के साथ हो। अतः उसने रुक्मणी का टीका शिशुपाल के यहाँ भिजवा दिया। रुक्मणी कृष्ण पर आसक्त थी इसलिये उसने कृष्ण को एक ब्राह्मण के हाथों संदेशा भेजा। कृष्ण ने संदेश लाने वाले ब्राह्मण से कहा, "हे ब्राह्मण देवता! जैसा रुक्मणी मुझसे प्रेम करती हैं वैसे ही मैं भी उन्हीं से प्रेम करता हूँ। मैं जानता हूँ कि रुक्मणी के माता-पिता रुक्मणी का विवाह मुझसे ही करना चाहते हैं परन्तु उनका बड़ा भाई रुक्म मुझ से शत्रुता रखने के कारण उन्हें ऐसा करने से रोक रहा है। तुम जाकर राजकुमारी रुक्मणी से कह दो कि मैं अवश्य ही उनको ब्याह कर लाउँगा।" कृष्ण ने रुक्मणी से विवाह किया पर चेदिराज शिशुपाल ने इसे अपमान समझा और वह कृष्ण को अपना दुश्मन समझने लगा। युधिष्ठिर ने जब राजसूय यज्ञ की तैयारी की तब सभी प्रमुख राजाओं को यज्ञ में आने का निमंत्रण दिया गया जिसमें चेदिराज शिशुपाल भी था। देवपूजा के समय कृष्ण का सम्मान देखकर वह जल गया और उनको गालियाँ देने लगा। उसके इन कटु वचनों की निन्दा करते हुये श्री कृष्ण के अनेक भक्त सभा छोड़ कर चले गये क्योंकि वे श्री कृष्ण की निन्दा नहीं सुन सकते थे। अर्जुन और भीमसेन अनेक राजाओं के साथ उसे मारने के लिये उद्यत हो गये किन्तु श्री कृष्ण ने उन सभी को रोक दिया। जब शिशुपाल श्री कृष्ण को एक सौ गाली दे चुका तब श्री कृष्ण ने गरज कर कहा, "बस शिशुपाल! अब मेरे विषय में तेरे मुख से एक भी अपशब्द निकला तो तेरे प्राण नहीं बचेंगे। मैंने तेरे एक सौ अपशब्दों को क्षमा करने की प्रतिज्ञा की थी इसी लिये अब तक तेरे प्राण बचे रहे।" श्री कृष्ण के इन वचनों को सुन कर सभा में उपस्थित शिशुपाल के सारे समर्थक भय से थर्रा गये किन्तु शिशुपाल का विनाश समीप था, अतः उसने काल के वश होकर अपनी तलवार निकालते हुये श्री कृष्ण को फिर से गाली दी। शिशुपाल के मुख से अपशब्द के निकलते ही श्री कृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र चला दिया और पलक झपकते ही शिशुपाल का सिर कट कर गिर गया। मप्र के अशोकनगर जिले में है 'चंदेरी'। यहां एक किंवदंती सदियों से प्रचलित है। और वह यह कि यहां कभी ढाई प्रहर सोने की बारिश हुई थी। यह बारिश द्वापरयुग में तब हुई थी, जब यहां का राजा शिशुपाल हुआ करता था। शिशुपाल ने भगवान श्रीकृष्ण को अपमानित किया था। जिसके चलते भगवान ने उसका सिर, शरीर से सुदर्शन चक्र के द्वारा अलग कर दिया था। तब उसके राज्य चेदि (वर्तमान में संभवतः चंदेरी) में ढाई प्रहर सोने की बारिश हुई थी। यह क्षेत्र बुंदेलखंड में आता है। सोने की बारिश तो द्वारयुग में हुई थी! लेकिन अलग-अलग तरह की बारिश होती रही है। इसका उल्लेख हमारे वैदिक ग्रंथों में भी मिलता है। .

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श्रावण

Rahman .

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श्लोक

संस्कृत की दो पंक्तियों की रचना, जिनके द्वारा किसी प्रकार का कथोकथन किया जाता है, श्लोक कहलाता है। श्लोक प्रायः छंद के रूप में होते हैं अर्थात् इनमें गति, यति और लय होती है। छंद के रूप में होने के कारण ये आसानी से याद हो जाते हैं। प्राचीनकाल में ज्ञान को लिपिबद्ध करके रखने की प्रथा न होने के कारण ही इस प्रकार का प्रावधान किया गया था। श्लोक 'अनुष्टुप छ्न्द' का पुराना नाम भी है। किन्तु आजकल संस्कृत का कोई छंद या पद्य 'श्लोक' कहलाता है।; 'श्लोक' का शाब्दिक अर्थ १. आवाज, ध्वनि, शब्द। २. पुकारने का शब्द, आह्वान, पुकार। ३. प्रशंसा, स्तुति। ४. कीर्ति, यश। ५. किसी गुण या विशेषता का प्रशंसात्मक कथन या वर्णन। जैसे—शूर-श्लोक अर्थात् शूरता का वर्णन। श्रेणी:संस्कृत साहित्य श्रेणी:लेखन.

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सप्तर्षि

सप्तर्षि (सप्त + ऋषि) सात ऋषियों को कहते हैं जिनका उल्लेख वेद एवं अन्य हिन्दू ग्रन्थों में अनेकों बार हुआ है। .

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समाज

समाज एक से अधिक लोगों के समुदाय को कहते हैं जिसमें सभी व्यक्ति मानवीय क्रियाकलाप करते है। मानवीय क्रियाकलाप में आचरण, सामाजिक सुरक्षा और निर्वाह आदि की क्रियाएं सम्मिलित होती है। समाज लोगों का ऐसा समूह होता है जो अपने अंदर के लोगों के मुकाबले अन्य समूहों से काफी कम मेलजोल रखता है। किसी समाज के अंतर्गत आने वाले व्यक्ति एक दूसरे के प्रति परस्पर स्नेह तथा सहृदयता का भाव रखते हैं। दुनिया के सभी समाज अपनी एक अलग पहचान बनाते हुए अलग-अलग रस्मों-रिवाज़ों का पालन करते हैं। .

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साहित्य

किसी भाषा के वाचिक और लिखित (शास्त्रसमूह) को साहित्य कह सकते हैं। दुनिया में सबसे पुराना वाचिक साहित्य हमें आदिवासी भाषाओं में मिलता है। इस दृष्टि से आदिवासी साहित्य सभी साहित्य का मूल स्रोत है। .

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सागर

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सिकंदर

सिकंदर (Alexander) (356 ईपू से 323 ईपू) मकदूनियाँ, (मेसेडोनिया) का ग्रीक प्रशासक था। वह एलेक्ज़ेंडर तृतीय तथा एलेक्ज़ेंडर मेसेडोनियन नाम से भी जाना जाता है। इतिहास में वह कुशल और यशस्वी सेनापतियों में से एक माना गया है। अपनी मृत्यु तक वह उन सभी भूमि मे से लगभग आधी भूमि जीत चुका था, जिसकी जानकारी प्राचीन ग्रीक लोगों को थी(सत्य ये है की वह पृथ्वी के मात्र 5 प्रतीशत हिस्से को ही जीत पाया था) और उसके विजय रथ को रोकने में सबसे मुख्य भूमिका भारत के महान राजा पुरु (जिन्हे युनानी इतिहासकारों नें पोरस से सम्बोधित किया है।)और भारत के क्षेत्रीय सरदारो की थी, जिन्होंने सिकंदर की सेना में अपने पराक्रम के दम पर भारत के प्रति खौफ पैदा कर उसके हौसले पस्त कर दिये और उसे भारत से लौटने पर मजबूर कर दिया।। उसने अपने कार्यकाल में इरान, सीरिया, मिस्र, मसोपोटेमिया, फिनीशिया, जुदेआ, गाझा, बॅक्ट्रिया और भारत में पंजाब(जिसके राजा पुरु थे।) तक के प्रदेश पर विजय हासिल की थी परन्तु बाद में वो मगध की विशाल सेना से डर कर लौट गया ।।उल्लेखनीय है कि उपरोक्त क्षेत्र उस समय फ़ारसी साम्राज्य के अंग थे और फ़ारसी साम्राज्य सिकन्दर के अपने साम्राज्य से कोई 40 गुना बड़ा था। फारसी में उसे एस्कंदर-ए-मक्दुनी (मॅसेडोनिया का अलेक्ज़ेंडर, एस्कन्दर का अपभ्रंश सिकन्दर है) औऱ हिंदी में अलक्षेन्द्र कहा गया है। .

