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यांत्रिकी तथा द्रव्यगुण

सूची यांत्रिकी तथा द्रव्यगुण

यांत्रिकी तथा द्रव्यगुण यांत्रिकी में द्रव्यपिंडों की गति का अध्ययन किया जाता है। यह गति समूचे पिंड की भी हो सकती है और आंतरिक भी। भौतिकी की इस शाखा का बहुत महत्व है और इसके सिद्धांत भौतिकी के प्रत्येक विभाग मे, विशेषतया अभियान्त्रिकी (इंजीनियरिंग) और शिल्पविज्ञान में, प्रयुक्त होते हैं। इसके मूल में जो सिद्धांत लागू हाते हैं, उनको सर्वप्रथम न्यूटन ने प्रतिपादित किया था। लैग्रेंज, हैमिल्टन आदि वैज्ञानिकों ने इन नियमों को गंभीर गणितीय रूप देकर जटिल समस्याएँ हल करने योग्य बनाया। मूल समीकरणों द्वारा ऊर्जा संवेग (momentum), कोणीय संवेग इत्यादि, नवीन राशियों की कल्पना की गई। इस विज्ञान के मुख्य नियम ऊर्जा संरक्षण, संवेग संरक्षण तथा कोणीय संवेग संरक्षण हैं। सिद्धांत रूप से ज्ञात बलों के अधीन किसी भी पिंड की गति का पूरा विश्लेषण किया जा सकता है। द्रव्य गुण शाखा में द्रव्य की तीनों अवस्थाओं ठोस, द्रव, तथा गैस के गुणों की विवेचना की जाती है। इन गुणों के आपसी संबंधों की भी चर्चा की जाती है और इनसे संबंधित आँकड़े ज्ञात किए जाते हैं। कुछ गुण जिनका अध्ययन किया जाता है, ये हैं घनत्व, प्रत्यास्थता गुणांक, श्यानता, पृष्ठतनाव, गुरुत्वाकर्षण गुणांक इत्यादि। श्रेणी:भौतिकी.

15 संबंधों: ऊर्जा संरक्षण, ठोस, द्रव, न्यूटन (इकाई), प्रत्यास्थता, भौतिक शास्त्र, यांत्रिकी, श्यानता, संवेग, संवेग संरक्षण, घनत्व, गति (भौतिकी), गुरुत्वाकर्षण, गैस, कोणीय संवेग

ऊर्जा संरक्षण

किसी काम को करने के लिए ऐसी विधि या प्रक्रम का पालन करना कि वह काम पूरा होने में कम ऊर्जा लगे, इसे ही ऊर्जा संरक्षण करना कहते हैं। उदाहरण के लिए आप यदि कार से हर दिन आना जाना कर रहे हैं और यदि आप उसके स्थान पर साइकल का उपयोग करें तो उससे कार में लगने वाले ईंधन की बचत होगी और आपने उस ऊर्जा का उपयोग न कर उसका संरक्षण किया। .

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ठोस

ठोस (solid) पदार्थ की एक अवस्था है, जिसकी पहचान पदार्थ की संरचनात्मक दृढ़ता और विकृति (आकार, आयतन और स्वरूप में परिवर्तन) के प्रति प्रत्यक्ष अवरोध के गुण के आधार पर की जाती है। ठोस पदार्थों में उच्च यंग मापांक और अपरूपता मापांक होते है। इसके विपरीत, ज्यादातर तरल पदार्थ निम्न अपरूपता मापांक वाले होते हैं और श्यानता का प्रदर्शन करते हैं। भौतिक विज्ञान की जिस शाखा में ठोस का अध्ययन करते हैं, उसे ठोस-अवस्था भौतिकी कहते हैं। पदार्थ विज्ञान में ठोस पदार्थों के भौतिक और रासायनिक गुणों और उनके अनुप्रयोग का अध्ययन करते हैं। ठोस-अवस्था रसायन में पदार्थों के संश्लेषण, उनकी पहचान और रासायनिक संघटन का अध्ययन किया जाता है। .