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सुदर्शन चक्र

हाथ में सुदर्शन चक्र लिए विष्णु भगवन सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु का शस्त्र है। इसको उन्होंने स्वयं तथा उनके कृष्ण अवतार ने धारण किया है। किंवदंती है कि इस चक्र को विष्णु ने गढ़वाल के श्रीनगर स्थित कमलेश्वर शिवालय में तपस्या कर के प्राप्त किया था। सुदर्शन चक्र अस्त्र के रूप में प्रयोग किया जाने वाला एक चक्र, जो चलाने के बाद अपने लक्ष्य पर पहुँचकर वापस आ जाता है। यह चक्र भगवानविष्णु को 'हरिश्वरलिंग' (शंकर) से प्राप्त हुआ था। सुदर्शन चक्र को विष्णु ने उनके कृष्ण के अवतार में धारण किया था। श्रीकृष्ण ने इस चक्र से अनेक राक्षसों का वध किया था। सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु का अमोघ अस्त्र है। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि इस चक्र ने देवताओं की रक्षा तथा राक्षसों के संहार में अतुलनीय भूमिका का निर्वाह किया था। सुदर्शन चक्र एक ऐसा अचूक अस्त्र था कि जिसे छोड़ने के बाद यह लक्ष्य का पीछा करता था और उसका काम तमाम करके वापस छोड़े गए स्थान पर आ जाता था। चक्र को विष्णु की तर्जनी अंगुली में घूमते हुए बताया जाता है। सबसे पहले यह चक्र उन्हीं के पास था। सिर्फ देवताओं के पास ही चक्र होते थे। चक्र सिर्फ उस मानव को ही प्राप्त होता था जिसे देवता लोग नियुक्त करते थे। भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र की प्राप्ति से सम्बन्धित एक अन्य प्रसंग निम्नलिखित है- एक बार जब दैत्यों के अत्याचार बहुत बढ़ गए, तब सभी देवता श्रीहरि विष्णु के पास आए। तब भगवान विष्णु ने कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव की विधिपूर्वक आराधना की। वे हजार नामों से शिव की स्तुति करने लगे। वे प्रत्येक नाम पर एक कमल पुष्प भगवान शिव को चढ़ाते। तब भगवान शंकर ने विष्णु की परीक्षा लेने के लिए उनके द्वारा लाए एक हजार कमल में से एक कमल का फूल छिपा दिया। शिव की माया के कारण विष्णु को यह पता न चला। एक फूल कम पाकर भगवान विष्णु उसे ढूँढने लगे। परंतु फूल नहीं मिला। तब विष्णु ने एक फूल की पूर्ति के लिए अपना एक नेत्र निकालकर शिव को अर्पित कर दिया। विष्णु की भक्ति देखकर भगवान शंकर बहुत प्रसन्न हुए और श्रीहरि के समक्ष प्रकट होकर वरदान मांगने के लिए कहा। तब विष्णु ने दैत्यों को समाप्त करने के लिए अजेय शस्त्र का वरदान माँगा। तब भगवान शंकर ने विष्णु को सुदर्शन चक्र प्रदान किया। विष्णु ने उस चक्र से दैत्यों का संहार किया। इस प्रकार देवताओं को दैत्यों से मुक्ति मिली तथा सुदर्शन चक्र उनके स्वरूप के साथ सदैव के लिए जुड़ गया। भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण ने इस चक्र से अनेक राक्षसों का वध किया था। भगवान विश्वकर्मा की बेटी का विवाह भगवान सूर्य से हुआ था। शादी के बाद भी उनकी बेटी खुश नहीं थी, कारण, सूर्य की गर्मी और उनका ताप जिसके कारण वो अपना वैवाहिक जीवन नहीं जी पा रही थी, और फिर बेटी के कहने पर भगवान ने सूर्य से थोड़ी सी चमक और ताप ले के पुष्पक विमान का निर्माण किया। इसके साथ ही साथ भगवान शिव के त्रिशूल और भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र का निर्माण किया था। प्राचीन और प्रामाणिक शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि इसका निर्माण भगवान शंकर ने किया था। निर्माण के बाद भगवान शिव ने इसे श्री विष्णु को सौंप दिया था। सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु को कैसे प्राप्त हुआ, इस विषय में एक कथा प्रचलित है, जो इस प्रकार है- प्राचीन समय में 'वीतमन्यु' नामक एक ब्राह्मण थे। वह वेदों के ज्ञाता थे। उनकी 'आत्रेयी' नाम की पत्नी थी, जो सदाचार युक्त थीं। उन्हें लोग 'धर्मशीला' के नाम से भी बुलाते थे। इस ब्राह्मण दंपति का एक पुत्र था, जिसका नाम 'उपमन्यु' था। परिवार बेहद निर्धनता में पल रहा था। गरीबी इस कदर थी कि धर्मशीला अपने पुत्र को दूध भी नहीं दे सकती थी। वह बालक दूध के स्वाद से अनभिज्ञ था। धर्मशीला उसे चावल का धोवन ही दूध कहकर पिलाया करती थी। एक दिन ऋषि वीतमन्यु अपने पुत्र के साथ कहीं प्रीतिभोज में गये। वहाँ उपमन्यु ने दूध से बनी हुई खीर का भोजन किया, तब उसे दूध के वास्तविक स्वाद का पता लग गया। घर आकर उसने चावल के धोवन को पीने से इंकार कर दिया। दूध पाने के लिए हठ पर अड़े बालक से उसकी माँ धर्मशीला ने कहा- "पुत्र, यदि तुम दूध को क्या, उससे भी अधिक पुष्टिकारक तथा स्वादयुक्त पेय पीना चाहते हो तो विरूपाक्ष महादेव की सेवा करो। उनकी कृपा से अमृत भी प्राप्त हो सकता है।" उपमन्यु ने अपनी माँ से पूछा- "माता, आप जिन विरूपाक्ष भगवान की सेवा-पूजा करने को कह रही हैं, वे कौन हैं?" धर्मशीला ने अपने पुत्र को बताया कि प्राचीन काल में श्रीदामा नाम से विख्यात एक महान असुर राज था। उसने सारे संसार को अपने अधीन करके लक्ष्मी को भी अपने वश में कर लिया। उसके यश और प्रताप से तीनों लोक श्रीहीन हो गये। उसका मान इतना बढ़ गया था कि वह भगवान विष्णु के श्रीवत्स को ही छीन लेने की योजना बनाने लगा। उस महाबलशाली असुर की इस दूषित मनोभावना को जानकर उसे मारने की इच्छा से भगवान विष्णु महेश्वर शिव के पास गये। उस समय महेश्वर हिमालय की ऊंची चोटी पर योगमग्न थे। तब भगवान विष्णु जगन्नाथ के पास जाकर एक हजार वर्ष तक पैर के अंगूठे पर खड़े रह कर परब्रह्म की उपासना करते रहे। भगवान विष्णु की इस प्रकार कठोर साधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें 'सुदर्शन चक्र' प्रदान किया। उन्होंने सुदर्शन चक्र को देते हुए भगवान विष्णु से कहा- "देवेश! यह सुदर्शन नाम का श्रेष्ठ आयुध बारह अरों, छह नाभियों एवं दो युगों से युक्त, तीव्र गतिशील और समस्त आयुधों का नाश करने वाला है। सज्जनों की रक्षा करने के लिए इसके अरों में देवता, राशियाँ, ऋतुएँ, अग्नि, सोम, मित्र, वरुण, शचीपति इन्द्र, विश्वेदेव, प्रजापति, हनुमान,धन्वन्तरि, तप तथा चैत्र से लेकर फाल्गुन तक के बारह महीने प्रतिष्ठित हैं। आप इसे लेकर निर्भीक होकर शत्रुओं का संहार करें। तब भगवान विष्णु ने उस सुदर्शन चक्र से असुर श्रीदामा को युद्ध में परास्त करके मार डाला। इस आयुध की खासियत थी कि इसे तेजी से हाथ से घुमाने पर यह हवा के प्रवाह से मिल कर प्रचंड़ वेग से अग्नि प्रज्जवलित कर दुश्मन को भस्म कर देता था। यह अत्यंत सुंदर, तीव्रगामी, तुरंत संचालित होने वाला एक भयानक अस्त्र था। भगवान श्री कृष्ण के पास यह देवी की कृपा से आया। यह चांदी की शलाकाओं से निर्मित था। इसकी ऊपरी और निचली सतहों पर लौह शूल लगे हुए थे। इसके साथ ही इसमें अत्यंत विषैले किस्म के विष, जिसे द्विमुखी पैनी छुरियों मे रखा जाता था, इसका भी उपयोग किया गया था। इसके नाम से ही विपक्षी सेना में मौत का भय छा जाता था। श्रेणी:पुराण श्रेणी:हिन्दू पौराणिक हथियार श्रेणी:शस्त्र.

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स्नातक

स्नातक शब्द के कई अर्थ हैं।.

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स्वस्तिक मन्त्र

हिन्दू धर्म का प्रतिक यह चिन्ह हैं और कई पीढ़ियों से इस्तेमाल में हैं। स्वस्तिक मंत्र या स्वस्ति मन्त्र शुभ और शांति के लिए प्रयुक्त होता है। स्वस्ति .

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हयग्रीव

हयग्रीव विष्णु के अवतार थे। जैसा कि नाम से स्पष्ट है उनका सिर घोड़े का था और शरीर मनुष्य का। वे बुद्धि के देवता माने जाते हैं। श्रेणी:विष्णु अवतार श्रेणी:विष्णु en:Hayagriva (Buddhism).

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हरिकृष्ण प्रेमी

हरिकृष्ण प्रेमी सम्पादन (1907-1974) हिन्दी लेखक.

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हल्दी

हल्दी का पौधा: इसके पत्ते बड़े-बड़े होते हैं। हल्दी (टर्मरिक) भारतीय वनस्पति है। यह अदरक की प्रजाति का ५-६ फुट तक बढ़ने वाला पौधा है जिसमें जड़ की गाठों में हल्दी मिलती है। हल्दी को आयुर्वेद में प्राचीन काल से ही एक चमत्कारिक द्रव्य के रूप में मान्यता प्राप्त है। औषधि ग्रंथों में इसे हल्दी के अतिरिक्त हरिद्रा, कुरकुमा लौंगा, वरवर्णिनी, गौरी, क्रिमिघ्ना योशितप्रीया, हट्टविलासनी, हरदल, कुमकुम, टर्मरिक नाम दिए गए हैं। आयुर्वेद में हल्‍दी को एक महत्‍वपूर्ण औषधि‍ कहा गया है। भारतीय रसोई में इसका महत्वपूर्ण स्थान है और धार्मिक रूप से इसको बहुत शुभ समझा जाता है। विवाह में तो हल्दी की रसम का अपना एक विशेष महत्व है।.

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हिन्दू

शब्द हिन्दू किसी भी ऐसे व्यक्ति का उल्लेख करता है जो खुद को सांस्कृतिक रूप से, मानव-जाति के अनुसार या नृवंशतया (एक विशिष्ट संस्कृति का अनुकरण करने वाले एक ही प्रजाति के लोग), या धार्मिक रूप से हिन्दू धर्म से जुड़ा हुआ मानते हैं।Jeffery D. Long (2007), A Vision for Hinduism, IB Tauris,, pages 35-37 यह शब्द ऐतिहासिक रूप से दक्षिण एशिया में स्वदेशी या स्थानीय लोगों के लिए एक भौगोलिक, सांस्कृतिक, और बाद में धार्मिक पहचानकर्ता के रूप में प्रयुक्त किया गया है। हिन्दू शब्द का ऐतिहासिक अर्थ समय के साथ विकसित हुआ है। प्रथम सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व में सिंधु की भूमि के लिए फारसी और ग्रीक संदर्भों के साथ, मध्ययुगीन युग के ग्रंथों के माध्यम से, हिंदू शब्द सिंधु (इंडस) नदी के चारों ओर या उसके पार भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले लोगों के लिए भौगोलिक रूप में, मानव-जाति के अनुसार (नृवंशतया), या सांस्कृतिक पहचानकर्ता के रूप में प्रयुक्त होने लगा था।John Stratton Hawley and Vasudha Narayanan (2006), The Life of Hinduism, University of California Press,, pages 10-11 16 वीं शताब्दी तक, इस शब्द ने उपमहाद्वीप के उन निवासियों का उल्लेख करना शुरू कर दिया, जो कि तुर्किक या मुस्लिम नहीं थे। .

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हिन्दू धर्म

हिन्दू धर्म (संस्कृत: सनातन धर्म) एक धर्म (या, जीवन पद्धति) है जिसके अनुयायी अधिकांशतः भारत,नेपाल और मॉरिशस में बहुमत में हैं। इसे विश्व का प्राचीनतम धर्म कहा जाता है। इसे 'वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म' भी कहते हैं जिसका अर्थ है कि इसकी उत्पत्ति मानव की उत्पत्ति से भी पहले से है। विद्वान लोग हिन्दू धर्म को भारत की विभिन्न संस्कृतियों एवं परम्पराओं का सम्मिश्रण मानते हैं जिसका कोई संस्थापक नहीं है। यह धर्म अपने अन्दर कई अलग-अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय और दर्शन समेटे हुए हैं। अनुयायियों की संख्या के आधार पर ये विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। संख्या के आधार पर इसके अधिकतर उपासक भारत में हैं और प्रतिशत के आधार पर नेपाल में हैं। हालाँकि इसमें कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, लेकिन वास्तव में यह एकेश्वरवादी धर्म है। इसे सनातन धर्म अथवा वैदिक धर्म भी कहते हैं। इण्डोनेशिया में इस धर्म का औपचारिक नाम "हिन्दु आगम" है। हिन्दू केवल एक धर्म या सम्प्रदाय ही नहीं है अपितु जीवन जीने की एक पद्धति है। .

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हिमानी शिवलिंग

अमरनाथ स्थित हिमानी शिवलिंगहिमानी शिवलिंग अमरनाथ की गुफा में हिम से अपने आप बनने वाले शिवलिंग को कहले हैं जिसका भारतीय जीवन में धार्मिक महत्व है और जिसे देखने दूर-दूर से लोग आते हैं। यह शिवलिंग मौसम में बदलाव के अनुसार चंद्रमा की कलाओं के रूप में घटता बढ़ता रहता है और पूर्णिमा के दिन लगभग 10 या 12 फीट की ऊंचाई तक बनता है। हर साल श्रावण पूर्णिमा के दिन जुलाई-अगस्त माह में शिवलिंग अपनी अधिकतम ऊँचाई पाता है और इस दिन संसार भर के श्रद्धालु गुफा में स्थित मंदिर में इकट्ठा होते हैं। अमरनाथ श्रीनगर के पूर्व में १४५ किलोमीटर दूर स्थित है। अमरनाथ गुफा जहां स्थित है वह जगह बर्फ से ढकी घाटी है और समुद्र तल से १३७०० फीट ऊँचाई पर स्थित है। सितंबर से जून तक यह पूरी घाटी बर्फ से ढकी होती है और यहां पहुँचना दुष्कर ही नहीं नामुमकिन होता है। अमरनाथ गुफा लगभग १५० फीट ऊंची और ९० फीट लंबी है। .

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हवन

हवन अथवा यज्ञ भारतीय परंपरा अथवा हिंदू धर्म में शुद्धीकरण का एक कर्मकांड है। कुण्ड में अग्नि के माध्यम से देवता के निकट हवि पहुँचाने की प्रक्रिया को यज्ञ कहते हैं। हवि, हव्य अथवा हविष्य वह पदार्थ हैं जिनकी अग्नि में आहुति दी जाती है (जो अग्नि में डाले जाते हैं).

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हुमायूँ

मिर्जा मुहम्मद हाकिम, पुत्र अकीकेह बेगम, पुत्री बख्शी बानु बेगम, पुत्री बख्तुन्निसा बेगम, पुत्री | --> हुमायूँ एक मुगल शासक था। प्रथम मुग़ल सम्राट बाबर के पुत्र नसीरुद्दीन हुमायूँ (६ मार्च १५०८ – २२ फरवरी, १५५६) थे। यद्यपि उन के पास साम्राज्य बहुत साल तक नही रहा, पर मुग़ल साम्राज्य की नींव में हुमायूँ का योगदान है। बाबर की मृत्यु के पश्चात हुमायूँ ने १५३० में भारत की राजगद्दी संभाली और उनके सौतेले भाई कामरान मिर्ज़ा ने काबुल और लाहौर का शासन ले लिया। बाबर ने मरने से पहले ही इस तरह से राज्य को बाँटा ताकि आगे चल कर दोनों भाइयों में लड़ाई न हो। कामरान आगे जाकर हुमायूँ के कड़े प्रतिद्वंदी बने। हुमायूँ का शासन अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान और उत्तर भारत के हिस्सों पर १५३०-१५४० और फिर १५५५-१५५६ तक रहा। भारत में उन्होने शेरशाह सूरी से हार पायी। १० साल बाद, ईरान साम्राज्य की मदद से वे अपना शासन दोबारा पा सके। इस के साथ ही, मुग़ल दरबार की संस्कृति भी मध्य एशियन से इरानी होती चली गयी। हुमायूँ के बेटे का नाम जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर था। .

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जैन त्योहार

जैन समाज कई त्योहार मनाती है।इनके प्रमुख उत्सव तो अनाधिनिधन (जिसकी ना ही शुरुआत हो और ना ही अंत) होते हैं।पर कुछ पर्व तीर्थंकर,जिनवाणी और गुरुओं के होते हैं। .

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जोधपुर जिला

जोधपुर जिला भारत के राजस्थान राज्य का एक ज़िला है। इसका मुख्यालय जोधपुर नगर में है जो कि राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा नगर है। जोधपुर सूर्य नगरी के नाम से भी जाना जाता है। यह अपनी महान सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक धरोहर के लिये पूरे संसार में मशहूर है। अपने महलों और किलों के कारण यह पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन चुका है। तनावड़ा जोधपुर शहर पश्चिमी राजस्थान का सबसे बड़ा शहर है, इसकी स्थापना राव जोधा ने सन १४५९ में की थी। .

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घेवर

घेवर छप्पन भोग के अन्तर्गत प्रसिद्ध व्यंजन हॅ। यह मैदे से बना, मधुमक्खी के छत्ते की तरह दिखाई देने वाला एक ख़स्ता और मीठा पकवान है। सावन माह की बात हो और उसमें घेवर का नाम ना आए तो कुछ अटपटा लगेगा। घेवर, सावन का विशेष मिष्ठान माना जाता है। हालाँकि अब घेवर की माँग अन्य मिठाइयों के सामने कुछ कम हुई है लेकिन फिर भी आज कुछ लोग घेवर को ही महत्व देते हैं। सावन में तीज के अवसर पर बहन-बेटियों को सिंदारा देने की परंपरा काफी पुरानी है, इसमें चाहे कितना ही अन्य मिष्ठान रख दिया जाए लेकिन घेवर होना अवश्यक होता है। इसलिए साल के विशेष समय पर बनने वाली इस पारंपरिक मिठाई घेवर का वर्चस्व टूटना संभव नहीं है, भले ही आधुनिक मिठाइयों के सामने इसकी लोकप्रियता में कुछ कमी दिखाई देती हो। सावन में इस मिष्ठान की माँग को पूरा करने के लिए छोटे हलवाई से लेकर प्रतिष्ठित हलवाई महिनों पहले काम शुरु कर देते हैं। घेवर बनाने का काम प्रत्येक गली मौहल्ले में जोर-शोर से शुरू हो जाता है। पुराने लोग बताते हैं कि बगैर घेवर के न रक्षाबंधन का सगन पूरा माना जाता है और न ही तीज का। घेवर वैश्वीकरण के दौर में आज घेवर का रूप भी बदलने लगा है, ४० से लेकर २०० रूपये प्रति किलो का घेवर बाजार में उपलब्ध है, जो जैसा दाम लगाता है उसे उसी प्रकार का माल मिल जाता है, सादा घेवर सस्ता है जबकि पिस्ता, बादाम और मावे वाला घेवर मँहगा। पिस्ता बादाम और मावे वाला घेवर ज्यादा प्रचलित हैं, हालाँकि लोगों का कहना है कि जितना आनंद सादा घेवर के सेवन में आता है उतना मेवा-घेवर में कतई नहीं। फिर भी लोग मावा-घेवर को ही खरीदना पसंद करते हैं। कुल मिला कर सावन के महीने में घेवर की खुशबू पूरे बाजार को महका देती है और तीज व रक्षाबंधन के अवसर पर घेवर की दुकानों पर भीड़ देखते ही बनती है। घेवर दो तरह को होता है, फीका और मीठा। ताज़ा घेवर नर्म और ख़स्ता होता है पर यह रखा रखा थोड़ा सख़्त होने लगता है। इस समय फीके घेवर को बेसन में लपेटकर, तलकर मज़ेदार पकौड़े बनाए जाते हैं। मीठे घेवर की पुडिंग बढ़िया बनती है। .