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द्रव

द्रव का कोई निश्चित आकार नहीं होता। द्रव जिस पात्र में रखा जाता है उसी का आकार ग्रहण कर लेता है। प्रकृति में सभी रासायनिक पदार्थ साधारणत: ठोस, द्रव और गैस तथा प्लाज्मा - इन चार अवस्थाओं में पाए जाते हैं। द्रव और गैस प्रवाहित हो सकते हैं, किंतु ठोस प्रवाहित नहीं होता। लचीले ठोस पदार्थों में आयतन अथवा आकार को विकृत करने से प्रतिबल उत्पन्न होता है। अल्प विकृतियों के लिए विकृति और प्रतिबल परस्पर समानुपाती होते हैं। इस गुण के कारण लचीले ठोस एक निश्चित मान तक के बाहरी बलों को सँभालने की क्षमता रखते हैं। प्रवाह का गुण होने के कारण द्रवों और गैसों को तरल पदार्थ (fluid) कहा जाता है। ये पदार्थ कर्तन (shear) बलों को सँभालने में अक्षम होते हैं और गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव के कारण प्रवाहित होकर जिस बरतन में रखे रहते हैं, उसी का आकार धारण कर लेते हैं। ठोस और तरल का यांत्रिक भेद बहुत स्पष्ट नहीं है। बहुत से पदार्थ, विशेषत: उच्च कोटि के बहुलक (polymer) के यांत्रिक गुण, श्यान तरल (viscous fluid) और लचीले ठोस के गुणों के मध्यवर्ती होते हैं। प्रत्येक पदार्थ के लिए एक ऐसा क्रांतिक ताप (critical temperature) पाया जाता है, जिससे अधिक होने पर पदार्थ केवल तरल अवस्था में रह सकता है। क्रांतिक ताप पर पदार्थ की द्रव और गैस अवस्था में विशेष अंतर नहीं रह जाता। इससे नीचे के प्रत्येक ताप पर द्रव के साथ उसका कुछ वाष्प भी उपस्थित रहता है और इस वाष्प का कुछ निश्चित दबाव भी होता है। इस दबाव को वाष्प दबाव कहते हैं। प्रत्येक ताप पर वाष्प दबाव का अधिकतम मान निश्चित होता है। इस अधिकतम दबाव को संपृक्त-वाष्प-दबाव के बराबर अथवा उससे अधिक हो, तो द्रव स्थायी रहता है। यदि ऊपरी दबाव द्रव के संपृक्तवाष्प-दबाव से कम हो, तो द्रव अस्थायी होता है। संपृक्त-वाष्प-दबाव ताप के बढ़ने से बढ़ता है। जिस ताप पर द्रव का संपृक्त-वाष्प-दबाव बाहरी वातावरण के दबाव के बराबर हो जाता है, उसपर द्रव बहुत तेजी से वाष्पित होने लगता है। इस ताप को द्रव का क्वथनांक (boiling point) कहते हैं। यदि बाहरी दबाव सर्वथा स्थायी हो तो क्वथनांक से नीचे द्रव स्थायी रहता है। क्वथनांक पर पहुँचने पर यह खौलने लगता है। इस दशा में यह ताप का शोषण करके द्रव अवस्था से गैस अवस्था में परिवर्तित होने लगता है। क्वथनांक पर द्रव के इकाई द्रव्यमान को द्रव से पूर्णत: गैस में परिवर्तित करने के लिए जितने कैलोरी ऊष्मा की आवश्यकता होती है, उसे द्रव के वाष्पीभवन की गुप्त ऊष्मा कहते हैं। विभिन्न द्रव पदार्थों के लिए इसका मान भिन्न होता है। एक नियत दबाव पर ठोस और द्रव दोनों रूप साथ साथ एक निश्चित ताप पर पाए जा सकते हैं। यह ताप द्रव का हिमबिंदु या ठोस का द्रवणांक कहलाता है। द्रवणांक पर पदार्थ के इकाई द्रव्यमान को ठोस से पूर्णत: द्रव में परिवर्तित करने में जितनी ऊष्मा की आवश्यकता होती है, उसे ठोस के गलन की गुप्त ऊष्मा कहते हैं। अक्रिस्टली पदार्थों के लिए कोई नियत गलनांक नहीं पाया जाता। वे गरम करने पर धीरे धीरे मुलायम होते जाते हैं और फिर द्रव अवस्था में आ जाते हैं। काँच तथा काँच जैसे अन्य पदार्थ इसी प्रकार का व्यवहार करते हैं। एक नियत ताप और नियत दबाव पर प्रत्येक द्रव्य की तीनों अवस्थाएँ एक साथ विद्यमान रह सकती हैं। दबाव और ताप के बीच खीचें गए आरेख (diagram) में ये नियत ताप और दबाव एक बिंदु द्वारा प्रदर्शित किए जाते हैं। इस बिंदु को द्रव का त्रिक् बिंदु (triple point) कहते हैं। त्रिक् विंदु की अपेक्षा निम्न दाबों पर द्रव अस्थायी रहता है। यदि किसी ठोस को त्रिक् विंदु की अपेक्षा निम्न दबाव पर रखकर गरम किया जाए तो वह बिना द्रव बने ही वाष्प में परिवर्तित हो जाता है, अर्थात् ऊर्ध्वपातित (sublime) हो जाता है। द्रव के मुक्त तल में, जो उस द्रव के वाष्प या सामान्य वायु के संपर्क में रहता है, एक विशेष गुण पाया जाता है, जिसके कारण यह तल तनी हुई महीन झिल्ली जैसा व्यवहार करता है। इस गुण को पृष्ठ तनाव (surface tension) कहते हैं। पृष्ठ तनाव के कारण द्रव के पृष्ठ का क्षेत्रफल यथासंभव न्यूनतम होता है। किसी दिए आयतन के लिए सबसे कम क्षेत्रफल एक गोले का होता है। अत: ऐसी स्थितियों में जब कि बाहरी बल नगण्य माने जा सकते हों द्रव की बूँदे गोल होती हैं। जब कोई द्रव किसी ठोस, या अन्य किसी अमिश्रय द्रव, के संपर्क में आता है तो भी संपर्क तल पर तनाव उत्पन्न होता है। साधारणत: कोई भी पदार्थ केवल एक ही प्रकार के द्रव रूप में प्राप्त होता है, किंतु इसके कुछ अपवाद भी मिलते हैं, जैसे हीलियम गैस को द्रवित करके दो प्रकार के हीलियम द्रव प्राप्त किए जा सकते हैं। उसी प्रकार पैरा-ऐज़ॉक्सी-ऐनिसोल (Para-azoxy-anisole) प्रकाशत: विषमदैशिक (anisotropic) द्रव के रूप में, क्रिस्टलीय अवस्था में तथा सामान्य द्रव के रूप में भी प्राप्त हो सकता है। .