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वन्दे मातरम्

'''वन्दे मातरम्''' के रचयिता बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय वन्दे मातरम् (बाँग्ला: বন্দে মাতরম) अवनीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा बनाया गया भारतमाता का चित्र बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा संस्कृत बाँग्ला मिश्रित भाषा में रचित इस गीत का प्रकाशन सन् १८८२ में उनके उपन्यास आनन्द मठ में अन्तर्निहित गीत के रूप में हुआ था। इस उपन्यास में यह गीत भवानन्द नाम के संन्यासी द्वारा गाया गया है। इसकी धुन यदुनाथ भट्टाचार्य ने बनायी थी। सन् २००३ में, बीबीसी वर्ल्ड सर्विस द्वारा आयोजित एक अन्तरराष्ट्रीय सर्वेक्षण में, जिसमें उस समय तक के सबसे मशहूर दस गीतों का चयन करने के लिये दुनिया भर से लगभग ७,००० गीतों को चुना गया था और बी०बी०सी० के अनुसार १५५ देशों/द्वीप के लोगों ने इसमें मतदान किया था उसमें वन्दे मातरम् शीर्ष के १० गीतों में दूसरे स्थान पर था। .

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वरुण (देव)

वरुण हिन्दू धर्म के एक प्रमुख देवता हैं। प्राचीन वैदिक धर्म में उनका स्थान बहुत ही महत्त्वपूर्ण था पर वेदों में उसका रूप इतना अमूर्त हैं कि उसका प्राकृतिक चित्रण मुश्किल है। माना जाता है कि वरुण की स्थिति अन्य वैदिक देवताओं की अपेक्षा प्राचीन है, इसीलिए वैदिक युग में वरुण किसी प्राकृतिक उपादान का वाचक नहीं है। अग्नि व इंद्र की अपेक्षा वरुण को संबोधित सूक्तों की मात्रा बहुत कम है फिर भी उसका महत्व कम नहीं है। इंद्र को महान योद्धा के रूप में जाना जाता है तो वरुण को नैतिक शक्ति का महान पोषक माना गया है, वह ऋत (सत्य) का पोषक है। अधिकतर सूक्तों में वस्र्ण के प्रति उदात्त भक्ति की भावना दिखाई देती है। ऋग्वेद के अधिकतर सूक्तों में वरुण से किए गए पापों के लिए क्षमा प्रार्थना की गई हैं। वरुण को अन्य देवताओं जैसे इंद्र आदि के साथ भी वर्णित किया गया है। वरुण से संबंधित प्रार्थनाओं में भक्ति भावना की पराकाष्ठा दिखाई देती है। उदाहरण के लिए ऋग्वेद के सातवें मंडल में वस्र्ण के लिए सुंदर प्रार्थना गीत मिलते हैं। उनको "असुर" की उपाधी दी गयी थी, मतलब की वो "देव" देवताओं के समूह से अलग थे। उनके पास जादुई शक्ति मानी जाती थी, जिसका नाम था माया। उनको इतिहासकार मानते हैं कि असुर वरुण ही पारसी धर्म में "अहुरा मज़्दा" कहलाए। बाद की पौराणिक कथाओं में वरुण को मामूली जल-देव बना दिया गया। श्रेणी:हिन्दू धर्म श्रेणी:इन्द्र लोक के देवता.

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व्रत और उपवास

* किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए दिनभर के लिए अन्न या जल या अन्य भोजन या इन सबका त्याग व्रत कहलाता है।.

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गणेश

गणेश शिवजी और पार्वती के पुत्र हैं। उनका वाहन डिंक नामक मूषक है। गणों के स्वामी होने के कारण उनका एक नाम गणपति भी है। ज्योतिष में इनको केतु का देवता माना जाता है और जो भी संसार के साधन हैं, उनके स्वामी श्री गणेशजी हैं। हाथी जैसा सिर होने के कारण उन्हें गजानन भी कहते हैं। गणेश जी का नाम हिन्दू शास्त्रो के अनुसार किसी भी कार्य के लिये पहले पूज्य है। इसलिए इन्हें आदिपूज्य भी कहते है। गणेश कि उपसना करने वाला सम्प्रदाय गाणपतेय कहलाते है। .

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गुरुकुल

अंगूठाकार ऐसे विद्यालय जहाँ विद्यार्थी अपने परिवार से दूर गुरू के परिवार का हिस्सा बनकर शिक्षा प्राप्त करता है। भारत के प्राचीन इतिहास में ऐसे विद्यालयों का बहुत महत्व था। प्रसिद्ध आचार्यों के गुरुकुल के पढ़े हुए छात्रों का सब जगह बहुत सम्मान होता था। राम ने ऋषि वशिष्ठ के यहाँ रह कर शिक्षा प्राप्त की थी। इसी प्रकार पाण्डवों ने ऋषि द्रोण के यहाँ रह कर शिक्षा प्राप्त की थी। प्राचीन भारत में तीन प्रकार की शिक्षा संस्थाएँ थीं-.

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गुरू-पूर्णिमा

एक शिष्य को आशीर्वाद देते गुरुजी आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है। यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की भी रचना की थी। इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। भक्तिकाल के संत घीसादास का भी जन्म इसी दिन हुआ था वे कबीरदास के शिष्य थे। शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार या मूल अज्ञान और रु का का अर्थ किया गया है- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है। अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को 'गुरु' कहा जाता है।.

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गोभिला

सामवेद में गोभिला गृह्यसूत्र का वर्णन है। ऐसा मालूम होता है कि वे सामवेद के रचयिता ऋषियों में से एक थे और सामवेद के गायन व उच्चारण में प्रवीण थे। इस बात का उल्लेख सत्यव्रत की कहानी में मिलता है। अयातोगोभिलोक्तानामम्न्येषां चैव कर्मणाम, अस्पष्टदानाम विधिं सभ्यग दर्शियशिये प्रदीपवत। कत्यायन के कर्मप्रदीप में इसका वर्णन है जिसमे श्राद्धकल्प की विशेषता बतायी गयी है .

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ओडिशा

ओड़िशा, (ओड़िआ: ଓଡ଼ିଶା) जिसे पहले उड़ीसा के नाम से जाना जाता था, भारत के पूर्वी तट पर स्थित एक राज्य है। ओड़िशा उत्तर में झारखंड, उत्तर पूर्व में पश्चिम बंगाल दक्षिण में आंध्र प्रदेश और पश्चिम में छत्तीसगढ से घिरा है तथा पूर्व में बंगाल की खाड़ी है। यह उसी प्राचीन राष्ट्र कलिंग का आधुनिक नाम है जिसपर 261 ईसा पूर्व में मौर्य सम्राट अशोक ने आक्रमण किया था और युद्ध में हुये भयानक रक्तपात से व्यथित हो अंतत: बौद्ध धर्म अंगीकार किया था। आधुनिक ओड़िशा राज्य की स्थापना 1 अप्रैल 1936 को कटक के कनिका पैलेस में भारत के एक राज्य के रूप में हुई थी और इस नये राज्य के अधिकांश नागरिक ओड़िआ भाषी थे। राज्य में 1 अप्रैल को उत्कल दिवस (ओड़िशा दिवस) के रूप में मनाया जाता है। क्षेत्रफल के अनुसार ओड़िशा भारत का नौवां और जनसंख्या के हिसाब से ग्यारहवां सबसे बड़ा राज्य है। ओड़िआ भाषा राज्य की अधिकारिक और सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। भाषाई सर्वेक्षण के अनुसार ओड़िशा की 93.33% जनसंख्या ओड़िआ भाषी है। पाराद्वीप को छोड़कर राज्य की अपेक्षाकृत सपाट तटरेखा (लगभग 480 किमी लंबी) के कारण अच्छे बंदरगाहों का अभाव है। संकीर्ण और अपेक्षाकृत समतल तटीय पट्टी जिसमें महानदी का डेल्टा क्षेत्र शामिल है, राज्य की अधिकांश जनसंख्या का घर है। भौगोलिक लिहाज से इसके उत्तर में छोटानागपुर का पठार है जो अपेक्षाकृत कम उपजाऊ है लेकिन दक्षिण में महानदी, ब्राह्मणी, सालंदी और बैतरणी नदियों का उपजाऊ मैदान है। यह पूरा क्षेत्र मुख्य रूप से चावल उत्पादक क्षेत्र है। राज्य के आंतरिक भाग और कम आबादी वाले पहाड़ी क्षेत्र हैं। 1672 मीटर ऊँचा देवमाली, राज्य का सबसे ऊँचा स्थान है। ओड़िशा में तीव्र चक्रवात आते रहते हैं और सबसे तीव्र चक्रवात उष्णकटिबंधीय चक्रवात 05बी, 1 अक्टूबर 1999 को आया था, जिसके कारण जानमाल का गंभीर नुकसान हुआ और लगभग 10000 लोग मृत्यु का शिकार बन गये। ओड़िशा के संबलपुर के पास स्थित हीराकुंड बांध विश्व का सबसे लंबा मिट्टी का बांध है। ओड़िशा में कई लोकप्रिय पर्यटक स्थल स्थित हैं जिनमें, पुरी, कोणार्क और भुवनेश्वर सबसे प्रमुख हैं और जिन्हें पूर्वी भारत का सुनहरा त्रिकोण पुकारा जाता है। पुरी के जगन्नाथ मंदिर जिसकी रथयात्रा विश्व प्रसिद्ध है और कोणार्क के सूर्य मंदिर को देखने प्रतिवर्ष लाखों पर्यटक आते हैं। ब्रह्मपुर के पास जौगदा में स्थित अशोक का प्रसिद्ध शिलालेख और कटक का बारबाटी किला भारत के पुरातात्विक इतिहास में महत्वपूर्ण हैं। .

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आचार्य

प्राचीन काल में शिक्षा का एक तरीका प्राचीन काल में आचार्य एक शिक्षा संबंधी पद था। उपनयन संस्कार के समय बालक का अभिभावक उसको आचार्य के पास ले जाता था। विद्या के क्षेत्र में आचार्य के पास बिना विद्या, श्रेष्ठता और सफलता की प्राप्ति नहीं होती (आचार्याद्धि विद्या विहिता साधिष्ठं प्रापयतीति।-छांदोग्य 4-9-3)। उच्च कोटि के प्रध्यापकों में आचार्य, गुरु एवं उपाध्याय होते थे, जिनमें आचार्य का स्थान सर्वोत्तम था। मनुस्मृति (2-141) के अनुसार उपाध्याय वह होता था जो वेद का कोई भाग अथवा वेदांग (शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद तथा ज्योतिष) विद्यार्थी को अपनी जीविका के लिए शुल्क लेकर पढ़ाता था। गुरु अथवा आचार्य विद्यार्थी का संस्कार करके उसको अपने पास रखता था तथा उसके संपूर्ण शिक्षण और योगक्षेम की व्यवस्था करता था (मनु: 2-140)। 'आचार्य' शब्द के अर्थ और योग्यता पर सविस्तार विचार किया गया है। निरुक्त (1-4) के अनुसार उसको आचार्य इसलिए कहते हैं कि वह विद्यार्थी से आचारशास्त्रों के अर्थ तथा बुद्धि का आचयन (ग्रहण) कराता है। आपस्तंब धर्मसूत्र (1.1.1.4) के अनुसार उसको आचार्य इसलिए कहा जाता है कि विद्यार्थी उससे धर्म का आचयन करता है। आचार्य का चुनाव बड़े महत्व का होता था। 'वह अंधकार से घोर अंधकार में प्रवेश करता है जिसका अपनयन अविद्वान्‌ करता है। इसलिए कुलीन, विद्यासंपन्न तथा सम्यक्‌ प्रकार से संतुलित बुद्धिवाले व्यक्ति को आचार्य पद के लिए चुनना चाहिए।' (आप.ध.सू. 1.1.1.11-13)। यम (वीरमित्रोदय, भाग 1, पृ. 408) ने आचार्य की योग्यता निम्नलिखित प्रकार से बतलाई है: 'सत्यवाक्‌, धृतिमान्‌, दक्ष, सर्वभूतदयापर, आस्तिक, वेदनिरत तथा शुचियुक्त, वेदाध्ययनसंपन्न, वृत्तिमान्‌, विजितेंद्रिय, दक्ष, उत्साही, यथावृत्त, जीवमात्र से स्नेह रखनेवाला आदि' आचार्य कहलाता है। आचार्य आदर तथा श्रद्धा का पात्र था। श्वेताश्वतरोपनिषद् (6-23) में कहा गया है: जिसकी ईश्वर में परम भक्ति है, जैसे ईश्वर में वैसे ही गुरु में, क्योंकि इनकी कृपा से ही अर्थों का प्रकाश होता है। शरीरिक जन्म देनेवाले पिता से बौद्धिक एवं आध्यात्मिक जन्म देनेवाले आचार्य का स्थान बहुत ऊँचा है (मनुस्मृति 2. 146)। प्राचीन काल में आचार्य एक शिक्षा संबंधी पद था। उपनयन संस्कार के समय बालक का अभिभावक उसको आचार्य के पास ले जाता था। विद्या के क्षेत्र में आचार्य के पास बिना विद्या, श्रेष्ठता और सफलता की प्राप्ति नहीं होती (आचार्याद्धि विद्या विहिता साधिष्ठं प्रापयतीति।-छांदोग्य 4-9-3)। उच्च कोटि के प्रध्यापकों में आचार्य, गुरु एवं उपाध्याय होते थे, जिनमें आचार्य का स्थान सर्वोत्तम था। मनुस्मृति (2-141) के अनुसार उपाध्याय वह होता था जो वेद का कोई भाग अथवा वेदांग (शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद तथा ज्योतिष) विद्यार्थी को अपनी जीविका के लिए शुल्क लेकर पढ़ाता था। गुरु अथवा आचार्य विद्यार्थी का संस्कार करके उसको अपने पास रखता था तथा उसके संपूर्ण शिक्षण और योगक्षेम की व्यवस्था करता था (मनु: 2-140)। 'आचार्य' शब्द के अर्थ और योग्यता पर सविस्तार विचार किया गया है। निरुक्त (1-4) के अनुसार उसको आचार्य इसलिए कहते हैं कि वह विद्यार्थी से आचारशास्त्रों के अर्थ तथा बुद्धि का आचयन (ग्रहण) कराता है। आपस्तंब धर्मसूत्र (1.1.1.4) के अनुसार उसको आचार्य इसलिए कहा जाता है कि विद्यार्थी उससे धर्म का आचयन करता है। आचार्य का चुनाव बड़े महत्व का होता था। 'वह अंधकार से घोर अंधकार में प्रवेश करता है जिसका अपनयन अविद्वान्‌ करता है। इसलिए कुलीन, विद्यासंपन्न तथा सम्यक्‌ प्रकार से संतुलित बुद्धिवाले व्यक्ति को आचार्य पद के लिए चुनना चाहिए।' (आप.ध.सू. 1.1.1.11-13)। यम (वीरमित्रोदय, भाग 1, पृ. 408) ने आचार्य की योग्यता निम्नलिखित प्रकार से बतलाई है: 'सत्यवाक्‌, धृतिमान्‌, दक्ष, सर्वभूतदयापर, आस्तिक, वेदनिरत तथा शुचियुक्त, वेदाध्ययनसंपन्न, वृत्तिमान्‌, विजितेंद्रिय, दक्ष, उत्साही, यथावृत्त, जीवमात्र से स्नेह रखनेवाला आदि' आचार्य कहलाता है। आचार्य आदर तथा श्रद्धा का पात्र था। श्वेताश्वतरोपनिषद् (6-23) में कहा गया है: जिसकी ईश्वर में परम भक्ति है, जैसे ईश्वर में वैसे ही गुरु में, क्योंकि इनकी कृपा से ही अर्थों का प्रकाश होता है। शरीरिक जन्म देनेवाले पिता से बौद्धिक एवं आध्यात्मिक जन्म देनेवाले आचार्य का स्थान बहुत ऊँचा है (मनुस्मृति 2. 146)। .

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आरती

अधिक विकल्पों के लिए यहां जाएं - आरती (बहुविकल्पी) मंदिर में भगवाण की मूर्ति की आरती करता हुआ एक पुजारी आरती हिन्दू उपासना की एक विधि है। इसमें जलती हुई लौ या इसके समान कुछ खास वस्तुओं से आराध्य के सामाने एक विशेष विधि से घुमाई जाती है। ये लौ घी या तेल के दीये की हो सकती है या कपूर की। इसमें वैकल्पिक रूप से, घी, धूप तथा सुगंधित पदार्थों को भी मिलाया जाता है। कई बार इसके साथ संगीत (भजन) तथा नृत्य भी होता है। मंदिरों में इसे प्रातः, सांय एवं रात्रि (शयन) में द्वार के बंद होने से पहले किया जाता है। प्राचीन काल में यह व्यापक पैमाने पर प्रयोग किया जाता था। तमिल भाषा में इसे दीप आराधनई कहते हैं। सामान्यतः पूजा के अंत में आराध्य भगवान की आरती करते हैं। आरती में कई सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है। इन सबका विशेष अर्थ होता है। ऐसी मान्यता है कि न केवल आरती करने, बल्कि इसमें सम्मिलित होने पर भी बहुत पुण्य मिलता है। किसी भी देवता की आरती करते समय उन्हें तीन बार पुष्प अर्पित करने चाहियें। इस बीच ढोल, नगाडे, घड़ियाल आदि भी बजाये जाते हैं।। याहू जागरण- धर्म। मीता जिंदल .

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आशीर्वाद

(संस्कृत.

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इतिहास

बोधिसत्व पद्मपनी, अजंता, भारत। इतिहास(History) का प्रयोग विशेषत: दो अर्थों में किया जाता है। एक है प्राचीन अथवा विगत काल की घटनाएँ और दूसरा उन घटनाओं के विषय में धारणा। इतिहास शब्द (इति + ह + आस; अस् धातु, लिट् लकार अन्य पुरुष तथा एक वचन) का तात्पर्य है "यह निश्चय था"। ग्रीस के लोग इतिहास के लिए "हिस्तरी" (history) शब्द का प्रयोग करते थे। "हिस्तरी" का शाब्दिक अर्थ "बुनना" था। अनुमान होता है कि ज्ञात घटनाओं को व्यवस्थित ढंग से बुनकर ऐसा चित्र उपस्थित करने की कोशिश की जाती थी जो सार्थक और सुसंबद्ध हो। इस प्रकार इतिहास शब्द का अर्थ है - परंपरा से प्राप्त उपाख्यान समूह (जैसे कि लोक कथाएँ), वीरगाथा (जैसे कि महाभारत) या ऐतिहासिक साक्ष्य। इतिहास के अंतर्गत हम जिस विषय का अध्ययन करते हैं उसमें अब तक घटित घटनाओं या उससे संबंध रखनेवाली घटनाओं का कालक्रमानुसार वर्णन होता है। दूसरे शब्दों में मानव की विशिष्ट घटनाओं का नाम ही इतिहास है। या फिर प्राचीनता से नवीनता की ओर आने वाली, मानवजाति से संबंधित घटनाओं का वर्णन इतिहास है।Whitney, W. D. (1889).