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न्यूटन (इकाई)

न्यूटन का प्रयोग इन अर्थों में किया जाता है.

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प्रत्यास्थता

यांत्रिकी में प्रत्यास्थता (elasticity) पदार्थों के उस गुण को कहते हैं जिसके कारण उस पर वाह्य बल लगाने पर उसमें विकृति (deformation) आती है परन्तु बल हटाने पर वह अपनी मूल स्थिति में आ जाता है। यदि वाह्यबल के परिमाण को धीरे-धीरे बढ़ाया जाय तो विकृति समान रूप से बढ़ती जाती है, साथ ही साथ आंतरिक प्रतिरोध भी बढ़ता जाता है। किन्तु किसी पदार्थ पर एक सीमा से अधिक बल लगाया जाय तो उस वाह्य बल को हटा लेने के बाद भी पदार्थ पूर्णत: अपनी मूल अवस्था में नहीं लौट पाता; बल्कि उसमें एक स्थायी विकृति शेष रह जाती है। पदार्थ की इसी सीमा को प्रत्यास्थता सीमा (Limit of elasticity या Elastic limit) कहते हैं। आंकिक रूप से स्थायी परिवर्तन लानेवाला, इकाई क्षेत्र पर लगनेवाला, न्यूनतम बल ही "प्रत्यास्थता सीमा" (Elastic limit) कहलाता है। प्रत्यास्थता की सीमा पार चुके पदार्थ को सुघट्य (Plastic) कहते हैं। प्रत्यास्थता सीमा के भीतर, विकृति वस्तु में कार्य करनेवाले प्रतिबल की समानुपाती होती है। यह एक प्रायोगिक तथ्य है एवं हुक के नियम (Hooke's law of elasticity) के नाम से विख्यात है। .