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इन्द्र

इन्द्र (या इंद्र) हिन्दू धर्म में सभी देवताओं के राजा का सबसे उच्च पद था जिसकी एक अलग ही चुनाव-पद्धति थी। इस चुनाव पद्धति के विषय में स्पष्ट वर्णन उपलब्ध नहीं है। वैदिक साहित्य में इन्द्र को सर्वोच्च महत्ता प्राप्त है लेकिन पौराणिक साहित्य में इनकी महत्ता निरन्तर क्षीण होती गयी और त्रिदेवों की श्रेष्ठता स्थापित हो गयी। .

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इंद्राणी

इस नाम के अनेक प्रसिद्ध लोग हुए है-.

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कलाई

मानव संरचनाशास्त्र में कलाई, हथेली और बाँह के बीच का जोड़ है। हाथ को चलायमान रखने के लिए इसका बड़ा महत्व है। मज़बूत कलाई वाले टेनिस, बैडमिंटन और क्रिकेट में बाज़ी मार ले जाते हैं। कलाई आधारभूत रूप से दो भागों वाली छोटी हड्डी से बनी होती है जिन्हें कार्पेल कहते हैं। यह जोड़ एक कन्डॉलोइड आर्टिकुलेसन बनाते हैं जो इस जोड़ पर हाथ को ३ डिग्री तक संचालन की सुविधा देते हैं। .

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कुन्ती

Gandhari, blindfolded, supporting Dhrtarashtra and following Kunti when Dhrtarashtra became old and infirm and retired to the forest. A miniature painting from a sixteenth century manuscript of part of the Razmnama कुंती महाभारत में वर्णित पांडव जो कि पाँच थे, में से बङे तीन की माता थीं। कुन्ती पंच-कन्याओं में से एक हैं जिन्हें चिर-कुमारी कहा जाता है। कुन्ती वसुदेव जी की बहन और भगवान श्रीकृष्ण की बुआ थी। महाराज कुन्तिभोज ने कुन्ती को गोद लिया था। ये हस्तिनापुर के नरेश महाराज पांडु की पहली पत्नी थीं। कुंती को कुंआरेपन में महर्षि दुर्वासा ने एक वरदान दिया था जिसमें कुंती किसी भी देवता का आवाहन कर सकती थी और उन देवताओं से संतान प्राप्त कर सकती थी। पाण्डु एवं कुंती ने इस वरदान का प्रयोग किया एवं धर्मराज, वायु एवं इंद्र देवता का आवाहन किया। अर्जुन तीसरे पुत्र थे जो देवताओं के राजा इंद्र से हुए। कुंती का एक नाम पृथा भी था। उधिस्थिर यमराज और कुंती का पुत्र था। भीम वायु और कुंती का पुत्र था। अर्जुन इन्द्र और कुंती का पुत्र था। सहदेव और नकुल अश्विनीकुमार और माद्री का पुत्र था। और अश्विनीकुमार देवो के वेध है। .

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कृष्ण

बाल कृष्ण का लड्डू गोपाल रूप, जिनकी घर घर में पूजा सदियों से की जाती रही है। कृष्ण भारत में अवतरित हुये भगवान विष्णु के ८वें अवतार और हिन्दू धर्म के ईश्वर हैं। कन्हैया, श्याम, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव आदि नामों से भी उनको जाना जाता हैं। कृष्ण निष्काम कर्मयोगी, एक आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ एवं दैवी संपदाओं से सुसज्ज महान पुरुष थे। उनका जन्म द्वापरयुग में हुआ था। उनको इस युग के सर्वश्रेष्ठ पुरुष युगपुरुष या युगावतार का स्थान दिया गया है। कृष्ण के समकालीन महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित श्रीमद्भागवत और महाभारत में कृष्ण का चरित्र विस्तुत रूप से लिखा गया है। भगवद्गीता कृष्ण और अर्जुन का संवाद है जो ग्रंथ आज भी पूरे विश्व में लोकप्रिय है। इस कृति के लिए कृष्ण को जगतगुरु का सम्मान भी दिया जाता है। कृष्ण वसुदेव और देवकी की ८वीं संतान थे। मथुरा के कारावास में उनका जन्म हुआ था और गोकुल में उनका लालन पालन हुआ था। यशोदा और नन्द उनके पालक माता पिता थे। उनका बचपन गोकुल में व्यतित हुआ। बाल्य अवस्था में ही उन्होंने बड़े बड़े कार्य किये जो किसी सामान्य मनुष्य के लिए सम्भव नहीं थे। मथुरा में मामा कंस का वध किया। सौराष्ट्र में द्वारका नगरी की स्थापना की और वहाँ अपना राज्य बसाया। पांडवों की मदद की और विभिन्न आपत्तियों में उनकी रक्षा की। महाभारत के युद्ध में उन्होंने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई और भगवद्गीता का ज्ञान दिया जो उनके जीवन की सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है। १२५ वर्षों के जीवनकाल के बाद उन्होंने अपनी लीला समाप्त की। उनकी मृत्यु के तुरंत बाद ही कलियुग का आरंभ माना जाता है। .

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केरल

केरल (मलयालम: കേരളം, केरळम्) भारत का एक प्रान्त है। इसकी राजधानी तिरुवनन्तपुरम (त्रिवेन्द्रम) है। मलयालम (മലയാളം, मलयाळम्) यहां की मुख्य भाषा है। हिन्दुओं तथा मुसलमानों के अलावा यहां ईसाई भी बड़ी संख्या में रहते हैं। भारत की दक्षिण-पश्चिमी सीमा पर अरब सागर और सह्याद्रि पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य एक खूबसूरत भूभाग स्थित है, जिसे केरल के नाम से जाना जाता है। इस राज्य का क्षेत्रफल 38863 वर्ग किलोमीटर है और यहाँ मलयालम भाषा बोली जाती है। अपनी संस्कृति और भाषा-वैशिष्ट्य के कारण पहचाने जाने वाले भारत के दक्षिण में स्थित चार राज्यों में केरल प्रमुख स्थान रखता है। इसके प्रमुख पड़ोसी राज्य तमिलनाडु और कर्नाटक हैं। पुदुच्चेरी (पांडिचेरि) राज्य का मय्यष़ि (माहि) नाम से जाता जाने वाला भूभाग भी केरल राज्य के अन्तर्गत स्थित है। अरब सागर में स्थित केन्द्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप का भी भाषा और संस्कृति की दृष्टि से केरल के साथ अटूट संबन्ध है। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व केरल में राजाओं की रियासतें थीं। जुलाई 1949 में तिरुवितांकूर और कोच्चिन रियासतों को जोड़कर 'तिरुकोच्चि' राज्य का गठन किया गया। उस समय मलाबार प्रदेश मद्रास राज्य (वर्तमान तमिलनाडु) का एक जिला मात्र था। नवंबर 1956 में तिरुकोच्चि के साथ मलाबार को भी जोड़ा गया और इस तरह वर्तमान केरल की स्थापना हुई। इस प्रकार 'ऐक्य केरलम' के गठन के द्वारा इस भूभाग की जनता की दीर्घकालीन अभिलाषा पूर्ण हुई। * केरल में शिशुओं की मृत्यु दर भारत के राज्यों में सबसे कम है और स्त्रियों की संख्या पुरुषों से अधिक है (2001 की जनगणना के आधार पर)।.

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अभिमन्यु

कोई विवरण नहीं।

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अमरनाथ

अमरनाथ हिन्दुओं का एक प्रमुख तीर्थस्थल है। यह कश्मीर राज्य के श्रीनगर शहर के उत्तर-पूर्व में १३५ सहस्त्रमीटर दूर समुद्रतल से १३,६०० फुट की ऊँचाई पर स्थित है। इस गुफा की लंबाई (भीतर की ओर गहराई) १९ मीटर और चौड़ाई १६ मीटर है। गुफा ११ मीटर ऊँची है। अमरनाथ गुफा भगवान शिव के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। अमरनाथ को तीर्थों का तीर्थ कहा जाता है क्यों कि यहीं पर भगवान शिव ने माँ पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था। यहाँ की प्रमुख विशेषता पवित्र गुफा में बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग का निर्मित होना है। प्राकृतिक हिम से निर्मित होने के कारण इसे स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहते हैं। आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे सावन महीने में होने वाले पवित्र हिमलिंग दर्शन के लिए लाखों लोग यहां आते हैं। गुफा की परिधि लगभग डेढ़ सौ फुट है और इसमें ऊपर से बर्फ के पानी की बूँदें जगह-जगह टपकती रहती हैं। यहीं पर एक ऐसी जगह है, जिसमें टपकने वाली हिम बूँदों से लगभग दस फुट लंबा शिवलिंग बनता है। चन्द्रमा के घटने-बढ़ने के साथ-साथ इस बर्फ का आकार भी घटता-बढ़ता रहता है। श्रावण पूर्णिमा को यह अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा होता जाता है। आश्चर्य की बात यही है कि यह शिवलिंग ठोस बर्फ का बना होता है, जबकि गुफा में आमतौर पर कच्ची बर्फ ही होती है जो हाथ में लेते ही भुरभुरा जाए। मूल अमरनाथ शिवलिंग से कई फुट दूर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही अलग अलग हिमखंड हैं। .