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भौतिक शास्त्र

भौतिकी के अन्तर्गत बहुत से प्राकृतिक विज्ञान आते हैं भौतिक शास्त्र अथवा भौतिकी, प्रकृति विज्ञान की एक विशाल शाखा है। भौतिकी को परिभाषित करना कठिन है। कुछ विद्वानों के मतानुसार यह ऊर्जा विषयक विज्ञान है और इसमें ऊर्जा के रूपांतरण तथा उसके द्रव्य संबन्धों की विवेचना की जाती है। इसके द्वारा प्राकृत जगत और उसकी आन्तरिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। स्थान, काल, गति, द्रव्य, विद्युत, प्रकाश, ऊष्मा तथा ध्वनि इत्यादि अनेक विषय इसकी परिधि में आते हैं। यह विज्ञान का एक प्रमुख विभाग है। इसके सिद्धांत समूचे विज्ञान में मान्य हैं और विज्ञान के प्रत्येक अंग में लागू होते हैं। इसका क्षेत्र विस्तृत है और इसकी सीमा निर्धारित करना अति दुष्कर है। सभी वैज्ञानिक विषय अल्पाधिक मात्रा में इसके अंतर्गत आ जाते हैं। विज्ञान की अन्य शाखायें या तो सीधे ही भौतिक पर आधारित हैं, अथवा इनके तथ्यों को इसके मूल सिद्धांतों से संबद्ध करने का प्रयत्न किया जाता है। भौतिकी का महत्व इसलिये भी अधिक है कि अभियांत्रिकी तथा शिल्पविज्ञान की जन्मदात्री होने के नाते यह इस युग के अखिल सामाजिक एवं आर्थिक विकास की मूल प्रेरक है। बहुत पहले इसको दर्शन शास्त्र का अंग मानकर नैचुरल फिलॉसोफी या प्राकृतिक दर्शनशास्त्र कहते थे, किंतु १८७० ईस्वी के लगभग इसको वर्तमान नाम भौतिकी या फिजिक्स द्वारा संबोधित करने लगे। धीरे-धीरे यह विज्ञान उन्नति करता गया और इस समय तो इसके विकास की तीव्र गति देखकर, अग्रगण्य भौतिक विज्ञानियों को भी आश्चर्य हो रहा है। धीरे-धीरे इससे अनेक महत्वपूर्ण शाखाओं की उत्पत्ति हुई, जैसे रासायनिक भौतिकी, तारा भौतिकी, जीवभौतिकी, भूभौतिकी, नाभिकीय भौतिकी, आकाशीय भौतिकी इत्यादि। भौतिकी का मुख्य सिद्धांत "उर्जा संरक्षण का नियम" है। इसके अनुसार किसी भी द्रव्यसमुदाय की ऊर्जा की मात्रा स्थिर होती है। समुदाय की आंतरिक क्रियाओं द्वारा इस मात्रा को घटाना या बढ़ाना संभव नहीं। ऊर्जा के अनेक रूप होते हैं और उसका रूपांतरण हो सकता है, किंतु उसकी मात्रा में किसी प्रकार परिवर्तन करना संभव नहीं हो सकता। आइंस्टाइन के सापेक्षिकता सिद्धांत के अनुसार द्रव्यमान भी उर्जा में बदला जा सकता है। इस प्रकार ऊर्जा संरक्षण और द्रव्यमान संरक्षण दोनों सिद्धांतों का समन्वय हो जाता है और इस सिद्धांत के द्वारा भौतिकी और रसायन एक दूसरे से संबद्ध हो जाते हैं। .

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यांत्रिकी

यांत्रिकी (Mechanics) भौतिकी की वह शाखा है जिसमें पिण्डों पर बल लगाने या विस्थापित करने पर उनके व्यवहार का अध्ययन करती है। यांत्रिकी की जड़ें कई प्राचीन सभ्यताओं से निकली हैं। .

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श्यानता

उपर के द्रव की श्यानता नीचे के द्रव की श्यानता से बहुत कम है। श्यानता (Viscosity) किसी तरल का वह गुण है जिसके कारण वह किसी बाहरी प्रतिबल (स्ट्रेस) या अपरूपक प्रतिबल (शीयर स्ट्रेस) के कारण अपने को विकृत (deform) करने का विरोध करता है। सामान्य शब्दों में, यह उस तरल के गाढे़पन या उसके बहने का प्रतिरोध करने की क्षमता का परिचायक है। उदाहरण के लिये, पानी पतला होता है एवं उसकी श्यानता वनस्पति तेल की अपेक्षा कम होती है जो कि गाढा़ होता है। .