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अरुंधती

सन्ध्या ब्रह्मा की मानस पुत्री थी जो तपस्या के बल पर अगले जन्म में अरुन्धती के रूप में महर्षि वसिष्ठ की पत्‍‌नी बनी। वह तपस्या करने के लिये चन्द्रभाग पर्वत के बृहल्लोहित नामक सरोवर के पास सद्गुरु की खोज में घूम रही थी। सन्ध्या की जिज्ञासा देखकर महर्षि वसिष्ठ वहाँ प्रकट हुए और सन्ध्या से पूछा- कल्याणी! तुम इस घोर जंगल में कैसे विचर रही हो, तुम किसकी कन्या हो और क्या करना चाहती हो? सन्ध्या कहने लगी- भगवन्! मैं तपस्या करने के लिये इस सूने जंगल में आयी हूँ। अब तक मैं बहुत उद्विगन् हो रही थी कि कैसे तपस्या करूँ, मुझे तपस्या मार्ग मालूम नहीं है। परन्तु अब आपको देखकर मुझे बडी शान्ति मिली है। वसिष्ठ जी ने कहा- तुम एकमात्र परम ज्योतिस्वरूप, धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष के दाता भगवान विष्णु की आराधना करके ही अपना अभीष्ट प्राप्त कर सकती हो। सूर्यमण्डल में शंख-चक्र-गदाधारी चतुर्भुज वनमाली भगवान विष्णु का ध्यान करके ॐ नमो वासुदेवाय ॐ इस मन्त्र का जप करो और मौन रहकर तपस्या करो। पहले छ: दिन तक कुछ भी भोजन मत करना, केवल तीसरे दिन रात्रि में एवं छठे दिन रात्रि में कुछ पत्ते खाकर जल पी लेना। उसके पश्चात् तीन दिन तक निर्जल उपवास करना और फिर रात्रि में भी पानी मत पीना। भगवान तुम पर प्रसन्न होंगे और शीघ्र ही तुम्हारी अभिलाषा पूर्ण करेंगे। इस प्रकार उपदेश करके महर्षि वसिष्ठ अन्तर्धान हो गये और वह भी तपस्या की पद्धति जानकर बडे आनन्द के साथ भगवान की पूजा करने लगी। इस प्रकार बराबर चार युग तक उसकी तपस्या चलती रही। भगवान् विष्णु उसकी भावना के अनुसार रूप धारण करके उसकी आँखों के सामने प्रकट हुए। गरुडपर सवार अपने प्रभु की मनोहर छवि देखकर वह सम्भ्रम के साथ उठ खडी हुई और क्या कहूँ? क्या करूँ? इस चिन्ता में पड गयी। उसकी स्तुति करने की इच्छा जानकर भगवान ने उसे दिव्य ज्ञान, दिव्य दृष्टि एवं दिव्य वाणी प्रदान की। अब वह भगवान की स्तुति करने लगी। स्तुति करते-करते वह भगवान के चरणों पर गिर पडी। भगवान को बडी दया आयी और उन्होंने अमृतवर्षिणी दृष्टि से उसे हृष्ट-पुष्ट कर दिया तथा वर माँगने को कहा। सन्ध्या ने कहा- भगवन्! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपा करके पहला वर तो यह दें कि संसार में पैदा होते ही किसी प्राणी के मन में काम के विकार का उदय न हो, दूसरा वर यह दीजिये कि मेरा पातिव्रत्य अखण्ड रहे और तीसरा यह कि मेरे भगवत्स्वरूप पति के अतिरिक्त और कहीं भी मेरी सकाम दृष्टि न हो। जो पुरुष मुझे सकाम दृष्टि से देखे वह पुरुषत्वहीन अर्थात नपुंसक हो जाये। भगवान ने कहा कि चार अवस्थाएँ होती हैं-बाल्य, कौमार्य, यौवन और बुढापा। इनमें तीसरी अवस्था अथवा दूसरी अवस्था के अन्त में लोगों में काम उत्पन्न होगा। तुम्हारी तपस्या के प्रभाव से आज मैंने यह मर्यादा बना दी कि पैदा होते ही कोई प्राणी कामयुक्त नहीं होगा। त्रिलोकी में तुम्हारे सतीत्व की ख्याति होगी अैार तुम्हारे पति के अतिरिक्त जो भी तुम्हें सकाम दृष्टि से देखेगा वह तुरन्त नपुंसक हो जायगा। तुम्हारे पति बडे भाग्यवान्, तपस्वी, सुन्दर और तुम्हारे साथ ही सात कल्पतक जीवित रहनेवाले होंगे। तुमने मुझसे जो वर माँगे थे वे दे दिये। अब जो तुम्हारे मन में बात है वह बताता हूँ। तुमने पहले आग में जलकर शरीर त्याग करने की प्रतिज्ञा की थी सो यहीं चन्द्रभागा नदी के किनारे महर्षि मेधातिथि बारह वर्ष का यज्ञ कर रहे हैं, उसी में जाकर शीघ्र ही अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो, वहाँ ऐसे वेश से जाओ कि मुनिलोग तुम्हें देख न सकें। मेरी कृपा से तुम अगिन्देव की पुत्री हो जाओगी। जिसे तुम पति बनाना चाहती हो, मन से उसका चिन्तन करते-करते अपना शरीर त्याग करो। यह कहकर भगवान ने अपने करकमलों से सन्ध्या के शरीर का स्पर्श किया और तुरन्त ही उसका शरीर पुरोडाश (यज्ञ का हविष्य) बन गया। इसके बाद सन्ध्या अदृश्य होकर उस यज्ञमण्डप में गयी। भगवान की कृपा से उस समय उसने अपने मन में मूर्तिमान् ब्रह्मचर्य और तपश्चर्या के उपदेशक वसिष्ठ को पति के रूप में वरण किया और उन्हीं का चिन्तन करते-करते अपने पुरोडाशमय शरीर को अगिन्देव को समर्पित कर दिया। अगिन्देव ने भगवान की आज्ञा से उसके शरीर को जलाकर सूर्यमण्डल में प्रविष्ट कर दिया। सूर्य ने उसके शरीर के दो भाग करके अपने रथ पर देवता और पितरों की प्रसन्नता के लिये स्थापित कर लिया। उसके शरीर का ऊपरी भाग जो दिन का प्रारम्भ यानी प्रात:काल है, उसका नाम प्रात:सन्ध्या और शेषभाग दिन का अन्त सायं सन्ध्या हुआ और भगवान ने उसके प्राण को दिव्य शरीर और अन्त:करण को शरीरी बनाकर मेधातिथि के यज्ञीय अगिन् में स्थापित कर दिया। इसके पश्चात् मेधातिथि ने यज्ञ के अन्त में उस स्वर्ण के समान सुन्दरी सन्ध्या को पुत्री के रूप में प्राप्त किया। उस समय यज्ञीय अ‌र्घ्यजल में स्नान कराकर वात्सल्य स्नेह से परिपूर्ण और आनन्दित होकर उसे गोद में उठा लिया और उसका नाम अरुन्धती रखा। अरुन्धती चन्द्रभागा तट पर स्थित तापसारण्य नामक आश्रम में पलने लगी। पाँचवें वर्ष में पदार्पण करने पर ही उसके सद्गुणों से सम्पूर्ण तापसारण्य पवित्र हो गया। एक दिन अरुन्धती चन्द्रभागा के जल में स्नान करके अपने पिता मेधातिथि के पास ही खेल रही थी, स्वयं ब्रह्माजी पधारे और उसके पिता से कहा कि अब अरुन्धती को शिक्षा देने का समय आ गया है, इसलिये इसे अब सती साध्वी स्त्रियों के पास रखकर शिक्षा दिलवानी चाहिये; क्योंकि कन्या की शिक्षा पुरुषों द्वारा नहीं होनी चाहिये। स्त्री ही स्त्रियों को शिक्षा दे सकती है; किन्तु तुम्हारे पास तो कोई स्त्री नहीं है, अतएव तुम अपनी कन्या को बहुला और सावित्री के पास रख दो। तुम्हारी कन्या उनके पास रहकर शीघ्र ही महागुणवती हो जायगी। मेधातिथि ने उनकी आज्ञा शिरोधार्य की और उनके जाने पर अरुन्धती को लेकर सूर्यलोक में गये। वहाँ उन्होंने सूर्यमण्डल में स्थित पद्मासनासीन सावित्रीदेवी का दर्शन किया। उस समय बहुला मानस पर्वत पर जा रही थी, इसलिये सावित्रीदेवी भी सूर्यमण्डल से निकलकर वहीं के लिये चल पडी। बात यह थी कि प्रतिदिन वहाँ सावित्री, गायत्री, बहुला, सरस्वती एवं द्रुपदा एकत्रित होकर धर्मचर्चा करती थी और लोक-कल्याणकारी कामना किया करती थी। महर्षि मेधातिथि ने उन माताओं को पृथक्-पृथक् प्रणाम किया और सबको सम्बोधन करके कहा कि यह मेरी यशस्विनी कन्या है। यहीं इसके उपदेश का समय है। इसी से मैं इसे लेकर यहाँ आया हूँ। ब्रह्मा ने ऐसी ही आज्ञा की है। अब यह आपके पास ही रहेगी। माता सावित्री और बहुला आप दोनों इसे ऐसी शिक्षा दें कि यह सच्चरित्र हो। उन दोनों ने कहा- महर्षे! भगवान विष्णु की कृपा से तुम्हारी कन्या पहले से ही सच्चरित्र हो चुकी है; किन्तु ब्रह्मा की आज्ञा के कारण हम इसे अपने पास रख लेती हैं। यह पूर्वजन्म में ब्रह्मा की कन्या थी। तुम्हारे तपोबल से और भगवान की कृपा से यह तुम्हारी पुत्री हुई है। अरुन्धती कभी सावित्री के साथ सूर्य के घर जाती तो कभी बहुला के साथ इन्द्र के घर जाती। स्त्रीधर्म की शिक्षा प्राप्त करके वह अपनी शिक्षिका सावित्री और बहुला से भी श्रेष्ठ हो गयी। एक दिन मानस पर्वत पर विचरण करते-करते अरुन्धती मूर्तिमान् ब्रह्मचर्य महर्षि वसिष्ठ को देखा। उनके मुखमण्डल से प्रकाश की किरणें निकल रही थीं। अरुन्धती इस रूप पर मुग्ध हो गई। जगन्माता सावित्री को इस बात का पता लगा। इसके बाद मेधातिथि ने महर्षि वसिष्ठ से इस कन्या को पत्‍‌नी के रूप में स्वीकार करने का निवेदन किया। विवाह के अवसर पर ब्रह्मा, विष्णु आदि के द्वारा स्नान कराते समय जो जलधाराएँ गिरी थीं, वही गोमती, सरयू, सिप्रा, महानदी आदि सात नदियों के रूप में हो गयीं, जिनके दर्शन, स्पर्श, स्नान और पान से सारे संसार का कल्याण होता है। विवाह के पश्चात् वसिष्ठजी अपनी धर्मपत्‍‌नी के साथ विमान पर सवार होकर देवताओं के बतलाये हुए स्थान पर चले गये। वे जब जहाँ जिस रूप में रहकर तपस्या करते हुए संसार के कल्याण में संलगन् रहते हैं, तब तहाँ उन्हीं के अनुरूप वेश में रहकर अरुन्धती उनकी सेवा किया करती हैं। आज भी वह सप्तर्षि मंडल में स्थित वसिष्ठ के पास ही दीखती हैं। श्रेणी:हिन्दू ऋषि श्रेणी:सप्तर्षि श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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उत्तर प्रदेश