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संवेग

कोई विवरण नहीं।

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संवेग संरक्षण

यदि किसी निकाय पर कोई बाह्य बल कार्य न कर रहा हो तो, निकाय का कुल संवेग नियत रहता हैं। श्रेणी:भौतिकी श्रेणी:भौतिक शब्दावली.

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घनत्व

भौतिकी में किसी पदार्थ के इकाई आयतन में निहित द्रव्यमान को उस पदार्थ का घनत्व (डेंसिटी) कहते हैं। इसे ρ या d से निरूपित करते हैं। अर्थात अतः घनत्व किसी पदार्थ के घनेपन की माप है। यह इंगित करता है कि कोई पदार्थ कितनी अच्छी तरह सजाया हुआ है। इसकी इकाई किग्रा प्रति घन मीटर होती है। .

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गति (भौतिकी)

किसी ग्रह के चारो ओर उसके किसी उपग्रह की गति; इसमें ग्रह के ताक्षणिक वेग और त्वरण की दिशा पर ध्यान दीजिये। स्प्रिंग द्वारा लटका द्रव्यमान सरल आवर्त गति कर रहा है अंगूठाकार यदि कोई वस्तु अन्य वस्तुओं की तुलना में समय के सापेक्ष में स्थान परिवर्तन करती है, तो वस्तु की इस अवस्था को गति (motion/मोशन) कहा जाता है। सामान्य शब्दों में गति का अर्थ - वस्तु की स्थिति में परिवर्तन गति कहलाती है। गति (Motion).

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गुरुत्वाकर्षण

गुरुत्वाकर्षण के कारण ही ग्रह, सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा पाते हैं और यही उन्हें रोके रखती है। गुरुत्वाकर्षण (ग्रैविटेशन) एक पदार्थ द्वारा एक दूसरे की ओर आकृष्ट होने की प्रवृति है। गुरुत्वाकर्षण के बारे में पहली बार कोई गणितीय सूत्र देने की कोशिश आइजक न्यूटन द्वारा की गयी जो आश्चर्यजनक रूप से सही था। उन्होंने गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का प्रतिपादन किया। न्यूटन के सिद्धान्त को बाद में अलबर्ट आइंस्टाइन द्वारा सापेक्षता सिद्धांत से बदला गया। इससे पूर्व वराह मिहिर ने कहा था कि किसी प्रकार की शक्ति ही वस्तुओं को पृथिवी पर चिपकाए रखती है। .

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गैस

गैसों का कण मॉडल: गैसों के कणों के बीच की औसत दूरी अपेक्षाकृत अधिक होती है। गैस (Gas) पदार्थ की तीन अवस्थाओं में से एक अवस्था का नाम है (अन्य दो अवस्थाएँ हैं - ठोस तथा द्रव)। गैस अवस्था में पदार्थ का न तो निश्चित आकार होता है न नियत आयतन। ये जिस बर्तन में रखे जाते हैं उसी का आकार और पूरा आयतन ग्रहण कर लेते हैं। जीवधारियों के लिये दो गैसे मुख्य हैं, आक्सीजन गैस जिसके द्वारा जीवधारी जीवित रहता है, दूसरी जिसे जीवधारी अपने शरीर से छोड़ते हैं, उसका नाम कार्बन डाई आक्साइड है। इनके अलावा अन्य गैसों का भी बहु-प्रयोग होता है, जैसे खाना पकाने वाली रसोई गैस। पानी दो गैसों से मिलकर बनता है, आक्सीजन और हाइड्रोजन। .

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कोणीय संवेग

भौतिक विज्ञान में कोणीय संवेग (Angular momentum), संवेग आघूर्ण (moment of momentum) या घूर्णी संवेग (rotational momentum) किसी वस्तु के द्रव्यमान, आकृति और वेग को ध्यान में रखते हुए इसके घूर्णन का मान का मापन है। यह एक सदिश राशि है जो किसी विशेष अक्ष के सापेक्ष जड़त्वाघूर्ण व कोणीय वेग के गुणा के बराबर होता है। किसी कणों के निकाय (उदाहरणार्थ: दृढ़ पिण्ड) का कोणीय संवेग उस निकाय में उपस्थित सभी कणों के कोणीय संवेग के योग के तुल्य होता है। .

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