आगरा और अवध संयुक्त प्रांत 1903 उत्तर प्रदेश सरकार का राजचिन्ह उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा (जनसंख्या के आधार पर) राज्य है। लखनऊ प्रदेश की प्रशासनिक व विधायिक राजधानी है और इलाहाबाद न्यायिक राजधानी है। आगरा, अयोध्या, कानपुर, झाँसी, बरेली, मेरठ, वाराणसी, गोरखपुर, मथुरा, मुरादाबाद तथा आज़मगढ़ प्रदेश के अन्य महत्त्वपूर्ण शहर हैं। राज्य के उत्तर में उत्तराखण्ड तथा हिमाचल प्रदेश, पश्चिम में हरियाणा, दिल्ली तथा राजस्थान, दक्षिण में मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ और पूर्व में बिहार तथा झारखंड राज्य स्थित हैं। इनके अतिरिक्त राज्य की की पूर्वोत्तर दिशा में नेपाल देश है। सन २००० में भारतीय संसद ने उत्तर प्रदेश के उत्तर पश्चिमी (मुख्यतः पहाड़ी) भाग से उत्तरांचल (वर्तमान में उत्तराखंड) राज्य का निर्माण किया। उत्तर प्रदेश का अधिकतर हिस्सा सघन आबादी वाले गंगा और यमुना। विश्व में केवल पाँच राष्ट्र चीन, स्वयं भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, इंडोनिशिया और ब्राज़ील की जनसंख्या उत्तर प्रदेश की जनसंख्या से अधिक है। उत्तर प्रदेश भारत के उत्तर में स्थित है। यह राज्य उत्तर में नेपाल व उत्तराखण्ड, दक्षिण में मध्य प्रदेश, पश्चिम में हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान तथा पूर्व में बिहार तथा दक्षिण-पूर्व में झारखण्ड व छत्तीसगढ़ से घिरा हुआ है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ है। यह राज्य २,३८,५६६ वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यहाँ का मुख्य न्यायालय इलाहाबाद में है। कानपुर, झाँसी, बाँदा, हमीरपुर, चित्रकूट, जालौन, महोबा, ललितपुर, लखीमपुर खीरी, वाराणसी, इलाहाबाद, मेरठ, गोरखपुर, नोएडा, मथुरा, मुरादाबाद, गाजियाबाद, अलीगढ़, सुल्तानपुर, फैजाबाद, बरेली, आज़मगढ़, मुज़फ्फरनगर, सहारनपुर यहाँ के मुख्य शहर हैं। .

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उत्तराखण्ड

उत्तराखण्ड (पूर्व नाम उत्तरांचल), उत्तर भारत में स्थित एक राज्य है जिसका निर्माण ९ नवम्बर २००० को कई वर्षों के आन्दोलन के पश्चात भारत गणराज्य के सत्ताइसवें राज्य के रूप में किया गया था। सन २००० से २००६ तक यह उत्तरांचल के नाम से जाना जाता था। जनवरी २००७ में स्थानीय लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए राज्य का आधिकारिक नाम बदलकर उत्तराखण्ड कर दिया गया। राज्य की सीमाएँ उत्तर में तिब्बत और पूर्व में नेपाल से लगी हैं। पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण में उत्तर प्रदेश इसकी सीमा से लगे राज्य हैं। सन २००० में अपने गठन से पूर्व यह उत्तर प्रदेश का एक भाग था। पारम्परिक हिन्दू ग्रन्थों और प्राचीन साहित्य में इस क्षेत्र का उल्लेख उत्तराखण्ड के रूप में किया गया है। हिन्दी और संस्कृत में उत्तराखण्ड का अर्थ उत्तरी क्षेत्र या भाग होता है। राज्य में हिन्दू धर्म की पवित्रतम और भारत की सबसे बड़ी नदियों गंगा और यमुना के उद्गम स्थल क्रमशः गंगोत्री और यमुनोत्री तथा इनके तटों पर बसे वैदिक संस्कृति के कई महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थान हैं। देहरादून, उत्तराखण्ड की अन्तरिम राजधानी होने के साथ इस राज्य का सबसे बड़ा नगर है। गैरसैण नामक एक छोटे से कस्बे को इसकी भौगोलिक स्थिति को देखते हुए भविष्य की राजधानी के रूप में प्रस्तावित किया गया है किन्तु विवादों और संसाधनों के अभाव के चलते अभी भी देहरादून अस्थाई राजधानी बना हुआ है। राज्य का उच्च न्यायालय नैनीताल में है। राज्य सरकार ने हाल ही में हस्तशिल्प और हथकरघा उद्योगों को बढ़ावा देने के लिये कुछ पहल की हैं। साथ ही बढ़ते पर्यटन व्यापार तथा उच्च तकनीकी वाले उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए आकर्षक कर योजनायें प्रस्तुत की हैं। राज्य में कुछ विवादास्पद किन्तु वृहत बाँध परियोजनाएँ भी हैं जिनकी पूरे देश में कई बार आलोचनाएँ भी की जाती रही हैं, जिनमें विशेष है भागीरथी-भीलांगना नदियों पर बनने वाली टिहरी बाँध परियोजना। इस परियोजना की कल्पना १९५३ मे की गई थी और यह अन्ततः २००७ में बनकर तैयार हुआ। उत्तराखण्ड, चिपको आन्दोलन के जन्मस्थान के नाम से भी जाना जाता है। .

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उपहार

क्रिसमस के उपहारकिसी को प्रसन्न करने के लिए धन, वस्त्र या उसके काम या पसंद की वस्तु, जो बिना किसी अपेक्षा के प्रदान की जाती हे, उपहार कहलाती है। उपहार मन की खुशी को प्रकट करने के लिए या किसी को सम्मानित करने के लिए भी दिए जाते हैं इनके बदले में किसी धन की अपेक्षा नहीं की जाती है। हांलांकि यह अपेक्षा अंतर्निहित हो सकती है कि जिसको उपहार दिया गया है वह अपना प्रेम और कृपा देने वाले पर बनाए रखेगा। श्रेणी:संस्कृति.

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१३ अगस्त

13 अगस्त ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 225वॉ (लीप वर्ष में 226 वॉ) दिन है। साल में अभी और 140 दिन बाकी है। .

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१६ अगस्त

१६ अगस्त ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का २२८वॉ (लीप वर्ष मे २२९वॉ) दिन है। साल मे अभी और १३७ दिन बाकी है। .

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१७ अगस्त

१७ अगस्त ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का २२९वाँ (लीप वर्ष मे २३०वाँ) दिन है। वर्ष मे अभी और १३६ दिन बाकी है। .

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१९०५

1905 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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२ अगस्त

2 अगस्त ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 214वॉ (लीप वर्ष में 215 वॉ) दिन है। साल में अभी और 151 दिन बाकी है। चाईरोनिया की लड़ाई, 338 BC- 2 अगस्त में होता है। .

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२००७

वर्ष २००७ सोमवार से प्रारम्भ होने वाला ग्रेगोरी कैलंडर का सामान्य वर्ष है। .

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२३ अगस्त

23 अगस्त ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 235वॉ (लीप वर्ष में 236 वॉ) दिन है। साल में अभी और 130 दिन बाकी है। .

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२४ जुलाई

२४ जुलाई ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का २०५वॉ (लीप वर्ष में २०६ वॉ) दिन है। साल में अभी और १६० दिन बाकी है। .

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२४ अगस्त

24 अगस्त ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 236वॉ (लीप वर्ष में 237 वॉ) दिन है। साल में अभी और 129 दिन बाकी है। .

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२५ जुलाई

२५ जुलाई ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का २०६वॉ (लीप वर्ष में २०७ वॉ) दिन है। साल में अभी और १५९ दिन बाकी है। .

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